Late Haji Sadiq Ahmed |
एक खराबी है के ,मर जाते हैं
1946-13th December 2023
आयी किसी की याद तो आंसू निकल पड़े
आंसू किसी की याद के कितने क़रीब थे
आज हाजी सादिक़ अहमद (दादा भाई ) को इंतेक़ाल हुए ११ साल का लम्बा वक़्त गुज़र गया है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने पीछे ऐसे नक्श (foot prints) छोड़ जाते हैं जो कोई मिटा नहीं सकता।
मरकज़े फलाह नेरुल माशाल्लाह दादाभाई ने क़ायम की थी। १२ साल इस organisation के सेक्रेटरी भी रहे। २९ दिसंबर २०२३ को अग्रि कोली हॉल नेरुल में मरकज़ की सिल्वर जुबली का प्रोग्राम रखा गया है। sovenier में उनका ज़िकर किये बग़ैर मरकज़े फलाह की तारीख (history ) मुक़क़म्मिल नहीं होती । अल्हम्दोलीलाह आज भी उनकी लिखी AGM रिपोर्ट्स पढता हूँ ,दादाभाई के ड्राफ्ट किये लेटर्स पड़ता हूँ तो चौंक जाता हूँ। उनेह उर्दू ,अरबी और इंग्लिश ज़बान पर महारत (command ) हासिल थी। पिछले २५ सालों में १००० students मरकज़ से फीस लेकर ज़िन्दगी में सेट हो चुके हैं। अपने ख़ानदान ,मिल्लत और मुल्क का सरमाया (asset )बने हुए हैं। इंशाल्लाह इस कासवाब भी मरहूम सादिक़ अहमद को ज़रूर पहुँचता होगा।
२००७ से क़ुरान की तफ़्सीर का प्रोग्राम, मरहूम सादिक़ अहमद ने किया था। १७ साल बाद भी ये प्रोग्राम जारी है। दादा भाई के हक़ में सद्क़ये जरिया है।
अल्लाह मरहूम दादा भाई को जन्नते फिरदौस में आला मुक़ाम अता करे।
आमीन सुम्मा आमीन।
ये भी क्या काम है के उस शख्स ने जाते जाते
ज़िन्दगी भर के लिए दर्द का रिश्ता छोड़ा
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोये
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब् रोये
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