ये तहरीर मुझे तहरीम की हल्दी की रस्म के दिन पढ़नी थी
१५ नवंबर २०२३ बमुताबिक़ १ जमादि उल अव्वल तहरीम की शादी की दावत हम दोनों (शगुफ्ता और मुझे ) को तवील अरसे पहले मिल चुकी थी। और में ने अपनी डायरी में नोट भी कर लिया था। आठ रोज़ पहले साइमा और खालिद ने याद दहानी कराई। साइमा ने ज़ोर दे कर कहा "भाई जान शादी में शरीक होंगे, तो शादी को चार चाँद लग जायेंगे। में ने उससे कहा "मेरी आँखों में भी चार चाँद लग लग गए हैं, मोती बिंदु (cataract ) के ऑपरेशन के बाद दोनों आँखों में लेंस लग गए हैं और ५० साल पुराना चश्मा भी छूट गया है "फिर ख्याल आया डॉ ने मुझे कुछ रोज़ सफर के लिए मना किया है। बाकायदगी से दवा डालनी होंगी। सोचा मैं नहीं जावूंगा तो मेरा छोटा भाई खालिद नाराज़ होजाएंगा । उसकी नाराज़गी बर्दाश्त कर लूंगा। बहन साइमा की नाराज़गी का क्या करूँगा सोचा उसे भी मना लूंगा। लेकिन कुछ रिश्ते अजीब होते हैं। तहरीम से दो रिश्तों से जुड़ा हूँ वो भांजी भी है और भतीजी भी। फिर शादी में आने का फैसला कर ही लिया।
जलगांव ,एरंडोल ,नवापुर ,भड़भूँजा जाने के बहाने ढूंढ़ता रहता हूँ। में नहीं ढूंढ़ता बहाने मुझे ढूंढ लेते हैं। क्यूंकि मुन्नी में मुझे गोरी मुमानी दिखाई देती है, सबीना में मुमानी अम्मा ,साजिद /खालिद में खालू जान ,अज़हरुद्दीन में दूल्हे मामू ,ज़की में गोरे मामू। हम चारो भाइयों को ननिहाल से अक़ीदत की हद तक क़ुरबत रही है। मामू,मुमनिया ,ख़ालाये , खालू भरा पूरा ख़ानदान था। अम्माँ की वफ़ात के बाद सभी हम पर ,बे इन्तहा शफ़क़त ,मोहब्बत ,इनायतें और करम निछावर करते रहें। धीरे धीरे सब हम से बिछड़ गए। सेहरा में नखलिस्तान की तरह एक निशान बचा है खाला जान में. उनेह करुणानिधि कहता हूँ करुणा (महबतों ) का मौजे मरता समंदर। जब भी उन से मिल कर बिछड़ता हूँ लगता है
तेरी क़ुरबत के लम्हे फूल जैसे
मगर फूलों की उमरें मुख़्तसर हैं
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
शदी में मारूफ शख्सियतें शरीक हुयी हैं। शारिक शीराज़ी वतन शीराज़ है ,हिंदुस्तान में अहमदाबाद को अपना वतन बनाया ,और अब सालों से अमेरिका में अपनी रिहाइश कर रखी है ,नफ़स ब नफीस तशरीफ़ लाये हैं। हर दिल अज़ीज़ डॉ वासिफ अहमद दुबई से तशरीफ़ लाये हैं। तहरीम की चाचा चाची ,फूफा फूफी ,चाचा ज़ाद बहने भाई ,मामू ज़ाद सूरत ,नवापुर ,कल्याण ,धूलिया और जलगाओं से शादी में शिरकत के लिए आएं हैं। भरा पूरा ख़ानदान है।
वो बाग भी क्या बाग़ जहाँ तितलियाँ न हो
वो घर भी कोई घर है जहाँ लड़कियां न हो
क़ुदरत का उसूल है लड़कियों को जुदा होना ही पड़ता है। जानता हु ,ख़ाला जान ,खालिद और साइमा के लिए तहरीम की जुदाई तकलीफ दे ज़रूर होंगी ,लेकिन उसके रोशन मुस्तकबिल और नयी ज़िन्दगी की शुरवात पर दिल मुत्मइन भी होंगे । एक तालीम याफ्ता,संजीदा और तहज़ीब याफ्ता ख़ानदान की बहु बनना भी खुश नसीबी की बात होती है।
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो ये दुआ याद आयी
हम सब की दुवायें ,नेक ख्वाहिशात बेटी तहरीम के साथ हैं , नयी ज़िन्दगी की शुरुआत पर दिल की गहराइयों से मुबारकबाद।
आमीन सुम्मा अमीन
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