गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

yaade maazi azab hai yarab

                                                                 यादे माज़ी अज़ाब है या रब

कल किसी काम से बेलासिस रोड पर जाने का  मौक़ा मिला। माज़ी कि यादें ताज़ा होगई। कॉलेज का ज़माना याद आगया। १९७५-१९७७ ग्रेजुएशन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स साइंस कॉमर्स, बिल्डिंग अब भी मौजूद है। कॉलेज हाल वैसा ही है ,कमरे वैसे ही है। कोई जानी पहचानी सूरत नज़र नहीं आयी। स्टूडेंट नए ,टीचर नए लेकिन कॉलेज कि बिडिंग मानो  किसी ने फ़ोटो फ्रेम में क़ैद कर लिया हो। मुंशी सर, मलुस्ते सर ,ककुक्षीवाला सर,न जाने कहाँ है। हमारे साथी मज़हर, अल्ताफ, सलमा ,असलम ज़िन्दगी कि भीड़ में कहाँ गम होगये ,हयात भी है या नहीं।
                         ज़िन्दगी क्या है दम बा दम चलना
          कॉलेज के पड़ोस में घोड़ो के अस्तबल थे कई बार खाली  करने के लिए आग भी लगायी गयी। घोड़े सड़कों पर सरपट दौड़ते देखें ,कई घोड़ों कि जान भी गयी। उस ज़माने में उन अस्तबलों को खाली तो न कर पाये लेकिन अब वहाँ पर माल्स ,ऊँची ऊँची बिल्डिंगें खड़ी हें। सिग्नल के पास Keddy co कि बिल्डिंग  कि जगह पर नई ईमारत बन गयी है।
           कॉलेज के सामने एलेक्सेंडर सिनेमा हुआ करता था इंग्लिश फ़िल्में दिखाई जाती थी।  कमाटी  पूरा से गजेंटी ,लुच्चे ,लुक्खे  लोगों कि भीड़ फ़िल्म देखने के लिए जमा होती। गंदे गंदे पोस्टर लगा लोगों को अट्रैक्ट किया जाता।  पोस्टरों में लड़कियों के जिस्म पर कपडे कुछ कम होजाते तो  प्रिंसिपल मुंशी इन पोस्टरों कि खिलाफ मुहीम चला के हटवा भी देतें के स्टूडंट्स के मोरल पर बुरा असर पड  सकत है। शायद उस ज़माने में कुछ शराफत बची थी।  हमें मालूम नहीं फ़िल्में  कैसी होती लेकिन पोस्टर पर इंग्लिश फिल्मों का नाम बड़ी होशियारी से हिंदी में बदल दिया जाता। जैसे एक लुक्का तो दूसरा मुक्का, बिंदिया गाडी में बन्दूक साडी में, पहाड़ों कि मलका,वगैरा।
            कॉलेज के कल्चरल प्रोग्रम्मेस आज भी नहीं भूल पातें।  कृष्णा चन्द्र ,ख्वाजा अहमद अब्बास ,फैज़ अहमद फैज़,जावेद अख्तर  उस ज़माने  का शायद कोई  अदीब ,शायिर बचा हो जिस ने महाराष्ट्र कॉलेज आने में फखर महसोस न किया हो। कॉलेज एनुअल डे  में जावेद अख्तर ,अमजद खान बलराज साहनी को चीफ गेस्ट  बनाया जाता। मुशायरे ,अदबी महफ़िलें ,बैत बाज़ी मामूल सा था। करीब में साबू सिद्दीक़ कॉलेज में कादर खान के ड्रामों कि धूम थी।
                                    गया वक़्त हात्  आता नहीं
             ३६ साल का लम्बा अरसा गुज़र गया। जिस कि यादें अब भी बाकी हैं 

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

LOCAL TRAIN

                                                         मुम्बई कि  लोकल ट्रैन
मुम्बई कि लोकल ट्रैन  को देख कर हवा से भरे हुवे उस ग़ुबारे का तसुव्वर होता है जो फटने कि हद तक फूँक दिया गया हो। ट्रैन कम्पार्टमेंट में तो लोग खचा  खच भरे भरे होतें हें ,दरवाज़ों खिड़कियों पर भी लटके होतें हें। और बचे कूचे लोग छत पर भी चढ़ जातें हैं। थोड़ी जगह दो बोगियों के बीच होती हें वहाँ भी कुछ लोग सुकड़ कर बैठ जातें हें। अगर per square feet लोगों कि तादाद निकली जाये तो हवा का गुज़र भी ट्रैन कि बोगी से मुश्किल नज़र आता हे। ट्रैन में लगे पंखें कभी कभी स्विच बंद करने पर चल पड़तें हें। लेकिन हवा फेकने कि बजाये Exhaust  fan का काम करते हैं. ट्रैन में ज़रूरियात ज़न्दगी का सब सामन मिल जाता हे जैसे  फल फ्रूट ,nail cutter ,सब्ज़ियाँ ,ready made कपड़ें ,make up का सामन वग़ैरा।दिल बहलाने के कयी  सामन जैसे तरह तरह के ढोल harmonium गले में लटकाएं हातों में मंजीरे  लिए, और बुलंद आवाज़ में गाते फ़क़ीर ,साधू,बचें ,औरतें। बची कूची कमी भजन गातें मुसाफरी पूरी कर देतें हैं।लोकल ट्रैन में लगे ईशतेहारों  (विज्ञापन) में आप कि तमाम  परेशानियों का हल मिल जायेगां , जैसे नौकरी ,पसंद कि औलाद ,परेशानी ,धंदे में नुकसान ,मुश्किल कूशा बंगाली  बाबा के पास इन तमाम परेशानियों का शर्तिया इलाज है। नाउम्मीद होने की ज़रुरत नहीं आपको नामर्दी,कैंसर ,और ऐड्स का इलाज जो अब तक किसी scientist के पास नहीं ,बग़ैर ऑपरेशन इलाज ,और तो और रूठी हुई महबूबा को मनाने का इलाज इन इश्तेहारों में मिल जाएंग। लोकल  ट्रैन के सफ़र के दौरान आप का बटवा पाकिट मारों के हातों चोरी होना लाज़मी हैं। जो एक टोली कि शकल में हर डब्बे में मौजूद होते हैं  . अगर आप ने उन्हें  रोकने कि कोशिस कि ,तो आप की पिटाई भी हो सकती है। शराफत इसी में हैं के बटवे का  ग़म न किया जाये ,वैसे भी आज कल लोग बटवे में पैसे कम और love letters  या मेहबूबा की तस्वीर  से ज़ियादा , कुछ रखते ही नहीं।
            लोकल ट्रेन कि रफ़्तार चीटीं  (ant ) से कम व बेश थड़ी  ज़ियादा  होती हें। रेलवे कि ज़मीन घर  पर बनाने कि खुली इजाज़त हे। पटरी के साथों साथ झोपड़े बने होते हें। इस में ये सहूलत होती हे के प्लेट फार्म पर  उतरते ही घर में दाखिल हो जाईयें। घर साफ़ कर, कूड़ा कचरा पटरियों पर फेकने में आसानी। टॉयलेट कि आसानी। किराया अदा करने कि ज़रूरत नहीं।लाईट पानी मुफ्त। पटरियों पर क्रिकेट खेला जाता है। टूर्नामेंट होतें हें motor man कि ग़लती (क्युके खिलाडियों से ग़लती नहीं होती )कोई हादसे का शिकार हो जाता हे तो motor man को भाग कर जान बचानी पड़ती है। और मुसाफिरों पर पथरों कि बारिश। अक्सर व बेश्तर बच्चों कि ट्रैन पर निशाने बाज़ी कि मश्क़ में मुसाफिर अपनी आँखें खो बैठतें हें। अब पटरियों के किनारे रहने वालों बासियों कि मांग है के ट्रैन कि frequency कम कर दी जाए ताकि  उनके सोने ,खेलने ,बच्चों कि पढ़ाई में खलल (distarbance )न पड़े। सरकार इस मामले पर संजीदगी (seriously )से सोच
रही हें।
                   बरसात के मौसम में लोकल कि रफ़्तार बढ़ जाती हे क्युकि पटरियां पानी में डूबने कि बिना पर ट्रेने पानी में तैरने लगती हें लेकिन सामने आने वाली ट्रैन से टकराने का डर  होता है ,इस लिए ट्रेने रोक दी जाती हें और लोग पैदल जल्दी घर पहुँच जातें हें।
                  किसी ज़माने में नए पुल बनाते वक़्त इंसानों कि बली दी जाती थी। रोजाना ५० लाख लोगों को लेजानेवाली ये ट्रेने भी रोज़ाना कई लोगों कि बली ले लेती हें। लेकिन जिस तरह मुम्बई के शहरियों को खाना पीना सोना ज़रूरी है ६
बजकर २ मिनट कि ट्रैन का सफ़र भी लाज़मी है। 

रविवार, 10 नवंबर 2013

mahve hairat hoon ke duniya kya se kya hojayegi(shocked to see the world changing)

                                          महवे हैरत  हूं के दुनिया क्या से क्या हो जायेगी
लोगों कि मौत पर उमूमन मातम मनाया  है। पहली बार यूँ हुआ के १४ जुलाई-२०१३ रात १० बजे टेलीग्राम कि मौत का जश्न धूम धाम से मनाया गया। आखरी दिन तारीख का हिस्सा बन्ने के लिए हज़ारों लोगों ने टेलीग्राम रवाना किये। रात दस बजे नितिन रस्तोगी ने आखरी टेलीग्राम रवाना कर history में अपना नाम दर्ज  करा लिया। और १६३ साला तारीख का बाब बंद गया। हिंदुस्तान भर telegram कि मशीने खामोश हो गयीं।
            टेलीग्राम पर क्या मौक़ूफ़ ज़िन्दगी इतनी तेज़ी से रवां दवां हैं के कई चीज़ें जो हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी थी उनका वजूद ख़तम होता जा रहा है। हाल  ही में खबर आयी हैं के बस और रेलवे स्टेशन पर रखे वज़न के मशीन अपनी मौत  मर रहें हें। कौन उन पर खड़े होकर रूपये का सिक्का डाल कर वज़न करे। घर घर लोगों ने वें इंग मशीन खरीद लिये  हैं। एक ज़माना इन का था मशीन  खड़े होजाइये गोल चक्कर बंद हो जाने पर एक रूपये का सिक्का डालिये ख़ट  कर वज़न का टिकेट निकल आएगा जिस  पर आप का वज़न होंगा और उस टिकेट पर पीछे कि जानिब आप कि भविष  वाणी भी मुफ्त  मिलती थी। अक्सर ऐसा होता के मशीन पैसे भी हज़म कर जाता और टिकेट भी नहीं मिल पाता। फिर लोग ग़ुस्से में मशीन पर लातें घूंसे बरसाते खु श किस्मत लोगों को टिकट के मुक़ाम पर चिल्लर  कि बारीश हो जाती और कई लोगों को मायूसी। वही हाल ईद कार्ड्स का भी हुआ है। एक ज़माने में प्यार से ईद कार्ड्स ख़रीदे जाते थे।  रिश्तेदारों को भेजे जातें थे।
          किसी ज़माने में घर घर अलार्म क्लॉक होती थी ,कॅमेरे ,हात् में  पहनें कि swiss घड़ियाँ ,transistor radio ,जिन के बग़ैर ज़िन्दगी नमुक़मल हुवा करती। भला हो mobile phone का, इन तमाम सामान का वजूद ख़त्म होता जा रहा है। apple कंपनी के बानी stew job ने कई साल पहले पेशन गोई कि थी के दुनिया के हर आदमी कि मुठी में यह चीज़ें दे जाऊँगा। ५ ऑक्टोबर २०११ जिस वक़्त Cancer से उस कि मौत हुई दुनिया को Iphone ,ipad कि सूरत में अपने ख्वाब का हकीकत में रंग भर के दुनिया से रुखसत हुवा। आज mobile application में हर चीज़ अवेलेबल है। शायद जमशीद का गोला जिस में वोह दुनिया को देखा करता था इस से कई कदम पीछे छूट गया। आप mobile पर net access कर सकते हैं ,अपना blood pressure देख सकते हैं,TV  operate कर सकते हैं। video कॉल कर सामने वाले को देख
सकते हैं। body tempreture,दिल कि रफ़्तार कितने  कदम दिन भर चले ,calories बर्न ,कुछ भी डाउन लूद कर लो।
सिनेमा books
              आज इस दौर में तरककी कि रफतार इन्तहा को पहुँच चुकी  है। आज आप मोबाइल ख रीदें कल पुराना रोज़ बरोज़ कर के नए model launch होतें हैं। नए नये application के साथ frigde ,washing machines मार्किट में launch किये जातें हैं। auto car ,उड़ने वाली कार ,रोबोट से operation, चाँद, mars पर colony जाने क्या क्या
               हमारे उर्दू शायिर इस दौर में भी वही राग अलापें हुवें हैं। गुल बुल बुल ,जाम व मीना ,मेहबूब का सरू कद ,शबे फ़िराक़। ज़माना इतनी तरककी कर चूका है के आज का नौजवान चिलमन ,फ़िराक, आहें,किसी चीज़ पर यक़ीन नहीं रखता। लड़का हो या लड़की एक ही उसूल पर गामज़न है "तू नहीं और सही " क़ल एक नौजवान से बहस हो गयी कहने लगा " अंकल तुम्हारे शायरों ने जिस जान-फिशानी से इतने दीवान तैयार किये हैं इन को जमा कर के एक काम कि चीज़ भी बनायीं जा सकती है ? मैं लाजवाब होगया। 

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

Vallentine Day

आज सुबह के अख़बार में २० साला लड़की और  एक जवान की मौत की खबर  पढ़ कर वोह चौंक पड़ा। यह जोड़ा समंदर के किनारें पत्थरों पे बैठा अपने आप में मगन था समंदर के जवार भाटे से अनजान ,के पानी ने उनेह चारों जानिब से घेर लिया ,तब तक उनेह खबर न हुई। कुछ लोगों ने उनेह रस्सा फ़ेंक कर बचाने की कोशिश भी की लेकिन समंदरी लहरों के आगे डूबतें को तिनके का सहारा क्या बचा पाए। वल्लेंतिने डे से एक रोज़ पहले जब ये हादसा हुआ। आज से कुछ साल पहले इस तरह के दिन मानने की रस्म हिन्दुस्तान में मौजूद न थी। वोह सोचने लगा 
                महव हैरत हूँ के दुनिया क्या से क्या होजयेंगी। 
        उस ने ज़िन्दगी के पचास साल पुरे कर लिए थे सर के बालों में चांदनी झलकने लगी थी। हमारा भी क्या ज़माना था शादी होजाने तक दुल्हन को नहीं देखा था शादी के रोज़ आइने में उसे उसकी दुल्हन की शकल दिखाई गयी थी। यह भी एक ज्यादती थी। इस के बावजूद उस की शादी मुक्कमल तोर पर कामियाब थी। आज भी उसे अपनी बेगम से उतनी मोहब्बत थी जितनी पहले रोज़ थी। चूँकि इन रिश्तों की बुनियाद मुस्तहकम उसूलों पर रखी  गयीं थी। फिर बचों की पैदाईश के बाद उन दोनों की मस्रुफ़ियतें तो बढ़ी लेकिन रिश्तें कि बुनयादें और मज़बूत हुयी । आज का  दौर उस ने सोचा उफ़। ज़िन्दगी फ़ास्ट फ़ूड कि  तरह तेज़ होगयी।  हर चीज़ को खूबसूरत लेबल लगा कर बेचा जा सकता है। Vallentine day क्या है उसने सोचाः साल में एक बार एक दुसरे को खूबसूरत तोहफे दे कर ,खूबसूरत फूल , chocolate पेश कर देना, फिर साल भर कि बे फ़िक्री। मल्टीनेशनल कम्पनियां करोड़ों रुपयें का कारोबार और मुनाफा एक दिन में कम लेती है। यह तमाम खुराफात युरोपियन मुल्कों से आयी हें। और वोह अपना कल्चर किसी भी कीमत पर हम पर थोपना चाहतें हें। उसे वोह वाक़िआ याद आया जब वोह खलीज में यूरोपीनस के साथ काम करता था उस का एक साथी जिम हुआ करता उम्र यही कोई ५५ साल एक साल मदर डे पर उस से कहमे लगा मेरी माँ इंग्लैंड में old people home में रहती हें "the old bitch will be upset if i don't send her greeting card "उसे शॉक लगा हमारे यहाँ रोज़ाना माँ बाप से दुवाएं ली जाती हें उन का एहतराम किया जाता हें। बूढ़े होने के बाद किसी old home में नहीं  मरने के लिये  छोड़ दिया जाता। न  साल में एक बार ग्रीटिंग कार्ड भेजने कि ज़रुरत पड़ती हें। उसका दूसरा सुपरवाइजर John Wood था जो कहा करता "में अपनी बीवी से मायूस हूँ हमेशा अपने ward rob को नयें नयें design के कपड़ों से सजती रहती हें। मेरी लड़की घोड़ों को training और अपने boy friend के साथ लगी रहती हे। मेरे लिए किसी के पास वक़्त नहीं। छुट्टी में घर जेन से कतराता हमेशा कहा करता "Indian culture is"   
        वोह तहज़ीब क्या पनप सकती है जहाँ रिश्तों का एहतेराम नहीं। नंगापन आम हें। नाजायज़ रिश्ते कानूनी हैसियत हासिल कर चुके हें। शराब पानी कि तरह लोगों कि रगों में दौड़ रही हे। Aids कर डर condom इस्तेमाल कर लो। हमल से बचना हो tablet ले लो। सोचों का धारा रुकने का नाम नहीं लेता। वोह incident भी वोह भूल नहीं  किसी training के सिलसिले में उसे Pataya  जाना पड़ा hotel पुहंचा तो room boy ने रूम तक छोड़ने के बाद कहने लगा "मेरी बहेन बहुत ख़ूबसूरत है " नंगीं तस्वीरों का एल्बम साथ लाया था कहने लगा पसंद कर लीजिये। उफ़ रिश्तों कि पायमाली ! इसलिए तवायफों को वहाँ industry का दर्ज हासिल है। नताईज चप्पे चप्पे पर वहाँ Aids के clinic खुले हें। मुल्क का ८० फी सद सरमाया सेहत पर खर्च हो रहा है। blue फ़िल्में आम चैनल्स पर दिखायी जाती हें। club ,जुवा,शराब हर चीज़ कि बोहतात है। 
        अमेरिका में same sex कि शादियां कानूनन जाएज़ हो गयी है। रोबोट के साथ sex ,उस का ज़ेहन बोझल होगया। यकायक उस कि नज़र टीवी स्क्रीन पर पड़ी।  आज कि खास सुर्खियां 
     इस साल वलेंतिने डे पर २३ करोड़ के फूल ,१०० करोड़ के तोहफे ,Chocolate  बेचे गए Archies कंपनी को बहुत मुनाफे कि उम्मीद। खुले आम रस्ते पर जवान लड़की का रपे। कूड़ादान में बच्चे कि लाश मिली। 
    Announcer कि आवाज़ उस के कानों में ज़हर घलने लगी। वोह धम से ज़मीन पर आगया,उस ने सोचा  हम ने उरोपीन मुल्कों के मुक़ाबले में इंडस्ट्री तरककी में बराबरी हासिल तो कर ली साथ साथ Aids ,हार्ट अटैक,डिबेट्स और जुर्म में उन से आगे निकल गए हैं। 


          

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

Hare bhi to bazi jeet gaye

                                                         हारे  भी तो बाज़ी जीत गए 

 ना ही मे चेहरा शानास हूँ, ना माहिरे नफ्सियात, क्लिंट मार्टिन की शख्सियत थी ही इतनी पेचीदा उसके किरदार की गिरह खोलते खोलते सात साल का तवील अर्सा बीत गया हम दोनों  ने साथ साथ मुलके शाम (सीरिया ) में आयल फील्ड में तेल के कुवों पर काम शुरू किया, एक ही derparntment ,दोनों एक ही कमरे में रहते लेकिन इतने सालों बाद अब भी लगता हैं के में उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता हर बार गिर्गिट की तरह रंग बदलता सांप की तरह केच्ली छोड़ जाता जब  हम कमरें में  अकेले होतें तो वोह  ,२० साल  पुराने वक़्त की पुरानी तस्वीरें ,अख़बार की cutting, पुराने अल्बम , जिस में वोह दुबला पतला छारेरें जिस्म का मालिक ,victory stand पर जीत का cup उठाए मुस्कुराता ,देखता रहता। 

           वोह एक Athelet था मुंबई यूनिवर्सिटी में कई इनामत भी उसने जीतें थे और अब वोह १५० किलो जिस्म का मालिक कैसे बन गया क्या वजेह थी इस तब्दीली की में उस से पूछता ,झंज्ला के जवाब देता "यार मेरी माँ एक बिच (कुतिया) हैं मारिया का husband उसे बहुत मरता है " में कुछ नहीं समझ पाता मारिया से इश्क़ में नाकामी के बाद उसने आशिके नामुराद देवदास की तरह शराब पी कर अपनी सेहत तबाह तो न की, लेकिन इस के बरक्स बे इन्तहा  खा खा कर अपनी  सेहत तबाह कर ली 

                दो महीने बाद ड्यूटी के बाद हम घर से  लौततें, वापसी में हर बार नए नए किस्से लिए लौटता, हमेशा की तरह कल्लाश दोस्तों पर सारी कमाई पार्टियों में बर्बाद कर देता, कई बार advertising फिल्मों में, telivision पर उसे मौका भी मिला, video भी मुझे दिखाई, फिर एक दिन मारिया से महुब्बत की कहानी सुनाई वोह पड़ोस में रहती थी उस से प्यार था, एक दिन में १५ दिन रिग पर ड्यूटी पर गया मेरी माँने उसकी शादी कही और करा दी मारिया से जुदाई का ज़िम्मेदार वोह उसे अपनी माँ को ठहरता , दुनिया की तमाम ओरतें उस की नज़रों में बिच कुतिया होगई उसने कैनाडा की citizenship ले ली हिन्दुस्तान में तलाक शुदा ४२ साला  औरत से शादी कर ली ,जो दहेज़ में दो जवान लड़कियों को साथ लायी और उसकी ज़िन्दगी में तीन बिचेस कुत्तियों का इजाफा हो गया, जब कोई उस से  पूछता , तुम कैनाडा,  में तुम्हारी वाइफ इंडिया में वोह गुस्सा हो कर हाती की तरह चिंघाड़ने लगता ऐसा था मेरा यार क्लिंट मार्टिन 

                क्लिंट जापानी सूमो की तरह मोटा ताज़ा, भरा भरा चेहरा, गोरा रंग ( चूँकि उस की माँ एंग्लो इंडियन थी ),घुन्ग्रालू बाल ,६ फिट का निकलता क़द बिस्तर पर सोता कम कुश्ती ज़ियादा खेल्ता ,कमरा उसके खरान्तों की आवाज़ से गूंजता रहता कमरे में हमेशा एक बेतरतीबी छायी रहती ,लिबास कुर्सी पर बदबूदार  जुराबें फर्श  पर, अंडरवियर टेबल लैंप पर. बाथ रूम  में किसी अस्दहे की मानिंद साँस लेता, खुद से बातें करते छोटे छोटे कदम डालते बतख़ की चाल चलता , खुराक भी १५० किलो के  भारी जिस्म के मुतनासिब ,खाने बैठता तो राक्षस की याद दिलाता ,मुझे लगता खाने के लिए जी रहा हों, लेकिन उसकी खूबी थी खुशदिली, उसे कभी मायूस नहीं देखा ,हस्ते खेलते रहता ,लोगों के दुःख सुख में शरीक होता , हम २०० हिन्दुस्तानियों में बेहद मकबूल था ,१२ घंटों की ड्यूटी, कभी आग बरसाती गर्मी, तो कभी बर्फ़बारी ,इस पर घर से दूरी , चारों  तरफ बियाँबान रेगिस्तान ,लेकिन क्लिंट के होते हर महफ़िल कहकह ज़ार   ,शाम में ड्यटी से लौटने पर लोग थकावट से अपने अपने  कमरों में बंद होजाते लेकिन ये नए नए तरीकों से लोगों को जमा करता ,चिल्ला चिल्ला कर लोगों को रूम से बाहर निकलवाता ,साल में चार बार धूम धाम से अपनी सालगिरह का जश्न मनाता ,लज़ीज़ खाने बनाने में माहिर क्लिंट तंदूर पर मूर्घ कबाब बनाता ,कभी बिरयानी ,कभी cricket तो कभी football के match ,खुद कभी umpire बनता तो कभी जोकरों की तरह निकर पहने फील्डिंग करता ,और कभी मजेदार अंदाज़ में कमेन्ट्री करता, की लोगों के पेट में हँसतें हँसतें बल पड  जातें। मैइनेजमेंट से लड़ झगड़ कर लोगों के प्रॉब्लम solve करवाता। 

                  क्लिंट से पहली मुलाक़ात भी बड़े दिलचस्प अंदाज़ में हुई थी। हिंदुस्तान से परे यह मेरी पहला जॉब था। मेरा पहला हवाई सफ़र। शाम(Syria ) में दमिश्क से ६०० किलो मीटर दूर इराक की सरहद जे करीब तेल (crude ) के कुवों पर काम क रने के लिए मुझे शेल कंपनी  ने  बुलाया था। में अपने ख्यालों में घरक मलूल सा बैठा था। फ्लाइट की पिछली सीट पर एक बार बारूआब  लहीम शहीम शख्स को देखा सूट में मलबूस धुवें के मर्घोलें छोड़े जा रहा है,हाथ में शराब का जाम । अंग्रेजी बोलने के अंदाज़ से सभी उस्ससे मरऊब दिखाई दिए। तमाम एयर होस्टेस ,stewards उसकी खिदमत में दौड़े दोड़े फिर रहे थे। फ्लाइट की इकनोमिक सीट में वोह फंसा फंसा झुंजला रहा था। किसी तरह उस ने अपनी सीट तब्दील करवाली, फर्स्ट क्लास में शिफ्ट हो गया । बहरीन एअरपोर्ट पर ट्रांजिट था और वही से दमिश्क़ की फ्लाइट पकडनी थी। एयर पोर्ट पर क्लिंट ने मुलाक़ात में पहल की। में ने अपना introduction करवाया चौंक पड़ा "भडवा अपुन भी दमिश्क़ जाने मांगता ,फ्लाइट में अपना नाटक कैसा था।  हिंदी अछी नहीं बोल पता। फिर हम अछे दोस्त बन गए। बहरीन से दमिश्क़  ३ घंटों का ,और दमिश्क से फील्ड तक ८ घंटों का सफ़र उसकी सुहबत में आनन फानन खतम होगया। 

                    फील्ड पर लोग घर से जुदाई का ग़म शराब में दुबू कर कम कर लिया करते। लेकिन यह आदत कई लोगों की जान ले कर रहती। लोग शराब के आदि होगये। भट की मौत इसी आदत का नतीजा थी। सभी लोग चोकन्ना  होगये ,पीना कम होगया शुगर  ब्लड प्रेशर पर control ,बरसात के मेंडको की तरह जिम में और स्विमिंग के लिए हिन्दुस्तानियों की भीड़ लग गयि। सुबह सुबह लोग जॉगिंग पर जाने लगे। इस दौरान में ने क्लिंट आँखों में खौफ के साये देंखें। वरना कहाँ क्लिंट और खुराक में कमी।

                        एक ब्रिटिश सुपर्वैसेर peter  क्लिंट की मौजूदगी में  हिन्दुस्तानियों पर तंज़ कर बैठा "you all dirty Indian peoples will die of drinking ", पीटर से ५०० dollar  शर्त लगा बैठा ,"में दो महीने फील्ड पर शराब को हाथ नहीं लागओंगा"। रूम में आकर में उस से कहा किस तरह शर्त पूरी करोंगे, तुम तो शराब की मछली हो  ? बोल पता नहीं। 

                          सभी Indians क्लिंट के लिए दुआएं करने लगे के वोह शर्त जीत जाये।  शर्त की तारिख में दो दिनों का टाइम बचा था। उस रोज़ Christ-mas का दिन था सुबह से क्लिंट पार्टी की तय्यारियों में मसरूफ था ,दोपहर लंच के बाद रूम में उस से मुलाक़ात हुई हमेशा की तरह मजाक करने लगा। बात करते करते उस के सीने में दर्द उठा एम्बुलेंस पहुंचते पहुंचतें उस ने खून की उलटी की और दम तोड़ दिया।

                          फील्ड पर मातम था। हिन्दुस्तान में तुम्हरी wife तुम्हारा इन्तिज़ार कर रही होंगी । कनाडा में लोग याद कररहे हैं। लेकिन मुझे यकीन है ऊपर वाले से भी तुम ने उस खुस दिली से कहा होंगा " God उपुन को मरने का ग़म नहीं ,लेकिन उस भडवे पीटर से शर्त जीत जाता तो तेरा क्या बिगड़ता"



रविवार, 20 अक्टूबर 2013

safar dar safar


 कल पुणे मुंबई  से लौटते हुए पता चला के दुनिया किस तेज़ी से तररकी की ओर बढ़ रही है , बंपर  to बंपर  ट्रैफिक काले धुंए के बाद्ल कारों का बेइन्तिहा सिलसिला खंडाला लोनावाला किसि समय लोग खास चिक्की खरीदने के लिए रुका करते थे अब तो पता नहीं चलता कब ये दो मुक़ाम आ कर चले गए मुंबई की तरह चारों तरफ इमारतें सोचने लगा  वोह हरियाली कहाँ ग़ायब होगयी एक ज़मना आयेगा मुंबई से पुणे के बीच इमारतें हि  इमारतें  होंगी ज़िन्दगी यही है पुरानी चीजों का वजु द खत्म होता जाता हैं नयी चीज़ें वजूद में आती जाती हैं  हयात नाम हैं याद़ों का तल्ख़ और शीरीन 
भला किसी ने कभी रंग व बूँ को पकडा हैं 
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बन्द किया 
हम तुम भी लम्हें हैं 
वोह लम्हे जो जाकर कभी नहीं आतें   

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

lagta nahiayar hai dil mera ujde dayar mein

   م یف حسین جنے کسی زمانے میں مادھوری فدا حسین کے نام سے بھی جانا جاتا تھا ایک ز مانے میں ان کو ہندوستان بھر میں عزت کی جاتی تھی کہا جاتا ہے انکی گھوڑوں کی تصویریں بھی  کروڑوں کے داموں میں بکجاتی تھی اور اب بھی بکتی ہیں ان کے بنیں فلمی بینر آرٹ کا شوق رکھنے والوں کے لئے اہمیت رکھتیں ہیں جبکے اچھا سے اچھا بہترین نسل کا گہوڈا بھی لاکھوں میں دستیاب ہوتا ہے لیکن پھر ہوا کے ان کی بنایی بھارت ماتا کی برہنہ تصویر نے کچھ ہلوگوں کے جذبات کو ٹھیس پوھنچائی بی جے پی اور و اچ پی کو ایک شوشہ ہاتھ لگا انکی احمدآباد میں گیلری کو تہس نہس کر دیا گیا ان کے خلاف سپریم کورٹ میں  کیس دایر کیا گیا ان کی شوھرت ان کے لئے زحمت بن گی 
ایک ایسا وقت آیا کے 
برے بے آبرو ہو کر تیرے کوچے سے ہم نکلے 

         پھر وہ بنجاروں کی طرح  دیش بادیش پھرے کبھی پیرس تو کبھی لندن اور کی  سال  دبئی میں مقیم رہے مرنے سے کچھ ارسا پہلے دوحہ قطر کی شہریت بھی وہاں کے شیخ کی جانب سے انہیں پیش کی گی جو ان کی جانب سے قبول کر لی گی 
      حسین صاھب کو اپنی حیات میں اس بات کا قلق رہا کے ہندوستان میں ان کی قدر نہیں کی گی  بہادر شاہ ظفر کی طرح ملک   بدر ہونا پڑا خیر ظفر کی  طرح ذلیل تو نہ ہونا پڑا آج بھی آپ کی تصویریں اربوں میں بکتی ہیں دنیا بھر چاہنے والے موجود ہیں لیکن ملک کی  جدآیے نے انے ملول کرکے رکھ دیا تھا دبئی میں سمندر کنا رے اربوں کا ولا دنیا کی مہنگین سے مہنگین کاریں بگٹی بنٹلے فراری ان کے پاس تھی شیخ کے خاندان سے قریبی تعلقات تھے  سات ستارآ  ہوٹلوں میں کھانا کھاتیں تھے  
       مرنے سے پہلے اس بات کا حسین صاھب کو افسوس  تھا ہندوستان کی طرح بغیر چپلوں کے وہ دبئی میں گھوم نہیں سکتے تھے چونکے ننگین پیر وہاں گھومنا تہذیب کے خلاف ہے حسین صاھب کو دھابے کی کٹنگ چاے یاد آتی تھی اپنے دوست گایتوندے کی یاد ستاتی تھی جن سے ممبئی میں وہ گھنٹوں باتیں کرتے تھے  
      افسوس انسان کی ہر خواہش زندگی میں پوری نہیں ہوتی حسسیں صاھب بھی صرف ایک بار وطن لوٹنے کی خواہش رکھتیں تھے جو پوری نہ ہو سک
   دو گز زمین بھی نہ ملی کوے یار میں 

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

lagta nahin hai dil mera

मोहम फ़िदा हुसैन जीने लो माधुरी फ़िदा हुसैन के ने नाम से भी जानए जाते  हे मश्ह्हूर आर्टिस्ट पेंटर दुनिया भर में जाने जाते हे उनकी घोड़ों की तस्वीर करोड़ों रुपयें में बिकती हे उन के बनाये फ़िल्मी पोस्टर आर्त जमा करने वालो के लिये अह्मियात रखते हे जब्के बह्त्रॆन नसल का घोडा लाखोन मेन मिल जाता हे लेकिन फिर येह हुअ  के उन कि भारत माता कि बनाई बर्हनअ तस्वीर ने कूच लोगो को नाराज कर दिया अहमदाबाद मी उनके स्तुदिओ को तोड दि  गया उनके खिलाफ सुप्रिम कोर्ट मी कएस दाखल किया गया उन्हे देश  बदर  होओन नए पर मजबूर होना हुवा

       प्फिर वोह बंजारों कि तरह देश विदेश भत्के फिरे कभी लंदन तो कभी पेरिस बहुत वर्ष वोह दुबीय मे रहे दोहा कतार के शेइख उन पर मह्रबन हुए और उनेह  वहाँ कि नश्नालिटी मिल गई हुस्सैन साहब को अफसोस रहअ के उनेह गालिब कि तरह जिन्दगी मे कदर नहीं कि गई उनेह बहादुर शाह जफर कि तरह जलिल  होना पदअ और मौत के बाद वतन कि ज़मिन न मिलि दुबैयी मे अर्बों किमत का विला समंदर के किनारे रह्ते थे दुनिया कि महगी गाडिय बुगति बेन्त्ली फिरारी उन के पास थि शेख के खअन्दन से उनके साथ उठ्नअ बैठानअ होता सात एस्तर होत्लों मेन खान पीना होता कहाँ जता हे बेंत ली गाडी उन्हों ने अपने क्रिदित् कार्ड से खरिदी जब के दुबायु के शेख भी इन्स्ताल्मेंट मे लेते हे  

       लेकिन उनेह इस बात् क मालाल तअ के बगएर चपल पहने वोह दुबाई मे घूम नही सकते उन्हे मोजे पहँन कर घुम्नअ पदत धआबे कि कतिंग चय याद आती अपने यार गैतोंदे कि याद उन्हे बहुत आती
        अफसोस इन्सान कि हर ख्वाहिश जिन्दगी मे पूरी नही होती हुस्सैन साहब भी सआरी दौलत दे कर सिर्फ एक बार वतन आना चाह्ते थे और ये तमन्ना उन के दिल मे रह गई
        दो गज ज़मिन भी न मिलि कूये यार मे