बुधवार, 5 दिसंबर 2018

Humayun 2 nd Moghal ruler

                                                       Masjid kuhna purana kila
                                                Hammam purana kila
                                                           Member Masjid kuhna
   
Isa khan tomb
मौत से किस को रस्तगारी है 
औलिया हमेशा ज़िन्दगी में सादा  ज़िन्दगी गुज़ारते रहे। बादशाहे वक़्त से दूरी क़ायम रखी। मौत के बाद बादशाहे वक़्त की ख्वाहिश होती थी के उनेह औलिया के पहलु में दफन किया जाये, शायद  उनकी नजात का ज़रिया बन जाये। हुमायूँ का मक़बरा भी हज़रात निजामुद्दीन औलिया के करीब ही में हैं। बड़ी अजीब बात है के मोगलिया दौर में औरतों को एक मक़ाम हासिल था। गुलबदन बानू ,हमीदा बेगम ,जहां आरा चंद गिनी चुनी शख्सियतों के नाम हम तक पहुँच पाए हैं। हमीदा बेगम जो हुमायूँ की बीवी थी अकबर को अकबर आज़म उसी ने बनाया। कहा जाता है हुमायूँ के मक़बरे की तामीर भी उसी ने हुमायूँ के इंतेक़ाल के ४ साल बाद पूरी कर ली। मक़बरे को देख केर बनाने वाले की दूर अंदेशी ,design ,architecture की दाद देनी पड़ती है। ४५० साल बाद भी मक़बरे की रौनक जो की तूं बरकरार है। एक्कीस्वी सदी में मक़बरे को restore करते करते कई साल लग गए। 
मक़बरे के एंट्री पर बड़ा दरवाज़ा है। उस से लग कर इसा खान जो शेर शाह सूरी का वज़ीर था उस का मज़ार है। मज़ार के सामने खबसूरत मस्जिद है जहाँ अब नमाज़ नहीं पढ़ सकते। हुमायूँ के मक़बरे की बायीं जानिब हमाम बना है। दायीं जानिब नाई का मक़बरा है। मक़बरे में हुमायूँ के अलावा कई कब्रें हैं। ईसी मक़बरे से  १८५७ की जंगे आज़ादी के  बाद बहदुर शाह ,आखरी मोघल को अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार किया था। 
आ तुझ को बताता हूँ तक़्दीरे उमम क्या है 
शमसीर व सना अव्वल चंगेज़ व रुबाब आखर 
शायरे  मशरिक़ डॉक्टर इक़बाल बताना चाहते है के क़ौमों की तक़दीर मुसलसल जद्दो जहद से बनती ही ,और क़ौमों की मौत ऐशो  इशरत और राहत तलबी से होती है। तारीख़ भी हमें यही सबक देती है। 

Humain darwaza purana kila
23 नवंबर से २७ नवंबर २०१८ के बीच दिल्ली शहर की खाक छानने का मौक़ा मिला। दिल्ली  मेट्रो से सफर आराम दे भी होगया और आप कम टाइम में लम्बा डिस्टेंस कवर कर सकते हैं। इस बार पुराना क़िला विजिट करने का चांस मिला। मुग़लियाँ सल्तनत का दूसरा बादशाह हुमायूँ ,ने पुराने किले से हकूमत की थी। उस ने लिखा है जहाँबादल, बरसात हो वहीसे  बादशह ने हकूमत करनी चाहिए। public private participation के ज़रिये ASI और आग़ा खान foundation की कोशिशों से दिल्ली के तमाम पुराने monuments को नयी ज़िन्दगी बख्शी जा रही है। पुराना किला ,भी उन में से  एक है। इसी पुराने किले से हुमायूँ ने १५३२ से १५४० तक हुकूमत की। शेर शाह सूरी ने हुमायूँ को १५४० में शिकस्त दी  और इस किले पर कब्ज़ा किया यहाँ एक ख़ूबसूरत मस्जिद (कोहना ) बनायीं। इस किले को उस ज़माने में शेर मंडल कहा जाने लगा।
यूँ वक़्त के पहिये से बंधा हूँ यारब
चाहूँ  के  न चाहूँ गर्दिश में हूँ यारब 
हिमायूं नामाँ हिमायूं की जिंदिगी के  हालात  पर लिखी किताब है। गुलबदन बेगम जो हिमायूं की बहन थी हिमायूं की मौत के बाद अकबर बादशाह ने अपनी सगी फूफी से हिमायूं के हालत ज़िन्दगी बयां करने की दरख्वास्त पर ये किताब लिखी गयी।गुलबदन बेगम के बारे में कहा जाता है की वह बहुत पढ़ी लिखी ,शायरा ,सियासत दान थी। बड़ी तफ्सील से उस ने हुमायूँ के हालत बयान किये हैं।   हिमायूं जिंदिगी भर सख्त हालत से झूंझता रहा। बाबर ने इब्राहिम लोधी को पानीपत में शिकस्त दी और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। उस वक़्क़त हुमायूँ बदख्शां (अफ़ग़ानिस्तान) का गवर्नर था। बाबर की बीमारी की खबर सुन कर बग़ैर बाबर की इजाज़त के वह दिल्ली आगया। बाबर बहुत बिगड़ा भी लेकिन बाप की मोहब्बत ग़ालिब आगयी। बाबर किसि वजह से दिल्ली की हुकूमत हुमायूँ के सुपर्द नहीं करना चाहता था। एक ऐसा वक़्त आया के  २२ साल की उम्र में ,हुमायूँ सख्त बीमार होंगया  ,बाबर ने बीमार हुमायूँ के बिस्तर के गिर्द घूम कर कर दुआ की के हुमायूँ सेहतयाब होजाये और उसे मौत आजाये। जो  दुआ दिल से निकलती  है असर रखती है हुमायूँ सेहतयाब होगया और बाबर की ३८ साल की उम्र में मौत होंगयी।  
१५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायूँ को शिकस्त दी। हुमायूँ अपनी बीवी हमीदा बानो ,चंद जांबाज़ सिपाहियों के साथ काबुल में पनाह लेना चाहता था । उस का भाई कामरान मिर्ज़ा इजाज़त नहीं देता है । पता नहीं हुमांयू किस मिटटी का बना था। किसी तरह बचता बचाता ईरान पहूँश्चाता है बड़ी फ़ौज लेकर लौटता है  ।  इसी दौरान अकबर की पैदाइश होती है। १५ साल की जद्दो जहद के बाद पहले अपने भाई कामरान मिर्ज़ा को शिकस्त दे कर उसे अँधा कर हज के लिए रावाना कर, दिल्ली पर  १५५५ में हमला करता है और शेर शाह सूरी जिस की हुकूमत के पंजे हिंदुस्तान में गड चुके थे उखाड़ फेंकता है ,पुराना  किला (शहरे पनाह ) से अपने फरमान जारी करता है। 
किस्मत तो देखिये टूटी कहाँ कमांड 
एक साल हिंदुस्तान में हुकूमत करने के बाद २७ जनवरी  १५५६ जुमे के दिन अपनी एक मंज़िला library से कुछ किताबें बग़ल में दाबे, उतर रहा था। असर की अज़ान सुनाई दी ,हुमायूँ की आदत थी अज़ान सुन  कर एह्त्रामन  बैठ जाने की , सब से ऊँची सीडी पर बैठ गया। अज़ान ख़त्म होने पर  ,उठते वक़्त अपना balance न संभाल सका ,सर के बल गिर कर मौत होगयी,कहा जाता है उस वक़्त हुमायूँ की उम्र ४७ या ५१ साल थी । अकबर १३ साल का था और उस समय काबुल में था। किसी तरह मौत की खबर को कुछ रोज़ के लिए छुपाया गया। अकबर को काबुल से बुला कर गद्दी सोपि गयी।
आज पुराने किले को नयी ज़िन्दगी तो बख्श दी गयी है लेकिन वो lovers paradise बन गया है। Holy wood की फिल्मों से ज़्याद खतरनाक scene देखने को मिलते हैं। शायद हुमायूँ शेर शाह सूरी की  रूह क़ब्र में तड़प उठती होंगी। नए ज़माने की नयी फसल को कौन रोक सकता है ?  

Bada darwaza

isa khan masjid
Humayun Tomb



रविवार, 4 नवंबर 2018

HAJI Sayed Sayeed Ahmed (Bana Bhai)

                     मरहूम  हाजी सय्यद सईद अहमद (बना भाई )
अल्फ़ाज़ व सूरत व रंग व तस्सवर के रूप में
ज़िंदा हैं लोग आज भी मरने के बावजूद 
दूल्हे मामूं की मौत पर खाला जान (अकीला ) से बातों बातों में पता चला के वह ७९ सालों की होगयी हैं और सईद अहमद  (गोरे मामूं ) उन से ४ साल छोटे ,यानि अगर आज वो हयात होते तो ७५ बरस के होजाते।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये 

  •  हाजी सईद अहमद अपने चार भाईयों ( हाजी अफ्ज़लोद्दीन ,ग़ुलाम महियोद्दीन ,मुहम्मद युसूफ ) और तीन बहनों (बिस्मिल्ला ,अकीला ,जीलानी) में सब से छोटे थे। सब की आँखों का तारा , माँ ,बाप (इकरामुद्दीन,मुमताज़ बेगम ) के नूरे नज़र थे। सईद अहमद से उन की उर्फियत बना भाई कैसे  होगयी, ये एक राज़  ही है। तमाम भाइयों में सब से छोटा कद उनिह का था। रंग सफ़ेद माईल (बेहद गोरा ) था। बोलती हुवी ऑंखें ,सर बार घनेरे बाल। नफासत पसंद थे।खुश मिज़ाजी कूट कूट कर भरी थी।  सफ़ारी  पह्नने के शौक़ीन। किसी ज़माने में wiber smith की imported Pistol  लिए घूमते थे। लइसेंस भी बनवा रखा था। double boar वाली gun भी थी ,कभी कभी शिकार भी खेल लेते थे। अच्छे   खानो का उनेह शौक़ था। खाने से ज़ियादा उन्हे  लोगों को खिलने का शौक़ था।
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब हो गये दिल में उतर गए 
 मरहूम इंजीनियर हाजी सादिक़ अहमद और गोरे मामूँ की उम्र में ज़ियादा फ़र्क़ नहीं था। दोनों दोस्तों की तरह रहते थे। किसी ज़माने में इस्माइल युसूफ कॉलेज ,मुंबई १९६४  में साथ साथ पढ़ते भी थे। सारे कॉलेज और हॉस्टल में  सादिक़ भाई की वजह से ,वो  सईद अहमद की बजाये ,गोरे मामु के नाम से जाने जाते। उन के हॉस्टल के साथी अब्दुल करीम हल्दे जो रिज़र्व बैंक से डिप्टी मैनेजर के ओहदे से रिटायर हुवे है ,आज भी उन की याद करते हैं।
मरहूम ने अजीब तबियत पायी थी जीस  से मिलते उस की उम्र के होजाते। डॉक्टर वासिफ के साथ वही कहकहे ,वही बेतकलुफ़ी ,मानो मामू भांजे न हो दोस्त हो। मुझ से भी वही क़ुरब , वही उन्सियत थी।  हमारी छुट्टियां भड़भूँजे में गुज़रती ,रेलवे स्टेशन पर चुनी भाई स्टेशन मास्टर की ड्यूटी हुवा करती। रात में भड़भूँजा के स्टेशन मास्टर की ऑफिस में वक़्त गुज़री के लिए पत्तों की बाज़ी जमती। में और गोरे मामूं पार्टनर ,डॉक्टर वासिफ और चुनी भाई एक तरफ। चुनी भाई की यही तमन्ना होती के वो किसी तरह जीत जाएँ। लेकिन वह हमेशा नाकाम ही होते क्यूंकि में और गोरे  मामू चीटिंग में मास्टर थे। हम दोनों की जानिब से वो जुमले बाज़ी होती चुनी भाई को जान छुड़ाना मुश्किल होजाता।
  गोरे मामू के साथ फिल्म देखते वक़्त उन को बच्चों की तरह जज़्बात के धारे  में बहते देखा। emotional scenes में वो आंसू बहाते ,कॉमेडी और fighting scene में जब वो ताली बजा कर दाद देते तो सारा हाल  तालियों से गूँज उठता।
जीते है शान से
मरहूम की पैदाइश नवापुर में हुवी थी। सार्वजनिक मराठी स्कूल से ११ तक पढ़ाई की। ,जोगेश्वरी के, उस ज़माने के मशहूर कॉलेज इस्माइल युसूफ से  inter  पास किया। भोपाल यूनिवर्सिटी से उर्दू में B.A की Degree हासिल की। शायद खानदान में वे पहले डिग्री मिलाने  वाले  शख्स थे. LL.B( law ) में भी admission  लिया था, लेकिन कारोबारी मसरूफियत की बिना पर complete न कर सके। उन की syllabus की किताबें मैं बड़े शौक से पढ़ता ,उमराव  जान अदा ,बांगे दरा ,दीवाने ग़ालिब।  उन के पास किताबों का खज़ाना था। मुझे पढ़ते देखते तो खुश होते। 
     मिट्टी  को सोना बनाना कोई उन से सीख सकता था। जो कारोबार किया आन ,बान ,शान से किया लकड़ों का कारोबार किया पूरे जंगल खरीद लिया करते थे। टट्टे वैगन भर के अहमदाबाद को रवाना करते। मछ्ली का कारोबार ,मानो एक छोटी मोटी industry चला रहे थे। उकाई dam की मछलियां कलकत्ता को भेजी जाती थी। जब तक मछली के टोकरे ट्रैन में लोड नहीं होजाते थे, ट्रैन भड़भूँजा स्टेशन पर रुकी रहती। उसी ज़माने में (१९७४ -१९७७) मरहूम बॉम्बे से कलकत्ता प्लेन से सफर किया करते थे।
बिछड़े सभी बारी बारी
1978 में अपनी पहली रफ़ीक़े हयात जिन का नाम रफ़ीक़ा ही था ,की मौत पर में ने उनेह टूटते देखा। लेकिन वसीम ,ज़की ,मोहसिन ,फरहत जहाँ की खातिर अपने आप को संभाला,एक नयी ज़िन्दगी की शुरवात की ,दोबारा अपना घर बसाया। दूसरी बार वसीम उर्फ़ बुल्या की नागहानी मौत ने उन्हें एक गहरे सदमे से दोचार किया।
मुझे सहल हो गयी मज़िले व हवा के रुख भी बदल गए
दूसरी सवानेह हयात (बीवी) फहीमुन्निसा ने भी उन का साथ खुलूस ,अपनाइयत ,बराबरी से दिया। उन के ग़म अपने दामन में समेट  लिए। मरहूम माशाअल्लाह कसीर उल औलाद थे। उनोह्ने  ने अल्लाह के रसूल की उस हदीस पर अमल किया,  आप ने फ़रमाया था " में उम्मत के उन लोगों पर फख्र करुंगा  जिन की औलाद ज़्यादा होंगी"।
नशीमान पर नशीमान इस तरह तामीर करता जा
अपने पसंद की चीज़ मुं मांगे दामों पर खरीद लिया करते थे। डॉक्टर वासिफ मुझे बता रहे थे सोनगढ़ में जो पारसी का बंगला उन्होने खरीदा था उस की कीमत इतनी ज़ियादा लगायी थी, के मालिके माकान ने एक पल की हिचकिचाहट के सौदा तय कर लिया था।  उस बंगले का नक़्श आज भी मेरे ज़हन में जूँ की तूँ मौजूद है। छोटे से टीले पर चार कमरों पे मुश्तमिल ,आंगन फूलों की खुशबु से महकता ,सीताफल ,अमरुद ,आम के फलों से लदे पेड़ ,पॉलिटरी भी थी ,Servant quarters अलग से बने थे। आंगन में झूले पर बैठ कर आदमी एक और दुनिया में पहुँच जाता था। गोरे  मामू को दाद दिए बिना नहीं रह सकता ,गोरी मुमानी  ने उसी  खुशअसलूबी से उस बंगले की देख रेख  भी करती थी।
मौत का एक दिन मुअय्यन है
 आखरी वक़्त तक मरहूम भड़भूँजे की दुकान करते रहे। खुशनसीब रहे, आप को हज नसीब हुवा ।  मौत भी पायी तो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के शहर अजमेर  में। सोनगढ़ के क़ब्रस्तान में आराम फरमा रहे है।
रहे नाम अल्लाह का।

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

wo kare baat to har lafz se khusbu aaye



وہ کرے بات تو ہر لفظ سے خوشبو آئے
ایسی بولی وہی بولے جسے اردو آئے
اس سے مراد وہ شخص ہیں جن سے 20  سال کے طویل عرصے سے میری  پہچان ہے- میرا اشارہ ڈاکٹر فاروق الزماں کی جانب ہے-ان سے ملاقات تو  ہمارے سگے بھائی  جناب مرحوم صادق احمد نے کروائی تھی – لیکن دیکھتے دیکھتے یہ پہچان گہرے تعلقات میں بدل گئی-ان 20 سالوں میں، میں نے ان سے کئی  معاملات  کئے ،ان  کے ساتھ سفر بھی کیا ،ہم نے کئی مشاعرے ادبی پروگرامس  میں ساتھ ساتھ شرکت کی ،مرکز فلاح کی میٹنگوں میں ،کئی شادیوں میں  بھی ساتھ رہے ہیں-ان 20 سالوں میں انہيں قریب سے دیکھنے کا موقعہ ملا -اس دوران میں نے ان کے کردار کے ہر پہلو کا جائزہ لیا -ان کے خلوص،ان کا وقار،ان کی سنجیدگی،ان کے خیالات میں ہر جگہ میانہ روی پائی -گو وہ ایک شعلہ بیان مقرر نہیں،ان کا لہجہ دھیما ہوتا ہے،ان کی تقریر نصیحت آمیز اور حقائق پر مبنی ہوتی ہے-انہيں ڈاکٹریٹ کا اعزاز ملا ،ان کا عجز و انکسار بڑھا،عمر کے ساتھ ساتھ گہرے مطالعہ کی بنا پر ان کی معلومات میں اضافہ ہوا،متا نت سنجیدگی میں بھی اضافہ ہوا- میں یقین کے ساتھ کہہ سکتا ہوں کہ، آج کے انحطاط پزیر دور میں ان جیسے کردار کے لوگ لونگ الائچی کی طرح عنقا ہوتے جا رہے میں-
انصاف تو یہ ہوتا کے ڈاکٹر فاروق الزماں تعلیم کے شعبہ سے جڑے ہوتے ،قوم کا بہت فائدہ ہوتا-انہوں نے تجارت کا پیشہ اپنایا-لیکن انہوں نے جو بھی کیا ایمانداری سے کیا اس کا حق ادا کیا-کئی سال plywoodکا کاروبار کرتے رہے- اور اب کئی سالوں سے  کنسٹر کشن میں مٹیریل سپلائے پیشہ سے وابستہ ہے-ان کے پاس جو  disciplineجو planning  جو dedication ہے بہت کم لوگوں میں پایا جاتا ہے-شاید کسی شاعر نے ایسے ہی لوگوں کےتعلق سے کہا ہے
ع ان سے ضرور ملنا سلیقے  کے لوگ ہیں
 قرآن  سے ثبوت ملتا  ہے کے "پاکیزہ مردوں کے لئے پاکیزہ عورتیں ہیں"-ڈاکٹر صاحب اور ان کی اہلیہ  مرحومہ عائشہ دونوں ماشااللہ نجیب الطرفین خاندان سے ہیں-ڈاکٹر صاحب کے والد ڈاکٹر مقصود عالم  بحیثیت ڈاکٹر میڈکل کے پیشے سے وابستہ ہیں –رکنی  بہار مدرسہ بورڈ میں ممبر رہے میں-ان کے نانا کے تعلق سے قصے سنے ہیں ،ہندوستان سے لے کر موجودہ بنگلہ دیش تک ان کے معتقدین کا سلسلہ قائم تھا-ڈاکڑ صاحب کے سسر محترم پروفیسر ظفر حبیب کئی کتابوں کے مصنف ہیں-
ع  وہ گھر بھی کوئی گھر ہے جہاں لڑکیاں نہ ہو
ڈاکٹر  فاروق الزماں صاحب نے جس وقت وطن مالوف  سےحجرت کی تھی  شفق گود میں ہوا کرتی تھی-پھر یکے بعد دیگرے صدف،تسکین ،برزین کی پیدائش  ہوئی- غزل کا جومطلع وطن میں لکھا گیا تھا  مقطع نیرول میں  آ کر لکھا گیا-تمام بچوں میں دونوں ماں باپ کے جینس،DNA آئے ہیں-سبھی بے حد ذہین واقع ہوئی ہیں-debate ہو یا program me comparing ،sport ہو یا singing competition - سبھی نے ڈھیر سارے میڈلس جیتے ہیں-اسکول کی مانیٹرس رہی ہیں-بڑے بڑے  events میں سکول و کالج کو represent کیا ہے-اور یہ تمام activities پردے کی حدود کو قائم رکھتے ہوئےکی ہے-
رات کی جھیل میں کنکر سا کوئی پھینک گیا
دائرے درد کے بننے لگے تنہائی میں
 وطن سے ہجرت کے بعد ڈاکٹر صاحب نے نیرول میں اپنے خوابوں کا  آشیانہ تعمیر کیا--ڈاکٹر صاحب  نےگھاٹکوپر میں plywood ہول سیل کی شاپ کھول رکھی تھی-بھابھی عائشہ بھی  بہترین dress designer ہوا کرتی تھیں-بچا کچھا وقت سوشل کاموں میں صرف کیا کرتی تھیں-

ع  قسمت تو دیکھئے ٹوٹی کہاں کمند
یکم جون 2009کے دن  بھابھی  ایک  ناگہانی  حادثہ میں ،ڈاکٹر صاحب سے بچھڑ گیئں-لٹے پٹے اپنے  کارواں کے ساتھ ڈاکٹر صاحب نیرول لوٹے- ابھی برزین (سب سے چھوٹی کا )سنیر کےجی میں اڈمیشن ہوا  ہی تھا-لیکن میں ڈاکٹر صاحب کے حوصلے کو داد دیتا ہوں کہ اس سانحہ کے دن کو کبھی  بھی منحوس نہیں کہا-کئی دن تک ان کے کمپیوٹر اور موبائل کے اسکرین پر مرحومہ بھابھی کی تصویر display  میں رہی بس- جب دل کے آئنہ میں تصویر یار ہو،اور آہنی ارادے ہو ں تو  کسی سہارے کی ضروت کہا ں ہوتی ہے-انہیں یہ سوچ کر تسکین ہوگئی
بھلا کسی نے کبھی رنگ وبو کو پکڑا ہے
شفق کو قید میں رکھا ہوا کو بند کیا
ہرایک لمحہ گریزاں ہے،جیسے دشمن ہے
نہ تم ملوگی نہ میں ،ہم بھی دونوں لمحے میں
وہ جاکے جو واپس کبھی نہیں آتے
انہوں نے حال کی تاریکی میں بچوں کے روشن و تابناک مستقبل کو دیکھ لیا-اکیلے اپنے اور بھابھی کے خوابوں کی تعبیر میں جٹ گئے-مجھے یقین ہے انہیں کسی مایوس شاعر کی طرح کبھی یہ نہیں کہنا پڑیگا
ع  میں زمانے میں چند خواب چھوڑ آیا تھا

रविवार, 30 सितंबर 2018

khulus ho to nikalti hain ghaib se rahen

राजेंद्र पवार चेयरमैन VRSCCL ,भीष्म पितामा COL . अनवर उमर ,डायरेक्टर सिद्दीकी ,राज ठकर ,मनोज शाह और महफ़िल में बैठे तमामं Audience आप सब को मेरी तरफ से सलाम और दिली दुआ.
  जब भी वाशी रेलवे स्टेशन को विज़िट करता हूँ दिल से दुआ निअल  पड़ती है। २००० जब वाशी स्टेशन पर office खरीदी थी ,पूरा वाशी स्टेशन काम्प्लेक्स टूटे फूटे खण्डर की शकल में था। उस वक़्त CIDCO द्वारा Maintenance आज से double हुवा करता था। लेकिन सफाई कामगार कभी देखने को नहीं मिलते थे। दीवारों पर पान की पिचकारियां ,जगह जगह शराब की खाली  बोतलें , गुटके के खाली  पैकेट्स ,सिगरेट के टुकड़ों के ढेर। सिक्योरिटी ग़ायब।  फिर ७ साल पहले VRSCCL कंपनी वाशी स्टेशन कॉम्लेक्स की Maintenance के लिए बनायीं गयी। पवार साहब ने मुझ से कहा शैख़ साहेब २५००० रूपये में कंपनी का share holder बन जाइये। मैं उन की बात पर आंख बंद कर  यक़ीन करता हूँ ,बन गया। VRSCCL बनने के प्रति चेयरमैन और चारों  Directors , अल्लाउद्दीन के जिन की तरह कामों में लग गए और ४ ,५ सालों में वाशी स्टेशन काम्प्लेक्स की काया पलट दी। हर बार एक नया addition देखने को मिलता। मुस्तअद  security ,वीडियो कॅमेरेस ,चमचमाते corridors ,दीवारें ,जगह जगह गमले ,खूबसूरत लॉन्स और हरे भरे  gardens और पिछली बार लिफ्ट में enter होने से पहले automatic doors देख कर मुझे  लगा में वाशी स्टेशन कॉम्लेक्स में नहीं बल्कि किसी ५ स्टार होटल में enter हो रहा हूँ। तब मुझे लगा में ने एक ऐसी गाय खरीद ली है जो  दिन ब दिन मोटी होती जारही है और दूध भी ज़्यादा देने लगी है।  मुझे यक़ीन है अगले साल तक lobby और corridor में carpet बिछे मिलेंगे। chairman और directors को दिल से दुआ निकलती है income tax department से करोड़ों रुपये maintenance वसूल करना आसान नहीं और आप लोगों ने वसूल कर चमत्कार कर दिखाया। CIDCO को  Lift replacement करने के लिए राज़ी कर लिया शायद ४० या ५० करोड़ का estimate है। Bravo
आप सब के लिए सेहत तंदरुस्ती लम्बी उम्र के लिए दुआएं। उम्मीद करता हूँ हर society, complex को आप जैसे काम करने वाले मिल जाएँ।
आखिर में वाशी स्टेशन कम्प्लेकस की तब्दीली पर एक शेर नज़र करता हूँ।
दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिलें
कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को 

शनिवार, 8 सितंबर 2018

khatme Qura'n


                                ختم قران
26 اگست 2018 بروز اتوار نیرول میں   12 سال 1 مہینے کے بعدایک نیئ تاریخ رقم کی گئ-قرآن کی تفسیر کا سلسلہ جو جولایئ 2006 سے مرکز فلاح نیرول میں شروع کیا گیا تھا اختتام کو پہنچا-کچھ لوگ  تاریخ کا حصہ بن جاتے ہیں –مرحوم صادق احمد،فاروق الزماں فیروز چوگلے  اورمغل صاحب  عرصہ تک تفسیر قرآن کا  سلسلہ جاری کرنے کے لیے تگ و دو میں لگے تھے-کبھی مغل صاحب کے گھر تفسیر ہوتی تو کبھی جان پہچان والوں کے کمپیوٹر کلاس میں کلاسس ختم ہونے کے بعد-جولایئ 2006 میں عالی جناب علی ایم شمسی صاحب جو مرکز فلاح کے صدر ہے ،کے ساتھ صلاح مشورے اور ان کی اجازت سے باقاعدہ تفسیر قرآن کا سلسلہ  مرکز فلاح کی آفس میں کوہ نور بلڈنگ کیے دو سرے فلور پرشروع کیا گیا-قرآن کے ایک رکوع کو لیا جاتا اور اس پر تفصیل سے گفتگو ہوتی-ابتدایئ شرکت کرنے والوں میں شمسی صاحب،بسم اللہ سر،مرحوم صادق صاحب جو پروگرام کوکنڈکٹ بھی کیا کرتے-فاروق الزماں ،یوسف نشاندار،عباس بھائی،مقیم وارثی جو اکثر ناشتہ کا بندوبست بھی کرتے-نثار صاحب جو اب الوا شفٹ ہوگئے،ظہیر صاحب،موڈک صاحب،نگر والا جو پڑوسی ہونے کے ناطے اکثر ناشتہ کرواتے-
ابتدا میں درس قرآن کی بڑی مخالفت کی گئی-‎یہاں تک کے لوگوں کو شریک ہونے سے روکا گیا-چیلنج کیا گیا تفسیر کا سلسلہ دو ماہ سے زیادہ نہیں چل سکتا-فاروق الزماں ، مرحوم صادق صاحب کے حوصلے بلند تھے-بقول اقبال
بادئ تند مخالف سے نہ گھبرا اے عقاب
یہ تو چلتی ہے تجھے اونچا اڑانے کے لئے
تفسیر قرآن کو بند کرنے کے لئے ایڑی چوٹی کا زرو لگایا گیا-تفسیر میں عالم کی شرکت نہ ہونے پر اعتراضات کئے گئے-حسن ندوی صاحب کی شمولیت کے بعد بھی یہ سلسلہ تھما نہیں-بقول شاعر "یہ بہانے ہیں دل دکھانے کے"
یہاں تک کہا گیا کے یہ تفسیر گمراہی کا باعث ہو سکتی ہے-12 سال سے تفسیر کا سلسلہ جاری ہے الحمدوللہ کوئی گمراہ نہیں ہوا-تفسیر میں شامل ہو نے والوں کی تعداد میں اضافہ ہوتا رہا،لوگ فیض یاب ہوتے رہے- "لوگ آتے گئے اور کارواں بڑھتا گیا" سال میں صرف ایکبار عید کی وجہ سے تفسیر نہیں ہوپائی-یہ اللہ کا کرم ہی تو ہے-
قرآن سے سائنس اور حالات حاضرہ کے مسائل کا حل مرحوم صادق بھئی اور فاروق الزماں کی سیر آمیز گفتگو سے حاصل ہوتا-ڈاکٹر شریف  کا ذکرواذکار اور روحانیت  کی طرف متوجہ کروانا-نوجوان عرفات نے قرآن مجید کی تشریح الگ انداز میں کر، ہم سب کو چونکا دیا-جناب دوھوکے صاحب نے ایک ‏غواص کی طرح قرآن کے روٹ ورڈس تک ہماری  شناسائی کروائی-عباسی صاحب،سید سرور علی،پروفیسر عرفان شاہد،ذید پٹیل،ڈاکٹر ظہیر صاحب سب سے ہم نے بہت کچھ سیکھا-شہزادخان صاحب کا تفسیر کا ایک انوکھا انداز دیکھا،تفسیر کے ساتھ ساتھ چھوٹے چھوٹے چٹکلے،اپنے  ذاتی تجربات سنا کر محفل کو ذعفران زار کرنے کا فن انہیں ہی آتا ہے-مفتی کولپیکر کو بھی سنا-اشرف بھائی نے بھی کافی محنت کر تفسیر کے فن پر کافی معلومات جمع کرلی-2 منٹ کے سید صاحب کا ذکر کرنا نہ بھولونگا-کمال حسن ندوی صاحب کی شرکت سے تفسیر  میں چار چاند لگ کئے-
تفسیر کی محفلوں میں شریک ہوکر لگا کے زندگی کا ایک طویل عرصہ ہم نے لا حاصل باتوں میں ضائع کر دیا-بقول شاعر
زندگی سے یہی گلا ہے مجھے
تو بہت دیر سے ملا ہے مجھے
پچھلے 7 سالوں سے جناب نصرواللہ قاسم نے جس خوش اسلوبی سے اس درس قرآن کو اپنے دولت کدے پر منعقد کرواکے اس کا حق بھی ادا کر دیا-اللہ انہیں جزائے خیر دے،ان کے رزق میں برکت ہو-ان کے گھر میں قرآن پڑھنے سے برکتوں کا نزول ہو-حنا،عمار،انصار  پورے خاندان نے ، جس جوش خروش سے ان نیک کاموں میں شرکت کی قابل ستائش ہے-نیت کا اثر درس قرآن کی محفلوں میں نئے نئے لوگوں کی شرکت ،لوگوں کا ساتھ، قرآن کلاسس،کی صورت میں ظاہر ہو رہا ہے-اس درس کی روشنی پورے نیرول میں پھیل رہی ہے-جامع مسجد میں بھی پچھلے ایک برس سے فجر کے بعد تفسیر کا سلسلہ جاری ساری ہے-سنیچر کے روز جناب مشتاق پٹیل کے گھر تفسیر کا پروگرام ہوتا ہے-سیکٹر 23 ،نیرول ویسٹ میں بھی کئی عرصہ تک آصف بھائی اور ان کے گروپ کی کوششوں سے تفسیر قرآن ہوتی رہی-جو بھی ان کوششوں میں لگا ہے اللہ انہیں جزائے خیر عطا کرے-نیرول کی تاریخ جب بھی لکھی جائینگی ان کوششوں کا ذکر سنہری حرفوں میں لکھا جایئنگا-اور اللہ کے دربار میں اجر عظیم کے مستحق ہونگے-مرحوم صادق بھائی ،فاروق الزماں،قاسم بھائی کی کوششوں کو مد نظر رکھتے ،شعر نظر کر رہا ہوں
دعا دیتی ہیں راہیں آج تک مجھ آبلہ پا کو
میرے پیروں کی گلگاری بیابان سے چمن تک ہے
بقول فاروق الزماں قرآن کبھی ختم نہیں ہوتا،اگلے ہفتہ سےانشااللہ، اسی مقام پر تفسیر کا سلسلہ پھر نئے سرے سے شروع ہونگا-نوجوانان نیرول سے گزارش ہے کے اس میں بڑھ چڑھ کر حصہ لے-

शनिवार, 1 सितंबर 2018

kya zamane me panpne ki yahin baten hain


  
کیا زمانے میں پنپنے کی یہی باتیں ہیں
کیرالا میں سیلاب کی تباہی کے بعد تصویر کے دو رخ ہمارے سامنے آئے ہیں-ہزاروں خدمت خلق سے معمور  والنٹیرس ہندوستان بھر سے (کیئ لوگ کشمیر سے بھی آئے)اور ریلیف کیمپس میں اپنی بے لوث خدمات انجام دی-مقامی لوگوں نےاونم تہوار کے لئے پس انداز رقم سیلاب ذدگان کے لئے وقف کر دی-ایک آٹھ سالہ غریب لڑکی کا جذبہ کے اس نے اپنی چار سالہ بچت جو سايئکل خریدنے کے لئے،  عرق ریزی سے جمع  کر رکھی تھی چیف منسٹر فنڈ میں دان کر دی-جیسوال  کے-پی مچھوارے نے خدمت خلق کی انتہا کر دی،عورتوں،ضعیفوں۔بچوں کو بوٹ میں سوار کرنے کے لئے اپنی پیٹھ کو پلیٹ فارم بنوا دیا-سنتی کوپا بستی میں لوگوں نے سیلاب زدگان کے لئے مسجد،چرچ،مندرکے دروازے ،بلا تفریق کھول دئے- تصویر کا دوسرا  کریہہ رخ ،کچھ بے انصاف ظالم  شرپسندوں نے
"وہ کرے بات تو ہر لفظ سے بدبو آئے "کے مصداق ٹویٹر،سوشل میڈیا پر ایک طوفان بدتمیزی برپا کر رکھا ہے-کچھ کا کہنا ہے کیرالہ کے عیسائی اور مسلمانوں پر بیف کھانے کی وجہ سے  یہ عذاب آیا ہے-کوئی دور کی کوڑی کھیچ لایا ہے کہ "سابر ملا مندر میں عورتوں کو کورٹ سے داخلہ کی اجازت پر دیوي کا شراپ آیا ہے”-ایک نے کہا صرف ہندوں تنظیموں کو عطیات دئے جائے تاکے مدد ہندو وں تک پہنچے-کیونکے مسلمانوں اور عیسائیوں کو مدد کی ضرورت  نہیں، ان کے خاندان والے بیرونی ممالک میں کام کرتے میں-کرناٹک کے بی-جے-پی رکن باسن گوڑا نے زہر فشانی کی انتہا کردی-"یہ سیلاب کیرالہ میں گائے کاٹنے کی وجہ سے آیاہے"-
نفرتوں کے بیج بونے والے،زہر اگلنے والے چاہتے میں کہ سیلاب زدگان ،مصیبت ذدہ کیرالہ والے جو ہندوستان کے شہری ہیں، تک مدد نہ پہنچ سکےلیکن امداد پہنچانے والوں نے ثابت کر دیا کے انسانیت اب بھی زندہ ہے،عام لوگوں کا جذبہ خدمت خلق ابھی مرا نہیں-
وہ لمحہ زندگی بھر کی عبادت سے بھی پیارا ہے  - جوایک انسان نے انسان کی خدمت میں گزارا ہے

                                                         क्या ज़माने  में पनपने की यहीं बातें हैं
केरला में सैलाब (फ्लड) की तबाही के बाद तस्वीर के दो रुख दिखाई पड़े। इंसानियत का दर्द रखने वाले हज़ारों वॉलन्टर्स कश्मीर से कन्या कुमारी तक रिलीफ कैम्प्स में खिदमत में जुड़ गए। लोगों ने ओनम तहवार की क़ुरबानी दे कर सैलाब से पीड़ित लोगों को जमा पैसे दान कर दिए। एक आठ साल की लड़की ने ४ साल तक जमा किया पैसे जो उसने साइकिल खरीदने के लिए जमा किया थे , सैलाब पीड़ितों के लिए दान कर दिया। जैस्वाल के  पी मछवारे ने अपनी पीठ का उपयोग कर लोगों को बोट में सवार किया। मंदिर ,मस्जिद ,चर्च के दरवाज़ें सैलाब से पीड़ित लोगों के लिए खोल दिए गए।
कुछ लोग ऐसे भी थे जो इन पीड़ित लोगों के मुसीबत के समय ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया। ट्विटर और सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने में व्यस्त रहे "केरला में मुसलमानो और ईसाईयों के बीफ खाने पर भगवन का श्राप आया",  केवल हिन्दूओ को मदद पहुचायी जाएँ। बी जे पी के बासन गौड़ा का ये मानना था के "केरला में सैलाब गाय काटने के कारण  आया।
नफरतों के बीज बोने वाले ज़हर उगलने वाले चाहतें है की सैलाब से पीड़ित केरला वाले जो भारत के वासी हैं उन तक इस मुसीबत  की घडी मदद न पहुंचे लेकिन लोगों ने साबित कर दिया की इंसानियत अब भी ज़िंदा है।
वो लम्हा ज़िन्दगी भर की इबादत से भी प्यारा है
जो एक इंसान ने इंसान की खिदमत में गुज़ारा है। 

रविवार, 15 जुलाई 2018

apne sar leli balayen america ki


                      
                          پبلک ہیلتھ فاونڈیشن آف انڈیا،لنڈن اسکول آف ہایجن اینڈ ٹروپکل میڈسن،یونیورسٹی آف واشنگٹن اسکول آف میڈسن کی کئی سالوں کی تحقیقا ت کے بعد حیرت انگیز نتائج سامنے آئے ہیں-پچھلے 15 سالوں میں امریکہ میں ہارٹ اٹیک سے اموات کے معاملوں میں ٪ 41 کمی آئی ہے اسی دوران ہندوستان میں ہارٹ اٹیک سے مرنے والوں کی تعداد میں٪ 34 اضافہ ہوا ہے- امریکہ میں کئی سگریٹ کمپنیوں کو سگریٹ پینے سےا موات واقع ہونے پر  اربوں ڈالرس کا ہرجانہ ادا کرنا پڑا- حکومت کی جانب سے عام لوگوں میں لنگ کینسر کے تعلق سے awareness لایا گیا –اسی وجہ سے  وہاںسگریٹ پینے والوں کی تعداد میں کمی واقع ہوئی –ہندوستان میں سگریٹ پینے والوں کی تعداد تو بڑی ہے،ساتھ ساتھ گٹکا ،تنباکو کھانے والوں کی تعداد میں بے انتہا  اضافہ ہوا ہے-شاید یہی وجہ ہے کے لنگ کینسر کا مرض ہندوستان میں تیزی سے پھیلا ہے-امریکہ میں لوگوں نے فاسٹ فوڈ کھانے پر کنٹرول کیا ہے یہی وجہ ہے کے وہاں ہائی کلسٹرول اور بی-پی کے مریضوں کی تعداد میں کمی واقع ہوئی ہے اسی وجہ ہے وہاں ہارٹ اٹیک کے کیسس میں کمی ہوئی ہے-
ہندوستان میں  فاسٹ فوڈ،آلو کے چپس،تلی ہوئی اور مصالحہ دار کھانوں کی بھر مار ہے-ملٹی نیشنل کمپنیاں ہر گلی ہر نکڑ پر دھڑے سے فاسٹ فوڈ ، پیزا ،برگر،چپس اور کولا کے آوٹ لیٹس کھولے جارہے ہیں-اور منافع کمائے جا رہے ہیں-حکومت بھی آنکھ بند کئے ہے انہیں ٹیکس کی صورت میں اربوں روپیئے مل رہے ہیں-
اپنے سر لے لی بلایئں امریکہ کی-


सोमवार, 18 जून 2018

Eid khushyon ka tehwar

१६ जून २०१८ पुरे हिंदुस्तान में कुछ मक़ामात को छोड़  ईद हंसी ख़ुशी मनायि गयी। रमजान के शुरुवात में मुंबई वालों ने एक दिन देरी से रोज़े रखें थे। पुरे हिंदुस्तान  में लोगों के ३० मुक़ामिल रोज़े हुए जबकि मुंबई वालों के २९। हिंदुस्तान भर में तमाम शहरों  में हलाल कमिटियां बानी हैं। बड़ा confusion होता है। काश के चाँद का एलान centralize sysstem के ज़रिये किया जाये। आज साइंस ने इतनी तर्रकी कर है सदियों बाद के चाँद गिरहन की सही तारीख मालूम है। आज नमाज़ों के वक़्त  का अंदाज़ा लगाना मिनटों और सेकंडों में किया जाता है। हर मस्जिद में indicators लगे है। ज़ुहर की नमाज़ ०१३० है तो ०१२९ के बाद ६० सेकंड पुरे होते ही जमात शुरू होजाती है। १४०० साल पहले सूरज की position देख कर नमाज़ का time decide किया जाता था। हमारे उलमा हर चीज़ को अपनाते हैं मगर ठोंकरें खाने के बाद। फोटोग्राफी जायज़ होगयी ,laudispeaker  पर अज़ान ज़ायज़ होगयी। वक़्त करीब है चाँद भी scientific तरीके से देखा  जाएंगा। 

रविवार, 10 जून 2018

appreciation letter bismilla sir


                                   بسم اللہ الرحمان الرحیم
عزت مآب جناب بسم اللہ سر
اسلام علیکم
نیئ ممبئ کا سب سے معتبر اور مستند ادارہ 20 سال پہلے قائم ہوا –آپ اس کے بانی ممبران میں شامل ہے-عمر کے تقاظے ،صحت  کی  خرابی  کی بنا پر آپ اس مرکز فلاح نیرول کی مجلس منتظمہ میں شامل نہیں ہیں ہمیں اس کا نہایت افسوس ہے- آپ مرکز فلاح کی عمارت کی بنیادی اینٹوں میں شمار کئے جاتے ہو-ادارے کی خوش قسمتی ہے کے آّ پ کئی سالوں تک مرکز فلاح کے فعال جنرل سکریٹری رہے ہو-
  آپ ہی نے کئی سالوں تک مرکز کے 10 وی اور 12 وی کے غریب بچوں کے لئے فری کوچنگ کلاسس کا نظم چلایا تھا-غریب عورتوں کے لئے سلائی کلاسس بھی آپ کے زیر اہتمام شروع کی گئی تھی-
  آپ کی خواہش ہے کے مرکز فلاح نیرول کی باگ ڈور young blood  کے سپرد کر دی جائے ،ہم آپ کی اس خواہش کا احترام  کرتے  ہے ،آپ کے جزبے کی قدر کرتے ہے-لیکن امید کرتے ہے  آپ اپنے قیمتی مشوروں سے مرکز فلاح کو نوازتے رہونگے-
ہم سب آپ کی  صحت اور تندرستی کے لئے دعاگو ہیں-
صدر و اراکین  مرکز فلاح  نیرول



appreciation for Abbas bhai


                                   بسم اللہ الرحمان الرحیم
محترم المقام  سید محمد عباس صاحب
اسلام علیکم
نیئ ممبئ کا سب سے معتبر اور مستند ادارہ 20 سال پہلے قائم ہوا –آپ اس کے بانی ممبران میں شامل ہے-عمر کے تقاظے ،صحت اور مصروفیت کی بنا پر آپ اس مرکز فلاح نیرول کی مجلس منتظمہ میں شامل نہیں ہیں ہمیں اس کا نہایت افسوس ہے-تاہم آپ  گزشتہ 20 سال سے بے مثال کامیاب سر گرم رکن  رہے ہیں-ہم آپ کے جزبہ کو سلام کرتے ہے-
  Identified families کی لسٹ بنانے میں آپ نے  ایک زمانے میں  active رول ادا کیا تھا جو ایک سنگ میل کی حیثیت رکھتا ہے-مرکز فلاح نیرول کی مدد  سے کئی  سوغریب طلبا  تعلیم حاصل کر کے  بڑے بڑے عہدوں پر تعنیت ہو کر کام کر رہے ہیں ،خاندان سماج کا نام روشن کر رہے ہیں ،اپنے خاندان کی کفالت کر رہے ہیں ،مرکز  فلاح کی مدد کر رہے ہیں- یہ آپ کے لئے دنیا آخرت کی فلاح اور نجات کا انشا اللہ باعث ہوگا-جب بھی مرکز فلاح نیرول کی تاریخ لکھی جائیگی آپ کا نام سنہری حرفوں میں  لکھا جائینگا-
مرکز فلاح نیرول کی میٹنگوں جلسوں میں آپ کی حاضری اور جلسوں میں آپ کی شرکت اراکین مرکز کے حوصلوں کی بلندی عطا کریگی-آپ کی دعائیں مرکز کے بے مثال فلاحی کاموں کو مزید بلندیوں سے ہم کنار کرینگی-
آپ کی صحت کے لئے دعائیں ،نیک خواحشا ت-

nishadar speech

markaz-e-falah nerul की बुनियाद इस जज़्बे से राखी गयी थी के नेरुल node का कोई ग़रीब बच्चा ग़रीबी की वजह से तालीम से महरूम न रह जाये। समाज में भाई चारगी बढे। आज मरकज़-इ-फलाह नेरुल के पेड़ को लग़  कर २० साल का लम्बा अरसा होगया है। और वो पेड़ मीठे मीठे फल देने लगा है। हमारे volunteers ने proper survey करके २०० families को identify किया था। उन से दो identity proof जैसे ration card /adhar , और family income verify की जाती है। ऐसे खानदान के बच्चों के लिए  1st से post graduation तक मरकज़ के volunteers खुद personally जा कर स्कूलों और colleges में cheque से साल भर की फी भरते हैं।
  आप को जान कर ख़ुशी होंगी इस साल १० वी में उज़ैर एक ग़रीब घर के बच्चे ने  ८८% मार्क्स मिला कर मरकज़-इ-फलाह का नाम रोशन किया है। मरकज़े-इ-फलाह की मदद से बासित  टोले ने M.B.A sports mana gement की degree D.Y.patil college से हासिल की थी। पिछले साल यही  बासित "he was the member of team who successfully organised under 17 international foot ball games " मरकज़-इ-फलाह के लिए ये बड़े फखर की बात है। मरकज़-इ-फलाह इस ऊसूल पे काम करता है।
"give a man fish and you feed him a day ,teach a man to fish and  you feed him for life "
मरकज़-इ-फलाह गरीब औरतों  के लिये बिना किस भेद भाव के ,पिछले  २० साल से सिलाई क्लास  successfully conduct करता आ रहा  है ,अब तक ३५० -४०० औरतों ने  डिप्लोमा हासिल किया है। कई ने  सिलाई सीखने  के बाद खुद का टेलरिंग का कारोबार भी शुरू कर दिया है। this is big achievement अल्हम्दोलीलाह।
markaz dignostic center  ने well known company thyrocare के साथ tie up किया है, market rate से आधे दामों में हमारी lab में  पाटोलॉजिकल टेस्ट conduct किये जाते हैं।आप सब से रिक्वेस्ट है के इस opportunity ज़्यादा से ज़्यदा फायदा उठायें।
मरकज़-इ-फलाह  की जानिब से १० विधवा (widows ) को हर महीने पेंशन भी दी जाती है।
मार्का-इ-फलाह डिगनोस्टिक सेंटर की तरफ से medical camp organise किये जाते हैं ,कई १०० लोगों ने इस से फायदा भी उठाया है। स्कूली बच्चों के लिए मरकज़  की जानिब से councelling प्रोग्राम भी organise किये जातें हैं।
आप  सब से रिक्वेस्ट हैं के मरकज़ के इन फलाही कामों में बाद चढ़ कर हिस्सा लें। आप सब से दुआ की दरख्वास्त है।
ईद की पेशगी मुबारकबाद। 

markaz iftar

रमजान के महीने और रोज़ो के लिए आप सब को शुभ कामनायें। मेरी आप लोगों से गुज़ारिश  है।
ज़िन्दगी को रमजान जैसा  बनालो
तो ईद मौत जैसी होंगी
यहाँ आने  से पहले इस शहर नवी मुंबई की एकता ,मोहबत ,अमन की खुशबु मुझ तक बहुत पहले पहुँच गयी थी। आज स्टेज पर एक साथ बैठे अलग अलग धर्म गुरु ,को देख कर यक़ीन आगया के इस शहर को जैसा सुना था उस से बढ़ का पाया । किसी शायर ने ईसि मौके के लिए क्या खूब कहा है।
चमन में इख़्तेलाफ़े (difference ) रंग व बू से बात बनती है
हमी हम है तो क्या हम हैं ,तुम्ही तुम हो, तो क्या तुम हो
यानि बाग (garden ) में एक ही रंग colour के फूल खिले हो तो बात नहीं बनती। बात उस् वक़्त बनती है जब हर रंग ,हर खुशबु के फूल बाग़ में खिले हो। यही बात हिंदुस्तान के लिए कही  जा सकती है जहाँ , सब ज़ात ,धर्म ,मज़हब के लोग एक साथ प्यार मोहब्बत से रहते हैं ।
  मरकज़-इ-फलाह नेरुल और नेरुल पुलिस स्टेशन के माध्यम से २० वर्षों से कामयाबी के साथ इफ्तार के इस  प्रोग्राम को आयोजित किया जाता है ,जान कर खुशी  हुयी। मोहबत ,अमन ,भाई चारगी का ये वातावरण हमेशा बना रहे ईश्वर से यही प्रार्थना है।
आप सब को ईद की एडवांस में मुबरकबाद इस दुआ के साथ
ये दुआ मांगते है हम ईद के दिन
बाक़ी न रहे आप का कोई ग़म ईद के दिन
आप के आँगन में उतरे हर दिन ,ईद की तरह
और महकता रहे फूलों से चमन ईद के दिन 

बुधवार, 30 मई 2018

Is bulandi se agar koi girade mujh ko



ऊपर की तस्वीर मौलाना रिजवान की २ साल पुरानी है। आप साइकिल पर  घर घर जाकर बच्चों को को अरबी पढ़ाया करते थे। आप के भी ४ बचें हैं। बड़ा बच्चा आलिम  बन रहा है। तीन बच्चे स्कूल पढ़ रहे है। बड़ी बची ने २ साल पहले ८४% मार्क्स मिला कर १० वी पास की थी। तीनो बचे पड़ने में हुशियार है। जैसे तैसे घर की दाल रोटी चल रही थी। मौलाना की वक़्त गुज़री होजाती थी।कभी किसी से मदद नहीं मांगी।
किस्मत तो देखिये टूटी कहाँ कमन्द
दो साल पहले रमजान से  कुछ दिन पहले मौलान को दांत का दर्द होने लगा। dentist को शक हुवा biospsy के लिए कहा। थ्रोट कैंसर detect हुवा। एक के बाद एक दो operaions, chemotherapy  न बोल सकते है तो पढ़ाएंगे कैसे ?,मौलाना को टूट कर रख दिया। मौलाना को सब से बड़ा दुःख था उनेह operation के लिए दाढ़ी मुंडवानी  पड़ी।
मौलाना की ताज़ा तस्वीर 

 लोग उनेह पहचानते नहीं।वज़न २० से २५ किलो कम होगया है ,सुख कर कांटा होगये है। मौलाना  सलाम करके अपनी पहचान बताते है "मैं मौलना रिज़वान"।  मौका मिलते ही आधी दाढ़ी बढ़वा ली ,आधी दाढ़ी chemotherapy की treatment के कारण  बाल नहीं उग पाते। मजबूरी है।
 काश हम ज़क़ात का central system (इज्तेमाई निज़ाम ) बना पाते। समाज की ६० से ८०% ज़कात मदरसे वाले लेजाते है जहाँ सिर्फ क़ौम के ४% बच्चे तालीम हासिल कर रहे है। अफ़सोस चंदा जमा करने वालों की न  कोई पहचान होती है  न सबूत ,न बहुत से मदरसों में audit होता है। क़ौम के  विधवा ,बीमार ,ज़रूरतमंद लोगों की मदद कौन करे ?
मौलान रिज़वान की मदद के लिए उन की बैंक details नीचे provide की गयी है। मौलान की मदद करके ज़कात तो इंशाल्लाह अदा हो जाएँगी ,ये आप लोगों के हक़ में सवाब जरिया भी होंगा।


मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

خواب تھا جو کچھ کے دیکھا ،جو سنا افسانہ تھا


                                                                                                                                                                                                                وادی میں گونجتی ہوئی خاموشیاں سنے
سیریا میں زندگی کے  7سالوں کا  طویل عرصہ گزرا ہے-وہاں کے ریگستان، دھول بھری آندھی، بگولوں سے بھرا دشت بھولے نہیں بھولتا-سوڈان میں 11 سالوں کا طویل  وقفہ –خوبصورت جنگلات،رنگ برنگی پرندے، وحشی  جانور،گھاس بھرے میدانوں کے درمیان گزرا ،قدرت کو اتنے قریب سے دیکھنے کا موقعہ شاید پھر مل سکے-لیکن کشمیر کا حسن لاجواب ہے-بیان کرنے کے لئے الفاظ نہیں ملتے-
    کشمیر دیکھنے کا خواب جو فلموں، اور وہاں کی خوبصورت پینٹنگس دیکھنے کے بعد پیدا ہوا تھا،کرشن چندر کے ناولوں نے اسے اور ہوا دی-   4 اپریل 2018 کو  ہماری  indigo flightسری نگر ایر پورٹ  کے چکر کاٹنا شروع کی ،بلندی سے برف کی چوٹیاں نظر آگئی-تب  خوابوں کی تعبیر  ملنے کا یقین ہو گیا-

                                                                         
          ہمارا پہلا پڑاو‌‍‏‎ پہلگام تھا –سری نگر سے 2 گھنٹے سفر کی دوری پر –مقامی مشاق ڈرا‏‏ئیور ،INNOVA  کی آرام دہ  سواری،باہرسخت سردی تھی،گاڑی کا ہیٹر آن تھا –ہایئوے کے دونوں جانب مسحور کردینے والے مناظر تھے-روانی سے بہتی ندیاں،چشمے،میدانوں میں پھیلے حد نظر تک  سرسوں کےپیلے پیلے کھیت، مانو کسی نے میدانوں میں پیلی پیلی چادریں بچھا دی ہو-سیب کے پیڑوں پر پھولوں کی بہار تھی-اخروٹ،چیڑ،دیودار ،چنار کے لمبے لمبے درخت ،مانو ہاتھ اٹھائے دعا میں مصروف،زعفران کے کھیت،قدرت اپنے خزانے لٹانے میں مصروف،ہم  پوری توجہ سے ان نظاروں کو ذہن کے قرطاس پر نقش کرتے چلے گئے-
لے سانس بھی آہستہ کی نازک ہے بہت کام
آفاق کی اس کار گہہ شیشہ گری کا


sarsoo fields


اننت ناگ قصبہ سے کار گزری،ندی کے کنارے بسی اس خوبصورت  بستی میں   کرکٹ بیٹ  بنانے کی بےشمارفیکٹریاں دکھائی پڑی-ڈرائی فروٹ اور ذعفران کی دکانیں ،واجب داموں پر دستیاب پائی-اس خوش حال بستی میں کئی انٹرنیشنل اسکول بھی دکھائی دئے-
 2 گھنٹے بعد شام 6 بجے پہلگام پہچتے ہی،ہوٹل ہیون کی تین منزلہ عمارت پر نظر پڑتے ہی دن بھرکی تھکاوٹ دور ہوگئی-شفاف بہتی ندی کے کنارے ،لکڑی سے بنی تین منزلہ عمارت پریوں کا محل دکھائی دی-
یوتل هوان




پہلگام میں بیتاب ویلی کا حسن دیکھنے لائق ہے-برف سے ڈھکے پہاڑوں کے بیچوں بیچ حد نظر تک ہری ہری لان،لمبے لمبے درختوں سے گھری وادی،دامن میں بہتی ندی –بیتاب فلم کی شوٹنگ یہی ہوئی تھی-امرتا سنگھ،سنی دیول کا حسن ماند پڑ گیا ہے،بیتاب ویلی پر دن بدن نکھار آتا محسوس ہوتا ہے-








پہلگام ہی میں چندن واڑی بھی ہے جہاں سے   امرنات  یاترا شروع ہوتی ہے-گھوڑوں پر سوار ہو کر یا پیدل یہاں سے 2 دن کا سفر کرکے امرناتھ پہنچا جاسکتا ہے-سونے سونے پڑے کیمپ  یاترا کے دوران زندگی سے  بھر جاتے ہیں-اپریل کے مہینے چارون طرف برف تهی -
 
چندان وادی


2 روز بعد  6 اپریل –جمعہ کا دن تھا صبح 9 بجے گل مرگ کے لئے روانگی ہوئی-پھر وہی نظارے ،ندیاں،چشمے،وادیاں-3 گھنٹے کے  خوبصورت سفر کے بعد  گل مرگ پہنچے-قیام تھا ہوٹل خلیل میں-گل مرگ چھوٹا سا خوبصورت دیہات ہے-کہا جاتا ہے موسم بہار میں اس کی وادیاں  پھولوں سے بھر جاتی ہے-دوپہر چھوٹی سی خوبصورت مسجد کے صحن میں لان پر نماز ادا کی-روح پر سرور آگیا وجد آگیا -دوپہر گنڈولے (روپ وے) میں بیٹھ کر برف کی چوٹی پر پہنچ کر پہاڑوں کا پر لطف نظارہ کیا –پہاڑوں کی دوسری جانب پاکستانی حد شروع ہوتی ہے
لگاتار بارش برس ر ہی تھی درجہ حرارت 1 ڈگری تک پہنچ کیا تھا-انر ،گلوس،جیکٹ پہننے کے باوجود جسم کی کپکپاہٹ رکنے کا نام نہیں لیتی تھی-
گلمرگ
گلمرگ


7 مارچ سنیچر صبح 9 بجے سری نگر کے لئے روانگی ہوئی-30-12 بجے حضرت بل کی خوبصورت مسجد دیکھی-سنگ مرمر سے بنی گنبد سارے شہر سے دکھائی  پڑتی ہے-یہاں پر ایک صندوقچے میں اللہ کے رسول کا موئے مبارک صدیوں سے رکھا ہے-خاص موقعوں پر زیارت ہوتی ہے-
  


دعا بہار کی مانگی تو اتنے پھول کھلے
اسی روزشام میں Tulip Garden کی نمائش میں شرکت کا موقع ملا-350 لاکھ مختلف رنگوں کے Tulipہالینڈ سے امپورٹ کئے گئے ہیں-کئی ہیکٹر پر پھیلی  یہ وادی جنت کا نظارہ پیش کرتی ہے- ہر سال صرف ایک مہینہ نمائش ہوتی ہے  25 مارچ سے 24 اپریل تک-ہم خوش قسمت رہے  نمائش دیکھنے کا شرف حاصل ہوا- 


جہانگیر نے جنت نشان کشمیر میں ان مٹ نشان چھوڑے ہیں جنہیں دیکھے بغیر کشمیر کی سیر مکمل نہیں ہوتی-چشم شاہی ،خوبصورت باغوں کے بیچ ٹھنڈے میٹھے پانی کا چشمہ جو پہاڑوں کے بیچ سے صدیوں سے بہہ رہا ہے-آج کے موڈرن دور میں ہزاروں فلٹر لگا کر اس کوالیٹی کا پانی دستیاب ہو سکے-سیراب ہو کر پانی پی کر بوٹلوں میں ساتھ لے لیا -
چشم شاهی

نشاط باغ،شالیمار باغ مغلوں کے زمانے کی یادگاریں ہیں-فواریں،بہہتے ہوئے چشمیں،چھولوں کی کیاریاں،بیچ بیچ میں آبشار بنے ہوئے ہیں-جنت کا نمونہ  پیش کرتے ہوئے-دیکھنے سے دل نہیں بھرتا-
شالیمار باغ

آخری دن 9 اپریل 2018 ہاوس بوٹ میں رات گزارنے کا موقعہ ملا-شکارے سے ہاوس بوٹ تک پہہنچایا جاتا ہے- ہاوس بوٹ بالکونی،چھوٹا ہال،بیڈروم ،باتھ روم ،ٹب  پر مشتمل ڈل جھیل پر تیرتا  خوبصورت مکان ہوتا ہے-بالکونی میں بیٹھ کر جھیل کا نظارہ کیا جاسکتا ہے-چھوٹے چھوٹے ہاوس بوٹ چلتی پھرتی دکانیں، سامنے سے گزرتے ہیں-سبزی،کباب،کپڑے ،جیولری  مول بھاو کرکے خریدوفروخت ہوتی ہے-
شکارا

مجھ سے بھی اڑتے ہوئے لمحے نہ پکڑے جاسکے
میں بھی دنیا کی طرح حالات کے چکر میں ہوں
11 اپریل 2018 ممبئی لوٹنے کا وقت آگیا-ہم بڑے شہروں والے گھروں میں Bonzai کے  پودے اگاکر اپنے آپ کوجنگل میں بیٹھا محسوس کرتے ہیں-چھوٹی چھوٹی پینٹنگس گھر میں لٹکا کر خوش ہوجاتے ہیں- کبھی کشمیر کے حسن کو دیکھو
دھوپ میں نکلوں گھٹائوں میں نہا کر دیکھو
زندگی کیا ہے کتابوں سے نکل کر دیکھو
ندی کی روانی کیا کہتی ہے-جھرنے کا ٹھنڈہ میٹھا پانی کیسا ہوتا ہے-برف سے ڈھکی چوٹیاں وادیاں خموشی کی زبان میں کیا کہتی ہے-چیڑ،دیودار،چنار کے درخت کس طرح ہاتھ اٹھائیں دعائو ں میں مصروف ہے- ہم موبائیل ،انٹرنیٹ،سوشل میڈیا پر وقت برباد کرنے والے کیا جانے-
کشمیر سے لوٹتے ہوئے دل غم زدہ تھا –لیکن وہاں کی  خوبصورت یادیں ذہن میں ہمیشہ محفوظ رہیگی-پھر کبھی برف گر رہی ہوگی،سیب کے پیڑ پھلوں سے لد چکے ہونگے،چنار پر بہار ہونگی  کشمیر لوٹینگے-
تمام اتھل پتھل کے باوجود کشمیر سیاحوں کے لئے safe  ہے-
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