दुबई में घर वापसी
उमरा करने के बाद ९ दिन नवीद के घर इंटरनेशनल सिटी में शगुफ्ता और में ,मेहमान नवाज़ी से लुत्फ़ अंदाज़ होते रहे , दुबई की सैर करते रहे ,एक सपना सा लगता है। रफ्फान ,महदिया , नवीद ,ज़ारा ,भाभी जान और डॉ वासिफ एक भरपूर कुम्बा। यही पर सास बहु को दोस्तों की तरह रहते देखा। नवीद अंजुम की बेपनाह मालूमात से कई बातें दुबई दुनिया के तालुक से पता चली। दादा ,पोते ,पोती के दरमियान अजीब रब्त,मोहबत ,उन्सियत देखि। डॉ वासिफ ,रफ्फान और महदिया में अपनी तहज़ीब ,रिवायत ,अखलाक़,ज़बान के बीज डाल ,इन की अब्यारी में लगे हैं। और इंशाल्लाह जिस मुस्तैदी से कोशिश कर रहे है जरूर कामयाब होंगें। वरना यहाँ की तहज़ीब जहाँ इंसानों को रोबोट की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ,औरतों को display piece ,बड़ी बड़ी इमारतें जिनेह कभी हज़रात सुलैमान ने बनायीं थी हकीकत का रूप लिए आ खों को चक चौंध कर देती है। बड़े बड़े खूबसूरत malls ,global village , khalifa tower देख egypt के अहराम की यादें ताज़ा होजाती हैं जिनेह एक लाख इंसानों ने २० साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया था। फ़र्क़ यह है आज के दौर।,टेक्नोलॉजी का है ,लोगों की कड़ी मेहनत का औने पौने मुआवज़ा अदा किया गया है जब के माज़ी में ग़ुलामों से काम लिया जाता बग़ैर मुआवज़ा।
दो रोज़ से नाज़िम घर पडाव डाले बैठे हैं।दूलह भाई भी आये हुए है। माज़ी की यादें ताज़ा होगयी। यहाँ भी वही माहोल मिला है , पोता पोतियां दादा से chase सीख रहे हैं। जो किसी ज़माने में चेस चैंपियन थे. सिद्रा पेंटर है।,सारा खाना बनाने की शौक़ीन ,अफ्फान कराटे चैंपियन बनने की कोशिशों में मसरूफ इतिफ़ाक़न उस के ओपन डे में शरीक होने कामौका मिला पता चला रैंक होल्डर है। ख़ुशी हुवी नाज़िम ने बच्चों को talent के निखारने का मौका दिया। बच्चों की तरबियत में निकहत कि काविशें भी शामिल हैं।
सुतून इ दार पे रखते चलों सरों के चराग़
मेरी अपनी कोशिश भी होती है के अपनी तहज़ीब ,जुबांन ,अखलाक़ की खुशबू आलिया ,अलीना तक पहुंचा सकूँ।
आज के इस दौर में जब रिश्तें पामाल हो रहें हैं ,इंसानियत सिसक रही है। हम इस सेहरा में छोटा सा नखलिस्तानही छोड़
जाये जो नयी नस्ल को पुरानी तहज़ीब की याद दिलाता रहे।
उमरा करने के बाद ९ दिन नवीद के घर इंटरनेशनल सिटी में शगुफ्ता और में ,मेहमान नवाज़ी से लुत्फ़ अंदाज़ होते रहे , दुबई की सैर करते रहे ,एक सपना सा लगता है। रफ्फान ,महदिया , नवीद ,ज़ारा ,भाभी जान और डॉ वासिफ एक भरपूर कुम्बा। यही पर सास बहु को दोस्तों की तरह रहते देखा। नवीद अंजुम की बेपनाह मालूमात से कई बातें दुबई दुनिया के तालुक से पता चली। दादा ,पोते ,पोती के दरमियान अजीब रब्त,मोहबत ,उन्सियत देखि। डॉ वासिफ ,रफ्फान और महदिया में अपनी तहज़ीब ,रिवायत ,अखलाक़,ज़बान के बीज डाल ,इन की अब्यारी में लगे हैं। और इंशाल्लाह जिस मुस्तैदी से कोशिश कर रहे है जरूर कामयाब होंगें। वरना यहाँ की तहज़ीब जहाँ इंसानों को रोबोट की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ,औरतों को display piece ,बड़ी बड़ी इमारतें जिनेह कभी हज़रात सुलैमान ने बनायीं थी हकीकत का रूप लिए आ खों को चक चौंध कर देती है। बड़े बड़े खूबसूरत malls ,global village , khalifa tower देख egypt के अहराम की यादें ताज़ा होजाती हैं जिनेह एक लाख इंसानों ने २० साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया था। फ़र्क़ यह है आज के दौर।,टेक्नोलॉजी का है ,लोगों की कड़ी मेहनत का औने पौने मुआवज़ा अदा किया गया है जब के माज़ी में ग़ुलामों से काम लिया जाता बग़ैर मुआवज़ा।
दो रोज़ से नाज़िम घर पडाव डाले बैठे हैं।दूलह भाई भी आये हुए है। माज़ी की यादें ताज़ा होगयी। यहाँ भी वही माहोल मिला है , पोता पोतियां दादा से chase सीख रहे हैं। जो किसी ज़माने में चेस चैंपियन थे. सिद्रा पेंटर है।,सारा खाना बनाने की शौक़ीन ,अफ्फान कराटे चैंपियन बनने की कोशिशों में मसरूफ इतिफ़ाक़न उस के ओपन डे में शरीक होने कामौका मिला पता चला रैंक होल्डर है। ख़ुशी हुवी नाज़िम ने बच्चों को talent के निखारने का मौका दिया। बच्चों की तरबियत में निकहत कि काविशें भी शामिल हैं।
सुतून इ दार पे रखते चलों सरों के चराग़
मेरी अपनी कोशिश भी होती है के अपनी तहज़ीब ,जुबांन ,अखलाक़ की खुशबू आलिया ,अलीना तक पहुंचा सकूँ।
आज के इस दौर में जब रिश्तें पामाल हो रहें हैं ,इंसानियत सिसक रही है। हम इस सेहरा में छोटा सा नखलिस्तानही छोड़
जाये जो नयी नस्ल को पुरानी तहज़ीब की याद दिलाता रहे।
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