सफ़वान बशीर सैय्यद
मंगलवार, 24 नवंबर 2020
मंगलवार, 17 नवंबर 2020
किसी बहाने तुमेह याद करने लगते है
मरहूम अल्हाज सईद अहमद सय्यद |
Center late Sayaeed Ahmed ,Right Late Raziuddin ,Left Advocate Niaz ,Front Late Ghulam Mohiuddin |
Tree plantation on occasion of death Anniversary of Late Sayeed Ahmed |
मरहूम अल्हाज सईद अहमद अजमेर शरीफ दरगाह में फातिहा ख्वानी करते हुवे |
गुरुवार, 12 नवंबर 2020
सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़
सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़ |
सिदरा (बेरी का पेड़ )कायनात की की इन्तहा है। जिस के आगे फ़रिश्तो के पर भी जल जाते है। हर इंसान के नाम में उसके असरात आते है। अल्लाह के रसूल (स अ स ) ने फ़रमाया "अपनी औलाद के अच्छे नाम रखा करो। नाज़िम और निकहत ने बहुत सोच कर बड़ा प्यारा नाम रखा था। दोनों ने बचपन से सिदरा की तरबियत इन्तेहाई समझदारी ,खुश असलूबी से की है। सिदराने भी माशाल्लाह अपने आप को हमेशा हिजाब में रखा। टेबल टेनिस की बेहतरीन खिलाडी है। बेहतरीन मुस्सविर (आर्टिस्ट )है। दुबई में अक्सर नुमाईश (exhibitions ) में उसकी तस्वीरें अच्छे दामों पर बिकती है। Swimming (तैराकी )जानती है। बेहतरीन खाने बनाना जानती है। माशाल्लाह हर फन मौला है।
गुरुवार, 5 नवंबर 2020
शरीफुद्दीन सय्यद उर्फ़ बच्चू भाई नवापुर वाले
मरहूम बच्चू भाई अपने करीबी स्वरुप सिंह नाइक माजी वन मंत्री के साथ
अपने पचास साला पुराने दोस्त गौहर पठान के साथ |
गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020
ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती
दाएं से बाएं जोए अंसारी ,ऐजाज़ सिद्दीकी ,कृष्णा चंद्र ,जान निसार अख्तर |
मरहूम अल्हाज ज़ैनुलआबेदीन की एक यादगार तस्वीर |
ब्रूक बांड के स्टार सेल्समैन ऑफ़ द इयर १ किलो की सिल्वर ट्रॉफी इनाम |
सब कहां कुछ लाला व गुल में नुमायां होगयी
ग़ालिब
बुधवार, 21 अक्टूबर 2020
बिछड़े सभी बारी बारी
इंदिरा गाँधी का इस्तकबाल करते मरहूम अफ्ज़लोद्दीन |
मरहूम वसीम और अफ़ज़लोद्दीन सय्यद मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी की गुल पोशी करते हुवे |
आसिया बेगम ,सईद अहमद ,अफ्ज़लोद्दीन,ग़ुलाम मोहियुद्दीन |
वालिद का नाम :इकरामुद्दीन सैय्यद ,वालिदा का नाम :मुमताज़ बी
बीवी का नाम : आसिया बेगम
भाइयों के नाम : ग़ुलाम मोहियुद्दीन सैय्यद ,मोहम्मद युसूफ सैय्यद ,सईद अहमद सैय्यद
बहनो के नाम : बिस्मिल्ला बी ,जीलानी बी ,अकीला बी
दुआ देती है राहें आज तक मुझ आबला पॉ को
मेरी पैरों की गुलकारी बियाबां से चमन तक है
हिंदुस्तान में आज़ादी की जंग उरूज पर थी १९४२/१९४३ में मरहूम अफ्ज़लोद्दीन ने नंदुरबार से मेट्रिक का इम्तेहान पास किया। बिस्मिल्ला सर जो अंजुमन इस्लाम मुंबई में टीचर रिटायर हुए ,कई साल हॉस्टल SUPRINTENDENT का काम भी अंजाम दिया , नंदुरबार से belong करते है बताते है के मरहूम अफ़ज़लुद्दीन सय्यद नंदुरबार की अली साहेब मोहल्ले की छोटी खानकाह की मस्जिद में बैठ कर मैट्रिक की पढ़ाई किया करते थे। मरहूम ने मैट्रिक के बाद prohibition department से अपने career की शुरुवात की। कई दिन तक मरहूम की शाहदे में पोस्टिंग भी रही।
जिस दिन चला हु मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ।
गवर्नमेंट की नौकरी छोड़ कर मरहूम ने भड़भूँजा में छोटी सी चंद झोपडो पर आबाद आदिवासियों की बस्ती जो चारों तरफ से से जंगल से घिरी थी ,रातों को शेर दहाड़ते, अपनी शरीक हयात आसिया बी जो पचास साल मरहूम के दुःख सुख में शरीक रही ,छोटा सा घर बनाकर , पड़ोस में दुकान की बुनियाद डाली। भड़भूँजा रेलवे स्टेशन ४० मीटर घर से दुरी पर था। सूरत भुसावल कुल चार पैसेंजर ट्रैनस का halt था। रेलवे के लिए टिकटिंग एजेंट बने। बीज दाल कर दरख्त की आबयारी करने लगे। भाइयों की सूरत में दो ( ग़ुलाम मोहियद्दिन ,सईद अहमद )सिपहसालार मयस्सर हुवे।
में अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग आते गए और कारवां बनता गया
मरहूम अफ्ज़लोद्दीन उर्फ़ लाला मिया कई ख़ूबीयों को अपने किरदार में समेटे हुवे थे। ख़ूबरू , संग मर मर की तरह सफ़ेद रंग ,कद भी निकलता ,नीली आँखों में शफ़क़त झलकती। आवाज़ में बला का जादू था। ज़िन्दगी भर कॉंग्रेसी रहे। पार्टी की जड़े निज़र ,उछल ,व्यारा सुरत ज़िले में मज़बूत की। एक सिपाही की तरह अपने आप को पार्टी के लिए वक़्फ़ कर दिया था। कांग्रेस पार्टी के उस वक़्त के गुजरात पार्टी के प्रेजिडेंट जीना भाई दर्ज़ी से उनका याराना था। MLA /MP इलेक्शन के लिए टिकट की तक़सीम के वक़्त उनेह खास तौर पर बुलाया जाता। इलेकशन के लिए बड़ी बड़ी RALLIES में उनेह इंदिरा गाँधी ,मुख्यमंत्री के साथ स्टेज पर बिठाया जाता ,लोग बड़े ग़ौर से उनको सुनते। सारे गुजरात में वह तापी के गाँधी के नाम से जाने जाते। उस समय की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ,मुख्या मंत्री चिमन भाई पटेल ,माधव सिंह सोलंकी ,अमर सिंह चौधरी ,बाबू भाई पटेल उनेह नाम से जानते थे। उनकी इन खिदमात पर उनेह पार्टी ने नवाज़ा भी बहुत। उनपर बिना मांगे ओहदों की बरसात होती रही जैसे।
१) तालुका पंचायत प्रमुख
२)वाईस प्रेजिडेंट कांग्रेस गुजरात स्टेट
३ )मेंबर हज कमेटी गुजरात
४)सरपंच भड़भूँजा
उनकी सिफारिश पर कई लोगों को सरकारी नौकरी मिली। उनकी एक चिठ्ठी पर लोगोके ट्रांसफर ,तरक़्क़ी होजाया करती थी। भड़भूँजे में इलेक्ट्रिसिटी उन्ही की बदौलत आयी। सूरत भुसावल फ़ास्ट उनके recommendation पर भड़भूँजे में halt करने लगा। अनंतपुर ,खेकड़ा ,जमकी आश्रम स्कूल्ज में फण्ड उनकी कोशिशों से आता था। आज आदिवासियों के बच्चें इनिह आश्रम शालाओं से पढ़ कर एयर इंडिया ,और गवर्नमेंट में सेक्रेटरी ,अंडर सेक्रेटरी की पोस्ट पर काम कर रहे है।
मरहूम की कोई औलाद न थी पर अपने भतीजो भांजो पर अपनी सारी मोहब्बत नौछावर कर दी। १९६४ में अपने छोटे भाई सईद अहमद और भांजे सादिक़ अहमद को बॉम्बे के इस्माइल युसूफ कॉलेज में ,इंटर में admission के लिए उनके साथ बॉम्बे गए एडमिशन करवाया ,हॉस्टल में भी दाखला कराके लौटे। डॉ वासिफ को वर्धा मेडिकल में एडमिशन मिलने पर कदम कदम पर उनकी मदद की ,माली इम्दाद करते रहे। डॉ राजेंद्र भंडारकर को भड़भूँजा में dispensary चलाने के लिए जगह provide की और उनकी हर मुमकिन मदद की। डॉ साहेब ने भी आखरी उम्र में मरहूम की बेटे की तरह खिदमत की।
मरहूम अफ्ज़लोद्दीन की ज़िन्दगी बड़ी disciplined थी। सुबह उठकर फजर के बाद वाकिंग करते। सुबह नौकर कुवें से ताज़ा ताज़ा पानी ले आता, उसे पीकर दिन की शुरुवात करते। नाश्ते के बाद अपनी डायरी खोल कर दिन के प्रोग्राम देख लेते। घर ही में एक कमरे को ऑफिस बना रखा था ,मुलाक़ातियोय का सिलसिला शुरू होजाता।गाँव के झगडे चुकाते । लोगो की परेशानी सुन कर उसका हल बताते । लोगो के लिए सिफरेशात की चिट्टिया बना कर देते। लंच तक ये सिलसिला चलता रहता। इलेक्शन के मौसम में जो सिलसिला कभी थमता नहीं था। कई सौ तादाद में लोग मिलने आते। घर में खाना बनता ,न कोई होटल था घर में आसिया बेगम नौकरों की फ़ौज के साथ खाने के इंतेज़ाम में लगी रहती। कई कई चूलहो पर बड़ी बड़ी देगों ,तपेलो में खाना बनता। सौ लोगो के लिए खाना बनता अक्सर १५० लोग खा कर जाते। गुरदवारे की तरह हर दम लंगर जारी रहता ,चुलाह गर्म रहता।
उनके रुसूख़ जान पहचान से घर का कारोबार भी दिन ब दिन चमकता रहा। वैगन भर बाम्बू से भरे टट्टे अहमदाबाद रोज़ाना रवाना किये जाते। उकाई डैम से टनो मछी आती बास्केट में पैक कर कलकत्ता हावड़ा ट्रैन से रवाना की जाती। एक मेला सा लगा रहता, गहमा गहमी का आलम रहता। कई सौ लोगो को रोज़ी रोटी इस बदौलत मिलती।
जीते है शान से
मरहूम को अच्छी नस्ल के कुत्ते पलने का बहुत शौक़ था। घर में हमेश ब्लड होंड ,अल्सेशियन कुत्ता ज़रूर पाया जाता। घर के बाहेर राजदूत , बुलेट और हौंडा इम्पोर्टेड मोटर साइकिल पायी जाती
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह
मरहूम की जिंदिगी उनके पहने खादी के बेदाग़ क़मीज़ो की तरह शफ़फ़ रही। तमाम उम्र खुलूस से लोगो की खिदमत करते रहे। १९८३ में अपनी अहलिया के साथ हज भी किया। आखरी उम्र में सियासत से किनारा कशी (रिटायरमेंट )कर ली थी। १९९५ तक भड़भूँजे में क़याम रहा। आदिवासियों को पानी दम कर के देते ,सांप बिछु के काटे का इलाज जानते थे। अपनी अहलिया आसिया बेगम की सेहत की खराबी की वजह से नवापुर में शिफ्ट होगये थे। १९९९ में अहलिया आसिया बेगम का इंतेक़ाल हुवा। २००१ में खुद ने भी इस जहाने फानी को अलविदा कहा ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है। अल्लाह मरहूम को जन्नत नसीब करे।
में ज़माने में चंद ख्वाब छोड़ आया था
उनके नक़्शे क़दम पर मोहसिन सईद अहमद सैय्यद मरहूम का भतीजा , सोनगढ़ में पत्रकार है और गुजरात में कांग्रेस पार्टी से जुड़ कर पार्टी को ज़िंदा करने की कोशिशों में लगा है। अल्लाह कामयाबी अता करे।
शनिवार, 17 अक्टूबर 2020
khuda bakhshe bahut see khubiya thi marne wale me
खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में
मरहूम सैयद मोहम्मद अब्बास |
सोमवार, 5 अक्टूबर 2020
sher Ali Sayed
मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा
नाम : शेर अली शौकत अली सय्यद
मंगलवार, 29 सितंबर 2020
QISSA CHAR DARWESH
Marhum Inspector Sher Ali Sayed |
इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे, उठ के चले
बॉम्बे में SOFTSULE PVT LTD ,United Carbon India , Rama Petroleum में ज़िन्दगी के लंम्बे २० साल गुज़ारे। बहुत कुछ सीखा। किस्मत से Syria (शाम) में oil field में ८ साल shell petroleum के साथ Derra Zor मक़ाम फील्ड पर गुज़ारे। बेहतरीन तजुर्बा रहा। बहुत कुछ सीखा।
११ साल सूडान में GREAT NILE PETROLEUM में काम किया। कंपनी खूबसूरत जंगलों के बीच थी ,कुदरत को करीब से देखने का मौक़ा मिला। खुशकिस्मत रहा local (मुक़ामी ) सुडानियों को oil field operation में माहिर कर COMPANY उनके हवाले कर आये। लेकिन वहां भी अमेरिकन politics काम कर गयी। मुल्क को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया गया । crude oil की दौलत साउथ सूडान के हवाले कर दी। नार्थ सूडान मुस्लिम मुल्क को कुछ भी हाथ न लगा।
१९८२ में शगुफ्ता से शादी हुवी माशाल्लाह अल्लाह ने दो लड़कियों से नवाज़ा और हमे जन्नत का हक़दार बना दिया। दोनों बेटियां शादी के बाद अपने ख़ानदान के साथ अमेरिका और Canada में खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं। हम दोनों मियां बीवी (में और शगुफ्ता )नेरुल नवी मुंबई में सुकूनत पज़ीर है। मरकज़े फलाह नेरुल में काम करके कौम के बच्चों मुस्तकबिल को सवारने की कोशिश में लगे रहते है।
गुरुवार, 17 सितंबर 2020
lubna lasne
17th September को मोदी की पैदाइश हुयी थी ,Cheryl strayed मशहूर अमेरिकन Author ने भी ईसी दिन जनम लिया था। Virgo इन लोगो की zodiac sign होती है। इन लोगों के बारे में कहा जाता है के ये बड़े Talented और Modest होते हैं। हमारी बाजी लुबना भी इन सभी खूबियों से आरास्ता, मज़्ज़यन (decorated ) है। सादा मिज़ाज ,ज़िंदा दिल और ज़िन्दगी से भरपूर।
लुबना की पैदाइश भी 17th September को होई थी। लुबना का मतलब होता है Elegance , जन्नत में बहने वाली दूध की नहर। मशाल्लाह हमारी लुबना शेख ख़ानदान की पहली चश्म व चराग़ है, अल्लाह ने उसे बेहतरीन दिमाग़ दिया है ,बहुत सारी खूबियों की मालिक है। आने वाली नसल के लिए वो मश अले राह (torch bearer ) साबित हुयी है। हमारे खानदान में American citizenship मिलाने वाली पहली फर्द साबित हुवी है। कुवैत में जनम लिया वहां schooling पूरी करने के बाद ग्रेजुएशन India से और Post Graduation अमेरिका से किया। अपनी कंपनी में भी नाम और मक़ाम पैदा किया। सोने पे सुहागा हैदर लसने जैसा चाहने वाला शोहर मिला । रिदा और राहील की सूरत में दो नेमतें अल्लाह ने इनायत की और दोनों को बेहतरीन तालीम ,अख़लाक़ और अमेरिका में रहते हुवे इस्लाम और क़ुरान के नूर से रुशनास करवाया। माँ बाप की खिदमत ,देख भाल में भी लुबना ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साबित किया नेक फर्माबरदार औलाद कैसी होती है।
आज सालगिरह के अवसर पर लुबना के लिए मुबारकबाद के messages की झड़ी लगी हैं। शायद हम सब में इतनी दूरी न होती, हम सब करीब होते तो लुबना का पूरा मकान गुलदस्तों से भर गया होता, लेकिन इन खूबसूरत पैग़ामात में जो दिली जज़्बात पिन्हा (hidden ) हैं उन की महक उनकी खुशबू का अहसास लुबना तुम्हें ज़रूर होगया होंगा।
में कुछ न कहु और ये चाहूँ के मेरी बात
खुशबु की तरह उड़ के तेरे दिल में उतर जाये
हम सब तुम्हारे लिए दुआ गो हैं। रौशन मुस्तकबिल के लिए ,सेहत ,तंदुरुस्ती और तवील उमरी (long life ) के लिए। "यार ज़िंदा सोहबत बाक़ी " ज़िन्दगी रही तो मिलेंगे गुज़रे हुवे इन लम्हात इन पलों का मदावा ,भरपाई कर लेंगे (इंशाल्लाह )
शनिवार, 12 सितंबर 2020
Shehzad Khan
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए
पस्ता कद (short height ), गोल चेहरा ,सफ़ीद रंग ,गरजदार आवाज़। खान साहेब हमेशा सफ़ेद पठानी ड्रेस पहने रहते। सर पर टोपी ,टोपी के ऊपर बड़ा रुमाल ओढ़े , लपटे रहते। छोटे छोटे क़दमों से तेज़ तेज़ चलने की उनकी आदत थी। कृष्ण कमल से जामे मस्जिद नेरुल तक पांचो वक़्त नमाज़ के लिए , कभी अपनी कार ले आते, कभी कोई अल्लाह का बंदा उन्हें लिफ्ट दे देता। अकेले चल कर आते तो ज़बान पर चुपके चुपके अल्लाह का ज़िक्र शुरू रहता। उनकी वजह से मस्जिद में अल्लाह वालो की आमद का सिलसिला जारी रहता। मौलाना अब्दुला फूलपुरी , मौलान हिफ्ज़ुर रेहमान मेरठी ,कितने जय्यद आलिम ,फ़ाज़िल लोग आते रहे हैं और तक़रीर शुरू करने से पहले मरहूम शहबाज़ खान अपने मख़सूस अंदाज़ में उनका तआर्रुफ़ introduction इस जुमले से शुरू करते "भाइयो बुज़र्गों दोस्तों " उन बुज़र्गों का background उनका खानदानी सिलसिला रवानी से बयांन करते ,लोगो को तरग़ीब दिलाते के अगर बयांन सुन कर जाये तो कितना फैज़ उनेह हासिल होगा ,और ज़िंदगियों में बरकत आएगी ,तब्दीली आयेगी। लोग भी बड़ी तवज्जेह से बायान सुनते। मरहूम की एक खूबी थी मदरसों मस्जिदों के सफ़ीरों के साथ नमाज़ के बाद बैठ कर लोगों से चंदे के लिए दरख्वास्त करना , अपना बड़ा रुमाल बिछा कर जान पहचान वालों को नाम लेलेकर आवाज़ें देते ,और में ने देखा है उनकी अवाज़ पर नेरुल की अवाम ने लब्बैक कहा है , अपनी जेबे खाली की है। मरहूम controversy से हमेशा दूर रहे। जब मस्जिद में जमात के ताल्लुक़ से मामला तूल पकड़ा उनसे पूछा गया कहने लगे " शैतान का वस्वसा है इंशाल्लाह उल अज़ीज़ मामला सुलझ जायेगा। डॉ शरीफ ने १५ दिन उमरे का सफर मरहूम के साथ किया था आज सुबह उनके मरहूम शाहज़ाद खान के बारे में तास्सुरात जानने की कोशिश की गयी उनोह ने एक जुमले में अपना मुदुआ बयान किया "मरहूम खान साहब को देख कर अल्लाह की याद ताज़ा होजाती थी। मरहूम चाय और खीमे के शौक़ीन थे। कहा करते "जिस तरह कार के लिए पेट्रोल चाहिए उसी तरह मुझे चाय की तलब है "
Quran the truth की ऑफिस में दरसे क़ुरान में हमेश मरहूम शेह्ज़ाद खान शरीक हुवा करते थे। क़ुरान की तफ़्सीर पर भी आप को command हासिल था। अतनी serious महफ़िल में भी हलके फुल्के मज़ाकी वाक़ेआत को तफ़्सीर से जोड़ कर महफ़िल को गुलज़ार कर देते थे।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये
मरहूम खान साहेब बच्चों के साथ बचे बनजाते थे और हंसी हंसी में बच्चों को नसीहत आमेज़ पैग़ाम पोहंचा देते थे। मरहूम दर्द मंद दिल रखते थे। नमाज़ के बाद पानी पर दम करने के लिये लोग बच्चों को लाते मरहूम खान साहेब कुछ वक़्त ठहर लोगो से हाल चाल पूछते ,तस्सली देते और पानी पर दम भी करते।
मरहूम खान साहेब ने अपने अवलादों की तरबियत पर भी खास तवज्जे दी माशाल्लाह पांच बच्चों में से दो बच्चे इंजीनियर है। दो लड़कियों थी जिन की शादी होचुकी है।
इस ब्लॉग के साथ attached video में जन्नत में मक़ाम पाने की चालीस अहादीस मरहूम खान साहेब ने लॉक डाउन के दौरान याद कर ली। मरते वक़्त भी उनसे सवाल किया जाता तो उनका वही अंददज़ होता "में ने चालीस हदीसें याद करके जन्नत में इंशाल्लाह अपना मक़ाम reserve कर लिया ,६२ साल ज़िन्दगी के जी लिए हज़ूर पाक की आखरी सुन्नत अदा होजारहि है ,हुज़ूर पाक ने भी तो इसी उम्र (६३ साल ) की उम्र में वफ़ात पायी थी। अल्लाह मरहूम शाहज़ाद खान को जन्नत में आला मक़ाम आता करे।
मनो मिटटी के नीचे डाब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
सोमवार, 7 सितंबर 2020
Sharifunnisa yusuf Ali
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
एक शफ़ीक़ बेटे ,राशिद अली की अपनी मरहूमा वालिदा शरीफुन्निसा के लिए आंसुओं से लिखी गयी तहरीर ,खिराजे अकीदत , श्रद्धांजलि ,शब्दों में दिल का दर्द छुपा है , माँ (शरीफुन्निसा )ने पहले अपने ४ भाईयों अपने बाप का अपनी अम्मी की मौत के बाद ९ साल तक ख्याल रखा, अपने भाइयों की तरबियत की। फिर अपने शोहर की वफ़ात के बाद अपने छोटे छोटे ५ बच्चों की परवरिश की , मायूसी में, न कमज़ोरी दिखाई न नाहिम्मति। अपने कमज़ोर नातवां कन्धों पर बरसों औलाद के दुखों परेशानियों के बोझ को झेलती रही। अल्हम्दोलीलाह भाइयों ने भी बहन का क़र्ज़ अदा करने की पूरी कोशिश की। माशाल्लाह औलाद ने भी सख्त मेहनत की दुनिया में में मक़ाम बनाया , माँ की आखरी उम्र में बेलोसे खिदमत की , माँ को हज कराया।
मनो मिटटी के नीचे दब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
बुधवार, 2 सितंबर 2020
गुरुजी
Occasion:: Mansoor Bhai birthday Dated :03/09/2019 Place: Wonder park |
Mansoor Bhai at farm house |
मंसूर मलँग
वो जैसे ही सुबह सुबह Wonder park में वाकिंग के लिए दाखिल होते है , शोर मच जाता है गुरुजी आगये , उनके साथ चलने के लिए एक भीड़ इकठ्ठा होजाती है ,गुरूजी अपने अनमोल ख़यालात (पर्वचन) से ,साथ वालों को नवाजते रहते है ।फिर गुरुजी सब को हल्की फुलकि वरज़िश (व्यावयम) भी कराते है ।
सालगिरह के इस अवसर पर मंसूर भाई को हम सब की जानिब से दिली मुबारकबाद और दुआ ऊनहे सेहत ,तंदुरुस्ती और उँचा मुक़ाम हासिल हो ।आमीन सुमा आमीन ।