ग़रीबों का मसीहा डॉ अनवर शेख़
लोग अच्छे हैं दिल में उतर जाते हैं
बस एक खराबी है के मर जाते हैं
डॉ अनवर शैख़ अपने वतन उत्तर प्रदेश से ९ जून २०२४ को फॅमिली के साथ लौटे। और दूसरे रोज़ १० जून २०२४ (३ ज़िल हज १४४५ ) को उस जगह पहुँच गए जहाँ से किसी को लौट कर नहीं आना। ज़िल हज के मुबारक महीने में वफ़ात पाना फिर असर की नमाज़ के बाद जामा मस्जिद नेरुल में कई सौ लोगों ने उनकी नमाज़े जनाज़ा में शिरकत की (खुश किस्मत रहे उनकी पांचों औलादे जनाज़े में शरीक थी )और नेरुल सेक्टट-३ के क़ब्रस्तान में उनेह सुपर्दे खाक (दफनाया ) किया गया ,
डॉ अनवर क़द छोटा था मगर शख्सियत महान थी। आप के होंटों पर हमेशा मुस्करात सजी होती। सब से खुलूस से मिलते। में अपनी फॅमिली के साथ विघ्नहर सोसाइटी (बी-३ /१०३ ) में अप्रैल १९९७ में शिफ्ट हुवा था। और ऑगस्ट १९९७ में ( ए -५ ) विघ्नहर सोसाइटी में डॉ अनवर भी अपने ख़ानदान के साथ शिफ्ट हुए थे। उस वक़्त बहुत काम लोग विघ्नहर सोसाइटी में रहते थे उन से बहुत जल्द पहचान हो गयी। तुर्भे में उनका क्लिनिक था ४० साल वह अपनी खिदमात वहां ग़रीबों में देते रहें। लोगों के पास पैसे नहीं होते,वो मुफ्त इलाज कर देते थे। मुझे भी अक्सर मरहम ,लेप और आयुर्वेदिक दवाएं ला कर देते पैसों का पूछता तो मुस्करा कर जवाब देते "आप भी क्या मज़ाक करते हो" अफ़सोस ऐसे बा अख़लाक़ लोग दुनिया से रुखसत होते जा रहे हैं।
हमेशा सुबह वाकिंग के लिए निकलते अक्सर उन से मुलाक़ात सलाम दुआ हो जाती। विघ्नहर की मस्जिद (तक़वा )में किनारे पहली सफ में बैठते ,कभी किसी से ऊँचे लहजे में बात नहीं की। अपनी पांचों औलादों असलम ,अख्तर ,अशरफ ,आसिफ और आरिफ को बेहतरीन अख़लाक़ सिखलाया । भाभी आयेशा भी (उनकी wife ) भी माशाल्लाह मुझे बड़े भाई का दर्जा /रुतबा अता करती है। जब भी मिलती है खुलूस से सलाम करती है बाल बच्चों की खैरियत दरयाफ्त करती है।
अल्लाह मरहूम डॉ अनवर शैख़ की मग़फ़िरत करे और खानदान वालों को सबरे जमील अता करे आमीन सुमा आमीन
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