तुम्हारी हंसती हुयी ज़िन्दगी की राहों में
हज़ार फूल लुटाती हुयी बहार आये
तमाम उम्र तुझे ज़िन्दगी का प्यार मिले
खुदा करे के ये ख़ुशी तुमको बार बार मिले
हमारी जनरेशन में हम ने जन्म दिन मनाते सिर्फ फिल्मों में ही देखा था। शायद डॉ साहेब ने डॉक्टरी मुक़क़म्मिल करनेतक कभी जन्म दिन मनाया हो। अँगरेज़ हिन्दुस्तान छोड़ तो गए ,लेकिन जाते जाते कुछ निशानात अपनी यादों के छोड़ गए। उनेह केक ,फूल ,मोम बतियाँ बेचना था, जन्म दिन मनाने का शोशा छोड़ गए। वैलेंटाइन डे ,क्रिस्टमस न जाने क्या क्या और हिंदुस्तान में लोगों ने इन बातों को ऐसे अपना लिया जैसे अपनी तहज़ीब का हिस्सा हो।
डॉ वासिफ ने अपनी ज़िन्दगी चोपड़ा ,जलगांव की जिल्ला परिषद् स्कूल से शुरू की थी। एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव से १९६६ में मेट्रिक की परीक्षा पास की, में भी उनके नक़्श क़दम पर चलता रहा ,क्या करे हम दोनों की उम्रों में ४ साल का difference है जो हम कभी हम पाट नहीं सकते। इत्तिफ़ाक़ से हम चारों भाइयों में चार साल का फासला है। दादाभाई (सादिक़ अहमद )पैदाइश १९४६ ,डॉ वासिफ १९५० ,रागिब अहमद १९५४ ,जावेद अहमद १९५८ । डॉ वासिफऔर मेरे बीच वाक़िफ़ अहमद भी था ,इंतेक़ाल कर गया शायद अल्लाह को ४ साल का फासला बरकरार रखना था। दादा भाई भी साबेक़ून अवलीन साबित हुए ,हम से जल्द मुं मोड़ लिया।
डॉ वासिफ दो साल जलगांव ऍम जे कॉलेज से intermediate पास कर, सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज से मेडिकल पढ़ाई करने जलगांव छोड़ गए फिर उनोहने जलगांव की तरफ मुड कर नहीं देखा बल्कि गुजरात के होगये।
में ९वी जमात तक घर कटिया फैल से एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव ३ किलोमीटर पैदल बग़ैर चप्पलों के जाया करता था। डॉ वासिफ मेरे लिए विरासत में अपनी RAMI साइकिल छोड़ गए। में रातों रात कल्लाश से बादशाह बन गया। उन दिनों साइकिल ओन करना अपनी एक अहमियत थी।
जावेद और मेरी शादी के रिश्ते में डॉ वासिफ ने एक अहम रोले अदा किया।
आज भी जब हम तारीखे पैदाइश से दूर होते जा रहे ,बालों में सफीदी है। सर पर चाँद चमकने लगा है। डॉ साहेब घने काले बालों ,फिजिकली फिटनेस की बिना पर ,हम उनके सामने उम्र रसीदा दिखयी देते हैं। अल्लाह डॉ वासिफ की उम्र दराज़ करे हमेशा सेहतमंद रखे।
सुम्मा आमीन
जहाँ रहे वो ,खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो ये एक दुआ याद आयी
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