गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

ढूंढ उजड़े हुवे लोगों में वफ़ा के मोती

दाएं से बाएं जोए अंसारी ,ऐजाज़ सिद्दीकी ,कृष्णा चंद्र ,जान निसार अख्तर 


मरहूम अल्हाज ज़ैनुलआबेदीन की एक यादगार तस्वीर 

                                             
ब्रूक बांड के स्टार सेल्समैन ऑफ़ द इयर १ किलो की सिल्वर ट्रॉफी इनाम 
नाम : अलहाज ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद 
तारीख़े पैदाइश :११/०३/१९३५ (नवापुर ) , वफ़ात :०७/०४ २०१५ (नवापुर ) ,तालीम :  १९५५ में एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव से मेट्रिक पास किया था 
वालिद का नाम : मोहियुद्दीन सय्यद 
वालिदा का नाम : मुनीरा मोहियुद्दीन सैय्यद (उर्फ़ मुन्ना फुफु )
भाइयों के नाम :ज़ियाउद्दीन सैय्यद ,शरीफोद्दिन सैय्यद ,शहाबुद्दीन सैय्यद ,साजोद्दीन सैय्यद ,ख़ालिकोद्दिन सैय्यद 
बहनो के नाम :रज़िया क़मरुद्दीन मुंशी ,आसिया अफ्ज़लोदिन सैय्यद ,खालिदा शाफियूद्दीन शेख़ ,नसीम शराफ़त अली सैय्यद ,फरीदा गयासुद्दीन शेख़ 
सब कहां कुछ लाला व गुल में नुमायां होगयी 
ख़ाक में क्या सूरते होंगी के पिन्हा होगयी 
              ग़ालिब 
मरने के बाद कुछ लोग फूलों की शक्ल में नमूदार होजाते हैं। ये शेअर मरहूम ज़ैनुलआबेदीन पर सादिक़ आता है। 
ख़ूबरू ,६ फ़ीट क़द (HEIGHT ), झील सी गहरी नीली ऑंखें ,शफ़्फ़ाफ़ रंग ,मरऊब कर देने वाली आवाज़ ,उर्दू ज़बान माद्री ज़बान थी ,हिंदी ,मराठी ,ऐरानी ,गुजरती , आदिवासी (भील ) ज़बाने भी अहले ज़बान की तरह बोलते थे।
कितने वीरानो से गुज़रे हैं तो जन्नत पायी है 
सैंकड़ों कुर्बानिया दे कर ये नेमत पायी  है 
 भरे पुरे खानदान से belong करते थे। भाइयों में सब से बड़े थे। मिस्बाह अंजुम के बनाये शिजरे से पता चलता है के  वालिदा की जानिब से मरहूम का सिलसिला वाजिहुद्दीन गुजराती रह.अलैह तक पहुँचता था।  
मरहूम ज़ैनुलआबेदीन अपनी बड़ी बहन रज़िया मुंशी के साथ जलगांव में मेट्रिक करने  के लिए रहा करते। रिहाइश काटया फ़ैल में   मिर्ज़ा पान वाले के बग़ल में खानदेश साइकिल वाले के मकान में थी ।  जलगांव की मारूफ हस्ती ज़ाहिद देशमुख और मरहूम ज़ैनुलआबेदीन हम जमात (class mate ) थे। ज़ाहिद साहिब जब भी मरहूम का ज़िक्र करते ,कहा करते "ज़ैन बड़ा चुलबुला,खलंडरा ,स्टाइलिश  हुवा करता था , बेहतरीन आल राउंडर तो था ही क्रिकेट टीम की कैप्टनशिप भी किया करता था " उस ज़माने में मेट्रिक इम्तेहान के लिए बॉम्बे जाना पड़ता था ,दोनों ने साथ जाकर मेट्रिक का इम्तेहान पास किया  । मेट्रिक पास करने के बाद मरहूम ने कुछ अरसा अंजुमन इ खैरुल इस्लाम कुर्ला में टीचर का job भी किया। 
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं 
ब्रूक बांड कंपनी में जब मरहूम को सेल्स Department में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो उनसे दो सवाल पूछे गए थे "ताज महल की तारीख और रूस के उस समय के president Khrushchev के नाम की स्पेलिंग ,उन के जवाब से ज़ियादा उनके confidence और उनके appearance से interview panel मातासिर हुवे थे। उनकी personality उनके language command देख कर उनेह शहादा Depot manager की पोस्ट ऑफर की गयी थी। उस समय multinational  company में जॉब मिलना Importance  रखता था। मरहूम को ब्रूक बांड कंपनी की चाय ((प्रोडक्ट्स ) को खेतीया ,प्रकाशा  ,धडगाव और सात पुड़ा के इलाक़े में प्रमोट करना था। कई सालो तक बैल गाड़ी ,जीप ,बस और ट्रक से गाँव गाँव घूम कर कंपनी के प्रो डक्ट्स रेड लेबल ,दो गुलाब CTC ,crushed चाय चप्पे चप्पे पर  मरहूम ने पहुंचा दी। sales promotion पर कई ट्रॉफीज उनेह इनाम में मिली। स्टार सेल्समेन ऑफ़ द ईयर  Award कई बार उनोहने अपने नाम किया।brook bond कंपनी ने bond motor cycle introduce की थी मेरे शौक़ को देखते हुवे मुझे गिफ्ट की थी।  एक बार उनेह Bangkok  जाने का मौका भी मिला था वो  किसी वजह से जा नहीं पाए। मरहूम को कंपनी की AGM में खास तोर पर बुलाया जाता  और felicitate किया जाता। मैं ने उनका नाम brook bond कंपनी की AGM report  मेंकई बार देखा है। 
उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग है 
मरहूम ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद आला मिज़ाज रखते थे। लायंस क्लब के मेंबर हुवा करते थे। इक़बाल ,उर्दू शायरी, उर्दू अदब ,क़ौम में तालीम  और रोज़गार ,इन चीज़ों से उनेह बे इंतिहा लगाव था। मरहूम ने अपने दोस्तों प्रोफेसर खान सर, मेहमूद  साहेब Auditor  , इस्माइल साहेब ,गोरे मिया काज़ी के साथ मिल बज़्मे नौ की बुनियाद डाली। मुशायरे ,अदबी महफिलें मुनअक़िद किये  ,काज़ी चौक शहदा में लायबररि की बुनियाद डाली ,ढेर सारी शायरी और अदबी उर्दू किताबें फ्री पड़ने के लिए दी जाती थी। सर सैय्यद एजुकेशन सोसाइटी बना कर शाहदे में गर्ल स्कूल शुरू की गयी जो अब तक जारी है। मरहूम इस स्कूल कमिटी के खजांची थे ,कई दफा स्टाफ को अपने जेब से salary अदा करते। दूसरा अहम कदम जो शाहदे में उठाया था वो था सर सय्यद क्रेडिट क़ो ऑप सोसाइटी का क़याम ,क़ौम  में गरीबो को खुद कफील बनाने के लिए छोटे छोटे क़र्ज़ दे कर बिज़नेस शुरू करवाना ,अब भी सोसाइटी क़ायम है और लोग फायदा उठा रहे है। अपनी तीनो औलादो परवेज़ ,सुहैल और ऐजाज़ की भी मरहूम ने बेहतरीन तरबियत की तीनोको  graduation करवाया।  अपनी बेटी शगुफ्ता की दोनों बेटियों  (सना ,हिना )ने MBA किया तो मरहूम ख़ुशी से फूले नहीं समाये ,हर किसी से फख्र से इस बात का ज़िक्र करते थे। जीवन साथी अनीस खातून भी माशाल्लाह खुश अख़लाक़, मोह्ज़िब  ,बावफा,बाहया हर फन मौला थी। घर को जन्नत निशान बना रखा था। घर में इंग्लिश ,उर्दू अख़बार बाकायदगी से आते थे। शमा ,बीसवीं सदी ,खिलौना हर महीने बाकायदगी से खरीदा करते। 
 मरहूम की शाहदे में बड़ी इज़्ज़त थी ,सैय्यद साहेब चाय वाले के नाम से पुरे डिस्ट्रिक्ट में मशहूर थे। 
२००९ में  मरहूम ने अपनी अहलिया अनीस खातून  ,बेटे ऐजाज़ और साली साहेबा अदीबुनिस्सा के साथ हज का फ़रीज़ा भी अदा किया। 
नाशिमन पर नाशिमन इस तरह तामीर करता जा। 
अपने रिटायरमेंट की प्लानिंग भी मरहूम ज़ैनुलआबेदीन साहेब ने बड़ी खश उस्लूबी से की थी। धुलिये में  आशियाना कॉलोनी में अपने क़रीबी दोस्त मेहमूद Auditor  के मश्वरे पर घर भी बुक किया था बाद में फरोख्त कर दिया। जलगांव में brook bond colony में भी उनेह घर ऑफर किया गया था उनोहने नहीं खरीदा। शाहदे में भी मकान बनाने के लिए प्लाट खरीदा था फिर बेच दिया। 
पहुंची वही पे खाक जहाँ का खमीर था 
नवापुर में खेत भी खरीदा ,खूबसूरत अलग थलग मक़ाम पर अपना बांग्ला भी तामीर किया ,अपनी पसंद का आशियाना  नाम रखा और retirement के बाद पुरसुकूंन जिंदिगी गुज़ारी। हालाँकि नवापुर जैसे कारोबारी शहर को अपनी तबियत के मुनासिब नहीं पाया। बहुत  कोशिश की शहर में अदबी माहौल पैदा करने की लेकिन अंधों के शहर में शीशे का कारोबार मुमकिन ही नहीं। खुशकिस्म रहे  मौत के बाद अपने वालेदैन ,अहलिया ,भाइयों के दरमियान नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में आराम फरमा है ,शायद नवापुर में रिहाइश इख़्तियार करने का उनका यही मक़सद था। अल्लाह  मरहूम को जन्नतुल फिरदोस में आला मक़ाम आता करे। 
ज़र्रा समझ के यु न मिला खाक में मुझे 
ऐ आसमान मै भी कभी आफ़ताब था 

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