सोमवार, 30 मार्च 2015

ये तेरा घर ये मेरा घर


                                                          ये तेरा घर ये मेरा घर
   नायेला का घर दुबई शहर के सेंटर में हैं। ३८ फ्लोर की बिल्डिंग छत पर खूबसूरत साफ़ शफ्फाफ़ पानी से भरा स्विमिंग पूल ,जीम जकोज़ी। उस की बालकनी से दुबई शहर का दिल फरेब मंज़र देखा जा सकता है। करीब से मेट्रो गुज़रती है।  गोल्फ का मैदान भी साफ़ तौर से देखा जा सकता है।वलीद , खालिद ,ज़ैद ,मुकम्मल खानदान। जिस रोज़ उसने हमारी दावत का इंतज़ाम किया था ,वह खुद शगुफ्ता और मुझे लेने नवेद के घर पहुंची।  उसकी नयी खरीदी parado का दीदार भी हम ने कर लिया।इत्तिफ़ाक़ से उस के सास ससुर भी मौजूद थे उन से भी मुलाक़ात का शर्फ़ हासिल होगया। क़ासिम भाई के मज़ाहिया जुमलों का मज़ा हम ने खूब उठाया।
     नायेला /वलीद ने घर की सजावट  बड़े प्यारे अंदाज़ में की है। खूबसूरत परदे ,फर्नीचर सोने पे सुहागा उस की गैलरी लगी ,जहाँ उस ने हाथों से बनी  पेंटिंग की नुमाइश कर रखी है। पुराने खुतूत ,बच्चों के हाथ से लिखी तहरीरें ,पेंटिंग याद्दों को महफूज़ करने का खूबसूरत अंदाज़ बहुत पसंद आया। जैसे नायेला कहना चाहती हो। ………।
ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना है गर
तो पहले आके मांग ले तेरी नज़र मेरी नज़र
आफ़रीन नायेला ! ख़्वाब हर कोई देखता है ख्वाबों में हकीकत का रंग भरने का सलीका तुम से सीखा जा सकता है।
अल्लाह से दुआ गो हूँ के तुमहरा घर हरा भरा रहे। नायेला ,वलीद के कहकहों से ,खालिद और ज़ैद की किलकारियों से महकता रहे।  आमीन सुम्मा आमीन

            आखिर में सलाम दादा भाई की रूह को और हमारी नेक भाभी सहबा को जिन की काविशों ने ,अपनी औलाद को तालीम  की रोशन मशाल से आरास्ता कर मुस्तकबिल कि रौशन  राह पर गामज़न कर दिया।                                              

बुधवार, 18 मार्च 2015

Dubai men Ghar wapsi

                                                        दुबई में घर वापसी
उमरा  करने के बाद ९ दिन नवीद के घर इंटरनेशनल सिटी में शगुफ्ता और  में ,मेहमान नवाज़ी से लुत्फ़ अंदाज़ होते रहे , दुबई की सैर करते  रहे ,एक सपना सा लगता है। रफ्फान ,महदिया , नवीद ,ज़ारा ,भाभी जान और डॉ वासिफ एक भरपूर कुम्बा। यही पर सास बहु को दोस्तों की तरह रहते देखा। नवीद अंजुम की बेपनाह मालूमात से कई बातें दुबई दुनिया के तालुक से पता चली। दादा ,पोते ,पोती के दरमियान अजीब रब्त,मोहबत ,उन्सियत देखि। डॉ वासिफ ,रफ्फान और महदिया में अपनी तहज़ीब ,रिवायत  ,अखलाक़,ज़बान के बीज डाल ,इन की अब्यारी में लगे हैं। और इंशाल्लाह जिस मुस्तैदी से कोशिश कर रहे है जरूर कामयाब होंगें। वरना यहाँ की तहज़ीब जहाँ इंसानों को रोबोट की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ,औरतों को display piece ,बड़ी बड़ी इमारतें जिनेह कभी हज़रात सुलैमान ने बनायीं थी हकीकत का रूप लिए आ खों को चक चौंध कर देती है। बड़े बड़े खूबसूरत malls ,global village , khalifa tower देख egypt के अहराम की यादें ताज़ा होजाती हैं जिनेह एक लाख इंसानों ने २०  साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया था।  फ़र्क़ यह है  आज के दौर।,टेक्नोलॉजी का  है ,लोगों की कड़ी मेहनत का औने पौने मुआवज़ा अदा किया गया है जब के माज़ी में ग़ुलामों से काम लिया जाता बग़ैर मुआवज़ा।
        दो रोज़ से नाज़िम घर पडाव डाले  बैठे हैं।दूलह भाई भी आये हुए है। माज़ी की यादें ताज़ा होगयी। यहाँ भी वही माहोल मिला है , पोता पोतियां दादा से chase सीख रहे हैं। जो किसी ज़माने में चेस  चैंपियन थे. सिद्रा पेंटर है।,सारा खाना बनाने की शौक़ीन ,अफ्फान कराटे चैंपियन बनने की कोशिशों में मसरूफ इतिफ़ाक़न उस के ओपन डे में शरीक होने कामौका मिला पता चला रैंक होल्डर है। ख़ुशी हुवी नाज़िम ने बच्चों को  talent के निखारने का मौका दिया। बच्चों की तरबियत में निकहत कि काविशें भी शामिल हैं।
           सुतून इ दार पे रखते चलों सरों के चराग़
      मेरी अपनी कोशिश भी होती है के अपनी तहज़ीब ,जुबांन ,अखलाक़  की खुशबू आलिया ,अलीना तक पहुंचा सकूँ।
आज के इस दौर में जब रिश्तें पामाल हो रहें हैं ,इंसानियत सिसक रही है। हम इस सेहरा में छोटा सा नखलिस्तानही छोड़
जाये जो नयी नस्ल को पुरानी तहज़ीब की याद दिलाता रहे।
        

बुधवार, 11 मार्च 2015

Mai to kuch bhi nahi

                                                           में तो कुछ भी  नहीं
 ९ मार्च मदीना से उमरे के बाद एक EK- ८१० Dubai ,में और शगुफ्ता टर्मिनल ३ पर ९३० बजे पुहंचे।  डॉ वासिफ से बात होचुकी थीं।  नवीद और अफ्फान भी हमें लेने पुँहचे थे। ताज्जुब इस बात का हुआ नाज़िम अपनी फैमिली के साथ एयरपोर्ट पर मौजूद था हालाँकि में उसे सिर्फ dubai पहुँचाने  की तारीख की इत्तला दी थी। नेट से उस ने कैसे पता कर लिया था। आँखों से आंसू निकल पड़े सब का खुलूस  देख कर। साहिर की नज़्म याद आ गयी।  इसकदर प्यार कैसे  संभालूँगा में ,में तो कुछ भी नहीं ,मुझ को इतनी मोहब्बत मिली आप से ,मेरा हक़ नहीं मेरी तक़दीर है , में तो कुछ भी नहीं। 
नाज़िम से माज़रत करने के बाद  हम सब नवेद के घर उस की खूबसूरत कार एकॉर्ड  में बैठ कर उस के  पार्किंग में पहुंचे।  रफ्फान  की गर्म जोशी देखने के काबिल थी हमारी  बैग्स लिफ्ट तक खिंच कर लाने की कोशिश करने लगा। घर में पुहँचते ही उस ने अपने black board पर फूल की तस्वीर बनायीं और लिखा well come वह शायद अपने ख़यालात का इज़हार करना चाहता था। शगुफ्ता और मुझे उस की मासूमियत उस के जज़्बे इज़हार करने के इस तरीके ने बहुत मातासर किया अल्लाह उसे उम्र दराज़  दे सेहतमंद रखे।  रात १२३० बजे तक हम सब जागते रहे बातें करते रहे रफ़्फ़न भी हम सब के साथ बैठा रहा हालिंके दूसरी सुबह उसे जल्द स्कूल जाना था। बड़ी मुश्किल से ज़ारा ने उसे सुलाया। 


रविवार, 8 मार्च 2015

Jhooti azmat


२ साल पहले   उमरा जाने का इत्तेफ़ाक़ हुवा था  उमरा पूरा करने के बाद एक पाकिस्तानी ड्राइवर अली से मुलाक़ात हुई। उस ने बताया के कस्वा काबा मक्का में एक मुक़ाम है जहाँ सऊदी हुकूमत ने हरमैन (मक्का,मदीनः ) से निकली पुरानी चीज़ों का museum बना रखा है। काबे से निकला १०० साल पुराना दरवाज़ा जिसे लाखों लोगों ने अक़ीदत से चूमा होंगा। काबे से निकली पुरानी कंदील ,पुराना मुक़ाम इब्राहिम ,हिजरे अस्वद का खौल। वग़ैरा इन चीज़ों की अज़मत ,अक़ीदत इस वजह से थी के वह काबे पर लगी थीं। लेकिन अब वह म्यूजियम का हिस्सा बन गई है तो अब उन की वह अहमियत नहीं रही। अल्लाह का घर मक्का में है जिसे हज़रात इब्राहिम अ स ने अल्लाह की निशान दही पर इसे वहां तामीर किया था।  अब्राहा ने उसे मिस्मार करना चाहा न कर सका। दौर जहालत में किसी दुसरे मुक़ाम पर काबा बनाया गया उसे वह क़बूलियत न मिल पायी।  अल्हम्दोलीलाः  क़यामत तक काबे की अज़मत बाकि रहेंगी यह अल्लाह का वादा है इसी लिए एक नमाज़ हरमैन में अदा करने  का सवाब आम मस्जिदों के मुकाबले में लाखों गुना अजर है।  इसी तरह मस्जिदे नबवी में आप रसूल स.अ.स की इस्राहत  फरमाने की वजह से इस की शान है।
    हिन्दुस्तान में अजीब तरह से चीज़ों की अहमियत बढ़ायी जाती है। बचपन का ,जल गाव शहर  का ,एक वाक़ेआ ज़हन में ताज़ा होगया। ख्वाजा अजमेरी की क़ब्र से एक ईंट छूकर लायी गयी और कब्र बना कर उस पर आस्ताना बनाया गया। अक़ीदतमंदों की भीड़ जमा होने लगी। हर साल धूम से उर्स होने लगा। लोग वहां मुरादें मांगने लगे ,मुरादें पूरी होने पर चढ़ावे चढ़ने लगे। बक़ायदा मुजावर मुक़र्रर होगये। फूल शीरनी की दुकानें खुल गयी। उस मुक़ाम को लोग ख़्वाजा मियां के नाम से जानते हैं। आस पास बस्ती बनी उसे भी ख्वाजा मियां नगरी के नाम से जाना जाने लगा। आज भीं वह मज़ार अपनी जगह क़ायम है बल्कि और भी शानदार बन गया है। 
   इसी तरह महाबलेश्वर में एक मज़ार है। पुराना मज़ार जहाँ था वहां dam बन गया है। मुनिसिपल्टी ने मज़ार के लिए नयी जगह दी तो मज़ार वहां shift कर दिया गया लेकिन कब्र वली से खाली है।  फिर भी लोग अक़ीदत से मज़ार पर आते हैं बाक़ायद उर्स मनाया जाता है। 
  नंदुरबार में इमाम बाशा मियां की दरगाह को कुछ साल पहले नुकसान पूहचाया गया ,इत्तिफ़ाक़ से जिन लोगों ने नुकसान  पुह्चाया था दो की हार्ट अटैक से मौत होगयी। हज का ज़माना था। लोगों ने वहां मशहूर कर दिया साहेब कब्र हज को गए हुवे है वरना सब  तबाह होजाते। 

शनिवार, 7 मार्च 2015

Jannate baki

दो साल पहले लिखी गया ब्लॉग
जन्नते बक़ी रोज़ाए अथरहर (गुंबदे ख़िज़्रर ) के क़रीब बड़ा कब्रस्तान है।  दस हज़ार सहाबी यहाँ दफन है। हज़रज़त आयेशा सिद्दीक़ा ,हज़रात फातिमा ,हज़रात उस्मान  बिन अफ्फान न जाने कितने जलील उल क़दर सहबा यहाँ आराम फरमा रहें हैं। आज सुबह ज़ियारत का मौक़ा मिला। औरतों को दाखले की इजाज़त नहीं। एक ही तरह  की सब कब्रें बनि हैं। कहीं कोई निशान नहीं। सऊदी पोलिस चपे चपे पर कड़ी नज़र रखती है।   किसी को कब्रों के पास रुकने नहीं दिया जाता। जगे जगे मुतवलियांन लोगो को शिर्क से बचने के उसूल बताते हैं। न फातेहा पड़ने की इजाज़त है न कब्र के करीब जाने की इजाज़त है। लोग दुआएं ,फातेहा  पड़ते कब्रस्तान से गुज़र जाते है। आज ६ मार्च २०१५ पाकिस्तानी वज़ीर आज़म नवाज़ शरीफ भी कब्रस्तान की ज़ियारत को पहचे थे।  हमें उनेह करीब से देखने का मौक़ा मिला। काफी देर तक हमें कब्रस्तान से निकलने से रोक गया। नवाज़ शरीफ थोड़ी देर रुक कर चले गए। तब सब लोगों को कब्रस्तान से निकलने की इजाज़त मिली। आज जिस शान से security के बीच वह आये थे मुझे वह वक़्त याद आगया कुछ साल पहले जनरल मुशरफ ने  उनेह १० साल तक पाकिस्तान आने रोक रखा  था और वह एक आम आदमी की ज़िन्दगी जिला वतनी के तौर  जेद्दा में गुज़र रहे थे। न कोई security न शान शौकत न मुस्तकबिल के तालुक से उम्मीद। वक़्त ने पलटा खाया उन्हें पाकिस्तान आने की इजाज़त मिली उनोह ने इलेक्शन जीता दोबारा हुकूमत मिलीं। आज जनरल मुशर्रफ अदालतों के चक्कर काट रहे हैं कल जाने क्या हों।   !!!!!!!!!!     इज़्ज़ते  शोहरतें चाहतें कुछ भी मिलता नहीं इंसान को
                                                      आज में हूँ यहाँ कल कोई और था कल कोई  और होंगा
                                                       में तो कुछ भी में तो कुछ भी नहीं
रहे नाम अल्लाह का 

बुधवार, 4 मार्च 2015

Umra

27 February 2015 के रोज़ मुंबई से जेदा होते हुए मेक्का सुबह १० बजे में और शगुफ्ता पहुंचे जुम्मे   का दिन था हज़ारों लोगों के साथ नमाज़ जुमाँ अदा की। ख़ुत्बे में इमाम हरम ने अमन का पैग़ाम दिया। रात  तमाम अमीरात से सफर किया था जिस्म थकन से चूर था अल्हम्दोलिलाह बाद नमाज़ हम दोनों मियां बीवी ने उमरा  अदा किया। खुदा का शुक्र अदा किया चौथी मर्तबा  उमरा  अदा करने का शरफ हासिल  हुआ।

     हरम मक्का में तौसी का काम जारी है। बड़ी परेशानी होती है उमरा करने वालों को ,सिर्फ दो गेट खुलते है किंग फहद गेट और किंग अब्दुल अज़ीज़ गेट हज़ारों लोगों का हुजूम एक साथ तवाफ़ के लिए घुसने की कोशिश करते है। कुछ रोज़ की परेशानी है फिर हरम की तौसी के बाद शायद कुछ आराम होजाये ,लगता तो नहीं ,क्यूंकि उमरा करने वालों की तादाद दिन पर दिन बढ़ती जारही है। लेकिन तौसी के काम को देख कर तारीफ किये बिना नहीं रहा जा सकता। ताज महल फ़तेह पूर सिकरी हरम के मुकाबले में miniature नज़र आते हैं। चार साल पहले जब में ने उमरा किया था हराम की तौसी के काम की शुरुवात हुई थी और अब काम पूरा होने जा रहा है।
     दींने इस्लाम ही वह मज़हब है जो मसावात (equality) की तालीम देता है। और practical  life  में भी इसे देखा जा सकता है। उमरा करने के लिए कोई भी मुस्लिम काबे का तवाफ़ कर सकता है किसी भी जगह हरम में नमाज़ अदा कर सकता है। कोई उसे रोक नहीं सकता। साईं  बाबा का मंदिर हो के बालाजी का मंदिर दिन भर खड़े होने के बाद भगवन के दर्शन होते हैं। लाखों रूपये का चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है तब भगवन खुश होते हैं। vip के लिए दर्शन की अलग लाइन लगती है।
     हज  उमरे के अरकान जो रसूल स.अ.स १४०० साल  बता गए हैं  आज  भी उसी  तरह पाबंदगी से अदा किये जाते हैं।  अहराम बांध कर दुनिया से ग़ाफ़िल हो कर काबे का तवाफ़ ईस दौरान अल्लाह  की अज़मत व बुज़ुर्गी बयांन की जाती है अल्लाह से  गुनाहों की माफ़ी और दुआएं मांगी जाती हैं।  उसके बाद  सफा मरवा के दरमियान सई , हजरत हाजरा के उस अमल को दौडतें दुहराते हैं जब वह हज़रात इस्माईल अ.स  के लिए पानी हासिल करने के लिए  आप दौड़ी थी और आबे ज़म ज़म का चश्मा फूट पड़ा था। फिर  आबे ज़म ज़म  का सैर होकर पीना और बालों का कसर।