सोमवार, 11 दिसंबर 2017

AAj tum yaad be hisab aaye


१२ दिसंबर २०१३ बाद मग़रिब तुम  ने आखरी बार आँखें मुंद ली। तुम्हारे साथ गुज़ारे वो बेशुमार लम्हे ,यादें ,नसीहतें , डाँट फिटकार तुम्हारे साथ चली गयी ,हर इंसान के बिछड़ने पर उस से  जुड़े लोगों के वजूद का कुछ हिस्सा टूट  फूट जाता है बिखर जाता है
मनों मिटटी के निचे दब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो

नेरुल क़ब्रस्तान में  बहुत सारी क़ब्रों के बीच तुम्हारी क़बर के सरहाने कभी गुलाब का पौदा लगा के ,कभी बांबू शूट लगा के तुम्हारी यादों को ज़िंदा रखने की कोशिश करता रहता हूँ।  हर हफ्ते एक दिन तुम से ग़ायबाना मुलाक़ातों का सिलसिला जारी रखने की कोशिश रहती है। कब्रस्तान में दुआ ,फातिहा पड़ने पहुँच जाता हूँ। कभी सफर की वजह से  क़ब्रस्तान की visit नहीं हो पाती तो एक बे कली ,बे करारी तबियत पे छा जाती है।
तुम्हारी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
   आज भी तुम्हारे कायम किये मरकज़े फलाह ,दरसे क़ुरआन का सिलसिला बाकायदगी से जारी है। कई बार तुम्हारी याद भी की जाती है तुम्हारे हक़ में दुआ भी की जाती है। कभी कभी ख्वाबों में आजाते थे अब तो अर्से  से ख्वाब में भी मुझ से  रूठ गए हो।
बड़ा सकूंन बड़ा सुख था उस के साये में
वो एक शख्स जो बरगद की छाओं जैसा था
अल्हाज मरहूम सादिक़ अहमद अल्लाह आप की रूह के दरजात बुलंद करें। अल्लाह आप को जन्नत नसीब करें। आमीन सुम्मा आमीन 

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

बहुत जाना पहचाना अपना सुनील होनराव


 well known मारूफ शख्सियतें शाह रुख खान ,ब्रूसली ,वॉरगेसे कुरियन ,जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी ,विराट कोहली की पैदाइश नवंबर महीने में हुवी थी। दो और मशहूर नाम सुनील होनराव और नाचीज़ राग़िब अहमद भी इसी महीने में पैदा हुवे थे। 
सुनील होनराव से ग़ायबाना तआरुफ़ (introduction ) तो उन  की  free एम्बुलेंस सेवा की बिना पर था। नेरुल स्टेशन के करीब खड़ी इस एम्बुलेंस सेवा का लाभ हज़ारों  लोगों ने लिया है । मसरूर भाई  जो किसी ज़माने में सुनील के पार्टनर थे ,से भी उन की प्रशंषा कई बार सुन चूका था लेकिन मुलाकात का अवसर बहुत देर से मिला। उन् से मिल कर लगा 
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे 
तू बहुत देर से मला है मुझे 
हुवा यूँ की वंडर पार्क में morning walk की इजाज़त मिलते ही नेरुल की गली कूचों में खाक छानने वाले छटे बदमाश एक जगे जमा हो गयें। इन में कुछ जाने पहचाने नाम हैं सुनील कूडेकर ,औसाफ़ उस्मानी ,मंसूर झठाम ,इमरान इनामदार, हरिश , इत्यादि और कुछ शरीफ़ तबियत जैसे राग़िब अहमद ,इश्तियाक़ खान ,राणे, प्रकाश  सोनावणे ,सुनील होनराव ,मुज़फ्फर। कई दिनों तक सुबह wonder park walking  में  होनराव अकेले अकेले घूमा करते थे ,हमारे group को देख कर मुस्करा दिया करते ,hi hallo होजाती। अचानक एक दिन वह हमारे group में एसे शामिल हुवे जैसे शक्कर दूध में घुल जाती है। group में नयी जान दौड़ गयी। हम सब को उन से मिल कर लगा 
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 
नज़रों में जज़्ब हो गए दिल में उतर गए 
लुम्बा कद ,चेहरे पे हर वक़्त मुस्कुराती आँखें ,होनराव साहब नवी मुंबई बीजेपी के वाईस प्रेजिडेंट हैं लेकिन सादगी पसंद ,down to earth ,भाभी की मोहब्बत या पता नहीं डर से प्याज़ लहसन से भी परहेज़ है। लेकिन दोस्तों की हर महफ़िल में शामिल रहते हैं। शराब से मीलों दूरी। खुद non veg नहीं खातें दोस्तों को खिला कर खुश होतें हैं। गणपति के पंडाल में ९ दिन तक लोगों को अपने हातों से परोस कर उनकी सेवा देख कर दिल खुश हुवा। उनका बचपन मुंबई के कुम्भार वाड़े  में गुज़रा ,politics में अपने आप को प्रमोद महाजन का शिष्य बताते हैं। जवानी में सिर्फ एक इश्क़ अपने होने वाली बीवी से किया और उन के हो कर रह गए। उन की दस्ताने मोहब्बत सुननी हैं ,किसी दिन उन से आराम से सुनुगा और एक blog उस पर लिखूंगा। दोनों की मोहब्बत की निशानी एक अवलाद है जिसे बड़ी नाज़ नेमत से पाल कर बड़ा कर रहे है। जिन उसूलों पर अपनी ज़िन्दगी गुज़ारी है उसे भी इस में ढ़ालने की कोशिशों में लगे है। ऊपर वाले से प्रार्थना है उनेह सेहत ,तंदुरुस्ती मिले। ज़िन्दगी में ख़ूब सी progress हो। 

 
 
 

 

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

ایک تیرا ساتھ



                           ایک تیرا ساتھ( قاسم چونا والا کی  شادی کےپچاس سال  مکمل ہونے پر)
طویل سی پچاس سالہ کامیاب زندگی ساتھ گزارنے پر دلی مبارکباد-آج عالم یہ ہے نوجوان شادی کی 50ویں دن ،50 وے مہینے کی سالگرہ مناتے ہیں خوش ہوتے ہیں پھر رشتوں میں وہ تازگی باقی نہیں رہتی-
    دبیئ میں قاسم بھایئ اور قمر بھابھی کے ساتھ ہم لوگوں نے چند ساعتیں گزاری تھی-دونوں نے اپنے رشتوں کی پرتیں کھولی تو ان کے شادی کے ابتدایئ زمانے کی کہانی معلوم ہویئ –قمر بھابھی نے شادی کے بعد مہاراشٹرا کالج سے گرجیوشن مکمل کیا-اس زمانے میں قاسم بھایئ نے ان کا مکمل ساتھ دیا-بھابھی کو ٹرام ،بس سے مہاراشٹرا کالج چھوڑنے ،لینے کے لیئے آتے تھے-بڑے مزے لے لے کے انہوں نے مجھے اپنی داستان محبت سنایئ تھی-اتفاقا" میں نے بھی مہاراشٹرا کالج سے گرجیوشن کیا ہوں لیکن بھابھی میرے اڈمیشن لینے سے پہلے ہی گرجیوشن کرچکی تھی-مہاراشٹرا  کالج کو اسٹابلش ہوکر 50 سال مکمل ہو چکے ہیں اس حساب سے بھابھی شاید پہلی بیچ سے تعلق رکھتی ہونگی-
کہانی میری روداد جہاں معلوم ہوتی ہے
جو سنتا ہے اسی کی داستاں معلوم ہوتی ہے
  قاسم بھایئ نے جس محنتوں اپنا بزنس سیٹ کیا،بچوں کو اچھی تعلیم دلوایئ –ان کی تعریف کیے بنا نہیں رہ سکتا-حالانکے قاسم بھایئ اورقمر بھابھی کی طبیتوں میں بڑا تضاد ہے-بھابھی نہایت مہذب،متین ،سنجیدہ،سلیقہ شعار،نرم گفتار ہے –کسی شاعر نے شاید انہیں کے لیئے کہا ہے
ان سے ضرور ملنا سلیقہ کے لوگ ہے
اور قاسم بھایئ زندہ دل ،اپنے  آپ کو نشانہ بنا کر لوگوں کو ہنساتے رہتے ہے-اور پھر جس طرح بھابی پر (تہذیب کے دایرے میں رہتے ہویے ) پر جملے کستے رہتے ہیں ایک لطف آجاتا ہے-
آج ولید ،قیصر نے آپ دونوں کی تربیت سے زندگی میں ایک مقام  حاصل کیا ہے-الحمدوللہ  اتنی کم عمرمیں خالد کے ختم  قرآن کا  سن کر دل باغ باغ ہوگیا-بڑا اعزاز ہے-جتنا فخر کیا جایے کم ہے-قاسم بھایئ ،بھابھی آپ نے جو اچھی باتیں اپنی اولاد کو سکھایئ ہے اس کا دایئرہ وسیع ہوتا جا رہا ہے-آپ دونوں مبارکباد کے مستحق ہے-
 ہندئوں میں خاص طور پر مہاراشٹرا میں شادی کے پچاس سال مکمل ہونے پر رشتہ کی تجدید کو جاتی ہے دوبارہ شادی کی جاتی ہے-اسلام اس کی اجازت نہیں دیتا-اللہ سے دعا گو ہوں آپ شادی کے 100 سال مکمل ہونے پر اسی طرح جشن کا ماحول برپا کرےتیسری شادی تک حیات رہے-بھابھی آپ کے  لیے ہمیشہ رشک قمر بنی رہے-قاسم بھایئ کسی شاعر نے آج کے پر آشوب دور کے لیے کہا ہے –
اتنی ارزاں تو نہ تھی درد کی دولت پہلے
جس طرف جایئے زخموں کے لگے ہیں انبار
یا
جسے بھی دیکھئے وہ اپنے آپ میں گم ہے
زباں ملی ہے مگر ہم زباں نہیں ملتا
اس دور میں جب ہر کویئ سٹریس لیے گھوم رہا ہے،پریشان حال ہے –آپ ہمیشہ محفلوں کو گل گلزار کر دتیے ہیں –لوگوں کے دکھ درد کم کرنے کی کوشش میں لگے رہتے ہو،لوگوں کے لبوں پر مسکراہٹ لانے کے لیے کوشاں رہتے ہو شاید اسی نسبت سے آپ کا نام قاسم معنی تقسیم کرنے والا رکھا گیا ہے-آپ  یہ ثواب  جاریہ جاری رکھے-آپ دونوں  کو موقع کی مناسبت سے ڈھیر ساری دعایئں نیک خواہشات-

बुधवार, 1 नवंबर 2017

एक तेरा साथ (शादी की गोल्डन जुब्ली )



हाफ सेंचुरी की लम्बी मुद्दत क़ासिम चूनावाला और क़मर भाभी ने साथ गुज़ारी , पचास साला शादी शुदा कामयाब ज़िन्दगी गुजरने पर हम सब की जानिब से दिली मुबारकबाद। आज आलम ये है नौजवान शादी की ५० वे दिन ५० वे महीने की सालगिरह मानते हैं फिर रिश्तों में वह ताज़गी बाक़ी नहीं रहती ,तल्खियां शुरू होजाती है।
    दुबई में क़ासिम भाई ,क़मर भाभी के साथ हम लोगों ने एक खूबसूरत शाम बिताई थी। आज तक उस शाम की यादें ज़हन में ताज़ा है। हंसी हंसी में दोनों ने अपनी ज़िन्दगी की मुख़्तसर रूदाद हम को सुना डाली थी । दोनों की कम उमरी में शादी हुवी थी। शादी के बाद  क़मर भाभी ने महराष्ट्र कॉलेज से graduation किया। उस ज़माने में क़ासिम भाई ने उन का पूरी तरह साथ दिया। भाभी को ट्राम ,बस से कॉलेज छोड़ने ,लेने के लिए आते थे। क़ासिम भाई ने  अपनी दास्ताने मोहब्बत बड़े मज़े ले ले के सुनाई थी। महाराष्ट्र कॉलेज से में ने भी graduation किया हूँ। कॉलेज को establish हो कर पचास साल पुरे होरहे है इस हिसाब से क़मर भाभी शायद पहली बैच की student रही होंगी।
कहानी मेरी रउदादे जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसी की दास्ताँन  मालूम होती है
क़ासिम भाई ने बहुत मेंहनत से अपना बिज़नेस सेट किया ,बच्चों को अछि तालीम दिलवाई। उन की तारीफ़ किये बिना नहीं रह सकता। हालांकि क़ासिम भाई और क़मर भाभी की तबीअतों में बड़ा तज़ाद है। भाभी निहायत संजीदा ,मोहज़्ज़ब ,सलीका शार ,नर्म गुफ़्तार है। किसी शायर ने उनिह के लिए कहा है।
उन से ज़रूर मिलना सलीक़े के लोग हैं।
और क़ासिम भाई ज़िंदा दिल ,अपने आप को निशाँना बना कर लोगो को हसांते रहते हैं। और फिर  भाभी पर (तहज़ीब के दायरे में रहते हुवे )जुमले कस्ते रहते है लुत्फ़ आजाता है।
  आज वलीद, कैसर ,तनवीर ने आप लोगों की तरबियत से ज़िन्दगी एक मक़ाम हासिल किया है। अल्हम्दोलीलाह इतनी कम उम्र में खालिद के ख़त्म क़ुरान का सुन कर दिल बाग़ बाग़ होगया। बड़ा ऐज़ाज़ है जितना फ़ख्र किया जाए काम है। क़ासिम भाई ,भाबी जो बातें आप लोगों ने अपनी औलाद को सिखाई है इस का दायरा वसीअ होता जा रहा है। आप दोनों मुबारकबाद के मुस्तहिक़ है।
 महराष्ट्रियनस  में शादी के पचास साल मुकम्मिल होने पर रिश्ते की तजदीद की जाती है। दोबारा शादी की जाती है। अल्लाह से दुआगो हूँ आप शादी के १०० साल मुक्कमिल होने पर इसी तरह का जश्न बरपा करे तीसरी शादी तक हयात रहे। क़ासिम भाई, भाभी आप के लिए हमेशा रश्के क़मर बानी रहे। किसी शायर ने आज के पुर आशूब दौर के लिए कहा है।
अतनी अरज़ां तो न थी दर्द की दौलत पहले
जिस तरफ जाइये ज़ख्मों के लगे हैं अम्बार
या
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़बान मिली है मगर हम ज़ुबान नहीं मिलता
 इस दौर में जब हर कोई stress लिए घूम रहा है, परेशान हाल है क़ासिम भाई आप महफ़िलों को गुले गुलज़ार कर देते हो। लोगो के दुःख दर्द कम करने की कोशिशों लगे रहते हो ,लोगों के लबों पर मुस्कराहट लेन  के लिए कोशां रहते हो शायद इसी मुनासिबत से आप का नाम क़ासिम तक़सीम करने वाला रखा गया है। आप अपना ये सवाबे जारिया जारी रखें।
  आप दोनों की सेहत तंदुरुस्ती। तवील उम्र के लिए दुआ नेक ख्वाहिशात।

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

Aap Kya aye bahar aka gayi makhane me

I




 





6 अक्टूबर से २५ अक्टूबर  २०१७ के बीच नेरुल के D.Y .patil stadium में FIFA under -१७ के सात इंटरनेश्नल फुट बॉल matches खेलने के लिए select किया गया था।  नेरुल के यशवंत राव चव्हाण प्ले ग्राउंड में प्रैक्टिस Matches खेलने का इंतेज़ाम भी किया गया था। इस बात का announce होते ही।  नेरुल सिटी को दुल्हन की तरह सजाया जाने लगा। सड़कों पर पड़े बड़े बड़े गड्डों को  भरा जाने लगा। बारिश के कारण सड़क दुरुस्ती के काम में रुकावट  भी आयी। लेकिन काम पूरा किया गया। टूटे फूटे फुटपाथ रिपेयर किये गए। पुरे नेरुल से कचरा हटाया गया। जगह जगह दीवारों पर फूटबाल के म्यूरल्स बनयाये गए। पूरे नवी मुंबई का रूप बदल गया। २५ अक्टूबर २०१७ को D.Y. patil stadium में FIFA under -१७ का आखरी match खेला जायेगा। क्या उसके बाद भी इसी मुस्तैदी से नवी मुंबई को maintain किया जायेगा? एक सवालिया निशान है। 









सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

Ghar se nikle to padosi ko bhi khushbu aaye



  
कम से कम इतना तो मुअत्तर (खुशबूदार ) हो इंसा का  वजूद 
घर से निकले तो पडोसी को भी खुशबु आये 
सैयद सुहैल और उनके वालिद मुहम्मद हनीफ सैयद इत्र का कारोबार करते हैं। लोगों को महकाते  हैं। नयी मुंबई में उनकी इत्र 
की  दूकान सी वुड (ईस्ट ) में स्टेशन के नज़दीक है। हनीफ  सय्यद साहब को इत्र का कारोबार करते पचास साल होगये हैं। जनाब खुशबु के टॉपिक पर घंटों बात कर सकते हैं। उनेह इत्र से दिली मोहब्बत है। ये उनका passion है। जब छोटी शीशी से बड़ी शीशी में इत्र भरते हैं इस नज़ाकत से भरतें हैं के इन बूँद भी गिरने नहीं पाती। फिर शीशी को साफ़ चमकते है। उनकी इस नज़्ज़ाक़त पर शायर ने उनिह के लिये कहा है। 
उन से ज़रूर मिलना सलीक़े (organised )के लोग हैं 
सर भी कलम (काटना ) करेंगे बड़े अहतमाम (नज़ाकत ) से 
शाह रुख का एक जुमला मुझे बहुत पसंद है " अपने पेशे को अपना शौक बनालो " सय्यैद सुहैल और हनीफ सैय्यद इसी 
उसूल पर काम करते है।  शायाद इसी लिए उनके बिज़नेस में इतनी बर्कत है।  नयी मुंबई के खुशबू  के शौक़ीन लोगों के लिए १ अक्टूबर २०१७ को नयी शॉप sea wood  grand mall  ,lower ground S -68  में शुरू की है। यहाँ इत्र ,spray ,लोबान ,बख़ूर हर किस्म की खुशबू मिलती है। खुशबू का इस्तेमाल सुन्नत है  ,अल्लाह से दुआगो हूँ के  सैय्यद साहेबान के इस कारोबार में दिन दुगनी ,रात चौगनी तरक़्की हो।  आमीन सुम्मा आमीन। 



बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

Itni Arzaan to n thi dard ki daulat pahle


एल्फिस्टन रोड को लोअर परेल से जोड़ने वाला पूल कई सालों से लाखों लोगों के लिए life line हुवा करता था २९ सेप्टेम्बर  2017 की सुबह death trap ,अँधा कुवाँ बन गया। ज़ोरदार अलविदाई बारिश से बचने के लिए पुल पर बेइंतिहा हजूम जमा होगया। नयी ट्रेनें आकर लोगों को ऊगलती रही हुजूम की तादाद बढ़्ती गयी। दूसरे दिन ३० सेप्टेंबर दश्हेरे का शुभ दिन था। लोग तेहवार के लिए परेल मार्किट से फ़ूल खरीद कर लौट रहे थे। हुजूम बढ़ता रहा। बारिश ने  कम न होने की कसम खा ली। फिर क्या एक पहेली है। कुछ लोगों का कहना ज़ोर की आवाज़ हुवी ,कुछ का कहना है फूल की टोकरी किसी के हाथ गिरी ,उसने कहा फूल गिरा ,लोगो ने समझा पुल गिरा। फिर एक क़यामत बरपा होगयी ,अफरातफरी का माहौल पैदा होगया। लोग एक दुसरे को कुचलते भागने दौड़ने लगे।इस भगदड़ में २३ खानदानों के चिराग़ बुझ गए , २३ कीमती जानोँ  से ,वक़्त से पहले जीने का हक़ छीन लिया गया। स्टेशन मास्टर को इन्फॉर्म किया गया उस के सर पर जूँ न रेंगी। पुलिस , SRP ,RPF पुरानीं फिल्मों की तरह Incident की जगह पर बहुत देर से ही पहुंचते है ,उस समय भी साबित कर दिया। आस  पास के लोगों ने ,भीड़ में मौजूद लोगों ने,हाज़िर दिमागी से काम लेकर ,जख्मियों ,लाशों को ,टॅक्सी ,ambulnce की मदद से KEM हॉस्पिटल पहुंचाया। जख्मियों की मरहम पट्टी की ,उनेह पानी पिलाया। साबित हुवा इंसानियत आज भी ज़िंदा है। मुंबई की sprit ,मोहब्बत ,हमदर्दी ,खुलूस ,ज़ज़्बाए इंसानियत को सलाम। कुछ काली भेड़ें भी होती है मौक़े का फायदा उठाना जिन की आदत है।
इतनी अरज़ां (सस्ती )तो न थी दर्द की दौलत पहले
जिस तरफ जाइये ज़ख्मों के लगे हैं अंबार  (ढेर)
     इस भीड़ में हिल्लोनि ढेढ़िया २२ साल की  युवती भी थी जिस ने ६ महीने पहले AXIS BANK परेल की शाख में नयी नयी नौकरी join की थी। कितनी मुश्किलों  से उसने चार्टर्ड एकाउंटेंसी का exam पास किया होंगा । दिन का चैन रातोँ की नींद हराम की होंगी। कितने मासूम  सपने उसने अपने भविष्य के आँखों में सजाएं होँगे। इस की मुस्कराती तस्वीर news paper में देखी ,बे इख़तियार कलेजा मूँ को आगया। मां बाप के दिल से आह निकल गयी होंगी ,रोते रोते आंसूं सुख गए होंगे , माँ नवरात्र का वर्त रखे इनतिज़ार कर रही थी पर लाश घर पहुँचि।
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे कल जिसके मुस्कराने से
   ११ साला मासुम रोहित परब बाप की फूलों की दूकान के लिए अपने बड़े भाई आकाश परब के साथ फूल खरीद कर
लौट रहा था ,भीड़ में कुचल दिया गया। बड़े भाई को पुकारता रहा "मला वाचवा " एक मासूम कली फूल बनाने से पहले मसल दी गयी। बड़ा  भाई आकाश बेहोश हॉस्पिटल में पुह्चाया गया। अपने छोटे भाई की मौत से बेखबर। अपने छोटे
भाई की राह तक रहा है ,हॉस्पिटल बेड पर टीक टीकी बांधे।
जाने वाले कभी नहीं आते
   अलेक्स कोरिया ,अंकुश जैसवाल ,मुश्ताक़ रियान , मुकेश मिश्रा ,विजय बहादुर सब ने अपनी जाने गवायीं। सब ने एक रोतां पीटता खानदान पीछे छोड़ा है। एक खला है जो पीछे छोड़ गए हैं।
   ये न हुवा होता अगर नया पुल बन गया होता। ये न होता अगर एल्फिस्टन रोड का स्टेशन मास्टर खबर मिलते ही सही अनाउंसमेंट कर लोगों का डर ,खौफ दूर कर दिया होता। ये न होता अगर disater team वक़्त पर पहुँच कर crowd control कर लेती।
  कई अगर हैं जिन का कोई जवाब नहीं। लोकल ट्रैन मुंबई की lifeline है। मुंबई की जनता को सलाम बड़े बड़े हादसों ,तूफानों से लड़ना इन की आदत है।
कुछ इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले


मंगलवार, 26 सितंबर 2017

AGM at VRSCCL

जनाब राजेंद्र पवार Chairman VRSCCL ,Directors COL . अनवर उमर ,राज ठक्कर ,एम.आऱ सिद्दीकी ,मनोज शाह , फ़य्याज़ खान और मीटिंग में आये तमाम शेयर होल्डर्स का में स्वागत करता हूँ। 
   आप को पता है वाशी स्टेशन काम्प्लेक्स कुछ साल पहले तक Bed ridden patient के जैसे दम तोड्ने की स्थिति में आ गया था। में ने अपनी आँखों से देखा है , जगे जगे कचरे के ढेर पड़े होते। शराब की खाली बोतलें ,सिगरेट के टुकड़े ,यहाँ तक के used condoms जगे जगे फैले होते। दीवारें उखड रही थी। सिक्योरिटी का कोई नाम निशाँन नहीं था। टायलेट्स गंदे टूटे फूटे हो गए थे।  काम्प्लेक्स खंडर होता जा रहा था।४ साल पहले VRSCCL Maitenance कंपनी बनायीं गयी पवार साहब चेयरमैन बने और उनके साथ COL .उमर ,राज ठकर ,सिद्दीकी ,मनोज शाह डायरेक्टर्स बनाये गये। सब ने दिन रात मेहनत की। maitenance recovery पर ध्यान दिया गया। सिक्योरिटी बढ़ा दी गयी। security cameras लगाए गए। साफ़ सफाई पर ध्यान दिया गया। repairing पर काफी पैसा खर्च किया गया। illegal vendors निकाले गए। parking area साफ़ सुथरा किया गया। कई बार इन लोगों को जान से मारने की धमकी मिली। लेकिन ये आगे बढ़ते रहे।  hats off  टू  पवार ऍन्ड हिज टीम। keep it up . किसी शायर ने शायद इन्ही के लिए कहा है। 
में अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर 
लोग आते गए और कारवां बनता गया 
   खुशी इस बात की है फैय्याज खान का CIDCO की जानिब से director nominate किया जाना। इन की काबिलियत ,अहलियत और administration के बारे  में बहुत कुछ सुन रखां हैं। फ़ैयाज़ खान साहेब इंसान को दूसरे के ज़ख्म का अहसास इतना नहीं होता जितना अपने जिस्म पर ज़ख्म लगने से होता है। अब आप  VRSCCL से जुड़ गए हैं आप को खुश आमदीद Welcome करते हैं। मुझे यक़ीन हैं अब तक हम चूंटी या हाती की रफ्तरार से चल रहे थे आप के जुड़ने से VRSCCL में चार चाँद लग जायेंगे। एक शेर पवार और टीम  की जानिब से आप की खिदमत में पेश करता हूँ। 
मुझे सहल होगयीं मंज़िलें ,वो हवा के रुख भी बदल गये 
तेरा हाथ हाथ में आगया के चिराग़ रह में जल उठे 

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

Atrangi doston ki yaad me

रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया
दायरे दर्द के बनने लगे तन्हाई में
रोज़ की तरह आज भी सुबह ५ बजे उठ बैठा । करोना viros ने घर बिठा दिया है  ,मैं क्या पूरी दुनिया में लोगों ने अपने आप को दुनिया से जुदा कर लिया। ज़िंदा दिल दोस्तों की महफ़िल बहुत याद आयी। दिल मसूस कर रह गया।
किसी शायर की अपनी सोच है।
वह अच्छे के बुरे हम को बहुत प्यारे हैं
अब तो हम नए दोस्त बनाने से रहे
पुराने दोस्तों का क्या कहना। लेकिन अब तो कई पुराने दोस्त इस दुनिया से जा चुके हैं (कमल मल्होत्रा की याद ताज़ा होगयी )की यादें बाकी हैं। कुछ ऐसे ग़ायब हुए जैसे गधे के सर से सींग। न कोई अता पता छोड़ा न कोई सुराग़।
    इंसान का मिज़ाज भी मिकनातीस (मैगनेट ) के जैसा होता है। किसी ढेर में भी वह लोहे के टुकड़ों को ढूंढ लेगा।  इंसान भी जब दोस्ती करता है तो अपने हम खायाल ,हम मिज़ाज ,लोगों से ही करता है। सलाम नमस्ते तो हर दिन कई लोगों से कर लेते हैं ,लेकिन दिल से दिल बहुत काम मिल पाता है। उम्र के इस मुक़ाम पर में खुश किस्मत हूँ के रिटायरमेंट के बाद हम ख्याल ,हम मिज़ाज लोगों का एक अच्खा खासा crowd मिल गया है।  सोनवणे , मुज़्ज़फर , इश्तियाक़  ,सुनील कूडेकर ,सुनील होंनराव ,हमीद  ख़ानज़ादा ,फ़ारूक़  अल ज़मा ,औसाफ  उस्मानी ,मंसूर जेठाम ,इमरान ,प्रकाश राने  साहेब ,हरीश,अब्दुल , अतुल पांडेय ,माथुर साहब ,कर्नाड ,किशोर इत्यादि। हामिद ख़ानज़ादा ,माथुर साहेब छोड़ सब मुझ से उम्र में छोटे हैं। लेकिन जो खुलूस ,मोहब्बत ,उन्सियत ,अपनाइयत  इन सब से मिलती हैँ  सर फखर से ऊँचा होजाता है। हर कोई दूसरों की ख़ुशी से खुश होता है और अपने दोस्तों के ग़म सेः परेशानी से उदास । छोटी छोटी खुशीयां जैसे दोस्तों के बर्थ डे भी हम लोग इस जोश खरोश से celebrate  करतें हैं, यक़ीन नहीं आता। तहवरों की खुशियां भी हम लोग मिल बाट कर तक़सीम कर लेते हैं।
शायद ऐसे दोस्तों के लिए किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
ज़िंदगी से बस यही गिला है मुझे
तू, बहुत देर से मिला है मुझे
किसी शायर ने क्या खूब कहा है
वक़्त रुकता नहीं कही थक कर
ये समय भी जल्द गुज़र जायेगा ,फिर वही महफिले होगी ,वही जश्न होगा।


सोमवार, 4 सितंबर 2017

Yaari hai imaan mera


वो भले हो के बुरे हम को बहुत प्यारे हैं
अब  तो हम नए दोस्त बनाने से रहे
अगर ऊपर वाला मुझे पुनर  जनम एक नयी  ज़िन्दगी देता है और वह मुझ से पूछे तुम अपने दोस्तों की लिस्ट अपनी मर्ज़ी से बनाओ तो पहले नंबर पर कौन रहेगा ? में कौन रहेगा ,में कहूंगा मंसूर जठाम ,दूसरे नंबर पर पर कौन में कहूंगा मंसूर झठाम ,तीसरे नंबर पर भी मैं उनिह का नाम लूंगा। मंसूर का मतलब(मीनिंग )होता है मदद किया गया। लेकिन हमारे मंसूर भाई दूसरों के ग़म को अपना ग़म समझते है और दूसरों की ख़ुशी में ऐसे शामिल होते हैं जैसे उनकी अपनी ख़ुशी हो।
    मेडिकल रीसर्च से साबित होगया है के जिन लोगों के अच्छे दोस्त होते हैं उन की उम्र में दस साल की बढ़ोतरी होजाती है। 
हम सब को मंसूर जैसा प्यारा दोस्त मिला है। हम सब की उम्र में यकीनन दस साल की बढ़ोतरी हगयी है। सालग्रह के इस मौके
 पर दिल से दुआ है उनेह सेहत ,तंदुरस्ती मिले और ज़िन्दगी में ऊँचा मक़ाम हासिल हो। 

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

What an idea sir

७० वे यौमे आज़ादी के औसर पर दिली मुबारकबाद। दुआ है ये मुल्क फ़ले फुले ,दुनिया में सब से ऊंचा मुक़ाम हासिल हो।
     याद रखिये दूसरों पर उठाने पर हमारी अपनी तीन उंगलियां हम्मारी जानिब उठी होती है। कुछ पॉजिटिव कीजिये। कुछ ऐसे नारे होते हैं एक इन्किलाब बरपा करदेते हैं। टीपू सुल्तान ने कहा था "शेर की एक दिन की ज़िन्दगी लोमड़ी की सौ साला ज़िन्दगी से बेहतर है "  ,सुभाष चंद्र बोस ने नारा दिया "तुम मुझे खून दो में तुम्हे आज़ादी दूंगा। गाँधी जी ग़रीब ,दलित ,पिछड़े वर्ग और elite ,हिन्दू ,मुस्लिम को जुड़ने के लिए आवाज़ दी थी "हम सब एक है "आज़ादी हासिल करने में इन नारों की बहुत अहमियत रही है।
   हमारे प्रधान मंत्री मोदी जी ने आवाज़ लगायी " स्वच्छ भारत "तमाम गवर्नमेंट मशीनरी ,मिनिस्टर , अफसर और आम जनता इस नारे से जुड़ गयी। सब झाड़ू लेकर सफाई में जुट गएँ। सब लोगों को अहसास दिलाया जा रहा है खुली जगह पर टॉइलट करना कितना बुरा होता है। सलाम करता हूँ अफ़रोज़ शाह को जिनोह ने इस नारे पर अमल कर के अपनी टीम बनायीं और versava beach से गन्दगी दूर की। सारी दुनिया में उन की तारीफ़ हो रही है। उनेह awards दिए जा रहे है। सलाम करता हूँ "टॉयलेट एक प्रेम कथा " फिल्म बनाने वाली टीम को जिनोह ने हिम्मत जूटा कर इस subject पर सोचा।
  हम सब मिल कर कोशिश करें के मुल्क से ग़रीबी , भूक मरी ,बीमारी दूर हो। मुल्क में जहालत की जगह तालीम की रौशनी फैले।
  हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद , जय हिन्द 

रविवार, 16 जुलाई 2017

Belasis Road/yadein Maharashtra college ki


यूँ   तस्सवर पे बरसती हैं पुरानी यादेँ
जैसे बर्सात में रिमझिम का समां होता है
बेलसिस रोड मुंबई की एक मशहूर सड़क थी । मुंबई सेंट्रल से  स्टेशन शुरू होकर नागपाड़ा जंक्शन पर ख़त्म होजाती है। इस सड़क पर मुंबई सेंट्रल बस स्टेशन ,उस से आगे Arabia Hotel ,उस से लग कर मेहदी मस्जिद ,पड़ोस में अंजुमन गर्ल्स स्कूल ,थोड़े आगे महाराष्ट कॉलेज सामने सेंट अन्थोनी गर्ल्स स्कूल और उस के पड़ोस में Alexandre Theater ,सड़क के end में traffic signal और K eddy company का छोटा सा मेडिकल store हुवा करता था। पास ही Sarvi Restaurant . १९७५/१९७७ जिस समय मैं Maharashtra College में B.Sc कर रहा था Saint Anthony Girls School के पड़ोस में बड़े बड़े घोड़ों के अस्तबल हुवा करते थे। इंद्रा गाँधी का  central में राज था ,आज की तरह चीज़ें आसानी से नहीं मिला करती थी। सोना कपडा ,इलेक्ट्रॉनिक के सामान smuggle किये जाते थे। हाजी मस्तान ,युसूफ पटेल नामी ग्रामी smugglers थे। जगे की कीमत  उस समय भी थी। क़िस्सा मुख़्तसर इन घोड़ों के अस्तबल को भी खाली कराने की ,इन लोगों के माध्यम से कोशिश की गयी। अस्तबल में आग तक लगवाई गयी,घड़े ज़ख़्मी हुवे ,कई मरे भी । लेकिन वह  उस समय ,उसे खाली न कर पाये। आज उस जगह पर आलिशान city central mall की ईमारत कड़ी है। लोग कहते हैं भलाई की बुराई पर  हमेशा जीत होती है। यह मेरी समझ से परे है । आज भी पूरी सड़क कुछ कुछ तब्दीली के साथ वैसी है। मानो  फ्रेम में लगी हुवी पुरानी तस्वीर। saarvi restaurant आज भी उसी हालत में है ,बलिययाँ लकड़ी लगा कर टूटी फूटी इमारत को गिरने से बचाने की कोशिश की गयी है ,होटल अब भी धुएं से भरा रहता  है। खानों में अब वह मज़ा नहीं रहा ,हालांकि कीमत कई गुना बढ़ गयी है। Alexandra theater की इमारत अब भी उसी हालत में है ,बाहर फिल्म के पोस्टर नहीं लगे है। सड़क का नाम बदल कर Jehangir Boman Behram Marg कर दिया गया है। लेकिन Raj Oil Mill की building उसी जगह है। कुछ समय पहले तक राज मिल्स के बहार गोली सोडा मिलता था ,अब उस दुकान पर नहीं दिखा,महाराष्ट्र कॉलेज की लड़कियां अब भी उसी शौक से चने चटपटे,आलू ,दही भेल कहती दिखाई पड़ी, आदमी का नेचर कभी  नहीं बदलता । चेंज है लेकिन धीमा सा,जिस तरह thermos  में राखी चाय बहुत देर तक गर्म रहती है।



Belasis Road ممبیئ سنٹرل اسٹین سے شروع ہوکر  ناگپاڑا جنکشن پر ختم  ہوجاتا ہے شاید اس کی حد تھوڑے آگے بھی ہو-اس سڑک پر ممبیئ سنٹرل بس  اسٹیشن،اس سے آگے اربیا ہوٹل،مہدی مسجد،انجمن اسلام گرلس اسکول،پڑوس میں مہاراشٹر کالج،سامنے سینٹ  اینتھنی گرلس اسکول اور اس کے پڑوس میں الکزنڈر تھیٹر سڑک کااختتام keddy company چھوٹا سا میڈکل  اسٹور تھا-اسی کے سامنے ٹریفک سگنل پاس ہی میں ساروی ہوٹل-سینٹ اینتھنی  اسکول کے پڑوس میں بڑے بڑے گھوڑوں کے اصطبل ہوا کرتے- اصطبل خالی کرانے کے لیے کیئ بار ان میں آگ بھی لگایئ گیئ-زخمی گھوڑوں کو سڑک پر دوڑتے پھر دم توڑتے ہم نے ان گنہکار آنکھوں سے دیکھا ہے-حاجی مستان ،یوسف پٹیل کا عروج تھا جگہ خالی کرانے کے لیے  اسوقت بھی سپاری دی جاتی تھی- لیکن اسوقت کیئ بار کی کوششیں  بھی اصطبل  کی جگہ خالی کرانے  میں ناکا میاب رہی تھی-  1974/1977 کی بات ہے میں بی-ایس-سی فایئنل ایر میں تعلیم حاصل کر رہا تھا-مہاراشٹرا کالج میں منشی صاحب پرنسپل ہوا کرتے،ککشی وال وایئس  پرنسپل,پروفیسر جاوید خان -آیے دن کالج کے ہال میں مشاعرے ،ادبی نشستیں،بیت بازی کی محفلوں کی رونق ہوتی-کرشن چندر،خواجہ احمد عباس،فیض  احمد فیض ،خواجہ عبدل غفور،مجروح ان محفلوں کو رونق بخشتے-شام طنز مزہ میں کرشن چندر نے " عشق کرنے کے باون طریقے " پڑھ کر سنایا تھا ہمارے پیٹوں میں بل پڑھ گیے تھے-فیض احمد فیض کا دھویں کے کش چھوڑتے ہویے "رنگ پیرہن کا خشبو ں ذلف لہرانے کا نام-موسم گل ہے تمہارے بام پہ آنے کا نام " مشہور غزل سنانا بھولتے نہیں بھولتا-کالج ڈے میں  بلراج سہانی،جاوید اختر، امجد خان کی موجودگی چار چاند لگا دیتی تھی-امجد خان کا شعلے کے ڈایلگ کی پیرڈی "ارے او بسنتی ناگپاڑے کی چکی کا آٹا  کھاتی ہو کیا" سنایا تو محفل گل و گلزار ہو گیئ تھی-بیت بازی میں پڑھے گیے معیاری شعر اب تک یاد ہے-
      Alexandra theater میں اس زمانے  میں فحش  انگلش  فلمیں دکھانے کا رواج تھا-عریاں سے پوسٹر پر فلم کے ٹایٹل کا  اردو/ہندی ترجمہ جیسے " ایک لکا تو دوسرا مکا" "بندوک ساڑی میں بندیا گاڑی میں" ٹھیٹر کے سامنے جو کالج کے بالکل مقابل ہے لٹکا دیا جاتا -کان صاف کرنے والے،دھونی دینے والے قفیر،لچے ،لفنگے لوگوں کا اث دہام فلم دیکھنے ٹوٹ پڑتا-پرنسپل منشی نالاں ہوجاتے کیئ بار تھیٹر مینجمنٹ کو بول کر پوسٹر ہٹوایے بھی-کچھ شرافت اس زمانے میں باقی تھی-
    آج بت خانے سے آیئ تھی آواز  اذاں
17 فروری 2015 ایک عرصے بعد بلاسس روڈ پر جانے کا موقعہ ملا-40 سال بعد بھی اس زمانے کے کچھ آثار قدیمہ اب بھی باقی ہیں-مہارشٹر کالج،انجمن گرلس ہایئ اسکول،سینٹ اینتھنی گرلس اسکول،اربیا ہوٹل کچھ تبدیلی کے بعد اب بھی باقی ہے-ساروی ہوٹل اب بھی دھویں سے بھرا رہتا ہے لیکن سیخ کباب میں اب بھی وہی مزہ ہے فرق قیمت میں ہے 20 گنا بڑھ گیئ ہے-فٹ پاتھ اب بھی ٹوٹے پھوٹے ہیں لیکن پہلے سے بہتر-جگہ جگہ اب بھی پوسٹر لگے ہیں چہرے بدل گیے ہیں-بنات والا ،زیاوالدین بخاری کی جگہ  اتحادالمسلمین کے اویسی بھاییوں نے لے لی ہے-keddy company  کی جگہ دو منزلہ عمارت بن گیئ ہے-راج آیل مل اپنی جگہ موجود ہے-گولی سوڑا اب بھی دستیاب ہے 25 پیسے کی جگہ 5 روپیے میں-کھٹی میٹھی چاٹ،ابالے آلو اب بھی لڑکیاں اسی شوق سے کھارہی تھی-گھوڑوں کے اصطبل کی جگہ city mall بڑی بڑی عمارتوں نے لے لی ہے-
                  سب سے بڑا انقلاب  theatre  Alexandra کی بلڈنگ وہی ہے –رفیق دودھ والا کی سرپرستی میں " ادارہ دینی تعلیم " مدرسہ میں تبدیل ہو گیا ہے-ہندوستان کے کونے کونے اور کیئ بیرونی ممالک میں اس ادارے کی سرپرستی میں کامیاب مدرسے چلایے جا رہے ہیں-17 فروری 2015 کو اساتزا کی 3 روزہ ورک شاپ کا پہلا روز تھا- مولانا کو ٹایم مینجمنٹ پر مدلل تقریر سن کر میں دنگ رہ گیا-آج کے دور کی مسابقت کرنی ہو تو اسی ڈسپلن  سے  مدارس کو چلانا ہونگا-

Ghodon Ka astabal jhan badi badi immarten ban chuki hai
Inside Alexendra Theatre
Raj Oil Mill Belasis Rd
Keddy company new building
St.Anthony Girls School Belasis Rd







मंगलवार, 4 जुलाई 2017

Bhawani rath yaadein jalgaon ki

आज से ५० साल पहले शहर जलगांव के लोगों की ज़िन्दगी
पोला ,गणपति ,मोहर्रम ,भवानी और रथ तहवरों पर सिमट कर रह गयी थी। और कहीं न कहीं हैदरी थिएटर इन तेहवारों का सेंटर बन जाता।
    सैय्यद हैदर , हैदरी थिएटर के मालिक थे। सय्यद साहेब leprosy के मरीज़ थे। हाथ पैर की उंगलियां झड़ चुकी थी। चेहरे पर नाक आधी ग़ायब थीं। फिर भी थिएटर से लगी ऑफिस में गांव तकिया लगाए बैठे रहा करते थे।  वैश्याओं में उन की बड़ी इज़्ज़त थी। हैदरी थिएटर जलगाव् ,में कटिया फ़ैल मोहल्ले के बीचों बीच था।  नाम के लिये मराठी आर्ट लवणी, जो तमाशे की एक शक्ल है का मज़हरा (promote ) करना था।  लेकिन खुले आम जिस्मों की तिजारत होती थी। एक मंडी थी।
    तमाशा शुरू होने से पहले वेश्याएं हैदर साहब  की आरती उतरती थी।  फिर शुरू होता नाच का प्रोग्रॅम। पहले भजन गाया  जाता। दो तीन  मराठी गानों पर धामा चौकड़ी होती। उस ज़माने में पाकीज़ा फिल्म का गीत " इन्ही लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा " बहुत मशहूर हुवा था।  इस गाने पर नाच ज़रूरी था। ढोल ,हारमोनियम ,तबला बजने वालों में कही ताल मेल न होता। और नाच के साथ बे हंगाम सुरों  में गातीं ,उन तवाइफ़ों की आवाज़ें एक एक अजब सा  बे हंगाम शोर पैदा कर देती।  फिर भी audience में बैठे तमाशायिं स्टेज पर पैसे फ़ेंक कर दाद देते। ९ वारी साडी कसे  ,चेहरे पर पाउडर  लिपस्टिक की परतें (layers ) लगाएं हुवे औरतें बड़ी अजीब सी लगती। entry ticket १ रूपया था। आस पास के देहातों के शौक़ीन थिएटर पर टूट पड़ते।
  दसहरे में जलगाँव शहर में भवानी का रूप धारे लोग ढोल ताशे के साथ भीक मांगने निकलते। हर घर ,हर दूकान चाहे हिन्दू की हो या मुसमान की उन्हें पैसे २ पैसे की सौग़ात मिल जाती। रथ भी उसी दौरान निकलता। मज़बूत लकड़ी से बना रथ साल भर एक जगे छत के नीचे खड़ा होता  शहर में घुमाने से पहले उसे साफ़ किया जाता खुशबूदार तेलों से महकाया जाता ,साल में एक बार मोटे मोटे रस्सों से बांध कर सरे शहर में फिराया जाता। रथ खींचना भी (तबर्रुक ) की तरह होता। क्या हिंदू क्या मुसलमान सब शरीक होते। रस्सा पकड़ कर खींचने के लिए एक होड़ लग जाती। रथ में बाल कटवा कर कुछ पंडित बैठे होते। उन पर कच्चे ,पके केलों की बौछार होती ,और वो लोग बर्तन ,ढाल की तरह बनी चीज़ों से अपना बचाव करते। उन ज़माने में जलगांव में केलों की पैदाइश बहुत होती थी ,१ रूपये में कई दर्जन केले मिल जाते। रथ के पीछे म्युनिसिपल का tractor में बैठे लोग उन केलों को जमा करते। हज़ारों रूपये के केले बर्बाद होते थे।  लेकिन एक जोश ,एक उत्साह ,ख़ुशी  जूनून का माहौल  कभी बाद में देखने को नहीं मिला।
      जलगांव की आबादी इन तहवरों में कई गुना बढ़ जाती थी। करीब के देहातों से लोग एक भीड़ शहर पर टूट पड़ती। रात रात भर लोग मटर गश्ती करते। उन दिनों शहर में ५ सिनेमा घर थे। हर सिनेमा घर में रात ३ बजे फिल्म शो शुरू होजाते। ७ से ८ शो हर थिअटर में दिखये जाते। आधी अधूरी फिल्मे देख कर लोग खुश होजाते। हैदरी थिअटर भी रात रात भर नाच गानों के शोर से डूबा होता।
यादे माज़ी अज़ाब है यारब


मंगलवार, 27 जून 2017

musafir hoon yaron



                               مسافر ہوں یاروں
کچھ اس طرح سے مجھے حادثات مہیب ملتے ہیں
اتفاقا" کسے روراہے پر ،جیسے بچھڑے رقیب ملتے ہیں
غلطی ہویئ رقیب کی بجائے اوصاف عثمانی لکھنا چاہئے تھا-درمیانہ قد ،مجھے 22 سال کی عمر کے بعد ملے اس لئے قد تبدیل تو نہیں ہوا،کچھڑی بال جن میں اب جگہ جگہ چاندی چمکنے لگی ہے-آنکھوں پر قیمتی چشمہ لگائے رکھتے ہے-موبائیل برسوں سے ایک ہی استمعال میں ہیں، اسکرین پر خراشیں  پڑ چکی ہیں،شاید تحفہ میں گرل فرینڈ یا بھابی سے ملا ہے-ورنہ اتنی بد ہیت چیز کا استعمال سمجھ میں  نہیں آتا-کپڑے ماشا اللہ برانڈڈ پہنتے ہیں-معروف عثمانی، ادب دان خاندان میں جنم لیا ہے-والد اردوں داں ،استاد  ،شايد اسی مناسبت سے نام اوصاف رکھا گیا-گاوں میں اردوں اسکول سے تعلیم کی شروعات کی-ممبیئ آکر مکمل کی –اسی لیے اردو سے والہانہ محبت ہے-اپنی اہلیہ سے بھی اتنی محبت ہے کیوں کے اپنے لیے انتخاب ہی اردو ٹیچر کا کیا ہے-
      منزل کی ہے تلاش تو دامن جنوں کا تھام
    اپنے  کریر کی شروعات fab tech سے کی –کمپنی کو اپنے خون جگر سے سینچا-کمپنی چھتنا آور  درخت بن چکی ہے-اب بھی اسی  مستعدی سے کمپنی کی ذلفیں سنوارنے میں مصروف ہے-پہلے بس ،ٹرین سے سفر کیا کرتے تھے –خال خال نیرول میں لظر آجاتے تھے-اب ماشااللہ پلین سے سفر کرتے ہے-کبھی چندی گڑھ تو کبھی دہلی،کلکتہ،احمدآباد،نیپال ،بھوپال،پونا، سارا ہندوستان جناب کے لیئے گھر آنگن ہو گیا ہے-سمجھ میں نہیں آتا انہیں کب فرصت مل  پاتی ہے،کیونکہ سفر سے لوٹتے ہی  اپنی کار ڈرائیور کے ساتھ کمپنی ہیڈ آفس یا پھر  عمر گام فیکٹری کی دوڑ لگا آتے ہے-
ہمیں پتہ ہے ہوا کا مزاج رکھتے ہو
ان کی زندگی میں ایک چوکور ہے –بھابھی،عظمان،امان اور علینہ جو ان کی زندگی کا مرکز ہے- سبھی سے  انہیں والہانہ قربت ہے لیکن بقول اشتیاق بھایئ "پتیلے میں لگی کھرچن بہت لزیز ہوتی ہے " کے مصداق امان میاں سے خاص  انسیت ہے-
    اس کے علاوہ بھی انہوں نے زندگی کو کیئ خانوں میں باٹ  رکھا ہے-باقاعدگی سے احمد بھایئ کے باہر کرسیاں بچھا کر دوستوں کی محفلیں سجانا،یاروں کی بارات کو کبھی محمد علی روڈ ،کبھی بھیونڈی دھابہ،کبھی ماتھیران ،کبھی ڈومبیولی دھابہ  لیجاکر چٹ پٹے کھانوں سے انہہیں متعارف کرانا-سوشل میڈیا پر ویڈیو کلپس،شاعری،جوکس  share  کرنا-سوشل کاموں میں شامل ہونا-اس کے علاوہ بقول منصور جٹھام ،مہاشے "گھریلو اتی  کرمن" کے لیئے  بھی جانے جاتے ہے-لیکن کامیاب نہیں ہونے پاتے-اشتیاق بھایئ سے پنگا نہیں لے سکتے-منصور جٹھام اینٹ کا جواب پتھر سے دیتے ہے-حامد بھایئ تھوڑے دب جاتے ہے کیونکے ان کی جوانی بانکپن میں گزری ہے-ہریش قربانی کا بکرا ،وہ بھی اب چکنا گھڑا ہوگیا ہے ہنس  کر ٹال دیتا ہے-ایک بار افسر امام نے گھر ناشتے کی دعوت دے کر اپنے پیر پر کلہاڑی مار لی-اب تو یہ عالم ہے جس راستہ سے اوصاف گزرتے ہے ان کی پرچھایئ بھی نہیں دکھایئ دیتی-
ایک  چہرے پہ کیئ چہرے لگا لیتے ہیں لوگ
   اوصاف میں تمہیں بہروپیہ نہیں کہونگا-آج دوستی ،وفا،پیار ،محبت  لونگ الایچی کی طرح عنقا ہوتے جارہے ہیں-ہنسی لوگوں کے لبوں سے غائب ہورہی ہے-بلاوجہ ہر جگہ ٹنشن کا ماحول ہے -تم اپنی مصروفیت کے باوجود لوگوں کے دکھ درد کم کرکے دوستوں کی زندگیوں میں اندر دھنش کے رنگ بکھیرنے کی کوشش میں لگے ہو-میں تمہاری ان کوششوں کی قدر کرتا ہوں –بقول شاعر
جہاںرہینگا وہاں روشنی لٹاینگا
کسی چراغ کا اپنا مکاں نہیں ہوتا