गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

Lagta nahi hai dil mera ujde dayar me (लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दायर मेँ )

                                                        लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दायर मेँ
M .F .Hussain (मक़्बूल फ़िदा हुसैन) जन्म :१७ सेप्टेंबर १९१५ पँढरपुर  मृत्य :९ जून २०११
M . F . Hussain ने पंढरपुर में एक ग़रीब घराने में जन्म लिया था। उनकी माँ मंदिर के बाहेर फूल बेचा करती थी।बचपन में उनकी माँ की मौत के बाद वो पिता के साथ इंदौर में रहे। प्राइमरी स्कूलिंग वही से  क़ी ।  २० वर्ष की आयु में वो बॉम्बे आगये J .J .SCHOOL OF ARTS से पढ़ाई की। शरू शरू में फिम होर्डिँग बनाने का काम किया। पैसे कम मिलते थे इस लिये खिलौने की फैक्ट्री में काम भी किया। फिर अपने हुनर की बिना पर शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच गए। उनोह ने दो फिल्मे भी बनायीं थी Throuh the eye of painter और गजगामिनी। १९५५ में उन्हे भारत सरकार की तरफ से पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया। १९७३ में पद्मा भूषण , और १९९३ में पद्म विभूषण। १९८६  मेँ हुसैन साहेब को राज्य सभा के लिए प्रेजिडेंट द्वारा nominate किया गया।
इस बुलंदी से अगर कोई गिरदे मुझको।
एक ऐसा समय भी जब लोग उनेह लोग ,माधवी फ़िदा हुसैन के नाम से जानने लगे थे। कहा जाता उनोहने  माधवी दीक्षित की फिल्म ”हम आप के हैं कौन “ सौ बार देखि थी। हिन्दुस्तान भर में उनकी बेहद इज़्ज़त थी। दुनिया भर में उनकी पेटिंग की मिसाल दी जाती थी। घोड़ों की तस्वीर बनाने में उन्हें कमाल हासिल था। क्रिस्टज़ ने  उनकी एक पेंटिंग का लंदन ऑक्शन में २० लाख ड़ॉलर में सौदा किया था। उनकी घोड़ों की तस्वीरें करोड़ों में बिकती है जबकि अच्छी नस्ल का घोडा लाख में मिल जाता है। उनके बने फ़िल्मी बैनर आर्ट का शौक रखने वालों के लिए अहमियत रखते हैं। फिर ये हुवा के उनके द्वारा बनायीं गयी भारत माता की nude तस्वीर ने कुछ लोगों के जज़्बात को ठीस पुह्चायी। BJP ,विश्व हिन्दू परिषद को एक शोशा हाथ लगा उनकी अहमदाबाद की आर्ट गैलरी में तोड़ फोड़ की गयी। उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मेंमज़हबी जज़्बात को ठीस पोह्चाने का केस दायर किया गया। उनकी शोहरत उनके लिए आफत बन गयी।
एक ऐसा वक़्त आया उन्हें मुल्क छोड़ना पड़ा।
बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
फिर हुसैन साहेब बंजारों की तरह देश विदेश फिरे । कभी दुबई ,कभी पॅरिस तो कभी लंदन। मरने से पहले उन्हें  Doha क़तर की शहरियारत वहाँ के शैख़ की जानिब से पेश कीगई  जो उनोहने क़बूल करली।
हुसैन साहेब को  अपनी हयात में इस बात का क़लक़ था के हिन्दुस्तान में उनकी क़द्र नहीं की गयी। बहादुर शाह ज़फर की तरह मुल्क बदर होना पड़ा। लेकिन बहादुर शाह ज़फर की तरह ज़लील नहीं होना पड़ा। आज भी उनकी तस्वीरें
अरबों रूपये में बिकती है। दुनिया भर में उनके चाहने वाले मौजूद हैं। लेकिन मुल्क की जुदाई ने उनेह मालूल करके रख दिया  था। दुबई में संदर के किनारे उनका अरबों का विला था।दुनिया की महंगी महँगी करें bugati ,Bentaly ,Ferari उनकी मिलकियत (ownership ) में थी। शैख़ के ख़ानदान से उनका मेलजोल था। सात सितारा होटल में खाना खाया करते थे।
मरने से पहले हुसैन साहेब को इस बात की कुडन थी के हिंदुस्तान की वो तरह वो ,नंगे पॉव् दुबई में नहीं घूम सकते। हुसैन
साहेब को ढाबे की कट्टिंग चाय की याद सताती थी। अपने प्यारे दोस्त मशहूर पेंटर गायतोंडे की प्यारी प्यारी बातें सताती थी जिन से वो मुंबई में घंटों बातें करते थे।
  अफ़सोस इंसान की हर ख्वाहिश जीते जी पूरी नहीं होती। हुसैन साहेब भी ,सिर्फ एक बार वतन हिंदुस्तान लौट कर यहाँ की हवा में साँस लेना चाहते।कहा जाता है , कभी किसी को मुकम्मील जहाँ नहीं मिलता। मौत भी उनेह वतन से दूर लन्दन में आयी।
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कुवे यार में।





गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

Lock down ka 28 wa din

एक लम्बे अरसे तक दुनिया से कटना ,बावजूद इसके के हम अपनी फॅमिली के साथ है। internet की facility है। मोबाइल पर घंटो अपने रिश्तेदारों ,जान पेहचान वालों से बातें करते रहते हैं। फिर भी एक बेकली सी तबियत में रहती है। एहसास होता है उन बेक़सूर क़ैद में पड़े लोगों का जो सालोँ से बग़ैर कोई गुनाह किये जेल की सज़ा काट रहे है। घर की याद तो सताती होंगी। दिल में बीवी बच्चों के ताल्लुक़ से कई वसवसे आते होंगे। घर का खर्च ,बच्चों की तालीम ,माँ बाप की सेहत उनकी बीमारियां। फिर बेबसी और घुटन। क्या क़ुव्वते बर्दाश्त होती होंगी उन लोगों की। कुछ लोग तो २० साल बाद छूटे ,दुनिया बदल गयी होती है, बच्चे जवान ,बीवी बूढी, माँ बाप दुनिया से जा चुके होते है। छूटने के बाद जीने का मक़सद कुछ समझ में नहीं आता होंगा । किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
किस का रास्ता देखे ऎ दिल ऎ सौदाई।
मीलों है ख़ामोशी बरसों है तन्हाई।
   फरहाद ने दूध की नहर निकली थी। में समझता हूँ ,फ़र्ज़ी कहानियां है। हाँ ,कुछ लोग हालत की मार से डरते नहीं। मुश्किलात का डट कर मुकाबिला करते है। तुफानो का मुक़ाबला करके अपनी राह निकाल ही लेते हैं।
मैं जिस शख्सियत का तज़करा कर रहा हूँ ,हम उन्हें बचपन से जानते है, हमारे हमवतन हैं ,पेशे से डॉक्टर है। हमारे छोटे भाई के जैसे है। प्रैक्टिस भी folkland road पर करते हैं। area चारों  जानिब से वैश्याओं (prostitute )से घिरा है। डॉक्टर साहेब ने उनेह कभी हिकारत से नहीं देखा। बल्कि इंसानियत की खिदमत समझ कर ,अपना फ़र्ज़ अदा  करते रहे  ,छोटी मोटी  फीस लेकर मरीज़ों का इलाज बड़ी खुशदिली करते है। अपने एरिया की बड़ी जानी पहचानी शख्सियत है। शुरवात में जब practice शुरू की थी दो एक मर्तबा उनकी dispensary को visit करने का मौका भी मिला था।
दुआ देती हैं राहें आज तक मुझ आबला  प्आ को।
मेरे पैरों की गुलकारी बियाबान से चमन तक है।

२५ साल पहले इन्ही डॉक्टर साहब को ,TADA क़ानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन के साथ उन के बड़े भाई को
भी पकड़ा गया था। साथ साथ ८ दुसरे नौजवान भी पकडे गए थे सब पेशे से gradute ,इंजीनियर ,doctor ,textile technologist ,सभी अच्छी families से belong करते थे। २५ साल की लम्बी struggle के पश्चात् पुलिस उनके
खिलाफ कुछ जुर्म prove नहीं कर पायी। पिछले साल उन सबको बा-इज़्ज़त बरी किया गया ,छोड़ा गया। उनके  उन २५ सालों की भरपाई कोन करेंगा। पुलिस custudy ,court के चक्कर, समाज का bycott ,देश द्रोही होने के आरोप।ख़ानदान में शादी के मसले। वो तो अच्छा हुवा केस लड़ने में जमीतुल उलमा वालों ने उनकी भरपूर मदद की  ,सहयता
की।कोर्ट ने पुलिस को लताड़ा भी। लेकिन उन सबका खोया हुवा ज़माना वापिस तो नहीं मिल जाएंगा। ज़माने से मिली
तल्खियां ,बेइज़्ज़तिया ,महरूमिया उनकी यादों का हिस्सा बन चुकी है।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा होजना / मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पे के आसान हो गयी
 तज़करा डॉक्टर साहेब से शुरू हुवा था। उनोहने जेल की सख्तियां सही ,मुम्बई से नासिक जाकर तारीखों में कोर्ट में
हाज़री दी। लेकिन अपनी ज़िम्मेदारियों से कभी भी मू नहीं मोड़ा। अपनी प्रैक्टिस जारी रखि। शायद उनोहने अपने
मुश्किल हालत में ,अपने रोशन ताबनाक मुस्तकबिल को देख लिया था। आज हालत बदल गए हैं। बड़ा बेटा
aoronautical engineer बन गया है ,एक बेटी IT ENGINEER बन गयी है। सोने पे सुहागा उनकी छोटी बच्ची
माशाल्लाह डॉक्टर बन रही है। डॉक्टर साहब की नेक नामी उनकी जद्दोजहद और बकौल शायऱ
वो कौन है जो दुवाओँ में याद रखता है।
मैं डूबता हूँ समंदर उछालता है मुझे।
 डॉक्टर का पेशा इतना नोबल होता है। और अगर खुलुस भी शामिल हाल हो तो ग़ैब की मदद लाज़मी है। शर्त
अल्लाह की ज़ात पे यकीन।

ये तस्वीर का एक रुख है ,कितने ऐसे होंगे जो डॉ साहेब की तरह steel nerves रखते हैं। कई ऐसे हैं जो हालात की
सख्तियां ,तलखियाँ बर्दाश्त नहीं कर सके। जेलों में ही दम  तोड़ दिया। कई ऐसे है जेल से छूटने के प्रति नए हालत से
समझौता नहीं कर पाए।

आज क़ौम में अंदाज़े से ४०,००० करोड़ सालाना ज़कात निकलते है। पता नहीं की कितनी बेवायें मदद को मुहताज है। कितने यतीम बचे मदद के लिए तरस रहे हैं।कितनी ग़रीब बच्चियां शादी के लिए मदद की मुहताज बैठी है.काश हम ज़कात को सही मुस्तहक़ों तक पुहंचा सके।








रविवार, 12 अप्रैल 2020

Lock out ka unniswan din

१९:दिन लॉक आउट के पुरे होचुके है। सोचा था २१ दिन पुरे होने पर आज़ादी मिलेगी अफ़सोस करोना मुंबई पुणे में तेज़ी से पॉव पसार रहा है। महाराष्ट्र गवर्नमेंट ने ३० अप्रैल २०२० तक लॉक डाउन extend कर दिया है। हदीस से पता चलता है याजूज माजूज की क़ौम एक दीवार के पीछे क़ैद है हर रोज़ दीवार खोदते रहते है हर शाम दीवार का थोड़ा हिस्सा बाकि रह जाता है और वो कहते है कल दीवार को हम तोड़ देंगे। दूसरे दिन दीवार फिर अल्लाह की मर्ज़ी से अपनी पुरानी शक्ल में लौट जाती है। हर रोज़ यही होता रहेगा क़यामत से पहले एक शाम पहले वो कहेंगे इंशल्लाह कल हम दीवार को तोड़ देंगे। और दूसरे दिन दीवार को तोड़ देंगे। क़यामत बरपा होजाएंगी। जाने कब इस करोना के क़हर से निजात मिले।
दिन भर धुप का पर्बत काटा
इंडिया में कई करोड़ मज़दूरों की जिंदिगी “हर दिन कुवां खोदो हर दिन पानी निकालो ” के उसूल पर गुज़रती है। २१ दिन जैसे तैसे गुज़र गए आगे का अल्लाह हाफिज। 

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

एक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया

एक सूरज था सितारों के घराने से उठा।
आंख हैरान क्या शख्स ज़माने से उठा। 
५ साल का लम्बा वक़्त देखते देखते गुज़र गया। आज ही के दिन ७ अप्रैल  २०१५ को अल्हाज ज़ैनुल-आबेदीन सय्यद हम से जुदा होकर ख़ालिक़े हक़ीक़ी अल्लाह से जा मिले थे। अल्लाह उन की मग़फ़िरत करे ,कर्वट कर्वट जन्नत नसीब करें। 
वक़्त रुकता नहीं टिक कर ,ज़माना अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं भूलाते नहीं भूलते। उन से जुङी यादें ,उन के साथ गुज़ारा वक़्त ,अनमोल ख़ज़ाने की तरह हमारी ज़िन्दगी का सरमाया बन जाता है। 
 ३० मई १९८२ में उनहो ने मुझे अपना दामाद बना कर इज़्ज़त बख्शी, अपनी फूल सी लख्ते जिगर मेरे हवाले कर दी ये जानते हुवे ,उस ज़माने में न मेरे पास घर था ,न अछि नौकरी लेकिन वो हमारे अब्बा की बहुत कदर करते थे जो रिश्ते में उनके बहनवायी होते थे। उनका favorite topic था अपनी क़ौम में तालीम की कमी ,वो हम सब भाइयों को तालीम हासिल करते देख दिल से खुश होते थे। मेरी तर्रकी देख कर वो खुश होते थे ,दिल से दुआयें देते थे। अपनी नवासियों
सना ,हिना की तालीम का ज़िक्र जब करते बहुत जज़्बाती होजाते। काश आज वो हयात होते अपनी दोनों निवासियों की तर्रकी की देख कर वो फूले नहीं समाते। 
  शगुफ्ता से सुना है उनेह समाज में शहादे में सब लोग सय्यद साहेब चाय वालों के नाम से जानते थे। और वो अपने ख़ानदान के साथ साथ शाहाना जिंदिगी गुज़रते थे। लोग उनसे मश्वरे लेते और उन पर अमल भी करते थे।  उनका हाथ बहुत खुला था गरीबो मिस्कीनों की मदद में हमेशा आगे आगे रहते।  उनका दोस्तों का दायरा संजीदा लोगो पर मुश्तमिल था। में भी उनके दोस्तों से मिल चूका हूँ। शायरी अदब तहज़ीब से उनेह रग़बत थी। माशाल्लाह नफासत पसंद थे। अपने वालिद से बे पनाह मोहब्बत थी हर हफ्ते छुट्टि के दिन तमाम मसरूफियतों को छोड़ कर नवापुर वालिद से मिलने ज़रूर जाते। पड़ने का बहुत शौक़ था अपने घर पर अदबी किताबों की  liberary बना रखी थी। खुशकिस्मत भी थे उनेह सुघड़
 तहज़ीब याफ्ता बीवी का साथ मिला था जिस ने उनके घर को जन्नत बना रखा था , मरहूमा अपनी तमाम खूबियां अपनी औलाद में मन्तक़िल कर गयी। मामूजान ने अपनी तमाम जिंदिगी हलाल रिज़्क़ कमाने में गुज़र दी। जो कमाया अपने औलाद की तालीम पर खर्च किया। सोच समझ कर इन्वेस्टमेंट किया ,और अल्लाह ने उस में बरकत भी दी। नेक औलाद दी ,जो उनके बताये उसूलों पर ज़िन्दगी गुज़ार रही है।
 हदीस में आता है  मरहूम माँ बाप तक सिर्फ औलाद की दुवायें नेक आमाल पहुँचते है और जन्नत में उनके दरजात बुलुंद होते हैं।  में उनके लिए क़ुरान पढ़ कर बख्श रहा हूँ ,ख़ानदान के हर आदमी से गुज़ारिश है के उनकी मग़फ़ेरत के लिए दुवाएँ करे ,उनके के लिए सदक़ा करे ,शबे बारात आने वाली जुमरात को है उनके लिए दुवाओँ का खास एहतेमाम करे।











गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

Carfew ka 8th din (01/04/2020

न गुल खिले न उनसे मिले न मए पी है
अजीब रंग में अबके बहार गुज़री है
आज १  अप्रिल २०२० government के नाफ़िज़ करदा  करोना के रोक थाम के लिए carfew का अठवा दिन। दीनों ,तारिख की पहचान भी मुश्किल हो गयी है। काश हर दिन का एक रंग होता पहचान आसान होजाती। एक जमाना था महीने की पहली तारीख़ को लोगों को तनख्वाह मिलती थी ,और रेडियो से किशोर कुमार का ”आज पहली तारिख है ” गाना बजना ज़रूरी था। लोग जान लेते नए महीने की शरुआत होगयी। आज अप्रैल फूल day है लेकिन गवर्नमेंट के सख्त रूल के किसी किस्म की झूटी खबर फैलाने पर सख़त रोक है। झूठि खबर फैलाने पर सज़ा भी हो सकती है।