सोमवार, 1 जून 2015

Yaadein ke chiragh

जनाब मोहंमद  फ़रॊक़् आजमी  सबिक़् प्रिनसिपल  अन्ग्लो उर्दु स्कूल कि किताब् "यादो के चिरगः " मे शागिरदो कि दुनिया मे उनोः ने लिखा हैं
Dr  वासिफ़् अहमद अपनी ब्यच के इनतहायि कम् आमेज़ शर्मीले लेकिन इन्तेहायी जहीन तलिब्ब् इल्म थे .खमॊश् तबे थे मगर बेदार जेहन् थे! 1967 मे ssc इम्तियजि नंबरो से काम्याब् किया और कालेज के दो साल मुकम्मल् करने के बाद मेरीट कि बुनियाद पर MBBS मे दाखला मिल गया  doctry का ये बावक़ार् कोर्स मुकमिल् करने के बाद medical officer की हैसीयत , रियासत् गुजरात मे सरकारी मुलाजमत इख्तियार कर ली बडोदा  शेहर् मे वोह् अपनी खिद् मात अन्जांम दे रहे हैं। अदारा आल्मि सहेत् (WHO ) ने उनकी सलहियत् ,काबिलियत और जज्बे खल्क़् को देखते हुये leorosy unit मे हुकमत गुजरात सें उन कि खिदमात कुछ दिनो के लिये मुस्तार् ली हैं . और वोह् ता दंम तःरीर मध्य परदेश के गु ना मे काम कर रहे है . बरोडा उन का हेड  कवटर है वहि अब मुसतक़िल कयांम पजीर है. वासिफ अहमद को    एंग्लो का पहला MBBS डॉक्टर होने का ऐजाज़ हासिल है।  अफ़सोस के खानदेश का यह सपूत मुस्ताकलन बरोदा में सकूनत पजीर् हो चुका जिस की वजेह से अहलियान जलगाव को इन के दस्त शफ़ा से महरुम होना पडा।
    डॉक्टर वासिफ के छोटे भाई राग़ीब अहमद भी अपने ज़माने के मुमताज् तल्बा में से थे। १९७१ में एंग्लो से एसएससी किया वह बड़े खुश इखलाक ,खुश मिज़ाज और  मजलसि इंसान है। अपनी मुलाज़मत के झमेलों से अक्सर वक्त निकाल कर अपने मर्जबूम जलगाव की गलियों अपने बचपन की याद ताज़ा करने चले आते हैं। हालाकि वह बा सिलसले मुलाज़मत शाम और सूडान जैसे दूर दराज मुमालिक में कयाम पज़ीर है। मेरी प्रिंसिपल शिप के ज़माने में एक बार इस्कूल की विसिट देने आये तो यहाँ के बदले हुए नक़्शे और तदरीसी सरगर्मियों को देख कर बड़े मतस्सिर हुए और अपने वालिद मरहूम से मंसूब बच्चोँ को पीने के लिए पानी का एक कूलर नसब करवा गए। गुजश्ता दिनों अब्दुर रहीम शेख की लड़की की शादी में शिरकत के लिए आये तो इत्तेफाक से मुलाक़ात हो गयी।  बड़े ख़ुलूस मोहब्बत से मिले और अपनी ज़िन्दगी की बहार व खिजां की दास्ताँ सुनाते रहें। किसी ज़माने में मौसूफ़ shark plastic packaging के डायरेक्टर थे। फिर मुल्क शाम (syria ) चले गए।जहाँ वह एक तेल कंपनी में किसी बावकार ओहदे पर फ़ाईज थे।  हालिया मुलाकात
में मालूम हुवा के मौसूफ़ इन दिनों सूडान के दर उल सलतनत  खर्तॊम की एक आयल कम्पनी में सुपरवाइजर है और अपनी मुलाज़मत से मुतमईन और मसरूर है। मुस्तकिल कयाम मुंबई को बनाया है। उन के एक साथी मखदूम अली से भी उन के साथ ही मुलाकात होगई जो फिलहाल महाराष्ट्र असेंबली के मंत्रालय  में मुलाज़िम है। जिस जमाने में हमारे पेंशन के कागजात मुंबई AG के आफिस में इल्तवा में पड़े हुए थे मखदूम अली ने फाइल को मुतालेका क्लेर्क की मेज़ पर लाने और पेंशन का ऑर्डर पास कराने में बड़ा फाल किरदार अदा किया इन की कोशिशों से हमें चंद दिनों में  पेंशन ऑर्डर मिल गया। अल्लाह ताअला उनेह उन के शोबे में तरकी आता करे।
    फारूक सर ने हम तीनों का जिकर अपनी किताब "यादों के चिराग़ " में किया।  इतने सालों बाद भी अपने स्टूडेंट्स को याद रखा हम उन के शुक्र गुजार हैं।  अल्लाह उनेह सेहत दे उन की उम्र दराज करे आमीन।


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