रविवार, 21 मार्च 2021

रज़ीउद्दीन (खालू जान )


                                       मरहूम अल्हाज रज़ीउद्दीन और अहलिया अकीला बी 

 
L to R मरहूम ग़ुलाम मोहियुद्दीन ,मरहूम अल्हाज रज़ीउद्दीन , जनाब साबिर अली ,मरहूम सईद अहमद ,Adv नियाज़ 
                                                            एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया 
६ दिसंबर २०१३ को  सुबह होलनाक खबर से दोचार हुवा अल्हाज रज़ीउद्दीन इंतेक़ाल कर गए । १३ दिसंबर २०१३ को अल्हाज सादिक़ अहमद इस दुनिया से रुखसत हुवे। २०१४ में अल्हाज सईद अहमद का इन्तेक़ाल  हुवा। अजीब इत्तेफ़ाक़ था तीनो एक दूसरे के बहुत करीब हुवा करते थे। मेरी ज़िन्दगी में इन क़रीबी बुज़र्गों के एक साथ रुखसत होने से एक ख़ला होगया 
                                                    मंज़िल की हो तलाश तो दामन जुनू का थाम 
मरहूम रज़ीउद्दीन रिश्ते में मेरे सगे खालू  थे ,लेकिन में ने कभी बुज़र्ग नहीं समझा। १९७१ में हम दोनों ने एक साथ मेट्रिक का एग्जाम पास किया था। हम दोनों की उम्र में काफी फ़र्क़ था। में हमेशा उनेह अपना क्लास मेट कह कर लोगों से तार्रुफ़  करावाता। वो मुस्करा कर कहते "क्या ग़ज़ब रागिब मिया "  
मरहूम रज़ीउद्दीन इतनी उम्र में भी हमारे वालिद हाजी क़मरुद्दीन से मैथ्स के मुश्किल सवालात समझने एरंडोल से जलगाव आते ,  हालाँकि खुद टीचर थे। अब्बा ट्यूशन पढ़ाते थे। हम बच्चों के साथ बैठ कर सीखने में उनोहने कभी छोटापन महसूस नहीं किया ।  हम दोनों का एक ही सेंटर पर मेट्रिक एग्जाम का नंबर आया।,दोनों ने साथ साथ एग्जाम पास किया ,मुझे अपने से ज़ियादा ,उनके पास होने की ख़ुशी थी, क्यूंकि अक्सर ये होता है ,एक उम्र के बाद जिंदिगी ठहर जाती है ,आदमी ज़द्दो जहद से जी चुराता है।   मरहूम ने एक उम्र के बाद  तालीम का सिलसिला शुरू किया ,तर्रकी हासिल करनी थी, हेड मास्टर बनना था,अपनी लगन ,महनत से मेट्रिक भी पास किया और  अपने हदफ़ ,हेड मास्टर बनने को सच कर दिखया । 
वो इत्र दान सा लेहजा हमारे बुज़र्गों का 
मरहूम को उर्दू पर उबूर (command ) हासिल था। लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ ,जुमलों की बंदिश दिल चाहता था "वो कहा करे में सुना करू " जब मुंबई से जलगांव आना होता ,उनसे मुलाक़ात करने ज़रूर एरंडोल जाता। बहुत खुश होते।   तरह तरह की dishes तैयार करवा के मेहमान नवाज़ी करते। अजब दिलनवाज़ बातें हुवा करती थी उनकी। 
दिल चाहता था बातों का ये सिलसिला कभी खत्म न हो। 
उनसे जुदा होते वक़्त महसूस होता था। 
तेरी कुर्बत के लम्हे फूल जैसे 
मगर फूलों की उमरें मुख़्तसर हैं 
मरहूम के मिज़ाज में सादगी थी। एक  मर्तबा में ने उनसे कहा घर में टेलीफोन क्यों नहीं लगवा लेते ,फरमाने लगे "एरंडोल में एक मारवड़ी ने घर में टेलीफोन लगवाया उसकी इनकम टैक्स इन्क्वायरी आ गयी। 
मरहूम ने टीचरी के साथ साथ कारोबार भी किया। बड़े बड़े फलों के बाग़ात मियाद पर खरीद लिया करते मुंबई ,नागपुर और राजस्थान तक उनके फ्रूट सप्लाई होते थे। खालिद मिया को अपने साथ रख कर माहिर कारोबारी बना दिया। 
खाला जान अकीला माशाल्लाह हयात है ,अल्लाह सेहत तंदुरुस्ती के साथ लम्बी उम्र अता करे। अल्लाह ने उनेह नर्म दिल अता किया है। जब भी उनसे मुलाक़ात होती है  ,जज़्बाती होजाती है। ढेरों दुवाओं से नवाज़ती है।  नीलोफर भाभी जान ,खालिद ,साजिद ,शाबान सबीना ने ,सग्गे भाई बहनों की तरह उन्सियत ,अपना पन दिया । अल्लाह इसी तरह इन रिश्तों में क़ुरबत ,मोहब्बत बाक़ी रखे। आमीन सुम्मा आमीन। 



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