With bride and bride groom |
Ghyasoddin shaikh,bride and Bride groom,Mrs Fareeda and others |
With Anees Sir Kalyan |
With zahid Shaikh |
With bride and bride groom |
Ghyasoddin shaikh,bride and Bride groom,Mrs Fareeda and others |
With Anees Sir Kalyan |
With zahid Shaikh |
अकबर क़ादरी
कोई बतलादे के एक उम्र का बिछड़ा मेहबूब
इत्तेफ़ाक़न कही मिल जाये तो क्या कहते हैं
१५ डिसेम्बर २०२४ इत्तेफ़ाक़न फरहान से मुलाक़ात करने रांदेर (सूरत ) जाना हुवाऔर वहां ,२ दिन रुकना भी हुवा, तो कई पुराने रिश्तों को झाड़ पोंछ कर नयाँ पन अता हुवा। सग़ीर जनाब ,मुसरत और अज़्ज़हरुद्दीब से मुलाक़ातें हुयी। अकबर क़ादरी से अरसे बाद, उनके घर मुलाक़ात हुयी। बात चीत में वही बर्जस्तगी देखी ,सेहत भी माशाअल्लाह। मुलाक़ात से पहले मैं ने उसे फ़ोन पर कांटेक्ट किया "कब आया राग़िब और घर कब आ रहे हो। अभी आजा हम दोनों मियां बीवीअकेले हैं साथ खाना खायेंगे " उसी वक़्त अपने मक़ान का location गूगल पर शेयर कर दिया ७०३ ,मालाबार रेजीडेंसी । इसके इस खुलूस ने मुझे बहुत मुत्तासिर किया।
१०३० बजे सुबह मैं और शगुफ्ताअकबर के घर पहुंचे यास्मीन भाभी और अकबर ने हम दोनों को खुश आमदीद कहा नाश्ता पेश किया। बातों बातों में यादों का पिटारा खुला माज़ी (past ) और हाल (present ) के दरमियान की ऊँची दीवारें ढह गयी। और २ घंटे हम लोग पुरानी यादों से शराबोर होते रहे ।
क्या लोग थे रहे वफ़ा से गुज़र गए
दिल चाहता है नक़्शे क़दम चूमते चले
Dr. क़ादरी अकबर क़ादरी के वालिद की यादें ताज़ा होगयी। उनका तकिअए क़लाम "hurry up slowly " हुवा करता था। अल्लाह उन्हें जन्नत के ऊँचे दर्जे इनायत करे बड़ी ज़िंदा दिल , खुश गवार शख्सियत के इंसान थे। छोटे छोटे जोक्स सुना कर महफ़िल को गुलो गुलज़ार कर देते थे। मुझे उनका एक लतीफा आज तक याद है। एक अँगरेज़ किसी मुक़ाम से गुज़र रहा था। देखा एक इंडियन आदमी लकड़ियां काटने में मसरूफ था ,लकड़ियों ढेर लगा था। अँगरेज़ ने हिंदुस्तानी आदमी से सवाल किया "what is this place name " हिंदुस्तानी समझा लकड़ियों के बारे में सवाल कर रहा है। उसने जवाब दिया "कल काटा " अँगरेज़ ने कहा " ok this place name is culcatta " इस तरह कलकट्टा का नाम पड़ा।
लम्बी उम्र की दूआ देने वाले दुनिया से ग़ायब होते जा रहे हैं। अकबर की अम्मा भी हमेशा मुझे छोटी छोटी बातों पर दुवायें दिया करती थी , उनोहने कभी भी मुझे सही नाम से नहीं पुकारा। कभी कभी राकेट तो कभी राजेश कह कर बुलाती लेकिन थी मामता की मूरत। अल्लाह उनेह अपने जवारे रहमत में जगह अता करे आमीन।
आयी किसी की याद तो आंसु निकल पड़े
आंसु किसी की याद के कितने क़रीब थे
अकबर ने मॉमू मिया अफ्ज़लोद्दीन उर्फ़ लाला मियां की यादें ताज़ा कर दी। किस तरह अकबर को साथ अहमदाबाद ले जा कर उसे गुजरात हुकूमत से फिशरीज ऑफिसर का appointment letter दिलवाया था। सग़ीर जनाब को भी टीचर पोस्ट का appointment letter उन्होंने ही दिलवाया था। अकबर इतने साल बाद भी अपने मोहसिन को नहीं भूल पाया। न जाने कितने क़ौम के नौजवानो की मुस्तक़बिल की राह मामू मियां ने आसान की होंगी। हम चारों भाइयों पर भी उनकी नज़रे इनायत थी। उनके अहसानों को हम किसी क़ीमत पर भी भूल नहीं सकते। अल्लाह मामू मियां को जन्नत फिरदौस में आला मक़ाम आता करे आमीन।
तुम याद आये साथ तुम्हारे
गुज़रे ज़माने याद आये
शफ़ीक़ ,रहम दिल ,हम सब के राहबर मरहूम हाजी सादिक़ अहमद के ज़िक्रे खैर के बग़ैर यादों का सिलसिला मुक़्क़मिल नहीं हो सकता। वो हम सब के ideal थे। उनकी बातों उनकी यादों का लमुतनाही सिलसिला था हम सब शराबोर होते रहे। यक़ीनन वो जन्नती है। सदियों में ऐसी शख्सियत पैदा होती हैं और अपने पीछे एक पूरी जनरेशन की ज़हनी तरबियत कर जाते हैं। उनकी जुदाई पर किसी शायर का ये शेर याद आगया
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोये
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब् रोये
dr लियाक़त ,dr वासिफ , अफ़सान ,भाभी ज़ुबेदा ,शम्सु आप ,अहमदुल्ला ,लुबना ,समीरा ,नाएला ,उज़्मा गोरे मामू माज़ी की किताब के पन्ने उलटते रहे। आखिर में अहमद मिल के यूनियन लीडर ,जावेद अहमद की याद अकबर ने की, में ने फ़ोन लगा कर अकबर से जावेद की बात भी करा दी। अतीत से आज की चकाचौंद दुनिया की तरफ लौटना भी एक तकलीफ दे अमल था।
अकबर के साथ बीताये दो घंटे दो पल की तरह लगे।
अकबर MSc मुक़ामिल करने के बाद गुजरात government में Fisheries officer की gatzzeted पोस्ट से रिटायर हुवा। अब भी अपनी मालूमात से लोगों को फ़ैज़याब कर रहा है। consultant की services दे कर हफ्ते में ३ दिन अपने आप को मसरूफ रखता है। बेटा साहिल क़ादरी अपनी अहलिया के साथ उलवा नवी मुंबई में मुक़ीम है। अकबर ने कोंकण अपने आबाई गांव धापोली में खूबसूरत बांग्ला तामीर किया है। साल में ३ महीने हापुस आमों के सीज़न में अपने सेकंड होम में गुज़रता है कुछ अरसा मिया बीवी साहिल एंड फॅमिली के साथ भी खुशगवार वक़्त गुज़रते हैं।
अकबर ,यास्मीन भाभी हम दोनों को छोड़ने की लिए सोसाइटी गेट तक आये। हम सब बीती यादों में डूब कर जज़्बाती हो गए थे। वक़्त जुदाई किसी उर्दू शायर का ये कतआ मेरे ज़हन में गूंजने लगा।
वक़्त खुश खुश काटने का मश्वरा देते हुए
रो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए
जब तलक नज़र आता रहा तकता रहा
भीगीं आँखों उखड़े लफ़्ज़ों से दूआ देते हुए
जैसे जैसे हमारी उमर में साल जुड़ते जा रहे हैं क़रीबी ताल्लुक़ात रखने वाले लोग काम होते जा रहे हैं , अकबर क़ादरी जैसे मुख्लिस लोगों की क़द्र हमारे दिल में बढ़ती जा रही है। अल्लाह सेहत तंदुरुस्ती के साथ अकबर क़ादरी भाभी यास्मीन का साथ क़ायम रखे उनकी उमर दराज़ करे आमीन।
खुसबू जैसे लोग मिले
मोहिब मुजाहिद शेख
मेहनत से वो तक़दीर बना लेते हैअपनी
विरसे में जिनेह कोई खज़ाना नहीं मिलता
अब तक में इस टॉपिक पर बुज़र्गों के खाके लिखता रहा हूँ। आज एक नौजवान जो अपनी मेहनत ,ईमानदारी ,जाँफ़िफिषानी से कम उम्र (Age ) में तरक़्की की कई पॉयदाने तै करके ,अपना एक मक़ाम बना लिया।
मोहिब शेख़ अनवर साहब डिप्टी कलेक्टर का पोता ,मुजाहिद सर का बेटा। मुजाहिद सर बहुत कम उम्र में इंतेक़ाल कर गए वो भी B.A ग्रेजुएट थे। सब से पहले जलगाओं रिलेटिव ग्रुप फॉर्म किया। ५०० रिश्तेदारों को एक मंच पर इखट्टा किया। इस दुनिया से रुखसत होगये।
राहों की ज़हमतों का तूमेह क्या सुबूत दूँ
मंज़िल मिली तो पाव के छाले नहीं रहे
मोहिब की ज़िन्दगी कोशिशों से भर पुर रही। जलगांव यूनिवर्सिटी से B.COM करके डिप्लोमा इन टेक्सेशन लॉ किया। जलगांव शहर में जदोजहद जारी रखी। CA की ऑफिस में काम करता , लोगों के आधार कार्ड डॉक्यूमेंट बनाता रहा। फ़ूड डेलिवेरी का काम भी किया। इंग्लिश क्लास्सेस ज्वाइन की इंग्लिश पर कमांड हासिल किया। शहादा में एकाउंट्स का काम भी किया। जलगाव के पहले इक़रा खानदेश के प्रोग्राम को मोहिब ही ने यू टयब पर रिले किया था।
जिन के मज़बूत इरादे बने पहचान उनकी
मंज़िलें आप ही होजाती है आसान उनकी
फिर उसकी किस्मत ने ज़ोर मारा माशाल्लाह बहरीन में उसे अकाउंटेंट की ऑफर मिली। दो साल से कम अरसे में उसके वालिद मुजाहिद का इंतेक़ाल होगया। उसने हिम्मत नहीं हारी ,बहरीन में अपनी काविशें जारी रखी दूसरी कंपनी में सीनियर अकाउंटेंट की पोजीशन मिली। अब अपने आप को नए सेट उप में एस्टब्लिश करने में मिया मोहिब मसरूफ है। अल्लाह उनेह कामयाबी अता करे मुस्तक़बिल की राहें मुन्नवर करे आमीन। मोहिब की तरक़्की में उसकी वालिदा मोफिज़ा की दुवाओं का बहुत असर रहा है।
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
आज सुबह (९ दिसंबर -२०२४ )जलगांव की मुबाउनिस्सा की मौत की खबर सभी रिश्तेदारों के ग्रुप्स में नज़र से गुज़री तो समझ में नहीं आया कौन मोहतरमा इंतेक़ाल कर गयी। मखदूम अली ने फ़ोन पर इत्तला दी मुबा मुमानी ७९ की उम्र गुज़ार कर इस जहाने फानी से कूच कर गयी। सकते में चला गया ,मखदूम अली भीअपने जज़्बात पर काबू न रख सका सिसकियाँ लेता रहा ।
जलगांव का तार्रुफ़ तीन चीज़ों से किया जा सकता है। मेहरून का तालाब ,मेहरुन के बेर जाम और दिल से क़रीब मुबा मुमानी। शायद कोई जलगांव विजिट करे और ऊन से मुलाक़ात न करे। शहर के बीचों बीच मुमानी का मकान ,आठवडा बाजार से क़रीब ,हम वहां से गुज़रे , औरउसे नज़र अंदाज़ कर ही नहीं सकते थे। शायद ही कोई हमारी १९७१ मट्रिक बैच का साथी रहा हो जो उनेह न जानता हो। मखदूम अली की मुमानी हम सब की मुमानी। मरहूम इंस्पेक्टर शेर अली सय्यद , मरहूम इंस्पेक्टर रफ़ीक शैख़ ,निसार ,सादिक़ ,हसन गाहे गाहे उन से मुलाक़ात कर ही लेते थे। जब भी उन से मिलने गया एक जुमला सुनने को मिलता " अरे रागिब बहुत दिनों बाद आया रे "
तुम्हारे लहजे म जो गर्मी व हलावत है
उसे भला सा कोई नाम दो वफ़ा की जगह
ग़नीमे नूर का हमला कहो अंधेरों में
दयारे दर्द में आमद कहो बहारों की
भला किसी ने कभी रंग व बू को पकड़ा है
शफ़क़ को क़ैद में रखा हवा को बंद किया
मुमानी हमेशा मद्धम ,शहद से दुबे लहजे में गुफ़्तगू करती थी। कभी भी किसी से तल्ख़ गफ्तगु ,ग़ुस्सा करते नहीं देखा। दराज़ क़द ,दूध की तरह शफाफ रंग। चेहरे पर अजीब वक़ार था आदमी देखते ही मरऊब होजाता था। मुझे हमेशा बचपन में लगता था जैसे वो किसी ऊँचे खानदान से ताल्लुक़ रखती हो। लेकिन हम सब के लिए मोम की तरह नरम हुवा करती। मुबा मुमानी ने अपने दो बच्चों नाज़िरोद्दीन,कफील और अपने भांजे ,मखदूम अली को अपने लखत जिगर से ज़ियादा चाहा ,इलावा मेरी भी तरबियत में, उनक हाथ रहा है। हमेशा नसीहत आमेज़ गुफ्तगू करती थी। मेरी अम्मा जब मैं ९ साल का था इंतेक़ाल कर गयी थी। उनके चेहरे में मुझे मामता की झलक नज़र आती थी।
उनकी एक खासियत ,रिश्तेदारों की Encyclopedia थी। रिश्तेदारों की किसी भी क़िस्म की मालूमात उनके फिंगर टिप्स पर रहा करती थी। रिश्तेदारों के ताल्लुक़ से शायद ही कोई अब इतनी जानकारी रखता हो। फॅमिली ट्री तरतीब देने में मरहूम मिस्बाह अंजुम ने उन से बहुत मदद ली थी।
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो
मुबा मुमानी के इंतेक़ाल पर हम सब तो सब्र करलेंगे। मामू की कुछ और ही बात है ,शायद ही कभी मुमानी से जुदा रहे हो ५० सालों की रफ़ाक़त पल भर में टूट गयी ,उन की जिंदिगी में हमेशा एक खला सी रहेंगी ,जो शायद ही पुर हो सके।
अल्लाह हम सब को सबरे जमील अता करे। कहा जाता है अच्छे लोग लौंग इलायची की तरह अनका (कम ) होते जा रहे हैं। मुबा मुमानी भी नहीं रही लेकिन उन की यादें हमेशा हमारे दिलों में ताज़ा रहेंगी अल्लाह मुमानी मुबा को जन्नत के आला दरजात आता करे अमीन सुम्मा अमीन।