रविवार, 20 अक्टूबर 2013

safar dar safar


 कल पुणे मुंबई  से लौटते हुए पता चला के दुनिया किस तेज़ी से तररकी की ओर बढ़ रही है , बंपर  to बंपर  ट्रैफिक काले धुंए के बाद्ल कारों का बेइन्तिहा सिलसिला खंडाला लोनावाला किसि समय लोग खास चिक्की खरीदने के लिए रुका करते थे अब तो पता नहीं चलता कब ये दो मुक़ाम आ कर चले गए मुंबई की तरह चारों तरफ इमारतें सोचने लगा  वोह हरियाली कहाँ ग़ायब होगयी एक ज़मना आयेगा मुंबई से पुणे के बीच इमारतें हि  इमारतें  होंगी ज़िन्दगी यही है पुरानी चीजों का वजु द खत्म होता जाता हैं नयी चीज़ें वजूद में आती जाती हैं  हयात नाम हैं याद़ों का तल्ख़ और शीरीन 
भला किसी ने कभी रंग व बूँ को पकडा हैं 
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बन्द किया 
हम तुम भी लम्हें हैं 
वोह लम्हे जो जाकर कभी नहीं आतें   

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