शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

Pohnchi wahi pe khak Jahan ka khameer tha

 आज मरहूम जैनुलआबेदीन साहेब को इंतेक़ाल हुए १० साल मुक़म्मिल होगये हैं।  हिस्ट्री इस लिए
       Late Zainulabedin in his younger days 

भी जाननी ज़रूरी है के उस से कुछ सीखा जाये। मरहूम ज़ैनुलआबेदीन बड़ी खूबियों के मालिक थे। आप ने अपनी तमाम ज़िन्दगी हलाल रिज़्क़ कमाने की जद्दो जहद में गुज़ारी  , सब बच्चों को ग्रेजुएट तक तालीम दिलवाई ,आप को उर्दू ,हिंदी ,ऐरानी ,इंग्लिश ,आदिवासी और गुजरती ज़बान पे माशाल्लाह उबूर (command ) था।  उनकी ज़िन्दगी के शार्ट हालत लिखे थे। पढ़ने लायक है।                  
         
         पोहंची वही पे खाक जहाँ का ख़मीर था (आदमी मिटटी  से बना है और आखिर में वही पहुंचता है )
अलहाज ज़ैनुलआबेदीन सैय्यद बरोज़ मंगल ७ अप्रैल २०१५ को इस दारे फानी से कुच कर गए। मरहूम  ने ८० साल की लम्बी उम्र पायी। ३ लड़के ,१ लड़की ६ पोते पोतियाँ  ,3 नवासियांअपनी यादगार में  छोड़ गए। ५ साल पहले उनकी बीवी की मौत, हज से लौटने बाद हुयी थी। 
         मरहूम सय्यद खानदान के चश्म चिराग़ थे और इस खानदान का शिजरा अहमदाबाद के शाह वजिहोद्दीन से मिलता है जो अपने ज़माने के मारूफ वली ,बुज़ुर्ग थे। सदियों बाद भी उन का मज़ार अहमदाबाद में इसी शान शौकत से कायम है और हर साल बड़ी धूम धाम से उन का उर्स बतौर यादगार मनाया जाता है। मरहूम  ज़ैनुलआबेदीन वजीह ,खूबसूरत थे। लम्बा कद ,शफ़ाफ़ रंग ,दिलकश झील सी नीली आँखों के मालिक थे। सूट पहन लेते तो अपने जमाने के मारूफ फिल्मस्टार को मात दे सकते थे। अलावा खूब सीरत भी थे। ज़िन्दगी में कभी किसी की बुराई नहीं की। रिश्तेदारों में हमेशा भाई चार्गी ,मोहब्बत कायम रखने की तलकीन करते। जलगाव एंग्लो उर्दू स्कूल से मेट्रिक करने के  बाद ,कुर्ला अंजुमन  में कुछ अरसा स्कूल टीचर के पेशे से वाबस्तगी रही। ब्रूक बांड चाय कम्पनी में ज़माने तक डेपी मैनेजर रहे अपने  मारेफ़त कई लोगों को नौकरी दिलवाई। कंपनी के प्रोडक्ट को अपनी कोशिशों  से पर्काशा ,धड़गाओं और शहादा तालुके के कोने कोने में पहंचाया। कंपनी से उनेह कई अवार्ड्स भी मिले। उस ज़माने में कंपनी की सालाना रिपोर्ट में उन की तस्वीरें और उन के काम की तारीफ़ भी छपी लेकिन वह अपने ख़ुलूस ,ईमानदारी ,और अपने उसूलों से कभी भी उनोहने  समझोता न किया।

"न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह "  उनकीं ज़िन्दगी का मकसद ही यही था। कौम से दिली हमदर्दी लगाव था।शायद  इसी लिए डॉक्टर इक़बाल की शायरी बे हद पसंद करते। उर्दू ज़बान और शायरी से इंतेहा की अक़ीदत थी।
         शहादा में रहाईश के दौरान वह अदबी  ,तालीमी और  मुस्लिम समाज की तामीर में तन मन धन से लगे रहे। lion   club के fonder members थे। सर सय्यद उर्दू स्कूल  की शहादे में बुनियाद रखी गयी तो मरहूम  ने डायरेक्टर और ख़ज़ांची के फरायज़ अंजाम दिए। बज़्म  नौ  लयबरारी  के तहत मुशायरे ,अदबी प्रोग्राम्स में बाद चढ़ कर हिस्सा लेते थे। उस ज़माने के मसहूर अदीब कृष्णा चन्द्र ,जोए अंसारी ,जान निसार अख्तर को दावत दे कर एक कामयाब प्रोग्राम भी उनोह ने  शहद में किया था। उन के दोस्तों का हल्का रंगा रंगा लोगों पर मुश्तमिल था प्रोफेसर  खान,अक्कौंटैंट मेहमूद ,इस्माइल साहेब जो शहदा के बड़े बिज़नेस करने वालों में शुमार होता है। इन तमाम मसरूफियत के बावजूद अपनी औलाद अपने खांदान की परवरिश भी मिसालि तरह से की। और  उन की औलाद ने भी आखरी लम्हों में उन की बेलूस  खिदमत कर एक मिसाल क़ायम की। 

          कुछ  लोग अलग  अलग ज़बान  सीखने में  हैं माहिर होतें हैं ,मरहूम भी कई ज़बाने अहले ज़बान  (mother tongue ) की तरह बोलने पर कादिर थे। मराठी,ऐरणी ,भील भाषा ,इन्गलिश,हिंदी और उर्दू में तो उन का जवाब ही नहीं था।
         लांवुं कहाँ से दूसरा तुझ सा कहूँ जिसे
       ८ अप्रैल  २०१५ के रोज़  उन के जनाज़े में एक जम्मे ग़फ़ीर  ने शिरकत की। कई आरसे तक ताज़ियत करने वालों का सिलसिला जारी रहा । अल्लाह से उन की मग़फ़िरत के लिए दुआ गो हूँ, अल्लाह उनेह अपनी जवारे रहमत में जगा अता करे अमीन सुमा अमीन
         खुदा मग़फ़िरत करे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में।



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