रात की झील में कंकर सा कोई फ़ेंक गया
दायरे दर्द के बनने लगे तन्हाई में
रोज़ की तरह आज भी सुबह ५ बजे उठ बैठा । करोना viros ने घर बिठा दिया है ,मैं क्या पूरी दुनिया में लोगों ने अपने आप को दुनिया से जुदा कर लिया। ज़िंदा दिल दोस्तों की महफ़िल बहुत याद आयी। दिल मसूस कर रह गया।
किसी शायर की अपनी सोच है।
वह अच्छे के बुरे हम को बहुत प्यारे हैं
अब तो हम नए दोस्त बनाने से रहे
पुराने दोस्तों का क्या कहना। लेकिन अब तो कई पुराने दोस्त इस दुनिया से जा चुके हैं (कमल मल्होत्रा की याद ताज़ा होगयी )की यादें बाकी हैं। कुछ ऐसे ग़ायब हुए जैसे गधे के सर से सींग। न कोई अता पता छोड़ा न कोई सुराग़।
इंसान का मिज़ाज भी मिकनातीस (मैगनेट ) के जैसा होता है। किसी ढेर में भी वह लोहे के टुकड़ों को ढूंढ लेगा। इंसान भी जब दोस्ती करता है तो अपने हम खायाल ,हम मिज़ाज ,लोगों से ही करता है। सलाम नमस्ते तो हर दिन कई लोगों से कर लेते हैं ,लेकिन दिल से दिल बहुत काम मिल पाता है। उम्र के इस मुक़ाम पर में खुश किस्मत हूँ के रिटायरमेंट के बाद हम ख्याल ,हम मिज़ाज लोगों का एक अच्खा खासा crowd मिल गया है। सोनवणे , मुज़्ज़फर , इश्तियाक़ ,सुनील कूडेकर ,सुनील होंनराव ,हमीद ख़ानज़ादा ,फ़ारूक़ अल ज़मा ,औसाफ उस्मानी ,मंसूर जेठाम ,इमरान ,प्रकाश राने साहेब ,हरीश,अब्दुल , अतुल पांडेय ,माथुर साहब ,कर्नाड ,किशोर इत्यादि। हामिद ख़ानज़ादा ,माथुर साहेब छोड़ सब मुझ से उम्र में छोटे हैं। लेकिन जो खुलूस ,मोहब्बत ,उन्सियत ,अपनाइयत इन सब से मिलती हैँ सर फखर से ऊँचा होजाता है। हर कोई दूसरों की ख़ुशी से खुश होता है और अपने दोस्तों के ग़म सेः परेशानी से उदास । छोटी छोटी खुशीयां जैसे दोस्तों के बर्थ डे भी हम लोग इस जोश खरोश से celebrate करतें हैं, यक़ीन नहीं आता। तहवरों की खुशियां भी हम लोग मिल बाट कर तक़सीम कर लेते हैं।
शायद ऐसे दोस्तों के लिए किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
ज़िंदगी से बस यही गिला है मुझे
तू, बहुत देर से मिला है मुझे
किसी शायर ने क्या खूब कहा है
वक़्त रुकता नहीं कही थक कर
ये समय भी जल्द गुज़र जायेगा ,फिर वही महफिले होगी ,वही जश्न होगा।
दायरे दर्द के बनने लगे तन्हाई में
रोज़ की तरह आज भी सुबह ५ बजे उठ बैठा । करोना viros ने घर बिठा दिया है ,मैं क्या पूरी दुनिया में लोगों ने अपने आप को दुनिया से जुदा कर लिया। ज़िंदा दिल दोस्तों की महफ़िल बहुत याद आयी। दिल मसूस कर रह गया।
किसी शायर की अपनी सोच है।
वह अच्छे के बुरे हम को बहुत प्यारे हैं
अब तो हम नए दोस्त बनाने से रहे
पुराने दोस्तों का क्या कहना। लेकिन अब तो कई पुराने दोस्त इस दुनिया से जा चुके हैं (कमल मल्होत्रा की याद ताज़ा होगयी )की यादें बाकी हैं। कुछ ऐसे ग़ायब हुए जैसे गधे के सर से सींग। न कोई अता पता छोड़ा न कोई सुराग़।
इंसान का मिज़ाज भी मिकनातीस (मैगनेट ) के जैसा होता है। किसी ढेर में भी वह लोहे के टुकड़ों को ढूंढ लेगा। इंसान भी जब दोस्ती करता है तो अपने हम खायाल ,हम मिज़ाज ,लोगों से ही करता है। सलाम नमस्ते तो हर दिन कई लोगों से कर लेते हैं ,लेकिन दिल से दिल बहुत काम मिल पाता है। उम्र के इस मुक़ाम पर में खुश किस्मत हूँ के रिटायरमेंट के बाद हम ख्याल ,हम मिज़ाज लोगों का एक अच्खा खासा crowd मिल गया है। सोनवणे , मुज़्ज़फर , इश्तियाक़ ,सुनील कूडेकर ,सुनील होंनराव ,हमीद ख़ानज़ादा ,फ़ारूक़ अल ज़मा ,औसाफ उस्मानी ,मंसूर जेठाम ,इमरान ,प्रकाश राने साहेब ,हरीश,अब्दुल , अतुल पांडेय ,माथुर साहब ,कर्नाड ,किशोर इत्यादि। हामिद ख़ानज़ादा ,माथुर साहेब छोड़ सब मुझ से उम्र में छोटे हैं। लेकिन जो खुलूस ,मोहब्बत ,उन्सियत ,अपनाइयत इन सब से मिलती हैँ सर फखर से ऊँचा होजाता है। हर कोई दूसरों की ख़ुशी से खुश होता है और अपने दोस्तों के ग़म सेः परेशानी से उदास । छोटी छोटी खुशीयां जैसे दोस्तों के बर्थ डे भी हम लोग इस जोश खरोश से celebrate करतें हैं, यक़ीन नहीं आता। तहवरों की खुशियां भी हम लोग मिल बाट कर तक़सीम कर लेते हैं।
शायद ऐसे दोस्तों के लिए किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
ज़िंदगी से बस यही गिला है मुझे
तू, बहुत देर से मिला है मुझे
किसी शायर ने क्या खूब कहा है
वक़्त रुकता नहीं कही थक कर
ये समय भी जल्द गुज़र जायेगा ,फिर वही महफिले होगी ,वही जश्न होगा।
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