मंगलवार, 29 सितंबर 2020

QISSA CHAR DARWESH




अरबी Grammar में  दो ही ज़माने (Tenses ) पाये जाते हैं , माज़ी (past ) और मुदारे। मुदारे में हाल (present ) और मुस्तकबिल (future ) छुपा होता है। माज़ी (past ) चक्री में लपेटा हुवा वह धागा है, खुलता है तो पतंग को आसमान पे ले जाता है। फिर लपेटने को जी नहीं चाहता।
पचास साल लम्बा अरसा (period ) होता है। हम ने पाकिस्तान के साथ दो  wars लड़ी। लाल जवारी खायी खुश मसरूर रहे। आज पीज़ा ,बर्गर ,नूडल जाने क्या क्या है जो  नहीं मिलता। फ़िल्में ब्लैक एंड वाइट से तरक़्क़ी करके कलर और ३ D में बनने लगी हैं। घर बैठे Smart  TV पर दुनिया नज़र आजाती है। Mobiles  ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुके हैं। दोस्ती Whatsup ,Face book ,Instgram पर होने लगी है। ठेंगा दिखाना किसी ज़माने में एयब  (बुराई ) समझा जाता था आज पसंद (like ) के  लिये use होने लगा है। 
महव हैरत हूँ के दुनिया क्या से क्या होजायेंगी 
पचास साल पुरानी  यादें गठरी में बचाये रखी थी। गठरी खुली तो देखा माँ बाप नहीं रहे। कई दोस्त भी जुदा होगये। ज़मीं खा गयी आसमान कैसे कैसे 
मखदूम अली ,मैं (राग़िब ), शेर अली सय्यद और रफ़ीक शेख़ बहुत करीब दुःख सुख के साथी हुवा करते। जलगांव वतन को छोड़ा। इत्तेफ़ाक़न चारों ने साथ साथ बम्बई का रुख किया। हम सब ने शादी की ,तरक़्क़ी के अव्वलीन  मराहिल में थे। बच्चे  primary  education हासिल कर रहे थे। हम चारों ज़माने ,वक़्त और हालात से पंजा कशी में मसरूफ थे। 
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गये  
हिकायत पहले दरवेश की
Marhum Rafiq Shaikh

२४ साल पहले दर्दनाक हादसे में रफ़ीक हम से बिछड़ गया। क्या  दिलफ़रेब शख्सियत थी ६ फुट लम्बा कद  ,सुर्ख सफ़ीद  रंग ,आसमान सी नीली ऑंखें ,हमेशा मुस्कुराता चेहरा और गुनगुनाता तो मोहमद रफ़ी  की याद ताज़ा कर देता। मुंबई पुलिस में इंस्पेक्टर बन गया था , वर्दी पहन लेता तो अजीब बांकपन छलकने लगता। फिल्म इंडस्ट्री में जान पहचान थी ,रितिक रोशन की तरह खूबरु (handsome ) था। चाहता तो फिल्म एक्टर बन सकता था। लेकिन "हम सब तो रंग मंच की कठ पुतलियां हैं ,जिन की डोर ऊपर वाले के हाथ में है "  ऊपर वाले ने एक झटके में रफ़ीक की डोर खेंच ली। एक चलता फिरता इंसान अपने नामुक्कमील ख्वाबों ,आरज़ूओं , अरमानो को लिये  मनो मिट्टी के नीचे दब गया फना होगया। 
न जाने मेरे बाद उन पे क्या गुज़री 
मै ज़माने में चंद ख्वाब छोड़ आया था 
हिकायत दूसरे दरवेश की 
Marhum Inspector Sher Ali Sayed

शेर अली सय्यद भी ग़रीब खानदान में पैदा हुवा था ,वालिद पुलिस हवलदार थे। SSC में जलगांव में top किया था। कड़ी मेहनत से जलगांव से graduation किया। NCC में active part लिया करता। न कोई सिफारिश न रिश्वत अपने talent अपने बल बूते पर पुलिस सब इंस्पेक्टर के लिए select हुवा ,बॉम्बे में पोस्टिंग हुयी। मुलुंड , अँधेरी और चेम्बूर पुलिस स्टेशन में ड्यूटी निभाई तरक्क़ी कर इंस्पेक्टर बना। ख़ानदान के लिए अपने आप को वक़्फ़ कर रखा था। बहनो की शादी करवाई , न जाने उसे कैसे खबर होगयी थी के मुख़्तसर ज़िन्दगी  मिली है , बड़े बड़े कारनामे अंजाम देना हैं। अफ़सोस अपनी औलाद के रोशन मुस्तकबिल को न देख सका ,SP ,DSP  न बन सका। हुक्मे ख़ुदा वन्दी के सामने सर झुकाना पड़ा। वो लहीम शहीम जिस्म वाला, पुलिस वर्दी पहन कर निकलता तो लोग सहम जाते ,रफ़ीक के चार साल बाद पैवन्दे खाक हो गया। 
मेरी और मखदूम अली की पचास साला दोस्ती में चार दोस्तों की शफ़्क़तें ,चाहतें ,रफ़ाक़तें ,मोहब्तें छुपी हैं। 
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिले 
मौत क्या है थकन ख्यालों की 
ज़िन्दगी क्या है दम ब दम चलना 
हिकायत तीसरे दरवेश की
Sayed Makhhdum Ali
 
हमारी दोस्ती उस ज़माने की है जब जलगांव में साल में एक दफा रथ निकलता था। दशहरे पर लोग भवानी का सौंग रचा कर सारे शहर में ढोल ताशों के साथ घूमा करते। मोहर्रम के ताज़िये ,बाग़ ,दुलदुल ,अलाव और सवारिया हमारा entertainment हुवा करता। मेहरून तालाब और ख्वाजा मियां की दरगाह हमारी नज़रों में दुनिया की सब से खूबसूरत जगह हुवा करती थी। नटराज ,नटवर ,राजकमल और चित्रा सिनेमा में फिल्मे देखना अय्याशी समझा जाता था। हफ्ते में एक दिन रेडियो सीलोन से अमीन सियानी का "बिना का गीत माला " अकीदत  से सुनते। 
ख्वाब था जो देखा था ,अफसाना था जो सुना था 
हम ने ख्वाब भी बड़े बड़े नहीं देखे थे। लेकिन सोचा ज़रूर था कुछ अलग करना। है मखदूम अली उस ज़माने में (आज से ४० साल पहले )MPSC का exam पास करता है, आज पता चला कितना मुश्किल काम था जो मेरे यार ने चुटकियों में कर दिखाया। न खुशीया   मनाई न  जशन किया।, ज़िन्दगी में ये सब करने का  मौक़ा कब था। भाभी यास्मीन को  शादी के बाद B.ED करने का मौक़ा फ़राहम करता है। ख्वाब की बातेँ लगती हैं।
महराष्ट्र गवर्नमेंट से  account  officer की पोस्ट से retirement के बाद कल्याण में खरीदे घर को अपने सपनो का रंग दे कर इत्मीनान की ज़िन्दगी गुज़ार रहा है। घर के करीब मस्जिद की सहूलत भी दस्तियाब करली है। ज़िन्द्गगी में निचला बैठना नहीं सीखा। कुछ ख्वाब जो अधूरे रह गये उनको मुक्कमिल करने में मसरूफ है। मुंबई यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म का कोर्स मुक्कमिल किया , रोज़ाना सुबह हम ख्याल दोस्तों के साथ चहल कदमी ,म्यूज़िक से शुग़ल ,कभी कभी अच्छी फिल्मो को देख लेना। उर्दू अदब से लगाव है ,मैगज़ीन ,इन्किलाब का दिलचस्पी से मुतालेआ। सोसाइटी की मैनेजिंग कमिटी में भी पेश पेश रहता है। कड़ी मेहनत से जनाब ने ग़रीब,बेवा ,अपंग रिश्तेदारों की लिस्ट बनायीं है ,और हर साल उन में रमजान के दौरान लोगों से जमा की रक़म की तक़सीम ईमानदारी से करते है।  औलाद की तरफ से इत्मीनान है ,भाभी यास्मीन और मखदूम अली की ज़िन्दगी में रावी चैन लिखता है। अल्लाह से दुआगो हु खानदाने मखदूम पर इसी तरह अपनी इनायतों ,करम ,आफ़ियतों का सिलसिला क़ायम दायम रखे। आमीन 
जहाँ रहे वो खैरियत के साथ रहे 
उठाये हाथ तो ये दुआ याद आयी 



रागिब अहमद शैख़  (आत्मा कथा )
तारीखे पैदाइश :२६/११/ १९५४ (यावल ,जलगांव )
हिकयते ग़मे दुनिया तवील थी कह दी 
हिकयते ग़मे दिल मुख़्तसर है क्या कहिये


Ragib Ahmed
  वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया 
  इज़्ज़त  उसे मिली जो वतन से निकल गया  
50 साल पहले 1971 में  एंग्लो उर्दू हाई स्कूल  जलगांव से मीट्रिक पास कर ,बॉम्बे आया था जेब में एक एक पेन ,दो जोड़ी कपडे ,चप्पल का एक जोड़ा मेरी मिलकियत थी। लेकिन वो जो कहा जाता है ,जो बॉम्बे एक बार आ जाता है नामुमकिन है कभी वतन लौटे। सोमैया कॉलेज से इंटर साइंस पास करने के बाद महाराष्ट्र कॉलेज बेलासिस रोड से B.SC  की डिग्री हासिल की।
इस तरह तै की है हम ने अपनी मंज़िलें
गिर पड़े ,गिर के उठे, उठ के चले
बॉम्बे में SOFTSULE PVT LTD  ,United Carbon India , Rama Petroleum में ज़िन्दगी के लंम्बे २० साल गुज़ारे। बहुत कुछ सीखा।  किस्मत से Syria (शाम) में oil field में ८ साल shell petroleum के साथ Derra Zor मक़ाम फील्ड पर गुज़ारे। बेहतरीन तजुर्बा रहा। बहुत कुछ सीखा। 
 शाम पैग़म्बरों की सर ज़मीन है । दमिश्क़ शहर इस्लामी यादगारों से भरा पड़ा है।  पैग़म्बर याह्या ,हज़रात बिलाल , सलाहुद्दीन अय्यूबी ,खालिद बिन वलिद ,इब्ने खुल्दुम के मज़ारात पर हाज़िरी देने का शरफ़ हासिल हुवा। बनी उम्मैया की खूबसूरत मस्जिद पर हाज़री दी,कहा जाता है इसी मस्जिद के मीनारे पर बैठ कर इमाम ग़ज़ाली (RA ) ने अह्या उल उलूम किताब लिखी थी । आज दिल अश्क़ बार है ,सीरिया (शाम ) की ईंट से ईंट बजा दी गयी है। वहां के अवाम को ये भी पता नहीं उनेह किस जुर्म की सज़ा दी जारही है।
११ साल सूडान  में GREAT NILE PETROLEUM में काम किया। कंपनी खूबसूरत जंगलों के बीच थी ,कुदरत को करीब से देखने का मौक़ा मिला। खुशकिस्मत रहा local (मुक़ामी ) सुडानियों को oil field operation में माहिर कर COMPANY उनके हवाले कर आये। लेकिन वहां भी अमेरिकन politics काम कर गयी। मुल्क को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया गया । crude oil की दौलत साउथ सूडान के हवाले कर दी। नार्थ सूडान मुस्लिम मुल्क को कुछ भी हाथ न लगा।
१९८२ में शगुफ्ता से शादी हुवी माशाल्लाह अल्लाह ने दो लड़कियों  से नवाज़ा और हमे जन्नत का हक़दार बना दिया। दोनों  बेटियां शादी के बाद  अपने ख़ानदान के साथ  अमेरिका और Canada  में खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं। हम दोनों मियां बीवी (में और शगुफ्ता )नेरुल नवी मुंबई में सुकूनत पज़ीर है। मरकज़े फलाह नेरुल में  काम करके कौम के बच्चों  मुस्तकबिल को सवारने की कोशिश में लगे रहते है।  
इक़रा खानदेश फाउंडेशन की बुनियाद रख कर मरहूम मिस्बाह अंजुम ने एक शुरवात की थी। अल्हम्दोलीलाह प्रेस्डिडेन्ट के ओहदे की ज़िम्मेदारी उठाना ,रिश्तेदारों के बच्चों के लिए स्कालरशिप ,और तक़सीमे इनामात (PRIZE DISTRIBUTION ) प्रोग्रम्स ,मैरिज ब्यूरो की सरगर्मियां रिश्तेदारों की फलाह के लिए कुछ शुरवात तो हुयी। 
अल्लाह इत्तेहाद क़ायम रखे ,टूट फुट से बचाये आमीन सुम्मा आमीन। 
COVID  की  वबा (महामारी )ने इंसानियत को हलकान कर दिया है तोड़ दिया है । ऐसे सख्त दौर में भी कुछ लोग नफरत की सियासत खेल रहे हैं। अल्लाह से दुआ हैं ,हम अपनी काविशों ,कोशिशों से, काश सिसकती इंसानियत के ज़ख्मों का  कुछ मदावा कर सके,ज़ख्मो पर मरहम रख सके। 
माना के इस जहाँ को न गुलज़ार (बाग़ ) कर सके 
कुछ ख़ार  (कांटे ) कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम 

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

lubna lasne



 17th September को मोदी की पैदाइश हुयी थी ,Cheryl strayed  मशहूर अमेरिकन  Author ने भी ईसी दिन जनम लिया था। Virgo इन लोगो की zodiac sign होती है। इन लोगों के बारे में कहा जाता है के ये बड़े Talented और Modest होते हैं। हमारी बाजी लुबना भी इन सभी खूबियों से आरास्ता, मज़्ज़यन   (decorated ) है।  सादा मिज़ाज ,ज़िंदा दिल और ज़िन्दगी से भरपूर।
लुबना की पैदाइश भी 17th September को होई थी। लुबना का मतलब होता है Elegance , जन्नत  में बहने वाली दूध की नहर। मशाल्लाह हमारी लुबना शेख ख़ानदान की पहली चश्म व चराग़ है, अल्लाह ने उसे बेहतरीन दिमाग़ दिया है ,बहुत सारी खूबियों की मालिक है। आने वाली नसल के लिए वो मश अले राह (torch bearer ) साबित हुयी है। हमारे खानदान में American citizenship मिलाने वाली पहली फर्द साबित हुवी है। कुवैत में जनम लिया वहां schooling पूरी करने  के बाद ग्रेजुएशन India से और Post Graduation अमेरिका से किया। अपनी कंपनी में भी नाम और मक़ाम पैदा किया। सोने पे सुहागा हैदर लसने जैसा चाहने वाला शोहर मिला । रिदा और राहील की सूरत में दो नेमतें अल्लाह ने इनायत की और दोनों को बेहतरीन तालीम ,अख़लाक़ और अमेरिका में रहते हुवे इस्लाम और क़ुरान के नूर से रुशनास करवाया। माँ बाप की खिदमत ,देख भाल में भी लुबना ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साबित किया नेक फर्माबरदार औलाद कैसी होती है।
आज सालगिरह के अवसर पर लुबना के लिए मुबारकबाद के messages की झड़ी लगी हैं। शायद हम सब में इतनी दूरी न होती, हम सब करीब होते तो लुबना का पूरा मकान गुलदस्तों से भर गया होता, लेकिन इन खूबसूरत पैग़ामात में जो दिली जज़्बात पिन्हा (hidden ) हैं उन की महक उनकी खुशबू का अहसास  लुबना तुम्हें ज़रूर होगया होंगा।
में कुछ न कहु और ये चाहूँ के मेरी बात
खुशबु की तरह उड़ के तेरे दिल में उतर जाये 
 हम सब तुम्हारे लिए दुआ गो हैं। रौशन मुस्तकबिल के लिए ,सेहत ,तंदुरुस्ती और तवील उमरी (long life ) के लिए। "यार ज़िंदा सोहबत बाक़ी " ज़िन्दगी रही तो मिलेंगे गुज़रे हुवे इन लम्हात इन पलों का मदावा ,भरपाई कर लेंगे (इंशाल्लाह )

शनिवार, 12 सितंबर 2020

Shehzad Khan


                                                         
                                                                  लावू कहाँ से दूसरा तुझ सा कहूँ जिसे 
इंसान की पहचान न उसका महंगा लिबास होता है न खुशबु से महका वजूद। इंसान की पहचान होती है उसके अख़लाक़ उसके Character से। 
एक सूरज था सितारों के घराने से उठा 
आंख हैरान है क्या शख्स ज़माने से उठा 
लॉक डाउन के इस ज़माने में एक सैलाब आया है, हर दिन मारूफ नेक शख्सियतो से दुनिया खाली  होती जा रही है। १० सितम्बर  २०२०  बामुतबिक २१ मोहर्रम अल हराम  १४४२  नेरुल की हर दिल अज़ीज़ ,फरिश्ता सिफत ,मारूफ  शख्सियत जनाब शहज़ाद  खान इस दारे फानी से कुच कर गए।  मरहूम खालिस (pure ) पठान  ख़ानदान से ताल्लुक़  (belong ) करते  थे। बरसो पहले उनके अजदाद (पूर्वज) अफ़ग़ानिस्तान से कुच (shift ) कर जलाला बाद ,शामली ज़िले में  रहाईश पज़ीर (शिफ्ट) होगये थे। मरहूम के दादा इब्राहिम अली खान भी क़ुरान के हाफिज थे। मरहूम शहबाज़ खान के वालिद हाफिज आसिफ अली खान १९३८ में बॉम्बे आकर ROYAL INDIAN NAVAL POLICE FORCE में मुलाज़िम हुवे। दूसरी World war में शरीक हुवे। रिटायरमेंट के बाद firestone कंपनी में कुछ साल काम किया। शिवरी में हाफिज आसिफ अली खान का दबदबा था। पठानों के सरदार हुवा करते थे। आपके ६ बेटे और ५ बेटियां थी। आपके बड़े बेटे शाहिद खान भी हाफिज ही है। 
 हालाँकि मरहूम शहजाद  खान की पुश्तो माद्री ज़बान  (mother tongue )थी  । उसके इलावा उनेह मराठी ,इंग्लिश ,उर्दू ,अरबिक पर command हासिल था  , Arabic  countries  से आयी जमात के मरहूम बाकायदा translator  हुवा करते थे। जब उनसे उनकी तालीम और  vast knowledge  के बारे में पूछा जाता तो वो ,आजज़ी से आंखे  बंद कर आसमान की तरफ हाथ उठाकर ( ये उनका STYLE था ) कहा करते "ये सब बुज़ुर्गों के क़दमों में बैठने का फैज़ है ,अल्लाह की मेहरबानी है"
जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार
नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए
पस्ता कद (short height ), गोल चेहरा ,सफ़ीद रंग ,गरजदार आवाज़। खान साहेब हमेशा सफ़ेद पठानी ड्रेस पहने रहते। सर पर टोपी ,टोपी के ऊपर बड़ा रुमाल ओढ़े , लपटे रहते। छोटे छोटे क़दमों से तेज़ तेज़ चलने की उनकी आदत थी। कृष्ण कमल से जामे मस्जिद नेरुल तक पांचो वक़्त नमाज़ के लिए , कभी अपनी कार ले आते, कभी कोई अल्लाह का बंदा उन्हें लिफ्ट दे देता। अकेले चल कर आते तो ज़बान पर चुपके चुपके अल्लाह का ज़िक्र शुरू रहता। उनकी वजह से मस्जिद में अल्लाह वालो की आमद का सिलसिला जारी रहता। मौलाना अब्दुला फूलपुरी , मौलान हिफ्ज़ुर रेहमान मेरठी ,कितने जय्यद  आलिम ,फ़ाज़िल लोग  आते  रहे हैं और तक़रीर शुरू करने  से पहले मरहूम शहबाज़ खान अपने मख़सूस अंदाज़ में उनका तआर्रुफ़  introduction इस जुमले से शुरू करते  "भाइयो बुज़र्गों दोस्तों "   उन बुज़र्गों का  background  उनका खानदानी सिलसिला रवानी से बयांन करते ,लोगो को तरग़ीब दिलाते के अगर बयांन सुन कर जाये तो कितना फैज़ उनेह हासिल होगा ,और ज़िंदगियों में बरकत आएगी ,तब्दीली आयेगी। लोग भी बड़ी तवज्जेह से बायान सुनते। मरहूम की एक खूबी थी मदरसों मस्जिदों  के सफ़ीरों के साथ  नमाज़ के बाद बैठ कर लोगों से चंदे के लिए दरख्वास्त करना , अपना बड़ा रुमाल बिछा कर  जान पहचान वालों को नाम लेलेकर आवाज़ें देते ,और में ने देखा है उनकी अवाज़  पर नेरुल की अवाम ने लब्बैक कहा है , अपनी जेबे खाली की है। मरहूम controversy से हमेशा दूर रहे। जब मस्जिद में जमात के ताल्लुक़ से मामला तूल पकड़ा उनसे पूछा गया कहने लगे " शैतान का वस्वसा है इंशाल्लाह उल अज़ीज़ मामला सुलझ जायेगा। डॉ शरीफ ने  १५  दिन उमरे  का सफर  मरहूम के साथ किया था आज सुबह उनके मरहूम शाहज़ाद  खान के बारे में तास्सुरात जानने की कोशिश की गयी उनोह ने एक जुमले में अपना मुदुआ बयान किया "मरहूम खान साहब  को  देख कर अल्लाह की याद ताज़ा होजाती थी। मरहूम चाय और खीमे के शौक़ीन थे। कहा करते "जिस तरह कार के लिए पेट्रोल चाहिए उसी तरह मुझे चाय की तलब है "  
मरहूम शहज़ाद  खान को ख़ुसूसन दुआ के लिये बड़े बड़े प्रोग्राम्स में बुलाय जाता। आप भी बड़े रक़्क़त अंदाज़ में दुआ करते के लोगो के आंसू निकल पड़ते । 16th ऑगस्ट 2020 को कृष्णा कमल सोसाइटी में u clean laundry के इफ्तेताह (inauguration ) पर मरहूम खान साहेब से  आखरी मुलाक़ात हुवी थी जहां उनेह दुआ करने के लिये बुलाया गया था।  मरकज़े फलाह ,जमीतुल उलमा के बड़े बड़े प्रोग्रमस से आप को बुलाया जाता उनसे नात पढ़ाई जाती ,दुआ कराई जाती। पोलिटिकल rallies और programs  में भी दुआ के लिए आप को बुलाया जाता था।
Quran the truth की ऑफिस में दरसे क़ुरान में हमेश मरहूम शेह्ज़ाद खान शरीक हुवा करते थे। क़ुरान की तफ़्सीर पर भी आप को command हासिल था। अतनी serious महफ़िल में भी हलके फुल्के मज़ाकी  वाक़ेआत को तफ़्सीर से जोड़ कर महफ़िल को गुलज़ार कर देते  थे।
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुज़रे ज़माने याद आये
मरहूम  खान साहेब बच्चों के साथ बचे बनजाते थे और हंसी हंसी में  बच्चों को नसीहत आमेज़ पैग़ाम पोहंचा देते थे। मरहूम दर्द मंद दिल रखते थे। नमाज़ के बाद पानी पर दम करने के लिये लोग बच्चों को लाते मरहूम खान साहेब कुछ वक़्त ठहर लोगो से हाल चाल पूछते ,तस्सली देते और पानी पर दम भी करते।
मरहूम खान साहेब ने अपने अवलादों की तरबियत पर भी खास तवज्जे दी माशाल्लाह पांच बच्चों में से दो बच्चे इंजीनियर है। दो लड़कियों थी जिन की शादी होचुकी है।
इस ब्लॉग के साथ attached video में जन्नत में मक़ाम पाने की चालीस अहादीस मरहूम खान  साहेब ने लॉक डाउन के दौरान याद कर ली। मरते वक़्त भी  उनसे सवाल किया जाता तो उनका वही अंददज़ होता "में ने चालीस हदीसें याद करके जन्नत में  इंशाल्लाह अपना मक़ाम reserve कर लिया ,६२ साल ज़िन्दगी के जी लिए हज़ूर पाक की आखरी सुन्नत अदा होजारहि है ,हुज़ूर पाक ने भी तो इसी उम्र  (६३ साल ) की उम्र में वफ़ात पायी थी। अल्लाह मरहूम शाहज़ाद खान को जन्नत में आला मक़ाम आता करे।
मनो मिटटी के नीचे डाब गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो 



सोमवार, 7 सितंबर 2020

Sharifunnisa yusuf Ali

पर नहीं ताकते परवाज़ मगर रखती है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
एक शफ़ीक़ बेटे ,राशिद अली की अपनी  मरहूमा वालिदा  शरीफुन्निसा के लिए आंसुओं से लिखी गयी तहरीर ,खिराजे अकीदत , श्रद्धांजलि ,शब्दों में दिल का दर्द छुपा है  , माँ  (शरीफुन्निसा )ने पहले अपने  ४ भाईयों अपने बाप  का अपनी अम्मी की मौत के बाद ९ साल तक  ख्याल रखा, अपने भाइयों की  तरबियत की।  फिर अपने शोहर की  वफ़ात के बाद अपने छोटे छोटे  ५ बच्चों की परवरिश की  , मायूसी में, न  कमज़ोरी दिखाई न नाहिम्मति। अपने कमज़ोर  नातवां कन्धों पर बरसों औलाद के दुखों परेशानियों के बोझ को झेलती रही। अल्हम्दोलीलाह भाइयों ने भी बहन का क़र्ज़  अदा करने की पूरी कोशिश की।  माशाल्लाह औलाद ने भी सख्त मेहनत की दुनिया में में मक़ाम बनाया ,  माँ की आखरी उम्र में बेलोसे खिदमत की , माँ  को हज कराया।
मनो मिटटी के नीचे  दब  गया वो
हमारे दिल से लेकिन कब गया वो 

बुधवार, 2 सितंबर 2020

गुरुजी


Occasion:: Mansoor Bhai birthday
Dated :03/09/2019
Place: Wonder park
Mansoor Bhai at farm house

                                                                         मंसूर  मलँग
वो भले हो के बुरे हम को बहुत प्यारे हैं
अब तो हम नए दोस्त बनाने से रहे 
अगर ऊपरवाला  मुझे पुनर जन्म ,नयी ज़िंदगी देता और पूछता ,तुम अपने दोस्तों की लिस्ट अपनी मर्ज़ी से बनावों ,तो पहले नम्बर पर किसे रखोगे ,मैं बेसाख़्ता जवाब देता मंसूर ,दूसरे नम्बर पर कौन मैं यही जवाब देता मंसूर जेठाम  ,तीसरे नम्बर पर भी में  ने उन्ही का नाम लिया होता ।मंसूर का meaning होता है मदद किया गया ,शायद इसी लिए हमारे मंसूर भाई दूसरों के ग़म को अपना ग़म समझते है ,दूसरों की ख़ुशी में माशाल्लाह ऐसे शामिल होते है ,जैसे अपनी ख़ुशी हो ।

तुम आगये हो नूर आगया है।
उत्तम कुमार ,शक्ति कपूर ,जग्गी वासुदेव  जैसे नामवर लोग ३ सितम्बर को पैदा हुवे थे एक और  जानी  मानी शख्सियत  ने भी ५० साल पहले ३ सितम्बर को  कोकन के छोटे से गांव वहूर तालुका महाड ,जिला राय गड में  जेठाम खानदान में जी. ऍम नारंग के घर जनम लिया , जशन का का माहौल था। क्यों न होता सालों पहले लगाए गए बिजली के खंबो में उसी दिन गांव में रौशनी दौड़ी थी। गांव जगमगा उठा था। जिसके क़दमों की बरकत से गाँव रोशन हुआ था ,मंसूर के नाम से पुकारा जाने लगा।
 अजीब इत्तेफ़ाक़ है नारंग खानदान के मंसूर को अतरंगी ग्रूप में  गुरुजी के नाम से जाना जाता है, कुछ लोग उनको बंगाली भी कहते हैं  ,क्यों कहते है औसफ उसमनी ही बता पायेंगे । हमारे गुरु मंसूर हमेशा चेलों से घिरे रहते हैं।    मुज़फ़्फ़र और सोनावने गुरु के दाँये बायें उन के लिए जान निछावर करने के लिये हमेशा तय्यार रहते है ।गुरु की तारीफ़ में आसमान ज़मीन एक कर देते है, गुरुजी के और एक भक्त श्री हरीशजी भी है जो उनकी हर बात पर बरोबर बरोबर कहते रहते है  कुछ लोग गुरूजी की बुराई भी करते हैं । गुरुजी आपकी बुराई करने से आपकी अज़मत आपकी बढ़ायीं में कोयी कमी नहीं आएँगी ,आप को पता होना चाहिए आसमान की ओर थूकने वाले का क्या अंजाम होता है ।आपके चाहने वालों की संख्या का अंदाज़ा कोयी क्या करे l गुरुजी  की बेनियादी  खूबी ,दूसरों की ख़िदमत , खुलूस और दुनिया से बेराग़बती  की बिना पर उनमें मुझे मलँग की झलकियाँ नज़र आती है। 
कहानी मेरी रुदादे जहाँ मालूम होती है 
जो सुनता है उसीकी दास्तान मालूम होती है 
फंजिंदर उर्दू स्कूल  वहुर से मेट्रिक करने के बाद गुरूजी ने मुंबई का रुख किया ,जहाँ  उनेह अपने मामू मुमानी अब्दुल रहीम कोकाटे की रहनुमाई मिली। गुरूजी ने पोलिटिकल सायेंस में मीठीबाई कॉलेज से  Distinction में ग्रैजूएशन पूरी करने के बाद कोकन मर्केंटाइल बैंक से की थी अपने career की शुरूवात ,जनाब अली एम  शम्सी की रहबरी मिली जो बैंक के चेयरमैन थे। सूद (interest) का कारोबार इस्लाम में जाएज नहीं ।ऊपर वाले पर इतना भरोसा था बैंक की भली नौकरी छोड़ दी ,बिल्डर बन गए ,एक कामयाब बिल्डर बन कर बताया ।
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ अबला पॉ को 
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबाँ से चमन तक है 
२० साल पहले मुम्ब्रा छोड़ कर नेरुल बसाया ।बियाँबान सुनसान सेक्टर-१९ को आबाद किया ।  Ruby बिल्डिंग बनायी ,बिल्डिंग कोअपने रिश्तेदारों से आबाद किया और हर वक़्त उनकी ख़िदमत में लगे रहते है।मुम्ब्रा के होटलों की याद आने लगी तो अपने दोस्त औसफ के मारेफत होटेल Ahmed bhai  नेरुल में शुरू करवायी कूछः तसकीन् हुयी ।२० सालों से नेरुल को मुम्ब्रा बनाने की कोशिश में लगे है ,लेकिन  ना कैसर उल जाफ़री जैसे शायर आपने नेरुल में पाया ,ना मुम्ब्रा के मुशायरे , ना अदबी महफ़िलों का नेमूल बदल ।अब जाफ़री साहेब का दीवान याद कर लिया है ,दोस्तों को उनके शेर सुना कर तस्कीन पा लेते है ।
 दोस्तों की फ़रमाइश पर कोकन के ओर्गानिक आमों का कारोबार सुनील कुडेकर के साथ मिल कर किया । गाँव में अपनी  ancestor (आबायी) उजड़ी ज़मीन को गुलों गुलज़ार किया ।इस साल महामारी के कारन क़ुरबानी में problem हुवा तो अपने farm house को goat farm में तब्दील कर दिया ।
  पिक्निक  हो या पार्टी गुरुजी महफ़िल को अपनी आवाज़ के फ़न से महका देते है ,लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि उनकी आवाज़ फटे बाँस के जैसी बेसुरि है ।अपनी अपनी राय है कौन किसी को रोक सकता है ।गुरुजी Program कम्पेरिंग में महारत रखते है ,इस से किसी को इख़्तेलफ नहीं हैं
  वो जैसे ही सुबह सुबह  Wonder park  में वाकिंग के लिए दाखिल होते है , शोर मच जाता है गुरुजी आगये , उनके साथ चलने के लिए एक भीड़ इकठ्ठा होजाती है ,गुरूजी अपने अनमोल ख़यालात  (पर्वचन) से ,साथ वालों को नवाजते रहते है ।फिर गुरुजी सब को हल्की फुलकि वरज़िश (व्यावयम) भी  कराते  है ।
जब भी चाहा है उसे शिद्दत से चाहा है मंसूर 
गुरुजी को कुछ समय पहले NCP की पोस्ट पर nominate किया गया ,फिर तो जैसे भूकंप आगया गुरुजी पूरे तन मन धन से पार्टी के कामों में जुड़ गए । खाना पीना सोना उनके लिए पार्टी होगाया ।गुरुजी की यही एक अदा हम सब को भाती है किसी भी काम को चाहे छोटा हो या बड़ा बड़े खुलुस  dedication से करते है ,अपनी जेब से पैसे लगाते है ,अपना क़ीमती वक़्त ,एनर्जी इस काम में  लगा देते है ।  गुरुजी की बातें अजीब दिल्फ़रेब होती है ।कुर्ला Spare part मार्केट से अपनी कार के लिए ६०० रुपए का spare ख़रीदने जाते है ,२००० रुपये का होटेल का बिल बनता है ।इसे कहते है क़लंदरी ।
माना के इस ज़मीन को न गुलज़ार कर सके 
कूच ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम 
 मेडिकल रीसर्च ने prove कर दिया है कि  अच्छे दोस्तों की महफ़िल में बैठने से इंसान की उम्र में कयी सालों की बढ़ोतरी होजाती है ,हमारा ग्रूप है ही शानदार (सुनील होनराव ,सुनील कुडेकर ,औसाफ़ ,हामिद भाई ,इश्तियाक़ ,मुज़फ्फर ,चिनार (half ) ,सोनवणे ,इनामदार ,हरीश जैसे दोस्त खुशनसीब लोगों को ही मिलते हैं। )सोने पे सुहागा मंसूर जैसा  प्यारा मुखलिस दोस्त भी इस में शामिल है ,हम सब ख़ुश रहते हैं ,ज़िंदगी का लुत्फ़ लेते हैं । मंसूर भाई इस नफरत भरे माहौल में इसी तरह मोहब्बत के दिये  रोशन करते रहे |
    सालगिरह के इस अवसर पर मंसूर भाई को हम सब की जानिब से दिली मुबारकबाद  और दुआ  ऊनहे सेहत ,तंदुरुस्ती और उँचा मुक़ाम हासिल हो ।आमीन सुमा आमीन ।