शनिवार, 7 मार्च 2015

Jannate baki

दो साल पहले लिखी गया ब्लॉग
जन्नते बक़ी रोज़ाए अथरहर (गुंबदे ख़िज़्रर ) के क़रीब बड़ा कब्रस्तान है।  दस हज़ार सहाबी यहाँ दफन है। हज़रज़त आयेशा सिद्दीक़ा ,हज़रात फातिमा ,हज़रात उस्मान  बिन अफ्फान न जाने कितने जलील उल क़दर सहबा यहाँ आराम फरमा रहें हैं। आज सुबह ज़ियारत का मौक़ा मिला। औरतों को दाखले की इजाज़त नहीं। एक ही तरह  की सब कब्रें बनि हैं। कहीं कोई निशान नहीं। सऊदी पोलिस चपे चपे पर कड़ी नज़र रखती है।   किसी को कब्रों के पास रुकने नहीं दिया जाता। जगे जगे मुतवलियांन लोगो को शिर्क से बचने के उसूल बताते हैं। न फातेहा पड़ने की इजाज़त है न कब्र के करीब जाने की इजाज़त है। लोग दुआएं ,फातेहा  पड़ते कब्रस्तान से गुज़र जाते है। आज ६ मार्च २०१५ पाकिस्तानी वज़ीर आज़म नवाज़ शरीफ भी कब्रस्तान की ज़ियारत को पहचे थे।  हमें उनेह करीब से देखने का मौक़ा मिला। काफी देर तक हमें कब्रस्तान से निकलने से रोक गया। नवाज़ शरीफ थोड़ी देर रुक कर चले गए। तब सब लोगों को कब्रस्तान से निकलने की इजाज़त मिली। आज जिस शान से security के बीच वह आये थे मुझे वह वक़्त याद आगया कुछ साल पहले जनरल मुशरफ ने  उनेह १० साल तक पाकिस्तान आने रोक रखा  था और वह एक आम आदमी की ज़िन्दगी जिला वतनी के तौर  जेद्दा में गुज़र रहे थे। न कोई security न शान शौकत न मुस्तकबिल के तालुक से उम्मीद। वक़्त ने पलटा खाया उन्हें पाकिस्तान आने की इजाज़त मिली उनोह ने इलेक्शन जीता दोबारा हुकूमत मिलीं। आज जनरल मुशर्रफ अदालतों के चक्कर काट रहे हैं कल जाने क्या हों।   !!!!!!!!!!     इज़्ज़ते  शोहरतें चाहतें कुछ भी मिलता नहीं इंसान को
                                                      आज में हूँ यहाँ कल कोई और था कल कोई  और होंगा
                                                       में तो कुछ भी में तो कुछ भी नहीं
रहे नाम अल्लाह का 

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