बुधवार, 28 दिसंबर 2022

Naved Anjum (biography)

NAVED ANJUM WITH PAPA AND UNCLES
    
   नवीद की पैदाइश पर एरंडोल से रवाना किया टेलीग्राम में ने ही receive किया था और हमारे वालिद मोहतरम (नवीद के दादा  मरहूम हाजी क़मरुद्दीन ) को मैं ने ही पढ़ कर सुनाया था। पोते की पैदाइश की खबर सुन कर मरहूम  बहुत ख़ुश हुवे थे ढेरों दुवाएँ दी थी। टेलीग्राम पर याद आया जलगांव शहर में  किसी ज़माने में हमारे मोहल्ले में पड़े लिखे लोग काम थे। उस वक़्त, किसी के घर मौत या किसी की बीमारी की खबर देने के लिए ही  टेलीग्राम का इस्तेमाल किया जाता था। मोहल्ले में किसी के घर भी टेलीग्राम आता तो हमारे वालिद से पढ़वाया जाता क्यूंकि  उन्हें इंग्लिश अच्छी तरह समझती थी । एक दिन मोहल्ले में किसी के घर टेलीग्राम आया, सारा खानदान रोतें पीटतें वालिद साहेब के पास पुहंचा ,टेलीग्राम पढ़ कर पता चला अहमदाबाद में ज़लज़ले के हल्क़े झटकें लगे थे। वह  earthquake का मतलब नहीं समझ सके थे। टेलीग्राम का मतलब समझ  कर वे सब हँसते ,अब्बा को दुवाएं देते घऱ लौटें।
      उन के वालिद डॉ वासिफ हमारे अब्बा अमरहूम क़मरुद्दीन ,को ख़त लिखा करते थे ,उन में नवीद अंजुम भी चन्द , आड़ी तिरछी लकीरें खेंच दिया करते । इस लिखावट को अब्बा ही  decode कर सकते थे , छूपे पैग़ाम का मतलब हम सब को समझाते। 
   नवीद के बच्पन का एक और किस्सा याद आगया ,  डॉ. वासिफ की कर्जन PHC  पर (हेल्थ अफसर ) की पोस्टिंग थी ,उन का स्टाफ ग़ैर मुस्लिम था नवेद अंजुम उनके बच्चों के साथ खेला करते । एक दिन नवीद अपने पापा को हनुमान की तस्वीर दिखा कर कहने लगा "ये अल्लाह मियां है ". हमारे अब्बा मरहूम सुन कर बहुत महज़ूज़ हुवे।
 
      
      नवीद अंजुम हमारे खानदान का इकुलता वारिस ,११  चाचा ज़ाद बहनों का एक भाई ,माँ बाप की आँखों का तारा ,चाची चाचाओं का दुलारा , खाला नानी नाना का प्यारा ।  मशालाह हुलिया क्या बयान करू ,निकलता कद , खड़ी नाक , बड़ी बड़ी आँखेँ। चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट सजी रहती है। हर एक से खंदा पेशानी से मिलते हैं। 
        नवीद अंजुम ने बरोडा  यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद ,मुम्बई यूनिवर्सिटी की मारूफ , रिज़वी कॉलेज से  SYSTEMS में MBA किया।  में ने उसे उस दौरान भी देखा था जब वो अंजुमने इस्लाम सुब्हानी हॉस्टल में  रहते थे। नाज़ व नेमत में पला नवीद हॉस्टल के टूटे फूटे कमरे में खटमलों मछरों के दरमियान खुश व खुर्रम रहा करते। उन की इस जद्दो जहद पर ये शेर सादिक़ आतें हैं
मनजिल कि हो तलाश तो दामन जनून का थाम
राहों के रंग देख न तलवों के खार देख
या
कहा बच कर चली ै ऐ फसले गुल मुझ अबला प् से 
मेरे क़दमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है
       MBA के बाद ,थोड़ा अर्सा नवीद नें मुंम्बई में जॉब किया। इस के बाद कई अरसे से  वह दुबई में मुक़ीम है । आजकल मालिटिनाशनल ,कंपनी यूनिलीवर में मैनेजर पोस्ट पर जॉब कर रहे हैं। ये मक़ाम उनोहने अपनी अहलियत ,लियाक़त ,अनथक मेहनत से  बग़ैर किसी सिफारिश के हासिल किया है। बक़ौल शायर 
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है 
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा 
नवेद दुबई में अपने अपने दोनो शेह्ज़ादों  ,अपनी अहलिया ज़ारा और अपने वालेदैन डॉ वासिफ अहमद और वालिदा नीलोफर के साथ बंगला नुमा माकन में रहाईश पज़ीर है , दुबई जाने वाले रिश्तेदारों ,जान पहचान वालो के लिए उनके घर के दर हमेशा खुले रहते हैं। 
 अल्हमदोलीलाः नवीद अंजुम तररकी के जीने पर तेज़ी से रवां दवान है अल्लाह उन्हें मज़ीद तर्रकी आता करे आमीन  सुम्मा आमीन।
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 
उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी 




बुधवार, 21 दिसंबर 2022

 مکرمی 

مورخہ ٢٠ دسمبر ٢٠٢٢ کے انقلاب میں کرنل عبدل لطیف صاھب کی موت کی افسوسناک خبر نظروں سے گزری -مرحوم جلگاؤں کے معروف ملک خانوا زادے سے تعلق رکھتے تھے جن کی خدمات سے  جلگاؤں شہر میں ہر کویی مطعارف ہیں -مرحوم کرنل عبدل لطیف نے اپنے بل بوتے پر فوج میں ملازمت ملائی اور ترقی کرکے اس اعلی عھدے تک ترّقی کی -پاکستان اور چین کے خلاف جنگوں مےمرحوم  نفس ب نفس شریک تھے ریٹائرمنٹ کے بعد جب وہ جلگاؤں لوٹے تھے سارا شہر مرہوم کو فوجی لباس مے دیکھنے کے لئے امڈ پڑا تھا -ریٹائرمنٹ کے بعد بھی مرحوم نے فعال زندگی گزاری اور سماج کے لئے کار آمد کام کرتے رہے الله سے دعا ہےمرحوم  کو اپنی جوار رحمت میں  جگه عطا کرے اور متعالقین کو صبرے جمیل اتا کرے آمین 

راغب احمد 

نیرول 

٩٨٩٢٣٦٩٢٣٣

रविवार, 18 दिसंबर 2022

                                                  क्या लोग थे जो राहे वफ़ा से गुज़र गए 

                                                   जी चाहता है है नक़्शे क़दम चूमते चले 

मरहूम लेफ्टनंट कर्नल अब्दुल लतीफ़ मलिक साहेब का अपनी क़ाबलियत की बिना पर फ़ौज में सिलेक्शन हुवा था माशाल्लाह फ़ौज में लेफ्टनंट कर्नल के ओहदे तक एक मुस्लिम का पहुंचना कबीले फख्र बात है। स्कूल के ज़माने में जलगाव  में मरहूम अब्दुल लतीफ़ मलिक साहब हमारे आइडियल हुवा करते थे। मरहूम के वालिद अब्दुल मजीद सालार उस ज़माने में जलगाव म्युनिसिपल में कॉर्पोरेटर हुवा करते थे और अपने ज़माने में बड़े हरदिल अज़ीज़ हुवा करते थे। डॉ इक़बाल शायरे  मशरिक़ जिस वक़्त जलगाव में तशरीफ़ लाये थे ,इनके इस्तक़बाल में मरहूम अब्दुल मजीद मालिक पेश पेश थे। हम तीनों भाइयों डॉ वासिफ ,राग़िब अहमद और जावेद अहमद ने एंग्लो उर्दू स्कूल जलगांव  से तालीम हासिल की जिस के मरहूम अब्दुल मजीद साहब ट्रस्टी थे। मरहूम अब्दुल लतीफ़ मालिक के छोटे भाई डॉ करीम सालार किसी तारुफ्फ़  के मोहताज नहीं आप ने जलगांव में स्कूलों कॉलेजों का जाल बिछा दिया। आज हमारे रिश्तेदारों के हज़ारों बचे इन अदारो से तालीम हासिल करके रोज़गार से लग चुके हैं या अब भी इन अदारों में तालीम हासिल कर रहे हैं। अब तो करीम सालार की फॅमिली हमारे रिश्तेदारी में शामिल भी होचुकी है। 

हाफिज जावीद को जवाब मिल गया लेफ्टनंट कर्नल अब्दुल लतीफ़ साहेब हमारे रिश्तेदार हैं। ग्रुप में कई  मैसेज फॉरवर्ड किये जाते है जो बेमक़सद होते हैं उस् वक़्त  किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होता मारूफ शख्स के इंतेक़ाल की खबर डालने पर अफ़सोस सवाल उठाया जाता है। जनाब शकिलोद्दिन सर जलगांव  ज़िले की मारूफ बावक़ार शख्सियत है हाफिज जावेद को सनजीदगी समझने की कोशिश की ,अफ़सोस उनके ताल्लुक़ से कहा गया के हाफिज जावेद  के बारे में  उन्हें ग़लत फहमी है। 

वक़्त आगया है फ़ुज़ूल मुद्दों पर बेकार बहस न की जाये। प्रोफेसर नवेद क़ाज़ी के तालीमी MESSAGES इन बहसों में अपनी अहमियत खो देते हैं। इक़रा खानदेश फाउंडेशन के MESSAGES पर लोग तवज्जेह नहीं दे पाते। हमारा ग्रुप एक बावक़ार अख़बार की तरह है माशाल्लाह अपनों के दुःख सुख ख़ुशी ग़म की खबरे डाली जाये। अनीस सर की तरह students के लिए फायदेमंद मालूमात  share की जाये। हाजी सलाहुद्दीन मालिक की तरह authentic क़ुरान हदीस की मालूमात फ़राहम की जाये। हमारी बातों में संजीदगी होनी चाहिए ताके आने वाली generation तक मुफीद पैग़ाम पहुंचे। 

ये एक नसीहति पैग़ाम है ,बराये मेहरबानी इस पर बहस न की जाये। 





शनिवार, 10 दिसंबर 2022

HAMD

हम्द बारी तआला 

ज़बाने नाक़िस से क्या बयां हो खुदाये बरतर कमाल तेरा 

निग़ाह व  दिल में समां रहा है जलाल तेरा जमाल तेरा 

तेरे ही एक लफ्ज़ कुन के सदक़े में बन गयी क़ायनात सारी 

अज़ल से यौमे अलनशुर की शाम तक है तेरा ही फैज़ जारी 

हसीन तर है, अज़ीम तर है , ये रुतबै लाज़वाल तेरा 

हयात तुझ से ,ममात तुझ से ,हक़ीक़ते क़ायनात तुझ से 

तमाम समतो की बात तुझ से ,फ़सनाये शश जहात तुझ से 

हुकूमते ग़र्ब व शरक़  तेरी ,,जुनुब तेरा ,शुमाल तेरा 

नाक़िस : जिस की कोई क़ीमत नहीं 

कुन : होजा 

अज़ल :  दुनिया दुनिया जिस दिन बनि 

ममात : मौत 

समत :दिशा

शश जहात : 6 दिशा 









मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

NAT

 मेरे रसूल के निस्बत तुझे उजालों से 

में तेरा ज़िक्र करू सुबह के हवालों से 

 न मेरी नाअत की मुहताज ज़ात  है तेरी 

न तेरी मीदह है मुमकिन मेरे ख्यालों से 

तू रोशनी का पयम्बर था और मेरी तारीख़ 

भरी पड़ी है शबे ज़ुल्म की मिसालों से 

तेरा पयाम मुहब्बत था और मेरे यहाँ 

दिलो दिमाग़ हैं पुर नफरतों के जालों से 

ये इफ़्तेख़ार है तेरा  के मेरे अर्श व मुक़ाम 

तू हम कलाम रहा है ज़मीन वालों से 

मगर ये मुफ़्ती व वाइज़ ये मुस्तहिब ये फक़ी 

जो मौतबर है फ़क़त मस्लेहत की चालों से 

खुदा के नाम को बेचें मगर  खुदा न करे 

असर पज़ीर हो ख़ल्क़े खुदा के नालों से 

न मेरी आँख में काजल न मुश्क़ बू है लिबास 

के मेरे दिल  का है रिश्ता ग़रीब हालों से 

है तुर्श रु मेरी बातों से साहेबे मेंबर 

ख़तीबे शहर है परेशान मेरे सवालों से 

मेरे ज़मीर ने क़ाबिल को नहीं बख़्शा 

मैं कैसे सुलह करूँ क़तल करने वालों से