मंगलवार, 27 जून 2017

musafir hoon yaron



                               مسافر ہوں یاروں
کچھ اس طرح سے مجھے حادثات مہیب ملتے ہیں
اتفاقا" کسے روراہے پر ،جیسے بچھڑے رقیب ملتے ہیں
غلطی ہویئ رقیب کی بجائے اوصاف عثمانی لکھنا چاہئے تھا-درمیانہ قد ،مجھے 22 سال کی عمر کے بعد ملے اس لئے قد تبدیل تو نہیں ہوا،کچھڑی بال جن میں اب جگہ جگہ چاندی چمکنے لگی ہے-آنکھوں پر قیمتی چشمہ لگائے رکھتے ہے-موبائیل برسوں سے ایک ہی استمعال میں ہیں، اسکرین پر خراشیں  پڑ چکی ہیں،شاید تحفہ میں گرل فرینڈ یا بھابی سے ملا ہے-ورنہ اتنی بد ہیت چیز کا استعمال سمجھ میں  نہیں آتا-کپڑے ماشا اللہ برانڈڈ پہنتے ہیں-معروف عثمانی، ادب دان خاندان میں جنم لیا ہے-والد اردوں داں ،استاد  ،شايد اسی مناسبت سے نام اوصاف رکھا گیا-گاوں میں اردوں اسکول سے تعلیم کی شروعات کی-ممبیئ آکر مکمل کی –اسی لیے اردو سے والہانہ محبت ہے-اپنی اہلیہ سے بھی اتنی محبت ہے کیوں کے اپنے لیے انتخاب ہی اردو ٹیچر کا کیا ہے-
      منزل کی ہے تلاش تو دامن جنوں کا تھام
    اپنے  کریر کی شروعات fab tech سے کی –کمپنی کو اپنے خون جگر سے سینچا-کمپنی چھتنا آور  درخت بن چکی ہے-اب بھی اسی  مستعدی سے کمپنی کی ذلفیں سنوارنے میں مصروف ہے-پہلے بس ،ٹرین سے سفر کیا کرتے تھے –خال خال نیرول میں لظر آجاتے تھے-اب ماشااللہ پلین سے سفر کرتے ہے-کبھی چندی گڑھ تو کبھی دہلی،کلکتہ،احمدآباد،نیپال ،بھوپال،پونا، سارا ہندوستان جناب کے لیئے گھر آنگن ہو گیا ہے-سمجھ میں نہیں آتا انہیں کب فرصت مل  پاتی ہے،کیونکہ سفر سے لوٹتے ہی  اپنی کار ڈرائیور کے ساتھ کمپنی ہیڈ آفس یا پھر  عمر گام فیکٹری کی دوڑ لگا آتے ہے-
ہمیں پتہ ہے ہوا کا مزاج رکھتے ہو
ان کی زندگی میں ایک چوکور ہے –بھابھی،عظمان،امان اور علینہ جو ان کی زندگی کا مرکز ہے- سبھی سے  انہیں والہانہ قربت ہے لیکن بقول اشتیاق بھایئ "پتیلے میں لگی کھرچن بہت لزیز ہوتی ہے " کے مصداق امان میاں سے خاص  انسیت ہے-
    اس کے علاوہ بھی انہوں نے زندگی کو کیئ خانوں میں باٹ  رکھا ہے-باقاعدگی سے احمد بھایئ کے باہر کرسیاں بچھا کر دوستوں کی محفلیں سجانا،یاروں کی بارات کو کبھی محمد علی روڈ ،کبھی بھیونڈی دھابہ،کبھی ماتھیران ،کبھی ڈومبیولی دھابہ  لیجاکر چٹ پٹے کھانوں سے انہہیں متعارف کرانا-سوشل میڈیا پر ویڈیو کلپس،شاعری،جوکس  share  کرنا-سوشل کاموں میں شامل ہونا-اس کے علاوہ بقول منصور جٹھام ،مہاشے "گھریلو اتی  کرمن" کے لیئے  بھی جانے جاتے ہے-لیکن کامیاب نہیں ہونے پاتے-اشتیاق بھایئ سے پنگا نہیں لے سکتے-منصور جٹھام اینٹ کا جواب پتھر سے دیتے ہے-حامد بھایئ تھوڑے دب جاتے ہے کیونکے ان کی جوانی بانکپن میں گزری ہے-ہریش قربانی کا بکرا ،وہ بھی اب چکنا گھڑا ہوگیا ہے ہنس  کر ٹال دیتا ہے-ایک بار افسر امام نے گھر ناشتے کی دعوت دے کر اپنے پیر پر کلہاڑی مار لی-اب تو یہ عالم ہے جس راستہ سے اوصاف گزرتے ہے ان کی پرچھایئ بھی نہیں دکھایئ دیتی-
ایک  چہرے پہ کیئ چہرے لگا لیتے ہیں لوگ
   اوصاف میں تمہیں بہروپیہ نہیں کہونگا-آج دوستی ،وفا،پیار ،محبت  لونگ الایچی کی طرح عنقا ہوتے جارہے ہیں-ہنسی لوگوں کے لبوں سے غائب ہورہی ہے-بلاوجہ ہر جگہ ٹنشن کا ماحول ہے -تم اپنی مصروفیت کے باوجود لوگوں کے دکھ درد کم کرکے دوستوں کی زندگیوں میں اندر دھنش کے رنگ بکھیرنے کی کوشش میں لگے ہو-میں تمہاری ان کوششوں کی قدر کرتا ہوں –بقول شاعر
جہاںرہینگا وہاں روشنی لٹاینگا
کسی چراغ کا اپنا مکاں نہیں ہوتا

शनिवार, 24 जून 2017

speech on the ocassion of iftar

सलाम ,नमस्ते ,सत सीरी अकाल , good evening
गुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है।
सितारों ने आसमान से सलाम भेजा है।
मुबारक हो आप को रमज़ान  का महीना।
हम ने दिल से ये पैग़ाम भेजा है।
रोज़ा ,फास्टिंग  ,उपवास्  हर धर्म में अलग अलग नाम से जाना है।
क्रिस्तान बंधुओं में ४० दिन लेंट  में फास्टिंग करने का  कारण क्राइस्ट के बलिदान को समझना।
जीव्स  में याम किप्पर में फास्टिंग  ,गुनाहों से माफी।
जैन धर्म की नीव  ही उपास है। जब कोई ग़लती होगयी माफ़ी के लिए उपवास्  कर लिया।
बौद्ध धर्म में भी आत्मा शुद्धिकरण के लिए उपवास किये जातें हैं।
हिन्दू धर्म में हफ्ते में एक दो दफा सेल्फ कन्ट्रोल के लिए उपवास रखा जाता है ।
        रमज़ान में भी ,मुस्लिम भाइयों में २९ या ३० दिन के लिए तक़वा (अल्लाह का डर ) बढ़ाने  के लिए रोज़ा  रखा जाता है। दिन भर भूका रह कर ग़रीबों की भूक तकलीफ समझ सके। रमज़ान में कमाई  का ढ़ाई प्रतिशद मालदारों को ग़रीबों को देना होता है। ज़कात का मतलब अपने पैसे को पाक साफ़ करना ,अपने दिल को माल की मोहब्बत से दूर करना।
रमजान रोज़ा का एक और कारण है  ,ऊपर वाले को खुश करना ।
        इफ्तार के इस प्रोग्राम में  हमारा स्टेज मानो चाँद सितारों से सजा आकाश । सामने बैठे हुवे लोगों में भी समाज की बड़ी बड़ी हस्तियां बिराजे  हैं। आप सब का शुक्रिया ,धन्यवाद  प्रोग्राम को कामयाब बनाने के लिए।
ईद के लिए आप सब को शुभ कामनाएं।
आखिर में दुआ है।
चाँद से रोशन हो रमज़ान तुम्हारा।
इबादत से भरा हो रोज़ा तुम्हारा।
हर रोज़ा और नमाज़ कबूल हो तुम्हारी।
यही अल्लाह से दुआ है हमारी।

शनिवार, 17 जून 2017

Dosti ki golden jubilee

दोस्ती की गोल्डन ज्युबिली

आज 15 June 2017 है. आज से ठीक 50 साल पहले रागीब अहमद और मेरी दोस्ती की शुरुवात हुई.
15 June 1967 को हम ने एक साथ एंग्लो उर्दू हाई स्कूल जलगाँव में दाखला लिया और पहले ही दिन से हम अच्छे दोस्त बन गये. दोनों के घरेलु हालात एक जैसे थे. दोनों की वलिदाओं का इन्तेकाल हो चूका था. लेकिन रागीब की बड़ी बेहेन “शरीफ आपा” ने रागीब को और मेरी मुमानी मुबा-उन-निस्सा ने मेरा पूरा ध्यान रख कर माँ की कमी को पूरा किया. रागीब के वालिद साहब रिश्तेदारों में "कमरोंद्दिन दादा" के नाम से मशहूर थे. उन्होने बड़ी मेहनत से रागीब और उनके भाइयोकि परवरिश की. इसी तरह मेरे मामूजान “मुराकीबुद्दीन शेख” ने मेरी परवरिश में कोई कमी नहीं रक्खी.

एंग्लो उर्दू हाई स्कूल में चार साल तक रागीब और मैं एक साथ एक ही क्लास में रहे और दोस्ती की बुनियादें दिन बा दिन मजबूत होती गयी. March 1971 का SSC exam (11th) हम दोनों ने अच्छे मार्क्स से कामयाब किया.

आगे की पढाई मुकम्मल करने के लिए रागीब अपने भाई के यहाँ मुंबई गये, मैंने जलगाँव में ही पढाई जारी रखी. इस दौरान एक दूसरे के contact में रहे. छुट्टियों के दौरान रागीब जलगांव आते थे. इस तरह हम मुलाकात का मौका कभी नहीं छोड़ते थे.

रागीब ने Graduation करने के बाद Petrochemical की फील्ड में महारत हासिल की और वो उस फील्ड से जुड़ गये. मैंने जलगांव में SSC के बेस पर टीचर की नौकरी हासिल की और सर्विस करते हुए M Com. तक की तालीम हासिल की.

M Com. कामयाब होने के बाद मेरा सिलेक्शन ऑडिटर की पोस्ट पर मुंबई में हुआ. मुंबई में आने के बाद रागीब ने मेरी हौसला अफ़ज़ाई की और कुछ दिन रहने का इंतजाम किया. बाद में मेरा दूसरे जगह इंतजाम हो गया.
दोनों मुंबई में होने की वजह से मुलाकाते होती रहती थी. अदबी प्रोग्राम और आर्ट फिल्मो मे हम दोनों को दिलचस्पी थी. इस तरह के प्रोग्राम्स में हम दोनों साथ जाते थे. इन प्रोग्रामो में हमे "फैज़ अहमद फैज़" और "ख्वाजा अहमद अब्बास" जैसी हस्तियों से मुलाकात करने का मौका मिला.
बाद में रागीब जॉब के लिए विदेश चले गये. एक महीना जॉब के बाद उन्हे एक महीना छुट्टी मिलती थी. इस छुट्टी के दौरान हमारी मुलाकाते होती रहती थी.
दोनों की शादिया भी रिश्तेदारी में हुई. दोनों की बीवियों में भी अच्छी दोस्ती है.
मैं अकाउंट ऑफिसर की पोस्ट से रिटायर हुआ और रागीब अहमद भी इंडिया में वापस आ कर सुकून भरी जिंदगी गुजार रहे है.
दोनों के बच्चो ने आला तालीम हासिल की और कामयाब ज़िन्दगी गुज़ार रहे है.
हम दोनों के पास अब भरपूर वक़्त होने की वजह से हम एक दूसरे से मिलते है और फ़ोन से बी कांटेक्ट करते है.
इस तरह आज १५ जून २०१७ को हमारी दोस्ती के ५० साल मुकम्मल हो गये.

अल्लाह से दुआ है की हम दोनों की दोस्ती ता ' हयात कायम रहे. आमीन.

गुरुवार, 15 जून 2017

नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिले (cocktel is more tasty)

सुना था शराब जितनी पुरानि होजाती है उस की क़ीमत उतनी ही बढ़ जाती है। आज मखदूम अली  ने दोस्ती के ५० साल complete होने पर अपने ख़यालात का इज़हार कर मुझे अनमोल तोहफा पेश किया। ५० साल एक लम्बा वक़्फ़ा होता है। हम खुश नसीब है दोस्ती की golden jubilee मना रहे हैं। कुछ को तो इतनी उम्र भी नहीं मिलती। कई करीबी दोस्त रिश्तेदार हम से बिछड़ गए। मखदूम और मेरा रिश्ता वक़्त गुज़रने के साथ साथ और मज़बूत हो गया। पीपल का पेड़ भी ५० साल का होजाता है तो उसकी लम्बी दाडी उग आती है। ज़मीन में कई फासले तक जड़ें फैल जाती हैं। हम ने अपनी दोस्ती की बुनियादें ख़ुलूस ,मुरवत पर रखी है और दोस्ती के  इस पेड़ को भाई चारगी के पानी से सींचा है जो कभी सूख नहीं सकता।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये
     याद आया  एंग्लो स्कूल  जलगांव ,का ज़माना जब रेसेस में १ पैसे की रावलगाँव की खट्टी मिटटी गोलिया खरीदते थें। स्कूल से १ किलो मीटर दूर गोलीबार पर जा कर धमाल चौकड़ी करते। रेसेस से लौटने पर थोड़ी देर होजाती तो सर के डंडे खाकर हतेलियान सुर्ख होजाती। मेरे महबूब फिल्म का क्लास बंक कर matinee show में पहली बार फिल्म देखना कितन महंगा पड़ा था। M.N. Sayed सर ने हमें मारा न डांटा सिर्फ एक शेर सुना कर हमें रुला दिया। "  नाज़ था जिसपे वही पत्ते हवा देने लगे "। आज वह तहज़ीब वो शायस्तगी ख़त्म होती दिखाई देती है।
दिल को रोवुँ के या जिगर को हसूँ
दोस्त तुम्हारी सेहत ,तंदुरस्ती लम्बी उम्र के लिए दुआएं
उठते नहीं है हाथ मेरे इस दुआ के बाद।

गुरुवार, 8 जून 2017

Iftar programme sponsor by Markaz-e-Falah Nerul and Navi Mumbai Police

अस्सलामालिकुम
मरकज़-इ-फलाह और नवी मुंबई पुलिस  द्वारा आयोजित इस प्रोग्राम में आप सब को खुश आमदीद welcome
मरकज़-इ-फलाह नेरुल कीअठरा सालोँ  की दास्ताँन इन चंद लफ़्ज़ों में बयान कर रहा हूँ
कुछ इस तरह से तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े, गिर के उठे, उठ के चले
अल्लाह ने क़ुरआन में दो जगह फ़रमाया है
kataba ala nafsi hir rahma
मतलब में ने (अल्लाह ने ) रहम करना अपने ऊपर वाजिब कर लिया है
प्यारे रसूल (SA ) की हदीस है के दुनिया बनाने से ५०००० साल पहले   अल्लाह ने अपने अर्श पर लिखवा दिया था
Inna rahmati taghlabu ghazabi
मतलब मेरी रहमत मेरे ग़ुस्से पर हावी (भारी) है
किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है
करो मेहरबानी तुम अहले ज़मीं पर
खुदा महेरबां होंगे अर्शे बरी पर
मतलब अगर तुम दुनिया वालों पर रहम करोंगे अल्लाह तुम से खुश होगा।
हाज़रीन मरकज़ इ फलाह का मतलब होता है सेंटर ऑफ़ गुडनेस (भलाई)  मरकज़ इ फलाह establish करने का मक़सद ही यही था के नेरुल में बसे ग़रीब और मुफ़लिसों की मदद की जाये। उन के आंसू पोंछे जाएँ। मरकज़ के volunteers ने  ग़रीबों के घर घर जा कर identified families की लिस्ट तैयार की। आज मरकज़ इ फलाह नेरुल की तरफ से २०० families (१००० individuals ) को रामजान और बकरीद के अवसर पर ३ ता ४ महीने का राशन (grocery ) provide की जाती है। उन के २०० बच्चों की school ,college की फीस (post graduation ) तक भरी जाती है। हर साल मरकज़ इ फलाह की मदद से ७ से ९ बचें graduate ,post graduate हो रहे हैं। पिछले अठरा  सालों में ६० से ज़ियादा बच्चें मरकज़ इ फलाह नेरुल से मदद मिला कर graduate ,post graduate होकर अपनी family को support कर रहें हैं। समाज में अपना मक़ाम बनाया है। इतना ही नहीं मरकज़ इ फलाह की मदद भी कर रहें हैं। हम ने एक बुकलेट बनायी  है जिस में इन बच्चों की लिस्ट प्रोवाइड की गयी हैं। मरकज़ इ फलाह रमज़ान और बकरीद की नमाज़ का इन्तेज़ान खुले मैदान में करता है जो हमारे नबी (SA ) की practice तरीक़ा था। समाज में लोगों को जोड़ना और ग़लत फहमिया दूर करना मरकज़ इ फलाह का मकसद है , इफ्तार प्रोग्राम इसी मक़सद से हर साल आयोजित किया जाता रहा है। आप सब प्रोग्राम में शामिल हुए, आप सब का धन्यवाद।

सोमवार, 5 जून 2017

दिन महीने साल गुज़रते जायेंगे

मुझे सहल होगयीं मंज़िलें, वो हवा के रुख भी बदल गए
तेरा हाथ आ गया हाथ में ,के चिराग़ राह में जल गए
३० मई १९८२ मेरी ज़िंदगी के सफर में एक संग मील (mile stone ) की हैसियत रखता है। में एक कटी पतंग की तरह हवाओं के रुख पर सवार रहा करता था। मुश्किलें ,परेशानियां थी। ग्रेजुएशन के बाद अपने आप को ज़िन्दगी में सेट करने का सिलसिला था। 
तुम आगये हो नूर आगया है 
नहीं तो चिराग़ों से लोव जारही थीं 
तुम्हारे ज़िन्दगी में दाखिल होते ही माहौल बदल गया। दुःख बाटने से काम होता है।  खुशियां बाटने पर बढ़्ती हैं। तुम शरीके हयात क्या बानी लगा "ज़िन्दगी धुप तुम घना साया " .ज़िन्दगी की लम्बी  जदोजहद आसान होगयी।  मिल कर हम दोनों ने ख्वाबों  में हकीकत के रंग भर दिए। 
एक नज़र जायेंगीं गुज़रें हुवे सालों की तरफ 
३५ साला तुम्हरा साथ मानो पल भर में गुज़र गया। अल्लाह रब उल इज़्ज़त से मुक़्क़मल उम्मीद है बचे कूचे ज़िन्दगी के दिन भी हम दोनों हंसी ख़ुशी मिल बाँट कर गुज़ार देंगे।
आमीन सुम्मा आमीन !