शुक्रवार, 31 मई 2024

Happy Birthday Rida

                                                सालगिरह मुबारक रिदा 

वक़्ते दुआ में एक दुआ करूँ 

में रब से एक इल्तेजा करूँ 

तू खुश रहे तू शाद रहे 

तेरे दिल का आंगन आबाद रहे 

तू हर पल यूँ ही  हंसा करे 

फूलों की मानिंद खिला करे 

तेरी ज़िन्दगी में कोई ग़म न हो 

तेरी आंख कभी नाम न हो 

ढेर सारी दुवायें नेक ख्वाहिशात। रोशन ताबनाक मुस्तक़बिल के लिए दिल से दुआ (आमीन )

बुधवार, 29 मई 2024

salgirah mubarak

Nawapur ki yaden

                              सालगिरह मुबारक फरहान सैयद 

खुदा करे के ये दिन बार बार आता रहे 

और अपने साथ ख़ुशी का का खज़ाना लाता रहे 

ख़ुशी के इस मौके पर आंटी और मेरी जानिब से दिली मुबारकबाद। मुझे ख़ुशी इस बात की है के माशाल्लाह तुम भी उसी फील्ड में काम कर रहे हो जिस में मैं रह चुका हूँ , यानी मेरे नक़्श क़दम पर चल रहे हो।इंशाल्लाह बहुत तरक़्क़ी करेंगे। 

राह की तकलीफों का उनेह क्या सुबूत दूँ 

मंज़िल मिली तो पांव के छाले नहीं रहे 

 तुम्हारा बचपन बहुत शानदार गुज़रा। भरे पुरे घर में तुम सब से बड़े थे। उस ज़माने में तुम्हारी शरारते बड़ी मशहूर थी। दादा जान , दादी जान। पप्पा मम्मी सब की आंख का तारा हुवा करते थे। बेफिक्री का ज़माना था। लेकिन होश संभालते ही तुम में संजीदगी आ गयी। डिप्लोमा करने के बाद फ़ौरन जॉब ज्वाइन कर लिया। आयल फील्ड में। और शिफ्ट करते हुए जिस मेहनत ,डेडिकेशन से तुम ने B.E की पढ़ाई मुक़ामिल की क़ाबिले तारीफ़ है। लॉक डाउन के दरमियान भी तुम ने कभी अपनी ड्यूटी मिस नहीं की। तुम्हारी ईमानदारी और अपने काम से लगन का जज़्बा क़ाबिले एहतेराम है।  इस का नतीजा है तुम आज रेपुटेड मल्टीनेशनल कंपनी में शिफ्ट इंचार्ज/ इंजीनियर की ड्यूटी निभा रहे हो। ये तो इंशाल्लाह ये तो शुरुवात है।  आगे आगे देखिये होता है क्या। 

   मुस्तक़बिल के लिए नेक ख्वाहिशात। 

जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 

उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी 


बुधवार, 22 मई 2024

jab char yaar mil jayee


जब चार यार मिल जाये 
     


At Fabtech Factory

 





                                                            At Jampore beach Daman



                                                                  At Mango Garden


Devika Beach
                        
 

                                                                   At Serena Dhaba

                                            हम सफ़र चाहिए हुजूम नहीं 
                                            एक मुसाफिर भी काफला है मुझे 
           आम बाजार से भी खरीदे जा सकते हैं। लेकिन आम के बाग़ से पेड़ों से अपने हाथों से आम तोड़ कर फिर घर में पका कर खाने का मज़ा कुछ और ही होता है। इस का चस्का हमें औसाफ़ ने लगाया। 
            १८ मई  सनीचर २०२४ की सुबह ०६;१५ बजे ४ लोगों का क़ाफ़िला (औसाफ़ , प्रकाश सोनावणे ,रागिब अहमद नविन कनखाल ) फज्र के बाद औसाफ़ की कार में ऐजाज़ भाई की बिल्डिंग भगवती हियट्स के नीचे उनके इंतज़ार में रुका रहा। उस दौरान अन्ना की अदरक की चाय ने ताज़ा दम कर दिया। ऐजाज़ भाई के आने पर ०६:३० बजे , हमारा ये क़ाफ़िला उमरगांव की जानिब रवाना हो गया। थाना ,घोड़बंदर रोड से बिजली की तरह गुज़र गए अहमदाबाद हाईवे हमेशा की तरह जैम था। औसाफ़ को होटलों की मालूमात अपने हाथ के लकीरों  की तरह है। उसकी रहनुमाई थी नाश्ते के लिए ११:०० बजे अहुरा होटल में रुके । ऑमलेट ,मस्का पाँव  और बढ़िया चाय का भरपूर नाश्ता किया रूह सरशार होगयी। 
                                             मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था 
           नवीन  कनखाल हामिद भाई की जुदाई में तड़पता रहा। औसाफ़ मंसूर भाई की सुरीली आवाज़ को मिस करते रहे। हामिद भाई ,इश्तियाक़ भाई का ज़िक्र खैर होता रहा। इमरान इनामदार की वालेदा का उसी सुबह इंतेक़ाल हुवा था उनके लिए दुवायें मग़फ़िरत भी होती रही।              
          
            ११:३०  बजे Fabtech फैक्ट्री पहुंचे। औसाफ़ ने फैक्ट्री की सैर कराई। फैक्ट्री की मालूमात Fabtech.com  साइट से हासिल की जा सकती है। कुछ और जानना हो तो नविन से कांटेक्ट किया जा सकता है।
             आम तोड़ने बाग़ पहुंचे। हर तरह के आम पेड़ों पर  लदे थे। लंगड़ा ,चौसा ,दसहरी।,बादामी लेकिन केसर का सेक्शन अलग ही था। औसाफ़ ,नवीन ,खुद में ,सोनवणे साहेब दिलो जान से झाड़ों से आम तोड़ने में मसरूफ होगये। ऐजाज़ भाई तमाम वक़्त अपनी फॅमिली से वीडियो चैटिंग में लगे रहे। फूफा ,फूफी ,बहन और उन को आमों के आर्डर मिलते रहे। २८०० किलो आमों को तोड़ कर गिनवाया गया। वहां के वर्कर्स ने बॉक्सेस में भर कर रेडी किया। हमें लोकल टेस्टी आम काट कर खिलाये भी। आमों के बाग़ में ख्याल आया क्या क़ुदरत है कैसे एक गुठली से पेड़ तैयार होजाता है ,उसमे हज़रों आम लग जाते हैं और आमों में मीठा मीठा रस भर जाता है। ऊपर वाले की ज़ात की मौजूदगी का यक़ीन पुख्ता होजाता है।
              जाम्पोर बीच पर ठंडी गर्म हवा का लुत्फ़ लिया। सोनवणे साहेब ऊंट वाले से भाव ताव करते रहे। ऊंट पर बैठे नहीं ऊंट के साथ फोटोग्राफी मुफ्त में कर ली। लगे रहे मुन्ना भाई की तरह ऐजाज़ भाई तमाम वक़्त अपनी फॅमिली से वीडियो चैटिंग में लगे रहे और उन्हें फॅमिली को जम्पोर बीच घुमाने का प्रॉमिस करना ही पड़ा। बीच खूबसूरत और साफ़ सुथरा है, और हद्दे नज़र तक फैला हुवा है। 
                  धुप में आम तोड़ने के बाद सख्त भूक लगी थी यहाँ भी औसाफ़ का knowledge काम आया दमन के पुराने एम कुट्टी वेज रेस्टॉरेंट में  ऐजाज़ भाई की दावत पर खाना खाया तरो ताज़ा होगये। देवका बीच पर थोड़ी देर रुके। हालाँकि ये बीच जम्पोर बीच से ४ किलोमीटर की दुरी पर है लेकिन यहाँ काली काली चटाने और काली रेत  है। फ्रेंच लोगो ने यहाँ ५०० साल राज किया अब भी पुरानि इमारतें फ्रेंच स्टाइल में बनी दिखाई पड़ती हैं। शहर साफ़ सुथरा है देवकी बीच के किनारे बहुत सी होटलें है जहा क़याम (Stay ) किया जा सकता है।
                      वापसी के सफर में रस्ते भर  ऐजाज़ भाई मेरी टांग खींचते रहे।,बड़े छुपे रुस्तम निकले , इस सफर में उनकी ज़िंदादिली का मुज़ाहेरा होता रहा। रात १० बजे होटल सनाया ढाबे में रात का खाना देसी मुर्ग़ी खायी ,एक जादूगर ने हम सब को अपना फ़न दिखा कर महज़ूज़ (Entertain )किया। यहाँ भी ऐजाज़ भाई वीडियो चैटिंग पर अपनी फॅमिली के साथ मसरूफ रहे और फॅमिली को आउटिंग के लिए सनाया ढाबे पर ला कर पार्टी मानाने को अपने ऊपर वाजिब कर लिया।  
                       रात १ बजे खैर से बुधु घर को लौटे।  
                        
               
              
          

                                         

मंगलवार, 21 मई 2024

mubarkbad

                                                          दिली मुबारकबाद 

महराष्ट्र स्टेट बोर्ड के HSC (12th Exam ) में  सय्यद अब्दुलहादी रईस जमाल  (नवापुर ) ने  Science stream में 80 % मार्क्स हासिल करके अपने वालिदैन ,अपने आदरे का नाम रोशन किया है।  हम सब की जानिब से सय्यद अब्दुल हादी को दिली मुबारकबादऔर रोशन ताबनाक मुस्तक़बिल के लिए दुआ और नेक ख्वाहिशात।  

रविवार, 19 मई 2024

Inquilab Article


                                                   इन्किलाब में मेरी मां टॉपिक पर छपी तहरीर का  अनुवाद 

                                                          भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है  
कुछ साल पहले तक न इंटरनेट था न सोशल मीडिया ,खाना बनाने की तरकीब माँ की डायरी से मिला करती। किस डिश में नमक की मिक़्दार (quantity ),मसाले और मिर्च की मिक़्दार अम्माँ के साथ किचन में रह कर सीखने को मिली। आज भी उनकी ग़ैर मौजूदगी में किसी डिश में कोई कमी रह जाती है तो अम्माँ की डायरी रेफ़र कर लेती हूँ। इस्लामी हिजरी महीनों के नाम भले ही रबी उल अव्वल ,सफर ,रबी उल सानी हो अम्माँ के सिखाये बारा वफ़ात ,तेरा तेज़ी और शालम ज़हन से चिपक कर रह गए हैं। खीर किस दिन बनायीं जाती ,खिचड़ा कब बनाया जाता ,नियाज़ का दिन कौनसा होता है ? अम्माँ ने बताया था। तीन भाइयों में अकेली बहन के दरमियान अम्माँ ने कभी फ़र्क़ नहीं किया। उन की तरबियत ,उनका गुस्सा और उनकी मोहब्बत अब तक याद है और हमेश याद रहेंगी। 
शगुफ्ता रागिब 
नेरुल (नवी मुंबई )

गुरुवार, 16 मई 2024

Bravo Zaid

                                                                                          مبارکباد 

مکرمی 

انجمن اسلام کا لسلکر ٹیکنیکل کالج  پنول کے ہونہار طالب العلم زید عمران انعامدار نے ممبئی یونیورسٹی کے آرکٹیکٹ کے  فائنل امتحان میں ١٠/١٠ رینک حاصل کر یونیورسٹی میں ٹاپ پوزیشن حاصل کر اپنے والدین ،اپنے ادارے اور اپنی قوم کا نام روشن کیا ہے -کچھ ماہ پہلے  زید عمران انعامدار نے عالمی آرکیٹکچر مقابلے میں پہلا انعام بھی جیتا تھا  اس مو قعے پرہمارا پورا گروپ زید عمران اور انکے والدین کو دلی مبارکباد  پیش کرتا ہے -زید عمران انعامدار کو روشن مستقبل کے لئے نیک خواہشات پیش کرتا ہے -الله انیہں اسیطرح ترّقی عطا کرتا رہے آمین 

راغب احمد شیخ ،حمید خانزادہ ،اشتیاق خان ،منصور جتھا م ،اوصاف عثمانی اور اترنگی گروپ نیرول کے تمام ممبران 

बुधवार, 15 मई 2024

Marhuma Zubeda Yusuf Ali Siddiq


मरहूमा ज़ुबेदा युसूफ अली सिद्दीक़ 

 १० मई (१ ज़ुलक़अदा ) जुमे की रात 0930 बजे  मोहतरमा ज़ुबेदा युसूफ अली सिद्दीक़ इंतेक़ाल कर गयी । नमाज़े जनाज़ा सनीचार ११ मई २०२४ को  जामे मस्जिद नेरुल में ,नमाज़ फजर के बाद कई १०० लोगों की मौजूदगी में अदा की गयी ,तद्फीन सुबह ०७;०० बजे सेक्टर -४ नेरुल क़ब्रस्तान में हुयी। 

मौत से किसको रस्तगरी है 
आज वो कल हमारी बारी है 
          १४ साल पहले इल्यास सना के रिश्ते के वक़्त मरहूमा ज़ुबेदा से जान पहचान हुयी थी। फिर इल्यास सना की शादी के के वक़्त ये पहचान १४ नवंबर २०१० को एक मज़्ज़बूत रिश्ते में तब्दील होगयी। मरहूमा मुझे सगे भाई और शगुफ्ता को भी बहन की तरह शफ़क़त बख़्शती । सना को भी बहु की बजाये बेटी का रुतबा दिया। 
           ज़ुबेदा मतलब होता है नरम दिल, ऊँचे खानदान से ताल्लुक़ (belong ) रखने वाली। मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ में ये दोनों खूबियां तो थी ही , मरहूमा बड़ी बा हिम्मत भी थी। अपने शोहर युसूफ अली सिद्दीक़ की १९९७ में नागहानी वफ़ात के बाद अपनी चारों औलादों आरिफा ,इल्यास ,शम्सुन और इमरान की बेहतरीन अंदाज़ में परवरिश की ,उनको अच्छी से अच्छी तालीम दिलवाई ,अपनी हयात में अच्छे खानदानों में शादियां करवाई। ये उनके बा हिम्मत होने का सुबूत है। इस दौरान मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ ने कड़ी मेहनत की ,तकलीफें उठाई। 
मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पर के आसान होगयी। 
           मरहूमा ख़ुश्किकमत रही ,अखरि वक़्त में माशाल्लाह सब ने उनका बहुत ख्याल रखा ,बहुत खिदमत की। 
             मरहूमा ज़ुबेदा  सिद्दीक़ अपने पीछे बेटे ,बेटियों , बहुयें ,पोते ,पोतियों ,नवासों का एक भरपूर खानदान ग़म ज़दा छोड़ गयी है। 
             अल्लाह मरहूमा ज़ुबेदा सिद्दीक़ को जन्नते फिरदौसे में आला मक़ाम आता करे। खानदान के तमाम  अफ़राद को सबरे जमील आता करे। 
              आमीन सुम्मा आमीन। 


मंगलवार, 14 मई 2024

inquilab ke liye

                                                                    میری ماں اوڑھنی کالم کے لئے  

                                                          بھلا کسی نے کبھی رنگ و بو کو پکڑا ہے  

کچھ سال پہلے تک نہ انٹرنیٹ تھا نہ سوشل میڈیا کھانا بنانے کی ترکیب ماں کی ڈائری سے ملا کرتی تھی -کسی ڈش میں نمک کی مقدار ،مصالحے کی مقدار مرچی ہمیں  اماں کے ساتھ کچن میں رہ کر سیکھنے کو ملی -آج بھی  انکی غیر موجودگی میں کسی  ڈش میں کویئی کمی رہ جاتی ہے  تو اماں کی ڈائری ریفر کر لیتی ہوں اسلامی مہینوں کے نام بھلے ربیع الاول ،صفر ،ربیع الثانی ہو اماں کے بتایے بارہ وفات ،تیرا تیزی ،شالم زہن سے چپک کر رہ گئے ہیں -کھیر کس دن بنایی جاتی ،کھچڈا کب بنایا جاتا ہے ،نیاز کا دن کونسا ہوتا ہے اماں نے بتایا تھا -تین بھائیوں میں اکیلی بہن کے درمیان  اماں نے کبھی فرق نہیں کیا -انکی تربیت ،انکا غصّہ انکی محبت اب تک یاد ہیں اور ہمیشہ یاد رہینگی -

یہ بھی کیا کم ہے کے اس شخص نے جاتے جاتے 

زندگی بھر کے لئے  درد کارشتہ  چھو ڈا 

شگفتہ راغب شیخ 

نیرول (نئی ممبئی ) 

मंगलवार, 7 मई 2024

andha aiteqad

                                                                                                اندھا اعتقاد 

یہ ایک گدھے کی کہانی ہے جو چرتے چرتے دور دراز کے جنگل میں نکل گیا -اسے وقت کا احساس ہی نہیں رہا -یکایک رات

 کی سیاہی نے جنگل کو ڈھک لیا --گدھے کو واپسی کے راستے کا احساس ہی نہیں رہا -یکایک جنگل شیر کی دہا ڈ ،چیتے ہی ہوک اور ریچھ کی خوفناک آوازوں سے دہل اٹھا -جنگل کی اندھیری رات میں ہاتھ کو ہاتھ نہیں سجھایی دے رہا تھا اوپر سے وحشی جانوروں کی آوازیں -گدھا خوف سے ایک درخت کے نیچے ٹھہر گیا -تھر تھر کانپنے لگا -اسے جان کے خوف سے کچھ سجھایی نہیں پڑ رہا تھا -خوف کے مارےوہ  اپنی جگہ پر ٹہلتا رہا -

         یکایک ایک درخت سے  ایک الو گدھے کو پکارنے لگا -"یار گدھے بھائی  آپ کو رات میں دکھایی نہیں دیتا مجھے رات میں دن کی طرح صاف دکھایی دکھایی دیتا ہے ،مجھے لگتا ہے میں تمہیں تمہاری منزل مقصود تک پہنچا سکتا ہوں -میں تمہارا رہبر بن سکتا ہوں " گدھا فرط مسّرت سے ناچنے لگا -اس کی من کی مراد بر آیی -اس نے الو سے کہا تم میری پیٹھ پر سوار ہوجاؤ اور منزل مقصود تک میری رہبری کرو -

رات بھر الو گدھے پر سوار ہوکر اسے راستے کی ہدایت دیتا رہا -جنگلی جانوروں سے بچتے بچاتے دن نکلنے تک وہ  دونوں گھنے جنگل کی سرحد پار کرنے میں کامیاب ہوگے -گدھا سچے دل سے الو کا معتقد ہوگیا -دن کے نکلتے ہی الو  دن کی روشنی کو برداشت نہ کر سکا اور اندھا ہوگیا -الو کو اپنے بڑا ہونے کا ذعم ہوگیا اور رہبر کی حیثیت کھودینے پر تیار نہ ہوا --اندھا ہونے کے باوجود وہ گدھے کی رہبری کرتا رہا -گدھا اس بات سے بےخبر تھا کے الو رات میں تو دیکھ سکتا ہے دن میں نہیں -اسے الو پر اتنا بھروسہ ہوگیا کے وہ بھول گیا کے دن کی روشنی میں وہ ہر چیز با آسانی دیکھ سکتا ہے -لیکن اندھ بکتی میں وہ الو کی ہدایت پر عمل کرتا رہا -اسنے اپنی قابلیتوں کو استمال نہ کرکے الو کی رہنمایی قبول  کر لی -ایک جگہ پر الو نے گدھے سے کہا دایں مڈ جائے اور پھر بایں مڑنے کو کہا -گدھا کھلی آنکھوں سے ایک گہری کھایی دیکھ رہا تھا جہاں ایک ندی بہہ رہی تھی -وہ اپنی صلاحیتوں کا استمال نہ کرکے اپنے رہبر کی رہنمایی پرانحصار کرتا رہا --آخر کار گدھا انچایی سے گر کر ندی میں ڈوب کر مر گیا -

    کبھی کبھی مشکل حالات میں رہبری کی ضرورت تو ہوتی ہے -اس کا یہ مطلب نہیں ہم اندھے ہو کر اپنے آپ کو جان لیوا حالات میں دال دے -گدھے  کو رات میں الو کی رہنمایی کی اشد ضرورت تھی لیکن دن میں اسکا رہبر الو اندھا ہوگیا تھا ، گدھےکی  مدد کی بجاے اپنے غرور میں مبتلا ہوکر اس کی مدد نہیں کر رہا تھا اسکی جان کے درپے ہوگیا تھا 

           ہماری ذاتی زندگی میں بھی ایک ہی قسم کی رہبری ہر جگہ کام نہیں آ سکتی 

रविवार, 5 मई 2024

Sr P P Khanna Saheb


                                                                    डॉ  प्रेम प्रकाश खन्ना 

जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 

 नज़रों में जज़्ब होगये दिल में समा गए 

कुछ लोगों से दूर से हेलो हेलो होजाती हैं ,लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो दिल में उतर जाते हैं। डॉ प्रेम प्रकाश खन्ना ,आपके नाम के साथ प्रेम जुड़ा है।  डॉ साहेब B.A.R.C से रिटायर्ड है और बरसों से विघ्नहर सोसाइटी में रह रहे है। जब भी मिलते हैं चेहरे पर मुस्कराहट सजी होती है। बात करने का अंदाज़ मोहब्ताना होता है। मध्यम लहजे (Tone ) में बात करते हैं, के बात आदमी के दिल तक पहुँच जाती है। सालों विघ्नहर मैनेजिंग कमिटी के मेंबर रहे लेकिन किसी से भी कभी ऊँचे लहजे में बात नहीं की। बरसों पहले उन्होंने अपनी शरीके हयात (wife ) को खो दिया था। लेकिन उनके हौसलों में कोई फ़र्क़ नहीं आया। उन्हें देख कर जीने का सलीक़ा  सीखने को मिलता है। डॉ खन्ना  ६महीने  अमेरिका में अपने लड़के की फॅमिली के साथ गुज़रते हैं और ६ महीने इंडिया में रहते है। 

डॉ साहब को पुरानि हिंदी फिल्मों के गाने सुनने का शौक़ है। शायरी में भी दिलचस्पी रखते हैं। 

  अच्छे लोगों से दुनिया ख़ाली होती जा रही है। ऊपर वाले से उनकी तंदुरुस्ती ,लम्बी उम्र की दुआ है। 

जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 

उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी 

बुधवार, 1 मई 2024

Zain khush amdeed


                                                       उज़मा के घर ज़ैद आया है 

                                                        हम सब ने ख़ुशी मनाई है 
उज़मा के घर नए मेहमान की आमद पर  हम सब शेख़ ख़ानदान के मेंबर्स ख़ुशी से झूम उठे हैं। 
 माशाल्लाह बचपन ही से उज़मा शगुफ्ता और मुझ से बहुत क़रीब रही है। हिना और उज़मा St. Xavier स्कूल में क्लासमेट थे। उनकी स्कूल में मशहूर था  वह दोनों जुड़वाँ बहनें हैं। आज हज़ारों किलोमीटर दुरी पर दोनों बहने बैठी हैं लेकिन उनसे जुडी खट्टी मीठी यादें हम से जुडी हैं। यह दूरियां कोई मानी नहीं रखती। 
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली 
जैन के लिए ढेर सारी दुवायें ,प्यार और मुस्तक़बिल के लिए नेक ख्वाहिशात। 
आमीन