जब चार यार मिल जाये
At Fabtech Factory |
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At Jampore beach Daman
At Mango Garden
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Devika Beach |
At Serena Dhaba
एक मुसाफिर भी काफला है मुझे
आम बाजार से भी खरीदे जा सकते हैं। लेकिन आम के बाग़ से पेड़ों से अपने हाथों से आम तोड़ कर फिर घर में पका कर खाने का मज़ा कुछ और ही होता है। इस का चस्का हमें औसाफ़ ने लगाया।
१८ मई सनीचर २०२४ की सुबह ०६;१५ बजे ४ लोगों का क़ाफ़िला (औसाफ़ , प्रकाश सोनावणे ,रागिब अहमद नविन कनखाल ) फज्र के बाद औसाफ़ की कार में ऐजाज़ भाई की बिल्डिंग भगवती हियट्स के नीचे उनके इंतज़ार में रुका रहा। उस दौरान अन्ना की अदरक की चाय ने ताज़ा दम कर दिया। ऐजाज़ भाई के आने पर ०६:३० बजे , हमारा ये क़ाफ़िला उमरगांव की जानिब रवाना हो गया। थाना ,घोड़बंदर रोड से बिजली की तरह गुज़र गए अहमदाबाद हाईवे हमेशा की तरह जैम था। औसाफ़ को होटलों की मालूमात अपने हाथ के लकीरों की तरह है। उसकी रहनुमाई थी नाश्ते के लिए ११:०० बजे अहुरा होटल में रुके । ऑमलेट ,मस्का पाँव और बढ़िया चाय का भरपूर नाश्ता किया रूह सरशार होगयी।
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
नवीन कनखाल हामिद भाई की जुदाई में तड़पता रहा। औसाफ़ मंसूर भाई की सुरीली आवाज़ को मिस करते रहे। हामिद भाई ,इश्तियाक़ भाई का ज़िक्र खैर होता रहा। इमरान इनामदार की वालेदा का उसी सुबह इंतेक़ाल हुवा था उनके लिए दुवायें मग़फ़िरत भी होती रही।
११:३० बजे Fabtech फैक्ट्री पहुंचे। औसाफ़ ने फैक्ट्री की सैर कराई। फैक्ट्री की मालूमात Fabtech.com साइट से हासिल की जा सकती है। कुछ और जानना हो तो नविन से कांटेक्ट किया जा सकता है।
आम तोड़ने बाग़ पहुंचे। हर तरह के आम पेड़ों पर लदे थे। लंगड़ा ,चौसा ,दसहरी।,बादामी लेकिन केसर का सेक्शन अलग ही था। औसाफ़ ,नवीन ,खुद में ,सोनवणे साहेब दिलो जान से झाड़ों से आम तोड़ने में मसरूफ होगये। ऐजाज़ भाई तमाम वक़्त अपनी फॅमिली से वीडियो चैटिंग में लगे रहे। फूफा ,फूफी ,बहन और उन को आमों के आर्डर मिलते रहे। २८०० किलो आमों को तोड़ कर गिनवाया गया। वहां के वर्कर्स ने बॉक्सेस में भर कर रेडी किया। हमें लोकल टेस्टी आम काट कर खिलाये भी। आमों के बाग़ में ख्याल आया क्या क़ुदरत है कैसे एक गुठली से पेड़ तैयार होजाता है ,उसमे हज़रों आम लग जाते हैं और आमों में मीठा मीठा रस भर जाता है। ऊपर वाले की ज़ात की मौजूदगी का यक़ीन पुख्ता होजाता है।
जाम्पोर बीच पर ठंडी गर्म हवा का लुत्फ़ लिया। सोनवणे साहेब ऊंट वाले से भाव ताव करते रहे। ऊंट पर बैठे नहीं ऊंट के साथ फोटोग्राफी मुफ्त में कर ली। लगे रहे मुन्ना भाई की तरह ऐजाज़ भाई तमाम वक़्त अपनी फॅमिली से वीडियो चैटिंग में लगे रहे और उन्हें फॅमिली को जम्पोर बीच घुमाने का प्रॉमिस करना ही पड़ा। बीच खूबसूरत और साफ़ सुथरा है, और हद्दे नज़र तक फैला हुवा है।
धुप में आम तोड़ने के बाद सख्त भूक लगी थी यहाँ भी औसाफ़ का knowledge काम आया दमन के पुराने एम कुट्टी वेज रेस्टॉरेंट में ऐजाज़ भाई की दावत पर खाना खाया तरो ताज़ा होगये। देवका बीच पर थोड़ी देर रुके। हालाँकि ये बीच जम्पोर बीच से ४ किलोमीटर की दुरी पर है लेकिन यहाँ काली काली चटाने और काली रेत है। फ्रेंच लोगो ने यहाँ ५०० साल राज किया अब भी पुरानि इमारतें फ्रेंच स्टाइल में बनी दिखाई पड़ती हैं। शहर साफ़ सुथरा है देवकी बीच के किनारे बहुत सी होटलें है जहा क़याम (Stay ) किया जा सकता है।
वापसी के सफर में रस्ते भर ऐजाज़ भाई मेरी टांग खींचते रहे।,बड़े छुपे रुस्तम निकले , इस सफर में उनकी ज़िंदादिली का मुज़ाहेरा होता रहा। रात १० बजे होटल सनाया ढाबे में रात का खाना देसी मुर्ग़ी खायी ,एक जादूगर ने हम सब को अपना फ़न दिखा कर महज़ूज़ (Entertain )किया। यहाँ भी ऐजाज़ भाई वीडियो चैटिंग पर अपनी फॅमिली के साथ मसरूफ रहे और फॅमिली को आउटिंग के लिए सनाया ढाबे पर ला कर पार्टी मानाने को अपने ऊपर वाजिब कर लिया।
रात १ बजे खैर से बुधु घर को लौटे।