बुधवार, 28 दिसंबर 2022

Naved Anjum (biography)

NAVED ANJUM WITH PAPA AND UNCLES
    
   नवीद की पैदाइश पर एरंडोल से रवाना किया टेलीग्राम में ने ही receive किया था और हमारे वालिद मोहतरम (नवीद के दादा  मरहूम हाजी क़मरुद्दीन ) को मैं ने ही पढ़ कर सुनाया था। पोते की पैदाइश की खबर सुन कर मरहूम  बहुत ख़ुश हुवे थे ढेरों दुवाएँ दी थी। टेलीग्राम पर याद आया जलगांव शहर में  किसी ज़माने में हमारे मोहल्ले में पड़े लिखे लोग काम थे। उस वक़्त, किसी के घर मौत या किसी की बीमारी की खबर देने के लिए ही  टेलीग्राम का इस्तेमाल किया जाता था। मोहल्ले में किसी के घर भी टेलीग्राम आता तो हमारे वालिद से पढ़वाया जाता क्यूंकि  उन्हें इंग्लिश अच्छी तरह समझती थी । एक दिन मोहल्ले में किसी के घर टेलीग्राम आया, सारा खानदान रोतें पीटतें वालिद साहेब के पास पुहंचा ,टेलीग्राम पढ़ कर पता चला अहमदाबाद में ज़लज़ले के हल्क़े झटकें लगे थे। वह  earthquake का मतलब नहीं समझ सके थे। टेलीग्राम का मतलब समझ  कर वे सब हँसते ,अब्बा को दुवाएं देते घऱ लौटें।
      उन के वालिद डॉ वासिफ हमारे अब्बा अमरहूम क़मरुद्दीन ,को ख़त लिखा करते थे ,उन में नवीद अंजुम भी चन्द , आड़ी तिरछी लकीरें खेंच दिया करते । इस लिखावट को अब्बा ही  decode कर सकते थे , छूपे पैग़ाम का मतलब हम सब को समझाते। 
   नवीद के बच्पन का एक और किस्सा याद आगया ,  डॉ. वासिफ की कर्जन PHC  पर (हेल्थ अफसर ) की पोस्टिंग थी ,उन का स्टाफ ग़ैर मुस्लिम था नवेद अंजुम उनके बच्चों के साथ खेला करते । एक दिन नवीद अपने पापा को हनुमान की तस्वीर दिखा कर कहने लगा "ये अल्लाह मियां है ". हमारे अब्बा मरहूम सुन कर बहुत महज़ूज़ हुवे।
 
      
      नवीद अंजुम हमारे खानदान का इकुलता वारिस ,११  चाचा ज़ाद बहनों का एक भाई ,माँ बाप की आँखों का तारा ,चाची चाचाओं का दुलारा , खाला नानी नाना का प्यारा ।  मशालाह हुलिया क्या बयान करू ,निकलता कद , खड़ी नाक , बड़ी बड़ी आँखेँ। चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट सजी रहती है। हर एक से खंदा पेशानी से मिलते हैं। 
        नवीद अंजुम ने बरोडा  यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद ,मुम्बई यूनिवर्सिटी की मारूफ , रिज़वी कॉलेज से  SYSTEMS में MBA किया।  में ने उसे उस दौरान भी देखा था जब वो अंजुमने इस्लाम सुब्हानी हॉस्टल में  रहते थे। नाज़ व नेमत में पला नवीद हॉस्टल के टूटे फूटे कमरे में खटमलों मछरों के दरमियान खुश व खुर्रम रहा करते। उन की इस जद्दो जहद पर ये शेर सादिक़ आतें हैं
मनजिल कि हो तलाश तो दामन जनून का थाम
राहों के रंग देख न तलवों के खार देख
या
कहा बच कर चली ै ऐ फसले गुल मुझ अबला प् से 
मेरे क़दमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है
       MBA के बाद ,थोड़ा अर्सा नवीद नें मुंम्बई में जॉब किया। इस के बाद कई अरसे से  वह दुबई में मुक़ीम है । आजकल मालिटिनाशनल ,कंपनी यूनिलीवर में मैनेजर पोस्ट पर जॉब कर रहे हैं। ये मक़ाम उनोहने अपनी अहलियत ,लियाक़त ,अनथक मेहनत से  बग़ैर किसी सिफारिश के हासिल किया है। बक़ौल शायर 
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है 
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा 
नवेद दुबई में अपने अपने दोनो शेह्ज़ादों  ,अपनी अहलिया ज़ारा और अपने वालेदैन डॉ वासिफ अहमद और वालिदा नीलोफर के साथ बंगला नुमा माकन में रहाईश पज़ीर है , दुबई जाने वाले रिश्तेदारों ,जान पहचान वालो के लिए उनके घर के दर हमेशा खुले रहते हैं। 
 अल्हमदोलीलाः नवीद अंजुम तररकी के जीने पर तेज़ी से रवां दवान है अल्लाह उन्हें मज़ीद तर्रकी आता करे आमीन  सुम्मा आमीन।
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 
उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी 




बुधवार, 21 दिसंबर 2022

 مکرمی 

مورخہ ٢٠ دسمبر ٢٠٢٢ کے انقلاب میں کرنل عبدل لطیف صاھب کی موت کی افسوسناک خبر نظروں سے گزری -مرحوم جلگاؤں کے معروف ملک خانوا زادے سے تعلق رکھتے تھے جن کی خدمات سے  جلگاؤں شہر میں ہر کویی مطعارف ہیں -مرحوم کرنل عبدل لطیف نے اپنے بل بوتے پر فوج میں ملازمت ملائی اور ترقی کرکے اس اعلی عھدے تک ترّقی کی -پاکستان اور چین کے خلاف جنگوں مےمرحوم  نفس ب نفس شریک تھے ریٹائرمنٹ کے بعد جب وہ جلگاؤں لوٹے تھے سارا شہر مرہوم کو فوجی لباس مے دیکھنے کے لئے امڈ پڑا تھا -ریٹائرمنٹ کے بعد بھی مرحوم نے فعال زندگی گزاری اور سماج کے لئے کار آمد کام کرتے رہے الله سے دعا ہےمرحوم  کو اپنی جوار رحمت میں  جگه عطا کرے اور متعالقین کو صبرے جمیل اتا کرے آمین 

راغب احمد 

نیرول 

٩٨٩٢٣٦٩٢٣٣

रविवार, 18 दिसंबर 2022

                                                  क्या लोग थे जो राहे वफ़ा से गुज़र गए 

                                                   जी चाहता है है नक़्शे क़दम चूमते चले 

मरहूम लेफ्टनंट कर्नल अब्दुल लतीफ़ मलिक साहेब का अपनी क़ाबलियत की बिना पर फ़ौज में सिलेक्शन हुवा था माशाल्लाह फ़ौज में लेफ्टनंट कर्नल के ओहदे तक एक मुस्लिम का पहुंचना कबीले फख्र बात है। स्कूल के ज़माने में जलगाव  में मरहूम अब्दुल लतीफ़ मलिक साहब हमारे आइडियल हुवा करते थे। मरहूम के वालिद अब्दुल मजीद सालार उस ज़माने में जलगाव म्युनिसिपल में कॉर्पोरेटर हुवा करते थे और अपने ज़माने में बड़े हरदिल अज़ीज़ हुवा करते थे। डॉ इक़बाल शायरे  मशरिक़ जिस वक़्त जलगाव में तशरीफ़ लाये थे ,इनके इस्तक़बाल में मरहूम अब्दुल मजीद मालिक पेश पेश थे। हम तीनों भाइयों डॉ वासिफ ,राग़िब अहमद और जावेद अहमद ने एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव  से तालीम हासिल की जिस के मरहूम अब्दुल मजीद साहब ट्रस्टी थे। मरहूम अब्दुल लतीफ़ मालिक के छोटे भाई डॉ करीम सालार किसी तारुफ्फ़  के मोहताज नहीं आप ने जलगांव में स्कूलों कॉलेजों का जाल बिछा दिया। आज हमारे रिश्तेदारों के हज़ारों बचे इन अदारो से तालीम हासिल करके रोज़गार से लग चुके हैं या अब भी इन अदारों में तालीम हासिल कर रहे हैं। अब तो करीम सालार की फॅमिली हमारे रिश्तेदारी में शामिल भी होचुकी है। 

हाफिज जावीद को जवाब मिल गया लेफ्टनंट कर्नल अब्दुल लतीफ़ साहेब हमारे रिश्तेदार हैं। ग्रुप में कई  मैसेज फॉरवर्ड किये जाते है जो बेमक़सद होते हैं उस् वक़्त  किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होता मारूफ शख्स के इंतेक़ाल की खबर डालने पर अफ़सोस सवाल उठाया जाता है। जनाब शकिलोद्दिन सर जलगांव  ज़िले की मारूफ बावक़ार शख्सियत है हाफिज जावेद को सनजीदगी समझने की कोशिश की ,अफ़सोस उनके ताल्लुक़ से कहा गया के हाफिज जावेद  के बारे में  उन्हें ग़लत फहमी है। 

वक़्त आगया है फ़ुज़ूल मुद्दों पर बेकार बहस न की जाये। प्रोफेसर नवेद क़ाज़ी के तालीमी MESSAGES इन बहसों में अपनी अहमियत खो देते हैं। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के MESSAGES पर लोग तवज्जेह नहीं दे पाते। हमारा ग्रुप एक बावक़ार अख़बार की तरह है माशाल्लाह अपनों के दुःख सुख ख़ुशी ग़म की खबरे डाली जाये। अनीस सर की तरह students के लिए फायदेमंद मालूमात  share की जाये। हाजी सलाहुद्दीन मालिक की तरह authentic क़ुरान हदीस की मालूमात फ़राहम की जाये। हमारी बातों में संजीदगी होनी चाहिए ताके आने वाली generation तक मुफीद पैग़ाम पहुंचे। 

ये एक नसीहति पैग़ाम है ,बराये मेहरबानी इस पर बहस न की जाये। 





शनिवार, 10 दिसंबर 2022

HAMD

हम्द बारी तआला 

ज़बाने नाक़िस से क्या बयां हो खुदाये बरतर कमाल तेरा 

निग़ाह व  दिल में समां रहा है जलाल तेरा जमाल तेरा 

तेरे ही एक लफ्ज़ कुन के सदक़े में बन गयी क़ायनात सारी 

अज़ल से यौमे अलनशुर की शाम तक है तेरा ही फैज़ जारी 

हसीन तर है, अज़ीम तर है , ये रुतबै लाज़वाल तेरा 

हयात तुझ से ,ममात तुझ से ,हक़ीक़ते क़ायनात तुझ से 

तमाम समतो की बात तुझ से ,फ़सनाये शश जहात तुझ से 

हुकूमते ग़र्ब व शरक़  तेरी ,,जुनुब तेरा ,शुमाल तेरा 

नाक़िस : जिस की कोई क़ीमत नहीं 

कुन : होजा 

अज़ल :  दुनिया दुनिया जिस दिन बनि 

ममात : मौत 

समत :दिशा

शश जहात : 6 दिशा 









मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

NAT

 मेरे रसूल के निस्बत तुझे उजालों से 

में तेरा ज़िक्र करू सुबह के हवालों से 

 न मेरी नाअत की मुहताज ज़ात  है तेरी 

न तेरी मीदह है मुमकिन मेरे ख्यालों से 

तू रोशनी का पयम्बर था और मेरी तारीख़ 

भरी पड़ी है शबे ज़ुल्म की मिसालों से 

तेरा पयाम मुहब्बत था और मेरे यहाँ 

दिलो दिमाग़ हैं पुर नफरतों के जालों से 

ये इफ़्तेख़ार है तेरा  के मेरे अर्श व मुक़ाम 

तू हम कलाम रहा है ज़मीन वालों से 

मगर ये मुफ़्ती व वाइज़ ये मुस्तहिब ये फक़ी 

जो मौतबर है फ़क़त मस्लेहत की चालों से 

खुदा के नाम को बेचें मगर  खुदा न करे 

असर पज़ीर हो ख़ल्क़े खुदा के नालों से 

न मेरी आँख में काजल न मुश्क़ बू है लिबास 

के मेरे दिल  का है रिश्ता ग़रीब हालों से 

है तुर्श रु मेरी बातों से साहेबे मेंबर 

ख़तीबे शहर है परेशान मेरे सवालों से 

मेरे ज़मीर ने क़ाबिल को नहीं बख़्शा 

मैं कैसे सुलह करूँ क़तल करने वालों से 






सोमवार, 28 नवंबर 2022

 आज भी हो जो इब्राहिम सा इमांन पैदा 

मुकरमी 

१८ नवंबर २०२२ को सऊदी हकूमत की जानिब से बारिश के लिए नमाज़े इस्तसका का ऐलान किया गया था। इत्तेफ़ाक़न में भी उम्रे की अदायगी के लिए  हरम में मौजूद था। हरम में क़ाबा शरीफ के सामने नमाज़े फज्र के बाद इमाम साहेब ने नमाज़े इस्तसका पढ़ाने का ऐलान किया। जुमेरात की सऊदी में छूटी होने की वजह से एक बड़ी तादाद में लोग नमाज़े इस्तसका में शामिल हुए। मताफ़ के तमाम दरवाज़े बंद कर दिए गए और एक घंटे तक नमाज़े इस्तासका अदा की गयी। और सूरे नूह पढ़ कर रिक़्क़त आमेज़ दुआ की गयी। 

अल्हम्दोलीलाह २४ नवंबर २०२२ के रोज़ जिस दिन हम सुबह एयर इंडिया की फ्लाइट से वापिस हुए अल्लाह की रेहमत जोश में आयी और बारांने रेहमत नाज़िल हुयी। ये नमाज़ इस्तासका की बरकत और लोगों की दुवाओं का नतीजा रहा के एक हफ्ते के अंदर अंदर जेद्दाह में मुसला धार बारिश हुयी पूरा शहर जल थल होगया ,सड़कों पर पानी जमा होगया जिस की वजह से स्कूलों को बंद कर दिया गया ,कारें पानी में तैरने लगी परवाज़ों में भी ताख़ीर होगयी। अगर दिल से दुआ की जाये तो ज़रूर  क़बूल होती है। 

आज भी हो जो इब्राहिम सा ईमान पैदा 

आग कर सकती है अंदाज़े गुलिस्तां पैदा 

रागिब अहमद 

नेरुल(नवी मुंबई )




मंगलवार, 8 नवंबर 2022

UQABI RUH JAB BEDAR HOTI HAI JAWANO ME

उक़ाबि रूह जब बेदार होती है जवानों में 
नज़र आती है उनको अपनी मंज़िल आसमानों में 
रिश्तेदारों के बच्चे हमें चीख चीख कर बता रहे हैं। हमें  तालीम की राहें आसान कर दे। हम फ़रसूदा रसूम के के इन हलकों से आज़ादी चाहते हैं। कल्याण के कामयाब प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन फंक्शन के बाद एक बात रोज़े रोशन की तरह साबित होगयी है के ,रिश्तेदारों में तालीम के ताल्लुक़ से जो बेदारी पैदा हुयी है इंशाल्लाह ये एक इन्किलाब का पेश ख़ैमा साबित होंगी है। 
हम जनाब इरफ़ान मुंशी और मुजाहिद सर के भी शुक्र गुज़र हैं जिनो ने रिश्तेदारों  के संजीदा ,बावक़ार लोगों का ग्रुप तश्कील किया। फ़ुज़ूल डिस्कशन बहस मुबाहसे से गुरेज़ किया जाये सब के लिए बेहतर हैं। माशाल्लाह शादी के फ़रसूदा रुसुम को ख़त्म करने के लिए हाजी साल्हुद्दीन नूरी साहेब ने पहल की और नौजवानो ने इस आवाज़ पर लब्बैक कहा खुश आयंद मुस्तक़बिल के इशारे हैं। मज़हर जनाब के शुक्र गुज़र है दीनी सवालात का सिलसिला शुरू किया। 
ग्रुप में किसी के इंतेक़ाल पर हर मेंबर की ख्वाहिश होती है के दुआ शेयर करे। क्या ये नहीं हो सकता हम दिल में दुआ पढ़ ले और एक दरूद शरीफ मुर्दे को बख़श दे ?इंतेक़ाल करने वाले के अल्लाह इंशाल्लाह दरजात ज़रूर बुलंद करदेंगा 
मैं कुछ न कहु और ये चाहूँ के मेरी बात 
खुशबु की तरह उड़ के तेरे दिल में उत्तर जाये 
उमरे के लिए रवानगी है इंशाल्लाह तमाम उम्मत ,रिश्तेदारी ,इक़रा खानदेश फाउंडेशन के लिए खास दुआ करने का अज़्म रखता हूँ। आप सब से दरख्वास्त है नाचीज़ को अपनी दवाओं में शरीक करे। 

सोमवार, 7 नवंबर 2022

Qamar ahmed

                                                                  ای سعادت بزورے بازو نیست 

ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती 

१९६८ से १९७१ वालिद मरहूम हाजी क़मरुद्दीन कटियाफाईल मोहल्ले में ट्यूशन लिया करते थे। में भी एंग्लो उर्दू  स्कूल में तालीम हासिल कर रहा था। कडु मियां दादाभाई को हमारे वालिद से इन्तेहाई अक़ीदत थी। जब भी जलगाव  एसटी पर ड्यूटी लगती अब्बा से मिलने ज़रूर घर आते। अब्बा घर के वरांडे में बैठ कर बच्चों को ट्यूशन दिया करते। कभी कभी थोड़े वक़्फ़े के लिए कहीं जाना होता ट्यूशन के बच्चों को  मेरे हवाले कर जाते। इस दौरान कडु मियां दादाभाई आ जाते मुझे बच्चों को पढ़ते देख कर बहुत खुश होते मेरी बहुत तारीफ करते कहते "भैया तुम बहुत तरक़्क़ी करोंगे   "  मुझे बहुत खुशी मिलती ,और encouragement भी मिलता।

ये भी इत्तेफ़ाक़ है ,शहदा में भी कडु मिया दादाभाई का ट्रांसफर रहा। उनकी फॅमिली और हमारे ससुर ज़ैनुल आबेदन की फॅमिली में काफी कुर्बत रही।  

तुम्हारे लहजे में जो गर्मी व हलावत है 

उसे भल सा कोई नाम दो वफ़ा  की जगह 

ग़नीमें नूर का हमला कहो अंधेरों में 

दयारे दर्द में आमद कहो कहो बहारों की 

वही लहजा ,वही सादगी ,वही खुलूस आपकी तीनो औलादों  कमर अहमद ,नियाज़ा अहमद और नूर अहमद में पाया जाता हैं। 

कमर अहमद से नज़दीकी ताल्लुक़ात ३ सालों में काफी बढे हैं। जब से उनेह इक़रा खानदेश फाउंडेशन का  स्पोक पर्सन तानियत किया गया है। इतनी कम उमरी में अपना ADEVERTISING का कारोबार Establish किया है बड़ा ताज्जुब होता है। रोटरी क्लब धुले डिस्ट्रक्ट का डिप्टी गवर्नर के उहदे तक पहुचना मानी रखता है। कमर अहमद को रिश्तेदारों की निस्बत बड़ा करब है । तालीम ,ग़ुरबत और शादी के मसायल किस तरह हल किये जाये हमेशा फिक्रमंद रहते है। धुले शहर में रिश्तेदारों की हर संस्था से आप जुड़े हुए है और अपना तआवुन देते रहते हैं। 

इक़रा खानदेश फाउंडेशन के लिए वो मज़बूत सतून की हैसियत रखते हैं। 

हम दोनों मिया बीवी से बहुत क़रीबी रिश्ता रखते हैं। मुझे अंकल कहते है और शगुफ्ता को बाजी। 

दुआ है वो इसी तरह  खिदमते ख़ल्क़ में लगे रहे। अल्लाह उनेह बेइंतेहा तर्रकी आता करे आमीन। 

जहा रहे वो खैरियत के साथ रहे 

उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी। 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

KALYAN PRIZE DISTRBUTION PROGAMME

 

मुझे आज भी अब्बा से गले मिलना याद है। भाइयों रिश्तेदारों से मुसाफा करना । नानी मुमानी खाला का सर पर हाथ रखना याद है। (अम्मा का बचपन में इंतेक़ाल हो गया था ) अजीब क़िस्म का सकूंन मिलता था इन बातों में।  दो साल लॉक डाउन (COVID ) में ऑनलाइन कॉन्टेक्ट्स ने वो लम्स वो अपनापन वह मोहबत्तें हम से दूर कर दी थी। कहा जाता है "Man is social animal " COVID की पाबंदिया ख़त्म होते ही लोग तेज़ी से हंगामो की तरफ लौटे। शादिया ,तेहवार ,मेले ठेले ,उर्स इस ज़ोर शोर जश्न के माहौल में मनाये जा रहे हैं लगता हे लोग दो साल के वक़्फ़े को अपनी ज़िन्दगी से अपनी यादों  से खुरछ देना चाहते हैं। बिजली की चमक थी जो आनन् फानन पल में गुज़र गयी। हर दम रवां है ज़िन्दगी। मानों  ब्रकिंग  न्यूज़ है जो २ मिनट में बासी होगयी 

३० अक्टूबर २०२२ का Prize distribution function जो इक़रा खानदेश फाउंडेशन कल्याण यूनिट द्वारा आयोजित  किया गया था संग मील की हैसियत रखता है। ३५० कुर्सियां भी लोगों  के लिए कम पड़ रही थी। मर्द और औरतें बराबर  तादाद में थे। और सब ने बच्चों की कामयाबी का जश्न दिल से मनाया। में समझता हु  पैसे थोड़े  खर्च करके हमारे अपने बच्चों के चेहरों पर मस्सरतें बिखेर देते है तो ये बड़ी कामयाबी है। हमारे बुज़र्ग शाफियोद्दीन जनाब,रशीद जनाब ,महेर अली जनाब ,विजियोद्दीन जनाब मेहफूज़ अली ,मोहतरम बशाश तवील उमरी और जिस्मानी परेशानियों के बावजूद नौजवानो के शाना ब शाना प्रोग्रॅम में अवल से आखिर तक अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाते रहें। 

बच्चों  को दिए गए इनामात और उनकी कामयाबी पर लगता है हम एक रौशन मुस्तकबिल की जानिब गामज़न है। कल्याण इक़रा खानदेश फोडेशन यूनिट को  कामयाब प्रोग्राम मुनअक़िद करने पर दिली मुबारकबाद। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के हौसले बुलुंद होगये और मुस्तक़बिल में काम की रफ़्तार बढ़ाने के लिए इशारा मिला। 

सोमवार, 31 अक्टूबर 2022

Kalyan Prize Distribution Programme

जो बात दिल से निकलती है असर रखती है 

जिस तरह इक़रा खानदेश फाउंडेशन हमारे रिश्तेदारों ने बनायीं है ,रिश्तेदार चला रहे हैं और रिश्तेदार फायदा उठा रहे हैं। अल्हम्दोलीलाह इतवार ३० नवंबर २०२२ को आयोजित किया कल्याण में प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम हमारे रिश्तेदारों के ज़रिये सजाया गया था, हमारे अपने लोगो ने तन मन धन से शिरकत की। रिश्तेदारों की दो ज़हीन बा पर्दा (रुखसार ,शऊरआ ) ने कंडक्ट किया। ज़बान की शिरीनी उर्दू का सही तलफ़्फ़ुज़ और उर्दू शेरों का वक़्त बवक़्त इस्तेमाल  मीर ने शायद इसी ज़बान के लिए कहा था 

हम हुए तुम हुए के मीर हुए 

इसकी ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए 

 ज़ेहन में सवाल था क्या कोई इस ज़बान को को ख़त्म कर सकता है? 

अमर ट्रांसपोर्ट वालों का बुकिंग काउंटर ०३३० बजे तक खुला रहा। लोगों ने आना  शुरू किया बिज़नेस बंद कर दिया गया। अमर ट्रांसपोर्ट की वह जगह भी कुशादा है ,मौसम भी खुशगवार था और  सोने पे सुहागा ,नूरुद्दीन अज़ीमुद्दीन शैख़ ,नाज़िम साहेब और पुरे अमर ट्रांसपोर्ट  ख़ानदान के अफ़राद ने होस्ट (मेज़बानी ) के फ़रायज़ अंजाम देना शुरू कर दिए "उन से ज़रूर मिला क़रीने के लोग हैं " . 

मखदूम अली , यास्मीन भाभी ,हिसामुद्दीन , हसीन  ,अनीस सर की भाग दौड़  लगे थे ,सोहेल शैख़ की मेहनत,  मुफ्फसीरे क़ुरान जनाब हाजी सलाहुद्दीन मालिक नफ़्स ब नफीस हर काम की निगरानी कर रहे थे ,इमरान  मखदूम अली का ५ घंटे मुसलसल खड़े रह कर प्रोग्राम रिकॉर्ड करना live Utube पर relay करना । ये बातें एक बेहतरीन प्रोग्रम की कामयाबी की ज़मानत हैं। प्रोग्राम में दूर दूर से आये मेहमानों की शिरकत ने प्रोग्राम को चार चाँद लगा दिए। जनाब एडवोकेट रज़ीउद्दीन नवसारी से रात भर सफर करके तशरीफ़ लाये। हाजी नूरुद्दीन नूरी धुले से ,नियाज़ अहमद ,डॉ रागिब ,रिज़वान जहागिरदार ,जावेद अहमद शैख़ ,बशश शैख़ नवी मुंबई से ,मैं खुद और मेरे हर क़दम की  साथी, मेरे हर सफर की मंज़िल शगुफ्ता रागिब नेरुल से सफर करके जलसे में शरीक हुए। 

प्रोग्राम के लिए ३५० कुर्सियों का इंतेज़ाम किया गया था वो भी कम  पड़ रही थी , बच्चों की कामयाबी पर ज़ोर शोर से तालियां बजा कर इस्तक़बाल किया जा रहा था। एक अजीब जोश वलवला था। 

 हमारे IKF ट्रस्ट की कामयाबी में रिश्तेदारों की दिलो जान की शिरकत ने राह आसान कर दी। कल प्रोग्राम में ४ साल के छोटे बचे ने लाइफ मेम्बरशिप रजिस्टर करवाई ,एक बच्ची ने अपने इनाम की मिली रक़म इक़रा खानदेश फाउंडेशन को डोनेट कर दी ,नियाज़  अहमद कडु मियां ने धुले प्रोग्राम में उनेह निज़ामत के लिए मिली रक़म हमारे ट्रस्ट के नाम वक़्फ़ कर दी।  अल्लाह ये जज़्बे सलामत रखे। माशाल्लाह साडे पांच घंटे के प्रोग्राम में औरतें ,बुज़र्ग और बच्चे इन्तेहाई मुंहमिक हो कर प्रोग्राम की करवाई को दीलचस्पी से देखते रहे। 

कू बी कू फ़ैल गयी बात शनासाई की 

उसने खुशबु की तरह मेरी पज़ीराई की 

ख़ुशी का मुक़ाम है कल प्रोग्राम में १५० लाइफ मेंबर्स  हमारे इदारे से जुड़ गए। अल्हम्दोलीलाह मुझे यक़ीन है फॅमिली ट्री में दर्ज ९००० मेंबर्स ,२००० ख़ानदान इक़रा खानदेश फाउंडेशन के लाइफ मेंबर्स बनेगें और ट्रस्ट की माली मदद करेंगे। इंशाल्लाह हमें किसी के आगे दस्त दराज़ करने की ज़रूरत नहीं रहेंगी। आज तक हम स्टार्ट उप किताबों में पढ़ते थे ,हम जलगाव ,एरंडोल ,बहादरपुर ,नसीराबाद ,नवापुर ,धुले वाले खानदेशी ये कर दिखाएंगे। 

४५ बच्चों को प्राइज दिया गया माशाल्लाह डायटीशियन का कोर्स भी कर रहे है ,इंजीनियर ,मास मिडिया ,पोस्ट ग्रेजुएशन ये अगर हमारा मुस्तकबिल है इंशाल्लाह  तो इस नयी जनरेशन के हाथों में मेहफ़ूज़ है। 

हाजी वाजिहुद्दीन जनाब को मिसालि सरपरस्त अवार्ड से नवाज़ा गया इस बात का सुबूत है हम अपने बुबुज़र्गों को नहीं भूले। 

ढूंढ उजड़े हुए लोगो में वफ़ा के मोती 

ये खज़ाने तुझे शायद  के खराबों  में मिले 




सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

NAZIM BLOG UPDATED

 


                                              
नाज़िमोद्दीन अयाजोद्दीन शैख़ 
कभी कभी ये होता है इंसान का नाम उसकी शख्सियत से बिलकुल मेल नहीं खाता । नाम है हसीना इतनी खौफनाक के बच्चे  डर जाये। 
नाज़िम मेरा भांजा ,उसके नाम के लफ़्ज़ी मानि होते है organizer, आपा और दुलेह भाई ने क्या सोच कर नाम रखा था।  दाद देनी पड़ती है। नाज़िम के नाम से उस की शख्सियत मेल खाति है।मेहनती ,ईमानदार ,जिस महफ़िल में बैठ जाये गुल व गुलज़ार होजाती है। मज़ाक भी ऐसा के तहज़ीब के दायरे से बाहर नहीं होता। मेरी बेटी हिना ने अपनी शादी का दावत नाम Whatsup  पे रवाना किया "nazim & fly "पढ़ कर अपनी अहलिया से मज़ाकन कहने लगा "जल्दी तैयार होजाओ मॉमू ने फ्लाइट  का टिकेट भेजा है। वोह हमारे बहनवायी यानि अपने वालिद  अयाजोद्दीन से मिलता जुलता है। निकलता कद , दूध की तरह शफाफ रंग, नीली ऑंखें। अल्लाह नज़र बाद से बचाये।
   ये फूल मुझे कोई विरवसत में मिले हैं
   तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
  वालिद की सैलरी कम थी तीन भाइयों और एक बहन का साथ था। उन दिनों नाज़िम अपनी अम्मा अदीबुन्निसा  का हाथ बटाता दोनों मिलकर पापड़ अचार बनाते । स्कूल के बाहेर बैठ कर पेरू भी इनकम बढ़ने के लिए बेचे नाज़िम ने साइकिल पंक्चर की दुकान भी खोली ,,कार्टन फैक्ट्री ,छोटी वर्कशॉप में काम भी किया साथ साथ मोलेदिना स्कूल से पढ़ाई भी जारी रखी। साबु सिद्दिक् कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग की तालीम मुक़म्मिल की। 
          तालीम पूरी करने के बाद उस की ज़िन्दगी का रुख बदल गया। १९९५ में  नाज़िम को दुबई  में जॉब मिल गया और पिछले २८ सालों से वो अपनी फॅमिली के साथ दुबई ही में मुक़ीम है।  २ साल पहले बच्चों के higher education के लिए उसे फॅमिली को पुणे भेजना पड़ा। नीचे बैठना उस ने सीखा ही नहीं। 
           बचपन में वह सीरत तुन नब्बी के  जलसों में जोश ख़रोश से हिस्सा लेता और बड़ी बड़ी ट्राफियां जीत कर लाता।  में पूना छुट्टियों में आपा से मिलने आया था। नाज़िम ऐसे ही किसी जलसे में शिरकत के लिए गया था।  हमारी बड़ी आपा (अद्दिबुन्निसा ) हयात थी।  रात २ बजे के क़रीब  आँख खटके से खुल गयी ,आपा को बेचैनी से टहलते देखा। पूछने पर पता चला  नाज़िम सीरत के जलसे से अभी तक नहीं  लौटा।हम दोनों नाज़िम का इंतज़ार करते रहे।  नाज़िम के लोटने पर में ने उसे बहुत डांट पिलाई वह चुप चाप सुनता रहा। मुझे क्या पता था उनिह महफ़िलों की बरकत और मौलाना यूनुस (पूना  वाले ) मरहूम की  सोहबत ,तरबियत और दुवाओं और रहबरी उस के रोशन मुस्तकबिल के लिए मश अले रह बन जाएगी।
     अलाह ने उसे निकहत के रूप में एक ख़ूबसूरत हमसफ़र और ३ प्यारे प्यारे बच्चों से नवाज़ दिया। अल्लाह के रसूल का क़ौल है जिसे खूबसूरत घर ,अच्छी सवारी और बेहतर बीवी नसीब होगयी उस की दुनयावी ज़िन्दगी कामयाब होगयी। 
नाज़िम की औलादों में  सिद्ऱाह ,साराह डॉक्टर  बन रही हैं और अफ्फान भी डॉक्टर बनना चाहता है। अल्लाह उनके ख्वाब पुरे करे। आमीन 
     शगुफ्ता के साथ में ने दो मर्तबा दुबई का सफर किया और नाज़िम की मेहमान नवाज़ी का लुत्फ़ उठाया। मेहमान की राह में पलकें बिछा देना इस मुहावरें को उस ने सच कर दिखया। उसकी कार से UAE की सैर ,महफ़िलें,दावतें खूब लुत्फ़ उठाया । दुबई में वह मिक़नातीस की मिसाल है के रिश्तेदार दोस्त व अहबाब उस के खलूस से फ़ैज़याब होते रहतें हैं।
    
    
     अल्लाह से दुआगो हूँ ,नाज़िम का  हर ख्वाब पूरा हो आमीन।
ख़ानदान  ,रिश्तेदारी के बच्चों के लिए उसकी ज़िन्दगी एक मश अले राह साबित हो। 

रविवार, 25 सितंबर 2022

IQRA KHANDESH FOUNDATION DHULIA PROGARAMME

इक़रा खानदेश फाउंडेशन धूलया तक़सीम इनामात प्रोग्राम (तास्सुरात )

क़ौमों की की हयात उनके तख़य्युल पे है मौक़ूफ़ (डॉ इक़बाल )

25th सितम्बर 2022 बरोज़ इतवार हाजी हाकम हाल धूलिया में  IKF  द्वारा आयोजित prize distribution program ने  एक बेहतरीन  मिसाल क़ायम की। ये प्रोग्राम  रिश्तेदारों के  लिए था ,रिश्तेदारों द्वारा आयोजित किया गया था और रिश्तेदारों के बुज़ुर्ग ,स्टूडेंट्स ,टीचर्स और हाजी साहबान के इस्तक़बाल के लिए था। 

उनसे ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग हैं 

 प्रोग्राम में रोटरी क्लब के Deputy Governor जनाब कमर शेख़ कडुमिया का discipline  हर जगह नज़र आया ,जनाब नियाज़ अहमद का निज़ामत का बरसों के तजर्बे का निचोड़ दिखाई दिया। मुख्लिस ज़मीनी सतह पर काम करने वाले साथियों का जलवा हर क़दम पर उजागर हुवा। 

 साबित हुवा हमारे दरमियान रागिब जहागिरदार ,अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ वकील ,डॉ प्रोफेसर साजिदा 

बुधवार, 21 सितंबर 2022

Hafiz Qari Mauzzin Javid Hanif Shaikh

                         Dr Bu Abdulla and Hafiz Javid Hanif Shaikh    Hafiz Javid Hanif Shaikh


 Hafiz Mohammed Javid Shaikh


हाफिज मोहम्मद जावीद हनीफ शेख नवसारी

पैदाइश : १५ जनवरी १९८५ (नवसारी)


ज़िंदगी से यहीं गिला है मुझे,

तू बहुत देर से मिला है मुझे।


मोहम्मद जावीद रिश्ते में हमारे पोते है। हमारे फुफीज़ाद हबीब मियां दादाभाई के, बड़े फरजंद हनीफ मियां के, सबसे छोटे फरजंद है। 

इत्तेफाक से मैंने २० साल का लंबा अरसा शाम और सूडान में गुजारा और हाफिज जावीद भी १२ साल ७मार्च २००८ से १५ नवम्बर २०१९ दुबई में रहे।


हम दोनो ही वतन से दूर रहे तो हमारी मुलाकात कैसे होती ?

हमारी पहचान भी हूवी तो व्हाट्स एप ग्रुप पर, तब पता चला हम दोनो में कितनी कुर्बत हैं।

फिर अल्हमदुलिल्लाह अक्सर फ़ोन पर हमारी बातचीत हो जाती हैं।


एक हाफिज अपने खानदान के ७० लोगों की लोगों की शिफाअत कर सकेगा और अल्लाह की जात से उम्मीद है हाफिज जावीद अपने दादाजान यानी मेरी शिफाअत का हकदार जरूर बनेंगे इंशा अल्लाह ।


कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन,

फिर उसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर।


जावीद मियां ने मदरसा ए तहफीजुल कुरान फैजे सुलेमानी नवसारी से २००५ में हिफ्ज़ ए कुरान मुकम्मल कर लिया साथ साथ गुजराती माध्यम  से १२ का इम्तिहान भी पास किया, B Com. करना चाहते थे मगर मदरसे से इजाजत नहीं मिली।

अपनी नाकामियों को कामयाबी में बदलने के फन से हाफिज जावीद बखूबी वाकीफ है।

जनाब ने अपनी कोशिशें जारी रखी। कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट में आई टी आई किया, अपनी काबिलियत बढ़ा ने के लिए कंप्यूटर अकाउंटिंग एंड ऑफिस ऑटोमेशन में डिप्लोमा किया।

कहा जाता हैं हाफिज ए कुरान के लिए अल्लाह हर चीज आसान कर देता है।


 उनके वालिद साहब (हमारे भतीजे हनीफ मियां) का १२ मई २००८ को इंतकाल हुवा था, तब हाफिज जावीद को दुबई जा कर सिर्फ २ महीने हुवे थे। अल्लाह ने उसी रोज उनके हिंदुस्तान आने का इंतजाम कर दिया था तो उन्हें वालिद साहब का चेहरा आखरी बार देखना नसीब भी हुवा ।


२२ मई २००८ को वालिद साहब के इंतकाल के सिर्फ १० दिनों के बाद हाफिज जावीद अपने दिल पर पत्थर रख कर अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने फिर से दुबई रवाना हो गए।


२००८ से २०१९ दुबई में वेयरहाउस ऑपरेशन मैनेजर के फराईज अंजाम दिए। दुबई की मारूफ शख्शियत Dr. Bu Abdullah से हाफिज जावीद के करीबी ताल्लुकात रहे हैं।

दुबई में गोल्ड सूक की मस्जिद में हर जुम्मा अज़ान भी दी , मस्जिद में इमामत(वालींटियर) भी की, तरावीह की नमाज भी दो साल पढ़ाई।


कहा बच कर चली ए फसल गुल मुझ आबला से,

मेरे कदमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक हैं।


हिंदुस्तान लौट कर हाफिज जावीद की जद्दो जहद का सिलसिला रुका नहीं, पूना में २ साल फजलानी ग्रुप में और १ साल अक्कलकुवा मदरसे में अपने वेयरहाउस के तजुर्बे का फायदा उठा कर दोनो जगहों पर वेयरहाउस की बुनियाद रखी।


अब अल्हमदुलिल्लाह नवसारी में अपने माज़ी के तजुर्बात का फायदा उठा कर (Amazon Easy Store) एमेजॉन इजी स्टोर की शाख और (Super Market) सुपर मार्केट का अपना ज़ाति बिज़नेस कर रहे हैं।


हाफिज जावीद अरबी एहले ज़बान की तरह बोलते हैं, इंग्लिश भी ब्रिटिशर्स के लहजे में बोलते हैं, गुजराती में तो तालीम हासिल की ही है, उर्दू की भी शुदबुद हैं।

और क्रिकेट में तो कमाल हासिल है.

हाफिज साहिब जानते हैं कंपीटीशन के इस दौर में किस तरह अपने आपको काबिल बना ना चाहिए।

नवसारी में अपनी वालिदा मुमताज बेगम, अहलिया नाजनीन और अपनी दो नन्ही मुन्नी बेटियां नाफिआ और फातिमा के साथ मुकीम है।


मुझ को जाना है बहुत आगे हदे परवाज से।


इतनी कम उम्र में इतनी काम्याबिया हाफिज जावीद जैसी काबिल सख्शियत को मिली काबिल ए सताईश हैं।

रिश्तेदारों के बच्चों के लिए हाफिज जावीद की सवाने हयात यानी (life History) एक बेहतरीन सबक है।

किस तरह जिंदगी में मुश्किलात का सामना किया जाता हैं, और कामयाब जिंदगी गुजारी जाती हैं.

मंगलवार, 20 सितंबर 2022

ye phool mujhe koyi wirasat me mile hain

 ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं 

तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं मिलता 

इक़रा खानदेश फाउंडेशन के मारेफ़त जिन रिश्तेदरारों के स्टूडेंट्स को स्कालरशिप दी जा  रही हैं हक़दार तो है ही कुछ बच्चों की काविशें ,मेहनतें देख कर हमारे struggles के दिनों की यादें ताज़ा हो जाती हैं। ३ किलोमीटर दूर पैदल बगैर चप्पल जूतों के स्कूल जाना। कभी नाश्ता नहीं मिलता था ,और कभी खाना नहीं  मिलता था। फी गवर्नमेंट की EBC स्कीम से मिलती थी। डॉ वासिफ ,मखदूम ,सलाहुद्दीन मलिक ,ताजुद्दीन ,ज़ाकिर अहमदाबाद वाले  ,  मरहूम सादिक़ इंजीनियर ,  हाफिज जावेद ,(इन  साहेबान से मेरी क़ुरबत रही है इन के हालत जनता हु )हमारी जनरेशन ने जिस मुसीबत से तालीम हासिल की। नौकरी के लिए दर बी  दर ठोकरे खायी और आज इस मुक़ाम तक पहुंचे ,जी चाहता हर किसी के हालत ज़िन्दगी लिखूं बहुत लोगों  को मुतर्रीफ़ (introduction )दे चूका हु और इंशाल्लाह वक़्त मिलने पर सब के बारे में अपना ब्लॉग ज़रूर लिखूंगा। 

जान कर ख़ुशी हुयी  के कुछ बच्चे हम से भी ज़ियादा जदो  जहद रहे हैं 

इक़रा खानदेश फाउंडेशन की जानिब से जिन बच्चों को स्कालरशिप दी गयी उन में से कुछ सख़्त हालात का मुक़ाबला करके अपनी तालीम मुक़्क़मिल कर रहे हैं और  साथ साथ फॅमिली को भी  support कर रहे हैं bravo 

कुछ मिसालें 

इंजीनियरिंग करने वाले कुछ बच्चे शाम को कॉलेज के बाद पार्ट टाइम जॉब करके अपने कॉलेज का खर्च (ट्रवेलिंग्+नोटबुक+टेक्सटबुक्स ) खुद अपनी कमाई से  ख़रीदते हैं। और फॅमिली की भी मदद करते हैं 

ITI  करने वाले कुछ बच्चें सुबह रिक्शा चलाने के बाद कॉलेज अटेंड करते हैं। 

कुछ पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले बच्चें   पार्ट टाइम रिसेप्शनिस्ट का काम करते हैं कॉलेज के साथ साथ अपनी  फॅमिली को भी सपोर्ट कर रहे हैं 

बहुत से बच्चों का फी न भरने की  बिना पर रिजल्ट रोक लिया गया था IKF ने तुरंत स्कॉलरशिप मंज़ूर की रिजल्ट मिलाने के पश्चात् बच्चों ने अगले कोर्स में एडमिशन लिया। वरना साल बर्बाद होजाता शायद कुछ बच्चे तो  तालीम ही छोड़  बैठते। 

एक स्टूडेंट पैसों की कमी की बिना पर अपना ग्रेजुएशन सर्टिफिकेट यूनिवर्सिटी से ले नहीं प् रहा था IKF ने  मदद की उसका सर्टिफिकट दिलवाया। 

खुलूस हो तो निकलती हैं ग़ैब से राहें 

मरहूम मिस्बाह अंजुम ने रहनुमाई की। इक़रा खानदेश फाउंडेशन की बुनियाद रखी गयी।  काम को एक साल से कम वक़्फ़े में रिश्तेदारों में पज़ीराई मिली। हमारी लब्बैक पर ११० लाइफ मेंबर्स ५०० रुपये दे कर IKF से जुड़े। मखदूम अली रिटायर्ड एकाउंट्स अफसर ,अल्हाज हिसामुद्दीन बैंक से रिटायर्ड केशियर ने IKF अकाउंटेंट के फ़रायज़ बिना salary के अंजाम देने का बेडा उठाया। न कोई IKF का  एम्प्लोयी  है ,न ऑफिस का  खर्च है न  लाइट पानी का बिल। चार लाख रूपये जमा हुए डायरेक्ट  ५० रिश्तेदारों के बच्चों के स्कूल /कॉलेज के अकाउंट में जमा होगये। हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा। रहबरी के लिए अल्हाज सलाहुद्दीन नूरी ,ज़ाहिद शैख़ { अबू धाबी },फैसल शैख़ (मैंचेस्टर ), रागिब अहमद शैख़  (नवी मुंबई ),हमीदुद्दीन (नासिक ) डॉ वासिफ अहमद (दुबई ) ,एडवोकेट रज़ीउद्दीन  बुज़र्ग और काबिल लोगों  की रहनुमाई ,कयादत  मिली। रिज़वान जहागिरदार ,कमर शैख़ जैसे नौजवान और जोश भरे लोगों का साथ। बच्चों की स्कॉलरशिप भी डोनेशन से अदा की जाती है ,ज़कात की रक़म बिलकुल इस्तेमाल में नहीं लायी जाती। 

आज वक़्त न फ़ुज़ूल बहस मुबाहसे का है का है , न दूसरों पर कीचड  उछलने का। दो साल के लॉक डाउन के दौर ने अच्छे अच्छों की हिम्मतें तोड़ दी है। हालात सख़्त हैं। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के अकाउंट में सिर्फ ४० हज़ार रूपये बैलेंस है।  १० से ज़ियादा एप्लीकेशन आये हैं और IKF किसी को मायूस नहीं करना चाहता है। आप सभी IKF मेंबर्स से मौदेबाना गुज़ारिश है के IKF की मदद के लिए आगे बढे। रिश्तेदारों के बच्चों के मुस्तक़बिल के लिए दिल खोल कर IKF केअकाउंट में डोनेशन जमा कराये । 






सोमवार, 12 सितंबर 2022

JALGAON PROGRAME

 शकिलोद्दिन  सर ,मोहमद जहांगीर ,साकिब अली ,कफील अहमद 

कुछ गुमनाम सिपाही ऐसे होते हैं जिन का खून फ़तेह में शामिल होता है मगर मफ़्तूह (जीता हुवे  ) किले की दीवारों पर जिन का नाम नहीं आ पता। 

जलगाव्  यूनिट के सिपाह सालार जनाब रिज़वान जहागिरदार की क़यादत में ११ सितम्बर को जलगाव प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम जिस खुश असलूबी से Organize किया गया ,दिल की गहराईओं से वाह  निकल पड़ी। मुंबई में इतने पप्रोग्राम Organize किये ,attend किये उन सब से बढ़ कर इस प्रोग्राम को पाया। 

उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग हैं 

किसी भी प्रोग्राम की कामयाबी उस organization के foot soldiers (ज़मीनी सतह ) पर काम करने वालों की अरक रेज़ी ,जाँफ़िषानी ,और dedication का नतीजा, होती है। हम सब सलाम करते हैं कफील अहमद ,शकिलोद्दिन सर ,मोहमद जहांगीर ,साकिब अली और जनाब रिज़वान जहाँगीरदार की काविशों को ,इन साहबान की दिन रात की मेहनतों का नतीजा है  ,जलगाव्  prize distribution प्रोग्राम इस कामयाबी से ऑर्गेनिसे किया गया। 

घर को जाने वाले रस्ते अच्छे लगते हैं 

दिल को दर्द पुराने अच्छे लगते हैं 

फूल नगर में रहने वालों आकर देखो 

अपने घर के कांटे अच्छे लगते हैं 

अपने वतन में आयी तबदीली को देख कर ख़ुशी हुयी। बच्चे ,बच्चियां तालीम में तर्कियों की बुलंदियों को छू रहे हैं। 

हम भी अब किसी समाज से डिसिप्लिन में काम नहीं। तर्रकी की यही रफ़्तार रही तो रिश्तेदारी इंशाअल्लाह आसमान को छू लेंगी। 

क्या हम सब ख़ानदान वाले हज़रत शाह वाजिहुद्दीन गुजरती और बाजन शाह बूरहानपूरी  के शिजरे से नहीं जुड़े हैं ? काश हम अपने बुज़र्गों के हलाते ज़िन्दगी से वाक़िफ़ होते। 

शाह वाजिहुद्दीन २३ साल की उम्र से दरस व तदरीस (teaching ) पेशे से जुड़े थे। अपनी आखरी साँस तक इल्म की रौशनी फैलते रहें। आपके मदरसे में  तमाम हिंदुस्तान के इलावा यमन ,सऊदी,बहरीन और middle east से students पढ़ने के लिए आते और इल्म की दौलत से माला माल होकर लौटते । कहा जाता है आज भी मदरसों में उनका syllabus मामूली तब्दीलियों के साथ पढ़ाया जा रहा है। काश हमारे इन अजदाद की किताब हर घर में छाप कर तक़सीम की जाती, जिन का सिलसिलये नसब हज़रात अली तक पहुँचता है। 

हमारे एक दोस्त ने मुंबई यूनिवर्सिटी से हज़रात बाजन  शाह पर थीसिस लिख कर डॉक्ट्रेट भी मिलायी है। 

आये, हम ९००० (family tree  latest figure ) से जुड़े  ख़ानदान के अफ़राद एक प्लेटफार्म पे जमा होकर खुलूस ,नेक नियति से एक दूसरे के ग़म ख़ुशी में शरीक हो। बच्चों की तालीम ,मुलाज़मत ,कारोबार ,रिश्तों के लिए जरिया बने। आमीन सुम्मा आमीन। 

जलगाव् तक़सीमे इनामात प्रोग्राम की कामयाबी पर लिखा गया ब्लॉग ( ब्लॉग लिंक ragibahme.blogspot.com )



गुरुवार, 18 अगस्त 2022

मुबारकबाद

अक़ाबि रूह जब पैदा होजाती है नौजवानो में 
नज़र आती है मंज़िल उनको अपनी आसमानो में 
फ़िज़ा नाज़ रईस अहमद (शमीम बानो  ) ,उँजेला नाज़ नफीस शैख़ (शबाना बी ), सय्यद मिस्बाह नाज़ तबरेज़ (सलमा बी ) और शैख़ तस्कीन इस्माइल (अंजुम बी ) चारों  बच्चियों का रिजल्ट देख कर तबियत खुश होगयी। अल्हम्दोलिलाह रिश्तेदारों में तालीमी बेदारी देख कर इत्मीनान महसूस हुवा। सभी  बच्चियों के मार्क शीट पर कैंडिडेट के इलावा माँ और बाप दोनों का नाम बोल्ड लेटर्स में  लिखा होता है । सोने पर सुहागा चारों बच्चियों  ने ९०%  मार्क्स स्कोर किये हैं। दिल की गहराइयोन से इक़रा खानदेश फॉउण्डेशन्स के मेम्बरान  की जानिब से मुबारकबाद। अल्लाह करे ये कारवां इसी तरह आगे बढ़ता रहे। 
इक़रा खानदेश फाउंडेशन ग्रुप  में pure educational मालूमात /ख़बरें /बच्चों के रिजल्ट्स और इक़रा खानदेश फाउंडेशन के ताल्लुक़ से information शेयर की जाती है। बहुत कम ऐसे ग्रुप्स होते हैं जहाँ इस तरह एहतियात बरता जाता है। future में भी इसी तरह से एहतियात बरतने की members से गुज़ारिश है। बच्चों के रिजल्ट्स declare हो गए हैं और और स्कॉलरशिप के लिए applications आ रहे हैं। आप सब से फिर एक बार 100 रूपये हर महीने donation के लिए request की जाती है, ताकि फाउंडेशन का काम बग़ैर किसी रुकावट के चलता रहे। 

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

माशाल्लाह अभी तक हमारे ख़ानदान  में डॉक्टर है ,  engineers  है ,MBA भी है। 

ईशा का फाइनल ईयर LL.B का result कल declare हुवा है। She has passed the exam in 1st class from Mumbai University . हम सब की जानिब से ईशा जावेद एंड फॅमिली को दिली मुबारकबाद।  

ईशा को इस कामयाबी पर ढेरो मुबारकबाद। अल्लाह से उसके रौशन ताबनाक मुस्तकबिल के लिए दुआ है। आमीन सुम्मा आमीन।  

शनिवार, 23 जुलाई 2022

doston ki mehrbani chahiye

औसाफ़ उस्मानी साहेब की शख्सियत  इस एक शेर से अयं होजाती है 

 शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की जगह 

अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हसने हँसाने से रही 

रसोई हमारे नेरुल शहर का अड्डा है जहाँ अजीब अल ख़ल्क़ (टिपिकल) लोग हर सुबह  अपनी बे इज़्ज़ती करवाने जमा होते है। और खुश भी होते हैं। कुछ  मुख़्तसर  group  के highlights 

प्रकाश सोनवणे navy से retire लेकिन दिमाग़ बहुत तेज अपनी साइकिल मार्किट में बेच दी पुलिस में FIR कर नेरुल पुलिस स्टेशन से नयी साइकिल मिल गयी।  bravo 

अब्दुल कोटियाद जिनेह उर्दू में जोक सुनाया जाता है तो एक हफ्ते बाद हँसते है। 

सब से जवान साथी जनाब अब्दुल हामिद ख़ानज़दा "मुंबई  की कोनसी गली कोनसी फिरदोस है जिसे वो नहीं जानते। 

मंसूर जेठाम साहब   उर्फ़ गुरु अपने से ज़ियाद दूसरों के ग़म में घुलते है। 

इश्तियाक़ भाई सौ सुनार की एक लोहार की। 

इमरान जलती में तेल डालने का काम करने वाला 

सुनील Badmintan में कब कैसे हारा जाता है 

हरीश साहेब का ये कहना है के वो मंदिर में थे 

और सकी की गवाही है के मैखने में थे। 

जो यहाँ था वो वहां क्यूकर हुवा ?

औसाफ़ साहेब के औसाफ़ क्या बयां करू फेडरल बैंक का चौकीदार उनकी बेरुखी से दुबला पतला होगया। 

लोग Gym का इस्तेमाल  सिर्फ ज्वाइन करने के दिन करते हैं लेकिन ये हज़रात को रोज़ाना Gym से ज़बरदस्ती भागना पड़ता है। आप अपने से ज़ियाद दूसरों को खिलने में महज़ूज़ होते हैं। हैदराबाद की नान खटाई ,बन पॉ व। 

हमेशा गर्दिश में रहते हैं। उनकी ज़िन्दगी का एक उसूल है 

जीने का ये होना भी आज़माना चाहिए 

दोस्तों से जंग हो तो हार जाना चाहिए 

Happy birthday अल्लाह सलामत रखे आमीन 








शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

میرا پیام محبّت ہے جہاں تک پہونچے

                                                       

                                                                       میرا پیام محبّت ہے  جہاں تک پہونچے 

مکرمی 

سریش کمار مینگڈے نوی ممبئی ڈپٹی کمشنر (کرائم) نے پنویل میں آزادی کا امرت مہوتسو اور آپسی بھایئ چارہ عنوان پر اپنے خوبصورت خیالات کا اظہار  کیا - موصوف اسلام کی اچھی معلومات رکھتے ہیں اور اکثر و بیشتر آپ کے اس موضوع پر خوبصورت  ویڈیوز  وائرل ہوتے رہتے ہیں جس میں وہ اسلام کے بنیادی اصولوں  نماز روزہ اور محمّد  رسول الله کی احادیث سنااتے ہیں 

ہندوستان میں جس طرح نفرت کی سیاست کو فروغ دینے کی کوشش جارہی ہیں لوگوں کو ایک دوسرے سے دورکیا جا رہا ہے   کچھ لوگ آج بھی ایسی مثالیں قیام کر رہے ہیں جو تاریخ کی کتابوں مے سنہری حروف میں  لکھی  جا سکتی ہے داراوے  گاؤں  نیرول نوی ممبئی میں  گرووریہ بالا رام پاٹل اسکول جہاں مراٹھی ،انگریزی ،ہندی میڈیم  سکول اور جونیئر کالج کے علاوہ ہوٹل مینجمنٹ کالج ،سپورٹ اکیڈمی بھی ہے بالا رام پاٹل جو اس سکول کے بانی تھے اور کارپو ریٹور سنیل پاٹل کے والد ہیں  ان کی دلی خواہش اردو میڈیم  سکول شروع کرنے کے تھی -الحسنات اردو اسکول کے  بانی جناب رؤف خان نے جو عرصے سے جگه کی تلاش میں  تھے بالا رام پاٹل صاحب سے ملاقات کی جنوری میں بالا رام پاٹل سکول میں پہلی سے ساتوی کلاس  تک تین کمروں پر مشتمل کلاسز کا آغاز ہوگیا بالا رام پاٹل صاحب نے ٩٥ سالہ عمر اور علالت کے باوجود پروگرام مے شرکت کی اسکول شروع ہونے پر جو انکی دلی خواہش تھی خوشی کا اظہارکیا - اور آشیرواد بھی دیا -اردو میڈیم اسکول شروع ہونے کے دو مہینے بعد بالا رام پاٹل  کا سورگ واس ١٦ مارچ ٢٠٢٢ کو  ہوگیا لیکن اردو میڈیم اسکول اسکول کی شروعات اپنی زندگی  میں دیکھ لی اور ٢٠٠ غریب اردو میڈیم میں پڑھنے والے   بچوں کا مستقبل تاریک ہونے سے بچ گیا 

جو اہل سیاست ہیں وہ  اپنا کام جانے 

میرا پیام محبت ہے جہاں تک پہنچے 

راغب احمد شیخ 

نیرول -نوی ممبئی 

٩٨٩٢٣٦٩٢٣٣ 


शनिवार, 26 मार्च 2022

खुशबु जैसे लोग मिले



                                                               
                                                     डॉक्टर वकील अहमद मुनाफ अली 
मुझ को जाना है बहुत आगे हदे परवाज़ से 
सय्यद वकील अहमद अब डॉक्ट बन गए हैं। रिश्तेदारों के लिए ये फ़ख्र का मुक़ाम है। हम सब की जानिब से दिल की गहराईओं से मुबारकबाद। अल्लाह से दुआ है वो कामयाबियों बुलंदियों को छू ले आमीन। 
हमारी  सगी चाची ज़ाद बहन आपा  बी (मुनाफ अली की वालिदा )हमारे वालिद हाजी क़मरुद्दीन की चहेती हुवा करती। वो भी अपने चाचा को बड़े अब्बा के लक़ब से नवाज़ती। हमारे बहनवी मंज़ूर अली भी बड़े सादा मिज़ाज इंसान थे। बहुत बार अब्बा के साथ धुले  देव पुर मुनाफ अली के घर जाना हुवा आपा  बी हयात थी , अब्बा के लिए बड़े चाव से  अब्बा की favorite dish हलीम बनती थी। अब्बा भी तारीफ़ करते नहीं थकते। 
मुनाफ अली ने  Master of commerce  की डिग्री उस वक़्त हासिल की  ,जब मीट्रिक पास की भी एक हैसियत हुवा करती थी । बैंकिंग का पेशा इख़्तियार किया। हलाल रिज़्क़ के लिए ज़िन्दगी भर कोशिश करते रहे। अपनी औलाद की परवरिश बड़ी जान फिशनी से की। तालीम से तो आरास्ता किया ही ,साथ साथ खुश अख़लाक़ी ,ईमानदारी ,शराफत और बुज़र्गों की इज़्ज़त कूट कूट कर औलाद में भर दी। 
वही बुलुंद अख़लाक़ी ,शराफत , ज़मीन से जुड़े रहने की  आदत  डॉक्टर वकील अहमद में भी पायी जाती है। डॉक्ट्रेट की डिग्री मिलते ही मेरे गोश गुज़र किया। " सदर साहब मुझे डॉक्टर की डिग्री मिल गयी है " मैंने भी ढेर सारी दुवाओं से नवाज़ा। 
पर ही काफी नही आसमानो के लिए 
हौसला चाहिए ऊँची उड़ानों के लिए 
वकील अहमद ने SWES उर्दू स्कूल से जो तालीम की शुरुवात की थी , उसका सिलसिला जारी रखा। Z B college धुले से B .Commerce की डिग्री हासिल की। वालिद के नक़्श क़दम पर चल कर SSVPS college से M. Commerce post graduation किया । वकील  अहमद को निचला बैठना नहीं आता 
पलटना  झपटना झपट कर पलटना 
लहू गर्म रखने का है एक बहाना 
फिर एक नयी मंज़िल की तलाश में ,डॉक्ट्रेट करने की दिल में ठान ली। मुझे बता रहे थे दो तीन Attempt के बाद डॉक्टरेट  मिली। डॉ साहब कई लोगों ने डॉक्टरेक्ट करते करते अपनी उम्र गवां दी बाल सफ़ेद होगये । आप की मेहनत लगन के आगे यूनिवर्सिटी को घुटने टेकने पड़े ,आप को डॉक्टर बनाना ही पड़ा। शायद किसी शयर ने आप के लिए ही कहा है। 
कुछ इस तरह तै की है हमने अपनी मंज़िलें 
गिर पड़े, गिर के उठे ,उठ के चले 
फिर एक नयी उड़ान में डॉ वकील अहमद मसरूफ़ हैं  । CA के लिए qualify हो गए हैं इंशाल्लाह अल्लाह से  कवि उम्मीद है वह आप को मंज़िले मक़सूद तक ज़रूर रहनुमाई कर देगा। 
डॉ अब्दुल कलाम का कौल है "you have to dream before your dream comes true " अल्हम्दोलीलाह डॉ वकील अहमद आप ने खवाब देखा ,जुस्तजू की और ख्वाबों की ताबीर पायी.  काश क़ौम के हर बच्चे  में ये जज़्बा उजागर होजाये , क़ौम को तरक़्क़ी से कोई नहीं रोक सकेगा। 

डॉ वकील अहमद  ने UGC NET साल 2011 में क्लियर कर लिया था। थोड़ा अरसा अरिहंट कॉलेज में  अस्सिटेंस प्रोफेसर  ओहदे पर ज्वाइन किया। 2013 से मौसूफ़ पूना की मारूफ (पूना कॉलेज) में  कॉमर्स शोबे में असिस्टेंट प्रोफेस्सर के ओहदे पर फायज़ है। अपने शागिर्दों में डॉ वकील बड़े मक़बूल हैं। Mind Mapping ,Mnemonics ,Edutainment ,keywords methods ये जदीद इस्तेलाहैं जो डॉ प्रोफेसर  वकील अहमद ने अपने स्टूडेंस में मुतर्रीफ़ कराई। 
आज कल नयी सोच का ज़माना है इंशाल्लाह वो वक़्त भी आएगा जब डॉ वकील अहमद स्टार्ट उप (start up ) की शुरुवात करेंगे जो मुस्तकबिल का unicorn बन जायेगा 
तमाम उम्र तुझे ज़िंदगी का प्यार मिले 
खुदा करे के ख़ुशी तुम को बार बार मिले 
 अल्लाह से दुआ गो  हूँ के डॉ वकील अहमद तर्रकी ,कामयाबी ,कामरानी हमेशा आप के कदम चूमती रहे। आमीन सुम्मा आमीन। 
 

रविवार, 20 फ़रवरी 2022

कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए है



 
(L to R)Khasim,Dr. Sharief,Yusuf,Sadaf,Sohail,Ragib,Faruq ul Zama 

सदफ़ का उर्दू में मतलब होता है मोती। 

१२ फ़रवरी २०२२  बरोज़ सनिचर सदफ़ का अक़्द सोहैल शेख़ से होगया। शाम ०७३० बजे होटल Royal Tulip खारगर में ६० लोगों की मौजूदगी में मुफ़्ती जमशेद ने निकाह पढ़ाया । सादा सी तक़रीब थी । मजमुआ भी संजीदा लोगों पर मुश्तमिल था। 

वक़्त रुकता नहीं कहीं टिक कर 

१३ साल पहले जब फ़ारुक़ उल ज़मा की अहलिया एक हादसे में जुदा होई थी, सदफ़ स्कूल की शुरुवात ही कर रही थी। उसने इस संगीन हादसे को पसे पुश्त डाल दिया और अपनी तालीम के अलावा  अपनी बहनों की ज़िम्मेदारी भी अपने सर लेली। ज़हींन इतनी थी के स्कूल कॉलेज में टॉप करती रही। खेल ,डिबेट ,बेहतरीन announcer .कॉलेज स्कूल में प्रोग्राम कंडक्ट करने के लिए उसे ही बुलाया जाता। पनवेल पिल्लई कॉलेज में annual college day जो बड़े पैमाने पर conduct किया जाता है ,बड़े बड़े corporate द्वारा sponsor किया जाता है। सदफ़ ही manage करती। वो ही प्रोग्राम की host /anchoring  करती  और सब हिजाब में रहते हुए। आफरीन !

माशाल्लाह उसकी कप्बोर्ड उसके medals से भरी पड़ी है। अपने नस्बुल ऐन (Target ) MBA (HR )करने के बाद वो ३ साल से जॉब भी कर रही है। 
फ़ारुक़ उल जमा भी अपने  ख़ूने  जिगर से अपनी अवलाद की परवरिश बेहतरीन तौर पर करते रहे। कभी न माज़ी पर नज़र की न मुस्तक़बिल के ख़ौफ़ से परेशांन हुवे। मक़सद हमेशा रहा बच्चियों की तालीम। चारो बच्चियों को तालीम से आरास्ता करते रहे। अपनी तन्हाई ,अपने ग़म ,अपने अकेले पन को कभी भी किसी पर ज़ाहिर नहीं किया। अपनी बेख्वाब करवट बदलती रातों का किसी से कभी ज़िक्र नहीं किया। आज् जब अपनी लखत जिगर से जुदा होने पर उनेह ज़रूर ख्याल आया होंगा
तुम चले जावोंगे तो सोचेंगे 
हम ने क्या खोया हम ने क्या पाया 
जुदाई इंसान का मुक़्क़दर लेकिन ऐसी जुदाई जिस में ज़हनी सुकून हासिल हो क्या कहने। सदफ़ अपने ख्वाबों के 
शहज़ादे  सोहैल के साथ नयी आरज़ूओं ,नयी उमंगों के साथ नयी ज़िन्दगी की शुरवात करेंगी ये सोच कर फ़ारुक़ उल जमा को क़रार आ गया होंगा। किसी ने सच कहा है अच्छे दामाद का मिलना ready made बेटा मिलने जैसा ही होता है। 
ज़िन्दगी नाम है यादों का तल्ख़ और शीरीं 
भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है 
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बंद किया 
२४-२५ साल का वक़्फ़ा जो  फ़ारुक़ उल ज़मा ने सदाफ के साथ गुज़ारा  , उनेह ऐसा महसूस होंगा ,गोया हवा का झोंका था जो आकर गुज़र गया। कभी कभी उसकी cupboard खोल कर उसके पुराने लिबास ,किताबें ,मैडल देख उसकी यादों की की खुशबू उनेह महका देंगी। उनेह महसूस होंगा 

तेरी क़ुरबत के लम्हे फूल जैसे 
मगर फूलों की उम्रें मुख़्तसर हैं 
सदफ तुम जहाँ रहो खुश रहो। तुम्हरी ज़िन्दगी हमेशा खुशीओं से भरी रही, ग़म कभी तुमको छू कर भी न गुज़रे। 
आमीन सुम्मा आमीन। 
तुम्हारी ज़िन्दगी में भीड़ हो इतनी खुशीओं की 
के ग़म गुज़रना भी चाहे तो रास्ता न मिले 






मंगलवार, 18 जनवरी 2022

Rajiv Sonthalia (khiraje Aqeedat)


 ज़िन्दगी से यही गिला (शिकवा ) है मुझे 

तू बहुत देर से मिला है मुझे 

राजीव आप ज़िन्दगी में बहुत देर से मिले भी और उसी तेज़ी से हम से बिछड़ भी गए। वंडर पार्क क्या बंद हुवा दोस्तों की महफिलें वीरान होगयी। वह साथ साथ सुबह सवेरे दोस्तों का ग्रुप वंडर पार्क के चक्कर मारता ,हल्ला गुला शोर व ग़ुल घोघा होता। किसि न किसी का जन्म  दिन मनाया जाता केक कटते तक़सीम किये जाते । और राजीव  तो  रोज़ाना (without  fail )कश्मीरी लहसन ले आता और जान पहचान अनजान दोस्तों में तक़सीम (distribute )कर देता ताके हमारी सेहत बानी रहे। Samuel street Mumbai पर राजीव की computer spare parts की दूकान थी। एक लड़का जो पुणे की reputed college से engineering graduate है ,लड़की जो MBA कर रही है अपनी विरासत में छोड़ गया है। 

अप्रैल-2021 महीने में कश्मीर सैर करके लौटा था। अपनी फॅमिली के फ़ोटोस face book पर बड़ी चाव से  शेयर किये थे। 

९  नवंबर  2021 को राजीव को pancreas का कैंसर डिटेक्ट हुवा था। डट कर बीमारी का मुक़ाबला किया १४ january-2022 को इस जान लेवा बीमारी ने जान लेकर ही साथ छोड़ा। 

उदास छोड़ गया वो हरेक मौसम को 

गुलाब खिलते थे कल जिस के मुस्कराने से 

भगवान आत्मा को शांति दे ख़ानदान को सब्र नसीब हो।