बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

Srirangapatnam (Tipoo sultan's last resort)

   सदियों में ऐसी  शख्सियात पैदा होती हैं जिन के कौल और अमल (कहने और करने में ) यकसानियत पायी जाती जाती हैँ।  टीपू सुल्तान ने कहा था "१०० साल की गीदड की ज़िन्दगी से १ दिन  की शेर की ज़िन्दगी बेहतर है", टीपू ने ज़िन्दगी में शेर से भी लड़ाई की और आखिर में वतन की ख़ातिर, अंग्रेज़ों  से लड़ते लड़ते अपनी जांन न्यौछावर कर दी। अंग्रेज़ों ने उन की बनाई जामे मस्जिद और मज़ार के छतों पर बनायीं गयी शेर की धारियों को मिटाने की भरपूर कोशिश की लेकिन दिल पर बने उनमिट नक़ूश  और टीपू की अज़्मतों को मादूम (हल्का) नहीं कर पायें। तारीख में सुल्तान टीपू का ज़िक्र हमेशा सुन्हरी हर्फों मौज़ूद  रहेंगा। NASA (America ) ने टीपू सुल्तान को rocket का मौजीद (inventor )तस्लीम कर ,वहाँ लगी murals में जगा दी गयी है। 


टीपू सुल्तान को इस  दुनिया से गए २००  साल से ज़ियादा ज़माना बीत गया है १७९९ में उनेह शहीद किया गया था।  श्रीरंगपटनम में शान व शौकत से दफ़न वह मक़ाम गुम्बज कहलाता है। बंगलुरु से १२० किलो मीटर की दूरी  और मयसूर से १६ किलो मीटर की दूरी पर श्रीरंगापट्नम ,हज़ोरों की तादाद में सैलानी उस जगे ज़रूर  जातें हैं जहाँ शेरे मयसूरे की लाश मिली थी ,अंग्रेज़ों से लड़ते लड़ते शहीद हुवे थे। आलिशान मस्जिद जहॉं आप ने नमाज़ अदा की थी।और वोह शानदार मक़बरा और मस्जिद कई एकर ज़मीन के घेरे में लम्बे चौड़े लॉन के बीच आज भी वही नज़ारा पेश करते हैं।
    मज़ार जिसे टीपू  सुलतान ने १७८२ में अपने वालिद के दफ़न के लिए बनाया था  बाद में उनकी वालिदा को भी पड़ोस में दफ़न किया गया। मज़ार की  खूबसूरत ईमारत  ३६ काले मर मर के सूतोनोँ  पर खड़ी हैँ सुल्तान ने ईरान से  मंगवाएँ थे।उनेह  क्या पता था के उनेह भी अपने माँ बाप  के पड़ोस में दफ़न होना है।
      सुल्तान की कब्र शेर की खाल के जैसे कपडे से ढकी है और उस पर चादर चढ़ी है।हर साल ज़िलक़ाद के महीने में  टिपूसुल्तान का उर्स धूम धाम से  मनाया जाता है। हज़ारों अकीदतमंद शरीक होकर ख़िराज अक़ीदत पेश करतें हैं। 
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है 
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा 

सोमवार, 17 अगस्त 2015

Yome aazadi

                                                                  ६९ वे जश्ने आज़ादी के मौके पर
जंगे आज़ादी की  १८५७ में  बुनियाद पढ चुकी थी।  झाँसी की रानी, ताँतिया टोपे ,मंगल पांडे  ,बहादुर शाह ज़फर जंगे आज़ादी के पहले सिपाही थे। बहादुर शाह ज़फर को जंग हारने के बाद अंग्रेज़ों ने क़ैद कर रंगून में रखा था। इनेह ना क़लम दी गयी थी न काग़ज जेल की दीवारों पर अपने जज़्बात का इज़हार शेरोँ में कोयले से किया करते। वतन से दूर मौत से पहले उनोह ने कहा था


कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए 
दो गज़ ज़मीन भी न  मिली कूए यार में 
    राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खान  जंगे आज़ादी के पहले सिपाही थे जिनोः ने सर कटा कर कर शहादत हासिल की। राम प्रसाद बिस्मिल की दिल को गर्माने वाली शायरी जेल की दीवारें भी न रोक पायी। बकौल शाइर  " हम तो आवाज़ है दीवारों से भी छन जातें हैं " इस ज़माने न टी वी था न इंटरनेट न सोशल मिडीया फिर भी बिस्मिल का देश प्रेम में डूब कर लिखा गया शेर जो फँसी पर चढ़ते चढ़ते वह कह गए थे
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में हैं        और    इन्किलाब ज़िंदाबाद   की गुँज हिन्दुस्तान के गली कूचों में सुनाई दी।  ३० साल की नौखेज़ उम्र में बिस्मिल को फँसी दी गयी वह शहीद हो ,अमर होगायें।
     गांधी ,अबुलकलाम आज़ाद ,नेहरू ,सुभाष चन्द्र बोसे , मौलाना हसरत मोहनी ,आंबेडकर ,वल्लभ भाई  पटेल सब जंगे आज़ादी के सिपाही थे सब ने एक ही मक़सद के लिए क़ुरबानी दी , देश की आज़ादी।  और आज़ादी १५ ऑगस्ट -१९४७ को हासिल करके रहे।  ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटी मुल्क आज़ाद हुवा।
     आज़ादी के बाद हर हुन्दुस्तानी ने एक ख्वाब देखा था मुल्क की तरक्की बकौल शायिर


जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
      ६९ साल के लम्बे सफर के बाद हिन्दुस्तान सब सा बड़ा लोक तंत्र बन गया है। तरक्की की तेज़ रफ्तारी इस लिए भी है के यहां चाय बेचने वाला देश का प्रधान मंत्री बन सकता है तो पेपर बेचने वाला देश का प्रेसिडेन्ट ।  अब्दुल कलम आज़ाद साइंटिस्ट ,बेहतरीन दिमाग़, मिसाइल मेंन हमारी गर्दनें फखर से ऊँची होजाती हैं , इन की मौत पर अमेरिका ने पहली बार अपना फ्लैग झुका दिया।आक्कीसवी सदी हिन्दुस्तान की है तभी सुन्दर पिचई को गूगल का सीईओ बनाया जाता है , सत्य नादर माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के ओहदे पर तनियत होतें हैं ,इंद्रा नुयि को पेप्सी का सीईओ बना कर इज़्ज़त बख्शी जाती है। इन पोजीशन तक पोहचना हिन्दुस्तान की अज़मत बड़ाई का एलान है। इस मंज़िल इस मक़ाम तक पहुचने में हर शहरी हर हिन्दुस्तानी की जद्दोजहद ,कोशिश शामिल है बकौल शायिर
कुछ इस तरह से तय की है हमने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले
     में ने सीरिया में आठ साल गुज़ारें हैं वहां का इलेक्शन एक मज़ाक हुय्व करता वोटर्स को बैलेट पेपर खोल कर दिखाना पड़ता ,पुलिस वाले फोटोग्राफी करते इस के बाद वोट बॉक्स में डाला जाता। प्रेसीडेंट हाफ़िज़ उल असद ९९% वोटों से जीतता। किसे शौक था दूसरे को वोट देकर गर्दन कटवाने का। सूडान जहाँ में ने ज़िन्द्ज़गी के ११ साल गुज़ारे हैं आपसी खाना जंगी से परेशहन लोग आहें भर कर कहा कटे "काश हम हिन्दुस्तान में पैदा होते ".
    दुवा है मुल्क इसी रफ़्तार से तरक्की करता रहे ,मालीक बुरी नज़र से बचाये। हम रैंकिंग में दुनिया में जल्द अज़ जल्द पहले मक़ाम पर पहुँच जाये और मुझे यक़ीन हैं
हम होंगे कामयाब मन में है विश्वास
जय हिन्द




गुरुवार, 23 जुलाई 2015

Sameera India me

समीरा  का रमज़ान से दो रेज़ पहले अपने बच्चों हिबा ,  फैज़ और भांजी रिदा के साथ इंडिया में आना हुवा।  देड  महीने का टाइम मानो पल में गुज़र गया। सूरत ,पूना में रिश्तेदारों से मिलना मिलाना ,बच्चों का बिस्मिल्लाह ख़त्म क़ुरआन का छोटा मोटा प्रोग्राम ,रोज़ा इफ्तार , ईद की नमाज़ में शिरकत और आखिर में अपने पुराने स्कूल और कॉलेज के दोस्तों से मुलाक़ातें ,बरसों पुराने गर्द ग़ुबार को हटा कर रिश्तों को फिर से ताज़्ज़ा करने का फ़न बहुत कम लोग जानतें हैं। हम अक्क्सर अपनी ज़िन्दगी अकेले अकेले जीने के आदि होते हैं। अपने ग़म से परे हमें कुछ नज़र नहीं आता। बहुत कम ऐसा होता है हम दूसरों के ग़म में शरीक होते हैं , दूसरों की खुशयाँ  अपनी महसूस होती हैं। दूसरों की दी छोटी छोटी परेशानियां ,दुःख ,दर्द  और ग़म हम भुला नहीं पातें। समीरा के साथ ज़िन्दगी के चंद पल बिता कर मैं ने उससे बहुत कुछ सीखा है। दूसरों को खुशयां बांटो ,लोगो की दी हुवी छोटीमोटिं लघज़िशों को नज़र अंदाज़ करो।
   कल यकायक तमाम फ़ौज के साथ केक मोम बत्ती लेकर हमारे घर पहुँच गयी शगुफ्ता का जनम दिन मानाने। फोटोग्राफी की वीडियो बनाया खूब हंगामा किया।जन्म दिन मानना कोई इस्लामी रस्म  नहीं शिर्क भी नहीं। ज़िन्दगी में छोटी मोटी खुशियां बड़े मानी रखती हैं। वक़्त पल पल गुज़र रहा है कल का किसे पता।माज़ी का ग़म , मुस्तकबिल की फ़िक्र ही इंसान को तोड देती है ,इसलिए क्यों न आज में जी ले !



रविवार, 19 जुलाई 2015

Rasme bismillah ,takmile Quran



نحمدہ نصلی الی رسولہ الکریم اما بعد
 हाज़रीन   अस्सलाम अलैकुम 
योगी मिडटाउन होटल के खूबसरत हॉल में , फैज़ शेख की रस्म बिस्मिल्ला ,हिबा का तक्मीले क़ुरान और रिदा और हिबा का रमजान के पुरे रोज़े रखने की ख़ुशी में रखा गया यह प्रोग्राम काबिले  मुबारकबाद है। अक्सर लोग खतमे क़ुरान भी कहते हैं लेकिन क़ुरान  ता क़यामत इंशाल्लाह कभी ख़त्म नहीं होगा। समीरा कबीले तहसीन है के उस ने इस रस्म को ज़िंदा कर दिया। हालांकि यह न सुन्नत है न किसी हदीस से साबित है लेकिन  बमुक़ाबला इसके के ,लोग हज़ारों रुपैये जन्म दिन मानाने में फूँक देते हैं जिस का हासिल कुछ नहीं होता हज़ार दर्जे बेहतर है।
  इंसान के सब आमाल उस की मौत के साथ ख़त्म होजाते हैं , अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया तीन ऐसे अमल हैं जिन का अजर ता क़यामत इंसान को मिलता रहता हैं।  नेक आमाल ,नेक औलाद और अछा इल्म या अछे काम जो उस ने किये थे। अल्हम्दोलीलाः फैज़,रिदा,हिबा को क़ुरान पड़ते देखता हूँ तो तबीअत खुश होजाती है। क़ुरआन  अरबों के अंदाज़ में पढ़ते हैं। ऐन ,घैंन ,काफ़ ,शीन की अदायगी बहुत सही होती है। बच्चों से नसीहत  हैं के क़ुरान हमेशा पढ़ते रहें। अगर MEANING से पढ़े तो और बेहतर होंगा। Practical life में भी क़ुरान पर अमल करें तो सोने पे सुहागा।क्यूंकि क़ुरआन पड़ कर भुलना बहुत बड़ा गुनाह है। हिबा,रिदा,फैज़ और उन के वालिदैन ज़ाहिद ,समीरा ,लुबना और हैदर को हम सब की जानिब से मुबारकबाद के अमेरिका में रहते हुवे ,जहा फैशन की चकचोँद है ,तहज़ीब दम तोड़ रही है ,नंगापन अपनी इन्तहा को पहुंचा है बच्चों को क़ुरानी तालीम दिलाई और सही अंदाज़ में दिलवाई। बच्चोँ को बड़ों की इज़्ज़त ,अदब ,तहज़ीब ,संजीदापन ,वक़ार सिखाया और जमीन से जुड़ा रहने का फन सिखाया जो उन से मिलने बाद दिखाई देता हैं। 

        आज तुम याद बे हिसाब आये। 
  आखिर में उस अज़ीम हस्ती मरहूम सादिक़ अहमद को खिराज अक़ीदत पेश करता हूँ, जो हमारे तमाम ख़ानदान के रूहे रवां थें,राहबर थे । हम सब को भले बुरे की तमीज सिखाई ,अपनी औलाद को बेहतरीन तालीम दिलवाई।  मोहतरमा भाभी साहेबा ज़ुबेदा भी मुबारकबाद की मुस्तहक हैं जिनोः ने हर कदम पर भाई साहब का भर पुर साथ दिया। जिस का नतीजा है के उन की नेक औलाद अछि तालीम हासिल कर अमेरिका ,दुबई में रहने के बावजूद नमाज़ ,रोज़ा ,ज़कात ,हज के पाबंद हैं। और आने वाली नस्ल को भी इन चीज़ों से रुशनास करवा  रहें  है। 
       सादिक़ भाई के लिए इतना ही कह सकता हूँ 
मनों मिटटी के नीचे दब गया वह 
हमारे दिल से लेकिन कब गया वह 

बिछड़ा कुछ इस अदा से के रुत ही बदल गयी 
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर कर गया

صدق اللہ العظیم و صدق رسول الکریم





सोमवार, 1 जून 2015

Yaadein ke chiragh

जनाब मोहंमद  फ़रॊक़् आजमी  सबिक़् प्रिनसिपल  अन्ग्लो उर्दु स्कूल कि किताब् "यादो के चिरगः " मे शागिरदो कि दुनिया मे उनोः ने लिखा हैं
Dr  वासिफ़् अहमद अपनी ब्यच के इनतहायि कम् आमेज़ शर्मीले लेकिन इन्तेहायी जहीन तलिब्ब् इल्म थे .खमॊश् तबे थे मगर बेदार जेहन् थे! 1967 मे ssc इम्तियजि नंबरो से काम्याब् किया और कालेज के दो साल मुकम्मल् करने के बाद मेरीट कि बुनियाद पर MBBS मे दाखला मिल गया  doctry का ये बावक़ार् कोर्स मुकमिल् करने के बाद medical officer की हैसीयत , रियासत् गुजरात मे सरकारी मुलाजमत इख्तियार कर ली बडोदा  शेहर् मे वोह् अपनी खिद् मात अन्जांम दे रहे हैं। अदारा आल्मि सहेत् (WHO ) ने उनकी सलहियत् ,काबिलियत और जज्बे खल्क़् को देखते हुये leorosy unit मे हुकमत गुजरात सें उन कि खिदमात कुछ दिनो के लिये मुस्तार् ली हैं . और वोह् ता दंम तःरीर मध्य परदेश के गु ना मे काम कर रहे है . बरोडा उन का हेड  कवटर है वहि अब मुसतक़िल कयांम पजीर है. वासिफ अहमद को    एंग्लो का पहला MBBS डॉक्टर होने का ऐजाज़ हासिल है।  अफ़सोस के खानदेश का यह सपूत मुस्ताकलन बरोदा में सकूनत पजीर् हो चुका जिस की वजेह से अहलियान जलगाव को इन के दस्त शफ़ा से महरुम होना पडा।
    डॉक्टर वासिफ के छोटे भाई राग़ीब अहमद भी अपने ज़माने के मुमताज् तल्बा में से थे। १९७१ में एंग्लो से एसएससी किया वह बड़े खुश इखलाक ,खुश मिज़ाज और  मजलसि इंसान है। अपनी मुलाज़मत के झमेलों से अक्सर वक्त निकाल कर अपने मर्जबूम जलगाव की गलियों अपने बचपन की याद ताज़ा करने चले आते हैं। हालाकि वह बा सिलसले मुलाज़मत शाम और सूडान जैसे दूर दराज मुमालिक में कयाम पज़ीर है। मेरी प्रिंसिपल शिप के ज़माने में एक बार इस्कूल की विसिट देने आये तो यहाँ के बदले हुए नक़्शे और तदरीसी सरगर्मियों को देख कर बड़े मतस्सिर हुए और अपने वालिद मरहूम से मंसूब बच्चोँ को पीने के लिए पानी का एक कूलर नसब करवा गए। गुजश्ता दिनों अब्दुर रहीम शेख की लड़की की शादी में शिरकत के लिए आये तो इत्तेफाक से मुलाक़ात हो गयी।  बड़े ख़ुलूस मोहब्बत से मिले और अपनी ज़िन्दगी की बहार व खिजां की दास्ताँ सुनाते रहें। किसी ज़माने में मौसूफ़ shark plastic packaging के डायरेक्टर थे। फिर मुल्क शाम (syria ) चले गए।जहाँ वह एक तेल कंपनी में किसी बावकार ओहदे पर फ़ाईज थे।  हालिया मुलाकात
में मालूम हुवा के मौसूफ़ इन दिनों सूडान के दर उल सलतनत  खर्तॊम की एक आयल कम्पनी में सुपरवाइजर है और अपनी मुलाज़मत से मुतमईन और मसरूर है। मुस्तकिल कयाम मुंबई को बनाया है। उन के एक साथी मखदूम अली से भी उन के साथ ही मुलाकात होगई जो फिलहाल महाराष्ट्र असेंबली के मंत्रालय  में मुलाज़िम है। जिस जमाने में हमारे पेंशन के कागजात मुंबई AG के आफिस में इल्तवा में पड़े हुए थे मखदूम अली ने फाइल को मुतालेका क्लेर्क की मेज़ पर लाने और पेंशन का ऑर्डर पास कराने में बड़ा फाल किरदार अदा किया इन की कोशिशों से हमें चंद दिनों में  पेंशन ऑर्डर मिल गया। अल्लाह ताअला उनेह उन के शोबे में तरकी आता करे।
    फारूक सर ने हम तीनों का जिकर अपनी किताब "यादों के चिराग़ " में किया।  इतने सालों बाद भी अपने स्टूडेंट्स को याद रखा हम उन के शुक्र गुजार हैं।  अल्लाह उनेह सेहत दे उन की उम्र दराज करे आमीन।


गुरुवार, 28 मई 2015

local train



                                                                         لوکل ٹرین      
  1950 کی پرانی  ہندی فلمیں دیکھ آہ نکل پڑتی  ہے ، ممبیئ کی‎ لوکل کیا خالی خالی اور صاف ستھری ہوا کرتی- بھیک مانگنا بھی کتنا آسان ہوا کرتا تھا-فقیر ساز ہاتھوں میں لیے خوبصورت دھنیں بجاتے اطمنان سے مسافروں بیچ سے گزرتے داد وصول کرتے-کیئ تو ترقی کرتے کرتے اپنے زمانے کے مشہور گویئے،میوزک ڈایرکٹر بن گیے-اب تو لوکل ٹرین کو دیکھ کر ہوا سے بھرے اس غبارے کا تصور ہوتا ہے جسے پھٹنے کی حد تک پھونک دیا گیا ہو-ٹرین کے کمپارٹمنٹ میں لوگ کھچا کھچ بھرے ہوتے ہین،بچے کچھے لوگ چھت پر چڑھ جاتے ہیں- کچھ دروازے کھڑکیوں پر لٹک جاتے ہیں،باقی بوگیوں کے بیچ ،اگر فی مربع فیٹ لوگوں کی تعداد نکالی جایے تو ہوا کا گزر بھی ٹرین کی بوگی سے مشکل نظر آتا ہے-محسوس ہوتا ہے آپ کے سانس سے نکالی ہوا    آپ کے سامنے کا مسافر  استعمال کر رہا ہو-ہلنے کے لیے جگہ نہیں ہوتی اس کا فایدہ یہ ہوتا کے ، اکژ مسافروں میں تو تو میں میں تو ہوجاتی  ہاتا پایئ نہیں ہو پاتی-ٹرین میں لگے پنکھے کبھی کبھی سویچ بند کرنے پر چل پڑتے ہیں لیکن ہوا پھینکنے کی بجایے اکزاسٹ فین کا کام کرتے نظر آتے ہیں-لوکل ٹرین کی بوگیوں میں ضرورت زندگی کا ہر سامان خریدہ جا سکتا ہے-کنگھی سے لیکر پھل پھروٹ،نیل کٹر ،سبزیاں،ریڈی میڈ ڈریس،میک اپ کا سامان وغیرہ-ٹرین میں دل بہلانے کے کیئ سامان ہوتے ہیں ،ہارمونیم ،ڈھول گلے میں لٹکایے ،ہاتھوں میں منجیرے لیے بے ڈھب بلند  ، آواز میں گاتے فقیر،بچی کچھی کمی بھجن گاتے مسافر پوری کر دیتے ہیں-
       آپ کی تمام پرشانیوں کا حل ٹرین میں لگے اشتہارات میں مل جایے گا-پسندیدہ نوکری ،اولاد،پریشانی سے نجات،جادو ٹونے سے علاج بابو بنگالی کر دینگے-نامردگی،کینسر اور ایڈس کا شرطیہ علاج  بغیر آپریشن کے ،جو کسی ڈاکٹر یا ساینٹسٹ کے پاس نہیں  ان اشتہارات میں تلاش کر لیجیے-محبوبہ کو گرویدہ کرنا ہو یا اسقاط حمل دنیا کی کونسی مشکل ہے جو آپ ان اشتہارات کی مدد سے حل نہیں کر سکتے-لوکل میں سفر کے دوران آپ کا بٹوہ  پاکٹ  ماروں کے زریعہ چوری ہونا لازمی ہے،جو ایک ٹولی کی شکل میں  ہر کمپارٹمنٹ میں موجود ہوتے ہیں-اگر آپ نے احتجاج کرنے کی کوشش کی تو  آپ کو پیٹ بھی دیا جاتا ہے،شرافت اسی میں ہے کے بٹوے کا غم نا کیا جایے،ویسے بھی آج کل لوگ بٹوے میں عشقیہ خطوط زیادہ اور پیسہ کم رکھتے ہیں-
   لوکل ٹرین کی رفتار چینوٹی کی رفتار سے کم و بیش  زیادہ ہوتی ہے-ریلوے کی زمین پر پٹری کے متوازی جھوپڑیاں بنانے کی کھلی اجازت ہے-اس میں یہ سہولت ہوتی ہے کے ٹرین سے اتریے اور اپنے گھر میں داخل ہوجایے-گھر صاف کر ،کوڑا کرکٹ اور غلاظت پٹریوں پر پھینکنےمیں آسانی-بیت الخلا کے لیے بھی گھر سے دور جانے کی ضرورت نہیں-کچھ عرصے میں لایٹ پانی مفت دستیاب ہوجاتا ہے-ہینگ لگے نہ فٹکری
  پٹریوں پر باقاعدہ کرکٹ کھیلا جاتا ہے مقابلے منعقد ہوتے ہیں-اگر موٹر مین کی غلطی سے (کھلاڑی کی غلطی ہو ہی نہیں سکتی)کویئ حادثہ کا شکار ہو جاتا ہے تو موٹر مین کو بھاگ کر جان بچانی پڑتی ہےاور مسافروں پر پتھروں کی بوچھار-اکثر و بیشتر بچوں کی نشانہ بازی کی مشق میں مسافر اپنی آنکھیں کھو بیٹھتے ہیں-اب پٹریوں کے کنارے رہنے والے باسیوں نے مانگ کی ہے کہ دو ٹرینوں کے بیچ کا وقفہ بڑدا دیا جایے تاکہ ان لوگوں کے سونے کھیلنے اور بچوں کی پڑھایئ میں خلل نہ پڑھے-سرکار بھی اس معاملے پر سنجیدگی سے غور کر رہی ہے-
    برسات کے موسم میں لوکل ٹرین کی رفتار بڑھ جاتی ہے-پٹریاں پانی میں ڈوبنے کی وجہ سے ٹرینیں تیرنے لگ جاتی ہے-لیکن سامنے آنے والی ٹرین سے ٹکرانے کا خدشہ بڑھ جاتا ہے اس لیے ٹرین سروس روک دی جاتی ہے-
پرانے زمانے میں نیے پل تعمیر ہوتے تھے تو بچوں کی بلی چڑھایئ جاتی تھی -50 لاکھ لوگوں کو  روزانہ لیکر چلنے  والی یہ
ٹرینیں بھی روزانہ کیئ لوگوں کی بلی  لیتی ہیں-لیکن جسطرح ممبیئ کے شہریوں کو کھانا،پینا،سونا ضروی ہے چھ بج کر بیس منٹ کی ٹرین کا سفر بھی لازمی ہے-

मंगलवार, 26 मई 2015

Kashif ki shadi par likhee Gayee tahreer

बाबर्कत शाबान अल मौजम की ६ तारिख ,रमज़ान अल मुकर्रम के बाद अल्लाह के रसूल का पसंदीदा महीना।  काशीफ और शिफ़ा अल्लाह की सिफात हैं।  काशिफ परेशानियों को दूर करने वाला ,रहमत के दरवाजें खोलने वाला। शिफ़ा बिमारियों और दुःख आलाम  से नजात देने वाला अल्लाह ही तो है। आज सलाबत पूर यानि मज़बूत मुक़ाम पर दोनों एक पाक रिश्तें में  बंधने जा रहें हैं। अल्लाह इस रिश्ते को कामयाब कामरान करे। इसकी रहमतें इस नए शादी शुदा जोड़े पर ता अबद कायम रहे आमीन सुम्मा आमीन।
    काशिफ उस सय्यद खानदान से ताल्लुक़ रखता है जिस का सिलसिला शाह वजिहोद्दीन अहमदाबादी से जुड़ता है ,बड़ी अज़ीम व बाबर्कत शख्सियत थी। उन की दुआओं का फैज़ था के खानदान में अफ़ज़लोद्दीन सय्यद ,ग़ुलाम मोहियौद्दीन सय्यद और सईद अहमद सय्यद जैसी शख्सियतों ने जनम लिया। अफ़ज़लोद्दीन सय्यद जिनेह लोग लाला मियां के नाम से जानतें थे बड़ी बारसुख शख्सियत थी। रियासत गुजरात में उन का दबदबा था। भड़भूँजा उन का वतन था। में ने खुद अपनी आँखों से देखा है के जब उनेह सफर करना होता भड़भूँजा स्टेशन मास्टर से कह रखते उन के पहुचने तक ट्रैन भड़भूँजा स्टेशन पर रुकी रहती ,गार्ड ,टी सी उनेह फर्स्ट क्लास में बैठाते तब ट्रैन रवाना होती। आदिवासियों में उन का बड़ा अहतराम था ,गाँव के सरपंच थे ,गाँव में निकलना होता लोग बड़ी इज़्ज़त से उन से मिलते ,उन के पैरों पर गिरतें ,वह भी उन के दुःख सुख में बराबर शरीक होतें। खुदा झूट न बुलवाएं झाड फूँक कर लोगों का इलाज करते देखा हूँ। बिछउँ के काटने पर कईं बार दम किया पानी दिया लोगों को आराम होगया। अल्लाह उन की मग़फ़िरत करें।
ख़्वाब था जो कुछ के आँखों ने देखा था ,अफ़साना था जो कुछ के सुना था
     ग़ुलाम मोहियौद्दीन सय्यद अल्हम्दोलीलाः हयात हैं। बड़ी ही संजीदा तबियत पाई है शाइर ने शायद उन के लिए कहा है
ढूंढ उजड़ें हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खज़ानें तुझे शायद के खरबों में मिलें
     सईद अहमद उर्फ़ बना भाई ,हमारे गोर मामूँ ,काशिफ के वालिद मोहतरम B.A ,LLB थे। उस ज़माने में प्लेन से सफर करते थे ,जो के उस ज़माने में एक ख्वाब हुवा करता था। मैं ने उनेह दोधारी बन्दूक से शिकार करते देखा हूँ ,होल्स्टर में कारतूस भरी राइफल अपनी हिफाज़त के लिए चलते देखा हूँ। चालीस साल पहले उन के पास जापान की हौंडा मोटर साइकिल हुवा करती थी। जो भी किया बड़ी शान से किया ,चाहे बिस्निस्स हो ,दोस्ती हो ,मोहब्बत या दुश्मनी हो। आखरी उम्र तक ज़िन्दगी से जंग नहीं हारी। जदोजहद का सिलसिला कभी नहीं रुका। हाल ही में ख्वाजा के शहर में उनोह्न ने आखरी सांस ली। उन की ज़िन्दगी की दास्ताँ इस शेर से बयां की जा सकती है।
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे हवादिस से
अगर हो ज़िन्दगी आसान जीना दुश्वार होजाएं
   काशिफ को देखा हूँ अब्बा के साथ दूकान  संभालता था ,और साथ साथ MBA भी कर रहा था। अब उस की ज़िन्दगी में ठहराव आगया है ,तालीम पूरी होगयी है अछा जॉब भी मिल गया है। उस में गोरे  मामूँ की तमाम खूबियां पाई जाती हैं। अल्लाह से उम्मीद है वह उस   मक़ाम को पा लेंगा जहां गोरे मामूँ  पहुंचें थे। आमीन
   मुहसिन लफ़्ज़ी माने अहसान करने वाला उस की मेहनत जदों  जहद को देख कर इंशाल्लाह मुस्तकबिल की पेहनगोई कर रहा हूँ ,वह future के CM  के साथ गुजरात का दौरा करेंगा।
   आज में , और हमेशा से इस बात का एतराफ़ करता रहा हूँ क़े हमारे खानदान ,हमारे भाईयों पर हमारे मॉमू ,मुमनियां
,खाला ,नाना ,नानी  और बहनों की खास नज़रे इनायत रही ,जिस की बिना पर हम अम्मा की कमी को महसूस न कर सके। इतनी तरक़्क़ी कर सके इस मुक़ाम तक पहुँच सके।
    अल्लाह मरहूम अम्माँ ,गोरी मुमानी, मुमानी अम्मा ,नानि अम्मा ,नाना मियां ,गौरे मामूँ ,मामूँ मियां, खालूं जान,खालूं मियाँ ,अम्माँ बीबी को जन्नत नसीब करें। खाला जान ,दुलेह मामूँ ,दुल्हन मुमानी को सेहत और हयात अब्दी आता करे ,आमीन सुम्मा आमीन !!!!!
 





बुधवार, 20 मई 2015

Ruhi

रूही का अरबी में मतलब होता है "खुशबु फैलानी वाली" या "खुशबु लेकर चलने वाली " अब्बा का इंन्तेक़ाल रूही की पैदाइश से कुछ महीने पहले होगया था।  लेकिन उन्हें रूही की खुशखबरी मिली थी और मुझे याद है उनोह ने बहुत दुआएं भी की थी।
    मुस्लिम समाज में तालीम के तालुक से जो बेपरवाही बरती जाती है अल्हम्दोलीलाः रूहिं ने  साबित कर दिया के लड़कियां भी कुछ काम नहीं होती। उस ने जिस जाँफ़िशानी से B.Commerce और फिर M.Commerce किया और वह भी नवी मुंबई की बहेतरीन कॉलेज से। survey  से पता चलता है के मुस्लिम मआशरे में हिंदुस्तान में १% से भी काम लड़कियां post gradute हो पाती है। अल्हम्दोलीलाः हमारे खानदान के लिए रूही का इक़दाम संग मील (mile stone ) की हैसियत रखता है।

            कुछ इस तरह से तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
             गिर पड़े गिर के उठे उठ के चलें
    ख़्वाब तो सब ही देखतें है ख्वाबों में रंग भरना सब को नहीं आता। जावेद और यास्मीन ने जिस तरह बच्चों की परवरिश की काबले तहसीन है। जावेद का सालों घर से दूर रहना सिर्फ इस लिए ,के हलाल रोज़ी का हुसूल हो सके। यास्मीन का जावेद की ग़ैर हाज़री में बच्चों की तरबियत ,अखलाक़ की निगहदाश्त और बेहतरीन अदारों में बच्चियों की तालीम ,घरेलू मामलों में बच्चियों  की तरबियत का सहरा यास्मीन के सर जाता है। रूही का post graduate होना,सदफ का pillai कॉलेज से MBA होना,इस शादी की तैयारियों में पूरी तौर पर उस ने अपनी डिग्री का सबूत पेश कर दिया। ईशा भी उसके  नाम की तरह (दिन की आखरी नमाज़ ) माशाअल्लाह  नवी मुंबई की बेहतरीन स्कूल Father Agnel से  10th का Exam appear कर चुकी है और अब pilot बनने के सपने देख रही है और इंशाल्लाह आज के तरक्क़ी याफ्ता दौर में कोई मुश्किल बात नहीं। अल्लाह उस के तमाम सपनों में हकीकत का रंग भर दे आमीन।
     अल्लाह के रसूल की सच्ची हदीस है के जिस ने तीन लड़कियों की पैदाइश पर ख़ुशी मनाई ,उन की अछि तरबियत की और उनेह अछे खानदान में बियाह दिया वह जन्नत का मुस्तहक़ हो गया। और ग़ालिबन आप SAS   कहा था की मेरे
और उन वालिदैन के दरमियान दो उँगलियों की क़ुरबत का फासला होंगा। यक़ीनन जावेद और यास्मीन जन्नत के
मुस्तहक़ हो गए।
     माशाअल्लाह रूही को शुएब की सूरत में बेहतरीन शरीक हयात मिला है जो BE /MBA है और बेहतरीन पोजीशन में
जॉब कर रहा है। और अच्छे खानदान का चश्म चिराग़ है। अल्लाह से दुआ गो हूँ के रूही के तमाम ख़्वाब हकीकत का रंग लेले ,मुस्तक़बिल रोशन हो और शादी शुदा ज़नदगी रश्के मालयक हो ,आमीन सुम्मा आमीन।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

Pohnchi wahi pe khak Jahan ka khameer tha

                                            पोहंची वही पे खाक जहाँ का ख़मीर था
अलहाज ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद बरोज़ मंगल ७ अप्रैल २०१५ को इस दारे फानी से कुच कर गए। मरहूम  ने ८० साल की लम्बी उम्र पायी। ३ लड़के ,१ लड़की ६ पोते पोतियाँ  ,२ नवासियानं अपनी यादगार में  छोड़ गए। ५ साल पहले उनकी बीवी की मौत, हज से लौटने बाद हुयी थी। मरहूम ने इस संगीन सानेह को बडे ही जिगर गुर्दे से बर्दाश्त किया था। अक्टूबर -२०१४ में अपने छोटे भाई ख़लीक़कोद्दिन ( भैया मामू ) की मौत ने उनेह शिकस्त दिल कर दिया। उनोह ने ज़िन्दगी की जंग उसी वक़्त हार दी ,बिस्तरे मर्ग से नाता जोड़ लिया। इसी सदमें ने उनेह बे दम कर दिया। नवापुर की कारोबारी ज़िन्दगी से वह कभी भी हम आहंग न हो पाये थे। भैया मॉमू की दुकान पर वह चंद फरहत बक्श लम्हे गुज़ार ज़हनी सुकून पा लेते थे। वरना नवापुर उन जैसे ज़िंदादिल ,अदब नवाज़ ,शायरी पसंद शख्स के लिए "ज़बान मिली है मगर हम ज़ुबान नहीं मिलता " के मिस्दाक़ था।
         मरहूम सय्यद खानदान के चश्म चिराग़ थे और इस खानदान का शिजरा अहमदाबाद के शाह वजिहोद्दीन से मिलता है जो अपने ज़माने के मारूफ वली ,बुज़ुर्ग थे। सदियों बाद भी उन का मज़ार अहमदाबाद में इसी शान शौकत से कायम है और हर साल बड़ी धूम धाम से उन का उर्स बतौर यादगार मनाया जाता है। मरहूम वजीह ,खूबसूरत थे। लम्बा कद ,शफ़ाफ़ रंग ,दिलकश झील सी नीली आँखों के मालिक थे। सूट पहन लेते तो अपने जमाने के मारूफ फिल्मस्टार को मात दे सकते थे। अलावा खूब सीरत भी थे। ज़िन्दगी में कभी किसी की बुराई नहीं की। रिश्तेदारों में हमेशा भाई चार्गी ,मोहब्बत कायम रखने की तलकीन करते। जलगाव एंग्लो उर्दू स्कूल से मेट्रिक करने के  बाद कुर् ,भिवंडी में कुछ अरसा स्कूल टीचर के पेशे से वाबस्तगी रही। ब्रूक बांड चाय कम्पनी में ज़माने तक डेपी मैनेजर रहे अपने  मारेफ़त कई लोगों को नौकरी दिलवाई। कंपनी के प्रोडक्ट को अपनी कोशिशों  से पर्काशा ,धड़गाओं और शहादा तालुके के कोने कोने में पहंचाया। कंपनी से उनेह कई अवार्ड्स भी मिले। उस ज़माने में कंपनी की सालाना रिपोर्ट में उन की तस्वीरें और उन के काम की तारीफ़ भी छपी लेकिन वह अपने ख़ुलूस ,ईमानदारी ,और अपने उसूलों से कभी भी उनोहने  समझोता न किया।

"न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह "  उनकीं ज़िन्दगी का मकसद ही यही था। कौम से दिली हमदर्दी लगाव था।शायद  इसी लिए डॉक्टर इक़बाल की शायरी बे हद पसंद करते। उर्दू ज़बान और शायरी से इंतेहा की अक़ीदत थी।
         शहादा में रहाईश के दौरान वह अदबी  ,तालीमी और  मुस्लिम समाज की तामीर में तन मन धन से लगे रहे। lion   club के fonder members थे। सर सय्यद उर्दू स्कूल  की शहादे में बुनियाद रखी गयी तो मरहूम  ने डायरेक्टर और ख़ज़ांची के फरायज़ अंजाम दिए। बज़्म  नौ  लयबरारी  के तहत मुशायरे ,अदबी प्रोग्राम्स में बाद चढ़ कर हिस्सा लेते थे। उस ज़माने के मसहूर अदीब कृष्णा चन्द्र ,जोए अंसारी ,जान निसार अख्तर को दावत दे कर एक कामयाब प्रोग्राम भी उनोह ने किया था। उन के दोस्तों का हल्का रंगा रंगा दोस्तों पर मुश्तमिल था प्रोफेसर  खान,अक्कौंटैंट मेहमूद ,इस्माइल साहेब जो शहदा के बड़े बिज़नेस करने वालों में शुमार होता है। इन तमाम मसरूफियत के बावजूद अपनी औलाद अपने खांदान की परवरिश भी मिसालि तरह से की। और  उन की औलाद ने भी आखरी लम्हों में उन की बेलूस  खिदमत कर
एक मिसाल कायम कर दी।
          कुछ  लोग अलग  अलग ज़बान  सीखने में  हैं माहिर होतें हैं ,मरहूम भी कई ज़बाने अहले ज़बान की तरह बोलने पर कादिर थे। मराठी,ऐरणी ,भील भाषा ,इन्गलिश,हिंदी और उर्दू में तो उन का जवाब ही नहीं था।
         लांवुं कहाँ से दूसरा तुझ सा कहूँ जिसे
       ८ अप्रैल को उन के जनाज़े में एक जम्मे अफ़िर ने शिरकत की। आज तक ताज़ियत करने वालों का सिलसिला जारी है। अल्लाह से उन की मग़फ़िरत के लिए दुआ गो हूँ, अल्लाह उनेह अपनी जवारे रहमत में जगा अता करे अमीन सुमा अमीन
         खुदा मग़फ़िरत करे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में।



सोमवार, 30 मार्च 2015

ये तेरा घर ये मेरा घर


                                                          ये तेरा घर ये मेरा घर
   नायेला का घर दुबई शहर के सेंटर में हैं। ३८ फ्लोर की बिल्डिंग छत पर खूबसूरत साफ़ शफ्फाफ़ पानी से भरा स्विमिंग पूल ,जीम जकोज़ी। उस की बालकनी से दुबई शहर का दिल फरेब मंज़र देखा जा सकता है। करीब से मेट्रो गुज़रती है।  गोल्फ का मैदान भी साफ़ तौर से देखा जा सकता है।वलीद , खालिद ,ज़ैद ,मुकम्मल खानदान। जिस रोज़ उसने हमारी दावत का इंतज़ाम किया था ,वह खुद शगुफ्ता और मुझे लेने नवेद के घर पहुंची।  उसकी नयी खरीदी parado का दीदार भी हम ने कर लिया।इत्तिफ़ाक़ से उस के सास ससुर भी मौजूद थे उन से भी मुलाक़ात का शर्फ़ हासिल होगया। क़ासिम भाई के मज़ाहिया जुमलों का मज़ा हम ने खूब उठाया।
     नायेला /वलीद ने घर की सजावट  बड़े प्यारे अंदाज़ में की है। खूबसूरत परदे ,फर्नीचर सोने पे सुहागा उस की गैलरी लगी ,जहाँ उस ने हाथों से बनी  पेंटिंग की नुमाइश कर रखी है। पुराने खुतूत ,बच्चों के हाथ से लिखी तहरीरें ,पेंटिंग याद्दों को महफूज़ करने का खूबसूरत अंदाज़ बहुत पसंद आया। जैसे नायेला कहना चाहती हो। ………।
ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना है गर
तो पहले आके मांग ले तेरी नज़र मेरी नज़र
आफ़रीन नायेला ! ख़्वाब हर कोई देखता है ख्वाबों में हकीकत का रंग भरने का सलीका तुम से सीखा जा सकता है।
अल्लाह से दुआ गो हूँ के तुमहरा घर हरा भरा रहे। नायेला ,वलीद के कहकहों से ,खालिद और ज़ैद की किलकारियों से महकता रहे।  आमीन सुम्मा आमीन

            आखिर में सलाम दादा भाई की रूह को और हमारी नेक भाभी सहबा को जिन की काविशों ने ,अपनी औलाद को तालीम  की रोशन मशाल से आरास्ता कर मुस्तकबिल कि रौशन  राह पर गामज़न कर दिया।                                              

बुधवार, 18 मार्च 2015

Dubai men Ghar wapsi

                                                        दुबई में घर वापसी
उमरा  करने के बाद ९ दिन नवीद के घर इंटरनेशनल सिटी में शगुफ्ता और  में ,मेहमान नवाज़ी से लुत्फ़ अंदाज़ होते रहे , दुबई की सैर करते  रहे ,एक सपना सा लगता है। रफ्फान ,महदिया , नवीद ,ज़ारा ,भाभी जान और डॉ वासिफ एक भरपूर कुम्बा। यही पर सास बहु को दोस्तों की तरह रहते देखा। नवीद अंजुम की बेपनाह मालूमात से कई बातें दुबई दुनिया के तालुक से पता चली। दादा ,पोते ,पोती के दरमियान अजीब रब्त,मोहबत ,उन्सियत देखि। डॉ वासिफ ,रफ्फान और महदिया में अपनी तहज़ीब ,रिवायत  ,अखलाक़,ज़बान के बीज डाल ,इन की अब्यारी में लगे हैं। और इंशाल्लाह जिस मुस्तैदी से कोशिश कर रहे है जरूर कामयाब होंगें। वरना यहाँ की तहज़ीब जहाँ इंसानों को रोबोट की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ,औरतों को display piece ,बड़ी बड़ी इमारतें जिनेह कभी हज़रात सुलैमान ने बनायीं थी हकीकत का रूप लिए आ खों को चक चौंध कर देती है। बड़े बड़े खूबसूरत malls ,global village , khalifa tower देख egypt के अहराम की यादें ताज़ा होजाती हैं जिनेह एक लाख इंसानों ने २०  साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया था।  फ़र्क़ यह है  आज के दौर।,टेक्नोलॉजी का  है ,लोगों की कड़ी मेहनत का औने पौने मुआवज़ा अदा किया गया है जब के माज़ी में ग़ुलामों से काम लिया जाता बग़ैर मुआवज़ा।
        दो रोज़ से नाज़िम घर पडाव डाले  बैठे हैं।दूलह भाई भी आये हुए है। माज़ी की यादें ताज़ा होगयी। यहाँ भी वही माहोल मिला है , पोता पोतियां दादा से chase सीख रहे हैं। जो किसी ज़माने में चेस  चैंपियन थे. सिद्रा पेंटर है।,सारा खाना बनाने की शौक़ीन ,अफ्फान कराटे चैंपियन बनने की कोशिशों में मसरूफ इतिफ़ाक़न उस के ओपन डे में शरीक होने कामौका मिला पता चला रैंक होल्डर है। ख़ुशी हुवी नाज़िम ने बच्चों को  talent के निखारने का मौका दिया। बच्चों की तरबियत में निकहत कि काविशें भी शामिल हैं।
           सुतून इ दार पे रखते चलों सरों के चराग़
      मेरी अपनी कोशिश भी होती है के अपनी तहज़ीब ,जुबांन ,अखलाक़  की खुशबू आलिया ,अलीना तक पहुंचा सकूँ।
आज के इस दौर में जब रिश्तें पामाल हो रहें हैं ,इंसानियत सिसक रही है। हम इस सेहरा में छोटा सा नखलिस्तानही छोड़
जाये जो नयी नस्ल को पुरानी तहज़ीब की याद दिलाता रहे।
        

बुधवार, 11 मार्च 2015

Mai to kuch bhi nahi

                                                           में तो कुछ भी  नहीं
 ९ मार्च मदीना से उमरे के बाद एक EK- ८१० Dubai ,में और शगुफ्ता टर्मिनल ३ पर ९३० बजे पुहंचे।  डॉ वासिफ से बात होचुकी थीं।  नवीद और अफ्फान भी हमें लेने पुँहचे थे। ताज्जुब इस बात का हुआ नाज़िम अपनी फैमिली के साथ एयरपोर्ट पर मौजूद था हालाँकि में उसे सिर्फ dubai पहुँचाने  की तारीख की इत्तला दी थी। नेट से उस ने कैसे पता कर लिया था। आँखों से आंसू निकल पड़े सब का खुलूस  देख कर। साहिर की नज़्म याद आ गयी।  इसकदर प्यार कैसे  संभालूँगा में ,में तो कुछ भी नहीं ,मुझ को इतनी मोहब्बत मिली आप से ,मेरा हक़ नहीं मेरी तक़दीर है , में तो कुछ भी नहीं। 
नाज़िम से माज़रत करने के बाद  हम सब नवेद के घर उस की खूबसूरत कार एकॉर्ड  में बैठ कर उस के  पार्किंग में पहुंचे।  रफ्फान  की गर्म जोशी देखने के काबिल थी हमारी  बैग्स लिफ्ट तक खिंच कर लाने की कोशिश करने लगा। घर में पुहँचते ही उस ने अपने black board पर फूल की तस्वीर बनायीं और लिखा well come वह शायद अपने ख़यालात का इज़हार करना चाहता था। शगुफ्ता और मुझे उस की मासूमियत उस के जज़्बे इज़हार करने के इस तरीके ने बहुत मातासर किया अल्लाह उसे उम्र दराज़  दे सेहतमंद रखे।  रात १२३० बजे तक हम सब जागते रहे बातें करते रहे रफ़्फ़न भी हम सब के साथ बैठा रहा हालिंके दूसरी सुबह उसे जल्द स्कूल जाना था। बड़ी मुश्किल से ज़ारा ने उसे सुलाया। 


रविवार, 8 मार्च 2015

Jhooti azmat


२ साल पहले   उमरा जाने का इत्तेफ़ाक़ हुवा था  उमरा पूरा करने के बाद एक पाकिस्तानी ड्राइवर अली से मुलाक़ात हुई। उस ने बताया के कस्वा काबा मक्का में एक मुक़ाम है जहाँ सऊदी हुकूमत ने हरमैन (मक्का,मदीनः ) से निकली पुरानी चीज़ों का museum बना रखा है। काबे से निकला १०० साल पुराना दरवाज़ा जिसे लाखों लोगों ने अक़ीदत से चूमा होंगा। काबे से निकली पुरानी कंदील ,पुराना मुक़ाम इब्राहिम ,हिजरे अस्वद का खौल। वग़ैरा इन चीज़ों की अज़मत ,अक़ीदत इस वजह से थी के वह काबे पर लगी थीं। लेकिन अब वह म्यूजियम का हिस्सा बन गई है तो अब उन की वह अहमियत नहीं रही। अल्लाह का घर मक्का में है जिसे हज़रात इब्राहिम अ स ने अल्लाह की निशान दही पर इसे वहां तामीर किया था।  अब्राहा ने उसे मिस्मार करना चाहा न कर सका। दौर जहालत में किसी दुसरे मुक़ाम पर काबा बनाया गया उसे वह क़बूलियत न मिल पायी।  अल्हम्दोलीलाः  क़यामत तक काबे की अज़मत बाकि रहेंगी यह अल्लाह का वादा है इसी लिए एक नमाज़ हरमैन में अदा करने  का सवाब आम मस्जिदों के मुकाबले में लाखों गुना अजर है।  इसी तरह मस्जिदे नबवी में आप रसूल स.अ.स की इस्राहत  फरमाने की वजह से इस की शान है।
    हिन्दुस्तान में अजीब तरह से चीज़ों की अहमियत बढ़ायी जाती है। बचपन का ,जल गाव शहर  का ,एक वाक़ेआ ज़हन में ताज़ा होगया। ख्वाजा अजमेरी की क़ब्र से एक ईंट छूकर लायी गयी और कब्र बना कर उस पर आस्ताना बनाया गया। अक़ीदतमंदों की भीड़ जमा होने लगी। हर साल धूम से उर्स होने लगा। लोग वहां मुरादें मांगने लगे ,मुरादें पूरी होने पर चढ़ावे चढ़ने लगे। बक़ायदा मुजावर मुक़र्रर होगये। फूल शीरनी की दुकानें खुल गयी। उस मुक़ाम को लोग ख़्वाजा मियां के नाम से जानते हैं। आस पास बस्ती बनी उसे भी ख्वाजा मियां नगरी के नाम से जाना जाने लगा। आज भीं वह मज़ार अपनी जगह क़ायम है बल्कि और भी शानदार बन गया है। 
   इसी तरह महाबलेश्वर में एक मज़ार है। पुराना मज़ार जहाँ था वहां dam बन गया है। मुनिसिपल्टी ने मज़ार के लिए नयी जगह दी तो मज़ार वहां shift कर दिया गया लेकिन कब्र वली से खाली है।  फिर भी लोग अक़ीदत से मज़ार पर आते हैं बाक़ायद उर्स मनाया जाता है। 
  नंदुरबार में इमाम बाशा मियां की दरगाह को कुछ साल पहले नुकसान पूहचाया गया ,इत्तिफ़ाक़ से जिन लोगों ने नुकसान  पुह्चाया था दो की हार्ट अटैक से मौत होगयी। हज का ज़माना था। लोगों ने वहां मशहूर कर दिया साहेब कब्र हज को गए हुवे है वरना सब  तबाह होजाते। 

शनिवार, 7 मार्च 2015

Jannate baki

दो साल पहले लिखी गया ब्लॉग
जन्नते बक़ी रोज़ाए अथरहर (गुंबदे ख़िज़्रर ) के क़रीब बड़ा कब्रस्तान है।  दस हज़ार सहाबी यहाँ दफन है। हज़रज़त आयेशा सिद्दीक़ा ,हज़रात फातिमा ,हज़रात उस्मान  बिन अफ्फान न जाने कितने जलील उल क़दर सहबा यहाँ आराम फरमा रहें हैं। आज सुबह ज़ियारत का मौक़ा मिला। औरतों को दाखले की इजाज़त नहीं। एक ही तरह  की सब कब्रें बनि हैं। कहीं कोई निशान नहीं। सऊदी पोलिस चपे चपे पर कड़ी नज़र रखती है।   किसी को कब्रों के पास रुकने नहीं दिया जाता। जगे जगे मुतवलियांन लोगो को शिर्क से बचने के उसूल बताते हैं। न फातेहा पड़ने की इजाज़त है न कब्र के करीब जाने की इजाज़त है। लोग दुआएं ,फातेहा  पड़ते कब्रस्तान से गुज़र जाते है। आज ६ मार्च २०१५ पाकिस्तानी वज़ीर आज़म नवाज़ शरीफ भी कब्रस्तान की ज़ियारत को पहचे थे।  हमें उनेह करीब से देखने का मौक़ा मिला। काफी देर तक हमें कब्रस्तान से निकलने से रोक गया। नवाज़ शरीफ थोड़ी देर रुक कर चले गए। तब सब लोगों को कब्रस्तान से निकलने की इजाज़त मिली। आज जिस शान से security के बीच वह आये थे मुझे वह वक़्त याद आगया कुछ साल पहले जनरल मुशरफ ने  उनेह १० साल तक पाकिस्तान आने रोक रखा  था और वह एक आम आदमी की ज़िन्दगी जिला वतनी के तौर  जेद्दा में गुज़र रहे थे। न कोई security न शान शौकत न मुस्तकबिल के तालुक से उम्मीद। वक़्त ने पलटा खाया उन्हें पाकिस्तान आने की इजाज़त मिली उनोह ने इलेक्शन जीता दोबारा हुकूमत मिलीं। आज जनरल मुशर्रफ अदालतों के चक्कर काट रहे हैं कल जाने क्या हों।   !!!!!!!!!!     इज़्ज़ते  शोहरतें चाहतें कुछ भी मिलता नहीं इंसान को
                                                      आज में हूँ यहाँ कल कोई और था कल कोई  और होंगा
                                                       में तो कुछ भी में तो कुछ भी नहीं
रहे नाम अल्लाह का