एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
आज सुबह (९ दिसंबर -२०२४ )जलगांव की मुबाउनिस्सा की मौत की खबर सभी रिश्तेदारों के ग्रुप्स में नज़र से गुज़री तो समझ में नहीं आया कौन मोहतरमा इंतेक़ाल कर गयी। मखदूम अली ने फ़ोन पर इत्तला दी मुबा मुमानी ७९ की उम्र गुज़ार कर इस जहाने फानी से कूच कर गयी। सकते में चला गया ,मखदूम अली भीअपने जज़्बात पर काबू न रख सका सिसकियाँ लेता रहा ।
जलगांव का तार्रुफ़ तीन चीज़ों से किया जा सकता है। मेहरून का तालाब ,मेहरुन के बेर जाम और दिल से क़रीब मुबा मुमानी। शायद कोई जलगांव विजिट करे और ऊन से मुलाक़ात न करे। शहर के बीचों बीच मुमानी का मकान ,आठवडा बाजार से क़रीब ,हम वहां से गुज़रे , औरउसे नज़र अंदाज़ कर ही नहीं सकते थे। शायद ही कोई हमारी १९७१ मट्रिक बैच का साथी रहा हो जो उनेह न जानता हो। मखदूम अली की मुमानी हम सब की मुमानी। मरहूम इंस्पेक्टर शेर अली सय्यद , मरहूम इंस्पेक्टर रफ़ीक शैख़ ,निसार ,सादिक़ ,हसन गाहे गाहे उन से मुलाक़ात कर ही लेते थे। जब भी उन से मिलने गया एक जुमला सुनने को मिलता " अरे रागिब बहुत दिनों बाद आया रे "
तुम्हारे लहजे म जो गर्मी व हलावत है
उसे भला सा कोई नाम दो वफ़ा की जगह
ग़नीमे नूर का हमला कहो अंधेरों में
दयारे दर्द में आमद कहो बहारों की
भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बंद किया
मुमानी हमेशा मद्धम ,शहद से दुबे लहजे में गुफ़्तगू करती थी। कभी भी किसी से तल्ख़ गफ्तगु ,ग़ुस्सा करते नहीं देखा। दराज़ क़द ,दूध की तरह शफाफ रंग। चेहरे पर अजीब वक़ार था आदमी देखते ही मरऊब होजाता था। मुझे हमेशा बचपन में लगता था जैसे वो किसी ऊँचे खानदान से ताल्लुक़ रखती हो। लेकिन हम सब के लिए मोम की तरह नरम हुवा करती। मुबा मुमानी ने अपने दो बच्चों नाज़िरोद्दीन,कफील और अपने भांजे ,मखदूम अली को अपने लखत जिगर से ज़ियादा चाहा ,इलावा मेरी भी तरबियत में, उनक हाथ रहा है। हमेशा नसीहत आमेज़ गुफ्तगू करती थी। मेरी अम्मा जब मैं ९ साल का था इंतेक़ाल कर गयी थी। उनके चेहरे में मुझे मामता की झलक नज़र आती थी।
उनकी एक खासियत ,रिश्तेदारों की Encyclopedia थी। रिश्तेदारों की किसी भी क़िस्म की मालूमात उनके फिंगर टिप्स पर रहा करती थी। रिश्तेदारों के ताल्लुक़ से शायद ही कोई अब इतनी जानकारी रखता हो। फॅमिली ट्री तरतीब देने में मरहूम मिस्बाह अंजुम ने उन से बहुत मदद ली थी।
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
मुबा मुमानी के इंतेक़ाल पर हम सब तो सब्र करलेंगे। मामू की कुछ और ही बात है ,शायद ही कभी मुमानी से जुदा रहे हो ५० सालों की रफ़ाक़त पल भर में टूट गयी ,उन की जिंदिगी में हमेशा एक खला सी रहेंगी ,जो शायद ही पुर हो सके।
अल्लाह हम सब को सबरे जमील अता करे। कहा जाता है अच्छे लोग लौंग इलायची की तरह अनका (कम ) होते जा रहे हैं। मुबा मुमानी भी नहीं रही लेकिन उन की यादें हमेशा हमारे दिलों में ताज़ा रहेंगी अल्लाह मुमानी मुबा को जन्नत के आला दरजात आता करे अमीन सुम्मा अमीन।
माशाअल्लाह, very well described, I was in 7th class in 1971 while my father was posted in Jalgaon HQs where late Sher Ali's father was serving in Police HQs, I often used to visit Muraqiboddin Sahab and Muba Mumani especially while on the way to Joshi Peth where my Chacha Sharifuddin son in law of Chahet Ali sahab used to live with my Aunty Chachi and family , I informed my mother about demise of Muba Mumani, she was very sad, She remembered how Muraquib Sahab helped my father's posting from Jalgaon to Pimpalgaon Hareshwar, My mother was quite closely associated with Muba Mumani, Allah unhe jannat me Aala makam de। Aur aap जैसा बहुत कम लोग हैं जो इतना vivid describe kar sakte
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