बचपन में आलीबाबा चालीस चोर ,हातम ताई और अल्लाउद्दीन के जादुई चिराग़ पर बेशुमार फ़िल्मे देखी ।इन फ़िल्मों में heroin को den कि बजाय जादुई महेल में जिन के द्वारा क़ैद किया जाता था ।फ़िल्म का हीरो जान पर खेल कर heroin को आज़ाद करता था और तोता जिसमें जिन की जान क़ैद होती थी मार कर जिन का ख़ात्मा करता और audience की तालियाँ बटोरता ।
फिर डाकुओं की फ़िल्मों का दौर (time) आया ।उजाड़ खंडरो , सुनसान रेगिस्तान, चट्टान के बीचोंबीच ,सुनसान इमारतों में डाकुओं के अड्डे होते ।मुझे जीने दो ,जिस देश में गंगा बहती है ,मेरा गाँव मेरा देश जैसी कई फ़िल्मे हमारी यादों में अब तक बसी हैं ।डाकू की ख़ौफ़नाक मूँछ होती ,दमदार आवाज़ लेकिन दिल मोम से ज़ियादाँ नर्म ।अमीरों की दौलत लूट कर ग़रीबों बाँट देना जिस की hobby होती ।खोटा सिक्का ,शोले के जैसे ज़ालिम गब्बर सिंग ख़ून के प्यासे डाकू जिन का बुरा अंजाम हीरो के हाथ होता ।बहुत बड़ा ड्रामा होता heroin को डाकुओं के सामने नाचना पड़ता ,बंदूके चलती , लाशें गिरती ,डाकू की लाश ख़ून में तर ब तर होती ,पोलिस भी वहाँ पहुँचती लेकिन डाकू के मरने के प्रति ।
James Bond की फ़िल्मों ने हॉलीवुड में हंगामा बरपा कर दिया ।ख़ूबसूरत औरतों से घिरा villian अपने high tech den में बैठ कर दुनिया की तबाही के नक़्शे बनाता है ।उन फ़िल्मों को देख कर अक़्ल हैरान परेशान होजाती थी ।ख़ूबसूरत beach ,swimming pool, helicopter chase, उड़ती कारें ।आख़िर में hero, villion के den को ढूँढ कर परखच्चे उड़ा देता है उसके ख़तरनाक मंसूबों को ख़ाक में मिल देता है ।Bollywood भी Hollywood से पीछे तो नहीं रह सकता था ।फ़र्ज़ फ़िल्म का वो ख़तरनाक villain जिस के फ़ौलादी हाथों से चिनगारियाँ निकलती थी ।जितेंद्र के हाथों उसिके den में मारा जाता ।शाकाल,Mogambo,dr Dang और उनके ख़ौफ़नाक इरादे , उनके latest gadgets से सजे den हीरो के हाथ से तबाही बर्बादी सरंजाम पाते हैं ।Mr India ,शान , शालिमार फ़िल्मे उनके लाजवाब villain के किरदारों के सबब उन्मित नकूश दिल पर छोड़ गए हैं ।
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