एक सूरज था सितारों के घराने से उठा।
आंख हैरान क्या शख्स ज़माने से उठा।
५ साल का लम्बा वक़्त देखते देखते गुज़र गया। आज ही के दिन ७ अप्रैल २०१५ को अल्हाज ज़ैनुल-आबेदीन सय्यद हम से जुदा होकर ख़ालिक़े हक़ीक़ी अल्लाह से जा मिले थे। अल्लाह उन की मग़फ़िरत करे ,कर्वट कर्वट जन्नत नसीब करें।
वक़्त रुकता नहीं टिक कर ,ज़माना अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं भूलाते नहीं भूलते। उन से जुङी यादें ,उन के साथ गुज़ारा वक़्त ,अनमोल ख़ज़ाने की तरह हमारी ज़िन्दगी का सरमाया बन जाता है।
३० मई १९८२ में उनहो ने मुझे अपना दामाद बना कर इज़्ज़त बख्शी, अपनी फूल सी लख्ते जिगर मेरे हवाले कर दी ये जानते हुवे ,उस ज़माने में न मेरे पास घर था ,न अछि नौकरी लेकिन वो हमारे अब्बा की बहुत कदर करते थे जो रिश्ते में उनके बहनवायी होते थे। उनका favorite topic था अपनी क़ौम में तालीम की कमी ,वो हम सब भाइयों को तालीम हासिल करते देख दिल से खुश होते थे। मेरी तर्रकी देख कर वो खुश होते थे ,दिल से दुआयें देते थे। अपनी नवासियों
सना ,हिना की तालीम का ज़िक्र जब करते बहुत जज़्बाती होजाते। काश आज वो हयात होते अपनी दोनों निवासियों की तर्रकी की देख कर वो फूले नहीं समाते।
सना ,हिना की तालीम का ज़िक्र जब करते बहुत जज़्बाती होजाते। काश आज वो हयात होते अपनी दोनों निवासियों की तर्रकी की देख कर वो फूले नहीं समाते।
शगुफ्ता से सुना है उनेह समाज में शहादे में सब लोग सय्यद साहेब चाय वालों के नाम से जानते थे। और वो अपने ख़ानदान के साथ साथ शाहाना जिंदिगी गुज़रते थे। लोग उनसे मश्वरे लेते और उन पर अमल भी करते थे। उनका हाथ बहुत खुला था गरीबो मिस्कीनों की मदद में हमेशा आगे आगे रहते। उनका दोस्तों का दायरा संजीदा लोगो पर मुश्तमिल था। में भी उनके दोस्तों से मिल चूका हूँ। शायरी अदब तहज़ीब से उनेह रग़बत थी। माशाल्लाह नफासत पसंद थे। अपने वालिद से बे पनाह मोहब्बत थी हर हफ्ते छुट्टि के दिन तमाम मसरूफियतों को छोड़ कर नवापुर वालिद से मिलने ज़रूर जाते। पड़ने का बहुत शौक़ था अपने घर पर अदबी किताबों की liberary बना रखी थी। खुशकिस्मत भी थे उनेह सुघड़
तहज़ीब याफ्ता बीवी का साथ मिला था जिस ने उनके घर को जन्नत बना रखा था , मरहूमा अपनी तमाम खूबियां अपनी औलाद में मन्तक़िल कर गयी। मामूजान ने अपनी तमाम जिंदिगी हलाल रिज़्क़ कमाने में गुज़र दी। जो कमाया अपने औलाद की तालीम पर खर्च किया। सोच समझ कर इन्वेस्टमेंट किया ,और अल्लाह ने उस में बरकत भी दी। नेक औलाद दी ,जो उनके बताये उसूलों पर ज़िन्दगी गुज़ार रही है।
हदीस में आता है मरहूम माँ बाप तक सिर्फ औलाद की दुवायें नेक आमाल पहुँचते है और जन्नत में उनके दरजात बुलुंद होते हैं। में उनके लिए क़ुरान पढ़ कर बख्श रहा हूँ ,ख़ानदान के हर आदमी से गुज़ारिश है के उनकी मग़फ़ेरत के लिए दुवाएँ करे ,उनके के लिए सदक़ा करे ,शबे बारात आने वाली जुमरात को है उनके लिए दुवाओँ का खास एहतेमाम करे।
तहज़ीब याफ्ता बीवी का साथ मिला था जिस ने उनके घर को जन्नत बना रखा था , मरहूमा अपनी तमाम खूबियां अपनी औलाद में मन्तक़िल कर गयी। मामूजान ने अपनी तमाम जिंदिगी हलाल रिज़्क़ कमाने में गुज़र दी। जो कमाया अपने औलाद की तालीम पर खर्च किया। सोच समझ कर इन्वेस्टमेंट किया ,और अल्लाह ने उस में बरकत भी दी। नेक औलाद दी ,जो उनके बताये उसूलों पर ज़िन्दगी गुज़ार रही है।
हदीस में आता है मरहूम माँ बाप तक सिर्फ औलाद की दुवायें नेक आमाल पहुँचते है और जन्नत में उनके दरजात बुलुंद होते हैं। में उनके लिए क़ुरान पढ़ कर बख्श रहा हूँ ,ख़ानदान के हर आदमी से गुज़ारिश है के उनकी मग़फ़ेरत के लिए दुवाएँ करे ,उनके के लिए सदक़ा करे ,शबे बारात आने वाली जुमरात को है उनके लिए दुवाओँ का खास एहतेमाम करे।
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