With bride and bride groom |
Ghyasoddin shaikh,bride and Bride groom,Mrs Fareeda and others |
With Anees Sir Kalyan |
With zahid Shaikh |
With bride and bride groom |
Ghyasoddin shaikh,bride and Bride groom,Mrs Fareeda and others |
With Anees Sir Kalyan |
With zahid Shaikh |
अकबर क़ादरी
कोई बतलादे के एक उम्र का बिछड़ा मेहबूब
इत्तेफ़ाक़न कही मिल जाये तो क्या कहते हैं
१५ डिसेम्बर २०२४ इत्तेफ़ाक़न फरहान से मुलाक़ात करने रांदेर (सूरत ) जाना हुवाऔर वहां ,२ दिन रुकना भी हुवा, तो कई पुराने रिश्तों को झाड़ पोंछ कर नयाँ पन अता हुवा। सग़ीर जनाब ,मुसरत और अज़्ज़हरुद्दीब से मुलाक़ातें हुयी। अकबर क़ादरी से अरसे बाद, उनके घर मुलाक़ात हुयी। बात चीत में वही बर्जस्तगी देखी ,सेहत भी माशाअल्लाह। मुलाक़ात से पहले मैं ने उसे फ़ोन पर कांटेक्ट किया "कब आया राग़िब और घर कब आ रहे हो। अभी आजा हम दोनों मियां बीवीअकेले हैं साथ खाना खायेंगे " उसी वक़्त अपने मक़ान का location गूगल पर शेयर कर दिया ७०३ ,मालाबार रेजीडेंसी । इसके इस खुलूस ने मुझे बहुत मुत्तासिर किया।
१०३० बजे सुबह मैं और शगुफ्ताअकबर के घर पहुंचे यास्मीन भाभी और अकबर ने हम दोनों को खुश आमदीद कहा नाश्ता पेश किया। बातों बातों में यादों का पिटारा खुला माज़ी (past ) और हाल (present ) के दरमियान की ऊँची दीवारें ढह गयी। और २ घंटे हम लोग पुरानी यादों से शराबोर होते रहे ।
क्या लोग थे रहे वफ़ा से गुज़र गए
दिल चाहता है नक़्शे क़दम चूमते चले
Dr. क़ादरी अकबर क़ादरी के वालिद की यादें ताज़ा होगयी। उनका तकिअए क़लाम "hurry up slowly " हुवा करता था। अल्लाह उन्हें जन्नत के ऊँचे दर्जे इनायत करे बड़ी ज़िंदा दिल , खुश गवार शख्सियत के इंसान थे। छोटे छोटे जोक्स सुना कर महफ़िल को गुलो गुलज़ार कर देते थे। मुझे उनका एक लतीफा आज तक याद है। एक अँगरेज़ किसी मुक़ाम से गुज़र रहा था। देखा एक इंडियन आदमी लकड़ियां काटने में मसरूफ था ,लकड़ियों ढेर लगा था। अँगरेज़ ने हिंदुस्तानी आदमी से सवाल किया "what is this place name " हिंदुस्तानी समझा लकड़ियों के बारे में सवाल कर रहा है। उसने जवाब दिया "कल काटा " अँगरेज़ ने कहा " ok this place name is culcatta " इस तरह कलकट्टा का नाम पड़ा।
लम्बी उम्र की दूआ देने वाले दुनिया से ग़ायब होते जा रहे हैं। अकबर की अम्मा भी हमेशा मुझे छोटी छोटी बातों पर दुवायें दिया करती थी , उनोहने कभी भी मुझे सही नाम से नहीं पुकारा। कभी कभी राकेट तो कभी राजेश कह कर बुलाती लेकिन थी मामता की मूरत। अल्लाह उनेह अपने जवारे रहमत में जगह अता करे आमीन।
आयी किसी की याद तो आंसु निकल पड़े
आंसु किसी की याद के कितने क़रीब थे
अकबर ने मॉमू मिया अफ्ज़लोद्दीन उर्फ़ लाला मियां की यादें ताज़ा कर दी। किस तरह अकबर को साथ अहमदाबाद ले जा कर उसे गुजरात हुकूमत से फिशरीज ऑफिसर का appointment letter दिलवाया था। सग़ीर जनाब को भी टीचर पोस्ट का appointment letter उन्होंने ही दिलवाया था। अकबर इतने साल बाद भी अपने मोहसिन को नहीं भूल पाया। न जाने कितने क़ौम के नौजवानो की मुस्तक़बिल की राह मामू मियां ने आसान की होंगी। हम चारों भाइयों पर भी उनकी नज़रे इनायत थी। उनके अहसानों को हम किसी क़ीमत पर भी भूल नहीं सकते। अल्लाह मामू मियां को जन्नत फिरदौस में आला मक़ाम आता करे आमीन।
तुम याद आये साथ तुम्हारे
गुज़रे ज़माने याद आये
शफ़ीक़ ,रहम दिल ,हम सब के राहबर मरहूम हाजी सादिक़ अहमद के ज़िक्रे खैर के बग़ैर यादों का सिलसिला मुक़्क़मिल नहीं हो सकता। वो हम सब के ideal थे। उनकी बातों उनकी यादों का लमुतनाही सिलसिला था हम सब शराबोर होते रहे। यक़ीनन वो जन्नती है। सदियों में ऐसी शख्सियत पैदा होती हैं और अपने पीछे एक पूरी जनरेशन की ज़हनी तरबियत कर जाते हैं। उनकी जुदाई पर किसी शायर का ये शेर याद आगया
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोये
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब् रोये
dr लियाक़त ,dr वासिफ , अफ़सान ,भाभी ज़ुबेदा ,शम्सु आप ,अहमदुल्ला ,लुबना ,समीरा ,नाएला ,उज़्मा गोरे मामू माज़ी की किताब के पन्ने उलटते रहे। आखिर में अहमद मिल के यूनियन लीडर ,जावेद अहमद की याद अकबर ने की, में ने फ़ोन लगा कर अकबर से जावेद की बात भी करा दी। अतीत से आज की चकाचौंद दुनिया की तरफ लौटना भी एक तकलीफ दे अमल था।
अकबर के साथ बीताये दो घंटे दो पल की तरह लगे।
अकबर MSc मुक़ामिल करने के बाद गुजरात government में Fisheries officer की gatzzeted पोस्ट से रिटायर हुवा। अब भी अपनी मालूमात से लोगों को फ़ैज़याब कर रहा है। consultant की services दे कर हफ्ते में ३ दिन अपने आप को मसरूफ रखता है। बेटा साहिल क़ादरी अपनी अहलिया के साथ उलवा नवी मुंबई में मुक़ीम है। अकबर ने कोंकण अपने आबाई गांव धापोली में खूबसूरत बांग्ला तामीर किया है। साल में ३ महीने हापुस आमों के सीज़न में अपने सेकंड होम में गुज़रता है कुछ अरसा मिया बीवी साहिल एंड फॅमिली के साथ भी खुशगवार वक़्त गुज़रते हैं।
अकबर ,यास्मीन भाभी हम दोनों को छोड़ने की लिए सोसाइटी गेट तक आये। हम सब बीती यादों में डूब कर जज़्बाती हो गए थे। वक़्त जुदाई किसी उर्दू शायर का ये कतआ मेरे ज़हन में गूंजने लगा।
वक़्त खुश खुश काटने का मश्वरा देते हुए
रो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए
जब तलक नज़र आता रहा तकता रहा
भीगीं आँखों उखड़े लफ़्ज़ों से दूआ देते हुए
जैसे जैसे हमारी उमर में साल जुड़ते जा रहे हैं क़रीबी ताल्लुक़ात रखने वाले लोग काम होते जा रहे हैं , अकबर क़ादरी जैसे मुख्लिस लोगों की क़द्र हमारे दिल में बढ़ती जा रही है। अल्लाह सेहत तंदुरुस्ती के साथ अकबर क़ादरी भाभी यास्मीन का साथ क़ायम रखे उनकी उमर दराज़ करे आमीन।
खुसबू जैसे लोग मिले
मोहिब मुजाहिद शेख
मेहनत से वो तक़दीर बना लेते हैअपनी
विरसे में जिनेह कोई खज़ाना नहीं मिलता
अब तक में इस टॉपिक पर बुज़र्गों के खाके लिखता रहा हूँ। आज एक नौजवान जो अपनी मेहनत ,ईमानदारी ,जाँफ़िफिषानी से कम उम्र (Age ) में तरक़्की की कई पॉयदाने तै करके ,अपना एक मक़ाम बना लिया।
मोहिब शेख़ अनवर साहब डिप्टी कलेक्टर का पोता ,मुजाहिद सर का बेटा। मुजाहिद सर बहुत कम उम्र में इंतेक़ाल कर गए वो भी B.A ग्रेजुएट थे। सब से पहले जलगाओं रिलेटिव ग्रुप फॉर्म किया। ५०० रिश्तेदारों को एक मंच पर इखट्टा किया। इस दुनिया से रुखसत होगये।
राहों की ज़हमतों का तूमेह क्या सुबूत दूँ
मंज़िल मिली तो पाव के छाले नहीं रहे
मोहिब की ज़िन्दगी कोशिशों से भर पुर रही। जलगांव यूनिवर्सिटी से B.COM करके डिप्लोमा इन टेक्सेशन लॉ किया। जलगांव शहर में जदोजहद जारी रखी। CA की ऑफिस में काम करता , लोगों के आधार कार्ड डॉक्यूमेंट बनाता रहा। फ़ूड डेलिवेरी का काम भी किया। इंग्लिश क्लास्सेस ज्वाइन की इंग्लिश पर कमांड हासिल किया। शहादा में एकाउंट्स का काम भी किया। जलगाव के पहले इक़रा खानदेश के प्रोग्राम को मोहिब ही ने यू टयब पर रिले किया था।
जिन के मज़बूत इरादे बने पहचान उनकी
मंज़िलें आप ही होजाती है आसान उनकी
फिर उसकी किस्मत ने ज़ोर मारा माशाल्लाह बहरीन में उसे अकाउंटेंट की ऑफर मिली। दो साल से कम अरसे में उसके वालिद मुजाहिद का इंतेक़ाल होगया। उसने हिम्मत नहीं हारी ,बहरीन में अपनी काविशें जारी रखी दूसरी कंपनी में सीनियर अकाउंटेंट की पोजीशन मिली। अब अपने आप को नए सेट उप में एस्टब्लिश करने में मिया मोहिब मसरूफ है। अल्लाह उनेह कामयाबी अता करे मुस्तक़बिल की राहें मुन्नवर करे आमीन। मोहिब की तरक़्की में उसकी वालिदा मोफिज़ा की दुवाओं का बहुत असर रहा है।
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
आज सुबह (९ दिसंबर -२०२४ )जलगांव की मुबाउनिस्सा की मौत की खबर सभी रिश्तेदारों के ग्रुप्स में नज़र से गुज़री तो समझ में नहीं आया कौन मोहतरमा इंतेक़ाल कर गयी। मखदूम अली ने फ़ोन पर इत्तला दी मुबा मुमानी ७९ की उम्र गुज़ार कर इस जहाने फानी से कूच कर गयी। सकते में चला गया ,मखदूम अली भीअपने जज़्बात पर काबू न रख सका सिसकियाँ लेता रहा ।
जलगांव का तार्रुफ़ तीन चीज़ों से किया जा सकता है। मेहरून का तालाब ,मेहरुन के बेर जाम और दिल से क़रीब मुबा मुमानी। शायद कोई जलगांव विजिट करे और ऊन से मुलाक़ात न करे। शहर के बीचों बीच मुमानी का मकान ,आठवडा बाजार से क़रीब ,हम वहां से गुज़रे , औरउसे नज़र अंदाज़ कर ही नहीं सकते थे। शायद ही कोई हमारी १९७१ मट्रिक बैच का साथी रहा हो जो उनेह न जानता हो। मखदूम अली की मुमानी हम सब की मुमानी। मरहूम इंस्पेक्टर शेर अली सय्यद , मरहूम इंस्पेक्टर रफ़ीक शैख़ ,निसार ,सादिक़ ,हसन गाहे गाहे उन से मुलाक़ात कर ही लेते थे। जब भी उन से मिलने गया एक जुमला सुनने को मिलता " अरे रागिब बहुत दिनों बाद आया रे "
तुम्हारे लहजे म जो गर्मी व हलावत है
उसे भला सा कोई नाम दो वफ़ा की जगह
ग़नीमे नूर का हमला कहो अंधेरों में
दयारे दर्द में आमद कहो बहारों की
भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बंद किया
मुमानी हमेशा मद्धम ,शहद से दुबे लहजे में गुफ़्तगू करती थी। कभी भी किसी से तल्ख़ गफ्तगु ,ग़ुस्सा करते नहीं देखा। दराज़ क़द ,दूध की तरह शफाफ रंग। चेहरे पर अजीब वक़ार था आदमी देखते ही मरऊब होजाता था। मुझे हमेशा बचपन में लगता था जैसे वो किसी ऊँचे खानदान से ताल्लुक़ रखती हो। लेकिन हम सब के लिए मोम की तरह नरम हुवा करती। मुबा मुमानी ने अपने दो बच्चों नाज़िरोद्दीन,कफील और अपने भांजे ,मखदूम अली को अपने लखत जिगर से ज़ियादा चाहा ,इलावा मेरी भी तरबियत में, उनक हाथ रहा है। हमेशा नसीहत आमेज़ गुफ्तगू करती थी। मेरी अम्मा जब मैं ९ साल का था इंतेक़ाल कर गयी थी। उनके चेहरे में मुझे मामता की झलक नज़र आती थी।
उनकी एक खासियत ,रिश्तेदारों की Encyclopedia थी। रिश्तेदारों की किसी भी क़िस्म की मालूमात उनके फिंगर टिप्स पर रहा करती थी। रिश्तेदारों के ताल्लुक़ से शायद ही कोई अब इतनी जानकारी रखता हो। फॅमिली ट्री तरतीब देने में मरहूम मिस्बाह अंजुम ने उन से बहुत मदद ली थी।
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
मुबा मुमानी के इंतेक़ाल पर हम सब तो सब्र करलेंगे। मामू की कुछ और ही बात है ,शायद ही कभी मुमानी से जुदा रहे हो ५० सालों की रफ़ाक़त पल भर में टूट गयी ,उन की जिंदिगी में हमेशा एक खला सी रहेंगी ,जो शायद ही पुर हो सके।
अल्लाह हम सब को सबरे जमील अता करे। कहा जाता है अच्छे लोग लौंग इलायची की तरह अनका (कम ) होते जा रहे हैं। मुबा मुमानी भी नहीं रही लेकिन उन की यादें हमेशा हमारे दिलों में ताज़ा रहेंगी अल्लाह मुमानी मुबा को जन्नत के आला दरजात आता करे अमीन सुम्मा अमीन।
हम ने क्या खोया हम ने क्या पाया
सायली और तुषार की शादी। कहा जाता है लड़कियां ताड़ की तरह बढ़ती है। सायली की वो पहली किलकारी ,पहले पहले तुतले तुतले लहजे (Accent )में बात करना ,रेंगना ,फिर गिरते पड़ते ,चलना सीखना भाबी लता और प्रकाश सोनवणे कभी भूल नहीं पाएंगे। फिर कीड़े मकोड़े की तरह लिखने पर आप लोगों ने ज़रूर जश्न मनाया होंगा। स्कूल की सायली की शरारतें ,स्कूल कॉलेज में टॉप करने पर ख़ुशी का एहसास ,हर साल सायली की सालगिरह की पार्टी। उसके दोस्तों से मिलने पर दिल के किसी गोशे में ख़ुशी की लहरें उठना।
तुम चले जाओंगे तो सोचेंगे
हम ने क्या खोया हम ने क्या पाया
बच्चों के जाने के बाद ज़िन्दगी में खोने के एहसास ही बाक़ी रह जाता है। फिर उसके पुराने एल्बम ,वीडियोस हमारी ज़िन्दगी का सरमाया होजाते हैं। उसकी अलमारी रखे उसके कपडे ,उसके पुराने खिलोने हमारे लिए ख़ज़ाने से बढ़ कर होजाते हैं। वह जब भी मिलने आएँगी घर बहार की तरह खिल उठेंगा ,उस की जुदाई पर महसूस होंगा
तेरी क़ुरबत के लम्हे फूल जैसे
मगर फूलों की उम्र मुख़्तसर हैं
ज़न्दगी की यही रीत है। बेटी दामाद के साथ ही शोभती है। माँ बाप शादी का फ़र्ज़ अदा करके हमेश यही दुआ देते हैं
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो ये दुआ याद आयी
جو بات کہے وہ کرے
سورہ صف میں الله فرماتا ہے "تم وہ کہتے کیوں ہو جو کرتے نہیں بچے ننھے پودوں کیطرح ہوتے ہیں ان میں احساس زممیداری جگانے کے لئے نصیحتیں کارگرثابت ہوتی ہیں لیکن اگر آپ خود سوشل میڈیا پر گھنٹوں برباد کر رہے ہیں اور بچوں کو سوشل میڈیا پر وقت برباد کرنے سے روک رہے ہیں ،تو آج کی جنریشن اتنی زہین ہیں جو ہر چیز پر غور کرتی ہیں خود کتابیں پڑھے خود نماز کی پابندی کرے گھر کے کام میں حصّہ لیں خود فاسٹ فوڈ سے دور رہے اور پھر بچوں کو بتایں کے کس طرح یہ چیزیں صحت کو برباد کرتی ہے اور ان چیزوں سےدوری بنا کر کتنے پیسوں کی بچت ہو سکتی ہیں - وقت کی پابندی کا احساس کریں اآپ خود روزانہ پابندگی سے مورننگ واک کر رہے ہیں تو انہں بھی اس بات کا احساس ہوگا کے صحت کے لئے یہ کتنا ضروری ہے
شگفتہ راغب شیخ
نیرول (نوی ممبئی )
اوڑھنی کےلئے
معمر والدیں کے ساتھ وقت گزارنا کیوں ضروری
قرآنی حکم پر عمل
قرآن میں شرک سے بچنے کے بعد سب سے زیادہ جس بات کی نصیحت کی گی ہے وہ ہے ماں باپ کے ساتھ حسن سلوک
بوڑھے والدین کے ساتھ وقت گزار کر ہم انکے تجربات سے بہت کچھ سیکھ سکتے ہیں
انکے غم پریشانیاں شیر کرنے پر انھیں خوشی ملتی ہیں سکوں حاصل ہوتا ہے
اپنے ساتھ تفریح پر لیجانے سے انکی تنہایی دور ہوتی ہے انکا دل بڑا ہوجاتا ہے
انکی دعا ہماری زندگی میں سکوں ،خوشیاں اور طمانیت بھر دیتی ہیں
نواسے نواسیاں ،پوتے پوتیوں سے مل کر انکی خوشیوں میں اضافہ ہوجاتا ہے
ہم بھی ان سے مل کر صحت کے تعلّق سے اچھے مشورے دے سکتے ہیں
الله ہر کسی کو اپنے بوڑھے والدین کی خدمات کی توفیق عطا کرے --آمین
شگفتہ راغب شیخ
مبارکباد
مکرمی
خطیب کوکن جناب علی ایم شمسی صا حب کے سماجی ،فلاحی کاموں اور قوم کی خدمات کے کاموں کا اعتراف کرتے ہوے آپکو کوکوکن مرکنٹائل بینک کی جانب سے "لائف ٹائم اچیومنٹ ایوارڈ " سے نوازا گیا -موصوف کو یشونت راؤ پرتیستان نوی ممبئی کی طرف سے "سپرچول لیڈر " کے خطاب سے بھی کچھ عرصہ پہلے نوازا گیا تھا.آپ نے اپنی عمر کے طویل ٧٠ سال سماجی کاموں کے نظر کے ہیں مرکزفلاح کے تمام ترستیاں اور اہل نوی ممبئی آپکے فلاحی کاموں کو سلام کرتے ہے دل سے مبارکباد پیش کرتے ہیں اور موصوف کے لئےعمر میں برکت کے لئے دعا کرتے ہیں آمین
راغب احمد /حمید خانزادہ /اوصاف عثمانی /منصور جٹہام /ڈاکٹر شریف
किसी के ज़ख्म पर चाहत की पट्टी कौन बाँधेंगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेंगा
आप सब को रक्शा बंधन के इस पावन औसर पर ढेर सारी मुबारकबाद
راغب احمد (نیرول نوی ممبئی )
ویڈیو گیم ایک لعنت
الله تعالیٰ فرماتا ہیں "تم میری یاد سے غافل ہوجاوونگے میں تمہں اپنے آپ سے غافل کر دونگا " ویڈیو گیمز کھیلتے کھیلتے ایک ایسا وقت بھی آتا ہے جب آخری اسٹیج پر پہنچ کر یا تو آدمی خود کشی کر لیتا ہے یا کسی اور کا قتل کر دیتا ہے تو کیا یہ اپنے آپ سے غافل ہونا نہیں ہے ؟
ہمارے معاشرے میں بچوں کی تربیت کا کام موبائل کر رہا ہے بچہ کھانا نہیں کھا رہا ہے ماں اسکے ہاتھ میں موبائل تھما کارٹون لگا کر موبائل تھما دیتی ہے بچہ ضد کر رہا ہے موبائل اسکا علاج ہوجاتا ہے ہمیں پھر پتا نہیں چلتا بچہ کیا کھا رہا ہے کتنا کھا رہا ہےماں اسکےمو میں نوالے ٹھوستی رہتی ہے نتیجہ کھانا جسم کو نہیں لگتا یا اسے بعد میں بد ہضمی ہوجاتی ہے -ایک زمانہ تھا ماں بڑے لاڈ سے شیر کا نوالہ بکری کا ننوالہ اور ہمارے منے کا نوالہ کہ کر کھانا کھلاتی تھی نانا نانی دادا دادی چچی پورے خاندان کابچے پر دھیان ہوتا تھا یہاں تک محلے والے بھی کدی نظر رکھتے تھے آج کے زمانے میں خاندان ایک ساتھ کم ہی کھانا کھاتے ہیں ایک دوسرے کی پریشانی جاننے کے لئے بھی و قت نہیں ہوتا بچے فرسٹریٹ ہوکر اپنے آپ کو سوشل میڈیا ویڈیو گیمز میں مصروف ہوکر اپنا سکوں حاصل کر لیتے ہیں
ویڈیو گیمز کی عادت چھڑانے کے لئے ضروری ہے کے بچوں کے ساتھ وقت بتایا جایا -انہں اچھی کتابیں پڑھنے کی ترغیب دی جائے -فزیکل گیمز کھیلنے پر اکسایا جائے اور نماز کو مسجد ساتھ لیکر جانے کی کوشش کی جائے اور یہ کام اتنا آسان نہیں ہے اس کے لئے وقت درکار ہوتا ہے اگر پھر بھی بچے میں تبدیلی نے دیکھن تو کسی اچھے سیکا ٹرسٹ کو کنسلٹ کرنا چاہیے
आयेशा शिराज़ी हमारे खानदान की माशाल्लाह तीसरी पीड़ी (Generation ) से ताल्लुक़ रखती है। शारिक और इरम शिराज़ी की औलाद है। शिराज़ी खानदान अमेरिका में रिहाइश पज़ीर हैं। आयेशा की पैदाइश अमेरिका में हुयी और वही तालीम हासिल कर रही है। जब १० साल के बच्चे मोबाइल और गेम्स में मसरूफ दिखाई पड़ते हैं ,अपना क़ीमती वक़्त बर्बाद करते हैं इतनी छोटी उम्र में आयशा की बेहतरीन तहरीर (write up ) पढ़ कर दिल खुश होगया। कहा जाता है इस्लाम इंशाल्लाह अमेरिका से ज़िंदा (resurrect ) होगा इस का ज़िंदा सबूत आयेशा जैसे बच्चे हैं।
आज के दौर की सब से बड़ी tragedy है हालत से मासूसी। और उस का solution है सब्र और अल्लाह की ज़ात पर दिल की गहराइयों से यक़ीन। आयेशा अगर इंडिया में होती तो में उसे ज़रूर इनाम (prize ) से नवाज़ता ,लेकिन हमारी दुवायें और नेक ख़्वाहिशात आयेशा के साथ हैं। शारिक शीराज़ी और इरम शिराज़ी को भी मुबारकबाद उनोहने अपनी औलाद की तरबियत पर सही तवज्जेह दी।
आयेशा से request है future में भी इसी तरह अपने बेहतरीन ख्यालात से हम सब को फायदा पहुंचाती रहूंगी। अल्लाह आप को उम्र दराज़ नसीब करें।
Ayshah Shirazi:
Ayesha Shirazi write up below
There will be many challenges in our lives where an immense amount of stress will be on us. In Islam, these challenges are here to test us and to see how well we would handle it. It is not always easy. But as Muslims, we should always have patience and faith that Allah SWT will help. We should make Dua and seek guidance during these hard times. No matter how hard the challenge is; if you have a positive mindset, then you will get a reward for your patience.
Thursday, July 25, 2024 Ayeshah Shirazi
Ayesha Shirazi belongs to the third generation of our family. She is the daughter of Shariq and Iram Shirazi. The Shirazi family is a resident of America. Ayesha was born in America and is receiving her education there. When 10 year old children are seen busy in mobile phones and games, wasting their precious time. It made my heart happy to read Ayesha's excellent write up at such a young age. It is said that Islam will resurrect from America Inshallah, children like Ayesha are the living proof of this.
The biggest tragedy of today's times is poverty. And its solution is patience and faith in the existence of Allah from the depth of the heart. If Ayesha had been in India, I would have definitely honored her with a prize, but our prayers and good wishes are with Ayesha. Congratulations to Shariq Shirazi and Iram Shirazi too, they paid proper attention to the upbringing of their children. It is a request to Ayesha that in the future too, she will continue to benefit us all with her wonderful thoughts. May Allah bless you with a long life.
इन्किलाब में छपा लेटर
नफरत की सियासत करने वालो को सुप्रीम कोर्ट की फटका
कानोडिया यात्रा के रास्ते में खाने पीने की चीज़ें बेचने वाले होटलें ,ढाबे और ठेले के मालिकों को उत्तर प्रदेश ,उत्तरा खंड और मध्य प्रदेश सरकार ने हुक्म जारी किया के वह अपने मालिकों के नाम के बोर्ड लगाए। महुआ मित्र की एन जी ओ ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिस को सुन कर सुप्रीम कोर्ट ने इस हुक्म पर रोक लगा दी है। जस्टिस ऋषि केश रॉय ,जस्टिस अस वी एन भट्टी ने उत्तर प्रदेश और उत्तरा खंड हुकूमत को नोटिस जारी कर दिया है। जस्टिस भट्टी ने अपने फैसले में यहां तक कह दिया के वह केरला में रिहाइश के दौरान मुस्लिम रेस्टोरेंट में वेजेटेरियन खाना खाया करते थे जहाँ साफ़ सफाई इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड की हुवा करती थी। उत्तर प्रदेश हुकूमत के इस फैसले पर पुरे मुल्क में इन्साफ पसंद तबके ने सवाल उठाये हैं लेकिन योगी सरकार कब किसी की परवाह करती है। सुप्रीम कोर्ट के इस जुर्रत मंदाना (bold )फैसले पर योगी सरकार को शर्मिंदगी उठाना पड़ी। क्या उत्तर प्रदेश सरकार होश के नाख़ून लेंगी ?
राग़िब अहमद
नेरुल (नवी मुंबई )
शगुफ्ता रागिब सालगिरह मुबारक
तुम्हारा साथ साथ फूलों का
तुम्हारी बात बात फूलों की
सालगिरह के इस हसींन मौके पर दिल की गहराइयों से सालगिरह की मुबारकबाद। तुम्हारी सेहत तंदुरुस्ती के लिए दिल से दुआ। हमेशा इसी तरह हँसतें मुस्कराते रहो। आमीन
रागिब अहमद
At L&T complex Garden with liyaqat Ali Sayyed
जिस दिन से चला हु मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
मील का पत्थर मतलब mile stone शहबाज़ का मतलब होता है ,शाहीन या बड़ा शिकारी परिंदा ऊपर लिखा शेर शाहबाज़ अली सय्यद की ज़िन्दगी पर सादिक़ आता है ,। वालिद शेर अली और वालिदा रोशन की नाज़ नेमत में पली ,पहली औलाद शहबाज़। मुझे अछि तरह याद है 1983 साल में वालिद इंस्पेक्टर शेर अली सय्यद ने जिस धूम धाम से शहबाज़ अली सय्यद और साजिद अली सय्यद की बिस्मिल्ला का जश्न बरपा किया था ,नेहरू नगर कुर्ला में दोनों बच्चों को घोड़ो पर सवार बैंड बाजे म्यूजिक के साथ पुरे इलाक़े में घुमाया था। माशाल्लाह तमाम रिश्तेदारों को इस प्रोग्राम में खास दावत दे कर बुलाया था एक तारीखी हैसियत रखता है। मेरी नयी नयी शादी हुयी थी शगुफ्ता और मुझे भी इस तक़रीब (प्रोग्राम ) में दावत दे कर बुलाया गया था और हम शरीक भी हुए थे।
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
साल २००० में अचानक एक हादसे में इंस्पेक्टर शेर अली सय्यद इस दुनिया से रुखसत हो गए। शायद शहबाज़ ने 12th का exam दिया था और सोमैया कॉलेज में BSc में एडमिशन भी लिया था। अच्छों अच्छों के हवास गम होगये थे। अकल काम नहीं कर रही थी। उस समय शहबाज़ पर अपने वालिद की वफ़ात पर क्या गुज़री होंगी ,हम जान सकते हैं। इस हादसे ने शहबाज़ अली को एक दिन में खलंडरे नौजवान से संजीदा मतीन शख्स में बदल दिया। उसके पीछे भाभी रोशन और चचा लियाक़त भी चट्टान की तरह खड़े रहे। शहबाज़ ने मर्चेंट नेवी ज्वाइन कर ली। कई कई साल शिप पर लगातार घर से दूर ड्यटी करता रहा। कई exams पास किये ,Captain की वर्दी हासिल की। बहन की शादी करवाई। अपना घर बसाया और माशाल्लाह उसे नीलो की शक्ल में बा वफा शरीक हयात मिली। अपने तीनो औलादों की परवरिश और बेहतरीन तालीम के लिए लगातार कोशिशों में दोनों लगे हैं। इस दौरान शाहबाज़ अली ने ग़रीब रिश्तेदारों का भी काफी ख्याल रखा। सय्यद शेर अली और भाभी ने जो तालीम उसे दी थी और जिस पुख्ता किरदार में उसे देखना चाहा था उसपर वो पूरा उतरा।
राहों की ज़हमतों (तकलीफों )का तुम्हे क्या सुबूत दूँ
मंज़िल मिली तो पाँव के छाले नहीं रहें
इक्कीसवीं सदी के खूबसूरत शहर नेरुल में L & T काम्प्लेक्स जो बेहतरीन facilities के साथ बना है। Swimming Pool ,क्लब ,खूबसूरत मॉल,बँकेट हॉल और sea wood स्टेशन पर ये complex नई मुंबई में अपनी एक मिसाल है। आज दिल से ख़ुशी भी हो रही है और दुवायें निकल रही हैं। Captain शाहबाज़ ने L & T काम्प्लेक्स में अपने फ्लैट का possession ले कर हम सब को अपनी खुशियों में शरीक करने के लिए दावत दे कर ऐज़ाज़ (इज़्ज़त ) बख्शा है। अल्लाह शाहबाज़ को बे इंतेहा तर्रकी अता करे। भाभी को उसके सर पर सलामत रखे। उसकी औलाद का मुस्तक़बिल रोशन करे। आमीन सुम्मा आमीन।
रिश्तेदार के हर बच्चे के लिए शाहबाज़ अली सय्यद की ज़िन्दगी एक मिसाल की हैसियत रखती है। सबक़ सीखे अपनी ज़िन्दगी में हमेशा जद्दो जहद में लगे रहे ,कामयाबी ज़रूर क़दम चूमेंगी।
खुदा ने आज तक उस क़ौम की हालत नहीं बदली
न हो जिसको ख्याल अपनी हालत के बदलने का
पहले हक़ीक़तों ही से मतलब था और अब
एक आध बात फ़र्ज़ भी करने लगा हूँ मैं
इस शेर में फ़र्ज़ का मतलब (to assume ) होता है।
कल जुमा २८ जून २०२४ शाम ८ बजे हम सब को MEET APP पर तमाम शेख़ ख़ानदान के मेंबर्स को नवेद ज़ारा को हज की मुबारकबाद के लिए मिलना था। में और शगुफ्ता २ बार तैयार होकर , ०८२० तक इंतज़ार करते रहे। host समीरा को याद दहानी कराई गयी पता चला actual टाइम ०८३० बजे रखा गया था। हम सब मिल कर नावेद के पास बरोड़ा पहुंचे। हाजी नवेद हज्जन ज़ारा ने खजूर आबे ज़मज़म से हम सब की मेहमान नवाज़ी की। वहां से हम सब मिल कर नाएला के घर सऊदी (Riyadh )पहुंचे वहां भी वलीद और नाएला ने मेज़बानी के फ़राएज़ बा खूबी अनजाम दिए। हमारा अगला पड़ाव था UK (Manchester ) भाभी जान ,उज़्मा ,महक और ज़ैन ने हम सब को खुश आमदीद कहा भाभी जान ने अपने हाथों से बनाये खाने खिलाये। झींगे मछली का सालन ,पुराने दिनों की यादें ताज़ा कर दी। सना इलियास ने भी New Jersey में हम सब का खैर मक़दम किया। वहां से इरम के घर बाल्टीमोर पहुंचे माशाल्लाह इरम और शरीक ने भी दिलो जान से हमें खुश आमदीद कहा। लुबना और हैदर लसने California में हम से मिल कर बहुत ख़ुश हुए ,वही समीरा ज़ाहिद भी क़रीब में थे उनसे हम सब ने मुलाक़ात की। हमारे कारवां की अगली मंज़िल थी कनाडा (Calgary )। हिना ,मुज़फ्फर और सिदृरा हम सब से मिल कर बहुत खुश हुए। हम सब की आव भगत की। फिर सब नेरुल मेरे घर आकर शीर खुरमा पी कर सब अपने अपने घर लौट गए।
ख्वाब था जो कुछ देखा था ,अफसाना था जो कुछ सुना था
मॉडर्न टेक्नोलोग्य ने हर चीज़ पॉसिबल कर दी है। अल्लाह ने हमारे सातों दामाद और बेटियों, बेटा और बहु को इतना नवाज़ा है सब से virtually मुलाक़ात करके इतनी दुरी होने के बावजूद इतनी क़ुरबत काअहसास हुवा।
हम सब खुसूसी तौर पर शुक्र गुज़र है समीरा के जिस ने ये सब possible किया
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عنوان :ذہنی سکوں حاصل کرنے کے لئے کیا کرے ؟
خود کے اندر جھانکیں
جارج برناڈ شا کاقول ہے "ہم کھیلنا اس لئے نہیں بند کرتے کے ہم بوڑھے ہو رہے ہیں بلکی ہم پربڑھاپا اس لئے طاری ہوتا ہے کے ہم نے کھیلنا چھوڈ دیا ہے " زندگی کے ہر شعبے میں ہم نے یہی روییہ اپنایا ہے -ہم رات میں جلد سونا نہیں چاہتے وجہ ہمیں رات میں جلد نیند نہیں آتی -گھر کا بنا کھانا پسند نہیں آتا -دن بھر سوشل میڈیا میسیجز /ٹیلی ویژن دیکھنے سے فرصت نہیں -دوستوں سے ملناچھوڈ دیا ہے -ہلکی پھلکی ورزش نہیں کرنا چاہتے -مستقبل سے بڑی بڑی خواہشیں لگایں بیٹھیں ہیں -آج میں جینا چھوڈ دیا ہے -نماز ،زکرالہی ،دوسروں کی مدد کرنے کے جذبے سے عاری ہوتے جا رہے ہیں -یوروپین ممالک کی طرح ذہنی امراض کا شکار ہوتے جا رہے ہیں -زندگی بزرگوں کی طرح سادگی سے گزارے انشاللہ ذہنی سکوں حاصل ہو جاینگا
شگفتہ راغب شیخ
نیرول (نوی ممبئی )
सालगुराह मुबारक
सलामत रहो ,रब उम्र बढ़ाएं
करो जो तमन्ना ,पूरी होजाये
वलीद - (New Born )
नवेद - खुश ख़बरी सुनाने वाला
मुज़फ्फर - जीता हुवा ,कामयाब
आज हमारे खानदान के तीन नौजवान अफ़राद की सालगिरह का दिन है। तीनो के नाम का मतलब होता हैं (कामयाब ,खुश खबरी ) हाजी नवेद तो हमारे खानदान का फरद है। वलीद और मुज़फ्फर भी हमारे खानदान से ऐसे जुड़े जैसे शकर पानी में घुल जाती है। तीनो self made ,ज़मीन से जुड़े अफ़राद है। अपनी मेहनत लगन से इस मुक़ाम पर पहुंचे है। तीनो अपने parents के खिदमत गुज़ार है। वलीद तो उमरा करते रहते है। अल्लाह से दुआ है हिना और मुज़्ज़फर को जल्द हज की ख़ुशी नसीब हो। आमीन
अल्लाह से दुआ है वलीद,नवेद और मुज़फ्फर को ज़िन्दगी की हर ख़ुशी मिले। अल्लाह उनका हर ख्वाब पूरा करे। उनकी औलाद बे इन्तहा तरक्की करे। आमीन सुम्मा आमीन।
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اسکول کے پہلے دن کی یادیں
اسکول کے پہلے دن کی شروعات بارش کے موسم سے ہوتی ہے -نی سکول کی کتابوںکی بو، زہن میں بسی ہوتی ہے ، ساتھیوں پر کیچڈ اور پانی اچھالنا بھیگتے اسکول پہچنا -نے سکول ٹیچرس سے ملاقات پھر بارش کے بعد گھنٹوں کلاسس روم میں ٹپکتے پانی سے اپنے آپ کو بچانا جس میں بھی ایک مزا تھا -اب تک ذھن میں یادیں بسی ہویی ہیں بھولنے سے نہیں بھولتی -
شگفتہ راغب شیخ
نیرول (نیی ممبئی )
ग़लिब नेकहा था
सब नहीं कुछ लाला व गुल में नुमाया होगयी
खाक में क्या सूरतें होंगी के पिन्हा हो गयी
इस शेर का मतलब है ,इंसान जो दुनिया से रुखसत होगये हैं फूलों की शक्ल में नमूदार होजाते हैं।
मोहतरमा क़मर क़ासिम चूनावाला १४ जून २०२४ (7th ज़ुलहाज ) को इस दारे फ़ानी (ख़तम होने वाली दुनिया ) से रुखसत हो गयी। मुबारक महीना ,जुमे का मुबारक दिन अपनी औलादों (वलीद ,क़ौसर ,तनवीर ) ,बहुओं ,पोते ,पोतियों नवासा ,नवासी की मौजूदगी में मरहूमा ने आखरी साँस ली। तद्फीन (Burial ) अपने मौरूसी (Ancestral ) शृंगारतली के क़ब्रस्तान जो खबसूरत पहाड़ों के दरमियान वाक़े हुवा है ,अमल में आयी।
आज 19th जून २०२४ को क़ासिम चुनावाला से कलीना (Diamond estate society ) ,मेंने जा कर ताज़ियत की। कासिम भाई ज़िंदादिल तो है ,आज भी इतने बड़े हादसे को झेलने के बाद क़ासिम साहब ने बड़ी खुश दिली से मुझ से मुलाक़ात की। अपनी पुरानी ज़िन्दगी के खुशगवार लम्हात जो अपनी मरहूम अहलिया (wife ) के साथ गुज़ारे थे याद किये। दिल को ये बात छू गयी जब उनोहने कहा " ५० साला शादी शुदा दौर में शायद क़मर मुझ से एक दिन भी जुदा नहीं रही " अल्लाह उनेह और उनके तमाम खानदान को सबरे जमील आता करे। क़ासिम चूनावाला साहब अपनी औलादों की बड़ी तारीफें कर रहे थे के " आखरी वक़्त में मेरे बचों ने मरहूमा की खिदमत का हक़ अदा कर दिया। दुआ है अल्लाह सब को ऐसी औलाद आता करे "। आमीन
मरहूमा कमर क़ासिम चुनावाला संजीदा मिज़ाज ,मोहज़्ज़ब,बावक़ार तबियत की मालिक थी। शख्सियत में बड़ा रख रखाव था , उर्दू ज़बान से लगाव था। B.A तक उस दौर में जब औरतों में तालीम इतनी आम नहीं थी ,महाराष्ट्र कॉलेज से तालीम हासिल की थी। किसी वजह सी M.A की तालीम मुक़्क़मिल नहीं हो पायी। अल्लाह मरहूमा को जन्नते आला में जगह आता करे। आमीन सुम्मा आमीन
10th जून २०२४ के इक़रा खानदेश फाउंडेशन तक़सीमे इनामात प्रोग्राम की रूदाद आप सब ने पढ़ ली थी। हर प्रोग्राम की कामयाबी के पीछे बे हद मेहनत और लगन की ज़रूरत होती है। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के सदर (president ) सलाहुद्दीन नूरी साहब की रहनुमाई ,जिन की क़ायदाना (leading ) सलाहियतों (Qualities ) का हमें ऐतराफ़ है ,जनाब सेक्रेटरी रिज़वान जहागिरदार की अनथक कोशिश 10th और 12th के रिजल्ट डिक्लेअर होजाने के दो हफ़्तों के अंदर रिश्तेदारों के स्टूडेंट्स के रिजल्ट जमा करना toppers बच्चों का सिलेक्शन , इनाम की ट्रॉफी बनाना जुये शीर (दूध की नहर ) निकालने से कम नहीं। फिर इन सब बातों के लिए पैसों का इंतेज़ाम करना माशाल्लाह दिल से दुआ निकल पड़ती है। इक़रा खानदेश खानदेश फाउंडेशन की बाग़ डोर बेहतरीन शख्सियात के हाथों में हैं।
५ रिश्तेदारों के Toppers स्टूडेंट्स को 10th जून २०२४ इतवार के दिन कल्याण में ,हाजी आसिफ के घर प्रोग्राम के दौरान इनाम तक़सीम किये जा चुके थे। नवापुर की 10th क्लास की स्टूडेंट्स (92 %) क़ाज़ी ज़ेबा रिज़वान को नवापुर में उसके घर जा कर ट्रॉफी ,कॅश प्राइज ,शॉल और राजस्थानी हार दे कर इस बच्ची को नवाज़ा गया इज़्ज़त अफ़ज़ाई की गयी । इक़रा खानदेश के कमिटी मेंबर जनाब परवेज़ सैयद ,नंदुरबार से तशरीफ़ लाये इसरार सैयद (educationist ) अपनी बेइंतेहा मसरूफियत के बावजूद पप्रोग्राम में शरीक हुए। जनाब तबरेज़ सैय्यद ,जनाब इरफ़ान सय्यद ने भी इस प्रोग्राम को रौनक़ बख्सी।क़ाज़ी ज़ेबा रिज़वान को NEET इम्तेहान की तैयारी के लिए मुफीद मश्वरे से नवाज़ा गया। रिश्तेदारों में आयी तालीम के उन्वान पर बेदारी देख कर तबियत खुश होगयी। माशाल्लाह हमारे रिश्तेदारों में ज़हीन बच्चों की कमी नहीं और अब हर शहर हर क़स्बे में इन्हे मदद ,Guidance ,माली इमदाद के लिए इक़रा खानदेश जैसे इदारे मौजूद हैं। रिश्तेदारी में डॉ वासिफ अहमद,एडवोकेट रज़ीउद्दीन ,नियज़ मखदूम अली फॅमिली , जनाब कमर शैख़ ,रागिब अहमद जहागिरदार,प्रोफेसर सैयद वकील ,क़ाज़ी नवेद ,शकिलोद्दिन सर ,उजेर (MBA ) ,नाचीज़ रागिब अहमद शेख जैसे बाशऊर अफ़राद अपनी रहनुमाई के लिए मौजूद हैं।
तालीम के उन्वान पर बेदारी के बाद अब बच्चे ,बच्चियों के रिश्तों के ताल्लुक़ से भी बात आगे बढ़नी चाहिए,जो आज के के दौर का एक सुलगता मौज़ू /मसला है। जनाब ज़की सैयद (मुन्ना ) नवापुर जो इस वक़्त हज की मुकदस फ़रीज़े में मसरूफ है माशाल्लाह अपनी खिदमात देना चाहते हैं , इंशाल्लाह उनसे मदद ली जासकती है।
आप सब रिश्तेदारों से आजिज़ाना गुज़ारिश है आप भी अपने मुफीद मश्वरों से नवाज़े, किस तरह रिश्तेदारों में बेदारी के उन्वान पर काम बढ़ाया जा सकता हैं।
दास्तानें ग़मे दुनिया तवील थी कह दी
दास्तानें ग़मे दिल मुख़्तसर है क्या कहिये
मुझ को जाना है बहुत आगे हदे परवाज़ से
With Felicitated students L To R Niyaz ,Makhdum ,Ragib ,Mubin ,Hisamoddin |
ज़हनी कैसे हासिल होगा
खुद के अंदर झांके
बर्नाड श का क़ौल है हम खेलना इस लिए नहीं बंद करते के हम बूढ़े हो रहे है बल्कि हम पर बुढ़ापा इस लिए छा जाता है हम ने खेलना छोड़ दिया। ज़िन्दगी के हर शोबे (department )हम ने यही रव्वैया अपनाया है। हम ने जीना छोड़ दिया है ,नमाज़ ,ज़िक्रे इलाही और दूसरों की मदद करने के जज़्बे से खाली होते जा रहे है। बुज़र्गों की तरह सादगी से ज़िन्दगी गुज़ारियें इंशाल्लाह ज़हनी सुकून हासिल होंगा।
शगुफ्ता रागिब अहमद
सालगिरह मुबारक रिदा
वक़्ते दुआ में एक दुआ करूँ
में रब से एक इल्तेजा करूँ
तू खुश रहे तू शाद रहे
तेरे दिल का आंगन आबाद रहे
तू हर पल यूँ ही हंसा करे
फूलों की मानिंद खिला करे
तेरी ज़िन्दगी में कोई ग़म न हो
तेरी आंख कभी नाम न हो
ढेर सारी दुवायें नेक ख्वाहिशात। रोशन ताबनाक मुस्तक़बिल के लिए दिल से दुआ (आमीन )
Nawapur ki yaden |
खुदा करे के ये दिन बार बार आता रहे
और अपने साथ ख़ुशी का का खज़ाना लाता रहे
ख़ुशी के इस मौके पर आंटी और मेरी जानिब से दिली मुबारकबाद। मुझे ख़ुशी इस बात की है के माशाल्लाह तुम भी उसी फील्ड में काम कर रहे हो जिस में मैं रह चुका हूँ , यानी मेरे नक़्श क़दम पर चल रहे हो।इंशाल्लाह बहुत तरक़्क़ी करेंगे।
राह की तकलीफों का उनेह क्या सुबूत दूँ
मंज़िल मिली तो पांव के छाले नहीं रहे
तुम्हारा बचपन बहुत शानदार गुज़रा। भरे पुरे घर में तुम सब से बड़े थे। उस ज़माने में तुम्हारी शरारते बड़ी मशहूर थी। दादा जान , दादी जान। पप्पा मम्मी सब की आंख का तारा हुवा करते थे। बेफिक्री का ज़माना था। लेकिन होश संभालते ही तुम में संजीदगी आ गयी। डिप्लोमा करने के बाद फ़ौरन जॉब ज्वाइन कर लिया। आयल फील्ड में। और शिफ्ट करते हुए जिस मेहनत ,डेडिकेशन से तुम ने B.E की पढ़ाई मुक़ामिल की क़ाबिले तारीफ़ है। लॉक डाउन के दरमियान भी तुम ने कभी अपनी ड्यूटी मिस नहीं की। तुम्हारी ईमानदारी और अपने काम से लगन का जज़्बा क़ाबिले एहतेराम है। इस का नतीजा है तुम आज रेपुटेड मल्टीनेशनल कंपनी में शिफ्ट इंचार्ज/ इंजीनियर की ड्यूटी निभा रहे हो। ये तो इंशाल्लाह ये तो शुरुवात है। आगे आगे देखिये होता है क्या।
मुस्तक़बिल के लिए नेक ख्वाहिशात।
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी
Devika Beach |