गुरुवार, 26 जून 2025

MUBARAKBAD

                                                                      मुबारकबाद 

अल्हम्दोलीलाह मरकज़े फलाह नेरुल की फी पाने वाले  10th और 12th के  स्टूडेंट्स ने नुमाया कामयाबी हासिल की है सब बच्चों को दिली मुबारकबाद। 9 स्टूडेंट्स ने 10th std का एग्जाम नेरुल की बेस्ट स्कूल से appear किया और १००% कामयाबी हासिल की। 12th  std में १७ स्टूडेंट्स  नई मुंबई की टॉप कॉलेजेस से  appear हुए और रिजल्ट १००% रहा. ये वह identified families के बच्चे हैं जिन्होंने बग़ैर किसी प्राइवेट ट्यूशन के अपने बल बुते पर ये कामयाबी हासिल की है 

     मरकज़े फलाह नेरुल कमिटी के तमाम मेंबर्स की जानिब से पास होने वाले तमाम स्टूंडेंट्स को दिली मुबारकबाद और मुस्तकबिल के लिए नेक ख्वाहिशात आमीन। 

सोमवार, 23 जून 2025

Artifitial Inteligence

 

                                                                               مصنوعی ذہانت 

 میرا نونہال اور سسرال چھوٹے سے شہرمیں  ہے شہر کا پرانا قبرستان جس کے ایک گوشے میں ہمارے خاندانی بزرگ آرام فرما رہے ہیں قبرستان کیا ہے چھوٹا موٹا سا نخلستان ہے قبرستان کے داخلی گیٹ کے داہنی جانب چھوٹا سا مزار ہے اور اس کے ارد گرد گلاب ،موگرا ،رات رانی کی کیاریاں لگی ہیں ،جس سے قبرستان مہکتا رہتا ہے بایں جانب وضو کےلئے نل لگے ہیں اور ایک احاطہ بنا ہے جہاں جنازے کی نماز ادا کی جاتی ہے -تمام قبرستان شریفے ،امرود ،آم کے درختوں سے اٹا  پڑا ہے سورج کی کرنیں مشکل سے پہنچ پاتی ہےچڑیا ،مینا -کویل ،پپھا ،کبتروں کے شور سے قبرستان کی خاموشی میں عجب سماں پیدا ہوجاتا ہے -جنازے کے ساتھ ہجوم قبرستان میں داخل ہوتا ہے سوکھے پتوں کی آواز سے قبرستان گونج اٹھتا ہے -پرندے اچانک خاموش ہوجاتے لگتا جنازے کی نماز میں شاید وہ بھی شریک ہونا چاہتے ہو، جنازے کی حرمت کا انہں بھی احساس ہو  -قبرستان کے جس حصّے میں ہمارے نونہال کے مرحوموں کی قبریں ہیں -میری اماں ،ماموں میاں ،ممانی اماں کی قبریں قریب ہیں  -میرا معمول تھا جب بھی وطن جانا ہوتا قبرستان میں بیٹھ کر مزار پر لگی اگربتیوں کے چکراتے دھویں کو دیکھتا رہتا ،لوبان اور پھولوں کی خوشبواپنے اندر اتارتا  ،پرندوں کے شور کو محسوس کرتا  ،درختوں سے گرتے پتوں کو دیکھا رہتا ،سنا کرتا -اور فاتحہ پڑھتا 

                                                     عجیب درد کا رشتہ تھا سب کے سب رویے 

                                                      شجر گرا تو پرندے تمام شب رویے 

اتفاق سے  لاک ڈاون کے بعد وطن جانا ہوا دل قبرستان جانے کے لئےدل   بیقرار ہوا ،ا قبرستان پہچنے پر لگا، کہیں غلط جگہ پر تو نہیں آگیا ہوں ؟ تمام قبریں زمین دوز تھیں پھلوں ، پھولوں کے تمام  درخت کاٹ دے گئے تھے چھوٹے سے مزار کے داخلے پر ایٹن چن دی گی تھی نہ پرندوں کا شور نہ پھولوں کی خوشبوں کی مہک،ایک  ہوں کا عالم تھا 

 ٢٦ مئی ٢٠٢٥ ہندوستان ٹائمز میں ایک خبر نظروں سے گزری تھی روبوٹ نے انسانی حکم ماننے سے انکار کر دیا ، مجھے لگا اجا ڈ قبرستان  اسی روبوٹ کی مصنوعی ذہانت کی کارستانی نہ ہو ؟


मंगलवार, 11 मार्च 2025

jee chahta hai naqshe qadam chumte chale

                                                            जी चाहता है नक़्शे क़दम चूमते चले  "

सूरा इब्राहिम आयात २५ 

क्या तू ने न देखा अल्लाह ने कैसी मिसाल बयांन  फ़रमाई पाकीज़ा बात की जैसे पाकीज़ा दरख्त जिस की जड़ क़ायम और  शाखें आसमान पर हो हर वक़्त अपना फल देता है अपने रब के हुक्म से और अल्लाह लोगो के लिए मिसालें बयांन फरमाता है के वह समझे। 

       माशाल्लाह इस क़ुरानी आयात को पढ़ कर मरहूम दादा भाई (सादिक़ अहमद ) की यादें ताज़ा होजाती हैं। अल्लाह उनेह जन्नत में ऊँचा मक़ाम अता करे। आज क़ुरान द ट्रुथ फाउंडेशन के प्रेजिडेंट डॉक्टर के पी शरीफ के  लिखे लेटर को पढ़ कर आँखें नम (गीली ) होगयी। दादा भाई के  क़ुरान के तफ़्सीर के अंदाज़ की यादें ताज़ा होगयी। २००८ में जब क़ुरान की तफ़्सीर शुरू की गयी थी लोगों को अजीब लगता था। तफ़्सीर तो सिर्फ आलिम ही कर सकते हैं। लेकिन धीरे धीरे लोग जुड़ते गए और आज तक क़ुरान की तफ़्सीर का सिलसिला उसी अंदाज़ में शुरू है। १७ साल से इतवार की सुबह ये तफ़्सीर बाक़ायदा "online " होती है और कई लोग इस से जुड़ते  भी हैं ,इंशाल्लाह अल्लाह से उम्मीद है ये सिलसिला चलता रहेंगा और दादा भाई के हिस्से में नेकियाँ जुड़ती रहेंगी। 

   अल्लाह दादा भाई के जन्नत में दरजात बुलंद करते रहे आमीन सुम्मा आमीन। 


रविवार, 16 फ़रवरी 2025

sanak ya sahnak

                                                                    صا نک  یا صحنک 

مکرمی 

خاندیش میں گوشت مانڈے کا کھانا ہمیشہ معروف رہا ہے اور گوشت کے سالن کو صحںک مٹی کے برتن میں پروسہ  جاتا ہے اور لوگ اس مٹی کے برتن کو صانک کہتے ہیں ایڈیٹر انقلاب کے لکھے گئے مضمون "میرا ماضی کتنا امیر میں غریب ہوں میں موصوف نے ہماری غلطی کا ازالہ کر دیا ہم انکے ممنون مشکور ہیں 

    روزنامہ انقلاب میں آج کے الفاظ کالم میں دو اردو اور  ،انگریزی لفظوں کے معنی اور تلفّظ بتایے جاتے ہیں ہمارےلفظوں کے خزانے میں اضافے کا سبب بنتے ہیں -فلموں میں اردو ادب کالم کے تحت نیا سلسلہ شروع  کرنے پر روزنامہ انقلاب کی جدّت پسندی کو سلام 

راغب احمد شیخ 

نیرول -نیی ممبئی 


शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

qudrat ka nizam me mudakhlat

                                      

                                                                 قدرت کے نظام میں مداخلت 

مکرمی 

انقلاب میں مورخہ ١٢ فروری کو خبر نظروں سے گزری چین میں  پچھلے سال ٢٠ فی صد کم شادیاں ہویی اور اب تک کی سب سے کم شادیاں ہویی اب چین میں  لوگ بچے پیدا کرنے سے گریز کر رہے ہیں جس کی وجہ سے  نوجوانوں کی آبادی گھٹ رہی ہیں اور عمر رسیدہ لوگوں کی آبادی میں اضافہ ہو رہا ہے ایک زمانہ تھا چین میں ایک سے زیادہ بچہ پیدا کرنے پر سخت سزا حکومت کی طرف سے دی جاتی تھی کہا جا رہا ہے تائیوان میں اتنی کم تعداد میں بچے پیدا ہورہے ہیں کچھ سالوں بعد ملک آبادی سے خالی ہو جائے گا جاپان جرمنی ممالک میں آبادی کم ہو رہی ہے کام کرنے کے لئے دوسرے ممالک سے لوگوں کو بلایا جا رہا  ہندوستان میں بھی کیرالہ اور جموں کشمیر میں آبادی گھٹ رہی ہے راجستان مدھیہ پردیش گجرات میں عورتوں کی تعداد کم ہے -مثنوی طور سے آبادی کو کنٹرو ل کرنا قدرت کے نظام میں مداخلت ہے جسکے  مضر  اثرات دنیا دیکھ رہی لیکن انسان کی فطرت ہے وہ الله کے نظام میں بیجا مداخلت کرنے کا عادی ہے الله دنیا کو شیطان کے شر سے محفوظ رکھے جو انسان کے زہن کو پراگندہ رکھتا ہے جس کی بنا پر دنیا میں بے اعتدالی شر پھیل رہا ہے 

راغب احمد 

نیرول نوی ممبئی 

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

is bahaane se magar dekh lee duniya ham ne

With shahid Aslam,Mobinuddin Malik Hamidoddin

                                               

                                                    Shazeb waleema at salman hall
With Mobinuddin Malik and Hamidoddin at Waleema 


                                              इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने  

भागती दौड़ती दुनिया में ,रूटीन से हट कर कुछ लम्हे अपने नाम भी करना ज़रूरी होजाता है। ५ दिन औरंगाबाद में गुज़ार कर यु लगा जैसे किसी रेगिस्तान से गुज़रते कुछ लम्हे कुछ पल नखलिस्तान (oasis ) में गुज़ार कर ताज़ा दम होगया हूँ।  मौक़ा था इरफ़ान मुंशी के घर उनके फ़रज़न्द अबुज़र और अक़्सा ज़मानी का वलीमा उनकी दुख्तर ज़ारा और शाजेब का निकाह और रिसेप्शन। हमें (शगुफ्ता और मुझे) बड़े इसरार से बुलाया गया था।  अब्दुल रहीम साहेब  (शाजेब के वालेदैन ) ने एक साल क़ब्ल नासिक की शादी में हमें न्योता दे दिया था। अबुज़र का निकाह नंदुरबार में होचुका था। और ५ फेब्रुअरी २०२५ को वलीमा था। ५ फेब्रुअरी २०२५ को ज़ारा का निकाह शाजेब के हमराह आयेशा मस्जिद हिमायत नगर /चाउश कॉलोनी में  बाद नमाज़े असर हुवा। 

                                                ख़ुशी है सब को रोज़ ईद की यां 

                                                हुए हैं मिल के बाहम आशना खुश   

            रात बाद मग़रिब बाद कोहेनूर लॉन  (आज़ाद कॉलेज के नज़्द )  असराना  ( रिसेप्शन ) में , दोनों नए शादी शुदा जोड़ों की ख़ुशी में हम सब शरीक थे। धुले ,नंदुरबार ,कल्याण ,मुंबई, नासिक ,नवसारी से मेहमान तशरीफ़ लाये थे। मौसम भी खुशगवार था। खाना भी मज़ेदार था सब ने लुत्फ़ उठाया। औरतों के लिए परदे का इंतेज़ाम था। बड़ी ख़ुशी हुयी ,न म्यूजिक न डांस बड़ी सादगी से वलीमे की रस्म अदा हो रही थी। आज कल जो नुमाईश और चकाचौंद शादियों में हो रही है कही न कही अल्लाह की नाराज़गी का सबब बन रही है। 

            ऐसे मौके पर लोगों से मिलने मिलाने का सिलसिला दिलचस्पी की वजह बन जाता है। हमिद शैख़ मेरा भतीजा होता है लेकिन हम हमेशा दोस्तों की तरह रहे हैं। मिलते हैं तो लगता है दुनिया जहां की नेमतें मिल गयी बातों का सिलसिला ख़त्म नहीं होता। सलीम सय्यद (नवसारी ) ,परवेज़ और इक़रा खानदेश की पूरी टीम मौजूद थी फर्दन फर्दन सब से मुलाक़ात और गप शप हुयी , रागिब अहमद (Motivator ) साहब से सैर अमेज़ गुफ़्तत्गु हुयी बहुत कुछ नया जानने का मौक़ा मिला। मुबीनुद्दीन मालिक से गड़बड़ी में शायरी नहीं सुन पाए क़लक रहा। सोने  पे सुहागा जनाब हसींन मुंशी से अरसे बाद मिल कर तबियत बाग़ बाग़ होगयी। 

           दूसरे दिन ६ फेबरवरी २०२५ जनाब अब्दुल अब्दुल रहीम शैख़ साहेब की जानिब से सलमान हॉल नज़्द दिल्ली गेट औरंगाबाद में वलीमे का इंतेज़ाम किया गया था। अब्दुल रहीम शैख़ साहेब बड़े खुश मिज़ाज तबियत रखते हैं। बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक से रिटायर हुए है अपनी तीनो औलादों की बेहतरीन तरबियत की है। नौशे मिया ( शाजेब )माशाल्लाह UPSC के लिए appear होने वाले हैं। उनके रोशन मुस्तकबिल के लिए नेक ख्वाहिशात। मुनाफ मंज़ूर अली सय्यद साहब से फ़ोन पर गुफ्तगू हुयी तो अकदा खुला के कडु मिया शैख़ से उनकी क़रीब की रिश्तेदारी है। इसी मौके पर पहली बार औरंगाबाद की नामवर डिश नान खलिया खाने को मिली बहुत मज़ा आया। 

                                                 वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया 

                                                  इज़्ज़त उसे मिली जो वतन से निकल गया 

           खान्देशियों ने जिस जगह भी हिजरत करके उस मुक़ाम को अपना वतन बनाया। बे-इन्तहा तर्रकी हासिल की। खान्देशियों की खासियत है हर माहौल में बखूबी ढल जाते है,  जिस तरह शकर नमक पानी में घुल जाते हैं। इरफ़ान मुंशी ने हिमायत नगर (चाउश कॉलोनी ) में अर्फी मंज़िल तामीर की। कल्याण को अलविदा कह कर एक नयी दुनिया आबाद की। अपने बच्चों के साथ मिल कर रेडी मेड कपड़ों की तिजारत शुरू की और कामयाब भी हुए  माशाल्लाह क़ाबिले सताइश है। उनके दो सपूत दुबई में जॉब कर रहे हैं। अपने उम्र रसीदा वालिदैन की खिदमत भी आरिफा इरफ़ान दिलो जान से कर रहे हैं , सताइश के क़ाबिल है। अल्लाह उनके कामों में और बरकत आता करे। 

                                                         जाने वो कैसे लोग थे जो मिल के एक बार 

                                                          नज़रों में जज़्ब होगये दिल में उतर गए 

         रहीमुद्दीन शैख़ से मिल कर कुछ ऐसा ही लगा। आप बहादर पुर से बिलोंग करते हैं। मुझे भी एरंडोल बहदर पुर से निस्बत रही है। बचपन में बहादरपुरी होने पर कुछ adverse comments (तन्ज़िया कलमात ) सुनने को मिलते थे। ये लोगों के ज़हन की उपज थी। आज बहादरपुरियों की मिसाल पेश की जा सकती है। रहीमुद्दीन शैख़ साहेब बड़े disciplined ,वक़्त के पाबंद वाक़े हुए है। अल्लाह उनकी और इज़्ज़त बढ़ाये। 

                                                       ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती 

                                                       ये ख़ज़ाने तुझे शायद के खराबों में मिले 

          नसीम खाला ,मेरी खाला और शगुफ्ता की फूफी होती है जब भी मिलता हु ,  मोहबत का मतलब समझ में आता है। खाला अम्मा से मिलकर मरहूम शराफत अली जनाब की यादें यादें ताज़ा होगयी। अपने नाम की तरह उनमे शराफत कूट कूट कर भरी थी। अल्लाह जन्नत के आला दरजात आता करे आमीन । रईस ,इल्मान ,ज़ीनत से भी मिल कर बे इन्तहा ख़ुशी हुयी,रोशन गेट  सादात मस्जिद के क़रीब, उनके घर जा कर मुलाक़ात की । इस खानदान ने भी माशाल्लाह बहुत तर्रकी की है। अल्लाह मज़ीद तर्रकी आता करे आमीन। 

          सैरे हासिलऔरंगाबाद की रिहाइश पुर लुत्फ़ रही। 


गुरुवार, 23 जनवरी 2025

Khiraje Aqeedat

                                                                       खिराजे अक़ीदत 
Late Sayed Zakir Hussain

                                              अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोये 

                                               शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब् रोये 

१९ जनवरी 2025 सैय्यद ज़ाकिर की अलालत की खबर सब ग्रुप्स में वायरल हो गयी थी और उसी शब् इंतेक़ाल की खबर भी रिश्तेदारों के सभी ग्रुप्स में देखने को मिली। ताज़ियत के मेसेजेस का एक सैलाब हर ग्रुप में उमड़ आया। जनाब हसींन और JGShaikh ने भी मरहूम को अपने खूबसूरत अंदाज़ में  खिराजे अक़ीदत (Obituary ) पेश किया।  २० जनवरी २०२५ बामुतबिक १९ रज्जब १४४६ तद्फीन  एरंडोल के उसी क़ब्रस्तान में कई सौ लोगों की मौजूदगी में अमल में आयी , जिस क़बरसतन को रजिस्टर करवाने और बॉउंड्री की दीवार बनाने के लिए एरंडोल क़ब्रस्तान कमिटी के साथ मिलकर ज़ाकिर सैय्यद ने अनथक मेंहनत की थी , खुश किस्मत रहे उनेह  हमारे  बुलंद अख़लाक़ बुज़र्गों के दरमियान जगह मिली। 

                                                    फैला के पाँव सोयेंगे तुर्बत में आज हम 

                                                     लो अब सफर तमाम हुवा घर क़रीब है 

  बचपन से सैय्यद ज़ाकिर को किताबों से अदब से दिलचस्पी रही। उन की पहली कहानी बहुत कम उम्र में छपी थी। ये कहानी एक सच्चे हादसे पर मर्कूज़ थी। में ये कहानी पढ़ चूका हूँ। उनकी सभी कहानियां ज़िन्दगी से क़रीब हादसात ,वाक़ेयात पर लिखी गयी। "रासतें बंद हैं "ये किताब जब छपी मुझे भी एक कॉपी रवाना की थी और मुझ से कहा था अपने तस्सुवरात ज़रूर बयान करना। क़रीबी रिश्तेदारों ,बुज़र्गों पर जब कालम लिखना शुरू किया उस का उन्वान भी ज़ाकिर सय्यद ने तजवीज़ किया था जो बहुत खूबसूरत "खुशबु जैसे लोग लोग मिले " था। लगातार कई बुज़र्गों के हालते ज़िन्दगी हमारे सामने लाने में वह कामयाब हुए। काश के हम एक किताबी शक्ल में छाप सकते। मेरी ये आरज़ू रह गयी के खुशबु जैसे लोग मिले में उन पर लिख पाता। खैर उन के लिए खिराजे अक़ीदत ही सही। एरंडोल की हिस्ट्री पर उनेह ऊबूर  (Mastery   ) हासिल थी। सदियों पहले सिपह सालार मालिक काफूर की अपने लश्कर के साथ एरंडोल में रहियिश यहाँ जामे मस्जिद का बनवाना ,छावनी कायम करना मरहूम सैय्यद ज़ाकिर ही से मालुम हुवा था । हज़रात ख्वाजा खुर्रम खत्ताल चिस्ती की ज़िन्दगी पर एक तवील मज़मून भी सय्यद ज़ाकिर ने लिखा था। सय्यद ज़ाकिर फिरोज हाश्मी (क़लमी नाम ) के नवासे और क़ाज़ी मुश्ताक़ के क़रीबी हैं।  क़ाज़ी मुश्ताक़ तो आज के दौर के मारूफ मुससनीफ़ (Writer ) माने जाते है। उनके लिखे ड्रामे साने गुरूजी ,ग़ालिब की हवेली ,अबुलकलाम आज़ाद हिन्दुस्तान भर में मशहूर हुए हैं। ऐसे खानदान के सपूत को यक़ीनान लिखना वाजिब होता है। हम तो ज़िन्दगी गुज़ार कर गुज़र जाते हैं सय्यद ज़ाकिर जैसे लोग ज़िन्दगी के साथ गुज़रते है ,महसूस करते है और लफ़्ज़ों में बयान भी करते हैं। 

   सैय्यद ज़ाकिर  बचपन ही से बुज़र्गों की बहुत इज़्ज़त किया करते थे। उनके साथ बैठने वक़्त गुजरने में उनेह लुत्फ़ महसूस होता था।  उनकी नसीहतों पर अमल करने में फख्र महसूस करते। हमारे वालिद मरहूम हाजी क़मरुद्दीन से वह रब्त में रहते थे और बड़े खूबसूरत खत लिखा करते थे। काश हमने पुराने खुतूत के ख़ज़ाने को मेहफ़ूज़ कर लिया होता। मैं ने भी अपने वालिद मरहूम क़मरुद्दीन ,मरहूम हाजी सादिक़ अहमद के खत पढ़ कर बहुत कुछ सीखा है। और डॉक्टर वासिफ अहमद के खुतूत का कोई जवाब नहीं  होता था। आज के दौर में सोशल मीडिया ने इस फन  को दफ़न ही कर दिया है। 

                             कौन मुझसे पूछता है रोज़ इतने प्यार से 

                             काम कितना होगया, है वक़्त कितना रह गया 

  मरहूम सैय्यद ज़ाकिर को खानदान के शिजरे की ज़बरदस्त मालूमात थी। औलिआ अल्लाह से भी उनेह ज़बरदस्त अक़ीदत थी। होता ये है के रिटायरमेंट के बाद लोग अपने आप को समेट लेते हैं ,मरहूम ज़ाकिर के साथ कुछ अलग ही  हुवा। एंग्लो उर्दू स्कूल एरंडोल ,मस्जिद और क़ब्रस्तान ट्रस्ट एरंडोल के साथ जुड़े रहना। अपनी अदबी मसरूफियत ,सुना है मरहूम रोटरी क्लब के मेंबर भी थे। मराठी साहित्य सम्मलेन में भी एक्टिव थे। ये तमाम काम सताइश की तम्मना सिले की परवाह से बेनियाज़ होकर मरहूम ने किया। जो भी किया अपनी तस्कीन के लिए किया। शायद इसी लिए उनके वक़्त में इतनी बरकत होगयी ,और इतने काम कर सके। 

                                 कितने अच्छे लोग थे ,क्या रौनकें थीं उनके साथ 

                                 जिनकी रुखसत ने हमारा शहर सूना कर दिया 

  जन्नती होने की जितनी बशारतेँ  अल्लाह के रसूल ने दी थी , वो सब मरहूम सैय्यद ज़ाकिर में मौजूद थी।  तीन लड़किया जिन की बेहतरीन तरबियत कर ,मारूफ घरानों में उनके रिश्ते  मरहूम ने करवाए। मरहूम के जनाज़े में एक जम्मे ग़फ़ीर (भीड़ ) ने शिरकत की। सुना है एरंडोल का वाटर सप्लाई का मसला मरहूम सय्यद ज़ाकिर ने हल (solve ) करवाया।  "रास्ते बंद हैं "मरहूम की किताब का उन्वान (title ) है ,दुनिया में आने के वो तमाम रास्ते बंद कर गए ,लेकिन अपने लिए जन्नत का रास्ता खोल कर गए। 

                                  बहुत सी खूबियां थी मरने वाले में 

अल्लाह मरहूम सय्यद सय्यद को जन्नत में आला दरजात आता करें अमीन सुम्मा अमीन।