पर नहीं ताकते परवाज़ मगर रखती है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
एक शफ़ीक़ बेटे ,राशिद अली की अपनी मरहूमा वालिदा शरीफुन्निसा के लिए आंसुओं से लिखी गयी तहरीर ,खिराजे अकीदत , श्रद्धांजलि ,शब्दों में दिल का दर्द छुपा है , माँ (शरीफुन्निसा )ने पहले अपने ४ भाईयों अपने बाप का अपनी अम्मी की मौत के बाद ९ साल तक ख्याल रखा, अपने भाइयों की तरबियत की। फिर अपने शोहर की वफ़ात के बाद अपने छोटे छोटे ५ बच्चों की परवरिश की , मायूसी में, न कमज़ोरी दिखाई न नाहिम्मति। अपने कमज़ोर नातवां कन्धों पर बरसों औलाद के दुखों परेशानियों के बोझ को झेलती रही। अल्हम्दोलीलाह भाइयों ने भी बहन का क़र्ज़ अदा करने की पूरी कोशिश की। माशाल्लाह औलाद ने भी सख्त मेहनत की दुनिया में में मक़ाम बनाया , माँ की आखरी उम्र में बेलोसे खिदमत की , माँ को हज कराया।
मनो मिटटी के नीचे दब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
एक शफ़ीक़ बेटे ,राशिद अली की अपनी मरहूमा वालिदा शरीफुन्निसा के लिए आंसुओं से लिखी गयी तहरीर ,खिराजे अकीदत , श्रद्धांजलि ,शब्दों में दिल का दर्द छुपा है , माँ (शरीफुन्निसा )ने पहले अपने ४ भाईयों अपने बाप का अपनी अम्मी की मौत के बाद ९ साल तक ख्याल रखा, अपने भाइयों की तरबियत की। फिर अपने शोहर की वफ़ात के बाद अपने छोटे छोटे ५ बच्चों की परवरिश की , मायूसी में, न कमज़ोरी दिखाई न नाहिम्मति। अपने कमज़ोर नातवां कन्धों पर बरसों औलाद के दुखों परेशानियों के बोझ को झेलती रही। अल्हम्दोलीलाह भाइयों ने भी बहन का क़र्ज़ अदा करने की पूरी कोशिश की। माशाल्लाह औलाद ने भी सख्त मेहनत की दुनिया में में मक़ाम बनाया , माँ की आखरी उम्र में बेलोसे खिदमत की , माँ को हज कराया।
मनो मिटटी के नीचे दब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
माशाअल्लाह.....
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