पचास साल लम्बा अरसा (period ) होता है। हम ने पाकिस्तान के साथ दो wars लड़ी। लाल जवारी खायी खुश मसरूर रहे। आज पीज़ा ,बर्गर ,नूडल जाने क्या क्या है जो नहीं मिलता। फ़िल्में ब्लैक एंड वाइट से तरक़्क़ी करके कलर और ३ D में बनने लगी हैं। घर बैठे Smart TV पर दुनिया नज़र आजाती है। Mobiles ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुके हैं। दोस्ती Whatsup ,Face book ,Instgram पर होने लगी है। ठेंगा दिखाना किसी ज़माने में एयब (बुराई ) समझा जाता था आज पसंद (like ) के लिये use होने लगा है।
महव हैरत हूँ के दुनिया क्या से क्या होजायेंगी
पचास साल पुरानी यादें गठरी में बचाये रखी थी। गठरी खुली तो देखा माँ बाप नहीं रहे। कई दोस्त भी जुदा होगये। ज़मीं खा गयी आसमान कैसे कैसे
मखदूम अली ,मैं (राग़िब ), शेर अली सय्यद और रफ़ीक शेख़ बहुत करीब दुःख सुख के साथी हुवा करते। जलगांव वतन को छोड़ा। इत्तेफ़ाक़न चारों ने साथ साथ बम्बई का रुख किया। हम सब ने शादी की ,तरक़्क़ी के अव्वलीन मराहिल में थे। बच्चे primary education हासिल कर रहे थे। हम चारों ज़माने ,वक़्त और हालात से पंजा कशी में मसरूफ थे।
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गये
२४ साल पहले दर्दनाक हादसे में रफ़ीक हम से बिछड़ गया। क्या दिलफ़रेब शख्सियत थी ६ फुट लम्बा कद ,सुर्ख सफ़ीद रंग ,आसमान सी नीली ऑंखें ,हमेशा मुस्कुराता चेहरा और गुनगुनाता तो मोहमद रफ़ी की याद ताज़ा कर देता। मुंबई पुलिस में इंस्पेक्टर बन गया था , वर्दी पहन लेता तो अजीब बांकपन छलकने लगता। फिल्म इंडस्ट्री में जान पहचान थी ,रितिक रोशन की तरह खूबरु (handsome ) था। चाहता तो फिल्म एक्टर बन सकता था। लेकिन "हम सब तो रंग मंच की कठ पुतलियां हैं ,जिन की डोर ऊपर वाले के हाथ में है " ऊपर वाले ने एक झटके में रफ़ीक की डोर खेंच ली। एक चलता फिरता इंसान अपने नामुक्कमील ख्वाबों ,आरज़ूओं , अरमानो को लिये मनो मिट्टी के नीचे दब गया फना होगया।
न जाने मेरे बाद उन पे क्या गुज़री
मै ज़माने में चंद ख्वाब छोड़ आया था
हिकायत दूसरे दरवेश की
Marhum Inspector Sher Ali Sayed |
शेर अली सय्यद भी ग़रीब खानदान में पैदा हुवा था ,वालिद पुलिस हवलदार थे। SSC में जलगांव में top किया था। कड़ी मेहनत से जलगांव से graduation किया। NCC में active part लिया करता। न कोई सिफारिश न रिश्वत अपने talent अपने बल बूते पर पुलिस सब इंस्पेक्टर के लिए select हुवा ,बॉम्बे में पोस्टिंग हुयी। मुलुंड , अँधेरी और चेम्बूर पुलिस स्टेशन में ड्यूटी निभाई तरक्क़ी कर इंस्पेक्टर बना। ख़ानदान के लिए अपने आप को वक़्फ़ कर रखा था। बहनो की शादी करवाई , न जाने उसे कैसे खबर होगयी थी के मुख़्तसर ज़िन्दगी मिली है , बड़े बड़े कारनामे अंजाम देना हैं। अफ़सोस अपनी औलाद के रोशन मुस्तकबिल को न देख सका ,SP ,DSP न बन सका। हुक्मे ख़ुदा वन्दी के सामने सर झुकाना पड़ा। वो लहीम शहीम जिस्म वाला, पुलिस वर्दी पहन कर निकलता तो लोग सहम जाते ,रफ़ीक के चार साल बाद पैवन्दे खाक हो गया।
मेरी और मखदूम अली की पचास साला दोस्ती में चार दोस्तों की शफ़्क़तें ,चाहतें ,रफ़ाक़तें ,मोहब्तें छुपी हैं।
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिले
मौत क्या है थकन ख्यालों की
ज़िन्दगी क्या है दम ब दम चलना
हमारी दोस्ती उस ज़माने की है जब जलगांव में साल में एक दफा रथ निकलता था। दशहरे पर लोग भवानी का सौंग रचा कर सारे शहर में ढोल ताशों के साथ घूमा करते। मोहर्रम के ताज़िये ,बाग़ ,दुलदुल ,अलाव और सवारिया हमारा entertainment हुवा करता। मेहरून तालाब और ख्वाजा मियां की दरगाह हमारी नज़रों में दुनिया की सब से खूबसूरत जगह हुवा करती थी। नटराज ,नटवर ,राजकमल और चित्रा सिनेमा में फिल्मे देखना अय्याशी समझा जाता था। हफ्ते में एक दिन रेडियो सीलोन से अमीन सियानी का "बिना का गीत माला " अकीदत से सुनते।
ख्वाब था जो देखा था ,अफसाना था जो सुना था
हम ने ख्वाब भी बड़े बड़े नहीं देखे थे। लेकिन सोचा ज़रूर था कुछ अलग करना। है मखदूम अली उस ज़माने में (आज से ४० साल पहले )MPSC का exam पास करता है, आज पता चला कितना मुश्किल काम था जो मेरे यार ने चुटकियों में कर दिखाया। न खुशीया मनाई न जशन किया।, ज़िन्दगी में ये सब करने का मौक़ा कब था। भाभी यास्मीन को शादी के बाद B.ED करने का मौक़ा फ़राहम करता है। ख्वाब की बातेँ लगती हैं।
महराष्ट्र गवर्नमेंट से account officer की पोस्ट से retirement के बाद कल्याण में खरीदे घर को अपने सपनो का रंग दे कर इत्मीनान की ज़िन्दगी गुज़ार रहा है। घर के करीब मस्जिद की सहूलत भी दस्तियाब करली है। ज़िन्द्गगी में निचला बैठना नहीं सीखा। कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गये उनको मुक्कमिल करने में मसरूफ है। मुंबई यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म का कोर्स मुक्कमिल किया , रोज़ाना सुबह हम ख्याल दोस्तों के साथ चहल कदमी ,म्यूज़िक से शुग़ल ,कभी कभी अच्छी फिल्मो को देख लेना। उर्दू अदब से लगाव है ,मैगज़ीन ,इन्किलाब का दिलचस्पी से मुतालेआ। सोसाइटी की मैनेजिंग कमिटी में भी पेश पेश रहता है। कड़ी मेहनत से जनाब ने ग़रीब,बेवा ,अपंग रिश्तेदारों की लिस्ट बनायीं है ,और हर साल उन में रमजान के दौरान लोगों से जमा की रक़म की तक़सीम ईमानदारी से करते है। औलाद की तरफ से इत्मीनान है ,भाभी यास्मीन और मखदूम अली की ज़िन्दगी में रावी चैन लिखता है। अल्लाह से दुआगो हु खानदाने मखदूम पर इसी तरह अपनी इनायतों ,करम ,आफ़ियतों का सिलसिला क़ायम दायम रखे। आमीन
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे
उठाये हाथ तो ये दुआ याद आयी
रागिब अहमद शैख़ (आत्मा कथा )
तारीखे पैदाइश :२६/११/ १९५४ (यावल ,जलगांव )
हिकयते ग़मे दुनिया तवील थी कह दी
इज़्ज़त उसे मिली जो वतन से निकल गया
50 साल पहले 1971 में एंग्लो उर्दू हाई स्कूल जलगांव से मीट्रिक पास कर ,बॉम्बे आया था जेब में एक एक पेन ,दो जोड़ी कपडे ,चप्पल का एक जोड़ा मेरी मिलकियत थी। लेकिन वो जो कहा जाता है ,जो बॉम्बे एक बार आ जाता है नामुमकिन है कभी वतन लौटे। सोमैया कॉलेज से इंटर साइंस पास करने के बाद महाराष्ट्र कॉलेज बेलासिस रोड से B.SC की डिग्री हासिल की।
इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे, उठ के चले
बॉम्बे में SOFTSULE PVT LTD ,United Carbon India , Rama Petroleum में ज़िन्दगी के लंम्बे २० साल गुज़ारे। बहुत कुछ सीखा। किस्मत से Syria (शाम) में oil field में ८ साल shell petroleum के साथ Derra Zor मक़ाम फील्ड पर गुज़ारे। बेहतरीन तजुर्बा रहा। बहुत कुछ सीखा।
इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे, उठ के चले
बॉम्बे में SOFTSULE PVT LTD ,United Carbon India , Rama Petroleum में ज़िन्दगी के लंम्बे २० साल गुज़ारे। बहुत कुछ सीखा। किस्मत से Syria (शाम) में oil field में ८ साल shell petroleum के साथ Derra Zor मक़ाम फील्ड पर गुज़ारे। बेहतरीन तजुर्बा रहा। बहुत कुछ सीखा।
शाम पैग़म्बरों की सर ज़मीन है । दमिश्क़ शहर इस्लामी यादगारों से भरा पड़ा है। पैग़म्बर याह्या ,हज़रात बिलाल , सलाहुद्दीन अय्यूबी ,खालिद बिन वलिद ,इब्ने खुल्दुम के मज़ारात पर हाज़िरी देने का शरफ़ हासिल हुवा। बनी उम्मैया की खूबसूरत मस्जिद पर हाज़री दी,कहा जाता है इसी मस्जिद के मीनारे पर बैठ कर इमाम ग़ज़ाली (RA ) ने अह्या उल उलूम किताब लिखी थी । आज दिल अश्क़ बार है ,सीरिया (शाम ) की ईंट से ईंट बजा दी गयी है। वहां के अवाम को ये भी पता नहीं उनेह किस जुर्म की सज़ा दी जारही है।
११ साल सूडान में GREAT NILE PETROLEUM में काम किया। कंपनी खूबसूरत जंगलों के बीच थी ,कुदरत को करीब से देखने का मौक़ा मिला। खुशकिस्मत रहा local (मुक़ामी ) सुडानियों को oil field operation में माहिर कर COMPANY उनके हवाले कर आये। लेकिन वहां भी अमेरिकन politics काम कर गयी। मुल्क को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया गया । crude oil की दौलत साउथ सूडान के हवाले कर दी। नार्थ सूडान मुस्लिम मुल्क को कुछ भी हाथ न लगा।
१९८२ में शगुफ्ता से शादी हुवी माशाल्लाह अल्लाह ने दो लड़कियों से नवाज़ा और हमे जन्नत का हक़दार बना दिया। दोनों बेटियां शादी के बाद अपने ख़ानदान के साथ अमेरिका और Canada में खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं। हम दोनों मियां बीवी (में और शगुफ्ता )नेरुल नवी मुंबई में सुकूनत पज़ीर है। मरकज़े फलाह नेरुल में काम करके कौम के बच्चों मुस्तकबिल को सवारने की कोशिश में लगे रहते है।
११ साल सूडान में GREAT NILE PETROLEUM में काम किया। कंपनी खूबसूरत जंगलों के बीच थी ,कुदरत को करीब से देखने का मौक़ा मिला। खुशकिस्मत रहा local (मुक़ामी ) सुडानियों को oil field operation में माहिर कर COMPANY उनके हवाले कर आये। लेकिन वहां भी अमेरिकन politics काम कर गयी। मुल्क को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया गया । crude oil की दौलत साउथ सूडान के हवाले कर दी। नार्थ सूडान मुस्लिम मुल्क को कुछ भी हाथ न लगा।
१९८२ में शगुफ्ता से शादी हुवी माशाल्लाह अल्लाह ने दो लड़कियों से नवाज़ा और हमे जन्नत का हक़दार बना दिया। दोनों बेटियां शादी के बाद अपने ख़ानदान के साथ अमेरिका और Canada में खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं। हम दोनों मियां बीवी (में और शगुफ्ता )नेरुल नवी मुंबई में सुकूनत पज़ीर है। मरकज़े फलाह नेरुल में काम करके कौम के बच्चों मुस्तकबिल को सवारने की कोशिश में लगे रहते है।
इक़रा खानदेश फाउंडेशन की बुनियाद रख कर मरहूम मिस्बाह अंजुम ने एक शुरवात की थी। अल्हम्दोलीलाह प्रेस्डिडेन्ट के ओहदे की ज़िम्मेदारी उठाना ,रिश्तेदारों के बच्चों के लिए स्कालरशिप ,और तक़सीमे इनामात (PRIZE DISTRIBUTION ) प्रोग्रम्स ,मैरिज ब्यूरो की सरगर्मियां रिश्तेदारों की फलाह के लिए कुछ शुरवात तो हुयी।
अल्लाह इत्तेहाद क़ायम रखे ,टूट फुट से बचाये आमीन सुम्मा आमीन।
COVID की वबा (महामारी )ने इंसानियत को हलकान कर दिया है तोड़ दिया है । ऐसे सख्त दौर में भी कुछ लोग नफरत की सियासत खेल रहे हैं। अल्लाह से दुआ हैं ,हम अपनी काविशों ,कोशिशों से, काश सिसकती इंसानियत के ज़ख्मों का कुछ मदावा कर सके,ज़ख्मो पर मरहम रख सके।
माना के इस जहाँ को न गुलज़ार (बाग़ ) कर सके
कुछ ख़ार (कांटे ) कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम