मरहूम हाजी सलाहुद्दीन मालिक
पैदाइश : 01 /06 /1965 (नसीराबाद )
वफ़ात : 29 /10 /2023 (जलगांव ) तद्फीन : 30 /10 /2023 सुबह ११ बजे बड़ा क़ब्रस्तान जलगांव
मौत उस की है करे जिस का ज़माना अफ़सोस
यूँ तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिए
सलाहुद्दीन का मतलब होता है "दींन की पुकार " या " वह इंसान जो लोगों को फायदा पुह्चायें "
मरहूम हाजी सलाहुद्दीन मालिक साहेब में ये दोनों खूबियां कूट कूट कर भरी थी। माशाल्लाह मरहूम क़ुरान की तफ़्सीर ,तशरीह ,और लोगों को अरबी Grammar सिखाने में अपने आप को मसरूफ रखते थे। मरहूम के दो निजी channels तज़्कीर बिल क़ुरान और फ़हम क़ुरान भी थे जिन पर मरहूम सलाहुद्दीन रोज़ाना क़ुरान की तफ़्सीर और अरबिक grammar की इशाअत करते रहते थे। कुछ लोगों ने ग्रुप में उन पर तंज़ भी किया उनेहे इन कामों से रोकने की कोशिश भी लेकिन बक़ौल शायर
"न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह " मरहूम अपना काम जूनून की हद तक करते रहे और इस दुनिया से अपनी आक़ेबत सवार कर रुखसत होगये।
उनकी मौत पर हर ग्रुप में उनको ताज़ियत के पैग़ामात का एक सैलाब आया , जो थमने का नाम नहीं लेता था। तब पता चला वो हमारे रिश्तेदारों में कितने हर दील अज़ीज़ थे। बैरून मुल्क से भी खान मोहम्मद (दुबई) नईम शैख़ और उनके पुराने साथियों के messages आये।
खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में
मालिक सलाहुद्दीन की पैदाइश नसीराबाद की है। इब्तेदाई तालीम एरंडोल उर्दू स्कूल में हुयी। साबू सिद्दीक़ इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की तालीम मुक़्क़मिल की। मुख़्तसर अरसा मुम्ब्रा में जॉब किया और
मुझ को जाना है आगे हदे परवाज़ से के मिस्दाक़ सऊदी अरबिया की जानिब उड़ान उडी। १० साल वाटर पाइप लाइन प्रोजेक्ट पर काम किया। हज उसी दौरान अदा किया और जेद्दा बेस होने की बिना पर कई उम्रे भी अदा किये। इसी सर ज़मीन पर कई मुक़द्दस मुक़ामात की सैर की। मक़्क़ा ,मदीना ,मैदाने बद्र ,तबूक वग़ैरा ,मैं ने उनके हातों से बने सऊदी के नक़्शे अपनी आँखों से देखें है. मैं ने कई बार सऊदी मक़ामात के बारे में सवालात करके उनसे कीमती मालूमात भी हासिल की है।
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
अगले १५ साल मरहूम सलाहुद्दीन दुबई में कंस्ट्रक्शन कंपनी में अपनी खिदमत देते रहें। ज़ियादा वक़्त उनका दुबई ओमान बोर्डेर पर गुज़रा। वहां भी वह लेबर कैंप की मस्जिद में क़ुरान की तफ़्सीर करते थे। कई वीडियो उनोहने मुझे अपनी दुबई तफ़्सीर के share किये थे।
सोहबतें सालेह तुरा सालेह कुनद
मरहूम को किताबों से जूनून की हद तक लगाव था। इस दौर में जब "जिसे भी देखिये वह अपने आप में गुम है " लोग व्हाट्स उप सोशल मीडिया पर वक़्त बर्बाद करते नज़र आते हैं ,में ने उन के घर की विज़िट के दौरान तफ़्सीर क़ुरान के मुख्तलिफ मजमुवे ,तारीख इस्लाम पर लिखी किताबों की एक लायब्ररी देखि उसदिन ,दिल बाग़ बाग़ होगया के इस दौर में भी ऐसे लोग मौजूद है। उनका अपना बेड रूम ही उनका स्टूडियो हुवा करता।
उनकी दोस्ती और ताल्लुक़ात भी मारूफ हस्तियों से थी। प्रोफेसर हमीदुद्दीन मराज़ी जो कई किताबों के लेखकः है और ३० सालों से जम्मू यूनिवर्सिटी में "Religious Studies " के प्रोफेसर है मरहूम को बहुत अज़ीज़ रखते थे और वो भी प्रोफेसर साहेब की बहुत इज़्ज़त करते थे।
लेकिन तेरे ख्याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा
इन सब मसरूफियतों के बावजूद मरहूम सलाहुद्दीन मलिक ने अपनी औलाद की तरबियत भी उम्दा तरीके से की। माशाल्लाह बेटा सऊद इंजीनियरिंग ग्रेजुवट है बहुत जल्द post graduation के लिए कनाड़ा रवाना होने वाले है। बेटी सनया भी इंग्लिश लिटरेचर में M.A हैं ,और आर्ट टीचर भी है, और बहुत जल्द अज़्दवाजी रिश्ते में बंधने वाली है। कुछ ख्वाब ज़िन्दगी में पुरे नहीं हो पाते ,अल्लाह की मस्लेहत ,लेकिन नेक औलाद और फर्माबरदार ज़ौजा उन ख्वाबों की ताबीर ,परेशानियों,नामवाफ़िक़ हालात के बावजूद हकीकत के रूप में बदल देती है , जो मरहूम की रूह को सकून का सबब बन जाता है।
पहुंची वही पे ख़ाक जहाँ का खमीर था
मरहूम हाजी सलाहुद्दीन भी नसीराबाद में पैदा हुए थे और ,१० किलोमीटर के दायरे जलगांव में आराम फार्मा है। अल्लाह मरहूम की रूह को करवट करवट जन्नत नसीब करे।
आमीन सुम्मा आमीन
Allah tala Marhum ki magfirat farmaye aur jannatul firdaus me ala se ala. jaga naseeb ata farmaye Aameen
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