बुधवार, 11 मार्च 2015

Mai to kuch bhi nahi

                                                           में तो कुछ भी  नहीं
 ९ मार्च मदीना से उमरे के बाद एक EK- ८१० Dubai ,में और शगुफ्ता टर्मिनल ३ पर ९३० बजे पुहंचे।  डॉ वासिफ से बात होचुकी थीं।  नवीद और अफ्फान भी हमें लेने पुँहचे थे। ताज्जुब इस बात का हुआ नाज़िम अपनी फैमिली के साथ एयरपोर्ट पर मौजूद था हालाँकि में उसे सिर्फ dubai पहुँचाने  की तारीख की इत्तला दी थी। नेट से उस ने कैसे पता कर लिया था। आँखों से आंसू निकल पड़े सब का खुलूस  देख कर। साहिर की नज़्म याद आ गयी।  इसकदर प्यार कैसे  संभालूँगा में ,में तो कुछ भी नहीं ,मुझ को इतनी मोहब्बत मिली आप से ,मेरा हक़ नहीं मेरी तक़दीर है , में तो कुछ भी नहीं। 
नाज़िम से माज़रत करने के बाद  हम सब नवेद के घर उस की खूबसूरत कार एकॉर्ड  में बैठ कर उस के  पार्किंग में पहुंचे।  रफ्फान  की गर्म जोशी देखने के काबिल थी हमारी  बैग्स लिफ्ट तक खिंच कर लाने की कोशिश करने लगा। घर में पुहँचते ही उस ने अपने black board पर फूल की तस्वीर बनायीं और लिखा well come वह शायद अपने ख़यालात का इज़हार करना चाहता था। शगुफ्ता और मुझे उस की मासूमियत उस के जज़्बे इज़हार करने के इस तरीके ने बहुत मातासर किया अल्लाह उसे उम्र दराज़  दे सेहतमंद रखे।  रात १२३० बजे तक हम सब जागते रहे बातें करते रहे रफ़्फ़न भी हम सब के साथ बैठा रहा हालिंके दूसरी सुबह उसे जल्द स्कूल जाना था। बड़ी मुश्किल से ज़ारा ने उसे सुलाया। 


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