हाजी अयाजोद्दीन हैदर शैख़
पैदाइश : 08 /05 /1932 इंतेक़ाल : जुमा 17 /11 2023 (2 जमादिल अव्वल ) तद्फीन :18 /11 /2023
शगुफ्ता रागिब ,मरहूम अयाजोद्दीन ,रागिब अहमद
फैला के पाँव सोयेंगे तुर्बत में आज हम
लो अब सफर तमाम हुवा घर क़रीब है
हमारे सगे बहनवाई हाजी अयाजोद्दीन शैख (दूल्हे भाई ) ९१ सालोँ की तवील (लम्बी )ज़िन्दगी गुज़ार कर इस जहाने फानी से रुखसत हुए। हमारी बड़ी आपा ( उन की अहलिया )अदीबुन्निसा २७ साल पहले इस दुनिया से रुखसत होगयी थी। अजीब इत्तेफ़ाक़ है २७ सालों बाद तद्फीन के लिए , दुलहे भाई कोआपा के पड़ोस में पूना के क़दीम दूल्हा दुल्हन क़ब्रस्तान (भवानी पेठ ) में दफ़न होने का का शरफ़ हासिल हुवा।
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है
मरहूम हाजी अयाजोद्दीन के वालिद हैदर शैख़ पुलिस डिपार्मेंट में थे ,बड़े भाई अब्दुल क़ादिर भी पुलिस शोबे में रहे , अब्दुलराजजक भी पुलिस खाते में थे ,शरफुद्दीन रेलवे , और अब्दुल करीम छोटे भाई ने देवी डॉ के नाम से मशहूर हेल्थ शोबे में काम किया था। अपने ख़ानदान की रवीश को बरक़रार रखते हुए मरहूम ने भी गवर्नमेंट सर्विस को चुना। मरहूम ने सेंट्रल एक्साइज शोबे में हवलदार के अहदे से शुरुवात की। १९६५ में जॉब पर रहते हुए मेट्रिक पास किया ,मेहनत ,लगन से तरक़्क़ी करके लोअर डिवीज़न क्लर्क ,अप्पर डिवीज़न क्लर्क और १९९१ में डिप्टी ऑफिस सुपरिंटेंडेंट के अहदे से अहदे से रिटायर हुए।
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
मरहूम हाजी अयाजोद्दीन ने अपनी सर्विस के दौरान ठाणे ,कोपरगाव ,मुंबई ,अली बाग़ और पुणे ऑफिस में अपनी खिदमात अंजाम दी। उनका ज़ियादा वक़्त पुणे ऑफिस में गुज़रा।
मंज़िल की हो तलाश तो दामन जुनूं का थाम
राहों के रंग देख न ,तलवों के खार देख
अपनी माली हालत को मद्दे नज़र रखते हुए ,अपनी ज़रूरियाते ज़िन्दगी को मरहूम ने बहुत हद तक समेट रखा था । हमेशा किफ़ायत शारी से काम लिया। उनकी अहलिया अदीबुन्निसा ने भी अपनी औलाद के लिए बे इन्तहा क़ुर्बानियां दी। मरहूम कई दिने तक एक ही शेविंग ब्लेड का इस्तेमाल करते ,ब्लेड पर निशान लगा कर कई कई रोज़ इस्तेमाल करते। उनकी सेहत का राज़ साइकिल की सवारी थी । हड़पसर से ऑफिस का फैसला ८ किलो मीटर से शायद ज़ियादा ही होगा , हमेशा साइकिल से जाते थे। बेटे नासिर बेटी परवीन को ऑफिस जाते स्कूल छोड़ते और वापसी में ले आते। में ने भी उन की साइकिल पर पुरे पुणे की सैर की है। यहाँ तक के शिवपुर दरगाह जो पुणे शहर से १५ या २० किलोमीटर की दुरी पर है दुलहे भाई की साइकिल से ही सवारी की थी । मरहूम हाजी अयाजोद्दीन शतरंज के माहिर खिलाडी थे। कई मैडल ,ट्रॉफीज ऑफिस टूनामेंट में जीती थी। दिल्ली ऑफिस तक अपनी जीत के झंडे गाढ़ आये थे।
मेरे जुनूं का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेंगे
बरकत नाम है अहसास का। आज दूल्हे भाई (हाजी अयाजोद्दीन ) की महनतों का समर के उनके बड़े बेटे नासिर ने बेहतरीन कॉलेज से B.SC किया ,सेफ्टी अफसर का कोर्स किया अब दुबई में मुक़ीम है। बेटी परवीन M.A B.ED करके ,ग़रीब खानदानों के बच्चों में तालीम की शमा रोशन करने में मसरूफ है। उसके कई स्टूडेंट्स डॉक्टर , इंजीनियर्स और आला तालीम हासिल कर ,अपनी क़ौम ,मुल्क,समाज और अपने ख़ानदान के लिए सहारा बन गए हैं । नाज़िम और फहीम भी पेशे से इंजीनियर्स हैं। माशाल्लाह ये सिलसिला आगे भी जारी है ,मरहूम की २ पोतियां डॉक्टर बन रही है , १ नवासी B.E कर ,M.B.A कर रही है नवासा बी.इ कर चूका है और अब आला तालीम के लिए बैरून मुल्क जाने की कोशिशों में लगा है। मरहूम ने तमाम उम्र ईमानदारी से नौकरी की ,एक पैसा रिश्वत का नहीं लिया। अल्लाह ने भी उनकी खुद्दारी की लाज रख ली ,उनेह आखरी वक़्त तक अपनी पेंशन की कमाई पर मुनहसर रखा। मरहूम बड़ी इत्मीनान बख्श ज़िन्दगी गुज़र का र दुनिया से रुखसत हुए।
में ने ओल्ड पीपल होम ( आश्रय नेरुल ) को अक्सर विजिट किया हूँ। वहां अपने खानदान के लोगों के इंतेज़र में बुज़र्गों को तरसते देखा हूँ। मरहूम बड़े खशकिस्मत थे अपने बेटे ,बेटी , बहुयें ,पोतों ,पोतियोंऔर नवासा ,नवासी की एक फ़ौज उनकी खिदमत के लिए हाज़िर बाश रहती थी। कभी भी मरहूम को अपनी मरहूम अहलिया की कमी कमी महसूस नहीं होने दी। आखरी वक़्त तक हर किसी ने मरहूम की बे लौस खिदमत की। माशाल्लाह जनाज़े में भी दोनों फ़रज़न्द नासिर नाज़िम दुबई से वक़्त से पहले पहुँच गए और मरहूम को कांधा दिया।
अल्लाह मरहूम अयाजोद्दीन को करवट करवट जन्नत नसीब करे और मुतल्लाकीन को सब्र नसीब हो अमीन सुम्मा आमीन।