शकिलोद्दिन सर ,मोहमद जहांगीर ,साकिब अली ,कफील अहमद
कुछ गुमनाम सिपाही ऐसे होते हैं जिन का खून फ़तेह में शामिल होता है मगर मफ़्तूह (जीता हुवे ) किले की दीवारों पर जिन का नाम नहीं आ पता।
जलगाव् यूनिट के सिपाह सालार जनाब रिज़वान जहागिरदार की क़यादत में ११ सितम्बर को जलगाव प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम जिस खुश असलूबी से Organize किया गया ,दिल की गहराईओं से वाह निकल पड़ी। मुंबई में इतने पप्रोग्राम Organize किये ,attend किये उन सब से बढ़ कर इस प्रोग्राम को पाया।
उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग हैं
किसी भी प्रोग्राम की कामयाबी उस organization के foot soldiers (ज़मीनी सतह ) पर काम करने वालों की अरक रेज़ी ,जाँफ़िषानी ,और dedication का नतीजा, होती है। हम सब सलाम करते हैं कफील अहमद ,शकिलोद्दिन सर ,मोहमद जहांगीर ,साकिब अली और जनाब रिज़वान जहाँगीरदार की काविशों को ,इन साहबान की दिन रात की मेहनतों का नतीजा है ,जलगाव् prize distribution प्रोग्राम इस कामयाबी से ऑर्गेनिसे किया गया।
घर को जाने वाले रस्ते अच्छे लगते हैं
दिल को दर्द पुराने अच्छे लगते हैं
फूल नगर में रहने वालों आकर देखो
अपने घर के कांटे अच्छे लगते हैं
अपने वतन में आयी तबदीली को देख कर ख़ुशी हुयी। बच्चे ,बच्चियां तालीम में तर्कियों की बुलंदियों को छू रहे हैं।
हम भी अब किसी समाज से डिसिप्लिन में काम नहीं। तर्रकी की यही रफ़्तार रही तो रिश्तेदारी इंशाअल्लाह आसमान को छू लेंगी।
क्या हम सब ख़ानदान वाले हज़रत शाह वाजिहुद्दीन गुजरती और बाजन शाह बूरहानपूरी के शिजरे से नहीं जुड़े हैं ? काश हम अपने बुज़र्गों के हलाते ज़िन्दगी से वाक़िफ़ होते।
शाह वाजिहुद्दीन २३ साल की उम्र से दरस व तदरीस (teaching ) पेशे से जुड़े थे। अपनी आखरी साँस तक इल्म की रौशनी फैलते रहें। आपके मदरसे में तमाम हिंदुस्तान के इलावा यमन ,सऊदी,बहरीन और middle east से students पढ़ने के लिए आते और इल्म की दौलत से माला माल होकर लौटते । कहा जाता है आज भी मदरसों में उनका syllabus मामूली तब्दीलियों के साथ पढ़ाया जा रहा है। काश हमारे इन अजदाद की किताब हर घर में छाप कर तक़सीम की जाती, जिन का सिलसिलये नसब हज़रात अली तक पहुँचता है।
हमारे एक दोस्त ने मुंबई यूनिवर्सिटी से हज़रात बाजन शाह पर थीसिस लिख कर डॉक्ट्रेट भी मिलायी है।
आये, हम ९००० (family tree latest figure ) से जुड़े ख़ानदान के अफ़राद एक प्लेटफार्म पे जमा होकर खुलूस ,नेक नियति से एक दूसरे के ग़म ख़ुशी में शरीक हो। बच्चों की तालीम ,मुलाज़मत ,कारोबार ,रिश्तों के लिए जरिया बने। आमीन सुम्मा आमीन।
जलगाव् तक़सीमे इनामात प्रोग्राम की कामयाबी पर लिखा गया ब्लॉग ( ब्लॉग लिंक ragibahme.blogspot.com )
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