मरहूमा ज़ुबेदा युसूफ अली सिद्दीक़
मौत से किसको रस्तगरी है
आज वो कल हमारी बारी है
१४ साल पहले इल्यास सना के रिश्ते के वक़्त मरहूमा ज़ुबेदा से जान पहचान हुयी थी। फिर इल्यास सना की शादी के के वक़्त ये पहचान १४ नवंबर २०१० को एक मज़्ज़बूत रिश्ते में तब्दील होगयी। मरहूमा मुझे सगे भाई और शगुफ्ता को भी बहन की तरह शफ़क़त बख़्शती । सना को भी बहु की बजाये बेटी का रुतबा दिया।
ज़ुबेदा मतलब होता है नरम दिल, ऊँचे खानदान से ताल्लुक़ (belong ) रखने वाली। मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ में ये दोनों खूबियां तो थी ही , मरहूमा बड़ी बा हिम्मत भी थी। अपने शोहर युसूफ अली सिद्दीक़ की १९९७ में नागहानी वफ़ात के बाद अपनी चारों औलादों आरिफा ,इल्यास ,शम्सुन और इमरान की बेहतरीन अंदाज़ में परवरिश की ,उनको अच्छी से अच्छी तालीम दिलवाई ,अपनी हयात में अच्छे खानदानों में शादियां करवाई। ये उनके बा हिम्मत होने का सुबूत है। इस दौरान मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ ने कड़ी मेहनत की ,तकलीफें उठाई।
मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पर के आसान होगयी।
मरहूमा ख़ुश्किकमत रही ,अखरि वक़्त में माशाल्लाह सब ने उनका बहुत ख्याल रखा ,बहुत खिदमत की।
मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ अपने पीछे बेटे ,बेटियों , बहुयें ,पोते ,पोतियों ,नवासों का एक भरपूर खानदान ग़म ज़दा छोड़ गयी है।
अल्लाह मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ को जन्नते फिरदौसे में आला मक़ाम आता करे। खानदान के तमाम अफ़राद को सबरे जमील आता करे।
आमीन सुम्मा आमीन।
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