मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

NAT

 मेरे रसूल के निस्बत तुझे उजालों से 

में तेरा ज़िक्र करू सुबह के हवालों से 

 न मेरी नाअत की मुहताज ज़ात  है तेरी 

न तेरी मीदह है मुमकिन मेरे ख्यालों से 

तू रोशनी का पयम्बर था और मेरी तारीख़ 

भरी पड़ी है शबे ज़ुल्म की मिसालों से 

तेरा पयाम मुहब्बत था और मेरे यहाँ 

दिलो दिमाग़ हैं पुर नफरतों के जालों से 

ये इफ़्तेख़ार है तेरा  के मेरे अर्श व मुक़ाम 

तू हम कलाम रहा है ज़मीन वालों से 

मगर ये मुफ़्ती व वाइज़ ये मुस्तहिब ये फक़ी 

जो मौतबर है फ़क़त मस्लेहत की चालों से 

खुदा के नाम को बेचें मगर  खुदा न करे 

असर पज़ीर हो ख़ल्क़े खुदा के नालों से 

न मेरी आँख में काजल न मुश्क़ बू है लिबास 

के मेरे दिल  का है रिश्ता ग़रीब हालों से 

है तुर्श रु मेरी बातों से साहेबे मेंबर 

ख़तीबे शहर है परेशान मेरे सवालों से 

मेरे ज़मीर ने क़ाबिल को नहीं बख़्शा 

मैं कैसे सुलह करूँ क़तल करने वालों से 






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें