गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

Lock down ka 28 wa din

एक लम्बे अरसे तक दुनिया से कटना ,बावजूद इसके के हम अपनी फॅमिली के साथ है। internet की facility है। मोबाइल पर घंटो अपने रिश्तेदारों ,जान पेहचान वालों से बातें करते रहते हैं। फिर भी एक बेकली सी तबियत में रहती है। एहसास होता है उन बेक़सूर क़ैद में पड़े लोगों का जो सालोँ से बग़ैर कोई गुनाह किये जेल की सज़ा काट रहे है। घर की याद तो सताती होंगी। दिल में बीवी बच्चों के ताल्लुक़ से कई वसवसे आते होंगे। घर का खर्च ,बच्चों की तालीम ,माँ बाप की सेहत उनकी बीमारियां। फिर बेबसी और घुटन। क्या क़ुव्वते बर्दाश्त होती होंगी उन लोगों की। कुछ लोग तो २० साल बाद छूटे ,दुनिया बदल गयी होती है, बच्चे जवान ,बीवी बूढी, माँ बाप दुनिया से जा चुके होते है। छूटने के बाद जीने का मक़सद कुछ समझ में नहीं आता होंगा । किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
किस का रास्ता देखे ऎ दिल ऎ सौदाई।
मीलों है ख़ामोशी बरसों है तन्हाई।
   फरहाद ने दूध की नहर निकली थी। में समझता हूँ ,फ़र्ज़ी कहानियां है। हाँ ,कुछ लोग हालत की मार से डरते नहीं। मुश्किलात का डट कर मुकाबिला करते है। तुफानो का मुक़ाबला करके अपनी राह निकाल ही लेते हैं।
मैं जिस शख्सियत का तज़करा कर रहा हूँ ,हम उन्हें बचपन से जानते है, हमारे हमवतन हैं ,पेशे से डॉक्टर है। हमारे छोटे भाई के जैसे है। प्रैक्टिस भी folkland road पर करते हैं। area चारों  जानिब से वैश्याओं (prostitute )से घिरा है। डॉक्टर साहेब ने उनेह कभी हिकारत से नहीं देखा। बल्कि इंसानियत की खिदमत समझ कर ,अपना फ़र्ज़ अदा  करते रहे  ,छोटी मोटी  फीस लेकर मरीज़ों का इलाज बड़ी खुशदिली करते है। अपने एरिया की बड़ी जानी पहचानी शख्सियत है। शुरवात में जब practice शुरू की थी दो एक मर्तबा उनकी dispensary को visit करने का मौका भी मिला था।
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ आबला  प्आ को।
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है।

२५ साल पहले इन्ही डॉक्टर साहब को ,TADA क़ानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन के साथ उन के बड़े भाई को
भी पकड़ा गया था। साथ साथ ८ दुसरे नौजवान भी पकडे गए थे सब पेशे से gradute ,इंजीनियर ,doctor ,textile technologist ,सभी अच्छी families से belong करते थे। २५ साल की लम्बी struggle के पश्चात् पुलिस उनके
खिलाफ कुछ जुर्म prove नहीं कर पायी। पिछले साल उन सबको बा-इज़्ज़त बरी किया गया ,छोड़ा गया। उनके  उन २५ सालों की भरपाई कोन करेंगा। पुलिस custudy ,court के चक्कर, समाज का bycott ,देश द्रोही होने के आरोप।ख़ानदान में शादी के मसले। वो तो अच्छा हुवा केस लड़ने में जमीतुल उलमा वालों ने उनकी भरपूर मदद की  ,सहयता
की।कोर्ट ने पुलिस को लताड़ा भी। लेकिन उन सबका खोया हुवा ज़माना वापिस तो नहीं मिल जाएंगा। ज़माने से मिली
तल्खियां ,बेइज़्ज़तिया ,महरूमिया उनकी यादों का हिस्सा बन चुकी है।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा होजना / मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पे के आसान हो गयी
 तज़करा डॉक्टर साहेब से शुरू हुवा था। उनोहने जेल की सख्तियां सही ,मुम्बई से नासिक जाकर तारीखों में कोर्ट में
हाज़री दी। लेकिन अपनी ज़िम्मेदारियों से कभी भी मू नहीं मोड़ा। अपनी प्रैक्टिस जारी रखि। शायद उनोहने अपने
मुश्किल हालत में ,अपने रोशन ताबनाक मुस्तकबिल को देख लिया था। आज हालत बदल गए हैं। बड़ा बेटा
aoronautical engineer बन गया है ,एक बेटी IT ENGINEER बन गयी है। सोने पे सुहागा उनकी छोटी बच्ची
माशाल्लाह डॉक्टर बन रही है। डॉक्टर साहब की नेक नामी उनकी जद्दोजहद और बकौल शायऱ
वो कौन है जो दुवाओँ में याद रखता है।
मैं डूबता हूँ समंदर उछालता है मुझे।
 डॉक्टर का पेशा इतना नोबल होता है। और अगर खुलुस भी शामिल हाल हो तो ग़ैब की मदद लाज़मी है। शर्त
अल्लाह की ज़ात पे यकीन।

ये तस्वीर का एक रुख है ,कितने ऐसे होंगे जो डॉ साहेब की तरह steel nerves रखते हैं। कई ऐसे हैं जो हालात की
सख्तियां ,तलखियाँ बर्दाश्त नहीं कर सके। जेलों में ही दम  तोड़ दिया। कई ऐसे है जेल से छूटने के प्रति नए हालत से
समझौता नहीं कर पाए।

आज क़ौम में अंदाज़े से ४०,००० करोड़ सालाना ज़कात निकलते है। पता नहीं की कितनी बेवायें मदद को मुहताज है। कितने यतीम बचे मदद के लिए तरस रहे हैं।कितनी ग़रीब बच्चियां शादी के लिए मदद की मुहताज बैठी है.काश हम ज़कात को सही मुस्तहक़ों तक पुहंचा सके।








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