मंगलवार, 3 जनवरी 2023

Javed Ahmed

  1. जावेद अहमद
जावेद अहमद ,डॉ वसिफ अहमद ,रागिब अहमद  


 कहानी मेरी रउदादे जहां मालूम होती है 

जो सुनता है उसीकी दास्ताँ मालूम होती है 
हर शख़्स की ज़िन्दगी में ,पैदाइश ,बचपन ,जवानी ,शादी ,औलाद ,बुढ़ापा और मौत मुश्तरक चीज़ें हैं। लेकिन जिंदगी  में उरूज,ज़वाल ,,ग़म ख़ुशी ,कामयाबी ,नाकामयाबी ,शोहरत ,इज़्ज़त ,ज़िल्लत अपने नसीब से ,मुख्तलिफ नौइयत में मिलती हैं। इसी का नाम ज़िन्दगी है। 
हयात नाम है यादों का तल्ख़ और शीरीन 
 जावेद हम सब का छोटा भाई है। अजीब इत्तेफ़ाक़ ,भाइयों में ४ साल का उम्र में फ़र्क़ है।  नाम भी वालिद साहब ने संगीत के सात सुरु की तरह सुरीले रखे हैं । अदीबुन्निसा ,शरीफुन्निसा ,सादिक़ अहमद ,वासिफ अहमद ,वाक़िफ़ अहमद ,रागिब अहमद और जावेद अहमद। अपने हर बेटे/बेटी को अब्बा पुरे नाम (जावेद अहमद /रागिब अहमद ) से पुकारा करते थे ,इसी लिए किसी के नाम के साथ उर्फियत नहीं लगी ,नाम नहीं बिगड़ा।
       वालिद साहब का अरबी क़ुरआन था जिस के आखरी खाली पन्ने पर हम सात बहनों भाइयों की तारीख़ पैदाइश  ,जगह ,वक़्त पैदाइश लिखा था । यहां भी मरहूम क़मरुद्दीन साहेब की ज़हानत की  झलक दिखाई पड़ती है। उस ज़माने में होता ये था स्कूल एडमिशन के वक़्त उस्ताद १ जुलाई जन्म तारीख लिख कर एडमिट कर लिया करते थे। मेरी अपनी क्लास में ८०% बच्चों का जन्म दिन १ जुलाई १९५४ था।  उसी क़ुरान पर जावेद की पैदाइश १९५८ में नवापुर में हुयी थी लिखी देखि थी । वालिद का नाम क़मरुद्दीन शैख़ और वालिदा का नाम बिस्मिल्ला था। ५ साल की मासूम उमर में वालिदा बिस्मिल्ला इंतेक़ाल कर गयी। मामू अफ्ज़लोद्दीन मुमानी आसिया को जावीद से  इन्तहा दर्जे की उनसियत थी ,और उसे गोद भी लेना  चाहते थे। लेकिन भड़भूँजा जहां मामू मुमानी रहते  थे ,आदिवासी बस्ती थी और तालीम का इंतेज़ाम नहीं था वालिद क़मरुद्दीन ने दूर अंदेशी दिखाते हुए नाज़ व नेमत  की ज़िन्दगी पर तालीम को फ़ौक़ियत दी। 
जावेद अहमद ने बचपन ही से लाउबाली तबियत पायी थी नस नस में शरारत भरी थी। अम्मा के इंतेक़ाल पर जावेद का स्कूल में दाख़िला एक साल देरी से किया गया। लेकिन वालिद साहब ने  एक साथ दो क्लासेज (1st और 2nd ) का इम्तेहान ,जावेद से पास करवाके कमी पूरी करवादी। यहाँ भी वालिद साहब की  तालीमी फ़िक्र नज़र आती है। जलगाव् काटिया फ़ैल में रूम नंबर ३२० में हमारी रिहाइश थी। बहन शरीफुन्निसा ने अम्मा के इंतेक़ाल पर हम सब भाइयों की परवरिश का ज़िम्मा अपने सर उठा लिया। 
मुहल्ले का हर बच्चा उसका दोस्त था। क्रिकेट, कंचे ,भौरा ,पतंग हर खेल में  उनेह महारत थी। साल में एक बार जलगांव में पोले के त्यौहार पर बैलों की दौड़ हुवा करती। जावेद साहब ने भी बैलों के साथ दौड़ लगायी ,मोहल्ले के शरीर कुत्ते ने उनेह कांट लिए। 14 बड़े बड़े इजेक्शन पेट में लेने पड़े। मुमानी अम्मा के साथ बरोडा शादी attend करने जा रहे थे। रस्ते में बस रुकी सब चढ़ गए ये पीछे रह गए। बस के पीछा करने लगे ,एक ट्रक वाले ने उनेह बस ओवरटेक करके मुमानी अम्मा के सपुर्द किया। 
  सायन हॉस्पिटल में जावेद मिया को उंगली की  minor surgery के लिए एडमिट किया गया। शाम जब उसे हम मिलने पुहंचे जनाब हॉस्पिटल से ग़ायब पाए गए। उस वक़्त डॉ वासिफ के दोस्त सायन हॉस्पिटल में जॉब कर रहे थे। उस ज़माने में mobile भी नहीं था। हॉस्पिटल के स्टाफ ने चप्पा चप्पा ढूंढ लिया नहीं मिले। उस समय में हम लोग BARC स्टाफ क्वॉर्टर्स में रहते थे। घर लौट कर जावेद को घर में मौजूद पाया। पशिमान हो रहे थे कोई जवाब उनके पास नहीं था। 
बचपन में जावेद अहमद कद से छोटा था। फिल्म खिड़की पर ,बस स्टेशन पर कितनी भी लम्बी क़तार हो झट घुस कर टिकट ले आते 
11 नंबर स्कूल जलगांव से फाइनल एग्जाम पास कर  9 जमात तक जलगाव में एंग्लो उर्दू स्कूल से  पढ़ाई की। बड़े भाई सादिक़ अहमद ने उनका दाखला खैरुल इस्लाम उर्दू स्कूल कुर्ला में करवा दिया। मेट्रिक पास करने के बाद महाराष्ट्र कॉलेज बेलसिस रोड से B. A तक तालीम  मुंबई यूनिवर्सिटी से मुक़म्मिल की। 

    जस्तजु जिस की थी उसको तो न पाया हमने 
     इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने 
 अहमद मिल  दो टाकी (मुंबई )में स्टोर कीपर की जॉब से जावेद ने शुरवात की। मेरी कंपनी यूनाइटेड कार्बन १ साल स्ट्राइक की वजह से बंद रही। उस वक़्त जावेद अहमद सीसा पिलाई दीवार की तरह मुझे सहारा देते रहे ।मुझे टूटने फूटने से बचा लिया। अम्मा के इंतेक़ाल के बाद हम दोनों में क़ुरबत बढ़ गयी। 
 कुवैत ,सीरिया और अबुधाबी में भी  जावेद अहमद सालों जॉब करते रहे, और अपनी जद्दो जहद का सिलसिला जारी रखा। ४ साल पहले वो अबू धाबी के जॉब रिटायर होकर लौटे है। 
हम हुए तुम हुए के मीर हुये 
उनकी ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए 
  जावेद अहमद यास्मीन से अज़्दवाजी रिश्ते में मुनसलिक हुए । फिर जावेद और यास्मीन ने जिस तरह बच्चों की परवरिश की काबिले तहसीन है। जावेद का सालों घर से दूर रहना सिर्फ इस लिए ,के हलाल रोज़ी का हुसूल हो सके। यास्मीन का जावेद की ग़ैर हाज़री में ,बच्चों की अखलाक़ की निगहदाश्त ,बेहतरीन अदारों में बच्चियों की तालीम ,घरेलू मामलों में बच्चियों  की तरबियत ,इन तमाम बातों का  सहरा ,यास्मीन के सर जाता है। रूही का post graduate होना,सदफ का Pillai कॉलेज से MBA  करना , ईशा (दिन की आखरी नमाज़ ) भी उसके  नाम की तरह  माशाअल्लाह  ख़ानदान की पहली ऐडवोकेट बन गयी है 
     अल्लाह के रसूल की हदीस  है, जिस ने तीन लड़कियों की पैदाइश पर ख़ुशी मनाई ,उन की अछि तरबियत की और उनेह अछे खानदान में बियाह दिया वह जन्नत का मुस्तहक़ हो गया। यक़ीनन जावेद और यास्मीन जन्नत के मुस्तहक़ हो गए हैं। 
     रिटायरमेंट के बाद जावेद अहमद ,सानपाडा नवी मुंबई में पुर सुकून ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं।  अल्लाह से  दुआ गो हूँ उनेह सेहत के साथ लम्बी उम्र अता हो। अमीन सुम्मा आमीन। 

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