बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

Itni Arzaan to n thi dard ki daulat pahle


एल्फिस्टन रोड को लोअर परेल से जोड़ने वाला पूल कई सालों से लाखों लोगों के लिए life line हुवा करता था २९ सेप्टेम्बर  2017 की सुबह death trap ,अँधा कुवाँ बन गया। ज़ोरदार अलविदाई बारिश से बचने के लिए पुल पर बेइंतिहा हजूम जमा होगया। नयी ट्रेनें आकर लोगों को ऊगलती रही हुजूम की तादाद बढ़्ती गयी। दूसरे दिन ३० सेप्टेंबर दश्हेरे का शुभ दिन था। लोग तेहवार के लिए परेल मार्किट से फ़ूल खरीद कर लौट रहे थे। हुजूम बढ़ता रहा। बारिश ने  कम न होने की कसम खा ली। फिर क्या एक पहेली है। कुछ लोगों का कहना ज़ोर की आवाज़ हुवी ,कुछ का कहना है फूल की टोकरी किसी के हाथ गिरी ,उसने कहा फूल गिरा ,लोगो ने समझा पुल गिरा। फिर एक क़यामत बरपा होगयी ,अफरातफरी का माहौल पैदा होगया। लोग एक दुसरे को कुचलते भागने दौड़ने लगे।इस भगदड़ में २३ खानदानों के चिराग़ बुझ गए , २३ कीमती जानोँ  से ,वक़्त से पहले जीने का हक़ छीन लिया गया। स्टेशन मास्टर को इन्फॉर्म किया गया उस के सर पर जूँ न रेंगी। पुलिस , SRP ,RPF पुरानीं फिल्मों की तरह Incident की जगह पर बहुत देर से ही पहुंचते है ,उस समय भी साबित कर दिया। आस  पास के लोगों ने ,भीड़ में मौजूद लोगों ने,हाज़िर दिमागी से काम लेकर ,जख्मियों ,लाशों को ,टॅक्सी ,ambulnce की मदद से KEM हॉस्पिटल पहुंचाया। जख्मियों की मरहम पट्टी की ,उनेह पानी पिलाया। साबित हुवा इंसानियत आज भी ज़िंदा है। मुंबई की sprit ,मोहब्बत ,हमदर्दी ,खुलूस ,ज़ज़्बाए इंसानियत को सलाम। कुछ काली भेड़ें भी होती है मौक़े का फायदा उठाना जिन की आदत है।
इतनी अरज़ां (सस्ती )तो न थी दर्द की दौलत पहले
जिस तरफ जाइये ज़ख्मों के लगे हैं अंबार  (ढेर)
     इस भीड़ में हिल्लोनि ढेढ़िया २२ साल की  युवती भी थी जिस ने ६ महीने पहले AXIS BANK परेल की शाख में नयी नयी नौकरी join की थी। कितनी मुश्किलों  से उसने चार्टर्ड एकाउंटेंसी का exam पास किया होंगा । दिन का चैन रातोँ की नींद हराम की होंगी। कितने मासूम  सपने उसने अपने भविष्य के आँखों में सजाएं होँगे। इस की मुस्कराती तस्वीर news paper में देखी ,बे इख़तियार कलेजा मूँ को आगया। मां बाप के दिल से आह निकल गयी होंगी ,रोते रोते आंसूं सुख गए होंगे , माँ नवरात्र का वर्त रखे इनतिज़ार कर रही थी पर लाश घर पहुँचि।
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे कल जिसके मुस्कराने से
   ११ साला मासुम रोहित परब बाप की फूलों की दूकान के लिए अपने बड़े भाई आकाश परब के साथ फूल खरीद कर
लौट रहा था ,भीड़ में कुचल दिया गया। बड़े भाई को पुकारता रहा "मला वाचवा " एक मासूम कली फूल बनाने से पहले मसल दी गयी। बड़ा  भाई आकाश बेहोश हॉस्पिटल में पुह्चाया गया। अपने छोटे भाई की मौत से बेखबर। अपने छोटे
भाई की राह तक रहा है ,हॉस्पिटल बेड पर टीक टीकी बांधे।
जाने वाले कभी नहीं आते
   अलेक्स कोरिया ,अंकुश जैसवाल ,मुश्ताक़ रियान , मुकेश मिश्रा ,विजय बहादुर सब ने अपनी जाने गवायीं। सब ने एक रोतां पीटता खानदान पीछे छोड़ा है। एक खला है जो पीछे छोड़ गए हैं।
   ये न हुवा होता अगर नया पुल बन गया होता। ये न होता अगर एल्फिस्टन रोड का स्टेशन मास्टर खबर मिलते ही सही अनाउंसमेंट कर लोगों का डर ,खौफ दूर कर दिया होता। ये न होता अगर disater team वक़्त पर पहुँच कर crowd control कर लेती।
  कई अगर हैं जिन का कोई जवाब नहीं। लोकल ट्रैन मुंबई की lifeline है। मुंबई की जनता को सलाम बड़े बड़े हादसों ,तूफानों से लड़ना इन की आदत है।
कुछ इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे ,उठ के चले


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