मंगलवार, 24 नवंबर 2020

नयी उमर की नयी फ़सल


                                                      सफ़वान बशीर सैय्यद 



सफ़वान बशीर सय्यैद

 वालिद का नाम : बशीर लतीफुद्दीन सैय्यद , वालिदा का नाम : नसरीन सय्यैद 
Qualification  : B.SC  (IT ) , MBA (IT) 
मंज़िल की हो तलाश तो दामन जूनून का थाम 
राहों के रंग देख न तलवों के खार देख 
नामों का असर इंसान की शख्सियत पर ज़रूर नुमाया होता है । इस लिए कहा जाता है बच्चों के नाम सोच समझ कर रखने चाहिए। सफ़वान का मतलब होता है चट्टान ,रोशन दिन। फिर ऐसे घर में पैदा हुवा जहां माँ ,बाप दोनों सैय्यद (नजीब उल तरफ़ैन ) ,दादा लतीफुद्दीन सैय्यद एक्साइज शोबे से मुंसलक थे , हादिसे में उनका सीधा हाथ कट चूका था ,दाएं हाथ से लिखना सीखा ,पिस्तौल चलाना सीखा ,तर्रकी कर डिप्टी सुरिंटेंडेंट पोस्ट तक तर्रकी की। वही जूनून , वही दीवानगी मंज़िल को पाने की जुस्तजू सफ़वान को दादा विरसे में अता कर गए। सफ़वान के नाना मरहूम शरीफुद्दीन सय्यद भी उससे बेइंतहा मोहब्बत करते थे , मरहूम की नसीहतें ,रहबरी सफ़वान के लिए मश अले राह साबित हुयी। 
मेहनत से वो तक़दीर बना लेते है अपनी 
विरसे में जिन्हे कोई खज़ाना नहीं मिलता 
सफ़वान ने प्राइमरी  एजुकेशन धुले की मारूफ सेंट ज़ेवियर स्कूल से मुक्कमिल किया  और सेकेंडरी एजुकेशन कनोसा कान्वेंट स्कूल  धुले से। खेल कूद का भी शौक रहा था। क्रिकेट का बेहतरीन आल राउंडर  ,जिम बॉडी बिल्डिंग  का शौक़ ,ज़हानत अल्लाह ने कूट कूट कर भरी थी ,बग़ैर ट्यूशन के तमाम पढ़ाई पूरी की। धुले के SSSVPS कॉलेज से B.SC कंप्यूटर साइंस की डिग्री हासिल की।
DR. APJ ABDUL KALAM का क़ौल  है , "Dream is not which you see while sleeping it is something that does not let your sleep " ख्वाब वो नहीं जो सोते में देखे जाये , बल्कि ख्वाब वो है जो  सोने न दे, जब तक उन की ताबीर हक़ीकत का रूप न धार ले। सफ़वान ने डिग्री अपनी मंज़िल नहीं समझ ली। हैदराबाद जा कर कोर्सेस किये। Tech Mahindra में अपनी काबिलियत, इंग्लिश की महारत पर जॉब मिलाया। तबियत में कुछ करने का जज़्बा था।  पूना की मारूफ ,अंजुमन  खैरुल इस्लाम पूना इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट में MBA (IT) admission मिलाया  ,साथ साथ शिफ्ट ड्यूटी ,रमजान के रोज़े भी रखे , लॉक डाउन में मस्जिद में रह कर मौज़िन की ड्यूटी भी निभाई ,इसी शर्त पर उसे मस्जिद में रहने की परमिशन मिली थी। माशाल्लाह इतने मराहिल परेशानियों  के बाद  A + ग्रेड में MBA की डिग्री मिलाना ,  सफ़वान ने एक  मिसाल कायम कर दी। खुदा करे के ये  दीवानगी ये जूनून हमेशा  बाकि रहे ,राह  की मुश्किलों को पैरों तले रौंदने का जज़्बा इसी तरह सलामत रहे।अल्लाह  से दुआ है कौम में ऐसे ही हर नौजवान को जज़्बा अता हो। सफ़वान के रौशन मुस्तक़बिल के लिए नेक ख्वाहिशात ,दिल से दुआ है  के कामयाबी हर क़दम पर उसके क़दम चूमे ,आमीन सुम्मा आमीन। 
डॉक्टर अल्लामा  इक़बाल ने ऎसे ही ख़ूबरू ,पाकबाज़ नौजवनों के लिये दुआ मांगी थी के ,
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाकी 
खुदा करे के जवानी तेरी रही बे दाग़ 
 


मंगलवार, 17 नवंबर 2020

किसी बहाने तुमेह याद करने लगते है

मरहूम अल्हाज सईद अहमद सय्यद 
Center late Sayaeed Ahmed ,Right Late Raziuddin ,Left Advocate Niaz ,Front Late Ghulam Mohiuddin

Tree plantation on occasion of death Anniversary of Late Sayeed Ahmed 

नाम : मरहूम सईद अहमद सय्यद उर्फ़ बना भाई (तारीख पैदाइश :०१/०६ /१९४२ ,नवापुर  तारीखे वफ़ात :२३/०९/२०१४ ,अजमेर शरीफ , दफ़न : सोनगढ़ क़ब्रस्तान )
वालिद का नाम : इकरामुद्दीन सैय्यद    वालिदा का नाम : मुमताज़ बी 
बीवीयों के नाम : रफ़ीक़ा सय्यद ,फहीमुन्निसा सय्यद 
औलाद के नाम : ज़की सैय्यद ,मोहसिन सैय्यद ,मरहूम वसीम सय्यैद ,आतिफ सैय्यद ,काशिफ सैय्यद ,फरहत ऐजाज़ शैख़ , साईमा खालिद शेख़ 
हज : २००९  में अपनी अहलिया के साथ  हज का फ़रीज़ा अदा किया 
एज़ाज़ (Post Held ):
१९८० से १९९० सरपंच भड़भूँजा 
वाईस प्रेजिडेंट :उच्छल खेतवाड़ी 
मेंबर- ऋषि मंडली उच्छल 
ट्रस्टी -सोनगढ़ गुणसादा शुगर फैक्ट्री 
मुतवल्ली -सोनगढ़ इस्लामपुरा मस्जिद मदरसा ट्रस्ट 
सभ्य -मलेकपुर अंजूमन 

तुम्हरी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं 
किसी बहाने तुमेह याद करने लगते है 
मरहूम सईद अहमद उर्फ़ बना भाई रिश्ते में हमारे सगे मामू है। गुजरात में हर किसे के नाम के साथ उर्फियत लगी होती है। मरहूम से में पूछ न सका वो सईद अहमद से बना भाई , कब और कैसे बने। 
नवापुर शिवजी मराठी स्कूल से मरहूम ने मीट्रिक पास किया। बॉम्बे की मशहूर "Ismael Yusuf College " जोगेश्वरी से इंटर आर्ट्स का इम्तेहान पास किया। सादिक़ अहमद इंजीनियर उनके बड़े भांजे ने उसी कॉलेज से इंटर साइंस का इम्तेहान पास किया। दोनों हॉस्टल में रहते थे। सादिक़ अहमद ,मरहूम सईद अहमद को "गोरे मामू "कहते , सारे कॉलेज में वो इसी नाम से मशहूर हो गए थे। अब्दुल करीम हल्दे जो हॉस्टल में उनके पडोसी थे ,(रिज़र्व बैंक से डिप्टी मैनेजर की पोस्ट से रिटायर हुवे है ) अक्सर अब भी मरहूम की बातें याद करते हैं। मरहूम सईद अहमद ने भोपाल यूनिवर्सिटी से आर्ट्स की डिग्री हासिल की। एक साल Law भी स्टडी किया । मरहूम  ने उर्दू अदब में BA किया था और उनके पास उर्दू किताबो का खज़ाना था। उमराव जान अदा ,किस्सा गुल बकावली ,दीवाने ग़ालिब ,कुल्लियाते इक़बाल ,ग़ालिब के शेरो की तशरीह जो अल्लामा हाली ने लिखी है, ये तमाम मेयारी (Standard ) किताबे मै ने उनके पास पायी थी। उस समय समझ में तो नहीं आता था फिर भी पढ़ लेता था। मुझे अपनी  किताबें पढ़ते देख मरहूम बहुत खुश होते थे। 
अल्फ़ाज़ व सूरत व रंग व तस्सवर के रूप में
ज़िंदा हैं लोग आज भी मरने के बावजूद 
 हाजी सईद अहमद अपने चार भाईयों ( हाजी अफ्ज़लोद्दीन ,ग़ुलाम महियोद्दीन ,मुहम्मद युसूफ ) और तीन बहनों (बिस्मिल्ला ,अकीला ,जीलानी) में सब से छोटे थे। सब की आँखों का तारा , माँ ,बाप (इकरामुद्दीन,मुमताज़ बेगम ) के नूरे नज़र थे। भाइयों में सब से छोटा कद उनिह का था। रंग सफ़ेद माईल (बेहद गोरा ) था। बोलती हुवी ऑंखें ,सर पर घनेरे बाल। नफासत पसंद थे।खुश मिज़ाजी कूट कूट कर भरी थी।  सफ़ारी पहननेका का शौक़ था।  किसी ज़माने   में imported Pistol  लिए घूमते थे। लइसेंस भी बनवा रखा था। double boar वाली gun भी थी ,कभी कभी शिकार भी खेल लेते थे। अच्छे  खानो का उनेह शौक़ था। खाने से ज़ियादा उन्हे  लोगों को खिलने का शौक़ था।बेहद खुश मिज़ाज थे। छोटे छोटे जोक्स पर कई कई रोज़ हस्ते रहते। में नए नए सीरिया गया था में ने उनसे कहा "गोर मामू सीरिया की औरतें बडी गोरी होती है ,लेकिन वहां के लोग मुझ से अपनी बीवियों के लिए fair and lovely क्रीम की डजनो बोतलें मंगवाते है ,ये तो वही बात हुवी न जैसे north pole वाला स्कीमों, जहाँ साल भर बर्फ़बारी होती है इंडिया से बर्फ मंगवाए " मरहूम कई रोज़ तक इस जोक को enjoy कर हस्ते रहे। मरहूम ने हिस्सास तबियत पायी थी। 
     मिट्टी  को सोना बनाना  के फैन उन से सीख जा सकता था। जो कारोबार किया आन ,बान ,शान से किया लकड़ों का कारोबार किया पूरे जंगल खरीद लिया करते थे। टट्टे वैगन भर के अहमदाबाद को रवाना करते। मछ्ली का कारोबार ,मानो एक छोटी मोटी industry चला रहे हो । उकाई dam की टनों मछलियां  बॉस्केट में पैक की जाती ,कलकत्ता को भेजी जाती थी। जब तक मछली के टोकरे ट्रैन में लोड नहीं होजाते थे, हावड़ा एक्सप्रेस भड़भूँजा स्टेशन पर रुकी रहती। उसी ज़माने में (१९७४ -१९७७) मरहूम बॉम्बे से कलकत्ता प्लेन से सफर किया करते थे।
जी रहा हूँ इस उम्मीद के साथ 
ज़िन्दगी को मेरी ज़रुरत है 
1978 में अपनी पहली रफ़ीक़े हयात जिन का नाम रफ़ीक़ा ही था ,की मौत पर में ने उनेह टूटते देखा। लेकिन वसीम ,ज़की ,मोहसिन ,फरहत जहाँ की खातिर अपने आप को संभाला,एक नयी ज़िन्दगी की शुरवात की ,दोबारा अपना घर बसाया। दूसरी बार वसीम उर्फ़ बुल्या की नागहानी मौत ने उन्हें एक गहरे सदमे से दोचार किया।
मुझे सहल होगयी मंज़िले /
दूसरी बीवी फहीमुन्निसा ने भी उनका साथ खुलूस ,अपनाइयत ,बराबरी से दिया। उन के ग़म अपने दामन में समेट लिए। मरहूम माशाअल्लाह कसीर उल औलाद थे। उनोह्ने  ने अल्लाह के रसूल  (स अ स )की उस हदीस पर अमल किया,  आप ने फ़रमाया था " में उम्मत के उन लोगों पर फख्र करुंगा  जिन की औलाद ज़्यादा होंगी"।
नशेमन पर नशेमन इस तरह तामीर करता जा 
मरहूम अपने पसंद की चीज़ मुं मांगे दामों पर खरीद लिया करते थे। डॉक्टर वासिफ मुझे बता रहे थे  मरहूम नें सोनगढ़ में जिस पारसी का बंगला खरीदा  (जो उनेह बहुत पसंद था ) उस की कीमत इतनी ज़ियादा लगायी थी, के मालिके माकान ने एक पल की हिचकिचाहट के सौदा तय कर लिया था।  उस बंगले का नक़्श आज भी मेरे ज़हन में जूँ की तूँ मौजूद है। छोटे से टीले पर चार कमरों पे मुश्तमिल ,आंगन फूलों की खुशबु से महकता ,सीताफल ,अमरुद ,आम के फलों से लदे पेड़ ,पॉलिटरी भी थी ,Servant quarters अलग से बने थे। आंगन में झूले पर बैठ कर आदमी एक और दुनिया में पहुँच जाता था। गोरे  मामू की पसंद की दाद दिए बिना नहीं रह सकता ,गोरी मुमानी भी उसी  खुशअसलूबी से उस बंगले की देख भाल किया करती थी।
मरहूम अल्हाज सईद अहमद अजमेर शरीफ दरगाह में फातिहा ख्वानी करते हुवे 
 

मौत का एक दिन मुअय्यन है 
  मरहूम सईद अहमद को बुज़र्गों से इन्तेहाई अक़ीदत थी।  हदीस में आता है आदमी को उन ही लोगो के साथ उठाया जायेगा जिन से वो मुहब्बत रखते है।  शायद इस लिए मौत भी पायी तो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के शहर अजमेर में, जहाँ वो घूमने गए थे । सोनगढ़ के क़ब्रस्तान में आराम फरमा रहे है।
आदमी के इंतेक़ाल के बाद उसके आमाल का सिलसिला ख़त्म होजता है ,लेकिन नेक औलाद के आमाल में उसका हिस्सा ज़रूर उस तक पहुँचात है उसके दरजात बुलुंद होते है। हर साल मरहूम की बरसी पर मोहसिन के ज़िरए tree plantation ,हॉस्पिटल में ग़रीब मरीज़ों में फलों की तक़सीम का सिलसिला काबिले तारीफ़ काम है। अल्लाह  उनकी औलाद को इस कारे खैर पर जज़ाए खैरआता करे आमीन सुम्मा आमीन। 

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़

 
सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़
 
अकाबी रूह जब पैदा होती है नौजवानो में 
नज़र आती है मंज़िल उनको अपनी आसमानो में 
नाम : सिदरा नाज़िमुद्दीन शेख़ 
मुक़ाम पैदाइश :जलगांव , SSC Score 93 % CBSC (From Our Own School ,Dubai ), HSC Score  80 % CBSC (From Our Own School ,Dubai )
NEET Score :471 
MBBS : भरतिया विद्यापीठ पुणे में इस साल दखला मिला है 
 सिदरा (बेरी का पेड़ )कायनात की की इन्तहा है। जिस के आगे फ़रिश्तो के पर भी जल जाते है। हर इंसान के नाम में उसके असरात आते है। अल्लाह के रसूल (स अ स ) ने फ़रमाया "अपनी औलाद के अच्छे नाम रखा करो। नाज़िम और निकहत ने बहुत सोच कर बड़ा प्यारा नाम रखा था। दोनों ने बचपन से सिदरा की तरबियत इन्तेहाई समझदारी ,खुश असलूबी से की है। सिदराने भी माशाल्लाह अपने आप को हमेशा हिजाब में रखा। टेबल टेनिस की बेहतरीन खिलाडी है। बेहतरीन मुस्सविर (आर्टिस्ट )है।  दुबई में अक्सर नुमाईश (exhibitions ) में उसकी तस्वीरें अच्छे दामों पर बिकती है। Swimming  (तैराकी )जानती है। बेहतरीन खाने बनाना जानती है।  माशाल्लाह हर फन मौला है।  
रिश्तेदारों में इंशाल्लाह पहली Lady Doctor  (MBBS )होने का ऐज़ाज़ सिदरा को हासिल होगा। जलगांव रिश्तेदारी ग्रुप की जानिब से उसे नेक तम्मनाए , दिली मुबारकबाद। अल्लाह उसे उसके नाम की तरह कामयाबियों की बुलंदियों तक पुह्चायें।  आमीन सुम्मा आमीन। 
जलगांव शहर के लिए फखर का मक़ाम है के यहाँ की एक बच्ची ने शहर का नाम रौशन किया है। जलगांव रिश्तेदारी ग्रुप ने मौजूदा साल से रिश्तेदारों में तालीम की अहमियत को उजागर करने के लिए Award की शुरुवात की है। सिदरा ने रिश्तेदारों में अपने MBBS में दाखले से मिसाल कायम की है ,पहला Award रिश्तेदारी ग्रुप की जानिब से उसे पेश किया जा रहा है। हर साल इसी तरह इस award का सिलसिला जारी रहेंगा (इंशाल्लाह )। 


गुरुवार, 5 नवंबर 2020

शरीफुद्दीन सय्यद उर्फ़ बच्चू भाई नवापुर वाले


                              मरहूम बच्चू भाई अपने करीबी स्वरुप सिंह नाइक माजी वन मंत्री के साथ 
एक्स डिप्टी होम मिनिस्टर  माणिक राव मरहूम का स्वागत करते हुवे 


अपने पचास साला पुराने दोस्त गौहर पठान के साथ 

मरहूम अल्हाज शरीफुद्दीन सय्यद अपने खेत में 

                                                     
अपनी शरीक हयात शमशाद  बेगम के साथ 

       बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा 
                                                                               
नाम : शरीफुद्दीन सैय्यद (उर्फ़ बच्चू भाई ) 
तारीखे पैदाइश :    29/10/1938   नवापुर  ,  तारीखे वफ़ात :  10-03-2019   नवापुर 
ऐज़ाज़त (Achievements ) : 
१. मेंबर पंचायत समिति नवापुर  (1978 -1983 )
२. सरपंच ग्राम पंचायत झामंजर -२० साल 
३. मेंबर DRUCC (भुसवल डिवीज़न )- 1990 -1994 
४. चेयरमैन मिल्क प्रोडक्शन सोसाइटी झामंजर -२० साल 
५. स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (SEM ) नवापुर -२५ साल 
६. मेंबर रोज़गार हमी योजना कमिटी 
नवापुर की मारूफ  (Famous )हस्ती  किसी तआरुफ़ (Introduction ) की मुहताज नहीं माशाल्लाह उनके नाम (शरीफुद्दीन ) से ही शराफत टपकती है। अशराफ ख़ानदान (सैय्यद ,जमादार ) से निस्बत रखते  है , बात चीत में शराफत ,रवैये में शराफत ,तअल्लुकात में शराफत ।  
जैसे दिलीप कुमार को बहुत कम लोग युसूफ खान के नाम से जानते है,मरहूम शरीफुद्दीन भी बच्चू भाई के नाम से जग मशहूर थे।  उर्फियत ने उनके असली नाम को पीछे छोड़ दिया। मरहूम फरमाते थे शायद ही कोई मुझे शरीफुद्दीन के नाम से जनता हो। 
मरहूम की शख्सियत बड़ी दिलकश थी। ६ फ़ीट लम्बा कद (height ), जाज़िब नज़र (Attractive ) ,दूधिया सफ़ेद मायल रंग ,चेहरे पर सब्ज़ (green ) नीलगु ऑंखें। मरहूम ने पाटदार आवाज़ पायी थी। एक्टिंग को अपना पेशा बनाया होता तो दिलीप कुमार को नहीं अमिताभ बच्चन को ज़रूर पीछे छोड़ दिया होता। ज़िंदा दिल ,खुश मिज़ाज ,हलीम तबियत (नरम मिज़ाज )कभी मरहूम को ग़ुस्सा होते नहीं देखा। तालीम (Education ) ज़ियादा हसील नहीं कर पाए थे ,दुनिया के तजुर्बात (Experiences ) ने उनेह बहुत कुछ सीखा दिया। 
मरहूम  मामू जान ग़ालिब की तरह ज़िंदा दिल थे। उनका मज़ाक़ भी बड़ा मोहिजीबना होता ,इरफ़ान उनका फ़रज़न्द ,मुझे बता रहा था एक दिन वो अपने दोस्तों को घर ले आया ,बच्चू मामू ने उससे कहा अपने दोस्तों को ठंडा पीलाव  ,दोस्त कहने लगे हम पी कर आये है। बच्चू मामू ने बरजस्ता कहा "आप पिए हुवे तो नहीं लगते। 
ज़िन्दगी इतने मसायल से घिरी है बहुत कम लोग  मरहूम की तरह ,इन तल्खियों में चाशनी घोलने वाले मिलते है। बच्चू मामू  ने ८२ साल की  लम्बी उम्र पायी ,और माशाल्लाह हमेशा अपनी ज़िंदादिली ख़ुशमिज़ाजी क़ायम रखी।  ,उनकी सेहत का यही एक राज़ था। 
बुलंदियों पर पहोचना कोई कमाल नहीं 
बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है 
मरहूम बच्चू मामू पर ये शेर १००% सादिक़ आता है। बला की खुद ऐतेमादि (self confidence ) थी मरहूम में ,जिस काम में हाथ डाला माशाल्लाह कामियाब रहे। भड़भूँजा ,सकरदा ,झामंजर में दुकाने खोली कामयाबी से चलायी। सियासत (politics ) में कदम रखा २० साल लगातार झामंजर के सरपंच रहे। ५ साल पंचायत समिति के मेंबर रहे, उस इलाक़े (Area ) में जहां आदिवासियों का बोल बाला (वर्चस्व ) है। गोवेरमेंट के contract  हासिल करके ,रोड बनाये ,हॉस्पिटल तामीर किये। 
खेती बाड़ी की ,लकड़ो का कामयाब  कारोबार किया। एक वक़्त था उनका एक पॉव धूलिया में होता दूसरा मुंबई और फिर लोकल मामलात में भी हमेशा एक्टिव रहे। सवरूप सिंह नायक ,माणिक राव गावित और बिपिन चोखावला मारूफ  (well known ) हस्तियों के साथ मरहूम के घरेलु ताल्लुक़ात थे। हर बात में ये सब एक दूसरे  से मश्वरा लिया करते। मरहूम की गौहर पठान साहेब से आधी सदी (half century )पुरानी दोस्ती मौत के साथ ही ख़त्म हुवी। क्या मोहबतें ,उन्सियत ,अपनाइयत हुवा करती थी दोस्तों में ,इस की  ये एक यह एक ज़िंदा मिसाल है। 
मुझे सहल होगयी मंज़िलें वो हवा के रुख भी बदल गए 
तेरा हाथ हाथ में आगया के चराग़ रह में जल गए 
में ने मरहूम से एक बार  पूछा था "आपकी शादी को कितना अरसा होगया ,और मुमानी जान का नाम क्या है " कहने लगे रागिब में तुम्हारे दोनों सवालों का जवाब एक साथ दूंगा " ६० साल से लगातार शमशाद बेगम के गाने सुन रहा हूँ "।  ( कहने का मतलब था ,मुमानी का नाम शमशाद बेगम और शादी को ६० साल का अरसा होगया ) कहा और ज़ोर से क़हक़हा लगाया,जो उनकी पहचान थी। 
मुमानी जान से नोंक झोंक का सिलसिला जारी रहता  ,और मामू मिया मज़ाहिया फखरे कस कर माहौल को ज़ाफ़रानी कर देते। 
दोनों ने मिल कर अपनी औलाद की बेहतरीन तरबियत (ट्रेनिंग) की अच्छे खानदानो में शादिया करवाई।  इरफ़ान और नुमान  अपनी दोनों औलादों को, अच्छी तरह कारोबार में सेट करवा दिया। ज़िन्दगी भर कोंग्रेसी रहे,आखिर तक अपने उसूलो पर क़ायम रहे ,नफरत फ़ैलाने वाली सिआसत से उनेह बैर था।  
आखिर आखिर में सियासत से बड़े बद दिल  (heart broken ) होगये थे। इंतेक़ाल से कुछ अरसा पहले पॉलिटिक्स से रिटायरमेंट लेली थी ,लेकिन अपने आप को हमेशा एक्टिव रखा। खेती बाड़ी और मियारी  (standard )किताबें पढ़ने में अपने आप को मसरूफ रखते थे। दोस्तों का बहुत बड़ा हलका (circle ) था रोज़ाना  शाम में मटर गश्ती और फिर गरमा गरमा बहस होती। बाकायदगी से मस्जिद में  नमाज़ अदा करते। अपने खेत में ज़ियादा वक़्त गुज़रते। आमों के पेड़ लगा रखे थे ,जो फलो से लदे रहते। लहलहाती फसल को निहारते रहते ,अपनी चारपाई डाले मज़दूरो को काम करते देखते रहते। कभी कभी हाथ में किताब भी होती ,गहराई से मुतालिआ करते। अपना जाती मकान ,गाड़ी ,ड्राइवर ,वाफ़ा शॉर बीवी ,फर्माबरदार औलाद , समाज में रुतबा , इज़्ज़त ,और सोने पे सोहागा २००४ में मरहूम ने हज का फ़रीज़ा भी अदा कर लिया था  ,इस से ज़ियादा पुरसुकून ,कामयाब  ज़िंदगी और क्या हो सकती ही ?

मौत तो वो है ,जिस का ज़माना करे अफ़सोस 
यूँ तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिये 
मरहूम के इंतेक़ाल के बाद ,अरसे तक अखबारात में ताज़ियतें छपती रही। कई प्रोग्राम मुनअक़िद किये गए जिन में उनेह खिराजे अक़ीदत पेश किया गया। कई राज़ों से पर्दा उठा ,किरदार के उन पहलुओ  पर रौशनी पड़ी जो ज़माने से परदे में थे। 
उनकी सिफारशों  से कितनो की तरक़्की हुवी ,नौकरी मिली ,ट्रांसफर में मदद मिली ,कब्रस्तान मस्जिद मदरसों के काम हुवे। 
बिपिन चोखवाला साहेब इरफ़ान से कहते है, "आपके घर के सामने से गुज़रना छोड़ दिया  हु ,बच्चू भाई की याद ताज़ा होजाती  है " क्या किसे के चले जाने से किसी की ज़िंदगी में इतना बड़ा ख़ला (vacuum ) भी पैदा हो सकता है ? 
१९५६ में झामंजर के चर्च पर बिजली गिरी थी और चर्च, राख का ढेर होगया था। मरहूम मामू जान ने चर्च की नए सिरे से तामीर  (construction ) में अपनी खिदमात (help ) दी थी ,ये बात उस चर्च के फादर ने एक ताज़ियाती महफ़िल में कही और लोगो को अचरज में दाल दिया। ऐसे किरदार की बुलंदी बहुत कम लोगो को नस्सेब होती है । churches  में भी मरहूम मामूजान के लिए prayers  मुनाकद  की गयी, इस बात का सबूत है के फिरका परस्ती  और नफरत की सियासत मरहूम जैसे लोगों के होते पनपने वाली नहीं। 
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया 
 १० मार्च २०१९ को बच्चू मामू इस जहाने फानी से कूच कर गए। बड़े खुशकिस्मत  रहे ,नवापुर के बड़े क़ब्रस्तान में अपने ख़ानदान के बुज़ुर्गों ,अज़ीज़ो के साथ आराम फरमा हैं। अल्लाह मरहूम बच्चू मामू की मग़फ़िरत करे ,जन्नत फ़िरदौस में आला मुक़ाम आता करे।   आमीन ,सुम्मा आमीन। 

                                                         
मरहूम इंस्पेक्टटर कादरी के साथ