Zakira,sajjad,Ragib,Shagufta |
मंगलवार, 2 नवंबर 2021
Tariq Sajad Munshi Zakira Munshi ki shadi ki salgirah
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021
markaz AGM KE liye
انجام اسکے ہاتھ ہے، آغاز کرکے دیکھ
بھیگے ھوۓ پروں سے پرواز کرکے دیکھ
مرکز فلاح کی بھیگے پروں سے الله کی ذات پر یقین کے ساتھ ١٩٩٨ میں پرواز شروع ہوئی تھی پچھلے ٢٣ سالوں میں ٣٠٠٠ طالب العلموں کا مستقبل روشن کرکے ،١٥٨ گریجویٹس .پوسٹ گراجویٹس ،آرکٹیکٹ معاشرے کو عطا کر ادارہ سلور جبلی کی طرف روا دواں ہے
زکوہ کے اجتماعی نظام کی ،الله کے رسول کے زمانے میں شروعات ہوئی تھی اور خلفایے راشدین نے اس نظام کو تقویت عطا کی -الحمدوللہ مرکز فلاح نیرول نے اس نظام کی تجدید کی اور گزشتہ ٢٣ سالوں میں اسکول،کالجوں میں تعلیم حاصل کرنے والے غریب یتیم طالب العلموں کی فی بھرنے کا براہے راست انتظام کیا گیا - نیرول کے مسلم غریب خاندانوں کا عرق ریزی سے سروے کیا گیا، طالب العلموں کی نشاندہی کی گی -انکے اسکول کالجوں میں مرکز کے اراکین نے ڈائریکٹ فی جمع کروائی کسی کو بھی ہاتھ میں رقم ادا نہیں کی گی ٢٣ سالوں کے بعد خوش آیند نتایج دیکھنے کو مل رہے ہیں مرکز فلاح نیرول کی مدد سے پڑھے لکھے نوجوانوں کی ایک فوج اپنے خاندان ،سماج ،ملک کے لئے تعمیری کاموں میں مدد کے لئے تیارہوگیہے ان میں انجینئرز بھی ہیں،کاروبار بھی کر رہے ہیں ،آرکٹیکٹ بھی ہیں ،ٹیچرس بھی ہیں ،ایم بی اے بھی ہیں
یہی جنوں ، یہی ایک خواب میرا ہے
وہاں چراغ جلادو جہاں اندھیرا ہے
سن ٢٠٠ میں احمد شیخ مرکزفلاح نیرول سے جڑا ٥٠٠ روپے کی تنخواہ پر ادارے کے کاموں میں ہاتھ بٹاتا،مرکز فلاح کا سہارا ملا تو احمد شیخ نے بی کام کیا ایم بی اے کیا اور اب برلا کمپنی میں سارے انڈیا میں کمپنی میں کام کرنے والے لوگوں کا ٹریننگ مینیجر ہے مرکز فلاح نے بھی اسکی قابلیت کو مد نظر رکھتے ہے اسے مرکز فلاح منیجنگ کمیٹی میں جیونٹ ٹریسریر کی پوسٹ سے نواز دیا
گل حسسں خان اچھے عہدے پر فایز تھے سن ٢٠٠ میں اچانک انتقال کر گئے تین اولادوں تصّور خان ،منّور خان اور اختر خان پرائمری اسکول میں تعلیم حاصل کر رہے تھے -مرکزفلاح نے اس خاندان کا بھرپور تا عون کیا اسکول سے کالج تک فی ادا کی آج تصّور خان پتھالوجی ڈپلوما حاصل کر صابو صد یق ہوسپٹل میں ٹیکنشین کا کام کر رہا ہے منّور خان بی ای مکینیکل انجینرنگ کرکے ریلوے میں انجنیئر ہیں اور اختر خان بی ای الیکٹرانک کی ڈگری حاصل کر بی ایسس این ال میں انجنیئر کی پوسٹ پر کام کر رہا ہے -تصّور خان مرکز فلاح کے کاموں لئے اپنا قیمتی وقت لگاتا ہے
باصت خان اور ارباز خان کے والد بھی بچپن میں فوت ہوگے تھے والدہ اسکول میں پیون کا کام کر مشکل سے گزر بسر کرتی تھی مرکز فلاح نیرول نے دونو ن بھاییوں کی سکول اور کالج کی فیس ادا کی ارباز خان بی کوم کی ڈگری ملا کر ایمیزون میں جاب کر رہا ہے باصت امیٹی یونیورسٹی سے ایروناٹک انجینرنگ میں بی ٹیک. آخری سال میں ہے کلاس میں ٹاپ کرتا ہیں
ارباز خان مرکزفلاح نیرول کے لئے ڈونر بن گیا ہے کتنی کہانیاں ہیں جو مرکز فلاح نیرول کی کوکھ سے جنمی ہیں ، نیرول کی تاریخ میں سنھرے حروف میں لکھی جاسکتی ہے
کاش ہندوستان میں اجتما ئی زکوہ کا نظام ہر شیر ہر گلی میں قایم ہوجاے ہندوستانی مسلمانوں کی تاریخ بدل جاےگی
मंगलवार, 21 सितंबर 2021
वाशी रेलवे स्टेशन कमर्शियल काम्प्लेक्स लिमिटेड १२थ AGM
रविवार, 15 अगस्त 2021
یادیں دمشق کی
गुरुवार, 8 जुलाई 2021
राशिद अली युसूफ अली
मौत तो वो है जिस पे ज़माना करे अफ़सोस
तारीखे पैदाइश : ०१/०४/१९६४ मुक़ाम :जलगांव इंतेक़ाल : ३ जून २०२१ ,२२ ज़ूल क़दा १४४२ रात ११:३० बजे , तद्फीन :४ जून इतवार जलगांव (बड़ा क़ब्रस्तान ) सुबह ११:३० बजे
तुम से बिछड़ा हूँ तो सीने में उतर आया है
ऐसा सन्नाटा किसी पेड़ का पत्ता न हिले
किसी शहर की अहमियत वहां मुक़ीम लोगों से होती है। फिर ये होता है शहर अपनों से खाली ख़ाली होने लगता है। हर मानूस (जाने पहचाने ) शख्स की जुदायी से एक ख़ला पैदा होजाता है। जलगाँव मेरा आबाई वतन है कल राशीद अली की मौत की खबर सुन कर यूँ लगा मानो जलगांव मेरे लिए अजनबी होगया हो। जलगांव की दिलकशी मेरे लिए काम होगयी हो।
तुम याद आये साथ तुम्हारे, गुज़रे ज़माने याद आये
१९७७ /१९७८ में राशिद अली ७th या ८th क्लास में था। अब्बा ने उसे बॉम्बे हमारे पास बुलवा लिया। अंजुमने खैरुल इस्लाम कुर्ला में उसका दाखला करवा दिया। गया। उस् समय हम लोगों का क़याम तिलक नगर चेम्बूर की ८४ नंबर बिल्डिंग में था। पड़ोस की बिल्डिंग में उसका क्लासमेट शाहिद इरफ़ान रहता था जो अब कुर्ला का मशहूर advocate है,अच्छा शायर और अदीब है । आखरी उम्र तक दोनों की दांत कांटे की दोस्ती रही। राशिद अली की मौत की खबर उसे सुनाई तो मुझे मैसेज भेजा "अफसोसनाक खबर एक अच्छा दोस्त मुझ से रुखसत हुवा अल्लाह राशिद अली को अपने हबीब के सदके में जन्नत में आला मक़ाम अता करे ,आमीन "
फिर हम लोग वाशी रो हाउस में शिफ्ट हो गए। जलगांव में आपा की ग़ुरबत की बिना पर राशिद अली की सही तालीम तरबियत नहीं हो पायी थी। सही तरह से उर्दू में अपना नाम भी नहीं लिख पाता था। अब्बा के क़दमों में बैठ कर राशिद ने इल्म भी हासिल किया और अब्बा की टूट कर खिदमत भी की। अब्बा से दुनयावी ,दीनी ,अख़लाक़ी तालीम हासिल की। मुक़ामिल इंसान बन गया। शगुफ्ता मुमानी को भी घरेलु कामो में बेहद मदद करता। वाशी में उसे सब लोग हमारा छोटा भाई समझते। उसने भी हमें उतनी ही इज़्ज़त दी और हमने भी उसे इतना ही प्यार दिया।
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस क्यों होंगे ?
पड़ोस में सामंत ब्राह्मण ख़ानदान मुक़ीम था। दीपक सामंत मशहूर architect ईरान से कई साल जॉब करके इंडिया लौटे थे CIDCO में काम करने लगे थे। उनकी अहलिया Sacred Heart स्कूल में टीचर थी। घर पर दो छोटे बच्चें ओंकर और केदार थे। उन दोनों की राशिदअली निगहदाश्त करता ,दीपक साहेब को नॉन वेज खाने बना कर खिलता। रशीद अली अपने खुलूस अपनी मोहबत से उनकी फॅमिली का हिस्सा बन गया। कहा जाता है मोहबत तो वो बेल है जो खुलूस के सहारे परवान चढ़ती है। दीपक सामंत हर छोटे बड़े कामो में राशीद अली से मश्वरा लिया करते थे, मानो वो उनका क़रीबी दोस्त हो । कल फ़ोन करके दीपक सामंत को राशिद अली की मौत की खबर सुनाई तो उनेह यक़ीन ही नहीं आया , दोनों मिया बीवी बहुत मलूल हुवे।
हम हुवे तुम हुवे के मीर हुवे
उसकी जुल्फों के सब असीर हुवे
बहुत मिकनातीसी (Magnetic )शख्सियत थी राशीद अली की। लोगो को मोहब्बत के जाल में बांध लेता था। मुश्ताक़ सय्यद मुंबई पासपोर्ट ऑफिस में PRO थे। वो और उनकी अहलिया राशिदअली के गरवीदा थे। वाशी ही में रहते थे। भांजे से ज़ियादा राशिद से मोहब्बत थी। मुश्ताक़ को कही जाना होता राशिद उनके घर जा कर सोता। बाज़ार से सौदा लाता उनके बच्चों को स्कूल छोड़ता। राशिद अली को कुवैत जाने का ऑफर मिला तो पासपोर्ट मुश्ताक़ सय्यद ने ही बनवा के दिया था। जिस दिन राशिद अली की कुवैत रवानगी थी, मुझे याद है मुश्ताक़ मसरूफियत के बावजूद सहार एयरपोर्ट तक छोड़ने पुहंचा था उस ज़माने में immigration clearance में बड़ी दिक्कत होती थी ,राशिद को अपने पासपोर्ट ऑफिस के ID पर फ्लाइट तक सवार कर आया था। मुश्ताक़ अहमदनगर शिफ्ट होगया था ,उसकी दावत पर राशिद अली उसकी लड़कियों की शादी में अहमदनगर जाकर शरीक हुवा था। रशीद अली मौत की खबर सुन कर मुश्ताक़ को बड़ा शॉक लगा।
वक़्त गुज़रता रहा उस ने SSC पास कर जलगांव लौट कर इलेक्ट्रीशियन का काम सीखा। दादा भाई ने उसे कुवैत
अपनी फैक्ट्री "Plastic and Packaging Industries " में इलेक्ट्रीशियन के काम के लिए बुलवा लिया।
यूँ वक़्त के पहिये से बंधा हु यारब
चाहूँ के न चाहूँ गर्दिश में हु यारब
मशीनो के बीच १८ घंटे की ड्यूटी , नाईट शिफ्ट ,२ या ३ साल तक छुट्टियों का इंतज़ार ,खानदान से दूरी। शायद अलग ही मिटटी से बने होते हैं ऐसे अफ़राद। राशिद भी इन में से एक था। कुवैत की कितनी सख़्त सर्दिया ,गर्मिया बरसातें झेलीं जब कही वो अपने सपनो का घर गणेश कॉलोनी जलगांव में बना पाया। अपनी अम्मी शरीफुन्निसा को हज पर ले जा सका। हादी , उमैर ,सुमन और अपनी अहलिया शाहीन को ज़िन्दगी की अनमोल खुशीयाँ दे सका।
एक ऐसा वक़्त भी आया जब सद्दाम हुसैन के कुवैत के हमले के बाद राशिद अली को हिंदुस्तान लौटना पड़ा। फिर हालत मामूल पर आये। फिर वो कुवैत लोटा। १५ साल के लम्बे बनबास के बाद वो हिंदुस्तान लौटा। यहाँ भी उसने छोटी मोटी इलेक्ट्रिक वर्कशॉप लगा कर अपनी जद्दो जहद जारी रखी।
उम्र और वक़्त इंसान से उसकी जवानी उसकी ताक़त तो छीन सकते हैं उसके ख्वाब उसकी उमंगें उसकी चाहतें नहीं चीन छीन सकते।
नाज़िम ने राशिद अली को दुबई अपनी कंपनी में काम करने बुलाया। वहां कई प्रोजेक्ट उसके साथ मिलकर पुरे किये। मैं ने दुबई विजिट के दौरान उसके साइट पर जा कर मुलाक़ात की थी। लक लक सहराके दरमियान एक लम्बे चौड़े पोल्ट्री फार्म पर वो चंद अफ़राद के साथ इलेक्ट्रीशियन का काम कर रहा था। तब पता चला सहरा की ज़िंदगी कितनी बेलज़्ज़त बोझल होती है।
होशो हवास ताब व ताबां जा चुके हैं दाग़
लॉक डाउन से चंद रोज़ पहले राशिद दुबई से ३ साल लगातार काम करके छुट्टियां गुजरने हिंदुस्तान आया था।
तहसीन की शादी में राशिद अली मुलाक़ात हुवी थी । नहीफ, कमज़ोर ,चेहरे की शादाबी ख़त्म होगयी थी। सेहरा और मशीनो ने उसकी तमाम तवानाई निचोड़ ली थी। जनवरी -२०२१ में उसे फिर से दुबई जाने का मौक़ा मिला था। लेकिन पहली बार ज़िन्दगी में उसे बेयक़ीनी का शिकार होते देखा था। एयर पोर्ट से वापिस अपने घर लौट आया।
अच्छा हुवा मौत शनासावों के बीच वतन में वाक़े हुयी। आखिर के दो साल फुर्सत से अपने ख़ानदान के बीच तमानियत से गुज़ार कर मौत और तद्फीन के लिए ,दिन इतवार चुना लोगो को छुट्टी न लेना पड़े।
३० जून बुध के रोज़ में सफर में था। हफ्ते में एक रोज़ ज़रूर मुझ से कॉल करके राशिद बात करता था। उस रोज़ भी मामूल के मुताबिक मुझ से बात की एक जुमला उछाल दिया आज तक कानो में वो जुमला सदाए बाज़ गश्त की तरह गूंज रहा है "मामू कब जलगांव आरहे हो। "चुपके से मुझे अपनी मौत की खबर सुना दी। कहना चाहता हो "जल्दी से आकर मिल लो ,वक़्त कम बचा है"। अल्लाह राशिद अली को जन्नते फिरदौस में आराम सुकून की ज़िन्दगी आता करे। आमीन सुम्मा आमीन
रशीद की बचपन की तस्वीर लेफ्ट सुहैल सय्यद राईट रागिब अहमदगुरुवार, 27 मई 2021
IBNE BATUTA (Misbah Anjum)
अल्हाज मिस्बाह अंजुम सर |
नाम :मिस्बाह अंजुम सैफुद्दीन शेख़
शरीके हयात : शमीम मिस्बाह अंजुम शैख़
तारीख़े पैदाइश :०३/०८/१९४८
शहर के अँधेरे को एक चिराग़ काफी है
सौ चिराग़ जलते हैं एक चिराग़ जलने से
जनाब मिस्बाह अंजुम ने सैफुद्दीन शेख़ के घर जनम लिया। जनम प्रताप हॉस्पिटल अमलनेर में हुवा। वालेदैन ने बहुत सोच कर नाम रखा मिस्बाह यानि चिराग़ और अंजुम मानी स्टार (सितारा ) दोनों रौशनी बांटते है। ज़िन्दगी भर तालीम की रौशनी अपने स्टुडण्टस में बांटते रहे ,बच्चों की बेहतरीन परवरिश की उनेह भी इल्म की दौलत से माला माला किया।
मिस्बाह सर का बचपन जलगांव के शिवजी नगर (पूना फ़ाइल) में गुज़रा। Z .P .School नंबर १३ में 4th तक तालीम हासिल की। स्कूल नंबर १० से फाइनल तक पढ़ाई की,फाइनल में पुरे डिस्ट्रक्ट में पहला मक़ाम हासिल किया । अब तक अपने मोहतरम उस्ताद उस्मान जनाब को नहीं भूले जिनोह् ने उनकी तालीमी बुनियादो को मज़बूत किया। नेशनल उर्दू स्कूल कल्याण से १९६५ में मीट्रिक फर्स्ट डिवीज़न में पास किया स्कूल में टॉप किया । उस दौर में इस्माइल युसूफ कॉलेज में एडमिशन मिलाना हर किसी का ख्वाब होता था। कॉलेज में सारी पढ़ाई स्कालरशिप मिला कर की। सर ने इस्माइल युसूफ कॉलेज से B.Sc का एग्जाम पास किय। घरेलु हालत को मद्दे नज़र रखते हुवे फ़ारुक़ सत्तार उमर भाई बॉयज स्कूल में साइंस मैथ्स जैसे मुश्किल सब्जेक्ट्स को सिखाने का बेडा उठाया। स्कूल से उनेह B.Ed करने का मौका दिया गया ,साधना इंस्टिट्यूट से B.Ed किया । २००६ तक स्कूल के बच्चों का मुस्तकबिल सवारते रहे। बेशुमार क़ौम के बच्चे इंजीनियर ,डॉक्टर ,पॉलिटिशियन , वकील ,जज हर field में उनकी तरबियत से बने हैं । स्कूल के प्रिंसिपल की पोस्ट से ऑगस्ट २००६ में फ़ख़र से रिटायर हुए।
क्यों डरे ज़िन्दगी में क्या होंगा कुछ न होंगे तो तजुर्बा होंगा
मिस्बाह सर ने इस दौरान IIT का एंट्रेंस टेस्ट भी दिया। C.C Shroff से एक साल का Diploma in Industrial Research and Management (Chemistry ) कोर्स भी किया। अपने knowledge को हमेशा update करते रहे। Garware Institute से COBOL ,Computer Analysis का कोर्स भी किया। अल्हम्दोलीलाह knowledge अपडेट होने की वजह से बच्चों की रहनुमाई में उनेह आसानी हुवी।
रोचा खुशबूदार घास से खुशबु बनाने का हुनर सीखने के लिए कश्मीर तक का सफर किया । princess street के चक्कर काटे। लेकिन हर चीज़ के लिए ज़रूरी होता है सरमाया। खैर जो हुवा बेहतर हुवा वरना हम एक बेहतरीन उस्ताद की खिदमात से महरूम होजाते।
खिज़ा में फूल खिलाने का है जूनून अलग
मिस्बाह सर ने अपने बच्चोँ की तालीम उनकी शादियों की ज़िम्मेदारी से निपटने के बाद २००७ साल से फॅमिली ट्री बनाने के मिशन को जूनून की तरह अपनाया। कोलंबस की तरह हर गांव हर शहर में जहां रिश्तेदार बसे हैं घर घर जा कर मालूमात हासिल की। रिश्तेदारों की शादी में शरीक होते, मै ने देखा है वह अपने दफ्तर के साथ तशरीफ़ लाते । इबने बतूता की तरह अपने इस family tree की आबयारी की अपने खून पसीने से सींचा ,मुझे यक़ीन है एहतेशाम ,फैसल ,डॉ सलमान ,रेहान ,मुनज़्ज़ा और फरहा से भी उनोहने मदद ली होंगी । मुझे लगता है वो रिकॉर्ड में इंट्री करते समय बावज़ू होकर जानमाज़ पर बैठ कर पूरी यकसूई से इंद्राज (entry )करते होंगे के कोई ग़लती न होजाये। १३ साल की कड़ी लगन ,जान फिशनी के बाद जो नतीजा आया उनोहने एक तारीख़ रक़म (लिखना ) कर दी,ये एक संग मील की हैसियत रखता है । ख़ानदान के हर बुज़ुर्ग की मालूमात इस में मौजूद है। सदियों उनके कारनामे को रिश्तेदारों में याद किया जाएंगे। शायद किसी शायर उनिहि के लिए कहा है
मेरे जूनून का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह (black ) समंदर से नूर निकलेगा
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने
उनकी औलाद कनाडा ,बहरीन ,इंग्लैंड ,रूरकी ,नाला सुपरा ,बेंगलोरे में क़याम पज़ीर है। हज करने के बाद सुकून हासिल हुवा तो सैय्याह (Turist ) की तरह अपने पोतो ,पोतिया,नवासे निवासियों से मिलने के लिए निकल पड़ते हैं। हर जगह ज़हन में रिश्तेदारों की फलाह के लिए स्कीमें बनाते रहते है।
अल्लाह मिस्बाह सर को सेहत के साथ हयाते ख़िदर आता करे। उनका साया हम पर क़ायम रखे। आमीन सुम्मा आमीन।
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी
शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021
हाजी( स्वतंत्र सेनानी )क़मरुद्दीन मुंशी
मरहूम हाजी क़मरुद्दीन मुंशी |
मरहूम हाजी क़मरुद्दीन अवार्ड लेते हुवे |
हज को जाते हाजी क़मरुद्दीन मुंशी और हज्जन अहलिया रज़िया बेगम |
मरहूम क़मरुद्दीन अपने पोते पोती नवासे नवासी के दरमियान |
सुहिला ,मरहूमा रज़िया बेगम,तारिक़ ,मरहूम क़मरुद्दीन मुंशी ,समीना |
सोमवार, 12 अप्रैल 2021
खुशबु जैसे लोग मिले
अपनी अहलिया शाहिना बेगम के साथ |
गुरुवार, 1 अप्रैल 2021
शकील अहमद ज़ियावद्दिन सैय्यद
मरहूम शकील अहमद सैय्यद |
मरहूम शकील अहमद तारीखे पैदाइश :22nd Feb 1960 वफ़ात :27 March 2021 (13 शाबान 1442 ) नवापुर के शहरे ख़मोशा (बड़े कबरस्तान ) में नया इज़ाफ़ा हुवा ,शकील अहमद भी हम सब को छोड़ कर अपने चाचाओं ,बड़े अब्बा बड़ी अम्मी और अपने अब्बा ,अम्मी के दरमियाँ पहुँच गए।
तुम्हारे चले जाने से एक ख़ला (vacuum ) होगया है जिस का अज़ाला भरपाई नामुमकिन है।
निक़हत के से साथ ३५ साला लम्बा अरसा गुज़ार कर तुम उसे तन्हा छोड़ गए ,फैज़ान की खुशिया चली गयी ,नवासे पोतो के सर से शफ़क़त उठ गयी ,सादिया व नौशीन ने अज़ीज़ वालिद खोया ,नाहिद ,नाज़ेरा ,ज़ाकिर ,ज़की ,शफ़ीक़ ने अपने हरदिलअजीज भाई शकील दादा की क़ुरबते रफ़ाक़ते खोयी। ईमान वाले को रज़ाए इलाही के सामने तस्लीम ख़म करना वाजिब है। हम अल्लाह की तरफ से आये हैं उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं। अगर जन्नत मिल जाये तो ये सब से बड़ी कामयाबी है। अजीब इत्तेफ़ाक़ मग़रिब की अज़ान के वक़्त मरहूम शकील अहमद की रूह क़ज़ा हुवी। गवाहों ने शहादत दी है जिस वेहिकल से उनेह हॉस्पिटल पुह्चाया जा रहा था मरहूम की ज़बान पर तीनो इब्तेदाई कलमों का विरद ज़ोर शोर से जारी था। हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर को सलाम किया ,वहां बैठे मरीज़ों की खैरियत पूँछी ,बाद में अपने अपनी जेबे तलाशने लगे। किसी ने पूछा क्या तलाश कर रहे हो कहा" तस्बीह"। फिर किसी साथी ने लकड़ी की तस्बीह हदिया की तो मरहूम मसरूर हुवे , तब्बसुम के साथ दुआ दी।पहली निशानी मरहूम शकील की जन्नती/शहीद होने की हमेशा ज़बान अल्लाह की याद से भीगी रहती है। माशाल्लाह मरहूम आखरी वक़्त तक अल्लाह के ज़िक्र में मसरूफ रहे ,मुस्कुराते रूह कब्ज़ हुवी।
जान दी,दी हुवी उसी की थी
हक़ तो ये है के हक़ अदा न हुवा
मरहूम शकील ने सौरूप सिंह नायक कॉलेज नवापुर से B.A तक तालीम हासिल की थी ,मगर पेशा अपनाया (नबी S.A.S का ) यानि कारोबार (business ) , मरहूम ने अपने वालिद ज़ियावोद्दीन के ज़ेरे साया झामंजर ,भड़भूँजा में ईमानदारी,लगन और मेहनत से दुकानदारी सीखी । फिर अपने हौसले और हिम्मत से नवापुर के सुनसान /बंजर इलाक़े ,देवल फली में अपना कारोबार शुरू किया। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का वादा है ईमानदार ताजिर का अंजाम औलियाओ नेक नामो के साथ होगा। मरहूम ने ज़िन्दगी भर ईमानदारी से तिजारत की ,घर भी मस्जिद के करीब बनाया।
जन्नती होने की दूसरी निशानी।
हमने हर गाम पे सजदों के जलाये हैं चराग़
अब तेरी राह गुज़र राह गुज़र लगती है
इस्लामपुरा की मस्जिद में मरहूम शकील अहमद नमाज़ अदा करते थे। अज़ान होते ही मरहूम घर से वज़ू कर के दुकान अल्लाह के हवाले कर मस्जिद रवाना होजाते ,इस्लामपुरा मस्जिद का हर गोशा (कोना ) हश्र में मरहूम के सजदों की इंशाल्लाह गवाही देंगा। अल्लाह रअबुलइज़्ज़त का वादा है ,एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ के इंतज़ार में रहने वाले मोमिन को क़यामत में अर्शे के साये में पनाह मिलेंगी।
मरहूम शकील अहमद की खुश मिज़ाजी की गवाही तमाम नवापुर शहर देता है। चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट सजी होती। मुस्कराहट भी इस्लाम में सदक़ा होती है ,बहुत कम लोगों को ये खुश नसीबी हासिल होती है। मरहूम क्रिकेट के शौक़ीन थे ,मैंने उनेह खेलते देखा हूँ।
मरहूम ने दोनों बेटियों की शादी मारूफ घराने में कराई। अपने फ़रज़न्द फैज़ान की भी शादी करवाई, कारोबार की ABACD सिखाई किसे पता था इतनी जल्द उस मासूम के कन्धों पर ये ज़िम्मेदारी मुन्तक़िल होजाएंगी।
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे कल जिस के मुस्कुराने से
मौत बरहक़ है "आज वो कल हमारी बारी है " नवापुर में रिश्तेदारों के बच्चों के तक़सीम इनामात के प्रोग्राम में उनसे आखरी मुलाक़ात हुवी थी। बहुत नसीहत अमेज़ तक़रीर की थी। इनामात उनके हाथों से तक़सीम किये जाने पर ख़ुशी का इज़हार भी किया था।
यु तो हर एक को जाना है इस ज़माने से
मौत तो वो है जिस पे ज़माना करे अफ़सोस
अल्लाह मरहूम शकील अहमद की मग़फ़िरत करे ,जन्नत में आला मुक़ाम आता करे ,घर के तमाम अफ़राद को सब्र जमील आता करे ,आमीन सुम्मा
बुधवार, 24 मार्च 2021
khushbu jaise log mile
खुशबू जैसे लोग मिले
अल्हाज सय्यद मखदूम अली
तारीखे पैदाइश : ३० मई १९५४
बशीर सैयद ,रागिब अहमद ,मखदूम अली (धुले तक़सीम इनामात प्रोग्राम ) |
रविवार, 21 मार्च 2021
रज़ीउद्दीन (खालू जान )
मरहूम अल्हाज रज़ीउद्दीन और अहलिया अकीला बी
L to R मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन ,मरहूम अल्हाज रज़ीउद्दीन , जनाब साबिर अली ,मरहूम सईद अहमद ,Adv नियाज़ |
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021
शादी खाना आबादी
समिर व तहसीन |
नसरीन ,शगुफ्ता ,रागिब अहमद ,बशीर सय्यद ,इरफ़ान सैयद |
रागिब अहमद ,समीर ,तहसीन ,शगुफ्ता |
बुधवार, 17 फ़रवरी 2021
खुश्बू जैसे लोग मिले
सोमवार, 4 जनवरी 2021
GHULAAM MOHIYODDIN SAYYED
मौत से किसको रस्त्गारी है
आज वो कल हमारी बारी है
अक्सर नवापुर में लोगों के नाम के साथ उर्फियत लगी नज़र आती है। अच्छे भले नाम की मट्टी पलीद कर दी जाती है। मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन सय्यद को अच्छा हुवा,अपने सही नाम से ज़िन्दगी भर जाना गया। मरहूम रिश्ते में सगे मामू होते है। बचपन में ही हमारी वालिदा बिस्मिल्ला का इंतेक़ाल होगया था। हम सब भाइयों को अपने बच्चोँ से बढ़ कर चाहा। हमारी तालीम पर खास तौर पर तवज्जोह दी।
कहाँ बचकर चली ऐ फसले गुल मुझ आबला पॉ से
मेरे कदमों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है
मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन सैयद ने ज़िन्दगी भर भड़भूँजे जैसे छोटे देहात में कारोबार किया। आदिवासियों के बीच दूकान चलना बड़ा दुश्वार होता है। मरहूम ने जिस ईमानदारी से कारोबार किया उसकी मिसाल नहीं दी जा सकती। अपनी औलाद को भी अपने रंग में ढाल गए।
मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन बड़े सच्चे ,ईमानदार वादे के पक्के थे। ज़िन्दगी अपने उसूलों पर जिये। बड़ी DISCIPLINED लाइफ गुज़ारी। खामोश तबियत थे। अपने से छोटे उम्र के बेटों , बेटियों ,भांजों ,भांजियों ,भतीजे भतीजियों तक को आपा ,दादा कह कर मुखातिब किया करते। कभी किसी से रंजिश नहीं रखी, न किसी से ग़ुस्से तैश में बात करते। आखिर उम्र में नवापुर के मुस्लिम मोहल्ले के मकान में रिहाइश पज़ीर हो गए थे। इंतेक़ाल से चार साल पहले उनकी अहलिया शकीला ,इस दुनिया से रुखसत हो गयी थी ,उनकी बीमारी के दौरान मरहूम ने ७ साल तक उनका बेहद ख्याल रखा।
दो साल गुज़र गए मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन को हम से जुदा हुवे ,दिन महीने साल इसी तरह गुज़रते रहेंगे ,वक़्त कहा किसी के लिए रुका है। हम सब भी जाने कब तारीख का हिस्सा बन जायेंगे। रहे बाकि नाम अल्लाह का। मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन नवापुर के ईद गाह कब्रस्तान में अपनी अहलिया के पड़ोस में आराम फरमा है।
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे कल जिस के मुस्कुराने से