खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में
मरहूम सैयद मोहम्मद अब्बास |
तारीखे पैदाइश : ३०/१०/१९४७ (सीतामढ़ी बिहार )
तारीखे वफ़ात :०९/१०/२०२० (२१ सफर १४४२) (नेरुल )
रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया
दायरे दर्द के बनने लगे तन्हाई में
मरहूम सैय्यद अब्बास को अली एम शम्सी अब्बास अलमदार (torch bearer ) के नाम से पुकारते थे। १९९८/१९९९ में हमारे राब्ते (touch ) में आये और हमारे बड़े भाई की तरह कुर्बत हासिल करली। हमारे ख़ानदान का वो हिस्सा बन गये,हमारे चार भाइयों में पाँचवें की जगह ले ली। हमारे तमाम बच्चों के हरदिल अज़ीज़ (favorite) अब्बास अंकल हो गये। शुरवात में मस्जिद के करीब NL -२/३ में किराये पर रहते थे। फिर हालिया मकान NL -६ को खरीद कर मुस्तक़िल रिहाइश (permanent residence ) इख़्तियार कर ली। हमेशा रहे मस्जिद के आस पा ही।
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब हो गये दिल में उतर गये
मरहूम अब्बास भाई मियाना क़द (average height),चेहरे पर मंद मंद मुस्कराहट उनकी शख़्सियत का हिस्सा थी ,चाल में विकार ,हमेशा धीमे लहजे में गफ्तगु करते ,नरम मिज़ाज , बात चीत में बहुत कम लफ़्ज खर्च करते। मरहूम का तकिया कलाम "बाबू "हुवा करता था। पान खाने के बे हद शौक़ीन थे।
कुछ इस तरह से तै की है हम ने अपनी मज़िलें
गिर पड़े, गिर के उठे ,उठ के चले भाभी से
मरहूम सैय्यद अब्बास ने सीतामढ़ी बिहार से schooling पूरी करने के बाद इराक का रुख किया। Civil Construction Supervisor की हैसियत से कई साल बग़दाद इराक में गुज़ारे। इराक से लौटने के बाद ९० की दहाई में नेरुल की सरज़मींन को अपनी कर्म भूमि बनाया और यही की खाक में पैवस्त हुवे। शुरू शुरू में B.G Shirke कंपनी के साथ जुड़े NRI Complex नेरुल की कंस्ट्रक्शन में बहैसियत supervisor काम किया। फिर B.G Shirke कंपनी को कई साल कंस्ट्रक्शन मटेरियल सप्लाई का काम किया। खुद की प्लाई की दूकान शिरोने गाव में चलायी। साथ साथ अपनी दोनों औलादो तनवीर और रिज़वान को MBA की education दिलवाई। दस साल पहले छोटे बेटे रिज़वान की अचानक हादसे में मौत होगयी थी, मरहूम अब्बास भाई कुछ अरसा सोगवार रहे। रिज़वान के इंतेक़ाल के कुछ रोज़ बाद उसका MBA का declare हुवा था मुझ से मिलकर बड़े जज़्बाती अंदाज़ में रोते हुवे कहा था "बाबू रिज़वान MBA पास होगया"। उनकी ऑंखें छलकी हुवी थी सर फख्र से ऊँचा होगया था। ज़िन्दगी से हार नहीं मानी फिर उठ खड़े हुवे थे, हावरे माल में ऑफिस किराये पर ले कर प्लाट खरीद फरोख्त का काम शुरू किया था ।
मरहूम अब्बास भाई को भाबी से बेइंतिहा मोहब्बत थी। अपनी बहु सबा को बेटी की तरह चाहा और उसने भी बेटी से बढ़ कर खिदमत की। अपने पोते अयान और पोती आफ़िया को स्कूल छोड़ने और लाने की ज़िमेदारी अपने सर ले रखी थी। तीन साल पहले बच्चों को स्कूल छोड़ कर घर लौटते हुवे उनका स्कूल बस से मस्जिद के करीब एक्सीडेंट भी होगया था।
मरहूम मरकज़े फलाह नेरुल की बुनियाद से इंतेक़ाल से २ साल पहले तक मरकज़े फलाह कमिटी के मेंबर रहे। मरकज़ के कामो में वह दिलो जान से शामिल होते। ईदुल फ़ित्र ,ईदुल दुहा नमाज़ों का एहतेमाम मरकज़ की जानिब से यशवंत राव ओपन ग्राउंड में कई सालों से किया जाता रहा है। मरहूम अब्बास भाई ईद से ८ या १० दिन पहले, मज़दूरों की फ़ौज लेकर ग्राउंड में पहुँच जाते ,मैदान की सफाई ,गड्डों का भरना ,मंडप के लिए बाम्बू लकड़ों का इंतेज़ाम अपने ज़िम्मे ले रखा था। फिर कुर्बानी का इंतेज़ाम ,ज़रूरतमंदो में क़ुर्बानी गोश्त तक़सीम करने की ज़िम्मेदारी भी अपने सर ले रखी थी। अपनी कुर्बानी सब से आखिर में करवाते। रोज़ा इफ्तार के प्रोग्राम में बाद चढ़ के हिस्सा लेते। मरकज़े फलाह की AGM में खाने का इंतज़ाम मरहूम करते। लोगों को खाना अपने हातों से परोसने में उनेह दिली ख़ुशी मिलती। खुद sugar की शिकायत थी ,फिर भी सब से आखिर में खाना खाते थे। मरकज़े फलाह की Identified Families को बीस साल पहले ढूंढ निकल कर उनकी लिस्ट बनाने में मरहूम सादिक़ भाई ,मरहूम अब्बास भाई ,फिरोज चौगले और डॉ फ़ारुक़ उल जमा ने बड़ी मेहनत की थी। आज बीस साल बाद क़ौम के २०० बच्चे मरकज़े फलाह की मदद से ऊँची तालीम हासिल करके बड़ी बड़ी पोस्ट पर काम कर वह क़ौम का क़ीमती सरमाया बन गए हैं ,बरसरे रोज़गार होगये है। यक़ीनन ये मारहुम अब्बास भाई की खुलूस भरी कोशिशों का नतीजा है। अल्लाह इस कारे खैर की बरकत से उम्मीद है उनके दरजात इंशाल्लाह बुलुंद करेंगा ,जन्नते फिरदौस में आला मुक़ाम आता करेंगा। मरहूम तफ़्सीर क़ुरान की बा बरकत महफिलों में भी बाकायदगी से शरीक होते थे ,नाश्ते का इंतेज़ाम उजाला होटल से करते। खुशकिस्मत है अपने उन तफ़्सीरे क़ुरान के साथीयो मरहूम सादिक़ भाई ,मरहूम शेह्ज़ाद खान ,मरहूम रफ़ीक अहमद मोदक के साथ नेरुल के सेक्टर २ के क़ब्रस्तान मेंआराम फरमा है ,पांचों वक़्त मस्जिद से अज़ान और नमाज़ों की आवाज़े रूह को सुकून बख्शती होगी ।
मरहूम अब्बास भाई को पिछले तीन चार सालों से हिचकी का मर्ज़ होगया था। कई कई दिन लगातार हिचकी रुकने का नाम नहीं लेती थी। कई मर्तबा D .Y .Patil हॉस्पिटल में भी एडमिट हुए मर्ज़ लाइलाज रहा। कुछ दिन बाद हिचकी अपने आप बंद होजाती थी। आराम होजाता था। पिछले साल २०१९ ऑगस्ट में तीन चार रोज़ कोमा में रह कर pacemaker लगा कर उठ खड़े हुवे। lock out के ६ महीने मरहूम के बड़े इत्मीनान से गुज़रे। अक्टूबर की शुरवात में मरहूम पर बे होशी तारी हुवी जुई नगर में Mangal Prabhu Hospital हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। जान बर न होसके। जुमे के मुबारक दिन इंतेक़ाल हुवा। खुशकिस्मत रहे अपने छोटे भाई इल्यास ,अपने फ़रज़न्द तनवीर जो इंतेक़ाल से एक दिन पहले बहरीन से इंडिया पहुंचे थे और अपने पोते अयान ने जनाज़े को कन्धा दिया। बाद नमाज़े असर नमाज़े जनाज़ ,तद्फीन सेक्टर २ नेरुल के क़ब्रस्तान में अमल में आयी। lock down के बावजूद १०० लोगों जनाज़े में शरीक रहे। अल्लाह मरहूम अब्बास भाई की मग़फ़ेरत करे घर वालों को सबरे जमील अता करे।
मुठियों में खाक लेकर दोस्त आये वक़्त दफन
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
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