रविवार, 19 मई 2024

Inquilab Article


                                                   इन्किलाब में मेरी मां टॉपिक पर छपी तहरीर का  अनुवाद 

                                                          भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है  
कुछ साल पहले तक न इंटरनेट था न सोशल मीडिया ,खाना बनाने की तरकीब माँ की डायरी से मिला करती। किस डिश में नमक की मिक़्दार (quantity ),मसाले और मिर्च की मिक़्दार अम्माँ के साथ किचन में रह कर सीखने को मिली। आज भी उनकी ग़ैर मौजूदगी में किसी डिश में कोई कमी रह जाती है तो अम्माँ की डायरी रेफ़र कर लेती हूँ। इस्लामी हिजरी महीनों के नाम भले ही रबी उल अव्वल ,सफर ,रबी उल सानी हो अम्माँ के सिखाये बारा वफ़ात ,तेरा तेज़ी और शालम ज़हन से चिपक कर रह गए हैं। खीर किस दिन बनायीं जाती ,खिचड़ा कब बनाया जाता ,नियाज़ का दिन कौनसा होता है ? अम्माँ ने बताया था। तीन भाइयों में अकेली बहन के दरमियान अम्माँ ने कभी फ़र्क़ नहीं किया। उन की तरबियत ,उनका गुस्सा और उनकी मोहब्बत अब तक याद है और हमेश याद रहेंगी। 
शगुफ्ता रागिब 
नेरुल (नवी मुंबई )

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