NAVED ANJUM WITH PAPA AND UNCLES |
नवीद की पैदाइश पर एरंडोल से रवाना किया टेलीग्राम में ने ही receive किया था और हमारे वालिद मोहतरम (नवीद के दादा मरहूम हाजी क़मरुद्दीन ) को मैं ने ही पढ़ कर सुनाया था। पोते की पैदाइश की खबर सुन कर मरहूम बहुत ख़ुश हुवे थे ढेरों दुवाएँ दी थी। टेलीग्राम पर याद आया जलगांव शहर में किसी ज़माने में हमारे मोहल्ले में पड़े लिखे लोग काम थे। उस वक़्त, किसी के घर मौत या किसी की बीमारी की खबर देने के लिए ही टेलीग्राम का इस्तेमाल किया जाता था। मोहल्ले में किसी के घर भी टेलीग्राम आता तो हमारे वालिद से पढ़वाया जाता क्यूंकि उन्हें इंग्लिश अच्छी तरह समझती थी । एक दिन मोहल्ले में किसी के घर टेलीग्राम आया, सारा खानदान रोतें पीटतें वालिद साहेब के पास पुहंचा ,टेलीग्राम पढ़ कर पता चला अहमदाबाद में ज़लज़ले के हल्क़े झटकें लगे थे। वह earthquake का मतलब नहीं समझ सके थे। टेलीग्राम का मतलब समझ कर वे सब हँसते ,अब्बा को दुवाएं देते घऱ लौटें।
उन के वालिद डॉ वासिफ हमारे अब्बा अमरहूम क़मरुद्दीन ,को ख़त लिखा करते थे ,उन में नवीद अंजुम भी चन्द , आड़ी तिरछी लकीरें खेंच दिया करते । इस लिखावट को अब्बा ही decode कर सकते थे , छूपे पैग़ाम का मतलब हम सब को समझाते।
नवीद के बच्पन का एक और किस्सा याद आगया , डॉ. वासिफ की कर्जन PHC पर (हेल्थ अफसर ) की पोस्टिंग थी ,उन का स्टाफ ग़ैर मुस्लिम था नवेद अंजुम उनके बच्चों के साथ खेला करते । एक दिन नवीद अपने पापा को हनुमान की तस्वीर दिखा कर कहने लगा "ये अल्लाह मियां है ". हमारे अब्बा मरहूम सुन कर बहुत महज़ूज़ हुवे।
नवीद अंजुम हमारे खानदान का इकुलता वारिस ,११ चाचा ज़ाद बहनों का एक भाई ,माँ बाप की आँखों का तारा ,चाची चाचाओं का दुलारा , खाला नानी नाना का प्यारा । मशालाह हुलिया क्या बयान करू ,निकलता कद , खड़ी नाक , बड़ी बड़ी आँखेँ। चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट सजी रहती है। हर एक से खंदा पेशानी से मिलते हैं।
नवीद अंजुम ने बरोडा यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद ,मुम्बई यूनिवर्सिटी की मारूफ , रिज़वी कॉलेज से SYSTEMS में MBA किया। में ने उसे उस दौरान भी देखा था जब वो अंजुमने इस्लाम सुब्हानी हॉस्टल में रहते थे। नाज़ व नेमत में पला नवीद हॉस्टल के टूटे फूटे कमरे में खटमलों मछरों के दरमियान खुश व खुर्रम रहा करते। उन की इस जद्दो जहद पर ये शेर सादिक़ आतें हैं
मनजिल कि हो तलाश तो दामन जनून का थाम
राहों के रंग देख न तलवों के खार देख
या
कहा बच कर चली ै ऐ फसले गुल मुझ अबला प् से
मेरे क़दमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है
MBA के बाद ,थोड़ा अर्सा नवीद नें मुंम्बई में जॉब किया। इस के बाद कई अरसे से वह दुबई में मुक़ीम है । आजकल मालिटिनाशनल ,कंपनी यूनिलीवर में मैनेजर पोस्ट पर जॉब कर रहे हैं। ये मक़ाम उनोहने अपनी अहलियत ,लियाक़त ,अनथक मेहनत से बग़ैर किसी सिफारिश के हासिल किया है। बक़ौल शायर