गुरुवार, 30 नवंबर 2023

khushbu jaise log mile

                                                                       खुशबु जैसे लोग मिले 

खुशबु जैसे लोग मिले कॉलम में आज जिस शख्सियत को मातार्रिफ़ किया जा रहा है वो किसी तार्रुफ़ की मोहताज नहीं। हमारी जनरेशन ने उन से जीने का सलीका सीखा है। 

अल्हाज नईमुद्दीन अलीमुद्दीन शेख़  (नासिक ) के हालते ज़िन्दगी पर सरसरी नज़र डालने की कोशिश की हूँ। कहा जाता है "जो बात दिल से निकलती है असर रखती है "। किस हद तक कामयाब हुवा हूँ अल्लाह बेहतर जनता है। पड़ने वालों की राय का इंतज़ार है। 

रागिब अहमद शैख़ 

inquilab ke liye

                                                                                اوڑھنی کا لم کے لئے 

                                                                        بسیار گفتاری کیوں نقصان دہ ہے ؟

                                                                   قوموں کی حیات انکے تخیل پے ہے موقوف 

بسیار گفتار کی  تین وجوہات ہوتی ہے اپنی بڑھا ی بیان کرنا دوسروں کی کمزوریاں بیان کرکے انہیں نیچا دکھانا دوسروں کے قد کو چھوٹا دکھا کر اپنا قد بڑھانے کی کوشش -پھر یہ جنوں کی شکل اختیار کر لیتا ہے -پوری قوم ملک ،سماج اس بیماری میں مبتلا ہوجاتا ہے -ہم مقصد سے ہٹ جاتے ہیں اور الله کی ناراضگی بھی مول لیتے ہیں -پوری دنیا میں سوشل میڈیا ،وہاٹس اپ ،ٹیلی ویژن خبریں اس کی زندہ  مثالیں ہیں -ہندوستان میں مسلم قوم کو حاشیے پر لانے کی یہ ایک بڑی وجہ  ہے -ہر کویی اس برائی میں ملوث ہے -دل کی گہرایوں توبہ ہی اس مسلے کا حل ہے -

شگفتہ راغب شیخ 

Haji Naeemoddin Alimoddin Shaikh



 
हाजी नईमुद्दीन अलीमुद्दीन शेख़ 
तारीख पैदाइश : 04 /07 /1942  जाये पैदाइश (place of birth ): भुसावल 

धुप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो 
ज़िन्दगी क्या है किताबों से निकल कर देखो 
आज हम ऐसी शख्सियत से आप को मुतारीफ (introduce ) करने जा रहे है जो  ज़िन्दगी की ८० बारिशें ,बहारें ,खिज़ाएं देख चूका है। और अब भी एक तन आवार दरख्त की मानिंद अपने ख़ानदान पर सायए आतेफ़त किये हुवे है। रिश्ते में मेरे भतीजे लगते है लेकिन बचपन से हम उनेह नईम दादा के लक़ब से पुकारते है। नईमुद्दीन अलीमुद्दीन हमारे बड़े अब्बा करीमुद्दीन के पोते और हमारे दादाभाई अलीमुद्दीन के बेटे। 
                                    मेहनत से वो तक़दीर बना लेते हैं अपनी 
                                    वर्से में जिन्हे कोई ख़ज़ाना नहीं मिलता 
     दादाभाई अलीमुद्दीन  (मरहूम )दुनिया  से जल्द रुखसत होगये थे। नईमुद्दीन को अपने दो भाइयों हमीदुद्दिन और जमिलाद्दीन की तालीम और तरबियत और ख़ानदान की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी ,उनोहने बखुशी सर आँखों पर इस ज़िम्मेदादारी को क़बूल किया । माशाल्लाह हमीदुद्दीन इंजीनियर बने और जमीलोद्दिन  ने भी अच्छी तालीम हासिल की       
       मैट्रिक के बाद अल्हाज नईमुद्दीन ने  जलगाव कोर्ट में स्टेनोग्राफर के पेशे से शुरुवात की। शायद जजों के लम्बे लम्बे फैसले लिखना पसंद नहीं आया, ६ महीने में ऊब गए । बन्दे में दम था , अपनी क़ाबिलियत पर पूरा यक़ीन था। हिंदसों (figure ) से बे इन्तहा इश्क़ था। अपनी कोशिशों जफिशनी से income tax शोबे का इम्तेहान पास किया न कोई सिफारिश थी ,न रहनुमाई ,बल्कि सब कुछ अल्हाज नईमुद्दीन ने अपने बल बुते पर किया। 
                                  मुझको जाना है बहुत आगे हदे परवाज़ से 
       फिर अल्हाज  नईमुद्दीन अपने Department  के इम्तेहानात पास करते रहे और तरक़्की की सीढ़ियां चढ़ते रहे। २००२ में  Assistant Commissioner of Income Tax Nasik के ओहदे से पेंशन याब हुए। 
        हमीदुद्दीन अल्हाज नईमुद्दीन के छोटे भाई ने मुझे बताया के मीट्रिक के बाद दादा ने मुझसे पूछा "क्या करने का इरादा है। अगर ITI करना हो तो नासिक में अवेलेबल है " हमीदुद्दीन ने जवाब दिया उसे Diploma in Mechanical Engineering करना है "। unfortunately नासिक में इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं था।  हमीदुद्दीन ने बताया , मेरी तालीम की दादा को इतनी फिक्र थी कमिशनर के PA से मिल कर उस से धूलिया ट्रांसफर करने की request  की। PA ने पूछा "नासिक तो बड़ी अच्छी जगह है आप धूलिया क्यों ट्रांसफर चाहते हो " दादा ने कहा मेरे भाई की आला तालीम के लिए,  जो नासिक में अवेलेबल नहीं "। और immediate उन्हें धूलिया ट्रांसफर मिल गया। हमीदुद्दीन को धुलिया इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिला और  वही से उनोहने अपनी तालीम मुक़्क़मिल की। क्या आज के दौर में ये क़िस्से कहानियों की बातें मालूम नहीं होती ? 
                                उनकी ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए 
       नासिक की विजिट में नईम नईमुद्दीन दादा से पूछा आपकी शादी कब हुयी थी फ़ौरन कहा "६ मार्च १९६६ "। हमारी भाभी ( naseem bano )भी खुश मिज़ाज ,बुर्दबार हैं। माशाल्लाह २००४ में मिया बीवी को हज की सआदत (opportunity ) भी नसीब हुयी।   अल्लाह ने ५ औलादों से नवाज़ा है । मतीन ,तनवीर ,नवेद ,शगूफा और सीमा। अल्हाज नईमुद्दीन ,अपने अलकरम आशियाने (नासिक ) में तमाम औलादों के साथ पुरसुकून ज़िन्दगी गुज़ार रहे है।  
मौत क्या है थकन ख्यालों की 
ज़िन्दगी क्या है दम ब दम चलना 
         शायद  नईमुद्दीन दादा के लिए ये शेर कहा गया हो। आपने अपनी पीराने साली ( old age )के बावजूद। एक  मिशन शुरू किया है। ज़ियादा से ज़ियादा ख़ानदान ,क़ौम के बच्चों को Chartered Accountancy के कोर्स से मुतर्रीफ़  (introduce ) कराना । माशाल्लाह दादा नईमुद्दीन की बातें , हवाई किले नहीं होती। दादा का एक नवासा (ज़ैद ) उनकी  Guidance  और counselling  (रहनुमाई ) से CA बन चूका है। दादा का एक और पोता  (इमाद )और नवासा भी इन कोशिशों में मसरूफ हैं ,इंशाल्लाह कामयाबी उनके क़दम चूमेंगी और वो दोनों ज़रूर CA बनेंगें। 
नासिक उनके घर जा कर मुलाक़ात की थी। मुझ से भी इस सलीस अंदाज़ में CA बनने का तरीक़ा समझाया , मुझे लगा काश ! में भी अपनी तालीम के दौरान दादा से मिला होता तो आज CA होता। 
         अल्हाज नईमुद्दीन की दराज़िये उमर के लिए दूआ है। 

सोमवार, 27 नवंबर 2023

jashne shadi


Ragib Ahmed,Rameez,Saima,Shagufta

Makhdum Ali ,Shahd Aslam ,Ragib,Hamidoddin 


                                                                       जशने शादी 
मुझे सहल होगयी मंज़िले वो हवा के रुख भी बदल गए 
तेरा हाथ हाथ  में आगया के चराग़ राह  में जल गयें 
रमीज़ साइमा की नयी ज़िन्दगी की शुरुवात पर हम सब की जानिब से दिली मुबारकबाद। रमीज़ के कई मतलब होते हैं ,एक मतलब होता है जहॉँदीदा (experienced ) मशालल्लाह बहुत खुशमिज़ाज शख्सियत है। लेकिन हम तो उसे विराट कोहली के नाम से  जानते है। विराट कोहली हमारे रमीज़ के जैसे दीखता है। हम दोनों (शगुफ्ता और मुझे ) बड़े इसरार से वसीमा ने  मेहँदी ,हल्दी और शादी की दावत दी थी । सेवन स्काई (seven sky ) होटल में हम दोनों के लिए रूम बुक किया। हमें सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। सेवन स्काई नाशिक की icon hotel है। डिनर ,सुबह का नाश्ता ,और वलीमे के function में समीर की event मैनेजमेंट की झलक दिखयी पड़ी। निकाह का फंक्शन Bagai Banquets नाशिक में रखा गया था। निकाह के बाद मौलाना ने निकाह के उन्वान पर मुख़्तसर जामे तक़रीर की। बाद निकाह ,दावत भी शानदार रही। वसीमा ,नाजीरुद्दीन ,रमीज़ और सना ने सर आँखों पर जगह दी। साइमा भी मुहज़्ज़ब  ख़ानदान से belong करती है। ,माशाल्लाह ग्रेजुएट इंजीनियर है , क्लास की topper रही है। 
ऐसे फंक्शन दिलो दिमाग़ पर असर छोड़ जाते हैं जहाँ निय्यतों में खुलूस शामिल होता है 
अल्लाह नए शादी शुदा जोड़े रमीज़ और साइमा को अब्दो अबाद की खुशियां नसीब करे। ग़म की परछाई भी उन पर न पड़े, अमीन सुम्मा अमीन। 

रमीज़ और साइमा की शादी के तुफैल में बहुत से पुराने रिश्तों की तजदीद हुयी।  मुरकोबद्दीन मॉमू , मुबा मुमानी ,नसीम खाला को मिल कर उनकी शफ़्क़त्ते उनकी मोहबत्तें याद आयी। अल्लाह उनको सलामत रखे। सेहत और तंदुरस्ती के साथ उनका साया हम पर क़ायम रखे  आमीन  । पुरानी  दोसतियां हमीदोदिन और मखदूम अली जो हमेशा ताज़ा दम रहती हैं, दोनों को बिल मुशाफ़ा मिलने के बाद दिल  की कली खिल जाती है, दिल में जीने की उमंग बढ़ जाती है। हमीदुद्दीन के घर जा कर रख्शंदा और हमीद से  हम दोनों ने ढेरों बातें की। हमीद ने जन्नत उल फिरदौसे इतर तोहफा देकर दिल जीत लिया। शाहद असलम के घर जा कर शगुफ्ता और शाहद ने अपने बचपन की यादें ताज़ा कर ली। शाहद असलम के तीनो बच्चों से मुलाक़ात का शरफ़ हासिल  हुवा ,ख़ुशी हुयी शहदऔर सदफ ने बच्चों की बड़ी अछि तरबियत की है। नईमुदद्दीन दादा के घर जा कर उनका interview लिया उनके हालते ज़िन्दगी जानने की कोशिश की। अल्लाह उनेह सलामत रखे। अमीन 
  रईस , इल्मान ,अंजुम से एक ज़माने के बाद मुलाक़ात हुयी। यूनुस मालिक ,नदीम मालिक (बाबा मोटर्स ) से ग़ायबाना जान पहचान थी ,इस फंक्शन में उनसे मुलाक़ात हुयी उनके हालत जान कर दील बाग़ बाग़ होगया। सना नाज़िरोद्दीन से दिल खोल कर बातें हुयी , ज़मीन से जुडी बच्ची है ,अल्लाह उसे ताबनाक मुस्तक़बिल अता करे आमीन। 
२६ नवंबर को  बारिश की बौछारे बरसी मौसम खुश गवर होगया । उसी दिन नेरुल वापसी हुयी। लियाक़त अली सय्यद का दिल की गहराईओं से शुक्रिया बड़ी महारत  से तूफान और बारिश के बावजूद ,कार ड्राइव की और हिफाज़त से घर पुह्छाया। 
काश इन लम्हात को कुछ और तूल दिया जा सकता,वक़्त ठहर सकता   ! लेकिन 
भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है 
शफ़क़ को क़ैद में रखा सबा को बंद किया ?


गुरुवार, 23 नवंबर 2023

Khiraje Aqeedqt

                                                              हाजी अयाजोद्दीन हैदर शैख़ 

         पैदाइश : 08 /05 /1932  इंतेक़ाल : जुमा 17 /11 2023 (2 जमादिल अव्वल )  तद्फीन :18 /11 /2023 


                                                शगुफ्ता रागिब ,मरहूम अयाजोद्दीन ,रागिब अहमद 

फैला के पाँव सोयेंगे तुर्बत में आज हम 

लो अब सफर तमाम हुवा घर क़रीब है 

हमारे सगे बहनवाई हाजी अयाजोद्दीन शैख  (दूल्हे भाई ) ९१ सालोँ की तवील (लम्बी )ज़िन्दगी  गुज़ार  कर इस जहाने फानी से रुखसत हुए। हमारी बड़ी आपा ( उन की अहलिया )अदीबुन्निसा २७ साल पहले इस दुनिया से रुखसत होगयी थी। अजीब इत्तेफ़ाक़ है २७ सालों बाद तद्फीन के लिए , दुलहे भाई कोआपा के पड़ोस में पूना के क़दीम दूल्हा दुल्हन क़ब्रस्तान (भवानी पेठ )  में दफ़न होने का का शरफ़ हासिल हुवा। 

मेरे पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है 

मरहूम हाजी अयाजोद्दीन के वालिद हैदर शैख़ पुलिस डिपार्मेंट में थे ,बड़े भाई अब्दुल क़ादिर भी पुलिस शोबे में रहे , अब्दुलराजजक भी पुलिस खाते में थे ,शरफुद्दीन रेलवे , और अब्दुल करीम छोटे भाई ने देवी डॉ के नाम से मशहूर हेल्थ शोबे में काम किया था।  अपने ख़ानदान की रवीश को बरक़रार रखते हुए मरहूम ने भी गवर्नमेंट सर्विस को चुना।  मरहूम ने सेंट्रल एक्साइज शोबे में हवलदार के अहदे से शुरुवात की। १९६५ में जॉब पर रहते हुए मेट्रिक पास किया ,मेहनत ,लगन से तरक़्क़ी करके लोअर डिवीज़न क्लर्क ,अप्पर डिवीज़न क्लर्क  और १९९१ में  डिप्टी ऑफिस सुपरिंटेंडेंट के अहदे से अहदे से रिटायर हुए। 

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने 

मरहूम हाजी अयाजोद्दीन ने अपनी सर्विस के दौरान ठाणे ,कोपरगाव ,मुंबई ,अली बाग़ और पुणे ऑफिस में अपनी खिदमात अंजाम दी। उनका ज़ियादा वक़्त पुणे ऑफिस में गुज़रा।  

मंज़िल की हो तलाश तो दामन जुनूं का थाम 

राहों के रंग देख न ,तलवों के खार देख 

अपनी माली हालत को मद्दे नज़र रखते हुए ,अपनी ज़रूरियाते ज़िन्दगी को मरहूम ने बहुत हद तक समेट रखा था । हमेशा किफ़ायत शारी से काम लिया।  उनकी अहलिया अदीबुन्निसा ने भी अपनी औलाद के लिए बे इन्तहा क़ुर्बानियां दी। मरहूम कई दिने तक एक ही शेविंग ब्लेड का इस्तेमाल करते ,ब्लेड पर निशान लगा कर कई कई रोज़ इस्तेमाल करते। उनकी सेहत का राज़ साइकिल की सवारी थी । हड़पसर से ऑफिस का फैसला ८ किलो मीटर से शायद ज़ियादा ही होगा , हमेशा साइकिल से जाते थे। बेटे नासिर  बेटी परवीन को ऑफिस जाते स्कूल छोड़ते और वापसी में ले आते।  में ने भी उन की साइकिल पर पुरे पुणे की सैर की है। यहाँ तक के शिवपुर दरगाह जो पुणे शहर से १५ या २० किलोमीटर की दुरी पर है दुलहे भाई की साइकिल से ही सवारी की थी । मरहूम हाजी  अयाजोद्दीन शतरंज के माहिर खिलाडी थे। कई मैडल ,ट्रॉफीज ऑफिस टूनामेंट में जीती थी। दिल्ली ऑफिस तक अपनी जीत के झंडे गाढ़ आये थे।  

मेरे जुनूं का नतीजा ज़रूर निकलेगा 

इसी सियाह समंदर से नूर निकलेंगे 

बरकत नाम है अहसास का। आज दूल्हे भाई (हाजी अयाजोद्दीन ) की महनतों का समर के  उनके बड़े बेटे नासिर ने  बेहतरीन कॉलेज से B.SC  किया ,सेफ्टी अफसर का कोर्स किया अब दुबई में मुक़ीम है। बेटी परवीन M.A B.ED करके ,ग़रीब खानदानों के बच्चों में तालीम की शमा रोशन करने  में मसरूफ है। उसके कई स्टूडेंट्स डॉक्टर , इंजीनियर्स और आला तालीम हासिल कर ,अपनी क़ौम ,मुल्क,समाज और अपने ख़ानदान के लिए सहारा बन गए हैं । नाज़िम और फहीम भी पेशे से इंजीनियर्स हैं।  माशाल्लाह  ये सिलसिला आगे भी जारी है ,मरहूम की २ पोतियां डॉक्टर बन रही है , १ नवासी  B.E  कर ,M.B.A कर रही है नवासा बी.इ कर चूका है और अब आला तालीम के लिए बैरून मुल्क जाने की कोशिशों में लगा है। मरहूम ने तमाम उम्र ईमानदारी से नौकरी की  ,एक पैसा रिश्वत का नहीं लिया। अल्लाह ने भी उनकी खुद्दारी की लाज रख ली ,उनेह आखरी वक़्त तक अपनी पेंशन की कमाई पर मुनहसर रखा। मरहूम बड़ी इत्मीनान बख्श ज़िन्दगी गुज़र का र दुनिया से रुखसत हुए। 

में ने ओल्ड पीपल होम ( आश्रय नेरुल  ) को अक्सर विजिट किया हूँ। वहां अपने  खानदान के लोगों के इंतेज़र में बुज़र्गों को तरसते देखा हूँ। मरहूम बड़े खशकिस्मत थे अपने बेटे ,बेटी , बहुयें ,पोतों ,पोतियोंऔर नवासा ,नवासी की एक फ़ौज उनकी खिदमत के लिए हाज़िर बाश रहती थी। कभी भी मरहूम को अपनी मरहूम अहलिया की कमी कमी महसूस नहीं होने दी। आखरी वक़्त तक हर किसी ने मरहूम की बे लौस खिदमत की। माशाल्लाह जनाज़े में भी दोनों फ़रज़न्द नासिर नाज़िम  दुबई से वक़्त से पहले पहुँच गए और मरहूम को कांधा दिया। 

अल्लाह मरहूम अयाजोद्दीन को करवट करवट जन्नत नसीब करे और मुतल्लाकीन को सब्र नसीब हो अमीन सुम्मा आमीन। 








बुधवार, 15 नवंबर 2023

                               ये तहरीर मुझे तहरीम की हल्दी की रस्म के दिन पढ़नी थी 

१५ नवंबर २०२३ बमुताबिक़ १ जमादि उल अव्वल तहरीम की शादी की दावत हम दोनों (शगुफ्ता और मुझे ) को तवील अरसे पहले मिल चुकी थी। और में ने अपनी डायरी में नोट भी कर लिया था। आठ रोज़ पहले साइमा और खालिद ने याद दहानी कराई। साइमा ने ज़ोर दे कर कहा "भाई जान शादी में शरीक होंगे, तो  शादी को चार चाँद लग जायेंगे। में ने उससे कहा "मेरी आँखों में भी चार चाँद लग लग गए हैं, मोती बिंदु (cataract ) के ऑपरेशन के बाद दोनों आँखों में लेंस लग गए हैं और ५० साल पुराना चश्मा भी छूट गया है "फिर ख्याल आया डॉ ने मुझे कुछ रोज़ सफर के लिए मना किया है। बाकायदगी से दवा डालनी होंगी। सोचा मैं नहीं जावूंगा तो मेरा छोटा भाई खालिद नाराज़ होजाएंगा । उसकी नाराज़गी बर्दाश्त कर लूंगा। बहन साइमा की नाराज़गी का क्या करूँगा सोचा उसे भी मना लूंगा। लेकिन कुछ रिश्ते अजीब होते हैं। तहरीम से दो रिश्तों से जुड़ा हूँ वो भांजी भी है और भतीजी भी। फिर शादी में आने का फैसला कर ही लिया। 

जलगांव ,एरंडोल ,नवापुर ,भड़भूँजा जाने के बहाने ढूंढ़ता रहता हूँ। में नहीं ढूंढ़ता बहाने मुझे ढूंढ लेते हैं। क्यूंकि मुन्नी में मुझे गोरी मुमानी दिखाई देती है, सबीना में मुमानी अम्मा ,साजिद /खालिद में खालू जान ,अज़हरुद्दीन में दूल्हे मामू ,ज़की में गोरे मामू। हम चारो भाइयों को ननिहाल से अक़ीदत की हद तक क़ुरबत रही है। मामू,मुमनिया ,ख़ालाये , खालू भरा पूरा ख़ानदान  था। अम्माँ की वफ़ात के बाद सभी हम पर ,बे इन्तहा शफ़क़त ,मोहब्बत ,इनायतें और करम निछावर करते रहें। धीरे धीरे सब  हम से बिछड़ गए। सेहरा में नखलिस्तान की तरह एक निशान बचा है खाला जान में. उनेह करुणानिधि कहता हूँ करुणा (महबतों ) का मौजे मरता समंदर। जब भी उन से मिल कर बिछड़ता हूँ लगता है 

तेरी क़ुरबत के लम्हे फूल जैसे 

मगर फूलों की उमरें मुख़्तसर हैं 

                                                      एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़ 

शदी में मारूफ शख्सियतें शरीक हुयी हैं। शारिक  शीराज़ी वतन शीराज़ है ,हिंदुस्तान में अहमदाबाद को अपना वतन बनाया ,और अब सालों से अमेरिका में अपनी रिहाइश कर रखी है ,नफ़स ब नफीस तशरीफ़ लाये हैं। हर दिल अज़ीज़ डॉ वासिफ अहमद दुबई से तशरीफ़ लाये हैं। तहरीम की चाचा चाची  ,फूफा फूफी ,चाचा ज़ाद बहने भाई ,मामू ज़ाद सूरत ,नवापुर ,कल्याण ,धूलिया और जलगाओं से शादी में शिरकत के लिए आएं हैं। भरा पूरा ख़ानदान है। 

वो बाग भी क्या बाग़ जहाँ तितलियाँ न हो 

वो घर भी कोई घर है जहाँ लड़कियां न हो 

क़ुदरत का उसूल है लड़कियों को जुदा  होना ही पड़ता है। जानता हु ,ख़ाला जान ,खालिद और साइमा के लिए तहरीम की जुदाई तकलीफ दे ज़रूर होंगी ,लेकिन उसके रोशन मुस्तकबिल और नयी ज़िन्दगी की शुरवात पर दिल मुत्मइन भी होंगे । एक तालीम याफ्ता,संजीदा और तहज़ीब याफ्ता  ख़ानदान की बहु बनना भी खुश नसीबी की बात होती है। 

जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 

उठाये हाथ तो ये दुआ याद आयी 

हम सब की दुवायें ,नेक ख्वाहिशात बेटी तहरीम के साथ  हैं , नयी ज़िन्दगी की शुरुआत पर दिल की गहराइयों से मुबारकबाद। 

आमीन सुम्मा अमीन  

सोमवार, 13 नवंबर 2023

Salahuddin Malik

                                                             मरहूम  हाजी सलाहुद्दीन मालिक  

पैदाइश  :       01 /06 /1965  (नसीराबाद )

वफ़ात   :         29 /10 /2023   (जलगांव )    तद्फीन : 30 /10 /2023   सुबह ११ बजे बड़ा क़ब्रस्तान जलगांव 


मौत उस की है करे जिस का ज़माना अफ़सोस 

यूँ तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिए 


सलाहुद्दीन का मतलब होता है "दींन की पुकार " या " वह इंसान जो लोगों को फायदा पुह्चायें "

      मरहूम हाजी  सलाहुद्दीन मालिक साहेब में ये दोनों खूबियां कूट कूट कर भरी थी।  माशाल्लाह मरहूम क़ुरान की तफ़्सीर ,तशरीह ,और लोगों को अरबी Grammar सिखाने में अपने आप को मसरूफ रखते थे। मरहूम के दो निजी channels तज़्कीर बिल क़ुरान और फ़हम क़ुरान भी थे जिन पर मरहूम सलाहुद्दीन रोज़ाना क़ुरान की तफ़्सीर और अरबिक grammar की इशाअत करते रहते थे। कुछ लोगों ने ग्रुप में उन पर तंज़ भी किया उनेहे इन कामों से रोकने की कोशिश भी लेकिन बक़ौल शायर 

"न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह " मरहूम अपना काम जूनून की हद तक करते रहे और इस दुनिया से अपनी आक़ेबत सवार कर रुखसत होगये। 

    उनकी मौत पर हर ग्रुप में उनको ताज़ियत के पैग़ामात का एक सैलाब आया , जो थमने का नाम नहीं लेता था। तब पता चला वो हमारे रिश्तेदारों में कितने हर दील अज़ीज़ थे। बैरून मुल्क से भी खान मोहम्मद (दुबई) नईम शैख़ और उनके पुराने साथियों के messages आये। 

खुदा बख्शे बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में 

मालिक सलाहुद्दीन की पैदाइश नसीराबाद की है। इब्तेदाई तालीम एरंडोल उर्दू स्कूल में हुयी। साबू सिद्दीक़  इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की तालीम मुक़्क़मिल की। मुख़्तसर अरसा मुम्ब्रा में जॉब किया और 

मुझ को जाना है आगे हदे परवाज़ से के मिस्दाक़ सऊदी अरबिया की जानिब उड़ान उडी। १० साल वाटर पाइप लाइन प्रोजेक्ट पर काम किया। हज उसी दौरान अदा किया और जेद्दा बेस होने की बिना पर कई उम्रे भी अदा किये। इसी  सर ज़मीन पर कई मुक़द्दस मुक़ामात की सैर की। मक़्क़ा ,मदीना ,मैदाने बद्र ,तबूक वग़ैरा ,मैं ने उनके हातों से बने सऊदी के नक़्शे अपनी आँखों से देखें है. मैं ने कई बार सऊदी मक़ामात के बारे में सवालात करके उनसे कीमती मालूमात भी हासिल की है। 

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा 

अगले १५ साल मरहूम सलाहुद्दीन दुबई में कंस्ट्रक्शन कंपनी में अपनी खिदमत देते रहें। ज़ियादा वक़्त उनका दुबई ओमान बोर्डेर पर गुज़रा। वहां भी वह लेबर कैंप की मस्जिद में क़ुरान की तफ़्सीर करते थे। कई वीडियो उनोहने मुझे अपनी दुबई तफ़्सीर के share किये थे। 

सोहबतें सालेह तुरा सालेह कुनद 

मरहूम को किताबों से जूनून की हद तक लगाव था। इस दौर में जब "जिसे भी देखिये वह अपने आप में गुम है " लोग व्हाट्स उप सोशल मीडिया पर वक़्त बर्बाद करते नज़र आते हैं ,में ने उन के घर की विज़िट के दौरान तफ़्सीर क़ुरान के मुख्तलिफ मजमुवे ,तारीख इस्लाम पर लिखी किताबों की एक लायब्ररी देखि  उसदिन ,दिल बाग़ बाग़ होगया के इस दौर में भी ऐसे लोग मौजूद है। उनका अपना बेड रूम ही उनका स्टूडियो हुवा करता। 

उनकी दोस्ती और ताल्लुक़ात भी मारूफ हस्तियों से थी। प्रोफेसर हमीदुद्दीन मराज़ी जो कई किताबों के लेखकः है और ३० सालों से जम्मू यूनिवर्सिटी में "Religious Studies "  के प्रोफेसर है मरहूम को बहुत अज़ीज़ रखते थे और वो भी प्रोफेसर साहेब की बहुत इज़्ज़त करते थे। 

लेकिन तेरे ख्याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा 

इन सब मसरूफियतों के बावजूद मरहूम सलाहुद्दीन मलिक ने अपनी औलाद की तरबियत भी उम्दा तरीके से की। माशाल्लाह  बेटा सऊद इंजीनियरिंग ग्रेजुवट है बहुत जल्द post graduation के लिए कनाड़ा रवाना होने वाले है। बेटी सनया भी इंग्लिश लिटरेचर में M.A हैं ,और आर्ट टीचर भी है, और बहुत जल्द अज़्दवाजी रिश्ते में बंधने वाली है। कुछ ख्वाब ज़िन्दगी में पुरे नहीं हो पाते ,अल्लाह की मस्लेहत ,लेकिन नेक औलाद और फर्माबरदार ज़ौजा उन ख्वाबों की ताबीर ,परेशानियों,नामवाफ़िक़ हालात के बावजूद हकीकत के रूप में बदल देती है , जो मरहूम की रूह को सकून का सबब बन जाता है। 

पहुंची वही पे ख़ाक जहाँ का खमीर था 

मरहूम हाजी सलाहुद्दीन भी नसीराबाद में पैदा हुए थे और ,१० किलोमीटर के दायरे जलगांव में आराम फार्मा है। अल्लाह मरहूम की रूह को करवट करवट जन्नत नसीब करे। 

आमीन सुम्मा आमीन