लावू कहाँ से दूसरा तुझ सा कहूँ जिसे
इंसान की पहचान न उसका महंगा लिबास होता है न खुशबु से महका वजूद। इंसान की पहचान होती है उसके अख़लाक़ उसके Character से।
एक सूरज था सितारों के घराने से उठा
आंख हैरान है क्या शख्स ज़माने से उठा
लॉक डाउन के इस ज़माने में एक सैलाब आया है, हर दिन मारूफ नेक शख्सियतो से दुनिया खाली होती जा रही है। १० सितम्बर २०२० बामुतबिक २१ मोहर्रम अल हराम १४४२ नेरुल की हर दिल अज़ीज़ ,फरिश्ता सिफत ,मारूफ शख्सियत जनाब शहज़ाद खान इस दारे फानी से कुच कर गए। मरहूम खालिस (pure ) पठान ख़ानदान से ताल्लुक़ (belong ) करते थे। बरसो पहले उनके अजदाद (पूर्वज) अफ़ग़ानिस्तान से कुच (shift ) कर जलाला बाद ,शामली ज़िले में रहाईश पज़ीर (शिफ्ट) होगये थे। मरहूम के दादा इब्राहिम अली खान भी क़ुरान के हाफिज थे। मरहूम शहबाज़ खान के वालिद हाफिज आसिफ अली खान १९३८ में बॉम्बे आकर ROYAL INDIAN NAVAL POLICE FORCE में मुलाज़िम हुवे। दूसरी World war में शरीक हुवे। रिटायरमेंट के बाद firestone कंपनी में कुछ साल काम किया। शिवरी में हाफिज आसिफ अली खान का दबदबा था। पठानों के सरदार हुवा करते थे। आपके ६ बेटे और ५ बेटियां थी। आपके बड़े बेटे शाहिद खान भी हाफिज ही है।
हालाँकि मरहूम शहजाद खान की पुश्तो माद्री ज़बान (mother tongue )थी । उसके इलावा उनेह मराठी ,इंग्लिश ,उर्दू ,अरबिक पर command हासिल था , Arabic countries से आयी जमात के मरहूम बाकायदा translator हुवा करते थे। जब उनसे उनकी तालीम और vast knowledge के बारे में पूछा जाता तो वो ,आजज़ी से आंखे बंद कर आसमान की तरफ हाथ उठाकर ( ये उनका STYLE था ) कहा करते "ये सब बुज़ुर्गों के क़दमों में बैठने का फैज़ है ,अल्लाह की मेहरबानी है"
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए
पस्ता कद (short height ), गोल चेहरा ,सफ़ीद रंग ,गरजदार आवाज़। खान साहेब हमेशा सफ़ेद पठानी ड्रेस पहने रहते। सर पर टोपी ,टोपी के ऊपर बड़ा रुमाल ओढ़े , लपटे रहते। छोटे छोटे क़दमों से तेज़ तेज़ चलने की उनकी आदत थी। कृष्ण कमल से जामे मस्जिद नेरुल तक पांचो वक़्त नमाज़ के लिए , कभी अपनी कार ले आते, कभी कोई अल्लाह का बंदा उन्हें लिफ्ट दे देता। अकेले चल कर आते तो ज़बान पर चुपके चुपके अल्लाह का ज़िक्र शुरू रहता। उनकी वजह से मस्जिद में अल्लाह वालो की आमद का सिलसिला जारी रहता। मौलाना अब्दुला फूलपुरी , मौलान हिफ्ज़ुर रेहमान मेरठी ,कितने जय्यद आलिम ,फ़ाज़िल लोग आते रहे हैं और तक़रीर शुरू करने से पहले मरहूम शहबाज़ खान अपने मख़सूस अंदाज़ में उनका तआर्रुफ़ introduction इस जुमले से शुरू करते "भाइयो बुज़र्गों दोस्तों " उन बुज़र्गों का background उनका खानदानी सिलसिला रवानी से बयांन करते ,लोगो को तरग़ीब दिलाते के अगर बयांन सुन कर जाये तो कितना फैज़ उनेह हासिल होगा ,और ज़िंदगियों में बरकत आएगी ,तब्दीली आयेगी। लोग भी बड़ी तवज्जेह से बायान सुनते। मरहूम की एक खूबी थी मदरसों मस्जिदों के सफ़ीरों के साथ नमाज़ के बाद बैठ कर लोगों से चंदे के लिए दरख्वास्त करना , अपना बड़ा रुमाल बिछा कर जान पहचान वालों को नाम लेलेकर आवाज़ें देते ,और में ने देखा है उनकी अवाज़ पर नेरुल की अवाम ने लब्बैक कहा है , अपनी जेबे खाली की है। मरहूम controversy से हमेशा दूर रहे। जब मस्जिद में जमात के ताल्लुक़ से मामला तूल पकड़ा उनसे पूछा गया कहने लगे " शैतान का वस्वसा है इंशाल्लाह उल अज़ीज़ मामला सुलझ जायेगा। डॉ शरीफ ने १५ दिन उमरे का सफर मरहूम के साथ किया था आज सुबह उनके मरहूम शाहज़ाद खान के बारे में तास्सुरात जानने की कोशिश की गयी उनोह ने एक जुमले में अपना मुदुआ बयान किया "मरहूम खान साहब को देख कर अल्लाह की याद ताज़ा होजाती थी। मरहूम चाय और खीमे के शौक़ीन थे। कहा करते "जिस तरह कार के लिए पेट्रोल चाहिए उसी तरह मुझे चाय की तलब है "
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए
पस्ता कद (short height ), गोल चेहरा ,सफ़ीद रंग ,गरजदार आवाज़। खान साहेब हमेशा सफ़ेद पठानी ड्रेस पहने रहते। सर पर टोपी ,टोपी के ऊपर बड़ा रुमाल ओढ़े , लपटे रहते। छोटे छोटे क़दमों से तेज़ तेज़ चलने की उनकी आदत थी। कृष्ण कमल से जामे मस्जिद नेरुल तक पांचो वक़्त नमाज़ के लिए , कभी अपनी कार ले आते, कभी कोई अल्लाह का बंदा उन्हें लिफ्ट दे देता। अकेले चल कर आते तो ज़बान पर चुपके चुपके अल्लाह का ज़िक्र शुरू रहता। उनकी वजह से मस्जिद में अल्लाह वालो की आमद का सिलसिला जारी रहता। मौलाना अब्दुला फूलपुरी , मौलान हिफ्ज़ुर रेहमान मेरठी ,कितने जय्यद आलिम ,फ़ाज़िल लोग आते रहे हैं और तक़रीर शुरू करने से पहले मरहूम शहबाज़ खान अपने मख़सूस अंदाज़ में उनका तआर्रुफ़ introduction इस जुमले से शुरू करते "भाइयो बुज़र्गों दोस्तों " उन बुज़र्गों का background उनका खानदानी सिलसिला रवानी से बयांन करते ,लोगो को तरग़ीब दिलाते के अगर बयांन सुन कर जाये तो कितना फैज़ उनेह हासिल होगा ,और ज़िंदगियों में बरकत आएगी ,तब्दीली आयेगी। लोग भी बड़ी तवज्जेह से बायान सुनते। मरहूम की एक खूबी थी मदरसों मस्जिदों के सफ़ीरों के साथ नमाज़ के बाद बैठ कर लोगों से चंदे के लिए दरख्वास्त करना , अपना बड़ा रुमाल बिछा कर जान पहचान वालों को नाम लेलेकर आवाज़ें देते ,और में ने देखा है उनकी अवाज़ पर नेरुल की अवाम ने लब्बैक कहा है , अपनी जेबे खाली की है। मरहूम controversy से हमेशा दूर रहे। जब मस्जिद में जमात के ताल्लुक़ से मामला तूल पकड़ा उनसे पूछा गया कहने लगे " शैतान का वस्वसा है इंशाल्लाह उल अज़ीज़ मामला सुलझ जायेगा। डॉ शरीफ ने १५ दिन उमरे का सफर मरहूम के साथ किया था आज सुबह उनके मरहूम शाहज़ाद खान के बारे में तास्सुरात जानने की कोशिश की गयी उनोह ने एक जुमले में अपना मुदुआ बयान किया "मरहूम खान साहब को देख कर अल्लाह की याद ताज़ा होजाती थी। मरहूम चाय और खीमे के शौक़ीन थे। कहा करते "जिस तरह कार के लिए पेट्रोल चाहिए उसी तरह मुझे चाय की तलब है "
मरहूम शहज़ाद खान को ख़ुसूसन दुआ के लिये बड़े बड़े प्रोग्राम्स में बुलाय जाता। आप भी बड़े रक़्क़त अंदाज़ में दुआ करते के लोगो के आंसू निकल पड़ते । 16th ऑगस्ट 2020 को कृष्णा कमल सोसाइटी में u clean laundry के इफ्तेताह (inauguration ) पर मरहूम खान साहेब से आखरी मुलाक़ात हुवी थी जहां उनेह दुआ करने के लिये बुलाया गया था। मरकज़े फलाह ,जमीतुल उलमा के बड़े बड़े प्रोग्रमस से आप को बुलाया जाता उनसे नात पढ़ाई जाती ,दुआ कराई जाती। पोलिटिकल rallies और programs में भी दुआ के लिए आप को बुलाया जाता था।
Quran the truth की ऑफिस में दरसे क़ुरान में हमेश मरहूम शेह्ज़ाद खान शरीक हुवा करते थे। क़ुरान की तफ़्सीर पर भी आप को command हासिल था। अतनी serious महफ़िल में भी हलके फुल्के मज़ाकी वाक़ेआत को तफ़्सीर से जोड़ कर महफ़िल को गुलज़ार कर देते थे।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये
मरहूम खान साहेब बच्चों के साथ बचे बनजाते थे और हंसी हंसी में बच्चों को नसीहत आमेज़ पैग़ाम पोहंचा देते थे। मरहूम दर्द मंद दिल रखते थे। नमाज़ के बाद पानी पर दम करने के लिये लोग बच्चों को लाते मरहूम खान साहेब कुछ वक़्त ठहर लोगो से हाल चाल पूछते ,तस्सली देते और पानी पर दम भी करते।
मरहूम खान साहेब ने अपने अवलादों की तरबियत पर भी खास तवज्जे दी माशाल्लाह पांच बच्चों में से दो बच्चे इंजीनियर है। दो लड़कियों थी जिन की शादी होचुकी है।
इस ब्लॉग के साथ attached video में जन्नत में मक़ाम पाने की चालीस अहादीस मरहूम खान साहेब ने लॉक डाउन के दौरान याद कर ली। मरते वक़्त भी उनसे सवाल किया जाता तो उनका वही अंददज़ होता "में ने चालीस हदीसें याद करके जन्नत में इंशाल्लाह अपना मक़ाम reserve कर लिया ,६२ साल ज़िन्दगी के जी लिए हज़ूर पाक की आखरी सुन्नत अदा होजारहि है ,हुज़ूर पाक ने भी तो इसी उम्र (६३ साल ) की उम्र में वफ़ात पायी थी। अल्लाह मरहूम शाहज़ाद खान को जन्नत में आला मक़ाम आता करे।
मनो मिटटी के नीचे डाब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
Quran the truth की ऑफिस में दरसे क़ुरान में हमेश मरहूम शेह्ज़ाद खान शरीक हुवा करते थे। क़ुरान की तफ़्सीर पर भी आप को command हासिल था। अतनी serious महफ़िल में भी हलके फुल्के मज़ाकी वाक़ेआत को तफ़्सीर से जोड़ कर महफ़िल को गुलज़ार कर देते थे।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये
मरहूम खान साहेब बच्चों के साथ बचे बनजाते थे और हंसी हंसी में बच्चों को नसीहत आमेज़ पैग़ाम पोहंचा देते थे। मरहूम दर्द मंद दिल रखते थे। नमाज़ के बाद पानी पर दम करने के लिये लोग बच्चों को लाते मरहूम खान साहेब कुछ वक़्त ठहर लोगो से हाल चाल पूछते ,तस्सली देते और पानी पर दम भी करते।
मरहूम खान साहेब ने अपने अवलादों की तरबियत पर भी खास तवज्जे दी माशाल्लाह पांच बच्चों में से दो बच्चे इंजीनियर है। दो लड़कियों थी जिन की शादी होचुकी है।
इस ब्लॉग के साथ attached video में जन्नत में मक़ाम पाने की चालीस अहादीस मरहूम खान साहेब ने लॉक डाउन के दौरान याद कर ली। मरते वक़्त भी उनसे सवाल किया जाता तो उनका वही अंददज़ होता "में ने चालीस हदीसें याद करके जन्नत में इंशाल्लाह अपना मक़ाम reserve कर लिया ,६२ साल ज़िन्दगी के जी लिए हज़ूर पाक की आखरी सुन्नत अदा होजारहि है ,हुज़ूर पाक ने भी तो इसी उम्र (६३ साल ) की उम्र में वफ़ात पायी थी। अल्लाह मरहूम शाहज़ाद खान को जन्नत में आला मक़ाम आता करे।
मनो मिटटी के नीचे डाब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
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