अपनी अहलिया शाहिना बेगम के साथ |
हसीनोद्दिन मोज़ोद्दिन मुंशी
तारीखे पैदाइश :२७/१२/१९३० , मुक़ाम :मोहल्ला कसार चौड़ी (यावल )
मुझे हमेश से लोगों की Biography (life history ) पढ़ने में दिचस्पी रही है। मोहम्मद रसूल अल्लाह की सवाने हयात "दुर्रे यतीम " पढ़ कर कई दिन तक रोता रहा था। विंग्स ऑफ़ फायर डॉ अब्दुल कलाम आज़ाद की कहानी भी दिलचस्पी से कम नहीं। तुज़के बाबरी ,हुमायूँ अकबर की ज़िंदगिया भी हैरत अंगेज़ क़िस्सों से भरी है। हर इंसान की ज़िन्दगी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है। कुछ साहबान की ज़िन्दगी हैरत अंगेज़ होती है।
You don't grow old . You get old by not growing " (Deepak Chopra)
मौत क्या है थकन ख्यालों की
ज़िन्दगी क्या है दम ब दम चलना
जनाब हसीन मुंशी ज़िन्दगी की ९० बहारें ,खिज़ायें और बरससातें देख चुके हैं। दूसरी world war ,आज़ादी की जद्दो जहद ,चीन हिंदुस्तान की जंग ,पाकिस्तान से दो wars और अब इस उमर में करोना का क़हर अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं। इंसान वोही है जो न माज़ी की तल्ख़ीयों को याद रखे ,न मुस्तक़बिल के अंदेशों से खौफज़दा (भयभीत ) हो। कामयाब ज़िन्दगी वही जी सकता है जो हाल (present )में जीता हो।
मोहतरम हसीन मुंशी साहब एक मिसाल है। ९० साला उमर में तहज्जुद भी मस्जिद में अदा करते है ,पंज वक़्ता नमाज़े भी बाकायदगी से बाजमाअत मस्जिद में अदा होती है। अपने आप को अपडेट रखने के लिए अंग्रेजी अख़बार पढ़ते है। स्मार्ट फ़ोन को भी मौसूफ़ चाबुक दस्ती से use कर सकते है। उनकी मुसबित (positive ) सोच है जो ज़िन्दगी से हार न मानने में मददगार साबित हो रही है।
वालिद मोजोद्दिन पेशे से इंजीनियर थे ,सुना है जर्मनी भी अपने काम के सिलसिले में जाना हुवा था। शायद वालिद से बहुत सी खूबिया इन्हे वर्से में मिली है।
Confidence and hard work is the best medicine to kill the disease called failure .It will make us a successful person (APJ Abdul Kalaam )
हसीन मुंशी साहेब ने ज़िन्दगी में जो भी किया confidence आन ,बान शान से किया और उसे तकमील तक पुह्चाया । उनकी हर बात में एक रख रखाव,सलीका ,आला मेयार दिखाई देता है। आज़ादी से पहले यावल की SIMCOCK convent school से तालीम का सिलसिला शुरू किया था । मेट्रिक के बाद जोगेश्वरी के मशहूर इस्माइल युसूफ कॉलेज से हॉस्टल में रह कर B.A की डिग्री मुंबई यूनिवर्सिटी से हासिल की । आज भी उनेह अपने कॉलेज के प्रिंसिपल बनेर्जी साहब का नाम याद है। उर्दू टीचर नक़वी ,अरबी टीचर नदवी साहब। कॉलेज Volleyball टीम के कप्तान थे ,यूनिवर्सिटी तक अपनी कॉलेज की Volleyball टीम की नुमायन्दगी की। ख़ूबरू तो थे ही ,तवील कद (Tall ), सफ़ेद रंग ,बाल बनाने के अपना अंदाज़ था। मुझे लगता है देव आनंद ने मुंशी साहब की हेयर स्टाइल फिल्मो में अपनायी थी।
कोशिश भी कर ,उम्मीद भी रख ,रास्ता भी चुन
फिर उसके बाद थोड़ा मुक़्क़दर तलाश कर
१९५४ /१९५५ में B.A की तालीम पूरी करने के बाद।,मौसूफ़ हसीन मुंशी साहब ने अपनी काबिलियत की बिना पर १९५६ में मशहूर कंपनी मफतलाल इंजीनियरिंग में Quality control department में ज्वाइन किया , और १९८६/१९८७ तक इसी कंपनी से जुड़े रहे । १९५७ में शाहिना बेगम ( एस. नूरबेगम )से शादी हुवी ,इस का सुबूत उनकी शादी का कार्ड भी शामिल है। मौसूफ़ ने अपनी लड़कियों ज़रीना ,तहमीना ,सबीना, रुबीना और फेहमीना को अच्छी तालीम दिलवाई ,मारूफ घरानो में शादी करवाई। अपने फ़रज़न्द इरफ़ान आलम को गुलबर्गा कॉलेज से फार्मेसी की तालीम दिलवाई ,मेडिकल स्टोर कारोबार शुरू करवा के कई सालों तक उसके साथ शरीक रहे। अल्लाह ने उनेह अपनी अहलिया के साथ हज की सआदत भी नसीब की।
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो एक दुआ याद आयी
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