क्या लोग थे जो राहे वफ़ा से गुज़र गए
जी चाहता है है नक़्शे क़दम चूमते चले
मरहूम लेफ्टनंट कर्नल अब्दुल लतीफ़ मलिक साहेब का अपनी क़ाबलियत की बिना पर फ़ौज में सिलेक्शन हुवा था माशाल्लाह फ़ौज में लेफ्टनंट कर्नल के ओहदे तक एक मुस्लिम का पहुंचना कबीले फख्र बात है। स्कूल के ज़माने में जलगाव में मरहूम अब्दुल लतीफ़ मलिक साहब हमारे आइडियल हुवा करते थे। मरहूम के वालिद अब्दुल मजीद सालार उस ज़माने में जलगाव म्युनिसिपल में कॉर्पोरेटर हुवा करते थे और अपने ज़माने में बड़े हरदिल अज़ीज़ हुवा करते थे। डॉ इक़बाल शायरे मशरिक़ जिस वक़्त जलगाव में तशरीफ़ लाये थे ,इनके इस्तक़बाल में मरहूम अब्दुल मजीद मालिक पेश पेश थे। हम तीनों भाइयों डॉ वासिफ ,राग़िब अहमद और जावेद अहमद ने एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव से तालीम हासिल की जिस के मरहूम अब्दुल मजीद साहब ट्रस्टी थे। मरहूम अब्दुल लतीफ़ मालिक के छोटे भाई डॉ करीम सालार किसी तारुफ्फ़ के मोहताज नहीं आप ने जलगांव में स्कूलों कॉलेजों का जाल बिछा दिया। आज हमारे रिश्तेदारों के हज़ारों बचे इन अदारो से तालीम हासिल करके रोज़गार से लग चुके हैं या अब भी इन अदारों में तालीम हासिल कर रहे हैं। अब तो करीम सालार की फॅमिली हमारे रिश्तेदारी में शामिल भी होचुकी है।
हाफिज जावीद को जवाब मिल गया लेफ्टनंट कर्नल अब्दुल लतीफ़ साहेब हमारे रिश्तेदार हैं। ग्रुप में कई मैसेज फॉरवर्ड किये जाते है जो बेमक़सद होते हैं उस् वक़्त किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होता मारूफ शख्स के इंतेक़ाल की खबर डालने पर अफ़सोस सवाल उठाया जाता है। जनाब शकिलोद्दिन सर जलगांव ज़िले की मारूफ बावक़ार शख्सियत है हाफिज जावेद को सनजीदगी समझने की कोशिश की ,अफ़सोस उनके ताल्लुक़ से कहा गया के हाफिज जावेद के बारे में उन्हें ग़लत फहमी है।
वक़्त आगया है फ़ुज़ूल मुद्दों पर बेकार बहस न की जाये। प्रोफेसर नवेद क़ाज़ी के तालीमी MESSAGES इन बहसों में अपनी अहमियत खो देते हैं। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के MESSAGES पर लोग तवज्जेह नहीं दे पाते। हमारा ग्रुप एक बावक़ार अख़बार की तरह है माशाल्लाह अपनों के दुःख सुख ख़ुशी ग़म की खबरे डाली जाये। अनीस सर की तरह students के लिए फायदेमंद मालूमात share की जाये। हाजी सलाहुद्दीन मालिक की तरह authentic क़ुरान हदीस की मालूमात फ़राहम की जाये। हमारी बातों में संजीदगी होनी चाहिए ताके आने वाली generation तक मुफीद पैग़ाम पहुंचे।
ये एक नसीहति पैग़ाम है ,बराये मेहरबानी इस पर बहस न की जाये।
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