मुझे सहल होगयीं मंज़िलें, वो हवा के रुख भी बदल गए
तेरा हाथ आ गया हाथ में ,के चिराग़ राह में जल गए
तेरा हाथ आ गया हाथ में ,के चिराग़ राह में जल गए
३० मई १९८२ मेरी ज़िंदगी के सफर में एक संग मील (mile stone ) की हैसियत रखता है। में एक कटी पतंग की तरह हवाओं के रुख पर सवार रहा करता था। मुश्किलें ,परेशानियां थी। ग्रेजुएशन के बाद अपने आप को ज़िन्दगी में सेट करने का सिलसिला था।
तुम आगये हो नूर आगया है
नहीं तो चिराग़ों से लोव जारही थीं
तुम्हारे ज़िन्दगी में दाखिल होते ही माहौल बदल गया। दुःख बाटने से काम होता है। खुशियां बाटने पर बढ़्ती हैं। तुम शरीके हयात क्या बानी लगा "ज़िन्दगी धुप तुम घना साया " .ज़िन्दगी की लम्बी जदोजहद आसान होगयी। मिल कर हम दोनों ने ख्वाबों में हकीकत के रंग भर दिए।
एक नज़र जायेंगीं गुज़रें हुवे सालों की तरफ
३५ साला तुम्हरा साथ मानो पल भर में गुज़र गया। अल्लाह रब उल इज़्ज़त से मुक़्क़मल उम्मीद है बचे कूचे ज़िन्दगी के दिन भी हम दोनों हंसी ख़ुशी मिल बाँट कर गुज़ार देंगे।
आमीन सुम्मा आमीन !
आमीन सुम्मा आमीन !
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