लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दायर मेँ
M .F .Hussain (मक़्बूल फ़िदा हुसैन) जन्म :१७ सेप्टेंबर १९१५ पँढरपुर मृत्य :९ जून २०११
M . F . Hussain ने पंढरपुर में एक ग़रीब घराने में जन्म लिया था। उनकी माँ मंदिर के बाहेर फूल बेचा करती थी।बचपन में उनकी माँ की मौत के बाद वो पिता के साथ इंदौर में रहे। प्राइमरी स्कूलिंग वही से क़ी । २० वर्ष की आयु में वो बॉम्बे आगये J .J .SCHOOL OF ARTS से पढ़ाई की। शरू शरू में फिम होर्डिँग बनाने का काम किया। पैसे कम मिलते थे इस लिये खिलौने की फैक्ट्री में काम भी किया। फिर अपने हुनर की बिना पर शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच गए। उनोह ने दो फिल्मे भी बनायीं थी Throuh the eye of painter और गजगामिनी। १९५५ में उन्हे भारत सरकार की तरफ से पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया। १९७३ में पद्मा भूषण , और १९९३ में पद्म विभूषण। १९८६ मेँ हुसैन साहेब को राज्य सभा के लिए प्रेजिडेंट द्वारा nominate किया गया।
इस बुलंदी से अगर कोई गिरदे मुझको।
एक ऐसा समय भी जब लोग उनेह लोग ,माधवी फ़िदा हुसैन के नाम से जानने लगे थे। कहा जाता उनोहने माधवी दीक्षित की फिल्म ”हम आप के हैं कौन “ सौ बार देखि थी। हिन्दुस्तान भर में उनकी बेहद इज़्ज़त थी। दुनिया भर में उनकी पेटिंग की मिसाल दी जाती थी। घोड़ों की तस्वीर बनाने में उन्हें कमाल हासिल था। क्रिस्टज़ ने उनकी एक पेंटिंग का लंदन ऑक्शन में २० लाख ड़ॉलर में सौदा किया था। उनकी घोड़ों की तस्वीरें करोड़ों में बिकती है जबकि अच्छी नस्ल का घोडा लाख में मिल जाता है। उनके बने फ़िल्मी बैनर आर्ट का शौक रखने वालों के लिए अहमियत रखते हैं। फिर ये हुवा के उनके द्वारा बनायीं गयी भारत माता की nude तस्वीर ने कुछ लोगों के जज़्बात को ठीस पुह्चायी। BJP ,विश्व हिन्दू परिषद को एक शोशा हाथ लगा उनकी अहमदाबाद की आर्ट गैलरी में तोड़ फोड़ की गयी। उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मेंमज़हबी जज़्बात को ठीस पोह्चाने का केस दायर किया गया। उनकी शोहरत उनके लिए आफत बन गयी।
एक ऐसा वक़्त आया उन्हें मुल्क छोड़ना पड़ा।
बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
फिर हुसैन साहेब बंजारों की तरह देश विदेश फिरे । कभी दुबई ,कभी पॅरिस तो कभी लंदन। मरने से पहले उन्हें Doha क़तर की शहरियारत वहाँ के शैख़ की जानिब से पेश कीगई जो उनोहने क़बूल करली।
हुसैन साहेब को अपनी हयात में इस बात का क़लक़ था के हिन्दुस्तान में उनकी क़द्र नहीं की गयी। बहादुर शाह ज़फर की तरह मुल्क बदर होना पड़ा। लेकिन बहादुर शाह ज़फर की तरह ज़लील नहीं होना पड़ा। आज भी उनकी तस्वीरें
अरबों रूपये में बिकती है। दुनिया भर में उनके चाहने वाले मौजूद हैं। लेकिन मुल्क की जुदाई ने उनेह मालूल करके रख दिया था। दुबई में संदर के किनारे उनका अरबों का विला था।दुनिया की महंगी महँगी करें bugati ,Bentaly ,Ferari उनकी मिलकियत (ownership ) में थी। शैख़ के ख़ानदान से उनका मेलजोल था। सात सितारा होटल में खाना खाया करते थे।
मरने से पहले हुसैन साहेब को इस बात की कुडन थी के हिंदुस्तान की वो तरह वो ,नंगे पॉव् दुबई में नहीं घूम सकते। हुसैन
साहेब को ढाबे की कट्टिंग चाय की याद सताती थी। अपने प्यारे दोस्त मशहूर पेंटर गायतोंडे की प्यारी प्यारी बातें सताती थी जिन से वो मुंबई में घंटों बातें करते थे।
अफ़सोस इंसान की हर ख्वाहिश जीते जी पूरी नहीं होती। हुसैन साहेब भी ,सिर्फ एक बार वतन हिंदुस्तान लौट कर यहाँ की हवा में साँस लेना चाहते।कहा जाता है , कभी किसी को मुकम्मील जहाँ नहीं मिलता। मौत भी उनेह वतन से दूर लन्दन में आयी।
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कुवे यार में।
M .F .Hussain (मक़्बूल फ़िदा हुसैन) जन्म :१७ सेप्टेंबर १९१५ पँढरपुर मृत्य :९ जून २०११
M . F . Hussain ने पंढरपुर में एक ग़रीब घराने में जन्म लिया था। उनकी माँ मंदिर के बाहेर फूल बेचा करती थी।बचपन में उनकी माँ की मौत के बाद वो पिता के साथ इंदौर में रहे। प्राइमरी स्कूलिंग वही से क़ी । २० वर्ष की आयु में वो बॉम्बे आगये J .J .SCHOOL OF ARTS से पढ़ाई की। शरू शरू में फिम होर्डिँग बनाने का काम किया। पैसे कम मिलते थे इस लिये खिलौने की फैक्ट्री में काम भी किया। फिर अपने हुनर की बिना पर शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच गए। उनोह ने दो फिल्मे भी बनायीं थी Throuh the eye of painter और गजगामिनी। १९५५ में उन्हे भारत सरकार की तरफ से पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया। १९७३ में पद्मा भूषण , और १९९३ में पद्म विभूषण। १९८६ मेँ हुसैन साहेब को राज्य सभा के लिए प्रेजिडेंट द्वारा nominate किया गया।
इस बुलंदी से अगर कोई गिरदे मुझको।
एक ऐसा समय भी जब लोग उनेह लोग ,माधवी फ़िदा हुसैन के नाम से जानने लगे थे। कहा जाता उनोहने माधवी दीक्षित की फिल्म ”हम आप के हैं कौन “ सौ बार देखि थी। हिन्दुस्तान भर में उनकी बेहद इज़्ज़त थी। दुनिया भर में उनकी पेटिंग की मिसाल दी जाती थी। घोड़ों की तस्वीर बनाने में उन्हें कमाल हासिल था। क्रिस्टज़ ने उनकी एक पेंटिंग का लंदन ऑक्शन में २० लाख ड़ॉलर में सौदा किया था। उनकी घोड़ों की तस्वीरें करोड़ों में बिकती है जबकि अच्छी नस्ल का घोडा लाख में मिल जाता है। उनके बने फ़िल्मी बैनर आर्ट का शौक रखने वालों के लिए अहमियत रखते हैं। फिर ये हुवा के उनके द्वारा बनायीं गयी भारत माता की nude तस्वीर ने कुछ लोगों के जज़्बात को ठीस पुह्चायी। BJP ,विश्व हिन्दू परिषद को एक शोशा हाथ लगा उनकी अहमदाबाद की आर्ट गैलरी में तोड़ फोड़ की गयी। उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मेंमज़हबी जज़्बात को ठीस पोह्चाने का केस दायर किया गया। उनकी शोहरत उनके लिए आफत बन गयी।
एक ऐसा वक़्त आया उन्हें मुल्क छोड़ना पड़ा।
बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
फिर हुसैन साहेब बंजारों की तरह देश विदेश फिरे । कभी दुबई ,कभी पॅरिस तो कभी लंदन। मरने से पहले उन्हें Doha क़तर की शहरियारत वहाँ के शैख़ की जानिब से पेश कीगई जो उनोहने क़बूल करली।
हुसैन साहेब को अपनी हयात में इस बात का क़लक़ था के हिन्दुस्तान में उनकी क़द्र नहीं की गयी। बहादुर शाह ज़फर की तरह मुल्क बदर होना पड़ा। लेकिन बहादुर शाह ज़फर की तरह ज़लील नहीं होना पड़ा। आज भी उनकी तस्वीरें
अरबों रूपये में बिकती है। दुनिया भर में उनके चाहने वाले मौजूद हैं। लेकिन मुल्क की जुदाई ने उनेह मालूल करके रख दिया था। दुबई में संदर के किनारे उनका अरबों का विला था।दुनिया की महंगी महँगी करें bugati ,Bentaly ,Ferari उनकी मिलकियत (ownership ) में थी। शैख़ के ख़ानदान से उनका मेलजोल था। सात सितारा होटल में खाना खाया करते थे।
मरने से पहले हुसैन साहेब को इस बात की कुडन थी के हिंदुस्तान की वो तरह वो ,नंगे पॉव् दुबई में नहीं घूम सकते। हुसैन
साहेब को ढाबे की कट्टिंग चाय की याद सताती थी। अपने प्यारे दोस्त मशहूर पेंटर गायतोंडे की प्यारी प्यारी बातें सताती थी जिन से वो मुंबई में घंटों बातें करते थे।
अफ़सोस इंसान की हर ख्वाहिश जीते जी पूरी नहीं होती। हुसैन साहेब भी ,सिर्फ एक बार वतन हिंदुस्तान लौट कर यहाँ की हवा में साँस लेना चाहते।कहा जाता है , कभी किसी को मुकम्मील जहाँ नहीं मिलता। मौत भी उनेह वतन से दूर लन्दन में आयी।
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कुवे यार में।