गुरुवार, 5 नवंबर 2020

शरीफुद्दीन सय्यद उर्फ़ बच्चू भाई नवापुर वाले


                              मरहूम बच्चू भाई अपने करीबी स्वरुप सिंह नाइक माजी वन मंत्री के साथ 
एक्स डिप्टी होम मिनिस्टर  माणिक राव मरहूम का स्वागत करते हुवे 


अपने पचास साला पुराने दोस्त गौहर पठान के साथ 

मरहूम अल्हाज शरीफुद्दीन सय्यद अपने खेत में 

                                                     
अपनी शरीक हयात शमशाद  बेगम के साथ 

       बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा 
                                                                               
नाम : शरीफुद्दीन सैय्यद (उर्फ़ बच्चू भाई ) 
तारीखे पैदाइश :    29/10/1938   नवापुर  ,  तारीखे वफ़ात :  10-03-2019   नवापुर 
ऐज़ाज़त (Achievements ) : 
१. मेंबर पंचायत समिति नवापुर  (1978 -1983 )
२. सरपंच ग्राम पंचायत झामंजर -२० साल 
३. मेंबर DRUCC (भुसवल डिवीज़न )- 1990 -1994 
४. चेयरमैन मिल्क प्रोडक्शन सोसाइटी झामंजर -२० साल 
५. स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (SEM ) नवापुर -२५ साल 
६. मेंबर रोज़गार हमी योजना कमिटी 
नवापुर की मारूफ  (Famous )हस्ती  किसी तआरुफ़ (Introduction ) की मुहताज नहीं माशाल्लाह उनके नाम (शरीफुद्दीन ) से ही शराफत टपकती है। अशराफ ख़ानदान (सैय्यद ,जमादार ) से निस्बत रखते  है , बात चीत में शराफत ,रवैये में शराफत ,तअल्लुकात में शराफत ।  
जैसे दिलीप कुमार को बहुत कम लोग युसूफ खान के नाम से जानते है,मरहूम शरीफुद्दीन भी बच्चू भाई के नाम से जग मशहूर थे।  उर्फियत ने उनके असली नाम को पीछे छोड़ दिया। मरहूम फरमाते थे शायद ही कोई मुझे शरीफुद्दीन के नाम से जनता हो। 
मरहूम की शख्सियत बड़ी दिलकश थी। ६ फ़ीट लम्बा कद (height ), जाज़िब नज़र (Attractive ) ,दूधिया सफ़ेद मायल रंग ,चेहरे पर सब्ज़ (green ) नीलगु ऑंखें। मरहूम ने पाटदार आवाज़ पायी थी। एक्टिंग को अपना पेशा बनाया होता तो दिलीप कुमार को नहीं अमिताभ बच्चन को ज़रूर पीछे छोड़ दिया होता। ज़िंदा दिल ,खुश मिज़ाज ,हलीम तबियत (नरम मिज़ाज )कभी मरहूम को ग़ुस्सा होते नहीं देखा। तालीम (Education ) ज़ियादा हसील नहीं कर पाए थे ,दुनिया के तजुर्बात (Experiences ) ने उनेह बहुत कुछ सीखा दिया। 
मरहूम  मामू जान ग़ालिब की तरह ज़िंदा दिल थे। उनका मज़ाक़ भी बड़ा मोहिजीबना होता ,इरफ़ान उनका फ़रज़न्द ,मुझे बता रहा था एक दिन वो अपने दोस्तों को घर ले आया ,बच्चू मामू ने उससे कहा अपने दोस्तों को ठंडा पीलाव  ,दोस्त कहने लगे हम पी कर आये है। बच्चू मामू ने बरजस्ता कहा "आप पिए हुवे तो नहीं लगते। 
ज़िन्दगी इतने मसायल से घिरी है बहुत कम लोग  मरहूम की तरह ,इन तल्खियों में चाशनी घोलने वाले मिलते है। बच्चू मामू  ने ८२ साल की  लम्बी उम्र पायी ,और माशाल्लाह हमेशा अपनी ज़िंदादिली ख़ुशमिज़ाजी क़ायम रखी।  ,उनकी सेहत का यही एक राज़ था। 
बुलंदियों पर पहोचना कोई कमाल नहीं 
बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है 
मरहूम बच्चू मामू पर ये शेर १००% सादिक़ आता है। बला की खुद ऐतेमादि (self confidence ) थी मरहूम में ,जिस काम में हाथ डाला माशाल्लाह कामियाब रहे। भड़भूँजा ,सकरदा ,झामंजर में दुकाने खोली कामयाबी से चलायी। सियासत (politics ) में कदम रखा २० साल लगातार झामंजर के सरपंच रहे। ५ साल पंचायत समिति के मेंबर रहे, उस इलाक़े (Area ) में जहां आदिवासियों का बोल बाला (वर्चस्व ) है। गोवेरमेंट के contract  हासिल करके ,रोड बनाये ,हॉस्पिटल तामीर किये। 
खेती बाड़ी की ,लकड़ो का कामयाब  कारोबार किया। एक वक़्त था उनका एक पॉव धूलिया में होता दूसरा मुंबई और फिर लोकल मामलात में भी हमेशा एक्टिव रहे। सवरूप सिंह नायक ,माणिक राव गावित और बिपिन चोखावला मारूफ  (well known ) हस्तियों के साथ मरहूम के घरेलु ताल्लुक़ात थे। हर बात में ये सब एक दूसरे  से मश्वरा लिया करते। मरहूम की गौहर पठान साहेब से आधी सदी (half century )पुरानी दोस्ती मौत के साथ ही ख़त्म हुवी। क्या मोहबतें ,उन्सियत ,अपनाइयत हुवा करती थी दोस्तों में ,इस की  ये एक यह एक ज़िंदा मिसाल है। 
मुझे सहल होगयी मंज़िलें वो हवा के रुख भी बदल गए 
तेरा हाथ हाथ में आगया के चराग़ रह में जल गए 
में ने मरहूम से एक बार  पूछा था "आपकी शादी को कितना अरसा होगया ,और मुमानी जान का नाम क्या है " कहने लगे रागिब में तुम्हारे दोनों सवालों का जवाब एक साथ दूंगा " ६० साल से लगातार शमशाद बेगम के गाने सुन रहा हूँ "।  ( कहने का मतलब था ,मुमानी का नाम शमशाद बेगम और शादी को ६० साल का अरसा होगया ) कहा और ज़ोर से क़हक़हा लगाया,जो उनकी पहचान थी। 
मुमानी जान से नोंक झोंक का सिलसिला जारी रहता  ,और मामू मिया मज़ाहिया फखरे कस कर माहौल को ज़ाफ़रानी कर देते। 
दोनों ने मिल कर अपनी औलाद की बेहतरीन तरबियत (ट्रेनिंग) की अच्छे खानदानो में शादिया करवाई।  इरफ़ान और नुमान  अपनी दोनों औलादों को, अच्छी तरह कारोबार में सेट करवा दिया। ज़िन्दगी भर कोंग्रेसी रहे,आखिर तक अपने उसूलो पर क़ायम रहे ,नफरत फ़ैलाने वाली सिआसत से उनेह बैर था।  
आखिर आखिर में सियासत से बड़े बद दिल  (heart broken ) होगये थे। इंतेक़ाल से कुछ अरसा पहले पॉलिटिक्स से रिटायरमेंट लेली थी ,लेकिन अपने आप को हमेशा एक्टिव रखा। खेती बाड़ी और मियारी  (standard )किताबें पढ़ने में अपने आप को मसरूफ रखते थे। दोस्तों का बहुत बड़ा हलका (circle ) था रोज़ाना  शाम में मटर गश्ती और फिर गरमा गरमा बहस होती। बाकायदगी से मस्जिद में  नमाज़ अदा करते। अपने खेत में ज़ियादा वक़्त गुज़रते। आमों के पेड़ लगा रखे थे ,जो फलो से लदे रहते। लहलहाती फसल को निहारते रहते ,अपनी चारपाई डाले मज़दूरो को काम करते देखते रहते। कभी कभी हाथ में किताब भी होती ,गहराई से मुतालिआ करते। अपना जाती मकान ,गाड़ी ,ड्राइवर ,वाफ़ा शॉर बीवी ,फर्माबरदार औलाद , समाज में रुतबा , इज़्ज़त ,और सोने पे सोहागा २००४ में मरहूम ने हज का फ़रीज़ा भी अदा कर लिया था  ,इस से ज़ियादा पुरसुकून ,कामयाब  ज़िंदगी और क्या हो सकती ही ?

मौत तो वो है ,जिस का ज़माना करे अफ़सोस 
यूँ तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिये 
मरहूम के इंतेक़ाल के बाद ,अरसे तक अखबारात में ताज़ियतें छपती रही। कई प्रोग्राम मुनअक़िद किये गए जिन में उनेह खिराजे अक़ीदत पेश किया गया। कई राज़ों से पर्दा उठा ,किरदार के उन पहलुओ  पर रौशनी पड़ी जो ज़माने से परदे में थे। 
उनकी सिफारशों  से कितनो की तरक़्की हुवी ,नौकरी मिली ,ट्रांसफर में मदद मिली ,कब्रस्तान मस्जिद मदरसों के काम हुवे। 
बिपिन चोखवाला साहेब इरफ़ान से कहते है, "आपके घर के सामने से गुज़रना छोड़ दिया  हु ,बच्चू भाई की याद ताज़ा होजाती  है " क्या किसे के चले जाने से किसी की ज़िंदगी में इतना बड़ा ख़ला (vacuum ) भी पैदा हो सकता है ? 
१९५६ में झामंजर के चर्च पर बिजली गिरी थी और चर्च, राख का ढेर होगया था। मरहूम मामू जान ने चर्च की नए सिरे से तामीर  (construction ) में अपनी खिदमात (help ) दी थी ,ये बात उस चर्च के फादर ने एक ताज़ियाती महफ़िल में कही और लोगो को अचरज में दाल दिया। ऐसे किरदार की बुलंदी बहुत कम लोगो को नस्सेब होती है । churches  में भी मरहूम मामूजान के लिए prayers  मुनाकद  की गयी, इस बात का सबूत है के फिरका परस्ती  और नफरत की सियासत मरहूम जैसे लोगों के होते पनपने वाली नहीं। 
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया 
 १० मार्च २०१९ को बच्चू मामू इस जहाने फानी से कूच कर गए। बड़े खुशकिस्मत  रहे ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में अपने ख़ानदान के बुज़ुर्गों ,अज़ीज़ो के साथ आराम फरमा हैं। अल्लाह मरहूम बच्चू मामू की मग़फ़िरत करे ,जन्नत फ़िरदौस में आला मुक़ाम आता करे।   आमीन ,सुम्मा आमीन। 

                                                         
मरहूम इंस्पेक्टटर कादरी के साथ 

  

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