मंगलवार, 24 नवंबर 2020

नयी उमर की नयी फ़सल


                                                      सफ़वान बशीर सैय्यद 



सफ़वान बशीर सय्यैद

 वालिद का नाम : बशीर लतीफुद्दीन सैय्यद , वालिदा का नाम : नसरीन सय्यैद 
Qualification  : B.SC  (IT ) , MBA (IT) 
मंज़िल की हो तलाश तो दामन जूनून का थाम 
राहों के रंग देख न तलवों के खार देख 
नामों का असर इंसान की शख्सियत पर ज़रूर नुमाया होता है । इस लिए कहा जाता है बच्चों के नाम सोच समझ कर रखने चाहिए। सफ़वान का मतलब होता है चट्टान ,रोशन दिन। फिर ऐसे घर में पैदा हुवा जहां माँ ,बाप दोनों सैय्यद (नजीब उल तरफ़ैन ) ,दादा लतीफुद्दीन सैय्यद एक्साइज शोबे से मुंसलक थे , हादिसे में उनका सीधा हाथ कट चूका था ,दाएं हाथ से लिखना सीखा ,पिस्तौल चलाना सीखा ,तर्रकी कर डिप्टी सुरिंटेंडेंट पोस्ट तक तर्रकी की। वही जूनून , वही दीवानगी मंज़िल को पाने की जुस्तजू सफ़वान को दादा विरसे में अता कर गए। सफ़वान के नाना मरहूम शरीफुद्दीन सय्यद भी उससे बेइंतहा मोहब्बत करते थे , मरहूम की नसीहतें ,रहबरी सफ़वान के लिए मश अले राह साबित हुयी। 
मेहनत से वो तक़दीर बना लेते है अपनी 
विरसे में जिन्हे कोई खज़ाना नहीं मिलता 
सफ़वान ने प्राइमरी  एजुकेशन धुले की मारूफ सेंट ज़ेवियर स्कूल से मुक्कमिल किया  और सेकेंडरी एजुकेशन कनोसा कान्वेंट स्कूल  धुले से। खेल कूद का भी शौक रहा था। क्रिकेट का बेहतरीन आल राउंडर  ,जिम बॉडी बिल्डिंग  का शौक़ ,ज़हानत अल्लाह ने कूट कूट कर भरी थी ,बग़ैर ट्यूशन के तमाम पढ़ाई पूरी की। धुले के SSSVPS कॉलेज से B.SC कंप्यूटर साइंस की डिग्री हासिल की।
DR. APJ ABDUL KALAM का क़ौल  है , "Dream is not which you see while sleeping it is something that does not let your sleep " ख्वाब वो नहीं जो सोते में देखे जाये , बल्कि ख्वाब वो है जो  सोने न दे, जब तक उन की ताबीर हक़ीकत का रूप न धार ले। सफ़वान ने डिग्री अपनी मंज़िल नहीं समझ ली। हैदराबाद जा कर कोर्सेस किये। Tech Mahindra में अपनी काबिलियत, इंग्लिश की महारत पर जॉब मिलाया। तबियत में कुछ करने का जज़्बा था।  पूना की मारूफ ,अंजुमन  खैरुल इस्लाम पूना इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट में MBA (IT) admission मिलाया  ,साथ साथ शिफ्ट ड्यूटी ,रमजान के रोज़े भी रखे , लॉक डाउन में मस्जिद में रह कर मौज़िन की ड्यूटी भी निभाई ,इसी शर्त पर उसे मस्जिद में रहने की परमिशन मिली थी। माशाल्लाह इतने मराहिल परेशानियों  के बाद  A + ग्रेड में MBA की डिग्री मिलाना ,  सफ़वान ने एक  मिसाल कायम कर दी। खुदा करे के ये  दीवानगी ये जूनून हमेशा  बाकि रहे ,राह  की मुश्किलों को पैरों तले रौंदने का जज़्बा इसी तरह सलामत रहे।अल्लाह  से दुआ है कौम में ऐसे ही हर नौजवान को जज़्बा अता हो। सफ़वान के रौशन मुस्तक़बिल के लिए नेक ख्वाहिशात ,दिल से दुआ है  के कामयाबी हर क़दम पर उसके क़दम चूमे ,आमीन सुम्मा आमीन। 
डॉक्टर अल्लामा  इक़बाल ने ऎसे ही ख़ूबरू ,पाकबाज़ नौजवनों के लिये दुआ मांगी थी के ,
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाकी 
खुदा करे के जवानी तेरी रही बे दाग़ 
 


मंगलवार, 17 नवंबर 2020

किसी बहाने तुमेह याद करने लगते है

मरहूम अल्हाज सईद अहमद सय्यद 
Center late Sayaeed Ahmed ,Right Late Raziuddin ,Left Advocate Niaz ,Front Late Ghulam Mohiuddin

Tree plantation on occasion of death Anniversary of Late Sayeed Ahmed 

नाम : मरहूम सईद अहमद सय्यद उर्फ़ बना भाई (तारीख पैदाइश :०१/०६ /१९४२ ,नवापुर  तारीखे वफ़ात :२३/०९/२०१४ ,अजमेर शरीफ , दफ़न : सोनगढ़ क़ब्रस्तान )
वालिद का नाम : इकरामुद्दीन सैय्यद    वालिदा का नाम : मुमताज़ बी 
बीवीयों के नाम : रफ़ीक़ा सय्यद ,फहीमुन्निसा सय्यद 
औलाद के नाम : ज़की सैय्यद ,मोहसिन सैय्यद ,मरहूम वसीम सय्यैद ,आतिफ सैय्यद ,काशिफ सैय्यद ,फरहत ऐजाज़ शैख़ , साईमा खालिद शेख़ 
हज : २००९  में अपनी अहलिया के साथ  हज का फ़रीज़ा अदा किया 
एज़ाज़ (Post Held ):
१९८० से १९९० सरपंच भड़भूँजा 
वाईस प्रेजिडेंट :उच्छल खेतवाड़ी 
मेंबर- ऋषि मंडली उच्छल 
ट्रस्टी -सोनगढ़ गुणसादा शुगर फैक्ट्री 
मुतवल्ली -सोनगढ़ इस्लामपुरा मस्जिद मदरसा ट्रस्ट 
सभ्य -मलेकपुर अंजूमन 

तुम्हरी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं 
किसी बहाने तुमेह याद करने लगते है 
मरहूम सईद अहमद उर्फ़ बना भाई रिश्ते में हमारे सगे मामू है। गुजरात में हर किसे के नाम के साथ उर्फियत लगी होती है। मरहूम से में पूछ न सका वो सईद अहमद से बना भाई , कब और कैसे बने। 
नवापुर शिवजी मराठी स्कूल से मरहूम ने मीट्रिक पास किया। बॉम्बे की मशहूर "Ismael Yusuf College " जोगेश्वरी से इंटर आर्ट्स का इम्तेहान पास किया। सादिक़ अहमद इंजीनियर उनके बड़े भांजे ने उसी कॉलेज से इंटर साइंस का इम्तेहान पास किया। दोनों हॉस्टल में रहते थे। सादिक़ अहमद ,मरहूम सईद अहमद को "गोरे मामू "कहते , सारे कॉलेज में वो इसी नाम से मशहूर हो गए थे। अब्दुल करीम हल्दे जो हॉस्टल में उनके पडोसी थे ,(रिज़र्व बैंक से डिप्टी मैनेजर की पोस्ट से रिटायर हुवे है ) अक्सर अब भी मरहूम की बातें याद करते हैं। मरहूम सईद अहमद ने भोपाल यूनिवर्सिटी से आर्ट्स की डिग्री हासिल की। एक साल Law भी स्टडी किया । मरहूम  ने उर्दू अदब में BA किया था और उनके पास उर्दू किताबो का खज़ाना था। उमराव जान अदा ,किस्सा गुल बकावली ,दीवाने ग़ालिब ,कुल्लियाते इक़बाल ,ग़ालिब के शेरो की तशरीह जो अल्लामा हाली ने लिखी है, ये तमाम मेयारी (Standard ) किताबे मै ने उनके पास पायी थी। उस समय समझ में तो नहीं आता था फिर भी पढ़ लेता था। मुझे अपनी  किताबें पढ़ते देख मरहूम बहुत खुश होते थे। 
अल्फ़ाज़ व सूरत व रंग व तस्सवर के रूप में
ज़िंदा हैं लोग आज भी मरने के बावजूद 
 हाजी सईद अहमद अपने चार भाईयों ( हाजी अफ्ज़लोद्दीन ,ग़ुलाम महियोद्दीन ,मुहम्मद युसूफ ) और तीन बहनों (बिस्मिल्ला ,अकीला ,जीलानी) में सब से छोटे थे। सब की आँखों का तारा , माँ ,बाप (इकरामुद्दीन,मुमताज़ बेगम ) के नूरे नज़र थे। भाइयों में सब से छोटा कद उनिह का था। रंग सफ़ेद माईल (बेहद गोरा ) था। बोलती हुवी ऑंखें ,सर पर घनेरे बाल। नफासत पसंद थे।खुश मिज़ाजी कूट कूट कर भरी थी।  सफ़ारी पहननेका का शौक़ था।  किसी ज़माने   में imported Pistol  लिए घूमते थे। लइसेंस भी बनवा रखा था। double boar वाली gun भी थी ,कभी कभी शिकार भी खेल लेते थे। अच्छे  खानो का उनेह शौक़ था। खाने से ज़ियादा उन्हे  लोगों को खिलने का शौक़ था।बेहद खुश मिज़ाज थे। छोटे छोटे जोक्स पर कई कई रोज़ हस्ते रहते। में नए नए सीरिया गया था में ने उनसे कहा "गोर मामू सीरिया की औरतें बडी गोरी होती है ,लेकिन वहां के लोग मुझ से अपनी बीवियों के लिए fair and lovely क्रीम की डजनो बोतलें मंगवाते है ,ये तो वही बात हुवी न जैसे north pole वाला स्कीमों, जहाँ साल भर बर्फ़बारी होती है इंडिया से बर्फ मंगवाए " मरहूम कई रोज़ तक इस जोक को enjoy कर हस्ते रहे। मरहूम ने हिस्सास तबियत पायी थी। 
     मिट्टी  को सोना बनाना  के फैन उन से सीख जा सकता था। जो कारोबार किया आन ,बान ,शान से किया लकड़ों का कारोबार किया पूरे जंगल खरीद लिया करते थे। टट्टे वैगन भर के अहमदाबाद को रवाना करते। मछ्ली का कारोबार ,मानो एक छोटी मोटी industry चला रहे हो । उकाई dam की टनों मछलियां  बॉस्केट में पैक की जाती ,कलकत्ता को भेजी जाती थी। जब तक मछली के टोकरे ट्रैन में लोड नहीं होजाते थे, हावड़ा एक्सप्रेस भड़भूँजा स्टेशन पर रुकी रहती। उसी ज़माने में (१९७४ -१९७७) मरहूम बॉम्बे से कलकत्ता प्लेन से सफर किया करते थे।
जी रहा हूँ इस उम्मीद के साथ 
ज़िन्दगी को मेरी ज़रुरत है 
1978 में अपनी पहली रफ़ीक़े हयात जिन का नाम रफ़ीक़ा ही था ,की मौत पर में ने उनेह टूटते देखा। लेकिन वसीम ,ज़की ,मोहसिन ,फरहत जहाँ की खातिर अपने आप को संभाला,एक नयी ज़िन्दगी की शुरवात की ,दोबारा अपना घर बसाया। दूसरी बार वसीम उर्फ़ बुल्या की नागहानी मौत ने उन्हें एक गहरे सदमे से दोचार किया।
मुझे सहल होगयी मंज़िले /
दूसरी बीवी फहीमुन्निसा ने भी उनका साथ खुलूस ,अपनाइयत ,बराबरी से दिया। उन के ग़म अपने दामन में समेट लिए। मरहूम माशाअल्लाह कसीर उल औलाद थे। उनोह्ने  ने अल्लाह के रसूल  (स अ स )की उस हदीस पर अमल किया,  आप ने फ़रमाया था " में उम्मत के उन लोगों पर फख्र करुंगा  जिन की औलाद ज़्यादा होंगी"।
नशेमन पर नशेमन इस तरह तामीर करता जा 
मरहूम अपने पसंद की चीज़ मुं मांगे दामों पर खरीद लिया करते थे। डॉक्टर वासिफ मुझे बता रहे थे  मरहूम नें सोनगढ़ में जिस पारसी का बंगला खरीदा  (जो उनेह बहुत पसंद था ) उस की कीमत इतनी ज़ियादा लगायी थी, के मालिके माकान ने एक पल की हिचकिचाहट के सौदा तय कर लिया था।  उस बंगले का नक़्श आज भी मेरे ज़हन में जूँ की तूँ मौजूद है। छोटे से टीले पर चार कमरों पे मुश्तमिल ,आंगन फूलों की खुशबु से महकता ,सीताफल ,अमरुद ,आम के फलों से लदे पेड़ ,पॉलिटरी भी थी ,Servant quarters अलग से बने थे। आंगन में झूले पर बैठ कर आदमी एक और दुनिया में पहुँच जाता था। गोरे  मामू की पसंद की दाद दिए बिना नहीं रह सकता ,गोरी मुमानी भी उसी  खुशअसलूबी से उस बंगले की देख भाल किया करती थी।
मरहूम अल्हाज सईद अहमद अजमेर शरीफ दरगाह में फातिहा ख्वानी करते हुवे 
 

मौत का एक दिन मुअय्यन है 
  मरहूम सईद अहमद को बुज़र्गों से इन्तेहाई अक़ीदत थी।  हदीस में आता है आदमी को उन ही लोगो के साथ उठाया जायेगा जिन से वो मुहब्बत रखते है।  शायद इस लिए मौत भी पायी तो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के शहर अजमेर में, जहाँ वो घूमने गए थे । सोनगढ़ के क़ब्रस्तान में आराम फरमा रहे है।
आदमी के इंतेक़ाल के बाद उसके आमाल का सिलसिला ख़त्म होजता है ,लेकिन नेक औलाद के आमाल में उसका हिस्सा ज़रूर उस तक पहुँचात है उसके दरजात बुलुंद होते है। हर साल मरहूम की बरसी पर मोहसिन के ज़िरए tree plantation ,हॉस्पिटल में ग़रीब मरीज़ों में फलों की तक़सीम का सिलसिला काबिले तारीफ़ काम है। अल्लाह  उनकी औलाद को इस कारे खैर पर जज़ाए खैरआता करे आमीन सुम्मा आमीन। 

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़

 
सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़
 
अकाबी रूह जब पैदा होती है नौजवानो में 
नज़र आती है मंज़िल उनको अपनी आसमानो में 
नाम : सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़ 
मुक़ाम पैदाइश :जलगांव , SSC Score 93 % CBSC (From Our Own School ,Dubai ), HSC Score  80 % CBSC (From Our Own School ,Dubai )
NEET Score :471 
MBBS : भरतिया विद्यापीठ पुणे में इस साल दखला मिला है 
 सिदरा (बेरी का पेड़ )कायनात की की इन्तहा है। जिस के आगे फ़रिश्तो के पर भी जल जाते है। हर इंसान के नाम में उसके असरात आते है। अल्लाह के रसूल (स अ स ) ने फ़रमाया "अपनी औलाद के अच्छे नाम रखा करो। नाज़िम और निकहत ने बहुत सोच कर बड़ा प्यारा नाम रखा था। दोनों ने बचपन से सिदरा की तरबियत इन्तेहाई समझदारी ,खुश असलूबी से की है। सिदराने भी माशाल्लाह अपने आप को हमेशा हिजाब में रखा। टेबल टेनिस की बेहतरीन खिलाडी है। बेहतरीन मुस्सविर (आर्टिस्ट )है।  दुबई में अक्सर नुमाईश (exhibitions ) में उसकी तस्वीरें अच्छे दामों पर बिकती है। Swimming  (तैराकी )जानती है। बेहतरीन खाने बनाना जानती है।  माशाल्लाह हर फन मौला है।  
रिश्तेदारों में इंशाल्लाह पहली Lady Doctor  (MBBS )होने का ऐज़ाज़ सिदरा को हासिल होगा। जलगांव रिश्तेदारी ग्रुप की जानिब से उसे नेक तम्मनाए , दिली मुबारकबाद। अल्लाह उसे उसके नाम की तरह कामयाबियों की बुलंदियों तक पुह्चायें।  आमीन सुम्मा आमीन। 
जलगांव शहर के लिए फखर का मक़ाम है के यहाँ की एक बच्ची ने शहर का नाम रौशन किया है। जलगांव रिश्तेदारी ग्रुप ने मौजूदा साल से रिश्तेदारों में तालीम की अहमियत को उजागर करने के लिए Award की शुरुवात की है। सिदरा ने रिश्तेदारों में अपने MBBS में दाखले से मिसाल कायम की है ,पहला Award रिश्तेदारी ग्रुप की जानिब से उसे पेश किया जा रहा है। हर साल इसी तरह इस award का सिलसिला जारी रहेंगा (इंशाल्लाह )। 


गुरुवार, 5 नवंबर 2020

शरीफुद्दीन सय्यद उर्फ़ बच्चू भाई नवापुर वाले


                              मरहूम बच्चू भाई अपने करीबी स्वरुप सिंह नाइक माजी वन मंत्री के साथ 
एक्स डिप्टी होम मिनिस्टर  माणिक राव मरहूम का स्वागत करते हुवे 


अपने पचास साला पुराने दोस्त गौहर पठान के साथ 

मरहूम अल्हाज शरीफुद्दीन सय्यद अपने खेत में 

                                                     
अपनी शरीक हयात शमशाद  बेगम के साथ 

       बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा 
                                                                               
नाम : शरीफुद्दीन सैय्यद (उर्फ़ बच्चू भाई ) 
तारीखे पैदाइश :    29/10/1938   नवापुर  ,  तारीखे वफ़ात :  10-03-2019   नवापुर 
ऐज़ाज़त (Achievements ) : 
१. मेंबर पंचायत समिति नवापुर  (1978 -1983 )
२. सरपंच ग्राम पंचायत झामंजर -२० साल 
३. मेंबर DRUCC (भुसवल डिवीज़न )- 1990 -1994 
४. चेयरमैन मिल्क प्रोडक्शन सोसाइटी झामंजर -२० साल 
५. स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (SEM ) नवापुर -२५ साल 
६. मेंबर रोज़गार हमी योजना कमिटी 
नवापुर की मारूफ  (Famous )हस्ती  किसी तआरुफ़ (Introduction ) की मुहताज नहीं माशाल्लाह उनके नाम (शरीफुद्दीन ) से ही शराफत टपकती है। अशराफ ख़ानदान (सैय्यद ,जमादार ) से निस्बत रखते  है , बात चीत में शराफत ,रवैये में शराफत ,तअल्लुकात में शराफत ।  
जैसे दिलीप कुमार को बहुत कम लोग युसूफ खान के नाम से जानते है,मरहूम शरीफुद्दीन भी बच्चू भाई के नाम से जग मशहूर थे।  उर्फियत ने उनके असली नाम को पीछे छोड़ दिया। मरहूम फरमाते थे शायद ही कोई मुझे शरीफुद्दीन के नाम से जनता हो। 
मरहूम की शख्सियत बड़ी दिलकश थी। ६ फ़ीट लम्बा कद (height ), जाज़िब नज़र (Attractive ) ,दूधिया सफ़ेद मायल रंग ,चेहरे पर सब्ज़ (green ) नीलगु ऑंखें। मरहूम ने पाटदार आवाज़ पायी थी। एक्टिंग को अपना पेशा बनाया होता तो दिलीप कुमार को नहीं अमिताभ बच्चन को ज़रूर पीछे छोड़ दिया होता। ज़िंदा दिल ,खुश मिज़ाज ,हलीम तबियत (नरम मिज़ाज )कभी मरहूम को ग़ुस्सा होते नहीं देखा। तालीम (Education ) ज़ियादा हसील नहीं कर पाए थे ,दुनिया के तजुर्बात (Experiences ) ने उनेह बहुत कुछ सीखा दिया। 
मरहूम  मामू जान ग़ालिब की तरह ज़िंदा दिल थे। उनका मज़ाक़ भी बड़ा मोहिजीबना होता ,इरफ़ान उनका फ़रज़न्द ,मुझे बता रहा था एक दिन वो अपने दोस्तों को घर ले आया ,बच्चू मामू ने उससे कहा अपने दोस्तों को ठंडा पीलाव  ,दोस्त कहने लगे हम पी कर आये है। बच्चू मामू ने बरजस्ता कहा "आप पिए हुवे तो नहीं लगते। 
ज़िन्दगी इतने मसायल से घिरी है बहुत कम लोग  मरहूम की तरह ,इन तल्खियों में चाशनी घोलने वाले मिलते है। बच्चू मामू  ने ८२ साल की  लम्बी उम्र पायी ,और माशाल्लाह हमेशा अपनी ज़िंदादिली ख़ुशमिज़ाजी क़ायम रखी।  ,उनकी सेहत का यही एक राज़ था। 
बुलंदियों पर पहोचना कोई कमाल नहीं 
बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है 
मरहूम बच्चू मामू पर ये शेर १००% सादिक़ आता है। बला की खुद ऐतेमादि (self confidence ) थी मरहूम में ,जिस काम में हाथ डाला माशाल्लाह कामियाब रहे। भड़भूँजा ,सकरदा ,झामंजर में दुकाने खोली कामयाबी से चलायी। सियासत (politics ) में कदम रखा २० साल लगातार झामंजर के सरपंच रहे। ५ साल पंचायत समिति के मेंबर रहे, उस इलाक़े (Area ) में जहां आदिवासियों का बोल बाला (वर्चस्व ) है। गोवेरमेंट के contract  हासिल करके ,रोड बनाये ,हॉस्पिटल तामीर किये। 
खेती बाड़ी की ,लकड़ो का कामयाब  कारोबार किया। एक वक़्त था उनका एक पॉव धूलिया में होता दूसरा मुंबई और फिर लोकल मामलात में भी हमेशा एक्टिव रहे। सवरूप सिंह नायक ,माणिक राव गावित और बिपिन चोखावला मारूफ  (well known ) हस्तियों के साथ मरहूम के घरेलु ताल्लुक़ात थे। हर बात में ये सब एक दूसरे  से मश्वरा लिया करते। मरहूम की गौहर पठान साहेब से आधी सदी (half century )पुरानी दोस्ती मौत के साथ ही ख़त्म हुवी। क्या मोहबतें ,उन्सियत ,अपनाइयत हुवा करती थी दोस्तों में ,इस की  ये एक यह एक ज़िंदा मिसाल है। 
मुझे सहल होगयी मंज़िलें वो हवा के रुख भी बदल गए 
तेरा हाथ हाथ में आगया के चराग़ रह में जल गए 
में ने मरहूम से एक बार  पूछा था "आपकी शादी को कितना अरसा होगया ,और मुमानी जान का नाम क्या है " कहने लगे रागिब में तुम्हारे दोनों सवालों का जवाब एक साथ दूंगा " ६० साल से लगातार शमशाद बेगम के गाने सुन रहा हूँ "।  ( कहने का मतलब था ,मुमानी का नाम शमशाद बेगम और शादी को ६० साल का अरसा होगया ) कहा और ज़ोर से क़हक़हा लगाया,जो उनकी पहचान थी। 
मुमानी जान से नोंक झोंक का सिलसिला जारी रहता  ,और मामू मिया मज़ाहिया फखरे कस कर माहौल को ज़ाफ़रानी कर देते। 
दोनों ने मिल कर अपनी औलाद की बेहतरीन तरबियत (ट्रेनिंग) की अच्छे खानदानो में शादिया करवाई।  इरफ़ान और नुमान  अपनी दोनों औलादों को, अच्छी तरह कारोबार में सेट करवा दिया। ज़िन्दगी भर कोंग्रेसी रहे,आखिर तक अपने उसूलो पर क़ायम रहे ,नफरत फ़ैलाने वाली सिआसत से उनेह बैर था।  
आखिर आखिर में सियासत से बड़े बद दिल  (heart broken ) होगये थे। इंतेक़ाल से कुछ अरसा पहले पॉलिटिक्स से रिटायरमेंट लेली थी ,लेकिन अपने आप को हमेशा एक्टिव रखा। खेती बाड़ी और मियारी  (standard )किताबें पढ़ने में अपने आप को मसरूफ रखते थे। दोस्तों का बहुत बड़ा हलका (circle ) था रोज़ाना  शाम में मटर गश्ती और फिर गरमा गरमा बहस होती। बाकायदगी से मस्जिद में  नमाज़ अदा करते। अपने खेत में ज़ियादा वक़्त गुज़रते। आमों के पेड़ लगा रखे थे ,जो फलो से लदे रहते। लहलहाती फसल को निहारते रहते ,अपनी चारपाई डाले मज़दूरो को काम करते देखते रहते। कभी कभी हाथ में किताब भी होती ,गहराई से मुतालिआ करते। अपना जाती मकान ,गाड़ी ,ड्राइवर ,वाफ़ा शॉर बीवी ,फर्माबरदार औलाद , समाज में रुतबा , इज़्ज़त ,और सोने पे सोहागा २००४ में मरहूम ने हज का फ़रीज़ा भी अदा कर लिया था  ,इस से ज़ियादा पुरसुकून ,कामयाब  ज़िंदगी और क्या हो सकती ही ?

मौत तो वो है ,जिस का ज़माना करे अफ़सोस 
यूँ तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिये 
मरहूम के इंतेक़ाल के बाद ,अरसे तक अखबारात में ताज़ियतें छपती रही। कई प्रोग्राम मुनअक़िद किये गए जिन में उनेह खिराजे अक़ीदत पेश किया गया। कई राज़ों से पर्दा उठा ,किरदार के उन पहलुओ  पर रौशनी पड़ी जो ज़माने से परदे में थे। 
उनकी सिफारशों  से कितनो की तरक़्की हुवी ,नौकरी मिली ,ट्रांसफर में मदद मिली ,कब्रस्तान मस्जिद मदरसों के काम हुवे। 
बिपिन चोखवाला साहेब इरफ़ान से कहते है, "आपके घर के सामने से गुज़रना छोड़ दिया  हु ,बच्चू भाई की याद ताज़ा होजाती  है " क्या किसे के चले जाने से किसी की ज़िंदगी में इतना बड़ा ख़ला (vacuum ) भी पैदा हो सकता है ? 
१९५६ में झामंजर के चर्च पर बिजली गिरी थी और चर्च, राख का ढेर होगया था। मरहूम मामू जान ने चर्च की नए सिरे से तामीर  (construction ) में अपनी खिदमात (help ) दी थी ,ये बात उस चर्च के फादर ने एक ताज़ियाती महफ़िल में कही और लोगो को अचरज में दाल दिया। ऐसे किरदार की बुलंदी बहुत कम लोगो को नस्सेब होती है । churches  में भी मरहूम मामूजान के लिए prayers  मुनाकद  की गयी, इस बात का सबूत है के फिरका परस्ती  और नफरत की सियासत मरहूम जैसे लोगों के होते पनपने वाली नहीं। 
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया 
 १० मार्च २०१९ को बच्चू मामू इस जहाने फानी से कूच कर गए। बड़े खुशकिस्मत  रहे ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में अपने ख़ानदान के बुज़ुर्गों ,अज़ीज़ो के साथ आराम फरमा हैं। अल्लाह मरहूम बच्चू मामू की मग़फ़िरत करे ,जन्नत फ़िरदौस में आला मुक़ाम आता करे।   आमीन ,सुम्मा आमीन। 

                                                         
मरहूम इंस्पेक्टटर कादरी के साथ 

  

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती

दाएं से बाएं जोए अंसारी ,ऐजाज़ सिद्दीकी ,कृष्णा चंद्र ,जान निसार अख्तर 


मरहूम अल्हाज ज़ैनुलआबेदीन की एक यादगार तस्वीर 

                                             
ब्रूक बांड के स्टार सेल्समैन ऑफ़ द इयर १ किलो की सिल्वर ट्रॉफी इनाम 
नाम : अलहाज ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद 
तारीख़े पैदाइश :११/०३/१९३५ (नवापुर ) , वफ़ात :०७/०४ २०१५ (नवापुर ) ,तालीम :  १९५५ में एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव से मेट्रिक पास किया था 
वालिद का नाम : मोहियुद्दीन सय्यद 
वालिदा का नाम : मुनीरा मोहियुद्दीन सैय्यद (उर्फ़ मुन्ना फुफु )
भाइयों के नाम :ज़ियाउद्दीन सैय्यद ,शरीफोद्दिन सैय्यद ,शहाबुद्दीन सैय्यद ,साजोद्दीन सैय्यद ,ख़ालिकोद्दिन सैय्यद 
बहनो के नाम :रज़िया क़मरुद्दीन मुंशी ,आसिया अफ्ज़लोदिन सैय्यद ,खालिदा शाफियूद्दीन शेख़ ,नसीम शराफ़त अली सैय्यद ,फरीदा गयासुद्दीन शेख़ 
सब कहां कुछ लाला व गुल में नुमायां होगयी 
ख़ाक में क्या सूरते होंगी के पिन्हा होगयी 
              ग़ालिब 
मरने के बाद कुछ लोग फूलों की शक्ल में नमूदार होजाते हैं। ये शेअर मरहूम ज़ैनुलआबेदीन पर सादिक़ आता है। 
ख़ूबरू ,६ फ़ीट क़द (HEIGHT ), झील सी गहरी नीली ऑंखें ,शफ़्फ़ाफ़ रंग ,मरऊब कर देने वाली आवाज़ ,उर्दू ज़बान माद्री ज़बान थी ,हिंदी ,मराठी ,ऐरानी ,गुजरती , आदिवासी (भील ) ज़बाने भी अहले ज़बान की तरह बोलते थे।
कितने वीरानो से गुज़रे हैं तो जन्नत पायी है 
सैंकड़ों कुर्बानिया दे कर ये नेमत पायी  है 
 भरे पुरे खानदान से belong करते थे। भाइयों में सब से बड़े थे। मिस्बाह अंजुम के बनाये शिजरे से पता चलता है के  वालिदा की जानिब से मरहूम का सिलसिला वाजिहुद्दीन गुजराती रह.अलैह तक पहुँचता था।  
मरहूम ज़ैनुलआबेदीन अपनी बड़ी बहन रज़िया मुंशी के साथ जलगांव में मेट्रिक करने  के लिए रहा करते। रिहाइश काटया फ़ैल में   मिर्ज़ा पान वाले के बग़ल में खानदेश साइकिल वाले के मकान में थी ।  जलगांव की मारूफ हस्ती ज़ाहिद देशमुख और मरहूम ज़ैनुलआबेदीन हम जमात (class mate ) थे। ज़ाहिद साहिब जब भी मरहूम का ज़िक्र करते ,कहा करते "ज़ैन बड़ा चुलबुला,खलंडरा ,स्टाइलिश  हुवा करता था , बेहतरीन आल राउंडर तो था ही क्रिकेट टीम की कैप्टनशिप भी किया करता था " उस ज़माने में मेट्रिक इम्तेहान के लिए बॉम्बे जाना पड़ता था ,दोनों ने साथ जाकर मेट्रिक का इम्तेहान पास किया  । मेट्रिक पास करने के बाद मरहूम ने कुछ अरसा अंजुमन इ खैरुल इस्लाम कुर्ला में टीचर का job भी किया। 
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं 
ब्रूक बांड कंपनी में जब मरहूम को सेल्स Department में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो उनसे दो सवाल पूछे गए थे "ताज महल की तारीख और रूस के उस समय के president Khrushchev के नाम की स्पेलिंग ,उन के जवाब से ज़ियादा उनके confidence और उनके appearance से interview panel मातासिर हुवे थे। उनकी personality उनके language command देख कर उनेह शहादा Depot manager की पोस्ट ऑफर की गयी थी। उस समय multinational  company में जॉब मिलना Importance  रखता था। मरहूम को ब्रूक बांड कंपनी की चाय ((प्रोडक्ट्स ) को खेतीया ,प्रकाशा  ,धडगाव और सात पुड़ा के इलाक़े में प्रमोट करना था। कई सालो तक बैल गाड़ी ,जीप ,बस और ट्रक से गाँव गाँव घूम कर कंपनी के प्रो डक्ट्स रेड लेबल ,दो गुलाब CTC ,crushed चाय चप्पे चप्पे पर  मरहूम ने पहुंचा दी। sales promotion पर कई ट्रॉफीज उनेह इनाम में मिली। स्टार सेल्समेन ऑफ़ द ईयर  Award कई बार उनोहने अपने नाम किया।brook bond कंपनी ने bond motor cycle introduce की थी मेरे शौक़ को देखते हुवे मुझे गिफ्ट की थी।  एक बार उनेह Bangkok  जाने का मौका भी मिला था वो  किसी वजह से जा नहीं पाए। मरहूम को कंपनी की AGM में खास तोर पर बुलाया जाता  और felicitate किया जाता। मैं ने उनका नाम brook bond कंपनी की AGM report  मेंकई बार देखा है। 
उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग है 
मरहूम ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद आला मिज़ाज रखते थे। लायंस क्लब के मेंबर हुवा करते थे। इक़बाल ,उर्दू शायरी, उर्दू अदब ,क़ौम में तालीम  और रोज़गार ,इन चीज़ों से उनेह बे इंतिहा लगाव था। मरहूम ने अपने दोस्तों प्रोफेसर खान सर, मेहमूद  साहेब Auditor  , इस्माइल साहेब ,गोरे मिया काज़ी के साथ मिल बज़्मे नौ की बुनियाद डाली। मुशायरे ,अदबी महफिलें मुनअक़िद किये  ,काज़ी चौक शहदा में लायबररि की बुनियाद डाली ,ढेर सारी शायरी और अदबी उर्दू किताबें फ्री पड़ने के लिए दी जाती थी। सर सैय्यद एजुकेशन सोसाइटी बना कर शाहदे में गर्ल स्कूल शुरू की गयी जो अब तक जारी है। मरहूम इस स्कूल कमिटी के खजांची थे ,कई दफा स्टाफ को अपने जेब से salary अदा करते। दूसरा अहम कदम जो शाहदे में उठाया था वो था सर सय्यद क्रेडिट क़ो ऑप सोसाइटी का क़याम ,क़ौम  में गरीबो को खुद कफील बनाने के लिए छोटे छोटे क़र्ज़ दे कर बिज़नेस शुरू करवाना ,अब भी सोसाइटी क़ायम है और लोग फायदा उठा रहे है। अपनी तीनो औलादो परवेज़ ,सुहैल और ऐजाज़ की भी मरहूम ने बेहतरीन तरबियत की तीनोको  graduation करवाया।  अपनी बेटी शगुफ्ता की दोनों बेटियों  (सना ,हिना )ने MBA किया तो मरहूम ख़ुशी से फूले नहीं समाये ,हर किसी से फख्र से इस बात का ज़िक्र करते थे। जीवन साथी अनीस खातून भी माशाल्लाह खुश अख़लाक़, मोह्ज़िब  ,बावफा,बाहया हर फन मौला थी। घर को जन्नत निशान बना रखा था। घर में इंग्लिश ,उर्दू अख़बार बाकायदगी से आते थे। शमा ,बीसवीं सदी ,खिलौना हर महीने बाकायदगी से खरीदा करते। 
 मरहूम की शाहदे में बड़ी इज़्ज़त थी ,सैय्यद साहेब चाय वाले के नाम से पुरे डिस्ट्रिक्ट में मशहूर थे। 
२००९ में  मरहूम ने अपनी अहलिया अनीस खातून  ,बेटे ऐजाज़ और साली साहेबा अदीबुनिस्सा के साथ हज का फ़रीज़ा भी अदा किया। 
नाशिमन पर नाशिमन इस तरह तामीर करता जा। 
अपने रिटायरमेंट की प्लानिंग भी मरहूम ज़ैनुलआबेदीन साहेब ने बड़ी खश उस्लूबी से की थी। धुलिये में  आशियाना कॉलोनी में अपने क़रीबी दोस्त मेहमूद Auditor  के मश्वरे पर घर भी बुक किया था बाद में फरोख्त कर दिया। जलगांव में brook bond colony में भी उनेह घर ऑफर किया गया था उनोहने नहीं खरीदा। शाहदे में भी मकान बनाने के लिए प्लाट खरीदा था फिर बेच दिया। 
पहुंची वही पे खाक जहाँ का खमीर था 
नवापुर में खेत भी खरीदा ,खूबसूरत अलग थलग मक़ाम पर अपना बांग्ला भी तामीर किया ,अपनी पसंद का आशियाना  नाम रखा और retirement के बाद पुरसुकूंन जिंदिगी गुज़ारी। हालाँकि नवापुर जैसे कारोबारी शहर को अपनी तबियत के मुनासिब नहीं पाया। बहुत  कोशिश की शहर में अदबी माहौल पैदा करने की लेकिन अंधों के शहर में शीशे का कारोबार मुमकिन ही नहीं। खुशकिस्म रहे  मौत के बाद अपने वालेदैन ,अहलिया ,भाइयों के दरमियान नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है ,शायद नवापुर में रिहाइश इख़्तियार करने का उनका यही मक़सद था। अल्लाह  मरहूम को जन्नतुल फिरदोस में आला मक़ाम आता करे। 
ज़र्रा समझ के यु न मिला खाक में मुझे 
ऐ आसमान मै भी कभी आफ़ताब था 

बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

बिछड़े सभी बारी बारी





इंदिरा गाँधी का इस्तकबाल करते मरहूम अफ्ज़लोद्दीन 

मरहूम वसीम और अफ़ज़लोद्दीन  सय्यद मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी की गुल पोशी करते हुवे 
आसिया बेगम ,सईद अहमद ,अफ्ज़लोद्दीन,ग़ुलाम मोहियुद्दीन 

नाम :  हाजीअफ्ज़लोद्दीन सैय्यद  (उर्फ़ लाला मिया ,बापू ,सैय्यद साहेब भड़भूँजा वाले ,तापी के गाँधी )
तारीखे पैदाईश : १९२५ , तारीखे वफ़ात :  १४ -११-२००१  (नवापुर ) 

वालिद का नाम :इकरामुद्दीन सैय्यद ,वालिदा का नाम :मुमताज़ बी 

बीवी का नाम : आसिया बेगम 

भाइयों के नाम : ग़ुलाम मोहियुद्दीन सैय्यद ,मोहम्मद युसूफ सैय्यद ,सईद अहमद सैय्यद 

बहनो के नाम : बिस्मिल्ला बी ,जीलानी बी ,अकीला बी 

दुआ देती है राहें आज तक मुझ आबला पॉ को  

मेरी पैरों की गुलकारी बियाबां से चमन तक है 

हिंदुस्तान में आज़ादी की जंग उरूज पर थी १९४२/१९४३ में  मरहूम अफ्ज़लोद्दीन ने नंदुरबार से मेट्रिक  का इम्तेहान पास किया। बिस्मिल्ला सर जो अंजुमन इस्लाम मुंबई में टीचर रिटायर हुए ,कई साल हॉस्टल SUPRINTENDENT का काम भी अंजाम दिया , नंदुरबार से belong करते है बताते है के मरहूम अफ़ज़लुद्दीन सय्यद नंदुरबार की अली साहेब मोहल्ले की छोटी खानकाह की मस्जिद में बैठ कर मैट्रिक की पढ़ाई किया करते थे। मरहूम ने मैट्रिक के बाद prohibition department से अपने career की शुरुवात की। कई दिन तक मरहूम की शाहदे में पोस्टिंग  भी रही। 

जिस दिन चला हु मेरी मंज़िल पे नज़र है 

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा  । 

गवर्नमेंट की नौकरी छोड़ कर मरहूम ने भड़भूँजा में छोटी सी चंद झोपडो पर आबाद आदिवासियों की बस्ती जो चारों तरफ से से जंगल से घिरी थी ,रातों को शेर दहाड़ते, अपनी शरीक हयात आसिया बी जो पचास साल मरहूम के दुःख सुख में शरीक रही ,छोटा सा घर बनाकर , पड़ोस में दुकान की बुनियाद डाली। भड़भूँजा रेलवे स्टेशन ४० मीटर घर से दुरी पर था। सूरत भुसावल कुल चार पैसेंजर ट्रैनस का halt था।  रेलवे के लिए टिकटिंग एजेंट बने। बीज दाल कर दरख्त की आबयारी करने लगे। भाइयों  की सूरत में दो ( ग़ुलाम मोहियद्दिन ,सईद अहमद )सिपहसालार मयस्सर हुवे।

में अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर 

लोग आते गए और कारवां बनता गया 

मरहूम अफ्ज़लोद्दीन उर्फ़ लाला मिया कई ख़ूबीयों  को अपने किरदार में समेटे हुवे थे। ख़ूबरू , संग मर मर की तरह  सफ़ेद रंग ,कद भी निकलता ,नीली आँखों में शफ़क़त झलकती। आवाज़ में बला का जादू था। ज़िन्दगी भर कॉंग्रेसी रहे। पार्टी की जड़े  निज़र ,उछल ,व्यारा सुरत ज़िले में मज़बूत की। एक सिपाही की तरह अपने आप को पार्टी के लिए वक़्फ़ कर दिया था। कांग्रेस पार्टी के उस वक़्त के  गुजरात पार्टी के प्रेजिडेंट जीना भाई दर्ज़ी से उनका याराना था। MLA /MP इलेक्शन के लिए टिकट की तक़सीम के वक़्त उनेह खास तौर पर बुलाया जाता। इलेकशन के लिए बड़ी बड़ी RALLIES में उनेह इंदिरा गाँधी ,मुख्यमंत्री के साथ स्टेज पर बिठाया जाता ,लोग बड़े ग़ौर से उनको सुनते। सारे गुजरात में वह तापी के गाँधी के नाम से जाने जाते। उस समय की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ,मुख्या मंत्री चिमन भाई पटेल ,माधव सिंह सोलंकी ,अमर सिंह चौधरी ,बाबू भाई पटेल उनेह नाम से जानते थे। उनकी  इन खिदमात पर उनेह पार्टी ने नवाज़ा भी बहुत। उनपर बिना मांगे ओहदों की बरसात होती रही जैसे। 

१) तालुका पंचायत प्रमुख 

२)वाईस प्रेजिडेंट कांग्रेस गुजरात स्टेट 

३ )मेंबर हज कमेटी गुजरात

४)सरपंच भड़भूँजा 

उनकी सिफारिश पर कई लोगों को सरकारी नौकरी मिली। उनकी एक चिठ्ठी पर लोगोके ट्रांसफर ,तरक़्क़ी  होजाया करती थी। भड़भूँजे में इलेक्ट्रिसिटी उन्ही की बदौलत आयी। सूरत भुसावल फ़ास्ट उनके recommendation पर भड़भूँजे में halt करने लगा। अनंतपुर ,खेकड़ा ,जमकी आश्रम स्कूल्ज में फण्ड उनकी  कोशिशों से आता था। आज आदिवासियों के बच्चें इनिह आश्रम शालाओं से पढ़ कर एयर इंडिया ,और गवर्नमेंट में सेक्रेटरी ,अंडर सेक्रेटरी की पोस्ट पर काम कर रहे है। 

मरहूम की कोई औलाद न थी पर अपने भतीजो भांजो पर अपनी सारी मोहब्बत नौछावर कर दी। १९६४ में अपने छोटे भाई सईद  अहमद और भांजे सादिक़ अहमद को बॉम्बे के इस्माइल युसूफ  कॉलेज में ,इंटर में admission के लिए उनके साथ बॉम्बे गए एडमिशन करवाया ,हॉस्टल में भी दाखला कराके  लौटे। डॉ वासिफ को वर्धा मेडिकल में एडमिशन मिलने पर कदम कदम पर उनकी मदद की ,माली इम्दाद करते रहे। डॉ राजेंद्र भंडारकर को भड़भूँजा में  dispensary चलाने के लिए जगह provide की और  उनकी हर मुमकिन मदद की।  डॉ साहेब ने भी आखरी उम्र में मरहूम की बेटे की तरह खिदमत की। 

मरहूम अफ्ज़लोद्दीन की ज़िन्दगी बड़ी disciplined थी। सुबह उठकर फजर के बाद वाकिंग करते। सुबह नौकर कुवें से ताज़ा ताज़ा पानी ले आता, उसे पीकर दिन की शुरुवात करते। नाश्ते के  बाद अपनी डायरी खोल कर दिन के प्रोग्राम देख लेते। घर ही में एक कमरे को ऑफिस बना रखा था ,मुलाक़ातियोय का सिलसिला शुरू होजाता।गाँव  के झगडे चुकाते । लोगो की परेशानी सुन कर उसका हल बताते । लोगो के लिए सिफरेशात की चिट्टिया बना कर देते। लंच तक ये सिलसिला चलता रहता। इलेक्शन के मौसम में जो सिलसिला कभी थमता नहीं था। कई सौ तादाद में लोग मिलने आते। घर में खाना बनता ,न कोई होटल था घर में आसिया बेगम नौकरों की फ़ौज के साथ खाने के इंतेज़ाम में लगी रहती। कई कई चूलहो पर बड़ी बड़ी देगों ,तपेलो में खाना बनता। सौ लोगो के लिए खाना बनता अक्सर १५० लोग खा कर जाते। गुरदवारे की तरह हर दम  लंगर जारी रहता ,चुलाह गर्म रहता। 

उनके रुसूख़ जान पहचान से घर का कारोबार भी दिन ब दिन चमकता रहा। वैगन  भर बाम्बू  से भरे टट्टे अहमदाबाद रोज़ाना रवाना किये जाते। उकाई डैम से टनो मछी आती बास्केट में पैक कर कलकत्ता हावड़ा ट्रैन से रवाना की जाती। एक मेला सा लगा रहता, गहमा गहमी का आलम रहता। कई सौ लोगो को रोज़ी रोटी इस बदौलत मिलती। 

जीते है शान से 

मरहूम को अच्छी नस्ल के कुत्ते पलने का बहुत शौक़ था। घर में हमेश ब्लड होंड ,अल्सेशियन कुत्ता ज़रूर पाया जाता। घर के बाहेर राजदूत , बुलेट और हौंडा इम्पोर्टेड मोटर साइकिल पायी जाती 

न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह 

मरहूम की जिंदिगी उनके पहने खादी के बेदाग़ क़मीज़ो की तरह शफ़फ़ रही। तमाम उम्र खुलूस से लोगो की खिदमत करते रहे। १९८३ में अपनी अहलिया के साथ हज भी किया। आखरी उम्र में सियासत से किनारा कशी (रिटायरमेंट )कर ली थी। १९९५ तक भड़भूँजे में क़याम रहा। आदिवासियों को पानी दम कर के देते ,सांप बिछु के काटे का इलाज जानते थे। अपनी अहलिया आसिया बेगम की सेहत की खराबी की वजह से नवापुर में शिफ्ट होगये थे। १९९९ में अहलिया  आसिया बेगम का इंतेक़ाल हुवा। २००१ में खुद ने भी इस जहाने फानी को अलविदा कहा ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है। अल्लाह  मरहूम को जन्नत नसीब करे। 

में ज़माने में चंद  ख्वाब छोड़ आया था  

उनके नक़्शे क़दम पर मोहसिन सईद अहमद सैय्यद मरहूम का भतीजा , सोनगढ़ में पत्रकार है और गुजरात में कांग्रेस पार्टी से जुड़ कर पार्टी को ज़िंदा करने की कोशिशों में लगा है। अल्लाह कामयाबी अता करे। 


हज से वापसी पर रागिब अहमद इस्तिक़बाल करते हुवे 

शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

khuda bakhshe bahut see khubiya thi marne wale me

                                                              खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में



मरहूम सैयद मोहम्मद अब्बास 
नाम : सैयद मोहम्मद अब्बास 
तारीखे पैदाइश : ३०/१०/१९४७ (सीतामढ़ी बिहार ) 
तारीखे वफ़ात :०९/१०/२०२० (२१ सफर १४४२) (नेरुल ) 

रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया 
 दायरे दर्द के बनने लगे तन्हाई में 
 मरहूम सैय्यद अब्बास को अली एम शम्सी अब्बास अलमदार (torch bearer ) के नाम से पुकारते थे। १९९८/१९९९ में हमारे राब्ते (touch ) में आये और हमारे बड़े भाई की तरह कुर्बत हासिल करली। हमारे ख़ानदान का वो हिस्सा बन गये,हमारे चार भाइयों में पाँचवें की जगह ले ली। हमारे तमाम बच्चों के  हरदिल अज़ीज़ (favorite) अब्बास अंकल हो गये। शुरवात में मस्जिद के करीब NL -२/३ में किराये पर रहते थे। फिर हालिया मकान NL -६ को  खरीद कर मुस्तक़िल रिहाइश (permanent residence )  इख़्तियार कर ली। हमेशा रहे मस्जिद के आस पा ही। 
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 
नज़रों में जज़्ब हो गये दिल में उतर गये 
 मरहूम अब्बास भाई मियाना क़द (average height),चेहरे पर मंद मंद मुस्कराहट उनकी शख़्सियत का हिस्सा थी ,चाल में विकार ,हमेशा धीमे लहजे में गफ्तगु करते ,नरम मिज़ाज , बात चीत में बहुत कम लफ़्ज खर्च करते। मरहूम का तकिया कलाम "बाबू "हुवा करता था।  पान खाने के बे हद शौक़ीन थे। 
कुछ इस तरह से तै की है हम ने अपनी मज़िलें 
गिर पड़े, गिर के उठे ,उठ के चले भाभी से 
 मरहूम सैय्यद अब्बास ने सीतामढ़ी बिहार से schooling पूरी करने के बाद इराक का रुख किया। Civil Construction Supervisor की हैसियत से कई साल बग़दाद इराक में गुज़ारे। इराक से लौटने के बाद ९० की दहाई में नेरुल की सरज़मींन को अपनी कर्म भूमि बनाया और यही की खाक में पैवस्त हुवे। शुरू शुरू में B.G Shirke कंपनी के साथ जुड़े NRI Complex नेरुल की कंस्ट्रक्शन में बहैसियत supervisor काम किया। फिर B.G Shirke कंपनी को  कई साल कंस्ट्रक्शन मटेरियल सप्लाई का काम किया। खुद की प्लाई की दूकान शिरोने गाव में चलायी। साथ साथ अपनी दोनों औलादो तनवीर और रिज़वान को MBA की education दिलवाई। दस साल पहले छोटे बेटे रिज़वान की अचानक हादसे में मौत होगयी थी, मरहूम अब्बास भाई कुछ अरसा सोगवार रहे। रिज़वान के इंतेक़ाल के कुछ रोज़ बाद उसका  MBA का declare हुवा था मुझ से मिलकर बड़े जज़्बाती अंदाज़ में रोते हुवे कहा था "बाबू रिज़वान MBA पास होगया"। उनकी ऑंखें छलकी हुवी थी सर फख्र से ऊँचा होगया था। ज़िन्दगी से हार नहीं मानी फिर उठ खड़े हुवे थे, हावरे माल में ऑफिस किराये पर ले कर प्लाट खरीद फरोख्त का काम शुरू किया था । 
मरहूम  अब्बास भाई को भाबी से बेइंतिहा मोहब्बत थी। अपनी बहु सबा को बेटी की तरह चाहा और उसने भी बेटी से बढ़ कर खिदमत की। अपने पोते अयान और पोती आफ़िया को स्कूल छोड़ने और लाने की ज़िमेदारी अपने सर ले रखी थी। तीन साल पहले बच्चों को स्कूल छोड़ कर घर लौटते हुवे उनका स्कूल बस से मस्जिद के करीब एक्सीडेंट भी होगया था।  
मरहूम मरकज़े फलाह नेरुल की बुनियाद से इंतेक़ाल से २ साल पहले तक  मरकज़े फलाह कमिटी  के मेंबर रहे। मरकज़ के कामो में वह दिलो जान से शामिल होते। ईदुल फ़ित्र ,ईदुल दुहा नमाज़ों का एहतेमाम मरकज़ की जानिब से यशवंत राव ओपन ग्राउंड में कई सालों से किया जाता रहा है। मरहूम अब्बास भाई ईद से ८ या १० दिन पहले, मज़दूरों  की फ़ौज लेकर ग्राउंड में पहुँच जाते ,मैदान की सफाई ,गड्डों का भरना ,मंडप के लिए बाम्बू लकड़ों का इंतेज़ाम अपने ज़िम्मे ले रखा था। फिर कुर्बानी का इंतेज़ाम ,ज़रूरतमंदो में क़ुर्बानी गोश्त तक़सीम करने की ज़िम्मेदारी भी अपने सर ले रखी थी। अपनी कुर्बानी सब से आखिर में करवाते। रोज़ा इफ्तार के प्रोग्राम में बाद चढ़ के हिस्सा लेते। मरकज़े फलाह की AGM में खाने का इंतज़ाम मरहूम करते।  लोगों को खाना अपने हातों से परोसने में उनेह दिली ख़ुशी मिलती। खुद sugar की शिकायत थी ,फिर भी सब से आखिर में खाना खाते  थे। मरकज़े फलाह की Identified Families को बीस साल  पहले ढूंढ निकल कर उनकी लिस्ट बनाने में मरहूम सादिक़ भाई ,मरहूम अब्बास भाई ,फिरोज चौगले और डॉ फ़ारुक़ उल जमा ने बड़ी मेहनत  की थी। आज बीस साल बाद क़ौम के २०० बच्चे  मरकज़े फलाह की मदद से ऊँची तालीम हासिल करके बड़ी बड़ी पोस्ट पर काम कर  वह क़ौम का क़ीमती सरमाया बन गए हैं ,बरसरे रोज़गार होगये है। यक़ीनन ये मारहुम अब्बास भाई की खुलूस भरी कोशिशों का नतीजा है। अल्लाह इस कारे खैर की बरकत से उम्मीद है उनके दरजात इंशाल्लाह बुलुंद करेंगा   ,जन्नते फिरदौस में आला मुक़ाम आता करेंगा। मरहूम तफ़्सीर क़ुरान की बा बरकत महफिलों में भी बाकायदगी से शरीक होते थे ,नाश्ते का इंतेज़ाम उजाला होटल से करते। खुशकिस्मत है अपने उन तफ़्सीरे क़ुरान के साथीयो  मरहूम सादिक़ भाई ,मरहूम शेह्ज़ाद खान ,मरहूम रफ़ीक अहमद मोदक के साथ नेरुल के सेक्टर २ के क़ब्रस्तान मेंआराम फरमा है ,पांचों वक़्त मस्जिद से अज़ान और नमाज़ों की आवाज़े रूह को सुकून बख्शती होगी ।
 मरहूम अब्बास भाई को पिछले तीन चार सालों से हिचकी का मर्ज़ होगया था। कई कई दिन लगातार हिचकी रुकने का नाम नहीं लेती थी। कई मर्तबा D .Y .Patil हॉस्पिटल में भी एडमिट हुए मर्ज़ लाइलाज रहा। कुछ दिन बाद हिचकी अपने आप बंद होजाती थी। आराम होजाता था। पिछले साल २०१९ ऑगस्ट में तीन चार रोज़ कोमा में रह कर  pacemaker लगा कर उठ खड़े हुवे। lock out के ६ महीने मरहूम के बड़े इत्मीनान से गुज़रे। अक्टूबर की शुरवात में मरहूम पर बे होशी तारी हुवी जुई नगर में Mangal Prabhu Hospital हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। जान बर न होसके। जुमे के मुबारक दिन इंतेक़ाल हुवा। खुशकिस्मत रहे अपने छोटे भाई इल्यास ,अपने फ़रज़न्द तनवीर जो इंतेक़ाल से एक दिन पहले बहरीन से इंडिया पहुंचे थे और अपने पोते अयान ने जनाज़े को कन्धा दिया। बाद नमाज़े असर नमाज़े जनाज़ ,तद्फीन सेक्टर २ नेरुल के क़ब्रस्तान में अमल में आयी। lock down के बावजूद १०० लोगों जनाज़े में शरीक रहे। अल्लाह मरहूम अब्बास भाई की मग़फ़ेरत करे घर वालों को सबरे जमील अता करे। 
मुठियों में खाक लेकर दोस्त आये वक़्त दफन 
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे 

सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

sher Ali Sayed



मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा 

मरहूम इंस्पेक्टट शेर अली सैय्यद 


British Delegation ke sath Marhum Inspector Sher Ali




नाम : शेर अली शौकत अली सय्यद 
जन्म तारीख : २९ ऑगस्ट १९५४ जलगांव 
वफ़ात (मौत) :१७ मोहर्रम १४२२ , २३ अप्रैल २००० (कुर्ला ,मुंबई )
वालिद का नाम : शौकत अली इज़्ज़त अली सैय्यद 
वालेदा का नाम  इलायत बी शौकत अली सैय्यद 
बीवी का नाम : रौशन शेर अली सैय्यद 
बच्चोँ के नाम : शहबाज़ शेरअली सैय्यद  ,साजिद अली शेर अली सैय्यद  , शाहीन समीर शेख़ (जलगांव )
भाई का नाम : लियाक़त अली शौकत अली सैय्यद 
बहने :१) शहज़ादी करीमुद्दीन शेख २) नियाज़ बेगम वजियोद्दीन सैयद  ३)हाजरा बी ख़ुश मुहम्मद शेख ४)लतीफा ज़हीरोद्दीन शेख़  ५)मैराज मेहफ़ूज़ अली सैय्यद ६) बिल्किस अहमदुद्दिन क़ाज़ी  ७)नाज़नीन मेहमूद अली सैय्यद ८) शबाना ज़ाकिर हुसैन सैय्यद 
शौकत और इज़्ज़त वाले घराने में शेर अली ही जन्म ले सकता है। बहुत लोग चांदी का चमचा मुँ में लिए पैदा होते हैं लेकिन बहुत लोगों को  अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है ,अपनी मंज़िल खुद तलाशनी पड़ती है। शेर अली भी उनमे का एक था। 
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ आबला पा को 
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है 
 पूत के पाँव पालने  में ज़ज़र आजाते है ,शेर अली को स्कूल ही से उसकी लियाक़त देखते हुवे  पुलिस  वेलफेयर  फण्ड से स्कॉलरशिप मिलती थी। जलगांव से १९७१  में नूतन मराठी स्कूल से ,मेट्रिक में जलगांव ज़िले में टॉप करने के बाद ,एम्.जे जलगांव से कॉलेज में, बी.कॉम में टॉप करने पर लोकल पेपरों  में ये ख़बर भी छपी थी। पेपर में ये भी लिखा था के शेर अली सैय्यद ने  M.B .A  करने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी। लेकिन हालात मजबूरिया इंसान को बहुत से ख्वाब मुकम्मिल करने से रोक देते हैं। दिल्ली में  अपने NCC यूनिट के साथ आज़ादी  की परेड में शामिल होना उसके लिए एक नयी मंज़िल की तरफ इशारा कर रहा था। वालिद  हेड कांस्टेबल शौकत अली भी यही चाहते थे के वो पुलिस अफसर बने। बग़ैर किसी वसीले या रिश्वत के शेर अली काऑफिसर  पोस्ट के लिए सिलेक्शन होता  है और फिर, हर किसी  का नसीब कहाँ होता है के बॉम्बे जैसे शहर में पोस्टिंग मिले, लेकिन उनेह शुरू से बॉम्बे में पोस्टिंग मिली। 
मुलुंड ,तिलक नगर चेम्बूर ,कुर्ला , VT ,घाटकोपर पुलिस स्टेशन में अपनी उम्दा कारगरदागी दिखाई। उस ज़माने में शेर अली के पास खुद का कम्प्यूटर था। उनकी की FIR और रिपोर्ट राइटिंग पर सब अचरज किया करते। उस ज़माने में उनके सीनियर ऑफिसर्स उनका मशवरा लिया करते। ब्रिटिश गवर्नमेंट की तरफ से delegation आया था उनोहने investigation and surveillance techniques पर सेमिनार किया था शेर अली को मुंबई पुलिस की तरफ से शरीक होने का मौक़ा मिला था। 
अपने पर्सनल रिफरेन्स से शेर अली ने अपने क़रीबी दोस्त रागिब अहमद को अमेरिकन कंपनी यूनाइटेड कार्बन ठाणे  बेलापुर रोड पर  पहली नौकरी दिलवाई थी। ऐसी कई मिसाल हैं। लोगो की मदद करना उनके के खून में शामिल था। बी एम् पागड़ नाम के व्यक्ति को एक औरत ने रेप  के झूठे केस में उलझा दिया था ,उसको अपनी तरफ से वकील करके निर्दोष साबित करवाया था। गणेश नाम का एक व्यक्ति शेर अली की मौत के ४ साल बाद उनेह तलाश कर उनके घर जाकर उनकी मौत पर दुःख ज़ाहिर करता है और कहता है "मेरे घर में गौतम बुध और आंबेडकर के साथ साथ सैय्यद साहब की तस्वीर भी लगी है जिस की मैं रोज़ाना पूजा करता हूँ। जुर्म की दुनिया से उस आदमी गणेश को निकाल कर शेर अली ने समाज में इज़्ज़त का मुक़ाम दिलाया था । 
बहनों  की शादियां ,बच्चों की बिस्मिल्ला ,शेर अली ने बड़ी शान शौकत से की। कुछ लोगों की sixth sense बड़ा मज़बूत होता है ,कही न कही उनेह अहसास होगया था के वो मुख़्तसर (छोटी) ज़िन्दगी लेकर आये है और उनेह जल्दी जल्दी काम निपटानें है। 
 माँ बाप की खिदमत शेर अली ने बड़े खुलूस से की। अपने छोटे भाई लियाक़त को ज़िन्दगी भर अपने साथ रखा। उसके दोनों बच्चोँ से उनेह बेपनाह उनसियत थी। जब अपने बड़े बेटे शाहबाज़ का  12th का रिजल्ट आया था और उसे सोमैया कॉलेज में Admission  मिला था तब शेर अली को मानो  दुनिया भर की खुशियां मिली थी। 
हमेशा शेर अली का घर रिश्तेदारों से भरा होता। अपने दोस्तों की घर आमद पर खास खानदेशी खानो की दावत मरहूम करते । आखरी पोस्टिंग चेम्बूर स्टेशन में  सीनियर इंस्पेक्टर इंचार्ज की थी ,रहने के लिए कुर्ला  पुलिस स्टेशन के ऊपर ब्रिटिश क्वार्टर में लम्बा चौड़े मकान में रिहाइश थी। शायद अपने घर में आने वाले मेहमानो की सहूलत के लिए उनोहने ये मकान पसंद किया था। 
२३ अप्रैल २००० के रोज़  serious हादसे के बाद  शेर अली ने आखरी साँस ली (इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन )उसी रोज़ कुर्ला कसाई  वाड़ा कब्रस्तान में २१  रायफलों की सलामी बॉम्बे पुलिस की तरफ से दी गयी और इज़्ज़त से  (सुपर्दे खाक )दफ़न किया गया। 
उदास छोड़ गया वो हर एक  मौसम को 
गुलाब खिलते थे कल जिसके मुस्कुराने से 
वही अख़लाक़ वही आदते  शेर अली अपनी औलाद को विरासत में माशाल्लाह दे गया। शहबाज़  (बड़े बेटे )ने कड़ी मेहनत से merchant navy में  तरक़्की कर के captain के ओहदे तक अपने आप को पुहचाया। अपनी माँ  को हज करवाया ,साथ  साथ अपने अब्बा का हज्जे बदल भी अदा किया। दोनों अवलादो (शाहबाज़ और साजिद ) ने बड़ी सख़ी  तबियत पायी है। रिश्तेदारों का खास ख्याल रखते हैं। बीवी बच्चों के नेक अख़लाक़ सख़ावत दरयादिली का सिला ज़रूर अल्लाह ताला शेर अली के नामा -ए -आमाल में लिखेगा और उनकी  मग़फ़िरत का सबब इंशाल्लाह बनेगा। आमीन सुमा आमीन 
जाने वाले कभी नहीं आते 
जाने वालों की याद आती है 



मंगलवार, 29 सितंबर 2020

QISSA CHAR DARWESH




अरबी Grammar में  दो ही ज़माने (Tenses ) पाये जाते हैं , माज़ी (past ) और मुदारे। मुदारे में हाल (present ) और मुस्तकबिल (future ) छुपा होता है। माज़ी (past ) चक्री में लपेटा हुवा वह धागा है, खुलता है तो पतंग को आसमान पे ले जाता है। फिर लपेटने को जी नहीं चाहता।
पचास साल लम्बा अरसा (period ) होता है। हम ने पाकिस्तान के साथ दो  wars लड़ी। लाल जवारी खायी खुश मसरूर रहे। आज पीज़ा ,बर्गर ,नूडल जाने क्या क्या है जो  नहीं मिलता। फ़िल्में ब्लैक एंड वाइट से तरक़्क़ी करके कलर और ३ D में बनने लगी हैं। घर बैठे Smart  TV पर दुनिया नज़र आजाती है। Mobiles  ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुके हैं। दोस्ती Whatsup ,Face book ,Instgram पर होने लगी है। ठेंगा दिखाना किसी ज़माने में एयब  (बुराई ) समझा जाता था आज पसंद (like ) के  लिये use होने लगा है। 
महव हैरत हूँ के दुनिया क्या से क्या होजायेंगी 
पचास साल पुरानी  यादें गठरी में बचाये रखी थी। गठरी खुली तो देखा माँ बाप नहीं रहे। कई दोस्त भी जुदा होगये। ज़मीं खा गयी आसमान कैसे कैसे 
मखदूम अली ,मैं (राग़िब ), शेर अली सय्यद और रफ़ीक शेख़ बहुत करीब दुःख सुख के साथी हुवा करते। जलगांव वतन को छोड़ा। इत्तेफ़ाक़न चारों ने साथ साथ बम्बई का रुख किया। हम सब ने शादी की ,तरक़्क़ी के अव्वलीन  मराहिल में थे। बच्चे  primary  education हासिल कर रहे थे। हम चारों ज़माने ,वक़्त और हालात से पंजा कशी में मसरूफ थे। 
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गये  
हिकायत पहले दरवेश की
Marhum Rafiq Shaikh

२४ साल पहले दर्दनाक हादसे में रफ़ीक हम से बिछड़ गया। क्या  दिलफ़रेब शख्सियत थी ६ फुट लम्बा कद  ,सुर्ख सफ़ीद  रंग ,आसमान सी नीली ऑंखें ,हमेशा मुस्कुराता चेहरा और गुनगुनाता तो मोहमद रफ़ी  की याद ताज़ा कर देता। मुंबई पुलिस में इंस्पेक्टर बन गया था , वर्दी पहन लेता तो अजीब बांकपन छलकने लगता। फिल्म इंडस्ट्री में जान पहचान थी ,रितिक रोशन की तरह खूबरु (handsome ) था। चाहता तो फिल्म एक्टर बन सकता था। लेकिन "हम सब तो रंग मंच की कठ पुतलियां हैं ,जिन की डोर ऊपर वाले के हाथ में है "  ऊपर वाले ने एक झटके में रफ़ीक की डोर खेंच ली। एक चलता फिरता इंसान अपने नामुक्कमील ख्वाबों ,आरज़ूओं , अरमानो को लिये  मनो मिट्टी के नीचे दब गया फना होगया। 
न जाने मेरे बाद उन पे क्या गुज़री 
मै ज़माने में चंद ख्वाब छोड़ आया था 
हिकायत दूसरे दरवेश की 
Marhum Inspector Sher Ali Sayed

शेर अली सय्यद भी ग़रीब खानदान में पैदा हुवा था ,वालिद पुलिस हवलदार थे। SSC में जलगांव में top किया था। कड़ी मेहनत से जलगांव से graduation किया। NCC में active part लिया करता। न कोई सिफारिश न रिश्वत अपने talent अपने बल बूते पर पुलिस सब इंस्पेक्टर के लिए select हुवा ,बॉम्बे में पोस्टिंग हुयी। मुलुंड , अँधेरी और चेम्बूर पुलिस स्टेशन में ड्यूटी निभाई तरक्क़ी कर इंस्पेक्टर बना। ख़ानदान के लिए अपने आप को वक़्फ़ कर रखा था। बहनो की शादी करवाई , न जाने उसे कैसे खबर होगयी थी के मुख़्तसर ज़िन्दगी  मिली है , बड़े बड़े कारनामे अंजाम देना हैं। अफ़सोस अपनी औलाद के रोशन मुस्तकबिल को न देख सका ,SP ,DSP  न बन सका। हुक्मे ख़ुदा वन्दी के सामने सर झुकाना पड़ा। वो लहीम शहीम जिस्म वाला, पुलिस वर्दी पहन कर निकलता तो लोग सहम जाते ,रफ़ीक के चार साल बाद पैवन्दे खाक हो गया। 
मेरी और मखदूम अली की पचास साला दोस्ती में चार दोस्तों की शफ़्क़तें ,चाहतें ,रफ़ाक़तें ,मोहब्तें छुपी हैं। 
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिले 
मौत क्या है थकन ख्यालों की 
ज़िन्दगी क्या है दम ब दम चलना 
हिकायत तीसरे दरवेश की
Sayed Makhhdum Ali
 
हमारी दोस्ती उस ज़माने की है जब जलगांव में साल में एक दफा रथ निकलता था। दशहरे पर लोग भवानी का सौंग रचा कर सारे शहर में ढोल ताशों के साथ घूमा करते। मोहर्रम के ताज़िये ,बाग़ ,दुलदुल ,अलाव और सवारिया हमारा entertainment हुवा करता। मेहरून तालाब और ख्वाजा मियां की दरगाह हमारी नज़रों में दुनिया की सब से खूबसूरत जगह हुवा करती थी। नटराज ,नटवर ,राजकमल और चित्रा सिनेमा में फिल्मे देखना अय्याशी समझा जाता था। हफ्ते में एक दिन रेडियो सीलोन से अमीन सियानी का "बिना का गीत माला " अकीदत  से सुनते। 
ख्वाब था जो देखा था ,अफसाना था जो सुना था 
हम ने ख्वाब भी बड़े बड़े नहीं देखे थे। लेकिन सोचा ज़रूर था कुछ अलग करना। है मखदूम अली उस ज़माने में (आज से ४० साल पहले )MPSC का exam पास करता है, आज पता चला कितना मुश्किल काम था जो मेरे यार ने चुटकियों में कर दिखाया। न खुशीया   मनाई न  जशन किया।, ज़िन्दगी में ये सब करने का  मौक़ा कब था। भाभी यास्मीन को  शादी के बाद B.ED करने का मौक़ा फ़राहम करता है। ख्वाब की बातेँ लगती हैं।
महराष्ट्र गवर्नमेंट से  account  officer की पोस्ट से retirement के बाद कल्याण में खरीदे घर को अपने सपनो का रंग दे कर इत्मीनान की ज़िन्दगी गुज़ार रहा है। घर के करीब मस्जिद की सहूलत भी दस्तियाब करली है। ज़िन्द्गगी में निचला बैठना नहीं सीखा। कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गये उनको मुक्कमिल करने में मसरूफ है। मुंबई यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म का कोर्स मुक्कमिल किया , रोज़ाना सुबह हम ख्याल दोस्तों के साथ चहल कदमी ,म्यूज़िक से शुग़ल ,कभी कभी अच्छी फिल्मो को देख लेना। उर्दू अदब से लगाव है ,मैगज़ीन ,इन्किलाब का दिलचस्पी से मुतालेआ। सोसाइटी की मैनेजिंग कमिटी में भी पेश पेश रहता है। कड़ी मेहनत से जनाब ने ग़रीब,बेवा ,अपंग रिश्तेदारों की लिस्ट बनायीं है ,और हर साल उन में रमजान के दौरान लोगों से जमा की रक़म की तक़सीम ईमानदारी से करते है।  औलाद की तरफ से इत्मीनान है ,भाभी यास्मीन और मखदूम अली की ज़िन्दगी में रावी चैन लिखता है। अल्लाह से दुआगो हु खानदाने मखदूम पर इसी तरह अपनी इनायतों ,करम ,आफ़ियतों का सिलसिला क़ायम दायम रखे। आमीन 
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 
उठाये हाथ तो ये दुआ याद आयी 



रागिब अहमद शैख़  (आत्मा कथा )
तारीखे पैदाइश :२६/११/ १९५४ (यावल ,जलगांव )
हिकयते ग़मे दुनिया तवील थी कह दी 
हिकयते ग़मे दिल मुख़्तसर है क्या कहिये


Ragib Ahmed
  वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया 
  इज़्ज़त  उसे मिली जो वतन से निकल गया  
50 साल पहले 1971 में  एंग्लो उर्दू हाई स्कूल  जलगांव से मीट्रिक पास कर ,बॉम्बे आया था जेब में एक एक पेन ,दो जोड़ी कपडे ,चप्पल का एक जोड़ा मेरी मिलकियत थी। लेकिन वो जो कहा जाता है ,जो बॉम्बे एक बार आ जाता है नामुमकिन है कभी वतन लौटे। सोमैया कॉलेज से इंटर साइंस पास करने के बाद महाराष्ट्र कॉलेज बेलासिस रोड से B.SC  की डिग्री हासिल की।
इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे, उठ के चले
बॉम्बे में SOFTSULE PVT LTD  ,United Carbon India , Rama Petroleum में ज़िन्दगी के लंम्बे २० साल गुज़ारे। बहुत कुछ सीखा।  किस्मत से Syria (शाम) में oil field में ८ साल shell petroleum के साथ Derra Zor मक़ाम फील्ड पर गुज़ारे। बेहतरीन तजुर्बा रहा। बहुत कुछ सीखा। 
 शाम पैग़म्बरों की सर ज़मीन है । दमिश्क़ शहर इस्लामी यादगारों से भरा पड़ा है।  पैग़म्बर याह्या ,हज़रात बिलाल , सलाहुद्दीन अय्यूबी ,खालिद बिन वलिद ,इब्ने खुल्दुम के मज़ारात पर हाज़िरी देने का शरफ़ हासिल हुवा। बनी उम्मैया की खूबसूरत मस्जिद पर हाज़री दी,कहा जाता है इसी मस्जिद के मीनारे पर बैठ कर इमाम ग़ज़ाली (RA ) ने अह्या उल उलूम किताब लिखी थी । आज दिल अश्क़ बार है ,सीरिया (शाम ) की ईंट से ईंट बजा दी गयी है। वहां के अवाम को ये भी पता नहीं उनेह किस जुर्म की सज़ा दी जारही है।
११ साल सूडान  में GREAT NILE PETROLEUM में काम किया। कंपनी खूबसूरत जंगलों के बीच थी ,कुदरत को करीब से देखने का मौक़ा मिला। खुशकिस्मत रहा local (मुक़ामी ) सुडानियों को oil field operation में माहिर कर COMPANY उनके हवाले कर आये। लेकिन वहां भी अमेरिकन politics काम कर गयी। मुल्क को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया गया । crude oil की दौलत साउथ सूडान के हवाले कर दी। नार्थ सूडान मुस्लिम मुल्क को कुछ भी हाथ न लगा।
१९८२ में शगुफ्ता से शादी हुवी माशाल्लाह अल्लाह ने दो लड़कियों  से नवाज़ा और हमे जन्नत का हक़दार बना दिया। दोनों  बेटियां शादी के बाद  अपने ख़ानदान के साथ  अमेरिका और Canada  में खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं। हम दोनों मियां बीवी (में और शगुफ्ता )नेरुल नवी मुंबई में सुकूनत पज़ीर है। मरकज़े फलाह नेरुल में  काम करके कौम के बच्चों  मुस्तकबिल को सवारने की कोशिश में लगे रहते है।  
इक़रा खानदेश फाउंडेशन की बुनियाद रख कर मरहूम मिस्बाह अंजुम ने एक शुरवात की थी। अल्हम्दोलीलाह प्रेस्डिडेन्ट के ओहदे की ज़िम्मेदारी उठाना ,रिश्तेदारों के बच्चों के लिए स्कालरशिप ,और तक़सीमे इनामात (PRIZE DISTRIBUTION ) प्रोग्रम्स ,मैरिज ब्यूरो की सरगर्मियां रिश्तेदारों की फलाह के लिए कुछ शुरवात तो हुयी। 
अल्लाह इत्तेहाद क़ायम रखे ,टूट फुट से बचाये आमीन सुम्मा आमीन। 
COVID  की  वबा (महामारी )ने इंसानियत को हलकान कर दिया है तोड़ दिया है । ऐसे सख्त दौर में भी कुछ लोग नफरत की सियासत खेल रहे हैं। अल्लाह से दुआ हैं ,हम अपनी काविशों ,कोशिशों से, काश सिसकती इंसानियत के ज़ख्मों का  कुछ मदावा कर सके,ज़ख्मो पर मरहम रख सके। 
माना के इस जहाँ को न गुलज़ार (बाग़ ) कर सके 
कुछ ख़ार  (कांटे ) कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम 

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

lubna lasne



 17th September को मोदी की पैदाइश हुयी थी ,Cheryl strayed  मशहूर अमेरिकन  Author ने भी ईसी दिन जनम लिया था। Virgo इन लोगो की zodiac sign होती है। इन लोगों के बारे में कहा जाता है के ये बड़े Talented और Modest होते हैं। हमारी बाजी लुबना भी इन सभी खूबियों से आरास्ता, मज़्ज़यन   (decorated ) है।  सादा मिज़ाज ,ज़िंदा दिल और ज़िन्दगी से भरपूर।
लुबना की पैदाइश भी 17th September को होई थी। लुबना का मतलब होता है Elegance , जन्नत  में बहने वाली दूध की नहर। मशाल्लाह हमारी लुबना शेख ख़ानदान की पहली चश्म व चराग़ है, अल्लाह ने उसे बेहतरीन दिमाग़ दिया है ,बहुत सारी खूबियों की मालिक है। आने वाली नसल के लिए वो मश अले राह (torch bearer ) साबित हुयी है। हमारे खानदान में American citizenship मिलाने वाली पहली फर्द साबित हुवी है। कुवैत में जनम लिया वहां schooling पूरी करने  के बाद ग्रेजुएशन India से और Post Graduation अमेरिका से किया। अपनी कंपनी में भी नाम और मक़ाम पैदा किया। सोने पे सुहागा हैदर लसने जैसा चाहने वाला शोहर मिला । रिदा और राहील की सूरत में दो नेमतें अल्लाह ने इनायत की और दोनों को बेहतरीन तालीम ,अख़लाक़ और अमेरिका में रहते हुवे इस्लाम और क़ुरान के नूर से रुशनास करवाया। माँ बाप की खिदमत ,देख भाल में भी लुबना ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साबित किया नेक फर्माबरदार औलाद कैसी होती है।
आज सालगिरह के अवसर पर लुबना के लिए मुबारकबाद के messages की झड़ी लगी हैं। शायद हम सब में इतनी दूरी न होती, हम सब करीब होते तो लुबना का पूरा मकान गुलदस्तों से भर गया होता, लेकिन इन खूबसूरत पैग़ामात में जो दिली जज़्बात पिन्हा (hidden ) हैं उन की महक उनकी खुशबू का अहसास  लुबना तुम्हें ज़रूर होगया होंगा।
में कुछ न कहु और ये चाहूँ के मेरी बात
खुशबु की तरह उड़ के तेरे दिल में उतर जाये 
 हम सब तुम्हारे लिए दुआ गो हैं। रौशन मुस्तकबिल के लिए ,सेहत ,तंदुरुस्ती और तवील उमरी (long life ) के लिए। "यार ज़िंदा सोहबत बाक़ी " ज़िन्दगी रही तो मिलेंगे गुज़रे हुवे इन लम्हात इन पलों का मदावा ,भरपाई कर लेंगे (इंशाल्लाह )

शनिवार, 12 सितंबर 2020

Shehzad Khan


                                                         
                                                                  लावू कहाँ से दूसरा तुझ सा कहूँ जिसे 
इंसान की पहचान न उसका महंगा लिबास होता है न खुशबु से महका वजूद। इंसान की पहचान होती है उसके अख़लाक़ उसके Character से। 
एक सूरज था सितारों के घराने से उठा 
आंख हैरान है क्या शख्स ज़माने से उठा 
लॉक डाउन के इस ज़माने में एक सैलाब आया है, हर दिन मारूफ नेक शख्सियतो से दुनिया खाली  होती जा रही है। १० सितम्बर  २०२०  बामुतबिक २१ मोहर्रम अल हराम  १४४२  नेरुल की हर दिल अज़ीज़ ,फरिश्ता सिफत ,मारूफ  शख्सियत जनाब शहज़ाद  खान इस दारे फानी से कुच कर गए।  मरहूम खालिस (pure ) पठान  ख़ानदान से ताल्लुक़  (belong ) करते  थे। बरसो पहले उनके अजदाद (पूर्वज) अफ़ग़ानिस्तान से कुच (shift ) कर जलाला बाद ,शामली ज़िले में  रहाईश पज़ीर (शिफ्ट) होगये थे। मरहूम के दादा इब्राहिम अली खान भी क़ुरान के हाफिज थे। मरहूम शहबाज़ खान के वालिद हाफिज आसिफ अली खान १९३८ में बॉम्बे आकर ROYAL INDIAN NAVAL POLICE FORCE में मुलाज़िम हुवे। दूसरी World war में शरीक हुवे। रिटायरमेंट के बाद firestone कंपनी में कुछ साल काम किया। शिवरी में हाफिज आसिफ अली खान का दबदबा था। पठानों के सरदार हुवा करते थे। आपके ६ बेटे और ५ बेटियां थी। आपके बड़े बेटे शाहिद खान भी हाफिज ही है। 
 हालाँकि मरहूम शहजाद  खान की पुश्तो माद्री ज़बान  (mother tongue )थी  । उसके इलावा उनेह मराठी ,इंग्लिश ,उर्दू ,अरबिक पर command हासिल था  , Arabic  countries  से आयी जमात के मरहूम बाकायदा translator  हुवा करते थे। जब उनसे उनकी तालीम और  vast knowledge  के बारे में पूछा जाता तो वो ,आजज़ी से आंखे  बंद कर आसमान की तरफ हाथ उठाकर ( ये उनका STYLE था ) कहा करते "ये सब बुज़ुर्गों के क़दमों में बैठने का फैज़ है ,अल्लाह की मेहरबानी है"
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए
पस्ता कद (short height ), गोल चेहरा ,सफ़ीद रंग ,गरजदार आवाज़। खान साहेब हमेशा सफ़ेद पठानी ड्रेस पहने रहते। सर पर टोपी ,टोपी के ऊपर बड़ा रुमाल ओढ़े , लपटे रहते। छोटे छोटे क़दमों से तेज़ तेज़ चलने की उनकी आदत थी। कृष्ण कमल से जामे मस्जिद नेरुल तक पांचो वक़्त नमाज़ के लिए , कभी अपनी कार ले आते, कभी कोई अल्लाह का बंदा उन्हें लिफ्ट दे देता। अकेले चल कर आते तो ज़बान पर चुपके चुपके अल्लाह का ज़िक्र शुरू रहता। उनकी वजह से मस्जिद में अल्लाह वालो की आमद का सिलसिला जारी रहता। मौलाना अब्दुला फूलपुरी , मौलान हिफ्ज़ुर रेहमान मेरठी ,कितने जय्यद  आलिम ,फ़ाज़िल लोग  आते  रहे हैं और तक़रीर शुरू करने  से पहले मरहूम शहबाज़ खान अपने मख़सूस अंदाज़ में उनका तआर्रुफ़  introduction इस जुमले से शुरू करते  "भाइयो बुज़र्गों दोस्तों "   उन बुज़र्गों का  background  उनका खानदानी सिलसिला रवानी से बयांन करते ,लोगो को तरग़ीब दिलाते के अगर बयांन सुन कर जाये तो कितना फैज़ उनेह हासिल होगा ,और ज़िंदगियों में बरकत आएगी ,तब्दीली आयेगी। लोग भी बड़ी तवज्जेह से बायान सुनते। मरहूम की एक खूबी थी मदरसों मस्जिदों  के सफ़ीरों के साथ  नमाज़ के बाद बैठ कर लोगों से चंदे के लिए दरख्वास्त करना , अपना बड़ा रुमाल बिछा कर  जान पहचान वालों को नाम लेलेकर आवाज़ें देते ,और में ने देखा है उनकी अवाज़  पर नेरुल की अवाम ने लब्बैक कहा है , अपनी जेबे खाली की है। मरहूम controversy से हमेशा दूर रहे। जब मस्जिद में जमात के ताल्लुक़ से मामला तूल पकड़ा उनसे पूछा गया कहने लगे " शैतान का वस्वसा है इंशाल्लाह उल अज़ीज़ मामला सुलझ जायेगा। डॉ शरीफ ने  १५  दिन उमरे  का सफर  मरहूम के साथ किया था आज सुबह उनके मरहूम शाहज़ाद  खान के बारे में तास्सुरात जानने की कोशिश की गयी उनोह ने एक जुमले में अपना मुदुआ बयान किया "मरहूम खान साहब  को  देख कर अल्लाह की याद ताज़ा होजाती थी। मरहूम चाय और खीमे के शौक़ीन थे। कहा करते "जिस तरह कार के लिए पेट्रोल चाहिए उसी तरह मुझे चाय की तलब है "  
मरहूम शहज़ाद  खान को ख़ुसूसन दुआ के लिये बड़े बड़े प्रोग्राम्स में बुलाय जाता। आप भी बड़े रक़्क़त अंदाज़ में दुआ करते के लोगो के आंसू निकल पड़ते । 16th ऑगस्ट 2020 को कृष्णा कमल सोसाइटी में u clean laundry के इफ्तेताह (inauguration ) पर मरहूम खान साहेब से  आखरी मुलाक़ात हुवी थी जहां उनेह दुआ करने के लिये बुलाया गया था।  मरकज़े फलाह ,जमीतुल उलमा के बड़े बड़े प्रोग्रमस से आप को बुलाया जाता उनसे नात पढ़ाई जाती ,दुआ कराई जाती। पोलिटिकल rallies और programs  में भी दुआ के लिए आप को बुलाया जाता था।
Quran the truth की ऑफिस में दरसे क़ुरान में हमेश मरहूम शेह्ज़ाद खान शरीक हुवा करते थे। क़ुरान की तफ़्सीर पर भी आप को command हासिल था। अतनी serious महफ़िल में भी हलके फुल्के मज़ाकी  वाक़ेआत को तफ़्सीर से जोड़ कर महफ़िल को गुलज़ार कर देते  थे।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये
मरहूम  खान साहेब बच्चों के साथ बचे बनजाते थे और हंसी हंसी में  बच्चों को नसीहत आमेज़ पैग़ाम पोहंचा देते थे। मरहूम दर्द मंद दिल रखते थे। नमाज़ के बाद पानी पर दम करने के लिये लोग बच्चों को लाते मरहूम खान साहेब कुछ वक़्त ठहर लोगो से हाल चाल पूछते ,तस्सली देते और पानी पर दम भी करते।
मरहूम खान साहेब ने अपने अवलादों की तरबियत पर भी खास तवज्जे दी माशाल्लाह पांच बच्चों में से दो बच्चे इंजीनियर है। दो लड़कियों थी जिन की शादी होचुकी है।
इस ब्लॉग के साथ attached video में जन्नत में मक़ाम पाने की चालीस अहादीस मरहूम खान  साहेब ने लॉक डाउन के दौरान याद कर ली। मरते वक़्त भी  उनसे सवाल किया जाता तो उनका वही अंददज़ होता "में ने चालीस हदीसें याद करके जन्नत में  इंशाल्लाह अपना मक़ाम reserve कर लिया ,६२ साल ज़िन्दगी के जी लिए हज़ूर पाक की आखरी सुन्नत अदा होजारहि है ,हुज़ूर पाक ने भी तो इसी उम्र  (६३ साल ) की उम्र में वफ़ात पायी थी। अल्लाह मरहूम शाहज़ाद खान को जन्नत में आला मक़ाम आता करे।
मनो मिटटी के नीचे डाब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो 



सोमवार, 7 सितंबर 2020

Sharifunnisa yusuf Ali

पर नहीं ताकते परवाज़ मगर रखती है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
एक शफ़ीक़ बेटे ,राशिद अली की अपनी  मरहूमा वालिदा  शरीफुन्निसा के लिए आंसुओं से लिखी गयी तहरीर ,खिराजे अकीदत , श्रद्धांजलि ,शब्दों में दिल का दर्द छुपा है  , माँ  (शरीफुन्निसा )ने पहले अपने  ४ भाईयों अपने बाप  का अपनी अम्मी की मौत के बाद ९ साल तक  ख्याल रखा, अपने भाइयों की  तरबियत की।  फिर अपने शोहर की  वफ़ात के बाद अपने छोटे छोटे  ५ बच्चों की परवरिश की  , मायूसी में, न  कमज़ोरी दिखाई न नाहिम्मति। अपने कमज़ोर  नातवां कन्धों पर बरसों औलाद के दुखों परेशानियों के बोझ को झेलती रही। अल्हम्दोलीलाह भाइयों ने भी बहन का क़र्ज़  अदा करने की पूरी कोशिश की।  माशाल्लाह औलाद ने भी सख्त मेहनत की दुनिया में में मक़ाम बनाया ,  माँ की आखरी उम्र में बेलोसे खिदमत की , माँ  को हज कराया।
मनो मिटटी के नीचे  दब  गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो 

बुधवार, 2 सितंबर 2020

गुरुजी


Occasion:: Mansoor Bhai birthday
Dated :03/09/2019
Place: Wonder park
Mansoor Bhai at farm house

                                                                         मंसूर  मलँग
वो भले हो के बुरे हम को बहुत प्यारे हैं
अब तो हम नए दोस्त बनाने से रहे 
अगर ऊपरवाला  मुझे पुनर जन्म ,नयी ज़िंदगी देता और पूछता ,तुम अपने दोस्तों की लिस्ट अपनी मर्ज़ी से बनावों ,तो पहले नम्बर पर किसे रखोगे ,मैं बेसाख़्ता जवाब देता मंसूर ,दूसरे नम्बर पर कौन मैं यही जवाब देता मंसूर जेठाम  ,तीसरे नम्बर पर भी में  ने उन्ही का नाम लिया होता ।मंसूर का meaning होता है मदद किया गया ,शायद इसी लिए हमारे मंसूर भाई दूसरों के ग़म को अपना ग़म समझते है ,दूसरों की ख़ुशी में माशाल्लाह ऐसे शामिल होते है ,जैसे अपनी ख़ुशी हो ।

तुम आगये हो नूर आगया है।
उत्तम कुमार ,शक्ति कपूर ,जग्गी वासुदेव  जैसे नामवर लोग ३ सितम्बर को पैदा हुवे थे एक और  जानी  मानी शख्सियत  ने भी ५० साल पहले ३ सितम्बर को  कोकन के छोटे से गांव वहूर तालुका महाड ,जिला राय गड में  जेठाम खानदान में जी. ऍम नारंग के घर जनम लिया , जशन का का माहौल था। क्यों न होता सालों पहले लगाए गए बिजली के खंबो में उसी दिन गांव में रौशनी दौड़ी थी। गांव जगमगा उठा था। जिसके क़दमों की बरकत से गाँव रोशन हुआ था ,मंसूर के नाम से पुकारा जाने लगा।
 अजीब इत्तेफ़ाक़ है नारंग खानदान के मंसूर को अतरंगी ग्रूप में  गुरुजी के नाम से जाना जाता है, कुछ लोग उनको बंगाली भी कहते हैं  ,क्यों कहते है औसफ उसमनी ही बता पायेंगे । हमारे गुरु मंसूर हमेशा चेलों से घिरे रहते हैं।    मुज़फ़्फ़र और सोनावने गुरु के दाँये बायें उन के लिए जान निछावर करने के लिये हमेशा तय्यार रहते है ।गुरु की तारीफ़ में आसमान ज़मीन एक कर देते है, गुरुजी के और एक भक्त श्री हरीशजी भी है जो उनकी हर बात पर बरोबर बरोबर कहते रहते है  कुछ लोग गुरूजी की बुराई भी करते हैं । गुरुजी आपकी बुराई करने से आपकी अज़मत आपकी बढ़ायीं में कोयी कमी नहीं आएँगी ,आप को पता होना चाहिए आसमान की ओर थूकने वाले का क्या अंजाम होता है ।आपके चाहने वालों की संख्या का अंदाज़ा कोयी क्या करे l गुरुजी  की बेनियादी  खूबी ,दूसरों की ख़िदमत , खुलूस और दुनिया से बेराग़बती  की बिना पर उनमें मुझे मलँग की झलकियाँ नज़र आती है। 
कहानी मेरी रुदादे जहाँ मालूम होती है 
जो सुनता है उसीकी दास्तान मालूम होती है 
फंजिंदर उर्दू स्कूल  वहुर से मेट्रिक करने के बाद गुरूजी ने मुंबई का रुख किया ,जहाँ  उनेह अपने मामू मुमानी अब्दुल रहीम कोकाटे की रहनुमाई मिली। गुरूजी ने पोलिटिकल सायेंस में मीठीबाई कॉलेज से  Distinction में ग्रैजूएशन पूरी करने के बाद कोकन मर्केंटाइल बैंक से की थी अपने career की शुरूवात ,जनाब अली एम  शम्सी की रहबरी मिली जो बैंक के चेयरमैन थे। सूद (interest) का कारोबार इस्लाम में जाएज नहीं ।ऊपर वाले पर इतना भरोसा था बैंक की भली नौकरी छोड़ दी ,बिल्डर बन गए ,एक कामयाब बिल्डर बन कर बताया ।
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ अबला पॉ को 
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबाँ से चमन तक है 
२० साल पहले मुम्ब्रा छोड़ कर नेरुल बसाया ।बियाँबान सुनसान सेक्टर-१९ को आबाद किया ।  Ruby बिल्डिंग बनायी ,बिल्डिंग कोअपने रिश्तेदारों से आबाद किया और हर वक़्त उनकी ख़िदमत में लगे रहते है।मुम्ब्रा के होटलों की याद आने लगी तो अपने दोस्त औसफ के मारेफत होटेल Ahmed bhai  नेरुल में शुरू करवायी कूछः तसकीन् हुयी ।२० सालों से नेरुल को मुम्ब्रा बनाने की कोशिश में लगे है ,लेकिन  ना कैसर उल जाफ़री जैसे शायर आपने नेरुल में पाया ,ना मुम्ब्रा के मुशायरे , ना अदबी महफ़िलों का नेमूल बदल ।अब जाफ़री साहेब का दीवान याद कर लिया है ,दोस्तों को उनके शेर सुना कर तस्कीन पा लेते है ।
 दोस्तों की फ़रमाइश पर कोकन के ओर्गानिक आमों का कारोबार सुनील कुडेकर के साथ मिल कर किया । गाँव में अपनी  ancestor (आबायी) उजड़ी ज़मीन को गुलों गुलज़ार किया ।इस साल महामारी के कारन क़ुरबानी में problem हुवा तो अपने farm house को goat farm में तब्दील कर दिया ।
  पिक्निक  हो या पार्टी गुरुजी महफ़िल को अपनी आवाज़ के फ़न से महका देते है ,लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि उनकी आवाज़ फटे बाँस के जैसी बेसुरि है ।अपनी अपनी राय है कौन किसी को रोक सकता है ।गुरुजी Program कम्पेरिंग में महारत रखते है ,इस से किसी को इख़्तेलफ नहीं हैं
  वो जैसे ही सुबह सुबह  Wonder park  में वाकिंग के लिए दाखिल होते है , शोर मच जाता है गुरुजी आगये , उनके साथ चलने के लिए एक भीड़ इकठ्ठा होजाती है ,गुरूजी अपने अनमोल ख़यालात  (पर्वचन) से ,साथ वालों को नवाजते रहते है ।फिर गुरुजी सब को हल्की फुलकि वरज़िश (व्यावयम) भी  कराते  है ।
जब भी चाहा है उसे शिद्दत से चाहा है मंसूर 
गुरुजी को कुछ समय पहले NCP की पोस्ट पर nominate किया गया ,फिर तो जैसे भूकंप आगया गुरुजी पूरे तन मन धन से पार्टी के कामों में जुड़ गए । खाना पीना सोना उनके लिए पार्टी होगाया ।गुरुजी की यही एक अदा हम सब को भाती है किसी भी काम को चाहे छोटा हो या बड़ा बड़े खुलुस  dedication से करते है ,अपनी जेब से पैसे लगाते है ,अपना क़ीमती वक़्त ,एनर्जी इस काम में  लगा देते है ।  गुरुजी की बातें अजीब दिल्फ़रेब होती है ।कुर्ला Spare part मार्केट से अपनी कार के लिए ६०० रुपए का spare ख़रीदने जाते है ,२००० रुपये का होटेल का बिल बनता है ।इसे कहते है क़लंदरी ।
माना के इस ज़मीन को न गुलज़ार कर सके 
कूच ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम 
 मेडिकल रीसर्च ने prove कर दिया है कि  अच्छे दोस्तों की महफ़िल में बैठने से इंसान की उम्र में कयी सालों की बढ़ोतरी होजाती है ,हमारा ग्रूप है ही शानदार (सुनील होनराव ,सुनील कुडेकर ,औसाफ़ ,हामिद भाई ,इश्तियाक़ ,मुज़फ्फर ,चिनार (half ) ,सोनवणे ,इनामदार ,हरीश जैसे दोस्त खुशनसीब लोगों को ही मिलते हैं। )सोने पे सुहागा मंसूर जैसा  प्यारा मुखलिस दोस्त भी इस में शामिल है ,हम सब ख़ुश रहते हैं ,ज़िंदगी का लुत्फ़ लेते हैं । मंसूर भाई इस नफरत भरे माहौल में इसी तरह मोहब्बत के दिये  रोशन करते रहे |
    सालगिरह के इस अवसर पर मंसूर भाई को हम सब की जानिब से दिली मुबारकबाद  और दुआ  ऊनहे सेहत ,तंदुरुस्ती और उँचा मुक़ाम हासिल हो ।आमीन सुमा आमीन ।